तेरे प्यार में

नाम  रतन राठौड़
पता   1/1313, मालवीय नगर, जयपुर-302017(राज.)
मो.   9887098115


कविता :: तेरे प्यार में.....


शीत ताप ब्यार में
सनम तेरे प्यार में
आकुल है, व्याकुल है
तन बदन बैचेनियाँ।
रोम रोम जल रहा
प्रेम सँग पल रहा
झरने की धार में
पत्थर की परेशानियाँ।
प्रेम ज्वर की मदहोशी
न पुष्प,  न भ्रमर दोषी
मानव मन ईश सार में
नाच रही ये सारी दुनियाँ।
मिलन की आस तक
अंतिम सांस तक
जर्रा जर्रा इंतजार में,
शीत ताप ब्यार में,
सनम तेरे प्यार में।।
***


देवी तुल्य है नारी...

देवी तुल्य है नारी...


वाह रे पुरुष समाज ,
क्यूं करूं  मै तुझ पर नाज,
तूने कर दिये रिश्ते तार-तार,
है प्रभु सुन लो मेरी पुकार ,
फिर से ले लो अवतार ,
बड़ गया यहां  व्यभिचार ,
भारत भूमि  हो रही शर्मशार,
कब तक नारी  सिसकती रहेगी ,
कब तक नारी जुर्म सहती रहेगी ,
कैसा कानून कैसी व्यवस्था ?
चरित्र हो रहा यहाँ सस्ता,
बडी़ मधली,छोटी को खा रही है,
देश की तरक्की गर्त मे समा रही है,
विवेकानन्द का सपना हो रहा चकनाचूर,
युवा हो रहा संस्कारों से दूर,
अनुशासन भंग हो गया,
युवा नशे में खो गया,
अब शिराओं में धुआं बह रहा है,
मां का आंचल शर्मिंदा हो रहा है,
देवी तुल्य है नारी ,
यह हमें भान होना चाहिए ,
हम भी किसी के लाल है ,
यह हमें ज्ञान होना चाहिए ,
सम्पूर्ण पुरुष प्रधान समाज से,
प्रश्न करें आज मंगलेश ,
कब सुधरेगा यह परिवेश ?
क्यों धिक्कारे हम संस्कारों को?
क्यों न सुधारे हम अपने विचारों  को?
जिस दिन दृष्टि में सुधार आयेगा ,
उस दिन अपराध स्वतः खत्म हो जायेगा।
                       *डॉ मंगलेश जायसवाल*
         *कालापीपल मंडी,जिला शाजापुर(म. प्र.)*
                     *मोबाईल:9926034568*


नीरजा शर्मा -चंडीगढ़ कविता:-मातृभाषा मातृभाषा 

नाम:-नीरजा शर्मा
पता:-चंडीगढ़
मो0:-9417490562
कविता:-मातृभाषा


मातृभाषा


मातृभाषा हिन्दी 
माँ सी मुझे प्यारी है 
बच्चों की दुलारी है ।

बच्चे खुश हो जाते हैं 
जब हिन्दी में बतियाते हैं
सब पर रौब जमाते है ।


मजा ज्यादा तब आता है 
जब मुहावरों में अटक जाते हैं 
समझने पर मुस्कुराते हैं ।


लोकोक्तियों की शान निराली 
अर्थ छलकता अलग ही प्याली 
बच्चों को हैं बहुत ही भाती ।


अब तो उनमे होड लगी है 
कौन मुहावरे ज्यादा कहेगा
बात -बात में ज्ञान बढ़ेगा ।


हिन्दी है सबसे अनोखी भाषा 
देती सबको अनेको शाखा 
सबका मान भी बढ़ जाता ।


उच्चारण से ही लिखा जाता 
सबसे स्टीक है यह भाषा 
हमारे राष्ट्र की शान यह भाषा ।


हिन्द की शान 
हिन्दी भाषा है महान 
इसी से है मेरा भारत महान ।



नीरजा शर्मा


बिहारी अविनाश तिवारी

नाम:- बिहारी अविनाश तिवारी
ग्राम:- चकनिया
पोस्ट :-बेदिबन मधुबन 
थाना:-पीपरा
जिला :-पूर्वी चंपारण
 
