थकते नहीं ये रुकते नहीं
मौत से लड़ते हैं।
बाजी लगाकर जान की
ये निदान करते हैं।
ईश्वर के बाद हम डॉक्टर को
याद करते हैं।
इस महामारी में उनका
धन्यवाद करते हैं।
तारीफ में इनके शब्द तो
बेहद कम पड़ रहे।
कितने दिए ये जान
मगर आज भी लड़ रहे।
झुकता है ये मेरा शीश
ये हमारे लिए जी रहे।
सारे सुखों को त्यागकर
हमारे जख्म सी रहे।
दुनिया में कोई और नहीं
जो हो इनके समान।
विश्वास के साथ कह रहे
ये धरती के भगवान।
रामकेश एम यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई
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