चन्द्रकांता सिवाल "चन्द्रेश" करौल बाग  नई दिल्ली -

नाम : चन्द्रकांता सिवाल "चन्द्रेश"
पता : 5A/11040 गली न: 9 W.E.A. सतनगर करौल बाग 
नई दिल्ली -
मो0 -- 9560660941


कविता :- *आज का युवा* 


सफ़र की दूरी 
की दास्तां बयाँ कर रहे हैं,
धूल में धूसरित पाँव
चप्पलों की गिरफ्त में 
परवाह नहीं पाओं की थकन
कंधों पै सजा मेला कुचेला बेग लिए 
बढ़ता ही जा रहा है...
आज का युवा,बढ़ता ही जा रहा है...


काले धागो के पैबंद 
से मुफलिसी को ढाँपता
मगरूर मगर शिक्षा
की महत्ता को समझता 
सहेजता किताबों को शालीनता से 
बढ़ता ही जा रहा है...
आज का युवा,बढ़ता ही जा रहा है...


सजग है,भविष्य के लिए 
एक दृढ़ निश्चयी सोच के साथ 
करता है,किताबों की छानबीन 
खोजता है,कुछ मूल्य कुछ आधार 
अपने अस्तित्व को तराशने का निरंतर प्रयास करता  
बढ़ता ही जा रहा है... 
आज का युवा,बढ़ता ही जा रहा है... 


लेखिका चन्द्रकांता सिवाल "चन्द्रेश" 
उपप्रधान दिल्ली प्रांतीय रैगर पंचायत पंजी.(दिल्ली प्रदेश)


अर्चना पाठक  निरंतर  अम्बिकापुर सरगुजा

नाम-अर्चना पाठक 'निरंतर'
पता-अम्बिकापुर,सरगुजा छ.ग.
मो०-9424257421


कविता


संवाद
--------


मौन ही करता रहा,
मौन से संवाद।
दिल बहुत व्याकुल हुआ,
और घिर गया अवसाद।


 बिन सहारे  रह न पाऊँ,
 कह रहे  ये दिन से रात
 चाँद भी अब मुँह चिढा़ये,
 जुट गई है कायनात। 


 छेड़ कर झंकार वो
 दे गया इक याद
 मौन ही करता रहा
 मौन से संवाद। 
 दिल बहुत.... 


 हाथों में मिल गये हाथ
 और नैन हैं अभिराम  ।
 भीगती पलकें झुकी 
  फिर कहाँ विश्राम ।


मूक भी वाचाल है
दिल हुआ आजाद। 
मौन ही करता रहा 
मौन से संवाद
 दिल  बहुत.....


विस्मृत पटल पर खींचती
उष्ण सी कलियाँ उदास।
सो रही सुर गामिनी
भर के ले श्वासों में श्वास।


छल कपट से जो मिला 
कब रहा है वो आबाद।
मौन ही करता रहा
मौन से संवाद
दिल बहुत....


 पलकों पे  अश्रु टिके कुछ 
 कुछ लुढ़कते ही रहे ।
 भाल उर स्वर वेदना के
  रूद्ध क्रुद्ध क्रंदित हुए।
  
   झील चक्षु  हैं ये खारे
   रिस रहे हैं बन मवाद।
   मौन ही करता रहा
    दिल...


अर्चना पाठक  निरंतर 
अम्बिकापुर


पंकज भूषण पाठक "प्रियम" गिरिडीह, झारखंड

पंकज भूषण पाठक "प्रियम"
गिरिडीह, झारखंड
9006349249
मुसाफ़िर --लफ्ज़ों का


हवाओं से जरा कह दो, अदब से वो गुजर जाये,
जहाँ पर जल रहा दीपक, जरा मद्धम उधर जाये।
तमस गहरा निशा काली, जहाँ पे खौफ़ हो खाली-
जले दीपक नहीं उस घर, बताओ तो किधर जाये।


सिपाही हूँ कलम का मैं, कलम से वार करता हूँ,
कलम को छेड़कर हरदम, उसे हथियार करता हूँ।
नहीं है खौफ़ मरने का, अलग अंदाज़ जीने का-
समय से जंग है लेकिन, समय से प्यार करता हूँ।।


दिले जज़्बात लिखता हूँ, सही हालात लिखता हूँ,
नज़र में जो हकीकत हो, वही दिनरात लिखता हूँ।
ख़ता मेरी यही इतनी, कलम से छेड़ता लेकिन-
जो कहने से कोई डरता, वही मैं बात लिखता हूँ।।


मुसाफ़िर हूँ मैं लफ्ज़ों का, सफ़र अल्फ़ाज़ करता हूँ,
ग़ज़ल कविता कहानी से, सहर आगाज़ करता हूँ।
नहीं मशहूर की चाहत, नहीं हसरत बड़ी दौलत-
प्रियम हूँ मैं मुहब्बत का, दिलों पे राज करता हूँ।।


©पंकज प्रियम


डॉक्टर अजीत कुमार श्रीवास्तव "राज़" बस्ती

काव्य रंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020


            मुक्तक
   =============
 नैन में मेरे ऐसे सपन आए हैं
 ज्यौं  अयोध्या में राम औ लखन आए हैं
 एक ही दीप से घर उजाला हुआ
 जीतकर युद्ध मेरे सजन आए हैं


नाम=  डॉक्टर अजीत कुमार श्रीवास्तव "राज़"
पता= कृमोलशा मेडिकल्स        गांधी कला भवन के सामने
 गांधीनगर, जिला बस्ती,      उत्तर प्रदेश, पिन 272001
मो०न०=9336815954


