कविता

*एक नव- गीत*....


अनुवादों के संवादों पर 
है अपनों का डर ।।


सड़के नापी 
गलियाँ ओटी 
पिये चरस गाँजे  
पकड़े रहे 
पतंग डोर को।
कटे हाथ माँझे 


व्यर्थ वाद विवादो पर 
हैं प्रयत्न जर्जर ।।


पढ़ा लिखा 
हो गया बेवड़ा 
आरक्षण से डर 
कई हजार 
धूल में फेकें 
कई फार्म भर कर 


गर्म हवा में 
नव वादों पर 
तन काँपे थरथर ।।


नव विकास की 
होड़ लगी है 
गिन गिन कर प्यादे 
कितने साक्षात्कार 
दे  डाले 
विस्मृत है यादें 


भूचालों की 
बुनियादों पर 
है सपनो का घर ।।


सुशीला जोशी 
मुजफ्फरनगर


लघुकथा

[1/14, 1:43 PM] कवि संतोष अग्रवाल" सागर"
साली चौका मध्य प्रदेश: निकम्मी औलाद की दवा


 लघु कथा
 आज 50 पार  की पीढ़ी को जायदा समझदार रहने की जरूरत है यह कथा  वरिष्ठ नागरिकों को जरूर सुनाएं मेरे एक दोस्त के मां बाप सीधे-साधे इंसान थे दोस्त  माता पिता की अकेली संतान था  विवाह हो चुका था उसके दो बच्चे थे अचानक मां चल बसी एक दिन मेरा दोस्त चाचा जी से कहता है पिताजी आप गैरेज में  अपना सामान रख ले क्योंकि तुम्हारी वजह से तुम्हारी बहू को परेशानी होती है और तुम्हारे सामने उसे  साड़ी   पहन क र काम  करना मुश्किल होता है चाचा जी बिना बताए गैरेज मैं  रहने लगते हैं 15 दिन बाद बेटे को बुलाकर 10 दिन का घूमने फिरनी की टिकट और रुपए पैसे  देते हैं और बोलते हैं सभी को  घुमा ला सभी का मन अच्छा हो जाएगा lपुत्र के जाने के बाद चाचा जी  ने 8 करोड़ का घर आधी कीमत में दे दिया अपने लिए एक अच्छा फ्लैट लियाl  बेटे का सब सामान एक दूसरा फ्लैट किराए प र ले कर उसमें  रख दियाl  जब पुत्र वापस आया तो मकान पर एक चौकीदार  देखा उसने बताया की यह मकान तो बिक चुका हैl  जब  चौकीदार ने पुराने मालिक से फोन पर बात कराएं चाचा जी ने वही रुकने को बोलाl  चाचा जी ने पुत्र को किराए वाले फ्लैट की चाबी देते हुए कहा की यह रही तेरे  घर की चाबी 1 साल का किराया मैंने दे दिया अब तेरी जैसी इच्छा हो वैसे अपनी बीवी को रख चाचा जी चले गए पुत्र देख ता  रह गयाl


 संतोष अग्रवाल "सागर" साले चौका रोड मध्य प्रदेश✍
[1/14, 1:43 PM] कवि संतोष अग्रवाल" सागर"
साली चौका मध्य प्रदेश: आवाज तो उठनी चाहिए
 लघु कथा
  नगर की सड़क पर मॉर्निंग वॉक के समय एक व्यक्ति रोड पर कांटे बिखेर रहा था  मैंने साथियों से कहां हमें उसको रोकना चाहिए सब विरोध करने लगे कुछ दिन बाद एक व्यक्ति रोड पर कांच के टुकड़े बिखेर रहा था इस बार हिम्मत जुटाकर मैंने उसका विरोध किया वह बोलने लगा  तुम्हें क्या करना कोई कुछ करें कोई कुछ नहीं बोलता  तुम आए बड़े भगत सिंह  बन कर मैंने जोरदार आवाज मैं बोला कोई कुछ नहीं बोलता तो तुम गलत काम करोगे यहां छोटे बच्चे बुजुर्ग घूमते हैं किसी के   पैर मैं कांच लग जाएगा वह कांच उठाकर मुझे उल्टा सीधा बोलने लगा तब वहां  बहुत लोग जमा हो गए उसे   चिल्लाने मारने लगे मौका पाकर वह वहां से भाग निकला उस दिन से मैंने मन बना लिया  अगर मैं गैर कानून असामाजिक अनैतिक  काम देखूंगा तो साहस के साथ उसका प्रतिकार करूंगा
 संतोष अग्रवाल "सागर"
साली चौका रोड जिला नरसिंहपुर मध्य प्रदेश मेन मार्केट✍


नये रिश्ते लघु कथा

लघु कहानी    :   नये रिश्ते



“मम्मा , ददा को क्या हुआ है ? ये ऐसे सबके सामने क्यों सो रहे हैं?  बच्चे ने अपनी मां के पल्लू को खींचते हुए पूछा।


सबके सामने सवाल पूछे जाने के कारण मम्मा को उत्तर देना ही पड़ा क्योंकि वह जानती थी, मेरे बेटे की जिज्ञासा तब तक शांत न होती है जब तक उसके सवाल का जवाब न दे दिया जाए। आजकल सब घरों में पढ़ी लिखी मम्मियां इसी तरह से बच्चों की परवरिश करती हैं।  उसने अपने बच्चे को पुचकारते हुए बताया, ये आपके दादाजी हैं, जो अब हमारे साथ नहीं रहेंगे, आज से कहीं ओर रहा करेंगे, हमसे मिलने भी नहीं आऐंगे। ..” फिर वह फक्क कर रोने लगी । रुमाल मुंह पर आते रिश्तेदारों व मित्रों से भीगी आंखों से दुखी संवेदनाओं को बटोरने में जुट गई। 


बच्चे ने इधर उधर अपने हाथों को हिलाया और दादा जी की ओर बढ़ने लगा। मम्मा से हाथ छुड़ाकर वह दादा जी के सामने खड़ा हो चेहरा देखने लगा। पता नहीं उसे क्या हुआ, वह जोर से बोला, मम्मा ये हमारे ददा हैं, दादाजी नहीं, ये हमें रोज स्कूल छोड़ने व लेने जाते थे। मुझे रास्ते मे स्टोरी सुनाते थे, चाकलेट ,आइसक्रीम खिलाते थे, हम दोनों मिलकर सब्जियां व फल खरीदते थे रोज स्कूल वापसी पर, मम्मा , ददा मुझे शाम को गार्डन ले जाते और झूला झूलाते थे, वहां बहुत सारे बच्चे इनके साथ खेलते थे। मम्मा के पल्लू से खींच कर , कहने लगा, देखो, देखो, ये हमारे ददा हैं, दादाजी नहीं हैं। तुम झूठ क्यों बोल रही हो ? जाओ हम आपसे बात नहीं करते , ऊ, ऊ ऊ, कुट्टी..।  बच्चा जोर जोर से रोने लगा, ददा कोनींद से उठने को कहने लगा, फिर बोला , ददा थोड़ा रुको , मैं अपने गार्डन वाले दोस्तों को बुलाकर लाता हूं, वे तुम्हें जरुर नींद से जगा देंगे।”


