*।।यूँ ही नहीं किस्मत मेहरबान*
*बनती है जिंदगी में।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
यूँ ही नहीं कोई कहानी
बनती जिन्दगी में।
यूँ ही नहीं कामयाब रवानी
बनती ज़िंदगी में।।
तराशना पड़ता है खुद
हाथ की लकीरों को।
यूँ ही नहीं किस्मत दीवानी
बनती जिन्दगी में।।
2
यूँ ही नहीं नाम होता है जा
कर दुनिया में।
यूँ ही नहीं हर गली में सलाम
होता दुनिया में।।
जुबान दिल दिमाग हाथों से
जीतना होता है।
यूँ ही नहीं हर लफ़्ज़ पैगाम
होता दुनिया में।।
3
हर जख्म के लिए शफ़ा नहीं
नमक होना चाहिये।
तेरे चेहरे पर इक़ अलग तेज़
दमक होना चाहिये।।
यह दुनिया यूँ ही नहीं मुरीद
बनती है किसी की।
तेरी निगाहों में कुछ अलग
नूरोचमक होना चाहिये।।
*।।विषय आषाढ़ के बादल।।*
*।।शीर्षक आषाढ़ की प्रथम*
*वर्षा, धरती और अन्नदाता दोनों*
*का मन हर्षा।।*
देख कर बादल आषाढ़ के
धरती में आ जाती है नई चमक।
कतरे कतरे में उत्पन्न हो जाती
है एक नव नवीन दमक।।
धरती का पालन पोषण होता है
केवल मूसलाधार वर्षा से ही।
इस पवित्र पावन धरती माता से
ही प्राप्त होता है फलअन्न नमक।।
बारिश से ही कृषक का घर और
आशा जीवित रहती है।
किसान की फसल सदैव जल
की ही पुकार कहती है।।
बादल भी बरसें केवल अपनी
सीमा में तो रहता है अच्छा।
वरनाअन्नदाता किसान अन्नपूर्णा
धरती दोनों की आशा बहती है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
8218685464
दिनाँक।। 28 06 2021
*प्रमाणित किया जाता है कि रचना मेरी*
*स्वरचित।मौलिक।अप्रकाशित।स्वाधिकृत है।*
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