निशा अतुल्य देहरादून

लघुकथा
दिनाँक       14/ 2/ 2019 


*चलो लौट चले*
चलों ना आज छत पर जा कर पहले की तरह पतंग उड़ाते हैं, सुधा ने दिवाकर से जिद करते हुए कहा तो अनमना सा दिवाकर बोला, क्या बच्चों वाली बात करती हो उम्र देखी है अपनी।
सुधा हल्की सी मुस्कुरा कर बोली बच्चों की शादी करदी सब अपने में व्यस्त हैं तो हम भी आज मकर संक्रांति    शादी के साल वाली ही मनाते हैं ना ।
     मैं चरखी पकड़ूंगी और तुम डोर फिर देतेहैं अपने पंख खोल और उडाते है मजबूत इरादों के संग अपनी प्यार की डोर ऊंची बहुत ऊंची आसमान से भी ऊंची ।
      दिवाकर ने दरवाजा खोला सुधा बोली कहाँ चले मेरे हीरो।
 दिवाकर शरारत से मुस्कुराये और बोले पतंग,डोर लेने।


निशा"अतुल्य"


युवाकवयित्री अंकिता सिन्हा  जमेशदपुर झारखंड

अंकिता सिन्हा युवा कवयत्री जमशेदपुर झारखण्ड
सालों बाद बैचेन रूहों 
का इंसाफ हुआ है 
कांपते,बदन से निकली 
पीडा़ को मलहम मिला हैं।


दुष्कर्मियो दरिंदों को मौत ने निकला है कुतरी नन्ही तितलियों की 
पंखुड़ियों को अब राहत 
की सांस मिली है,
हाँ सालों बाद इंसाफ मिला हैं


दुष्कर्म कर जिंदा जलाया
अंग घायल किए हैं 
,खरोचों ने रंग दिखाले
प्रियंका निर्भया अब 
और कोई ना आए 
आबरू बाँजारो मे न लुटे 
कुंठा भरी सांसों में भय ना समाए


जूल्मों के नाखून काटे गए हैं 
वैहसी दोषियों को अब
फांसी सुनाये गये हैं 


वो लम्हा दर्दो के दीवारें होगे 
नारी शक्ति घुटती 
खुद को बचाती होगी
जीवन की सपनों में बेरंगी हो गई 
बादलों की कड़ी धूप की 
तरह मानवता शर्मसार 
शर्मिंदा जलने सी लगी 
बदनों पर खंडितखंरोच के निशान मिलेंगे
यहां दफन जलाते हुए 
नारियों के सम्मान मिलेंगे 
मर्यादा को शर्मसार करती 
वो पहचान मिलेंगे
 
खत्म हो गई चार दरिंदों की सासें
पर सियासत, सियासी, सियार ,सेंकते अपनी रोटियां सरकार मिलेगें
 
हाथों में लेकर इंसाफ का 
कटोरा एक मां मांग रही थी 
वर्षों से सहारा 
सख्त कानून सत्य संविधान 
बरसों बीते अब थोड़ा 
थमा आंसुओं का सैलाब किनारा हैं
हाँ सालों बाद इंसाफ मिला हैं


व़जू़द पर भारी पड़ा 
धैर्य शक्ति की 
वरना चीखें भी मलिन 
हो गई निभ्रया बगियाँ की 
विलंब करती रही फैसले मे 
रुप सही स्वीकार सरकार की 
किस्से फैंली सनसनी 
हरतरफ इंसाफ की 
सालों साल लगे  राहत मिलने 
को निर्भया अत्याचार की
 
कहती गुल, बाँबुल से
अगले जन्म बिटिया ना बनूँ मैं
यह आती दुआ ,मां की कोख की


 जन्नत सा कोई घर नहीं यहां 
ऐसे दरिंदों की 
भीड़ चाल है संसार की 
अब तो कोई अपनों से 
डरतीं चुलबुल फूल हमारे 
कैसी मानवता का चरित्र निखर आया हैं 
सालों बाद रूहों का इंसाफ हुआ है


युवाकवयित्री अंकिता सिन्हा 
जमेशदपुर झारखंड
8935847026


अभिषेक मिश्र हेमू युवा कवि

नाम- अभिषेक मिश्र हेमू
पता- खमरिया पंडित (खीरी)
मो. - 8127962126


रचना-


सत्य सनातन धर्म का सबूत मांग लेने पर,
धर्मशक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण हम दिखाएंगे ।


चार वेद गीता और पुराण पूज्य मानकर,
मन  में  बसे  प्रभु राम  हम  दिखाएंगे ।।


सत्य सनातन रक्षक ने फाड़ छत्र है दिखाया,
विश्वपटल पर यही पहचान हम दिखाएंगे ।


पवनपुत्र के  भक्त हम  फाड़  क्षत्र  विश्व को,
मन में  विराज  सियाराम  हम  दिखाएंगे ।।


आशुकवि नीरज अवस्थी मकर संक्रांति हास्य अवधी गीत

मकर संक्रांति के अवसर पर समस्त सहित्यप्रेमियो को सादर निवेदित चंद पंक्तियाँ~~
***********************
सप्त दिवस के अश्वों से युत,रथ पर दिनकर चलते है।
मकर राशि में रवि प्रवेश की नीरज रचना करते है।।
तिल-तिल करके दिन बढ़ने का,पर्व मकर संक्रान्ती का।
कटी पतँगों आओ मित्रों,पुनः लूटने चलते है।।
आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950



मकर संक्रान्ति 2020 की हार्दिक मंगलमय शुभकामनाओं सहित---
आप लोंगो की डिमांड (हास्य)को ध्यान में रख कर आज आप सब की मांग भर रहा हूँ।
पंक्तियाँ निवेदित करता हूँ।~