 इतना कह वह घर से बाहर की ओर दौड़ने लगा। अब मम्मा ने भी उसे पकड़ने की कोई कोशिश नहीं की। 


अभी गेट तक पहुंचा ही था कि उसे पापा ने बाहर जाते हुए देख , हाथ से पकड़कर गोदी में उठा लिया। परंतु बच्चे के मन में इतनी उथल-पुथल मची हुई थी, वह अपने पापा से जिद्द करने लगा, कि मुझे अपने मित्रों को यहां ददा को जगाने के लिऐ बुलाना है। 


पापा अपने मित्रों से आंख चुरा कर बच्चे को एक कोने में ले जाकर समझाने लगे। “ ये आपके ददा मेरे पापा हैं ये आपके दादाजी ही हैं, जो आपके साथ रहते थे, आपकी उसी तयह से देखभाल करते थे, जैसे उन्होंने मेरी यानि तुम्हारे पापा की थी।  बच्चे की जिज्ञासा को कुछ क्षण के लिए अल्पविराम लग गया। फिर वह तेजी से अपने पापा की गोद से उतरकर , मम्मा की ओर दौड़ा।  मम्मा के पास पहुंच कर जोर से चिल्लाते हुए कहने लगा, मम्मा आपने मुझे ये क्यों नहीं बताया, ये मेरे दादाजी हैं, आप तो उनसे सारे काम करवाती थी जैसै शामू काका और  बिंदु मौसी करती हैं… ? 


इतना सुनते ही चारों ओर रिश्तों का सन्नाटा पूरी तरह से पसर गया।
मम्मा ने जोर से बच्चे को पकड़ा और उसे शामू काका के हवाले करते हुए धीरे स्वर में  कहा, “  काका, इसे नाश्ता करवा दो और फिर बाहर घूमाने ले जाओ,  जब यहां पूरा कार्यक्रम संपन्न न हो जाए तब तक घर मत लाना।” 


शामू काका भी दादाजी को छोड़कर कहीं जाना नहीं चाहता था, पर मालकिन की आज्ञा न मानना अपने पेट पर लात मारने समान हो जाता। उसने तुरंत बच्चे को गोद में लिया और वहां से चला गया।
                    शशि दीपक कपूर
                  ( स्व-रचित व मौलिक)
                     १४.०१.२०२०


कविता तिरंगे का दर्द

नाम--डॉ० कुसुम सिंह 'अविचल'
पता--1145-एम०आई०जी०(प्लॉट स्कीम)
रतन लाल नगर
कानपुर--208022 (उ०प्र०)
मो० 09453815403
       08318972712
       09335723876
कविता--"तिरंगे का दर्द"
*******************
व्यथित हूँ आज भारत माँ ,कफ़न बन करके सैनिक पर,
मुझे फहराया था जिसने,गर्व से उन्नत शिखरों पर,
शहीदों को सलामी में झुका हूँ दिल पे पत्थर रख,
लहू से लथपथ वीरों के पड़ा पार्थिव शरीरों पर।


हूँ घायल किन्तु आंखों में
प्रतिशोधी शोले भड़के हैं,
झुकूंगा वीर लालों पर,शत्रु को काल बनके है,
बगावत है तिरंगे की,करूंगा नाश दुश्मन का,
खून से खून लेना है,रक्त के सागर छलके हैं।


सिंह घायल नहीं होंगे,निशाने पर है अब दुश्मन,
जो करता वार घातों से बिछा दी हमने भी चौपड़,
शपथ दी है शवों ने जो तिरंगा तान कर सोए,
शत्रु का सीना छलनी कर,लाशें करनी हैं क्षतविक्षत।


हैं तेवर इंकलाबी अब,चुनौती देती क्रांति धरा,
है क्रोधित भारती अपनी,बनी रणचण्डी क्रान्तिधरा,
खून के कतरे कतरे का प्रण है प्रतिशोध लेने का,
दी है सौगन्ध तिरंगे ने,जयहिंद कहेगी क्रान्तिधरा।
**************************
स्वरचित
लता@कुसुम सिंह'अविचल'


लोकगीत उड़ै पतंग हवा कै संग

*लोकगीत.....*
*उड़ै पतंग हवा कै संग*



उड़ै पतंग हवा के संग, छू जावै आकाश।
हँसके कहती बात एक,छूलो आके पास।


बच्चे- बूढ़े दौड़ैं सब, कउन पतंग पावै।
उड़ी- उड़ी वो कटी- कटी, देखि ह्रदय हर्षावै।
नई पतंग मिलै हमको, बाजी इहै जितावै।
हार- जीत में कुछ न होवै ,  करवावै विश्वास।
उड़ै पतंग हवा के संग..................।।


रंग- बिरंगा रूप सदा, मोहै सबका ध्यान।
आज हुई स्वच्छंद बस, देवै सबको ज्ञान।
इठलावै बलखावै जब, होवै नवल विहान।
इहै विहान सबै भावै, हर मन कै है आस।।
उड़ै पतंग हवा के संग..................।।
 
ठिठुरन, जकड़न साथ अहै, गावै मेघ मल्हार।
सर्दी कै मौसम इ लावै,शीतल मस्त बयार।
सूर्य मकर के साथ है,छाई नई बहार।
गंगा कै स्नान कौ भावै, पावन जावै मास।
उड़ै पतंग हवा कै संग..............।।


खेतों में हरियाली अरु,नव धन- धान्य बहार।
तिल गुड़ लावै साथ तब, इ संक्रांति त्योहार।
खिचड़ी के संग ही जचै, पापड़ घीउ अचार।
इका जेवै चाव से जो, सुख छावै तब खास।
उड़ै पतंग हवा के संग.................।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*


नीतेश उपाध्याय दमोह गजल

*नाम*- *नीतेश उपाध्याय*
*पता*- *ग्राम केवलारी उपाध्याय पोस्ट हिनौती पुतरीघाट तह-तेंदूखेडा जिला दमोह 470880 मध्यप्रदेश*
*मो*- *7869699659*
*विधा*-गजल
तुम 


वक्त आसूँ भी दे तो मुस्कुराना तुम
गमों की चादर में कभी न रातें बिताना तुम



जो शहर में तेरा मकान भी ढह गया हो
कहीं और ही सही मगर अपना आशियान बनाना तुम 


 


जो छोड़कर दिल तोड़कर कोई चला भी गया तो क्या 
तुम जिंदा हो उसके बगैर कभी नजर मिले तो उसको ये बताना तुम


 


नींदे ,ख्वाब ,ख्वाहिश सब कागज की तरह जल गए 
जिन्हें अपना समझा था वो सभी बदल गए 
कोई रहता हर दम अपना ये बातें न सिखाना तुम


डा. अखण्ड प्रकाश *कविता* देखो ये लोग हिचकियों को तान समझते,

डा. अखण्ड प्रकाश
आई-205 M.M.I.G. केशव वाटिका के पास आ.वि.1, कल्याणपुर, कानपुर यूं.पी.
मोबाइल नंबर 9839066076
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     *कविता*
देखो ये लोग हिचकियों को तान समझते,
रोते हुए ओंठो को ये मुस्कान समझते।
बारूद की आवाज का संगीत बना कर,
ये आह को अलाप के समान समझते।।
इन्सानियत के खून से ये खेलते होली,
मासूम द्रोपदी की लगाते हैं ये बोली।
मिल जाए आदमी जो कहीं मार दें गोली,
चाकू को पसलियों का ये मेहमान समझते।।
ये आह को अलाप के समान....