"अब विचारधारा"



नाव खुद के सुधार की,
           डूब गई 
स्वार्थ के मझधार में।
           नसीहत सभी दे रहे हैं,
     दूसरों के सुधार में।।
 हो रहा है बदलाव
       लोगों के विचार में।
कभी पैसों के आड़ में,
         कभी स्वार्थ भड़ी
                       प्यार मे।
नाव खुद के सुधार की,
           डूब गई 
स्वार्थ के मझधार में।
           नसीहत सभी दे रहे हैं,
     दूसरों के सुधार में।।
उड़ रही मानवता
          हवा में कुछ ऐसे ,
पड़ती सब पर 
          झर जाती,
              धूलकण जैसे।
     हो रहा बदलाव सभ्यता और संस्कार में
   कभी अच्छों  के 
                  इंतजार में,
   कभी दिखावे के
                  व्यवहार में।
नाव खुद के सुधार की,
           डूब गई 
स्वार्थ के मझधार में।
           नसीहत सभी दे रहे हैं,
     दूसरों के सुधार में।।
कोई नहीं चाहता बैठूं,
           मानवता के 
                    विमान में,
सब जल रहे है झूठी,
शान और अभिमान में।
तरीके भी बदल गए,
  आदर और सत्कार के
नाव खुद के सुधार की,
           डूब गई 
स्वार्थ के मझधार में।
           नसीहत सभी दे रहे हैं,
     दूसरों के सुधार में।।


  अविनाश कुमार 
         तिवारी
        (बिहारी)✍


डॉ नीरजा मेहता 'कमलिनी' -- "मैं हूँ नीर से जन्मी नारी

नाम---डॉ नीरजा मेहता 'कमलिनी'


पता---बी--201, सिक्का क्लासिक होम्स
जी एच--249, कौशाम्बी
गाज़ियाबाद (यू.पी.)
पिन--201010


मो०--9654258770


कविता----


"मैं हूँ नीर से जन्मी नारी"
*******************  


मैं हूँ नीर से जन्मी नारी


पानी सा कोमल मेरा एहसास, 
जल सा पारदर्शक मेरा मन,
सलिल सी तृप्त करती मेरी अनुभूति,
वारि सा शांत मेरा स्वभाव,
तोय सी स्वच्छ मेरी देह,
हर रंग जिसमें घुल जाए
ऐसी मैं अम्बु सी रंगहीन,


हाँ, मैं हूँ नीर से जन्मी नारी।


आत्मा को सुख देती वृष्टि सी
नेह बरसाती मैं,
जल से भीगी 
भीनी माटी की सुगंध सी
प्यास बुझाती मैं,
सागर के नीले हरे मिश्रण सी
तरंगित करती मैं,
उपवन की क्यारियों में
महकती उदक सी,
आब में खिलती कमल सी,


हाँ, मैं हूँ नीर से जन्मी नारी।


न मैं पौरुष से हारी,
न मैं स्त्रीत्व से ठगी गयी,
मैं बाल अरुण की
लालिमा सी तेजस्विता,
मैं उज्जवल
चाँद सी चंद्रमुखी,
मैं भू पर विस्तृत
चन्द्रिका सी शीतल,
मैं कमलपत्र की 
तुषार बूँदों सी कोमल ,
मैं गुलाब की पंखुड़ियों सी
नर्म एहसास देती,
जल सी पावन


हाँ, मैं हूँ  नीर से जन्मी नारी।
कहलाती हूँ 'नीरजा कमलिनी'


डॉ. प्रभा जैन "श्री "  देहरादून पतंग कविता

नाम :डॉ. प्रभा जैन "श्री "
              देहरादून 
मो. 9756141150.