खिचड़ी का आनन्दु बतावति है सब जन बंगाल मा।
लेकिन हमका बड़ा मजा आवा खिचडीम ससुराल मा।।


सारी और सरहजै हौले -हौले घुझका मारि रही।
सासु हमारी खिचड़ी मैहा देशी घिउ अर्राय रही।।
ससुर जलावै कोइरा,साला हाँथु लगावै गाल मा।
लेकिन हमका बड़ा मजा आवा खिचडीम ससुराल मा।।


लहसुन क्यार अचार सुहाने लिज्जत पापड़ भूजेगे।
गाजर मूरी प्याज टमाटर आलू बैगन भूँजेगे।।
सास टोमेटो आंवला कि चटनी हरी उरद की दाल मा।
लेकिन हमका बड़ा मजा आवा खिचडीम ससुराल मा।।


पूरी सब्जी मिक्स कचौड़ी रात में खूब पनीर छना।
लाई सेतुवक लडुआ ओर कतलिया आंबा झोर बना।
तिल खुटिया मुम्फली दलिद्दर भी चाबेन ससुराल मा।।
लेकिन हमका बड़ा मजा आवा खिचडीम ससुराल मा।।


भोर भवा सायकिल सँभारेन देखेन पहिया पिंचर है।
सारी सरहज सूजा भोकिन समझि गयेन का चक्कर है।
कौनिव तनते घर का आयन कौन परे जंजाल मा।
लेकिन हमका बड़ा मजा आवा खिचडीम ससुराल मा।।


आप सब का ~
आशुकवि नीरज अवस्थी
14/01/2020 मंगलवार
+91 9919256950
9554877950


रेखा गुप्ता नोयडा कविता

नाम       रेखा गुप्ता 
पता    फ्लैट न.2372 ,ओवरसीज अपार्टमेंट, सेक्टर 50, नोएडा। 
मो0 9958525527


    हम-तुम
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उस वक्त का वो मखमली एहसास 
जब थामा था तुमने मेरा हाथ
बनी एक हसीन सी रहगुजर
चल दिए हम,ले हाथ मे हाथ ।


मेरे सूने बंजारे जीवन में 
बने तुम खुशियों की सौगात 
दिल से दिल के तार जुड़े 
रही न अब कोई चाहत ।


तुम जीतकर हरदम मुझसे हारे 
मै जीत पे अपनी तुम पे वारी वारी
बनते संवरते इस जीवन में 
हमारी हर बात न्यारी प्यारी ।


प्रेम बंधन मे बंधे हम तुम 
लेकर कुछ वचनों का साथ 
खट्टी मीठी इस जिंदगी का 
बेहद मधुर है स्वाद ।


तुम धूप,मैं छाया बन गई 
कांटों में भी फूल बन खिल गई 
दुख के काले बादल जब छाए 
थामकर तेरा हाथ संभल गई।


अब तो मेरी हर बात में तुम 
दिल की हर आहट में तुम 
एक दूसरे की पहचान हम तुम 
जीवन के हर एहसास मे तुम ।


जब तक दिल मे धड़कन है 
तेरी मेरी एक धड़कन है 
एक माला के दो मोती हम 
ये बंधन सुख का बंधन है ।


ईश्वर की खूबसूरत सौगात तुम 
मेरा गुरूर,मेरी शान हो तुम 
मेरी हर खुशी अब तुमसे 
जीवन के मनमीत हो तुम ।


               रेखा गुप्ता


डॉ0 शोभा दीक्षित भावना वरिष्ठ साहित्यकार/ लखनऊ गजल

डॉ शोभा दीक्षित 'भावना',   वरिष्ठ साहित्यकार/
 गीतकार, शायरा
60 दयाल फोर्ट , विष्णुपुरी 3,अलीगंज, लखनऊ , पिन-226022(उत्तर प्रदेश)
मो0 9454410576, 9140945022


ग़ज़ल


कहानी प्यार की दुनिया को बतलाई न जाएगी। ग़ज़ल मुझसे तुम्हारी हिज्र की गाई न जाएगी।।


 तुम्हें महसूस करना हो तो तुम महसूस कर लेना।
 तुम्हें अपने जिगर की बात बतलाई न जाएगी।।


 ना मिलना और मुझ को देखकर पहचानना साथी।
 मोहब्बत तो मोहब्बत है वो झुठलाई न जाएगी।।


 तुम्हारा नाम रुसवा हो, उठे उंगली ज़माने की। कभी मुझसे लबों पे बात वह लाई जाएगी ।।


यह दौलत है मोहब्बत की लुटाना ख़ूब दुनिया में ।
खज़ाने से तुम्हारे एक भी पाई न जाएगी ।।


 ढले सूरज , बुझे दीपक अंधेरा ही अंधेरा हो।
किसी भी हाल में  यादों की परछाई न जाएगी।।


 तुम्हारी रूह से कर ली सगाई रूह ने 'शोभा'। अंगूठी यह किसी दूजे को पहनाई न जाएगी।।


सुनीला गुरुग्राम हरियाणा बसंत कविता

*प्यारी ऋतू बसंती*
प्यारी ऋतु बसंती आई है|
चँहु ओर ही रौनक लाई  है।
    गई कडाके की अब सर्दी |
     शीतल शीतल ठंड सुहाई है |
हुआ नही गरमी का आगम |
मंद मंद धूप मुस्काई है |
     पतझड के सूखे वृक्षों पर |
 नई नई हरी कोपलें आई हैं ।
लहक रही है सरसों रानी |
पीले पीले फूलों पे मस्ती छाई है |
   गेहुओं मे निकली नई बालियां |
     हरी हरी फसल लहलहाई है |
रंग बिरंगे फूलों से सजकर |
सुन्दर सुन्दर धरा इतराई है |
     प्यारी ऋतु बसंती आई है|
     चँहु ओर ही रौनक लाई है | 
                                       सुनीला
गुरुग्राम हरियाणा
9671461351


