*मधु के मधुमय मुक्तक*
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*विषय -- प्रेम*
◆ *प्रेम* कृष्ण की बाँसुरी,राधा का अनुराग।
मीरा की वीणा बजी,अन्तर्मन में त्याग।
प्रेम सुदामा का अटल, सहज सखा सम भाव।
दीन सुदामा जब मिले ,गया प्रेम तब जाग।।
◆प्रेम भक्ति के भाव में, दर्शन की बहु प्यास।
माता की ममता यही, पिता ह्रदय में खास।
प्रेम बिना बंधन नहीं, मिथ्या सारे भाव,
प्रेम ईश का रूप है, प्रेम अटल विश्वास।।
◆प्रेम शब्द पूरा नहीं, जाने सकल समाज।
प्रेमी हिय से कर रहे, इस जीवन पर नाज।
त्याग बिना है प्रेम क्या? झूठ जगाए आस,
प्रेम त्याग का रूप है, *मधु* जीवन का राज।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
*14.02.2020*
🌹🌹🌹सुप्रभातम्🌹🌹🌹