दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

वट सावित्री व्रत पर एक छोटी सी कविता 

वट वृक्षों की पूजा पतियों का सम्मान,
रहे निर्जला सुहागिनें लेकर ये विधान।
गाँवों से शहरों तक है जीवन का मान,
करें सुहागिनें अमर वर हो लें पूजन विधान।।

हम सबके संस्कारों में वट हैं ईश समान,
करें कामना सुहागिनें पति रहें सत्यवान।
रीति रिवाजों से है जीवन मूल्य आधार,
वट  वृक्ष  नहीं  त्रिदेवों  का  है  स्थान।।

वट वृक्षों की छाया पथिकों को देती आराम,
कड़ी धूप हो जली धरा हो ठंडी पवन चलाय।
वट पर सोच ये प्राणी ज्ञान समुंदर पर बल दे,
वसुधैव - कुटुम्बकम की  राहों का है सहाय।।

 ऐसे  ही  नहीं  होते  वट  वृक्षों  की  पूजा,
अमृत जीवनधारा के रहे होंगे कारण दूजा
व्याकुल बंधीं पत्नियां सतजन्मों के फेरों से,
वट तरु व्रत सदृश है सावित्री सी वट पूजा।।

रचना-दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
              उत्तर प्रदेश ।

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