संदीप कुमार विश्नोई दुतारांवाली अबोहर पंजाब

  नाम संदीप कुमार विश्नोई
पता गाँव दुतारांवाली अबोहर पंजाब
मो0 9417282027


                         


मत्तगयंद सवैया छंद पर आधारित गीत


 २११*७ + २२



मोहन जन्म भए मथुरा मथुरा नगरी अब झूम रही है, 


अंक उठाय चली सुत को तब मां मुखमण्डल चूम रही है। 


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सेन करे मनमोहन से मन ही मन लाड लडाय रही है, 


नंद पधार रहे घर में मनमोहन को बतलाय रही है। 


ढोल बजे नवरंग उड़े सब मंगल गान सुनाय रहे हैं , 


देव लियो अवतार धरा पर पुष्प सभी बरसाय रहे हैं। 


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मोहन नाम जपे मथुरा मनमोहन नाम कि धूम रही है , 


अंक उठाय चली सुत को तब मां मुखमण्डल चूम रही है। 


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मोहन केशव नाम धरे तब माखन चोर करे नित लीला , 


श्याम सखा उर नेह बसाकर माथ लगाकर चंदन पीला। 


मोहन कूद गए यमुना यमुना तब मोहन श्याम हुई है , 


प्रेम पगी सखियां सब ही मनमोहन ये बदनाम हुई है। 


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व्याकुल हो हरि मात चली ब्रज की गलियों घर घूम रही है , 


अंक उठाय चली सुत को तब मां मुखमण्डल चूम रही है। 


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स्वरचित 


संदीप कुमार विश्नोई


दुतारांवाली अबोहर पंजाब


9417282027


बसन्ती पंवार जोधपुर राज0

नाम-- बसन्ती पंवार 
जन्म तिथि-- बसंत पंचमी (5 फरवरी  1953
जन्मस्थान-- बीकानेर  ( राजस्थान)
शिक्षा--एम. ए. (राजस्थानी  भाषा),  बी . एड.
प्रकाशन--हिन्दी एवं  राजस्थानी  भाषा  में  सात  पुस्तकें  प्रकाशित  ( उपन्यास,  कहानी  संग्रह,  काव्य  संग्रह,  व्यंग्य  संग्रह ),  चार  पुस्तकें  प्रकाशनाधीन 
सम्मान-- तेईस  पुरस्कार  और  सम्मान  प्राप्त  ।
सम्प्रति-- " निरामय जीवन "  एवं  " केन्द्र  भारती " मासिक पत्रिकाओं  के  प्रकाशन  विभाग   में   नि:शुल्क  सेवा  । 
पता--90,  महावीरपुरम,  
चौपासनी  फनवर्ल्ड के पीछे जोधपुर--342008 ( राजस्थान)
मो .--9950538579
 Email-- basantipanwar53@ gmail.com


👆👆काव्यरंगोली  हिन्दी  दिवस  ऑनलाइन  प्रतियोगिता  10  जनवरी  2020 
     पता--
बसन्ती पंवार
90, महावीरपुरम, 
चौपासनी  फनवर्ल्ड  के  पीछे,  
जोधपुर-342008 ( राजस्थान )


मेरी  कविता 
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                       वो
                     परौस  
                    लाते  हैं 
            थाल  व्यंजनों  से  भरा 
                     जिसमें 
          अहसान  की  चपातियाँ 
                ईर्ष्या  की  दाल
           नफरत  की  सब्जियां 
              द्वेष  का  रायता 
                  होता  है .....
                 एक  जैसा 
               खा- खा  कर 
            मन  ऊब  गया  है ......
                कभी-कभी 
               अपनत्व  का
                 मीठा  भी 
         परौस  दिया  करो.......
           --- basanti Panwar,                      jodhpur  rajasthan


भूपसिंह 'भारती' पता आदर्श नगर नारनौल (हरियाणा) कविता

नाम भूपसिंह 'भारती'
पता आदर्श नगर नारनौल (हरियाणा)
मोबाइल नम्बर 9416237425


सकरात मुबारक


सकरात का त्योहार सै,
            मिलकै मौज मनावण का।
दान धरम कमावण का,
           अर गच चूरमा खावण का।
गाँव गली नै बुहारण का, 
                बुजुर्गा नै जगावण का।
मंगल गीत गावण का।
             बगड़ म्ह पूर बलावण का, 
नफरत नै जलावण का।
             कहै भारती सकरात पर्व सै,
मन म्ह प्रेम जगावण का।
               मान सम्मान दान धर्म नै, 
मन तै खूब बढावण का।
                सकरात का पर्व सै देखो,
सूरज उत्तरायण म्ह आवण का।
              तड़का पहल्यां उठकै भाई,
ताजे पाणी तै नहावण का।


                     - भूपसिंह 'भारती'


डा जियाउर रहमान जाफरी 

परिचय 


डा जियाउर रहमान जाफरी
.हिन्दी से एम ए, बीएड, पीएचडी, पत्रकारिता 
.खुले दरीचे की खुशबू, खुशबू छू कर आई है, हिन्दी ग़ज़ल का विकास, परवीन शाकिर की शायरी. चाँद हमारी मुट्ठी में है,.. आदि कुल दस हिन्दी पुस्तकें प्रकाशित 
.हिन्दी, उर्दू और मैथिली की पत्र पत्रिकाओं में नियमित लेखन 
.बिहार सरकार का आपदा प्रबंधन पुरस्कार 
सम्पर्क... उच्च विद्यालय माफ़ी, 10+2
नालंदा बिहार 9934847941


