गीत(16/14)
डाल-पात सब झूम रहे हैं,
धरती पर हरियाली है।
नाच रहे हैं मोर छबीले-
मस्त घटा घन काली है।।
हरी-भरी सीवानें झूमें,
कृषक झूमते फसलें देख।
ताल-तलैया-नदी झूमती,
लख, गगन-घन काली रेख।
धरती का हर कोना झूमें-
अन्न भरी हर थाली है।।
मस्त घटा घन काली है।।
जब भी बहे पवन पुरुवाई,
काले बादल छाते हैं।
छोटी-छोटी रिम-झिम बूँदें,
लखकर मन हर्षाते हैं।
मगन-मुदित सब नाचें-गाएँ-
सुषमा प्रकृति निराली है।।
मस्त घटा घन काली है।।
चपला-चमक,गरज घन सुनकर,
विरहन का मन चिहुँक उठे।
मधुर मिलन की तड़प-अगन से,
जियरा उसका झुलस उठे।
फिर वह नाचे भीग-भीग कर-
लगती वह मतवाली है।।
मस्त घटा घन काली है।।
हरियाली से सुख है मिलता,
वातावरण स्वस्थ रहता।
बाग-बगीचे हरे न रहते,
यदि जल इधर-उधर बहता।
बाग-बगीचा रखे हरा जो-
सच्चा वह ही माली है।।
मस्त घटा घन काली है।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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