कविता :पतंग 
-----------
रंग-बिरंगी-नीली-पीली-लाल 
उन्मुक्त उड़ती विशाल गगनमें
बन    चंचल   बसंती    नार.


ले पवन का संग, उड़ती पतंग 
कभी   सूरज  से मिल  आती 
 नीलगगन में दिशा तलाशती. 


खुला आसमान हैं उसका घर 
सर्र-सर्र   करके  वो  उड़ती 
अपनों  से  मिलकर वो आती.


देती   शिक्षा    हैं    पतंग 
हाथ   में   किसी   के   भी 
हो चाहे वो हिन्दू, सिक्ख, 
मुसलमान, जैन,  पारसी 
ना देखो धर्म की नज़र से. 


ऊंचाई  आकाश की देखो 
भारत को महान बनाओ 
जहाँ-जहाँ से दिखता  भारत 
वहाँ तक अपनी पतंग उड़ाओ


ना काटो गला, गले लग क़र 
प्रेम-संदेश भारत  में फैलाओ 


स्वरचित 
डॉ. प्रभा जैन "श्री " 
देहरादून


संजीव गुप्ता कानपुर

संजीव गुप्ता
219 टाइप 2
आई आई टी कानपुर
208016
मो 9453125846


जिसने तुम्हें बोलना सिखाया उसी को अपनी जुबान की ताकत दिखा रहे हो।
जिसने तुमको चलना सिखाया आज उसी के हर काम में टांग अड़ा रहे हो
जिसने तुमको पढ़ना सिखाया तुम आज उसी को रोज नये नये पाठ पढा़ रहे हो
जिसने तुमको मुश्किल से बचाया तुम आज उसी को मुश्किल में फसा रहे हो


ऐसा कैसे चलेगा, ऊपर वाले का डंडा एक दिन तुम पर भी पड़ेगा


) कर दो इतना उपकार प्रिये ।।

डॉ0सूर्य नारायण शूर 
अधिवक्ता हाई कोर्ट (प्रयागराज)
(लेखक गीतकार ,मोबाईल नंबर 9452816164)


।। कर दो इतना उपकार प्रिये ।।


          अभिवादन लो स्वीकार प्रिये ।
          है प्रेम का यह आधार प्रिये।
अभिवाद लो ।।।।1
          इस नये वर्ष की बेला में ।
          जीवन के तंग झमेला में ।
          कर दो इतना उपकार प्रिये ।।
अभिवाद लो ।।।।2
        उत्तर। दक्षिण  पूरब  पश्चिम ।
       तुम खुब बरसे मुझपर रिमझिम। 
       तन  मन  भीगा  इस बार प्रिये ।।
अभिवादन लो।।।।3
       तुम मिले हो जब से जीवन में ।
       तब से न निराशा   है मन में ।
       आशा का तुम हो द्वार प्रिये ।।
अभिवादन लो ।।।।


             सूर्य नारायण शूर


विनीता सिंह चौहान इंदौर

आईना
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यह आईना तो 
मेरे जीवन के ऊंचे नीचे 
पड़ावों का साक्षी है 
ना जाने इसमें कितने 
मेरे रूप कैद हैं 


इसमें बालपन की छवि ,
उम्र की तरुणाई ,
कजरारी आंखे शरमाई , 
मेरी मुस्कुराहट , मेरी चितवन , 
खिलखिलाहट ,मेरा यौवन कीमत
सब कुछ तो कैद है। 


जब अपनी प्यारी यादों को 
मैंने आईने से मांगा 
तो उसने कुछ ना कहा 


अपनी मीठी बीती बातों को 
जब मैंने आईने से मांगा 
तो उसने कुछ ना सुना 


क्योंकि यह आईना 
जिसे मैंने ताउम्र निहारा 
बचपन से बुढ़ापे तक 
वह तो मूक-बधिर है ।