4.करता हूं 
...............
न जाने कौन सा रस्ता तलाश करता हूं 
कि अब तो मैं भी तुम्हीं सा तलाश करता हूं 
हमारे जिस्म के हिस्से में गर गया था जो 
मैं आज तक वही शीशा तलाश करता हूं 
वो इक शख्स जिसे देखने की चाहत थी 
मैं दरबदर वही चेहरा तलाश करता हूं 
बड़े बड़ों की हमें कुतबतें जो भाती है 
मैं साथ रहके सलीका तलाश करता हूं 
ये लोग हाथ को काला कभी नहीं करते 
मैं कोयले से भी हीरा तलाश करता हूं 
तुम्हारे शह्र में जीता हूं मौत की ही तरह 
हवा है गर्म दरीचा तलाश करता हूं 
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सोनी केडिया सिलीगुड़ी पश्चिम बंगाल कविता दरवाजे

काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020 


नाम- सोनी केडिया
पता- सीताराम केडिया, 
       खालापारा, 
        शंकर मोर , 
        सिलीगुड़ी 734005
        पश्चिम बंगाल


विधा - कविता


दरवाजे


भिन्न-भिन्न प्रकार के...


नये, पूराने, छोटे, बड़े,चौड़े और संकरे
हल्के,भारी,  सुंदर भी और कुछ सस्ते
और कामचलाऊ भी।
बड़े बड़े दरवाजों में शान से जाते है
पर छोटे दरवाजों से सर झुकाते  जाते हम।
कुछ पूराने जर्जर दरवाज़े 
जिन्होंने देखी है
कई सदियों की दास्तान..
पूरानी विचारधाराओं से झाकते..
और नयी विचारधाराओं की तरफ 
छलांग लगाते हुए विचारों को।
फिर तटस्थ बैठें खुद के
नष्ट होने की प्रतिक्षा करते।


कई दरवाजों ने देखें होते हैं
नित्य नये किरदारों को
नये नये चेहरों के भीतर।
कुछ बंद दरवाज़े..
जिसमें सभी झांकना चाहते हैं।
कुछ खुलें दरवाजे..
जिसमें कोई नहीं झांकना चाहता।
कुछ अधखुले दरवाजे
जिसमें लोग अक्सर
नज़र मारते हुए
चलते जाते हैं।
नित्य नये परिवर्तन के साथ
स्वरूप भी बदल गया।
और विशालकाय मजबूत
दरवाजे तब्दील हो गये है
आसानी से खुलने-मिलने वाले
सस्ते दरवाजों में,
जहां कुछ निश्चित नहीं,
कोई विश्वास की बुनियाद नहीं।
पर बूढ़े दरवाजे अभी भी खड़े हैं
उसी शान से सर उठाए..
अपनी धरोहर को समेटे
अपनी संस्कृति कई शिल्पकलाओं
की झलक दिखलाते।


कई दरवाजे होते हैं
प्राचीन की मजबूती से लेकर
नवीनता का समावेश।
अब नवचेतना लिए आ रहे हैं।


ये भिन्न-भिन्न दरवाज़े..
हर जगह हमारे सामने आते,
हर जगह हमें रोकते,
हर जगह की पहचान,
न जाने कितना कुछ कह जाते हैं।


सोनी केडिया
स्वरचित


डॉ राजीव पाण्डेय पाया हिंदी ने विस्तार

नाम- डॉ राजीव कुमार पाण्डेय
माता का नाम- श्रीमती उमादेवी पाण्डेय
पिता का नाम- स्व.श्री ब्रह्मानन्द पाण्डेय
जन्म तिथि - 05-10-1970
जन्मस्थान- ग्राम व पोस्ट -दरवाह,जनपद-मैनपुरी
शिक्षा- एम.ए. (अंग्रेजी,हिन्दी) बी.एड., पी-एच.डी.
लेखन विधा- गीत, ग़ज़ल,मुक्तक,व्यंग्य,छंद,हाइकु, लेख,
                  कहानी,उपन्यास,ब्लॉग,इंटरव्यू,समीक्षा आदि
प्रकाशित कृतियां-
                     आखिरी मुस्कान (सामाजिक उपन्यास)
                     बाँहों में आकाश ( सामाजिक उपन्यास)
                     मन की पाँखें  (हाइकु संग्रह)
 सम्पादित कृतियां-
                  शब्दाजंलि(अखिल भारतीय काव्य संकलन)
                  काव्यांजलि(माँ गंगा को समर्पित काव्य संग्रह)
सहयोगी संकलन-
      मैनपुरी के साहित्य कार(सन्दर्भ ग्रन्थ)
      अमर साधना( काव्य संकलन)
      काव्य विविधा भाग 1( काव्य संकलन)
      पीयूष(काव्य संकलन)
      स्वागत नई सदी( अखिल भारतीय काव्य संकलन)
       कुछ ऐसा हो( हाइकु संग्रह)
      सदी के प्रथम दशक का हाइकु काव्य(हाइकु सन्दर्भ ग्रन्थ)
      हाइकु विश्वकोश(हाइकु विश्व कोश सन्दर्भ ग्रन्थ)
      सच बोलते शब्द(हाइकु संग्रह)
      गा रहे हैं सगुन पंक्षी(काव्य संग्रह)
      भारतीय साहित्यकार (हिन्दी साहित्य कोश,सन्दर्भ ग्रन्थ)
      प्रयास ( हाइकु संग्रह)
आलेख समीक्षा-
                * इदम इन्द्राय
                 *डॉ मित्र साहित्य अमृतम
                 *डॉ मिथिलेश दीक्षित का हाइकु संसार आदि
                  महत्वपूर्ण ग्रन्थों में प्रकाशित
                  *कई महत्वपूर्ण ग्रन्थों की समीक्षा समय समय
                   पर पत्रिकाओं एवं वेवसाईट पर प्रकाशित
 अन्य-
       * यू के से प्रकाशित अंग्रजी लेखिका द्वारा रचित सुन्दर       
          काण्ड में सहयोग
      *  लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में दर्ज मीडिया 
         डायरेक्टरी मीडिया कोश में सम्मलित   
        *आकाशवाणी एवं अन्य काव्य,भाषण आदि   
         प्रतियोगिताओं में निर्णायक,मुख्य अतिथि आदि की 
         भूमिका
 उपसम्पादक-हरियाली दर्शन (मासिक)
       * देश की प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
        *आकाशवाणी,एवं चैनल्स पर रचनाएँ प्रसारित  
        *यू ट्यूबपर चैनल
       * कई वेबसाईट्स पर अनेकों रचनाएँ,समीक्षा   
          प्रकाशित


