निशा अतुल्य

आज की एक रचना
काव्य रंगोली मंच को समर्पित 
🙏🏻

रूठो न ,रूठो न हमसे सनम
जान हमारी जाती है ।
चाहे ले लो,ले लो हमसे कसम 
रूठो न,रूठो न हमसे सनम ।।

संग में रहना साथ निभाना
मेरे सजनवा भूल न जाना
मर जाऊंगी बिन तेरे मैं
मुझसे किया जो वादा निभाना
चलो सँग में मेरे सनम ।

चाहे ले लो,ले लो हमसे कसम 
रूठो न रूठो न हमसे सनम ।।

मेरा हर पल तेरा ही है 
निंदिया तेरी, सपने तेरे 
मिलने की जो चाह जगे तो
छोड़ आऊं सब सांझ सवेरे 
करना न मुझ को अलग ।

चाहे ले लो,ले लो हमसे कसम 
रूठो न रूठो न हमसे सनम ।।
 
जग बेरी बन जाएगा उस दिन
छोड़ के जाएगा तू जिस दिन
लाज की मारी कुछ न बोलूं
दूँगी तोड फिर सारे बंधन 
उड़ जाऊंगी तोड के पिंजरा
हाथ नहीं मैं फिर आऊंगी
ढूंढना,मुझे न सनम ।

चाहे ले लो,ले लो हमसे कसम 
रूठो न रूठो न हमसे सनम ।।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"

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