काव्य रंगोली परिवार को नमन्
शीर्षक: "योग और अध्यात्म"
वार: वृहस्पतिवार
धारण करना है धर्म- शास्त्र बतलाता है।
भगवत् धर्म हीं योग मार्ग कहलाता है।
विस्तार- रस- सेवा- तद्स्थिति हीं 'भगवत् धर्म' है।
धर्म का पालन अनुशीलन हीं अध्यात्मिक पथ है।
तद्स्थिति प्रतिसंचर धारा भवसागर तक जाना है।
जीवात्मा का ईश्वर में मिलन- मुक्ति मोक्ष पाना है।
यही मिलन योगाभ्यासी नियमित साधना से करते हैं।
साधना से दीर्धायु, कुशाग्र आत्मीय विकास करते हैं।
साधना सें तन मन आत्मा का 'एकिकरण' हो जाता है।
अणुमन भूमामन में विलीन हो कर शिव तक जाता है।
सदाशिव समाज को 'तांत्रिक योग' का पथ दिखलाये।
कृष्ण ने गीता में योग की गुणवत्ता महातम्य समझाये।
ऋषिश्रेष्ठ पतंजली अष्टांग योग विद्यामाया की विधि बतलाये।
यम-नियम प्राणायाम-प्रत्याहार धारणा-ध्यान से समाधी पायें।
विद्यामाया तंत्र अष्टांग योग से मिल कर मानव को पूर्णत्व देता है।
देहिक मानसिक अध्यात्मिक विकास से साधक मुक्त हो जाता है।
असाध्य रोगों का निवारण योगासनों से संभव है।
सत्व, रजस और तमस गुणों से कुण्ठित मानव है।
तन में चेतनता और ओज योग समाविष्ट करता है।
ओज साधक को परक्ष लक्ष्य शिव तक पहुँचाता है।
योग प्रचार सर्वहित- शुभफलाफलकारी है।
गुहा का तप और सिद्धि मार्ग स्वार्थपरता है।
समाजिक सेवा और जनकल्यण कर मानव महान बनता है।
नवचक्र जागृत कर अमृत क्षरण का परमानंद-मोक्ष पाता है।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, पश्चिम चंपारण
बिहार
9708055684
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