*उजला निर्झर*
खुशियों का गुलदस्ता लेकर
भोर सुहानी आ गई
हिम अंचल से बहता उजला निर्झर/ रविकिरण सरसा गई
फैला प्राचि भाल सिंदुर
अरुण कन्दुक गगनांचल
लुढ़क आई
उजियारे ने पर फैलाए
तम ने आंचल लिया समेट
छिटक गिरा इक ध्रुव तारा
झट रवि कंदुक ने साध निशाना/ दे ठोकर रजनी के
पीछे किया रवाना
खेल अनूठा क्षितिज का देख
खग वृंद हर्षित हो कुर्ला गया
अमृत वाणी का स्पंदन हवाओं में बह हर जन को जगा गया
धरा ने भी ली अंगड़ाई
भोर निर्झर में नहाई
फूल, पात, वृक्ष ,विटप
हर कोना उजला हो गया।
डा. नीलम
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