करते हैं बात रोज़ ये अमन ओ कम्यून की,
इस देश की जनता की और उसके जुनून की।
आती है इनके मुंह से बू इंसा के खून की,
ये आदमी के खून को जलपान समझते।।
ये आह को अलाप के......


ऊपर से हैं सुभग मगर अन्दर अंधेरा घोर,
विशधर को भी कर लें हज़म ये चमकते से मोर।
एकदम से नीच महा नीच है सफेद चोर,
हम ही नहीं तुम ही नहीं ये खुद भी समझते।।
ये आह को अलाप........


इनकी नजर में स्वर्ण ही जीवन का मर्म है,
जैसे भी हो लूटो यही बस इनका धर्म है।
सद्भाव प्रेम से इन्हें तो आती शर्म है,
ये प्रेम के प्याले को पीकदान समझते।।
ये आह को अलाप के समान समझते....


एसिड अटैक पीड़ित बेटी का दर्द.

एसिड अटैक पीड़ित बेटी का दर्द...😢😢


सुंदर मुखड़े पर मेरी माँ
लाख बलाएँ लेती थी।
मनमोहक मुस्कान देखकर
मुझे दुआएं देती थी।।


 चाँद से उज्जवल चेहरे पर मैं
 मन ही मन इठलाती थी।
राजकुंवर ही वरण करेगा
सोच हॄदय शरमाती थी।।


घर आई है साक्षात लक्ष्मी
सास ससुर मन चहकेंगे।
स्वर्ग अप्सरा मान के प्रीतम
प्रेम मेघ बन बरसेंगे।।


लेकिन हाय मेरे सपनों को
रौंदा मानसिक विकृति ने।
रूप कुरूप हुआ पल भर में
अश्रु बहाया चिर प्रकृति ने।।


जलते अग्निकुंड में मानो
फेंक दिया हो चीर के।
कैसे व्यक्त करूँ पीड़ा को
शब्द झुलस गये पीर के।।


कौन मुझे अब प्यार करेगा
नहीं बनूँगी मैं दुल्हन।
हर मौसम होगा पतझड़ सा
रंगहीन होगा जीवन।।


कंचन काया हुई भयानक
मन ही मन दर्पण रोया।
सुनो निर्दयी हिंसक नर पशु
धैर्य नहीं मैंने खोया।।


चंद बूँद तेज़ाब की मेरे
स्वप्न जला न पाएगी।
देख हौसला हॄदय का मेरे
पीड़ा स्वयं लजायेगी।।


मात्र विक्षिप्त हुआ तन मेरा
मन तो अभी सुनहरा है।
सुंदर तन का सूर्य अस्त पर
उर में हुआ सवेरा है।।


हे प्रभु!ऐसे मानव पशु को
धरा पे जन्म नहीं देना।
विनती है यदि पिता बने वो
बेटी दान यही देना।।
                   अर्चना द्विवेदी
             अयोध्या उत्तरप्रदेश


आचार्य गोपाल जी मुस्कुराने के लिए है जिंदगी

नाम आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले
 पता प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा
 आदर्श कोचिंग सेंटर अर्जुन टॉकीज के पीछे नाला रोड बरबीघा शेखपुरा बिहार
  मोबाइल नंबर 97716 75729


  कविता
मुस्कुराने के लिए है जिंदगी
गीत गाने के लिए है जिंदगी
दिल में गमे गुबार क्यों हो मेलते
गम भुलाने के लिए है जिंदगी


सत्य की राह पर चलना सदा
 सोचो नहीं होगा बुरा या फिर भला
सत्य है कब कहां किस को छला
नेक दिल वालों के लिए है जिंदगी


उठो आगे बढ़ो बढ़ते चलो
मार्ग बाधा से सदा लड़ते चलो
हो हारने का डर मन में क्यों धरे
जीत जाने के लिए है जिंदगी


तुम चलो ना किसी के छाप पर
 खुद मार्ग अपना आप ले बना 
तू विजय का लक्ष्य मन में ले बसा
हर लक्ष्य पाने के लिए है जिंदगी


 अपने लिए जिए तो क्या जिए 
बार दो और उनके लिए तू जिंदगी
पांव पर हित के लिए तेरी बढ़े
उपकार करने के लिए है जिंदगी


जो अकेले है यहां बढ़ता गया
पा गया मंजिल सदा चढ़ता गया
 आजाद हर गम से ख़ुद को करता गया
उसका वंदन करने के लिए है जिंदगी


आजाद अकेला (बरबीघा वाले )
         उर्फ 
आचार्य गोपाल जी


 प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


सुनील चौरसिया 'सावन' अमवा बाजार, रामकोला, कुशीनगर, उप्र.

कविता--आओ, पढाई कर लो बेटी


छोङो चूल्हा - चौकी रोटी।
आओ, पढाई कर लो बेटी।।


घर का बाद में करना काम।
जग में रोशन कर लो नाम।।
विदूषी बन महको ज्यों फूल।
लो बस्ता, जाओ स्कूल।।


पढो-लिखो, छूलो नभ-चोटी।
छोङो चूल्हा - चौकी रोटी।
आओ, पढाई कर लो बेटी।।


नहीं हो तुम बेटों से कम।
शक्ति-स्नेह का हो संगम।।
दम दिखादो अपना जग में।
पूरा कर लो सपना जग में।।


बङी हो तुम, दुनिया है छोटी।
छोङो चूल्हा - चौकी रोटी।
आओ, पढाई कर लो बेटी।।


--सुनील चौरसिया 'सावन'
अमवा बाजार, रामकोला, कुशीनगर, उप्र.
9044974084, 8423004695


गिरीश कुमार सोनवाल 

🌹 जीवन परिचय --🌷
                    ~~~~~~~~~


1- नाम --  गिरीश कुमार सोनवाल
2 - उपाधि--कविराज कुमार गिरीश 
3- पिता का नाम -------रामचरण सोनवाल
4- माताजी -------संतरा देवी 
5-जन्म एवं जन्म स्थान---25may 1995 मिर्जापुर गंगापुर सिटी ,
    कर्मभूमी - जयपुर 
6-- स्थायी पता ------- जाटव मौहल्ला वार्ड नंबर -६ ,  हिंगोटया रोड मिर्जापुर गंगापुर सिटी सवाई माधोपुर (राजस्थान )322201
7-- फोन नं.---------9667713522
8- शिक्षा............. स्नातकोत्तर,  upsc aspirant 
9- व्यवसाय--------  student 


10- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या एवं नाम_____
○चारू काव्य धारा ,
○अक्षर सरिता धारा 
○आधुनिक युवा श्रृंगार 
○आज की प्रीत


