विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

क्या अजूबा वो मेरे साथ किया करते हैं
दूर रह कर भी निगाहों में रहा करते हैं

क्यों मेरे सामने ख़ामोश ज़ुबां हैं अब तक
आप दुनिया से तो हँस हँस के मिला करते हैं 

हम बनाते ही रहे ख़्वाबों में कई ताजमहल
इनको मिस्मार वो कर कर के हँसा  करते हैं 

हर मुलाकात में तोड़ा है हमारे दिल को 
फिर भी हम हैं जो बराबर ही वफ़ा करते हैं

उनके दीदार को प्यासी हैं निगाहें कबसे 
उनकी आमद के लिए रोज़ दुआ करते हैं 

हमने हर रस्म मुहब्बत की  निभायी फिर भी 
 और वो हैं जो हमेशा ही जफ़ा करते हैं

आप नाराज़ न हो जायें किसी पल हमसे 
हम यूँ हर फ़र्ज़ मुहब्बत के अदा करते हैं 

माना दुनिया में बुरे लोग बहुत हैं  *साग़र*
फिर भी कुछ लोग यहाँ सबका भला करते हैं

🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली
15/5/2021
2122-1122-1122-22

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