देवानंद साहा आनंद अमरपुरी

........................विरह-गीत............................

इक  पीली  शाम  में , मेरी  प्यारी   प्रेयसी  खो  गई।
पहले अपनी बनी रहती थी, अब किसी की हो गई।।

मेरी प्रेयसी , तुमसे मैंने , क्या-क्या  नही देखे सपने।
लेकिन सपने , विखरे ऐसे , जैसे कोई बिछड़े अपने।
तुमसे  मेरी  जिंदगी थी , तुम  ही  दूसरे  की  हो गई।
पहले अपनी बनी रहती थी, अब किसी की हो गई।।

मैंने पहले समझ लिया था , तुम मेरी हो मेरी रहोगी।
मेरे सिवा तुम किसी की , नही बनी  हो नही बनोगी।
पर ऐसी  क्या  खता थी , तू औरों  की क्यों  हो गई।
पहले अपनी बनी रहती थी ,अब किसी की हो गई।।

कैसे तुझे  यकीं कराऊँ , तेरे विना  मैं जी नहीं पाऊँ।
तू न मिली तो,जीना क्या,मरना चाहूँ तो मर न पाऊँ।
तुमसे  मेरी   प्यारी  जहाँ  थी , तू  गैरों  की  हो  गई।
पहले अपनी बनी रहती थी ,अब किसी की हो गई।।

ख़ुदा  करे  तू  फिर  से मेरी , जिंदगी  में  लौट आये।
अंधेरे में उजाला फैलाए,फिर से मुझे अपना बनाए।
तुमसे  मेरी  हर  खुशी थी , तुम ही  मुझे  छोड़  गई।
पहले अपनी बनी रहती थी,अब किसी की  हो गई।।

जहां भी हो,जैसी भी हो ,मेरे लिए बिलकुल वही हो।
कोई कुछ कहे दिल यही माने,तुम दूसरे की नही हो।
तुमसे मेरी प्यारी  बगिया थी , तुम्ही तन्हा  छोड़ गई।
पहले अपनी बनी रहती थी, अब किसी की हो गई।।

---------------------देवानंद साहा " आनंद अमरपुरी "

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