○मां-भारती कविता संग्रह 
○अमर-जवान
○हौसलो की उड़ान 
○हिंद धरोहर



एवं इनके अतिरिक्त अन्य देश के राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कवियों- लेखकों के साथ प्रकाशित सांझा संकलन :-
○अलकनंदा 
○शहीद
○मेरी रचना
○काव्य संगम 
○ई बुक सांझा संकलन


आगामी सांझा संकलन पुस्तकें :-----


○ पिता (मेरी नींव का पत्थर) 
○ माँ (मेरा पहला प्यार)
○ गुरू (सफलता की सीढ़ी)
○  ईश्वर एक है
○  दोस्ती हो तो ऐसी 
○  प्यार का पागलपन(प्यार जिंदगी है
○  बेटा - बेटी (माता पिता का मान)


पत्रिकायें :-


○जयद्वीप पत्रिका
○शबरी पत्रिका


11-लेखन विधाएं: - 


वीर (ओज), रोद्र  एवं  श्रृंगार  ,मुक्तक     छन्द, कहानिया, सामाजिक एवं आध्यात्मिक लेखन कार्य ,
 साहित्य के क्षेत्र में सम्मान भी प्राप्त,विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओ में प्रकाशित रचनाएं।


डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव  पटना - बिहार हाँ मजदूर हूँ मैं

डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव
 पटना - बिहार
 मोबाइल  नं-95768150
हाँ मजदूर हूँ मैं
****************
 मजदूर हूँ मैं-
 बुद्धिजीवी, शैक्षिक,
बंधुआ मजदूर!
उन शैक्षणिक संस्थानों के / जहाँ-
स्वयंप्रभु हैं इतने समर्थ-
 करते शासन-
कर्मियों पर -
साँस लेने की भी नहीं फुर्सत,
 ऐसा अनुसाशन!
कार्य करते, कर्मी कोई
कभी हो जाए बीमार
होकर बेहोश, ब्रेन हैमरेज, हार्ट सर्जरी
या अन्य सर्जिकल खतरनाक, स्थियों से
हो लाचार - 
आई-सी - यू में हो जाए दाखिल, 
नहीं होती संस्था से
कोई सहयोग हासिल...
 नहीं मिलती शुभकामनाएँ!
वरन, रखे जाते गिरवी-
कर्मियों के आधिकारिक-
 संचित आर्थिक अवलंबों के
 प्रपत्र और साक्ष्य! 
 मिलती, तुरत सेवा देने या त्यागपत्र देने की-
 मौखिक यातनाएँ!
 गर मौत को जीत 
आ भी गए कर्मी.,
 तो नहीं मिलती,
जीवित रहने की बधाई-
सेवा देने की अनुमति -
मिलती-
 कार्य मुक्ति की चिट्ठी-
सेवा निवृत्ति!
 हमारे श्रम, खून पसीने
 नहीं काम आते अनाथों, असहायों के।
अभावग्रस्त, निरक्षर-
कचरा बींनते बच्चों के।
नहीं थमायी जाती उन हाथो मे किताबें,
 देह पर कपड़े, 
आँखों में उम्मीदे, शिक्षित भविष्य का सूरज.....!
वल्कि सींचते हैं वे-
उन स्वयंप्रभुओं के
 अय्याशियों के पौधे।
बेवश-आँचलों के धब्बे! 
 दुकानों,होटलों, कम्पनियों 
कई- कई शिक्षण संस्थानों के भवनों की नींव!
 नित नव- नव विदेश भ्रमण की
तरकीब!
कितने विवश लाचार हैं हम।
हाथ - पैर, आँख
शरीर - सामर्थ्य कीसौंपकर सम्पूर्ण पूंजी
 नहीं दे सकते, किसी को राहत -
 सुख की कुंजी!
क्योंकि बिका हुआ है-
 मेरा समय, खून और श्रम,
बिकी हुई हैं साँसे-
 पर, जीने का है भ्रम....
 हम गए-बीते हैं-
 उन अशिक्षित,  गंवार मजदूरों से भी
जिन्हें आठ घंटे बहाकर पसीने-
 मिलते तीन- चार - पाँच सौ तक की रोजी! 
 न मिले  इच्छानुसार
 कल दूसरा ठाँव!
इस गाँव नहीं तो उस गाँव! 
   मगर ये शिक्षित मजदूर -
  हैं कितने मजबूर......? 
 कागज के चंद टुकड़े पाकर
 लिखते भविष्य  भारत के
      सृजते-
 डॉक्टर, वकील, इंजीनियर  पत्रकार
और न जाने कितने - 
नेता, अभिनेता, कलाकार!
 पर नहीं सृज सकते अपना भाग्य-
  हैं ऐसे मजबूर....
 हाँ हम हैं मजदूर!


डॉ रामकुमार चतुर्वेदी रामबाण चमचावली

*राम बाण🏹 चमचावली*
           *स्तुति*


पढ़कर ये चमचावली, जानो चम्मच ज्ञान।
सफल काज चम्मच करे,कहते संत सुजान।।


जीवन चम्मच संग है, चम्मच से पय पान।
चम्मच  देता अंत में , गंगा जल का पान।।


चम्मच जिनके पास है,चम्मच उनके खास।
जिनसे चम्मच दूर है,उनको मिलता त्रास।।


नित चम्मच  सेवा  करें, मिलता अंर्तज्ञान।
हिय चम्मच जिनके बसे,रहता अंर्तध्यान।।


जिनके काम न हो सके, चमचे करें उपाय।
बदले में मिलती रहे, ऊपर की कुछ आय।।


आय कमीशन  स्त्रोत है, चमचे करते पास।
जिसको कमीशन न मिले,घूमें फिरे उदास।।


हाथ जोड़कर स्तुति करें,मन्नत माँगे भीख।
चमचों  से न बैर रखो, देते  हमको सीख।।


चम्मच  हमने  हैं चुने, चुने  बहुत ही रूप।
लेकर  चम्मच  हाथ  में, पीते  रहते  सूप।।


चमचों के ही राज में , चम्मच करते काम।
अपना उल्लू  साधते, लेकर कुछ ही दाम।।


नालायक   में  श्रेष्ठ   हैं,  वरद  पुत्र सर्वज्ञ।
चम्मच  प्रधान देश में, चमचे  सबसे तज्ञ।।


चमचों की चमचावली,करती चम्मच मान।
दुनिया में जो श्रेष्ठ है, चम्मच उसको जान।।


           *चम्मच राज*


पाँव पकड़ विनती करें, सिद्ध करो सब काम।
अपना हिस्सा तुम रखो,कुछ अपने भी नाम।।  


 बिगडे तो कुछ सोच लो, काम बिगाडे़ आप।
 नागों के  हम  नाग हैं, बिषधर के भी बाप।।


 चम्मच  कोई  काम  लें, करना  मत इंकार।
 बैठें  पाँव  पसार  कर,  सज जाते  दरबार।।


नेता  संग   सैर  करें ,   चमचे   खेलें  दाँव।
अगर मगर होता नहीं, हो जाता अलगाँव।।