फिर भी आईने ने 
मुझसे पहले सा चेहरा मांगा 
जिसमें वक्त के साथ 
संघर्ष की धूल जम गई थी 
धूल झटककर परे जब 


मैंने आईने के सामने 
पहले सा चेहरा लाया तो 
आत्मविश्वास से चमक रहा था 
इस मूक-बधिर आईने ने 
मुझे खोए हुए , मजबूत इरादों का 
मेरा चेहरा दिखला दिया ।


क्योंकि यह आईना 
जिसे मैंने ताउम्र निहारा 
बचपन से बुढ़ापे तक 
वह तो मेरा मित्र है 


मैं खुशी से चहक उठी
इस मूक-बधिर ने मुझे 
पहले सा चेहरा दिखला दिया
 कि आइने ने मुझे फिर 
आईना दिखला दिया ।


रचनाकार
विनीता सिंह चौहान
स्वरचित मौलिक
मोबाइल नं 9424512974
पता  केसरबाग रोड, लोकमान्य नगर,
          इंदौर मध्यप्रदेश


अविकारी आत्मा स्वप्निल जैन

अविकारी आत्मा 


ए मेरी आत्मा 
तू  मुझे पिंजरा बना कर छोड गई 


मैने कितने पाप किये 
उसका करता हू प्रायश्चित 
तू वापस आजा अभी तो 
मत  जा एसे छोड कर



कल  मॉ कि दवाई लाऩी है 
बेटे कि फिस भी डालनी है 
उन सब का ऱखकर ख्याल 
एक बार वापस आ मेरे यार 


सोचा कर लू अभी कुछ काम 
फिर कर  लूगा निज आत्मा मे आराम 
पर क्या पता था तु चल देगी 
मुझे एसे छोड कर 


परमात्मा को भी ध्याया नही 
निज अन्तर मे भी गया नही 
तेरा मेरा कर कर के 
ये जीवन मेरा निकल गया 


तू रूक जा मेरी आत्मा 
कुछ जीने दे मुझे और दिन 
लौट कर वापिस आजा 
लौट कर वापिस आजा 


स्वप्निल प्रदीप जैन


प्रशांत मिश्रा मिश्रिख-सीतापुर मुक्तक

नाम- प्रशान्त मिश्रा
परिचय- हिन्दी साहित्य कवि व अध्यापक
निवास-मिश्रिख नैमिषारण्य
फोन नं- 8896088606
👏👏👏
जिसने मेहनत आज करी है,उसको अच्छा कल मिलता है।
कठिन समय मे साथ कोई दे,दिल को तब संबल मिलता है।
मैं तो बस गीतों में कहता, केशव कहते हैं गीता में।
जिसने जैसे कर्म किये हैं,उसको वैसा फल मिलता है।।


--प्रशांत मिश्रा


सच बोलूँ तो दिक्कत सबको झूठ कहूँ तो प्यार मिले।
मुँह पर वाह वाह करने वाले मुझको लोग हज़ार मिले।।
निजी स्वार्थ हेतु चाटुकारिता यह मेरा किरदार नही।
पाँव पकड़कर पाँउ यश को इससे बेहतर हार मिले।।


----प्रशांत मिश्रा
मिश्रिख-सीतापुर।🙏🏻


डॉ अरविंद श्रीवास्तव दतिया गीतिका

नाम-डॉ अरविंद श्रीवास्तव 
पता-150,छोटा बाजार दतिया (म•प्र•)
मोबाइल-9425726907
गीतिका
हो गया अब कितना दूषित मुल्क का पर्यावरण है।
सभ्यता के नाम पर विगड़ा हुआ वातावरण है ।
राह वापू ने अहिंसा की दिखाई थी हमें 
पहिनते गांधी की टोपी हिंसा का ही अनुसरण है।
राम का गुणगान है पर उर में रावण को बसाया 
नारियों का है निरादर हर तरफ सीता हरण है।
दिख रही सुन्दर धरा,अम्बर दिशाएं प्रेम पूरित
पर बदलता जा रहा नित प्रेम का सब व्याकरण है।
बृद्ध मां और बाप को सुत भेजते बृद्धाश्रमों में 
'दर्द ' अब इस दौर में रिश्तों का व्यापारीकरण है ।