सामाजिक गतिविधियां
*विभाग संयोजक-संस्कार भारती ,गाजियाबाद
*राष्ट्रीय अध्यक्ष-काव्यकुल संस्थान (पंजीकृत)
*जिला कोषाध्यक्ष-उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद  गाजियाबाद
*जिला कार्यकारिणी सदस्य-उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक 
 संघ गाजियाबाद
*सम्मान एवं उपाधियां-
1 अवधेश चन्द्र बाल कवि सम्मान (मैनपुरी)
2-  प्रमुख हिन्दी सेवी सम्मान (गाजियाबाद)
3- मैथिली शरण गुप्त सम्मान(मथुरा)
4- ब्रजरत्न सम्मान (मथुरा)
5- साहित्य कार सम्मान ( मैनपुरी)
6- पत्रकार शिरोमणि सम्मान(मैनपुरी)
7- पत्रकारिता सम्मान( आज कार्यालय मैनपुरी)
8- दुष्यंत कुमार स्मृति सम्मान(राष्ट्र भाषा स्वाभिमान न्यास भारत गाजियाबाद)
9- डॉ भीमराव आंबेडकर नेशनल फेलोशिप सम्मान(दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली)
10-हाइकु मञ्जूषा रत्न सम्मान(छत्तीसगढ़)
11- सर्व भाषा सम्मान  2018(सर्व भाषा ट्रस्ट नई दिल्ली)
12- संस्कार भारती गाजियाबाद द्वारा सम्मानित
13-डॉ सत्य भूषण वर्मा सम्मान( के बी हिंदी साहित्य समिति बदायूँ)
14-नेपाल भारत साहित्य रत्न सम्मान(नेपाल भारत साहित्य महोत्सव, बीरगंज नेपाल)
15-नेपाल भारत साहित्य सेतु सम्मान(नेपाल भारत साहित्य महोत्सव, नेपाल)
16-हैटोडा साहित्यिक सम्मान सम्मान( हैटोडा  अकादमी हैटोंडा,नेपाल)
17-क्रांतिधरा अंतर्राष्ट्रीय साहित्य साधक सम्मान (2019) मेरठ
18-भगीरथ सम्मान (संस्कार भारती गाजियाबाद)
19-डॉ हेडगेवार सम्मान (गाजियाबाद)
20-राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान (अखिल भारतीय चिंतन साहित्य परिषद मैनपुरी)
21-अटल शब्द शिल्पी सम्मान 2018(काव्यकुल संस्थान पंजी.) गाजियाबाद
22-श्री लक्ष्मी हरिभाऊ वाकणकर साहित्य सम्मान2019
23एक्सीलेंस इन टीचिंग एन्ड लर्निंग एवार्ड 2019 गाज़ियाबाद
24-सारस्वत सम्मान(बरेली)2019
25-काव्य गौरव सम्मान 2020(दिल्ली)
आदि अनेकों सम्मान एवं प्रशस्ति पत्र
*सह सम्पादक -हरियाली दर्शन (मासिक)
*सम्प्रति- प्रधानाचार्य
किसान आदर्श हायर सेकेंडरी स्कूल शाहपुर बम्हैटा गाजियाबाद
पता- 1323/भूतल सेक्टर 2 वेवसिटी गाजियाबाद
मोबाइल -9990650570
ईमेल -dr.rajeevpandey@yahoo.com


पाया हिन्दी ने विस्तार
********************
अरुणोदय से अस्ताचल तक, झंकृत हैं वीणा के तार।
 पाया हिंदी ने विस्तार।
साखी  सबद रमैनी सीखी,
 सूरदास के पद गाये।
जिव्हा पर मानस चौपाई, 
मीरा के भजन सुनाये।
कामायनि के अमर प्रणेता,आँखों मेआँसू की धार।
पाया हिन्दी ने विस्तार। 
रासो गाये चंदवर दायी,
नहीं चूकना तुम चौहान।
थाल सजाकरचला पूजने,
श्यामनारायण का आव्हान। 
खूब लड़ी मरदानीवाली,लक्ष्मीबाई  की तलवार।
पाया हिन्दी ने विस्तार।
नीर भरी दुख की बदली में,
 नीहार नीरजा  बातें।
तेज अलौकिक दिनकर से,
महकी उर्वशी की रातें।
जौहर के हित खड़ी हुई है,देखो पद्मावति तैयार।
पाया हिंदी ने विस्तार।
राम कीशक्ति कहेंनिराला,
इब्राहीम रसखान हुआ।
सतसई है गागर में सागर,
डुबकी मार सुजान हुआ।
देख दशा करुणाकर रोये,सुनी सुदामा करुण पुकार।
पाया हिंदी ने विस्तार।
मृग नयनी के नयन लजीले,
नगर वधू वैशाली से।
प्रिय प्रवास से राधा नाची,
दिए उलाहने आली से।
फ़टी पुरानी धोती में भी,धनिया के सोलह श्रृंगार।
पाया हिन्दी ने विस्तार।
© डॉ राजीव पाण्डेय


