मधु के मधुमय मुक्तक
प्रभात
यह प्रभात की लालिमा, रश्मिरथी का तेज।
उदित हुई आभा सुखद, धरा स्वतः ही भेज।
प्रकृति देख मुसका रही, शोभित प्रियम प्रभात,
दृग खोले रवि देखता, लेती धरा सहेज।।
शुभ प्रभात में ईश का, वंदन करते लोग।
धूप दीप चंदन चढ़ा, देते छप्पन भोग।
प्रथम पहर जब भोर की, प्राप्ति ईश वरदान,
धर्म कर्म के मेल से, कीर्ति सुभग संजोग।।
इस प्रभात की सृजनता, धन्य सतत शुभ रीत।
दृश्य नयन में यह बसे, हो प्रसन्न यह चीत।
चंपा बेला पुष्प भी, देखे खिला गुलाब,
रोमांचित तन मन हुआ, इत्र बसी मनमीत।।
यह प्रभात नित यह कह, है ये सुख दुख छोर।
जीवन की परिकल्पना, अमर भाव चितचोर।
पशु, पक्षी, मानव सभी, जीव जन्तु की आस,
जन्म मृत्यु सा सत्य है, नवल प्रकृति मधु भोर।।
मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज ✒️
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