पावनमंच को मेरा प्रातःकाल का सप्रेम व सादर प्रणाम स्वीकार हो,मेरी रचना का आज का विषय ।। भाग्य ।। है,अवलोकन करें.... जीव धरै बस साहस धीर तौ काजु नही जग कौनौ भारी।। निरखै नयनु जौ छाँडि के आलसि युक्ति करै दिनुरैनु जुझारी।। युक्तिनु साथु बढावै कदम्म तौ बाँह को थामतु हैं गिरधारी।। भाखत चंचल रे मनुआ जबु पंथ सुझावतु वाहि मुरारी।।1।। पानी कै बूँद बढी़ जब अम्बरू सोचि रही कि लिलार में क्या है।।। प्रान बचैंगै गिरैगे जा धूर या जाय मिलैंगे जो वास वया है।। याकि गिरैंगे अँगारनु जाय या जलनिधि मध्य ये कैसी हवा है।। भाखत चंचल माया कृपानिधि बूँद गिरी मुख मध्य मया है।।2।। छाँडि कुटुम्ब चला परदेशु जँह ठाँव ठिकानौ ना कौनौ खरा है।। मुल साथु रहे करूनानिधि ईश वही रजनीश कै संगु परा है।।। संगी मिलँय लै जाय मिलावैं जे खेवनहार कृपालु वरा है।। भाखत चंचल ईश गती अरू भागि कै हालि निहारि जरा है।।3।। रोजी मिली अरु वास सुवास औ पथ मिलावतु वाहि खरारी।। चैन कटै दिनुरैनु नसै नहि सोचु सुभाव है लावतु भारी।।। श्रम खूब करै अरू प्रेमु धरै अरु लाय लगाय के नेहु मुरारी।। भाखत चंचल रे मनुआ धन दौलतु देतु वही त्रिपुरारी।।4।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।। ओमनगर, सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी, अमेठी,उ.प्र.।। मोबाइल..8853521398,9125519009।।
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
पावनमंच को प्रणाम, आज की रचना ।। डाक्टर डे।। पर मनोविनोद व व्यंगात्मक है,चिकित्सक बन्धुओं से क्षमा,व पाठक समाज अन्यथा नही ,केवल आनन्द लें..... बैद्य कही हौं या कही कि चिकित्सक याकि यन्हँय डाक्टर कहि डाई।। सफेद परिधानु मा आला धरैं मुल नाहि धरैं यै हिया रघुराई।। करतब फर्ज यै भूलि गयेंअरू काटतु नीकु यै मोटी कमाई।। भाखत चंचल उच्च विचार मा आवतु केवलु कछुवै पाई।।1।। ईश्वरू जैइसे कै मान रहाअरू यनकै ऊँचौ सुनामु रहा।। विश्वासु रहा सबु मानव कै दुःखनाशक रूप विधानु रहा।। तप त्यागु रहा बलिदानु रहा अरू सेवा समर्पण भाव रहा।। चंचल कलिकाल के भौतिक मा यहु खोवतु नीकु प्रमाण रहा।।2।। प्रानौ गये यै रखैं वेन्टीलेटर औ लोगनु देतु सहारो दिखैं।। बिजुली कै मशीनु भरी करतूत डोलावतु हाथ औ पाँव दिखैं।। दस पाँचु हजारू के चक्कर मा यै खोवत नीकु ईमानु दिखैं।। भाखत चंचल काव लिखी यै बेंचतु नीकु ईमानु दिखैं।।3।। मुला आई कोरोना बेमारी जबै दिनुरैनु कै त्यागु महानु दिखा।। घर बार कुटुंब समाजु कै त्यागु इहय अभिमानु ई हिन्द दिखा।। जान कै बाजी लगाय लगाय केकोरोना कँहँय भरमाय दिखा।। सफलता मिली यनके बल चंचल साँचौ यहै परिणामु दिखा।।4।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल। ओमनगर,सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी, अमेठी, उ.प्र.। मोबाइल.8853521398,9125519009।।
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