अभिजित त्रिपाठी "अभि" तिरंगा

नाम - अभिजित त्रिपाठी "अभि"
पता -
 ग्राम -पूरे प्रेम, पोस्ट - अमेठी, तहसील - अमेठी, जनपद - अमेठी, पिनकोड - 227405
मो.- 7755005597
ईमेल - abhijittripathi749@gmail.com


कविता -
चन्द्र सुंदरी बैठी है, सज-धज कर इंतजार में।
भारतवाले कब देंगे दस्तक, देवों के दरबार में। 
भारतवंशियों का प्रण है, चंदा तुझतक आने का।
अपने भूले विक्रम से फिर से सम्पर्क बनाने का।
बचपन से तुझको हम, मामा सदा बुलाए हैं।
प्रियतम के मुखड़े को हरदम, तेरे जैसा गाए हैं।
सिर्फ कथानक की, अंतिम गाथा अवशेष है।
चंदा तक जाने को संकल्पित पूरा देश है।
जो टूटे पंखों से उड़ ले भारत वही परिंदा हैं।
विक्रम से सम्पर्क है टूटा, अभी हौसला जिंदा है।
चंदा की कक्षा में अब भी घूम रहा अपना प्रज्ञान।
आज दिखाया भारत ने दुनिया को अपना विज्ञान।
याद रखो चंदा, हम ना यूं, उदास हो जाएंगे।
धीर धरो हम भारत वाले, फिर से तुझतक आएंगे।
स्वर्गाधिपति को भी अब, जाकर खबर बताना ये।
उनको भी भारत का, तुम संदेश सुनाना ये।
शचीपति कदम हमारे, तुम भी रोक ना पाओगे।
जाकर देखो अपनी छत पर, मेरा तिरंगा पाओगे।


<no title>देशगीत श्रीकान्त दुबे पता: बदायूँ (उत्तर प्रदेश)

नाम: श्रीकान्त दुबे
पता: बदायूँ (उत्तर प्रदेश)
मो०: 9711206950
कविता शीर्षक: *मेरी ख़्वाहिश*


किसी ने ताज को मांगा किसी ने तख़्त को मांगा,
गुजारूं हिन्द की ख़िदमत में मैंने वक़्त को मांगा।
नहीं ख़्वाहिश मुझे ये ताज, दौलत और शोहरत की,
हिफ़ाजत में वतन की बह सके उस रक्त को मांगा।।


ये जां जाए तो जाए पर वतन लुटने नहीं दूंगा
ह्रदय पर मां के दुश्मन के कदम रुकने नहीं दूंगा
हुआ जब जन्म मेरा इस जमीं ने अंक में पकड़ा
जमीं का इंच भर टुकड़ा भी अब बंटने नहीं दूंगा


मेरा ये जन्म केवल देश हित में ही गुज़र जाये
हर एक कोने से शांति और ख़ुशियों की ख़बर आये
ना हों झगड़े क़भी भी मुल्क़ में जाति और धर्मों पर
फ़िज़ाएं महकें अपनेपन से ख़ुशबू इस क़दर आये



©श्रीकान्त दुबे✍🏻


विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र कविता

नाम-विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र 
 पिता- श्री राधेश्याम मिश्र 
पता- नरई संग्रामगढ प्रतापगढ उ प्र 
मो 9198989831


हम अपना भार उठाते है
जीवन की गाडी ठीक नही   
पर उसे रोज  बनाते है |
कभी दाल भात मिल जाता है 
कभी सूखी रोटी खाते है|
                                  हम अपना भार उठाते है
कंधे पर मेरे गुरु भार है 
परिवार से खूब प्यार है
पढने लिखने की उम्र मे 
रोजी रोटी कमाते है    
                                 हम अपना भार उठाते है 
कौन देखता मेरी दुर्दशा
बर्वाद करती परिवार को नशा
सभी देखते रोज तमाशा 
उर मे छाले सहलाते है  
                               हम अपना भार उठाते है
मत पूछो क्या क्या सहता हूं
घर नही खुले मे रहता हूं
चुुप रहकर सब कुछ सहता हूं
हम गरीब कहलाते है 
                       हम अपना भार उठाते है
विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र


निशा गुप्ता देहरादून

*सुप्रभात*
*मकर संक्रांति,पोंगल,बीहू की हार्दिक शुभकामनाएं, बधाई।*


हुए उत्तरायण सूर्य देव
ऊर्जा छाई चहुँ ओर
शीत अब है जा रहा
बसंत चला धरा की ओर ।
🙏🏻😊💐


अनूप सत्यवादी कवि लखनऊ

नाम - अनूप सत्यवादी 
पता - लखनऊ 
मो०न० -  93054 13741 


कविता ---


हिन्द की धरा पे देश हित प्राण देने वाले, 
रणबांकुरों की अभिव्यक्ति को प्रणाम है।
वैभवादि गृह सुख भोग को न चाहा कभी,
बलिदानी वीरों की विरक्ति को प्रणाम है।
जिस पथ पढ़े पांव उनके पवित्र उस,
पथ की चरण रज शक्ति को प्रणाम है।
माता ये शहीदों की व माता भारती है धन्य,
बार-बार भारती की भक्ति को प्रणाम है।।