भैया जी  के  दाम  पर,  ऊँचे  लगते  बोल।
चमचे मुँह जब खोलते, खोले सबकी पोल।।


 राज  रखे  सब पेट  में ,  नहीं खोलते राज।
 जिस राज से राज करें,  नेता चमचे आज।।


राजदार के राज  में , राज  करें  गद्दार।
सत्ता  सेवा  चाकरी, करते हैं  मनुहार।।


पोल खोलते जब कभी,हो जाती हड़कंप।
कुर्सी  डोले  डोलती , आ जाता  भूकंप।।


सेवा  में  सरकार के , करते  बंदर  बाट।
अच्छे पद की चाह में,देश बाँटकर चाट।।


राजनीति  के मंच से, चमचे चलते चाल।
लक्ष्मी पूजा पाठ की, सज जाती है थाल।।


चम्मच  बदले  भेष को,  बदले  बेचे  देश।
बस उनको मिलता रहे,बदले में कुछ कैश।।

      *व्यापक चम्मच*


 चम्मच वश चलता रहे,काम करे भरपूर।
उसके बदले  नोट  से ,  करते  हैं  दस्तूर।।


 चमचे  इस संसार में, बाँट लिए हैं क्षेत्र।
अपने कौशल काम से, खोलें सबके नेत्र।।


शिक्षा पूरी  हैं  नहीं ,  रखते  पूरा ज्ञान।
चम्मच अपनी पैठ से,करवाता सम्मान।।


डिग्री  धारी  सोचते, पद  पाते  हैं चोर।
कैसे चम्मच के बिना, लगे न कोई जोर।।


सेवक साधू साथ तो,फल पाओ श्रीमान्।
चम्मच नेकी कर्म में, रमा हुआ तू जान।।


साक्षर करते देश में, शिक्षा के अभियान।
चमचों की भर्ती करें,व्यापम का संज्ञान।।

कैसे  पास  हुये  सभी,    शासन   है   हैरान।
पकड़ा  धकड़ी  शुरु  हुई,  बन  बैठे   हैवान।।


व्यापम यम का नाम था, पैसों  का  था जोर।
अच्छी  प्रतिभा छोड़कर, चुन  बैठे  थे चोर।।


कितने  तो  मरकर  हुए,  राजनीति  के  खेल।
 कुछ तो चमचों की शरण,कुछ को होती जेल।।


पास - फेल  के  खेल में,  दाँव - पेंच  की जंग।
कला कुशलता  के  धनी, चमचे  उनके  संग।।


     *डॉ रामकुमार चतुर्वेदी*


कुमार किशन प्रयागराज

नाम-कुमार किशन(क्रिशन कुमार गौतम)
पता-निकदिलपुर,अटरामपुर,नवाबगंज 
       प्रयागराज(इलाहाबाद)
मो०-8756772874


*कविता*


*तुम्हारे साथ•••••*


कुछ ख्वाहिशें है हमारी
साथ तुम्हारे जीना चाहता हूँ 


सुना है ताज महल खूबसूरत है
देखना चाहता हूँ साथ तुम्हारे


सुना है हवाई जहाज मे सफर होता है
साथ तुम्हारे बैठना चाहता हूँ


सुना है समुंद्र की लहरों मे उमंग है
साथ तुम्हारे उन उमंगों को देखना चाहता हूँ


सुना है बादलों तक जाने की चाहत होती है
साथ तुम्हारे बदलों तक चलना चाहता हूँ


सुना है तुम को मोहब्बत नही है हमसे
जीवन भर साथ तुम्हारे रहना चाहता हूँ


सुना है बहुत तमन्ना ए जिन्दगी है तुम्हारी
तुम्हारी तमन्नाओं का एक छोटा सा हिस्सा होना चाहता हूँ


सुनो तुम्हारी आँखों का नूर आसमानी है
मैं इन आंखों का नूर होना चाहता हूँ


तुम सारी ख्वहिशों को पाकर देखो अपनी तरह से
मैं भी अपने सफर का मुकाम चाहता हूँ


तुम को मैं से नही,तुम को तुम से 
मिलाना चाहता हूँ


सुनो मेरी जान मेरी तरह तुम नही
तेरी तरह तुझे सम्भालना चाहता हूँ....


कुछ ख्वाहिशें है हमारी
साथ तुम्हारे जीना चाहता हूँ...।
-कुमार किशन


ऋषभ तोमर राधे अम्बाह मुरैना

ऋषभ तोमर ‘राधे'
अम्बाह मुरैना मध्यप्रदेश
कही भरी खुशियाँ जीवन मे कही पे ये घट रीत गया
हँसते -रोते, गिरते -उठते ये भी साल तो बीत गया
 
प्यार किया था इक़ लड़की से यादों में उसकी रोया
तन्हा- तन्हा रहा रात भर इक़ पल भी मैं न सोया
नही रहा मेरा कुछ मुझमें तन मन उसका मुझे लगा
हार स्वयं को इस तरह में इश्क़ की बाजी जीत गया
हँसते- रोते, गिरते- उठते ये भी साल तो बीत गया


संग लेकर आया था अपने शर्दी, गर्मी और बरशे
स्वपनों को पूरा करने कुछ पंख लगाये नई ख्वाहिशें
लेकिन हौले हौले से अपना सब कुछ  ये बांट गया
कही भरी खुशियाँ जीवन मे कही पे ये घट रीत गया
हसंते- रोते , गिरते- उठते ये भी साल तो बीत गया


मिटा गया कुछ पर देके ये मुझको नये सवाल गया
आगे बस सुलझाऊ जिसको ऐसा देके जाल गया
सिसक तड़प उमंग हर्ष न जाने दे कितने लफड़े
अच्छी- बुरी यादों के संग देखो ये मन प्रीत गया 
हंसते- रोते गिरते -उठते ये भी साल तो बीत गया


संग लेकर आया ये अपने छोटी मोटी कई उलझने
खोजा तो पाया मैंने कि इसमें ही बसती है सुलझने
लेकिन खोज -बीन में इसने ऐसा खेल रचाया कि
मीत नये कुछ देके मुझको, लेके कुछ मनमीत गया
हँसते- रोते ,गिरते -उठते ये भी साल तो बीत गया


हर साल की तरह इसमें भी वो बारह मास पुराने थे
गर विजय मिली तो बड़े बोल बाकी देने को बहाने थे
इस तरह नया नही कुछ था न मुझमें न इस में भाई
मैं भी खुलके चीख लिया ये फिर भी ले संगीत गया
हँसते -रोते ,गिरते -उठते ये भी साल तो बीत गया


होली,दीवाली, ईद ,दशहरा ,क्रिसमस देके गुजर गया
कुछ मीठी, कुछ कड़वी यादे देके देखो बिखर गया
लिखने जब बैठा मैं इसपे इतना ही लिख पाया कि
देकर कई नगमे ये मुझे, मुझसे लेकर इक़ गीत गया
हँसते- रोते, गिरते -उठते ये भी साल तो बीत गया


ऋषभ तोमर राधे
अम्बाह मुरैना


रूबी प्रसाद सिलीगुड़ी वेस्ट बंगाल Ruby prasad

_रूबी प्रसाद 
पता_ Ruby prasad 
 Omprakash Sharma
C/ o Haryana golden Transport
Upper road 
Near shiv mandir
Gurung basti 
Po pradhan nagar 
Siliguri (west bengal)
District darjeeling 
Pin code_734003 
Mobile number _09832064323 / 09002721563
कविता_ ______"कुछ पुरुष" ______


