निशा अतुल्य

मौसम
मुक्तक मात्रा भार 16

मौसम ने करवट जब बदली,
छाई गहरी काली बदली ।
रिमझिम रिमझिम बूंदे बरसी,
भूमि की खुशबू है संदली ।

दादुर मोर पपीहा गाए,
कोयलिया भी राग सुनाए।
चमक उठी है तड़ित दामिनी,
बरखा की बूंदे ललचाए ।

आँचल तप्त धरा का सींचा, 
बीज प्रस्फुटित अंकुर नीचा ।
निकल आये नवांकुर देखो,
सुन्दर रूप धरा का खींचा ।

आमो पर महकी अमराई,
बूंदों से है भूमि नहाई ।
झम-झम,झम-झम बरखा ने गिर,
देख भूमि की प्यास बुझाई

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

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