 मुक्तक 
भले कुछ कम करो लेकिन थोड़ा वादा जरूरी है।
दृढ़ राष्ट्र भक्ति का अटल इरादा जरूरी है।
है बेशक व्यक्तिगत दायित्व हम सब को निभाने पर।
वतन से प्रेम इससे भी कहीं ज्यादा जरूरी है।।


जय हिंद वंदे मातरम्🙏


संजय जैन (मुम्बई) गजल

*तुम्हारे लिए गाता हूँ*
विधा : गीत


प्यार दिल से करो, 
तो इसे महसूस करो।
दिल की गेहराई में,
उतर के तुम देखो।
तेरे दिल में मेरे लिए 
क्या चल रहा..।
कसम उस खुदा की,
सच कहता हूं।
तुम्हारे दिल से ही,
आवाज़ आ जाएगी।।


दिल मेरा आज,
बहुत उदास है।
तुमको देखने की,
आज बहुत प्यास है।
कैसे में तुमको कहूँ की,  
 मुझे सच में तुमसे प्यार है।।


तुम्हें देखकर ही में,
मोहब्बत पर लिखता हूँ।
कसम तुम्हारी तुम ही मेरी,
लेखनी का आधार हो।
भले ही हम हकीकत में,   
 तुमसे बहुत दूर सही।
पर दिलसे तुम्हारे 
बहुत ही करीब है हम।।


दिल की हर धड़कन
मोहब्बत पर,
मुझसे लिखवाती है।
तुम्हारी प्यारी और मीठी
बाते ही,
तुम्हारे दिल की बात हमको बताती है।
इसलिए संजय का दिल
मोहब्बत के गीत गाता है।
और इसका सारा श्रेय 
तुम्ही को जाता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
14/01/2020


प्रमोद कुमार कुश ‘तनहा’                          मुम्बई

नाम:  प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'
पता:  ऐ- 604,मेरिगोल्ड -3, बेवर्ली पार्क, 
        मीरा रोड़ (पूर्व), मुम्बई - 401107
मोबाईल: + 91 9833006145


कविता:


                 ग़ज़ल 


इक चांद की तलाश में भटके हैं  रात भर
तारों के साथ हम भी तो जागे हैं रात भर


रंजिश नहीं तो इश्क़ है कुछ तो ज़रूर है
लेकर हमारा नाम वो  सिसके हैं  रात भर


जुड़ते नहीं हैं पूछकर चाहत के सिलसिले
रिश्ते  हों बे-ज़ुबान तो  रिसते  हैं रात भर 


ख़ामोश  हैं वो ये  कहीं इकरार  ही न  हो 
ख़ुद को  तसल्लियां  यही देते हैं  रात भर 


दिन भर जो सिर्फ़  बन के धुआं घूमते रहे
बादल  मेरी  निगाह  के बरसे हैं  रात भर 


ठहरे हैं दिन के वक़्त  ज़माने की भीड़ में 
यादों के  क़ाफ़िले मगर चलते हैं रात  भर 


मिलती नहीं जगह कहीं ‘तनहा’ सुकून की
तनहा किसी  ख़याल से उलझे  हैं रात भर 
✍🏻 शायर- प्रमोद कुमार कुश ‘तनहा’  
                       मुम्बई


डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव सीतापुर

डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव पिता का नाम -स्वर्गीय श्री प्रेमचंद प्रसाद वर्मा,
 माता का नाम- श्रीमती सुनैना देवी 
जन्म स्थान दमोह मध्य प्रदेश
 शिक्षा- एमबीबीएस डीसीपी डीसीएमएच।
 संप्रति- चिकित्सा शिक्षा 
लेखन की विधा- गीतिका ,कविता, लेख , कहानियां प्रकाशन- कथा अंजलि कथा संग्रह, लेख अंजलि.
सम्मान विद्यावाचस्पति विशिष्ट साधक संघ विशिष्ट सहायता साहित्य साधक सम्मान ,वरेण्य साहित्यकार/समाज सेवी स्व. कृष्ण स्वरूप अग्रवाल स्मृति सम्मान।
सम्पर्क-9450022526
E mail.drpraveenkumar.00gmail.com


देश के तुम प्रथम प्रहरी, राष्ट्र का सम्मान हो।
 देश के तुम सजग सैनिक ,देश की तुम आन हो ।
हे शहीदों राष्ट्र की  तुम, नींव रखते  जा रहे ,
हे जवानों, सैन्य वीरों, देश की तुम शान हो।
 देश को जग में अकेला, छोड़ सैनिक चल दिये,
 मातु का आशीष लेते, वीर का प्रतिमान हो।
 देशहित कुमकुम निछावर, कर दिया अब मातु ने,
 राष्ट्र हित बलिदान होते, वीर का प्रतिमान हो।
 वीर मिलते है जहां पर, वीरता से साथियों,
 धीर मिलते हैं वहां पर, धीरता की जान हो।
 हे जवानों, फौजियों, तुम शूरता की माप हो ,
देशहित बलिदान होते वीर का परिणाम हो ।
फौजियों के साथ मिलकर, फौज के हमराज हो ,
वीरता के तुम पथिक हो वीरता की खान हो ।
तुम प्रलय के गीत बनकर, गूंजते ब्रह्मांड में ,
सैनिकों के सैन्य बल पर ,हम सभी कुर्बान हो।
 गोलियों के साथ खेले ,शूरवीरों  है नमन ,
वीरता के इस समर में ,शूर का अभिमान हो ।
हे शहीदों, हे जवानों राष्ट्र करता है नमन ,
देशहित करते निछावर सैनिकों का गान हो।


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