सम्राट

प्रेम जो कहने के लिए खत्म हो जाता है
पर वास्तव में कभी खत्म नही होता
हाँ नये उम्मीद और नये ख्वाब के लिए
दिल के किसी कोने में दफ़न जरूर हो जाता है
पर वही प्रेम मौके बे मौके पर
कभी कभी याद बन के 
अपने को जिंदा रखता है
हाँ अब प्रेम का स्वरूप बदल गया होता है
जिसको याद कहते हैं
पर वास्तव में ये प्रेम ही होता है
जो कभी होठों पर हँसी
तो कभी आँखों में मोती ले आता है
मसलन वो प्रेम करने वाले लोग
जो कहते हैं कि हमनें उसे भुला दिया
सीधे सीधे झूठ बोल रहे होते हैं
क्योंकि प्रेम को कभी भी,
भुलाया नहीं जा सकता।

©️सम्राट की कविताएं

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...