निधि मद्धेशिया कानपुर गीत

काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता आज सम्पन्न हो रही सुबह 8 बजे से रात 10 बजे तक किसी भी विषय ओर किसी भी विधा में रचना भेज सकते है। 


नाम- निधि मद्धेशिया (नम)
पता- कानपुर नगर
रचना-  *पंचतत्व*


पक्षी से सुन जाह्नवी 
का यौवन भार
पगला जाती मन्द बयार।


बेसुध पवन कणों को 
करती अंगीकार।


अम्बर से न मिले धरा,
ध्यान देता संसार।


खुशी दूर से देख 
मुफलिश मना 
लेता त्योहार।


सलाम दें ढ़लते 
सूर्य को,उन जनों
को मेरा नमस्कार।


कुदरती चीज के 
लिए तड़पता 
आदमी का प्यार।


जर्रे-जर्रे में भरा 
प्रकृति के,जीवन सार।


धरती को देकर
 वापस लेना
ए आसमा
सुना न देखा
 ऐसा प्रेम व्यापार।


निःस्वार्थ नहीं 
अगर फिर यह
प्रेम कैसा आधार।


मूल्य हर वस्तु 
का चुकाना आसान 
नहीं
फिर भी जीवन 
सार्थक है,
पंचतत्व साकार।


10/1/2020
🌞निधि मद्धेशिया
🇮🇳कानपुर
🎸उत्तर प्रदेश
🌹भारत



काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता आज।
10/1/2020🌹🎸


 



काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020।🌹


इसे हम ना भूलेंगे अवनीश त्रिवेदी "अभय"

 गीत


हमारे देश का  जो इतिहास।
वो तो हैं हमको सबसे खास।


इसे हम नही भूलेंगे।
इसे हम नही भूलेंगे।


अब आए  लाख चाहे तूफ़ान।
चाहे  ये  राह  न  हो  आसान।
इसी पर चलेंगें जब तक जान।
रहेगी अपनी  यही  तो  आस।


इसे हम नही भूलेंगे।
इसे हम नही भूलेंगे।


वो  गौतम, नानक  के  उपदेश।
वो तुलसी, ग़ालिब का परिवेश।
वो  राधा  - मोहन  जैसा  भेष।
वो हज़रत, मोमिन का अहसास।


इसे हम नही भूलेंगे।
इसे हम नही भूलेंगे।


विक्रमादित्य   के   जैसा  न्याय।
वो    बलिदानों    में    पन्नाधाय।
कठिन मसलों पर बड़ो की राय।
वो मिलकर रहना  सबके  पास।


इसे हम नही भूलेंगे।
इसे हम नही भूलेंगे।


वो   गोरा  बादल  की  तलवार।
वो   हाड़ी  रानी   का  अवतार।
वो  बहादुर  बंदा  की  ललकार।
जिससे रुकती दुश्मन की सांस।


इसे हम नही भूलेंगे।
इसे हम नही भूलेंगे।


वो  हल्दी  घाटी   और   प्रताप।
आज़ादी का वो अतुलित जाप।
वो लड़े  लाखों सहकर  संताप।
मन में रहता फिर भी  उल्लास।


इसे हम नही भूलेंगे।
इसे हम नही भूलेंगे।


वो मंगल  पांडे  के  जज़्बात।
वो  लक्ष्मी  बाई  के  आघात।
महात्मा गाँधी  की  वो  बात।
हुआ हैं मान के जिसे उजास।


इसे हम नही भूलेंगे।
इसे हम नही भूलेंगे।


वो आज़ाद, बिस्मिल  की  हुँकार।
वो भगत, अशफ़ाक की फटकार।
हिलती   जिससे   गोरी   सरकार।
हमारे     नायक    बड़े    शाबाश।


