निशा अतुल्य

कशमकश 

जिंदगी की कशमकश 
जूझते है यहाँ सभी 
कोई पार करता व्यथा से
कोई हँस के झेले है पीर ।

कुछ टूटता कुछ दरकता
साथ कुछ रहता यहाँ
सुख की अनुभूति बने कोई
कोई कशमकश देता रहा ।

समय चक्र चलता ही रहता 
ले सुख दुख साथ में 
है सफल जीवन उसी का 
जो जीवन को साध ले ।

खत्म तो होगी कभी
कशमकश ये जिंदगी की
मन की इच्छा पूरी होगी
सीधी सरल सी जिंदगी में ।

लोग मिलते और बिछड़ते
रीत ये जग की रही 
मन न हो अधीर अब तू
सार है ये जिंदगी के ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"



पर्यावरण संरक्षण
28.6.2021

सूखी धरा तप्त रहे
संताप अपने कहे 
मिलें नहीं कहीं छाँव 
वृक्ष तो लगाइए ।

पर्यावरण रूठा है
हर तरफ सूखा है
त्राहि त्राहि कर रही
धरा को बचाइए ।

संरक्षण है जरूरी
वृक्षो से है कैसी दूरी
भूल अब करो नहीं
हरी भू बनाइए ।

वृक्ष जीवन आधार
करें ये जल संचार
हरे भरे वृक्ष झूमे
बादल बुलाइए ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

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