न उम्र का लिहाज करते है ,
न सिंदूर की ही लाज रखते है !
कुछ होते है ऐसे पुरूष _
जो हर औरत में लैला की तलाश करते है !
हाँ ,
होते है वो पुरूष मानसिक रोगी
जो बलात्कार करते है !
मगर बुद्धिजीवी भी कम नहीं होते,
वो भावनाओं से _
करके खिलवाड़ इंसानियत को तार_तार करते है !
बुरे नहीं होते है सब पुरूष_
मगर कुछ दिलफेंक , निर्लज होते है पुरूष ,
जो पूरे पुरूष वर्ग को शर्मसार करते है !
अपनी घर की औरतों पर आये बात तो_
बात चाकू तलवार से करते है !
मगर पराई स्त्री को 
देखते ही हर मर्यादा को दरकिनार करते है !
हाँ, 
बुरे नहीं होते है सब पुरूष ,
बस कुछ एक होते है ऐसे जो बेहूदगी से अपनी _
पुरे पुरूष वर्ग को शर्मसार करते है  !!
मिठी_मिठी करके बातें ,
प्रेम के जाल में फंसा कर अपने_
छल कर भावनाओं को,
प्रेम जैसे पवित्र रिश्ते को दागदार करते है  !!


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काव्यरंगोली टीम
991925695


डॉ कुमुद बाला हैदराबाद

गूगल सर्च के लिए
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नाम -- डॉ कुमुद बाला
पता -- 10-5-2/1/2 , फ्लैट न. 302 , पटेल रेसीडेंसी , मासाब टैंक , माहेश्वरी चैंबर्स के पास ,
बस स्टॉप से पहले ,
एक्सिस बैंक की गली ,
हैदराबाद -- 500028
मो. -- 8886220212
कविता ---


मत गाओ रुनझुन गीत पायलिया
-----------------------------------------
मत गाओ रुनझुन गीत पायलिया , लक्ष्मीबाई की तलवार बनो 36
कटार - तरकश - ढाल लिए कांधे पर , नेतृत्व करती सरकार बनो


तुमने क्या सोचा इस कलियुग में , राम- कृष्ण आयेंगे 30
दे कर ज्ञान लोगों को फिर , नयी गीता रच जायेंगे
पत्थर की मूरत बन आखिर कब तक , मूर्ख बनोगी तुम
ध्यान लगाओगी जबतक लुटेरे , इज़्ज़त लूट जायेंगे
कंगना- बिंदी - गागर छोड़ो अब , जला शिक्षा दीप अखबार बनो
मत गाओ रुनझुन गीत पायलिया लक्ष्मीबाई की तलवार बनो 36


छीनो - जीतो , ऐसी कुसंख्या , खूब बढ़ी है इन दिनों
सब मेरा है यह मानसिकता , खूब बढ़ी है इन दिनों
नारी ममत्व का दर्पण तो , नर भी दर्पण में मुख देखे
सौतेला बाप भी पापी ,संख्या खूब बढ़ी है इन दिनों
रिश्ते नहीं भरोसे लायक अब , अपने भाग्य की तुम ललकार बनो
मत गाओ रुनझुन गीत पायलिया लक्ष्मीबाई की तलवार बनो 36


है हक़ तुम्हारा जीने का , तुम जीवन की पहचान बनो
नवसृजन की तुम जननी हो , वात्सल्य की आह्वान बनो
मिट्टी की है देह ये नश्वर , फिर मिट्टी में मिल जायेगी
मिट्टी का क्या मोह है करना , इस मिट्टी की परवान बनो
दौड़ रही नस-नस में बिजली, मर्यादा - साहस की जयकार बनो
मत गाओ रुनझुन गीत पायलिया लक्ष्मीबाई की तलवार बनो 36


विभा रानी श्रीवास्तव पटना बिहार

*नाम :– विभा रानी श्रीवास्तव*


पता:-
104-मंत्र भारती अपार्टमेंट
रुकनपुरा बेली रोड
पटना 800014 बिहार
*मो0-9162420798*
01.
मिटा सको मिटाओ अस्तित्व घर-सरकारी
तौलने वाले बंदर रखते पलड़े पर मक्कारी
निस्तारण वाणी विद्या विवेक की नहीं जमी
तीन दिशा में वोल्गा की गति ने जिंदगी थामी
02.
त्रिवर्ग हड़बड़ी मची क्यों होती है,
दुरारोह में होड़ रची क्यों होती है,
आज निंदक होते कल के चिंतक-
हाँ! दोचित्तापन शची क्यों होती है।


एस के कपूर श्रीहंस बरेली

*जीवन परिचय।।।।।।।।।।।।।।*


*नाम - एस के कपूर श्रीहंस*


*पता- 6,,,,,पुष्कर एन्कलेव।।।टेलीफोन टावर के सामने*। *स्टेडियम रोड*।।।।। *बरेली* *ऊ* *प्र।।।।।।243005*


*आयु।।।।।69वर्ष*


*व्यवसाय।।।।।।सेवा निवृत्त बैंक प्रबंधक....स्टेट बैंक बरेली*


*विशेष कार्य।।।कविता।।।।मुख्य विधा* *मुक्तक*छंद मुक्त ,,,तुकांत*
*मुक्तक* * *4000 से अधिक मुक्तकों की रचना अबतक*
*फोटो अलग से संलग्न*****
*कार्यक्रम के सजीव चित्र भी संलग्न*
*1/लगभग 15 सामाजिक ।।साहित्य ।।।वरिष्ठ नागरिक।।सामाजिक ,,सांस्कृतिक संस्थायों से  सम्बन्धित,,मेंबर व पदाधिकारी के रूप में।*


*2.....। संस्थापक अध्यक्ष ।।।।।पीलीभीत मिडटाउन जेसीस।।।वर्ष 1986।।।*स्टेट वाईस प्रेजिडेंट 1987।।।।स्टेट ट्रेनर 1988।।।।।*
*एवमं*
*संस्थापक अध्यक्ष।।।सेवा निर्वत एस बी आई अधिकारी सामाजिक क्लब।।।बरेली।।।अध्यक्ष अक्टूबर2016।।। से अक्टूबर 2018 तक।वर्तमान में क्लब के सरंक्षक।क्लब द्वारा नियमित रूप से सामाजिक सेवा कार्य सम्पन्न में निरंतर सहभागिता।*


*3/दूरदर्शन  आकाश वाणी बरेली।।।।रामपुर पर कार्य क्रम प्रस्तुत किये। व यू ट्यूब पर वीडियो प्रस्तुति*