इसे हम नही भूलेंगे।
इसे हम नही भूलेंगे।


हमारे देश का जो  इतिहास।
वो तो हैं हमको सबसे खास।


इसे हम नही भूलेंगे।
इसे हम नही भूलेंगे।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


 



पता -


ग्राम- मोहरनिया


पोस्ट - जहासापुर


जिला -सीतापुर


पिन-261141


राज्य-उत्तर प्रदेश


मोबाइल-751876850


खेम सिंह चौहान "स्वर्ण" जोधपुर नॉकरी

नाम खेम सिंह चौहान "स्वर्ण"
पता - महर्षि गौतम नगर धोलासर, फलोदी,जोधपुर,राजस्थान



नॉकरी तू हसीन है 


ए नॉकरी तू बड़ी हसीन है
तेरी चाह हर किसी को है
तुझे पाने के लिए हम
दिन रात विलीन कर देते हैं
तू बड़ी चंचल है 
हर किसी को तो तू 
मिल नहीं पाती है 
तेरा जो राज़ जान ले
बड़ा उल्लसित होता है
तेरे पास आने वाले को
काली रातें डराती है
जाके कह दो उन रातों को
हम ऐसे ही नहीं हारने वाले हैं
जब ठान लिया इरादा सबने
झकझोर कर रख देंगे खुद को
अगर किसी को नसीब नहीं होती 
तो व्यर्थ में नहीं कोई जीता है
तुझे चाहने के लिए
दर दर भटकते रहते हैं
ए नॉकरी तू बड़ी हसीन है
तुझे ढूंढते रहते है 😍
जब फेंक दिया आग में खुद को
फिर डरने का क्या फायदा है
अगर पड़ गए केसरी के जाल में
प्रयास नहीं छोड़ना है
अपनी मनीषा की चपलता से
सिंह को भगा सकते हैं
ए नॉकरी सुन ले आज
तुझसे प्यार हो गया है
अगर नॉकाओं में फंस गए तो
डरकर भी नहीं बचना है
अपनी कोशिश तक तेरी नॉकाओं को
चीरकर रख देंगे हम
तेरे उर में आने के लिए
खुद को झकझोर देंगे हम
ए नॉकरी तू बड़ी हसीन है 
अब तो हाथ मिला दे आ
तेरे बिना कुछ निराश जन
शरीर तक दे जाते है
इस भयंकर रूप की है तू
फिर क्यों इतराती रहती है
तेरे लिए हम सब अपने
अपनों को भूल जाते हैं
सर्दी गर्मी और वर्षा एक कर देते हैं
ऐ नॉकरी अब अगर नहीं मिली
तो सुन ले 
हम भी क्रांति ला देंगे
इधर उधर भटकने पर भी
नहीं कोई चाहेगा तुझे 
ए नॉकरी तू बड़ी हसीन है 
तुझे पाने की हर किसी को
चाहत बड़ी होती है ।


डॉ मंगलेश जायसवाल पर्यावरण कविता

*पर्यावरण बचाओ*


मेरे मन में एक ख्वाब पल रहा है,
धुंध बहुत है फिर भी तन जल रहा है,
बेपरवाह-सा मदमस्त हूँ अपनी धुन में,
कुछ दर्द है,पर जीवन चल रहा है।


इस धरती माँ पर कुछ तो रहम करो,
पर्यावरण बचाओ कुछ तो शरम करो,
धरा नही तो कुछ धरा नही रहेगा मंगलेश,
याद रखे नई पीढ़ी कुछ तो करम करो।


ओजोन पर्त में छेद हो रहा है,
मनुज आधुनिकता में खो रहा है,
समय रहते संभल जाओ  मंगलेश,
पूरा समाज मौत के साये में सो रहा है।


