सौरभ प्रभात

*वर्षागमन (गीत)*

घन घन घोर बदरिया छाये
रह रह के जियरा धड़काये
उमड़ घुमड़ मन भाव सजाके
घूँघट खोल प्रिया हरषाये

सनन सनन सन हवा चले जब
हँसी अधर तब आतीं हैं
पावस की ये पावन बूँदें
मन के कष्ट मिटातीं हैं
नाचे यौवन छम छम छम छम
राग द्वेष सब दे बिसराये
उमड़ घुमड़ मन भाव सजाके
घूँघट खोल प्रिया हरषाये

छनन छनन छन बाजे पायल
सदा सुनाये ताल नया
हाथों में फिर कंगन बोले
कर दे दिल के हाल बयां
कोयल कूके डाली डाली
आम्र गंध आँगन महकाये
उमड़ घुमड़ मन भाव सजाके
घूँघट खोल प्रिया हरषाये

चहके चपला हिरणी बनकर
घूमे देखो गली गली
तीखे तीखे नक्श नयन से
हिय लुटाती है वो चली
बरसे बादल झम झम झम झम
नचे मोरनी पर फैलाये
उमड़ घुमड़ मन भाव सजाके
घूँघट खोल प्रिया हरषाये

✍🏻©️
सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...