*4/अनेक पत्र पत्रिकाओं में  प्रकाशित।*
*उदहारण।।।।आई नेक्स्ट ।अब तक 144 लेख ।गीत प्रिया।।परफेक्ट जौर्निलिस्ट।।हेल्थ वाणी।। रोहिलखण्ड* *किरण।।प्रेरणा अंशु। काव्य मृत ।।काव्य रंगोली*
*विनायक शक्ति।। आध्यात्मिक काव्य धारा, काव्य रंगोलीअन्य कई व बैंक की अनेक* *पत्र पत्रिकयों कलीग,सेकंड इनिंग्स,हम दोस्त आदि में सैंकड़ों लेख  व कविताएं प्रकाशित।*
*एवमं*
*सेलेक्टेड न्यूज़ मासिक समाचार पत्र का संपादन मई 2014 से मई 2016 तक।*


*4आ।।।।।।।।।।।*
*साहित्य संगम संस्थान delhi*
*विश्व जन चेतना ट्रस्ट,काव्य* *रंगोली,अध्यात्म्य साहित्य काव्य धारा, काव्यामृत, व मानव सेवा क्लब वअन्य कई संस्थायों  द्वारा 100 से अधिक सम्मान पत्र प्रदत्त।*


*5/क्विज मास्टर  व कार्यक्रम संचालन  में विशेष अभिरुचि व क्विज से सम्बंधित गेम्स कराने का लंबा अनुभव।कॉलेज ,,,,,संस्थायों में मोटिवेशनल लेक्चर।के रूप में कई बार अवसर प्राप्त।।।*


*6/सेवा निवृत्त प्रबंधक*
*भारतीय स्टेट बैंक*
*बरेली शाखा  ऊ प्र,,, वर्ष जून 2010*


*7/शिक्षा।।।एम एस सी रसायन शास्त्र* 
तथा
*सी ए आई आई बी भाग 1*


*8।।।।।।।।चीफ आफ इंटरवियू बोर्ड।।।।महिंद्रा बैंक कोचिंग।।।।*
*बरेली में।।।*2011से 2017तक कार्य किया।*


*8अ।।।।।लगभग 15 व्हाट्सएप्प ग्रुप्स का एडमिन।।।।।*


*9।।।।।।ऊ प्र बुक ऑफ रिकार्ड्स द्वारा 14 अक्टूबर।।।2017 को ट्रॉफी।।मैडल ,,प्रमाण पत्र प्रदत्त*


*10।।।।03 feb 2019 को एक outside मेंटर के रूप में एक पृथक बैंक पेंशनर्स क्लब की आधारशिला रखने में सहयोग।*
*11.....जिला विज्ञान क्लब बरेली के कार्यक्रमों में निरन्तर निर्णायक की भूमिका निभा रहे है और अभी जारी है।*
*12,,,विभिन्न स्कूलों कॉलेज में निम्नलिखित विषयों पर लेक्चर दिये हैं और जारी है।*
How to prepare for competition and interviews
And corporate jobs
Situation analysis (case studies), unsuccessful to successful,despair to hope.
Personality development
And many more similar lectures
Stress, time management
Effective public relations, public speaking
Image building,self confidence


*एस के कपूर ।।।।।*
*बरेली।।।।।।*
*मो।।।।9897071046*
*मोब।।।।8218685464*


अर्चना कटारे    शहडोल( म.प्र)

*जिन्दगी*
-------------------------------------
जिन्दगी .....
तुम बहुत खूबसूरत हो,
बच्चों की मुस्कान हो।
भूखोँ की रोटी हो,
प्यासों का पानी हो।।


निर्धन का पैसा हो,
बीमारों की दवा हो।
मजदूर की ताकत हो,
वृद्धों की लकड़ी हो।।


सृष्टी का सृजन हो,
तपती धूप मे पेड की छाँव हो।
जाडे की गुनगुनी धूप हो,
सूखे की बारिस हो।।


सुहागिनोँ का सिन्दूर हो,
नारी की शक्ति हो।
तरूणाईयों का यौवन हो 
नर्तकियों की घुँघरु हो।।


योगियों की ज्योति हो,
कवियों का भाव हो।
शिल्पियों के कल्पना हो,
ताँत्रिक की साधना हो।।


विद्यार्थियों की मेहनत हो,
सैनिकों का हौसला हो।
खिलाडियों का तमगा हो,
वीरों का झँडा हो।।


बुढापे की आस हो,
मुसाफिरों का ठिकाना हो.
चालक की नजरें हो,
माझी की पतवार हो।।


शराबियो का मैखाना हो,
नशेड़ियों का नशा हो।
जुआरियों की बाजी हो,
चोरों की अँधेरी रात हो।।


जिन्दगी .......
पता नहीं क्या हो.....।
जो भी हो ,
तुम बहुत खूबसूरत हो।।


   अर्चना कटारे
   शहडोल( म.प्र)


रंजना कुमारी वैष्णव केशव नगर , कविता दाँत का दर्द 

नाम- रंजना कुमारी वैष्णव 


 पता - 
केशव नगर ,
 वार्ड नम्बर -18 
पिन कोड - 341512


शीर्षक : दाँत का दर्द


 


सो रहे थे कई दिनों से...
किसने हमें जगाया ?
घेवर, जलेबी के रस से, 
किसने हमें ललचाया?
अब जाग ही गये है तो, 
भुगतो ,हे ! तुम भाया 
सो रहे थे कई दिनों से... 
किसने हमें जगाया? 


ना मानी हमारी मांगे... 
इसलिए ये आतंक मचाया, 
सुनो साथियों!  वार करो तुम ,
शुरू कर युद्धघोष, हड़ताल पर ले आया, 
सो रहे थे कई दिनों से ...
किसने हमें जगाया? 


खाना -पीना बंद कर देंगे तुम्हारा...
जब्बु जोंडिस को भी बुलवाया, 
घेर लेंगे सारा इलाका, 
केविटी का स्थान फरमाया,
सो रहे थे कई दिनों से... 
किसने हमें जताया? 


पता है कोशिश करोगे मारने की...
इसलिए रात-दिन दर्द जताया, 
हाँ!  उखड़वा लो दाँत सारे, 
हम तो शहीद हुए, भटकेगी अब काया,
सो रहे थे कई दिनों से... 
किसने हमें जगाया? 


पर मानव है,  हार ना माने... 
लो फिर डेंचर बनवाया, 
अब जोर से ना ही हँसना तुम, 
वरना पछताओगे, हाय! मीठा क्यू खाया? 
सो रहे थे कई दिनों से... 
किसने हमें जगाया?