कब तक ज्ञान की बाते करते रहेंगे,
कब तक थोथे अहंकार में जीते रहेंगे,
अब तो सत्य-पथ-गमन कर मानव,
कब तक दूषित पानी पीते रहेंगे।


हर साल तो लाखो पौधे लगाते है हम,
चलो इस बार पर्यावरण दिवस नही मानते हम,
अब तक तो घनघोर जंगल हो गया होगा,
चलो सुंकुँ से सैर-सपाटे पर निकल जाते हम।


खुद ही कब्र का सामान जुटाते जा रहे है,
मिलावट करके मौत को बुलाते जा रहे है,
ज़हर बोओगे तो ज़हर ही काटना पड़ेगा,
हम ही अपना अस्तित्व मिटाते जा रहे है।


आदित्य से तम हटेगा,
साहित्य से भ्रम हटेगा,
वृक्ष लगावो मेरे भाइयो,
तभी यह जीवन बचेगा।


धर्म की बाते बहुत हो गई विशेष,
कर्म से बदलना होगा यह परिवेश,
भागवत से कुछ नही होने वाला,
गीता पर ही चलना होगा मंगलेश।
          
डॉ मंगलेश जायसवाल कालापीपल
9926034568.


गजल नागेंद्र नाथ गुप्ता

नाम - नागेंद्र नाथ गुप्ता
पता - नीलकंठ ग्रिन्स
मानपाडा, ठाणे (मुंबई)
पिन 400610
मोबाइल 9323880849


        ग़ज़ल


बहुत  अपनी  पराई  यार करते हो
हमेशा  पीठ  पीछे  वार   करते हो।।


अगर है रात उसको दिन नहीं कहते
हमारी  बात  पे   इनकार  करते हो ।।


अगर  है  प्यार  तो  मंजूर  कर लेते
नहीं आसानी से  इकरार  करते हो।।


भरोसा क्यूँ नहीं करते कभी खुद पे
हमेशा   गैर  का  एतबार  करते हो।।


मुहब्बत गर उसे जाहिर करो हमसे
कहाँ जा कर उसे इजहार करते हो।।


नहीं दुनिया को उलझाओ यूँ बातों में
बताओ तुम कहाँ उपकार करते हो।।


जिन्हें हक है उन्हें मिलना जरूरी है
बिना हक के बहुत अधिकार करते हो।।


कभी आओ मिलों दिल से सुनो दिल की
नहीं  तुम  प्रेम  की  बौछार करते हो।।


यकीनन आप जो करते गलत लगता
नहीं अच्छा ये  बरखुरदार  करते हो।।
- नागेंद्र नाथ गुप्ता


पंकज सिद्धार्थ शौर्य गीत

अपने प्यारे देश की वो आन-बान-शान हैं
सीना ताने सरहदों पे जो भी नौजवान हैं।


हम कदम-कदम करेंगे देख-भाल रात-दिन
हाथ में लिए तिरंगा इसके पासबान हैं ।।


कोई ग़म नहीं है जान जाए इसके वास्ते
हम हथेलियों पे लेके फिरते अपनी जान हैं ।।


एकता की ताकतों से हौसला बुलंद है 
मातृभूमि के सपूत हम बड़े महान हैं ।।


इसको लहलहाएगे "पंकज" हमेशा खून से 
ये हमारा गुलसिताँ हम इसके बागबान हैं ।।


                                पंकज सिद्धार्थ 


नाम - पंकज सिद्धार्थ
पता - मो०- सिविल लाइंस,पो०- तेतरी बाजार , जिला- सिद्धार्थनगर
मोबाइल- 8115907879


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखण्ड

🌹मकर संक्रान्ति की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं
🌷🕉🌷🕉🌷🕉🌷
🙏🏻शुभ चिन्तक🙏🏻
इस धरा पर सर्वदा,सन्मार्ग दिखलाते यहाँ।
कर भला होगा भला का मन्त्र बतलाते यहाँ।
पाप कर्मो से तुम्हे जो बोध करवाते यहाँ।
समझो वही शुभ चिन्तक,लक्षण साधु बतलाते यहाँ।


