*राम बाण🏹अपनों से ही द्वंद कराये*
अपनों से ही द्वंद करायें।
बिना युद्ध के जंग करायें।।
घऱ-घर ज्वाला धधक रही है।
आग लगी है कौन बुझाये।।
गली सड़क में भीड़ लगी है।
चौपालो में होड़ लगी है।।
महारोग फैला है ऐसे।
मँहगाई बढ़ती है जैसे।।
मौतें कैसी बढ़ते जाये।
काल खड़ा है मुँह को बाये।।
कोई टीका लगा रहे हैं।
सोये को वे जगा रहे हैं।।
कहीं दोगली भाषा चलती।
मौतों में भी आशा पलती।।
आशाओं के बादल छाये।
बहती लाशे उन्हें दिखाये।।
समझौते में दल थे आगे।
छिपते हैं अब भागे-भागे।।
मौके पर वे बात करेंगे।
कथा कहानी और गढ़ेंगे।।
भ्रम के सेवक भूख दिखाये।
दर्द दवा के रोग लगाये।।
कहीं वैक्सीन की है चोरी।
कोई करता सीना जोरी।।
पैसों ने क्या खेल किये हैं।
हवा बेचकर बेल लिये हैं।।
हक माँगों की आश जगाये।
कौम खड़ी है घात लगाये।।
राम कहेंगे देश सँवारो।
भ्रमजीवी को दूर निकारो।।
सही राह के पथिक नहीं है।
जो है पर वे व्यथित नहीं हैं।।
श्रम सेवा के भाव जगाये।
सोच बदलने द्वार सजाये।।
*डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी*
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