*कुण्डलिया*
दिया सदा उम्मीद का, मन में रखो जलाय,
हो निराश क्यूँ रात- दिन, अँखियन नीर बहाय,
अँखियन नीर बहाय, हौसला हारे है क्यूँ?
मिट जायेगा तिमिर, उगेगा प्राची रवि ज्यूँ।
कहें नव्य निधि दीप, जो भी आस जगा लिया।
बनकर सूरज तेज, जगती को जीवन दिया।
स्वरचित-
डाॅ०निधि मिश्रा
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