मामचंद अग्रवाल"वसंत" जमशेदपुरी ,झारखंड

नाम-मामचंद अग्रवाल"वसंत"
साहित्यिक नाम-वसंत जमशेदपुरी
पता-राम दरबार
मुस्लिम बस्ती,गुरुद्वारा रोड
मानगो,जमशेदपुर,झारखंड
पत्राचार का पता-
सीमा वस्त्रालय,राजा मार्केट
डिमना रोड,मानगो
जमशेदपुर,झारखंड
मो.नं.9334805484


चुप रहो साथियो


चीख है,पुकार है
फिर भी सन्नाटा है,
नैतिकता के गाल पर 
अनैतिकता का चाँटा है |
सत्य की जबान पर
आततायी पहरा है |
चुप रहो साथियो
षडयंत्र कोई गहरा है |


पुरस्कृत होना है 
तो राष्ट्र का विरोध कर,
सत्य को असत्य बता
ऐसा कोई शोध कर |
बहते हुए पानी को
बोल दे कि ठहरा है |
चुप रहो साथियो
षडयंत्र कोई गहरा है |


धर्म की ,संस्कृति की 
बात नहीं करना,
बेवजह बताओ भाई
काहे को मरना |
हर तरफ मुखौटे हैं
चेहरे पर चेहरा है |
चुप रहो साथियो
षडयंत्र कोई गहरा है |
-वसंत जमशेदपुरी


शेखर सिंह धनबाद,झारखण्ड

नाम-शेखर सिंह।                         पता-धनबाद,झारखण्ड।               मोबाइल न-8877700600।
पहली रचना 


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इंसान बन जाओ तुम ।



जहाँ बसा हो घोर अंधेरा वही दीप जलाओ तुम,


शैतानो की नगरी में एक इंसान बन जाओ तुम ।


कतरे गए जिन पंक्षियों के पंख,


उन्हें उड़ना सिखाओ तुम,


डूब रही भवर में नैया उसे साहिल पर ले आओ तुम,


जहाँ बसा हो घोर अंधेरा वही दीप जलाओ तुम ।


ज्ञान की पावन धारा को गंगा की तरह बहाओ तुम,


जुल्म और अत्याचार का डटकर मुकाबला करो तुम,


कलयुग में बुद्ध की गाथा गाओ तुम,


फिर पुरषोत्तम बन छा जाओ तुम,


भटक गए जो अपने पथ से उन्हें पथ पर लाओ तुम,


आतंकवाद का अंत बुरा है,बस इतना ही उन्हें समझाओ तुम।


जहाँ बसा हो घोर अंधेरा वही दीप जलाओ तुम,


शैतानो की नगरी में एक इंसान बन जाओ तुम ।



................................................शेखर सिंह



नाम-शेखर सिंह।                         पता-धनबाद,झारखण्ड।               मोबाइल न-8877700600


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इंसान बन जाओ तुम ।



जहाँ बसा हो घोर अंधेरा वही दीप जलाओ तुम,


शैतानो की नगरी में एक इंसान बन जाओ तुम ।


कतरे गए जिन पंक्षियों के पंख,


उन्हें उड़ना सिखाओ तुम,


डूब रही भवर में नैया उसे साहिल पर ले आओ तुम,


जहाँ बसा हो घोर अंधेरा वही दीप जलाओ तुम ।


ज्ञान की पावन धारा को गंगा की तरह बहाओ तुम,


जुल्म और अत्याचार का डटकर मुकाबला करो तुम,


कलयुग में बुद्ध की गाथा गाओ तुम,


फिर पुरषोत्तम बन छा जाओ तुम,


भटक गए जो अपने पथ से उन्हें पथ पर लाओ तुम,


आतंकवाद का अंत बुरा है,बस इतना ही उन्हें समझाओ तुम।


जहाँ बसा हो घोर अंधेरा वही दीप जलाओ तुम,


शैतानो की नगरी में एक इंसान बन जाओ तुम ।



................................................शेखर सिंह


कवि नितिन मिश्रा 'निश्छल' रतौली सीतापुर

व्यंग्य नही है कविता मेरी हास नहीं हैं गीत मेरे । कोमल चंचल चितवन का आभास नहीं हैं गीत मेरे ॥ राधा की पायल मोहन का रास नहीं हैं गीत मेरे । हैं बशंत के फूल नहीं मधुमास नहीं हैं गीत मेरे ॥ मैं फूलों की जगह खार के हार बनाकर निकला हूँ । आज कलम मैं अपनी तलवार बनाकर निकला हूँ ॥ गीत मेरे हाँथों की मेंहदी न माथे की रोली हैं । गीत मेरे आजाद सिंह के पिस्टल वाली गोली हैं ॥ गीत मेरे झांसी वाली रानी की अमर कहानी हैं । राजगुरू अशफाक भगत से वीरों की कुर्बानी हैं ॥ क्रान्तिकारियों का जुनून हैं इंकलाब का नारा हैं । जो पानी मे आग लगा दे ये ऐसा अंगारा हैं ॥ मैतो अपने गीतों को अंगार बनाकर निकला हूँ । आज कलम को मैं अपनी तलवार बनाकर निकला हूँ ॥ इन गीतों में चेहरा दिखता आदमखोर दरिन्दों का । अक्षर अक्षर नाम बताता है ज़ालिम जय चन्दों का ॥ गीत हमारे आस्तीन के साँपों की गद्दारी हैं । देश भक्त अब्दुल हमीद से वीरों की खुद्दारी हैं । इन गीतों में भारत माँ का घाव दिखाई देता है। नष्ट हो रहा आज एकता भाव दिखाई देता है ॥ अक्षर अक्षर से भाषा का ज्वार बनाकर निकला हूँ । आज कलम को मैं अपनी तलवार बनाकर निकला हूँ ॥ एक बात कहनी है मुझको संसद के दादाओं से । जो भारत को चाट गये ऐसे भुक्खड़ नेताओं से ॥ गीत नहीं हैं मेरे वंदन अभिनंदन दरबारों के । गीत नहीं मेरे माथे का चंदन हत्यारों के ॥ इन गीतों में पींड़ा है रक्तिम केशर के क्यारी की । बात उठी है इनमे केवल युद्धों के तैयारी की ॥ अर्जुन की खातिर गीता का सार बनाकर निकला हूँ । आज कलम को मैं अपनी तलवार बनाकर निकला हूँ ॥ कवि नितिन मिश्रा 'निश्छल' रतौली सीतापुर 8756468512


चन्द्रकांता सिवाल "चन्द्रेश" करौल बाग  नई दिल्ली -

नाम : चन्द्रकांता सिवाल "चन्द्रेश"
पता : 5A/11040 गली न: 9 W.E.A. सतनगर करौल बाग 
नई दिल्ली -
मो0 -- 9560660941


कविता :- *आज का युवा* 


सफ़र की दूरी 
की दास्तां बयाँ कर रहे हैं,
धूल में धूसरित पाँव
चप्पलों की गिरफ्त में 
परवाह नहीं पाओं की थकन
कंधों पै सजा मेला कुचेला बेग लिए 
बढ़ता ही जा रहा है...
आज का युवा,बढ़ता ही जा रहा है...


काले धागो के पैबंद 
से मुफलिसी को ढाँपता
मगरूर मगर शिक्षा
की महत्ता को समझता 
सहेजता किताबों को शालीनता से 
बढ़ता ही जा रहा है...
आज का युवा,बढ़ता ही जा रहा है...


सजग है,भविष्य के लिए 
एक दृढ़ निश्चयी सोच के साथ 
करता है,किताबों की छानबीन 
खोजता है,कुछ मूल्य कुछ आधार 
अपने अस्तित्व को तराशने का निरंतर प्रयास करता  
बढ़ता ही जा रहा है... 
आज का युवा,बढ़ता ही जा रहा है... 


लेखिका चन्द्रकांता सिवाल "चन्द्रेश" 
उपप्रधान दिल्ली प्रांतीय रैगर पंचायत पंजी.(दिल्ली प्रदेश)


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