जीवन तेरा हर पल सुखी हो, विधि बताते है यहाँ
सन्तोष धन सर्वोच्च निधि की दिलवाते यहाँ।
दुर्व्यसन से दूर तुमको नित्य करवाते यहाँ
समझो वही शुभ चिन्तक लक्षण साधु बतलाते यहाँ।


आलस्य ही सबसे भयंकर शत्रु गिनवाते यहाँ,
ईश सेवा से महा नर सेवा बतलाते यहाँ।
व्यवहार ही सर्वोच्च है, सिखाते है यहाँ
समझो वही शुभ चिन्तक, साधु बतलाते यहाँ।
*************************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखण्ड


मकर विहु पोंगल की शुभकामनाये नन्दलाल मणि त्रिपाठी (पीताम्बर ) सम्पादक काव्य रंगोली

बदली है करवट धरा ने मौसम ने ली है  अंगडाई ठंढक ठिठुरन से हांफते  काँपते जीवन ने है राहत पाई !!दक्षिण से उत्तर सूर्य ने खुशियों की राह दिखाई  संवृद्धि किसान के घर खुशियों की सौगात है लाई !!गन्ने की मिठास गूढ़ शक्कर गावों की खुशहाली गिद्दा भांगडा पंजाब लोहडी है आई !!बृषभ पूजा केले के पत्तों पर स्वेत तंदुल खट्टा मीठा मेहनत का स्वाद कन्नड़ तमिल तेलगु मलयालम का पोंगल त्यौहार हिंदी हिंदुस्तान की शान !!प्रतिदिन पूरब का शुभ सूर्य कर्म परिणाम की संध्या और आराम विराम का ख्वाब सपनो का सौदागर दिनकर दिवाकर का पुनः नव प्रभात !!लोहित की  कलरव करती धाराओं के धरातल से लालिमा सूर्य की जीवन में प्रवाहित रक्त संचार का व्यवहार   !!पूर्वोत्तर  का सूरज मानव मानवता का उमंग उल्लास विहु  विश्वाश !!विविध धर्म सांस्कृतियों का भारत प्यारा देश हमारा मौसम ऋतुएँ पर्वत मालाएं सागर झील हर परिवेश प्रकृति यहां बसाएं !!पृथ्वी का स्वर्ग यहाँ देव भी आते कही कुम्भ अमर अमृत का गुरुओं के परम प्रकाश का उपदेश सुनाएँ !!तीर्थ और त्योहारों में जीवन प्राणी का महत्व बताएं !!आसमान में रंग बिरंगी संस्कृति संस्कारों आशाओ की उड़ान का पतंग लहरायें मकर पोंगल विहु के मूल्यों का  राष्ट्र समाज में अलख जगाएं !!
(मकर विहु पोंगल की शुभकामनाये )
नन्दलाल मणि त्रिपाठी (पीताम्बर )


मकर संक्रांति शुभकामना संदेश

✍🏻🌞🌞🕉🌞🌞


उत्तरायण का सूर्य आपके स्वप्नों को नयी ऊष्मा प्रदान करे,


आपके यश एवं कीर्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि हो,


आप परिजनों सहित स्वस्थ रहें,
 दीर्घायु हों,


यही कामना है।  
मकर संक्रान्ति के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं।।🌞🌞🙏🙏
            आपका शुभेच्छु:-
     सौरभ कुमार मिश्रा
              मंत्री
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ धौरहरा जनपद खीरी ।।
मो0 -080525 35252


दोहे मंगल हो संक्रांति यह मकर संक्रांति 2019

मंगल हो संक्रान्ति यह
मकरसंक्रान्ति नववर्ष का , सुन्दरतम त्यौहार। 
करूँ प्रणाम श्रद्धासुमन, शान्ति खुशी उपहार।।१।।
हरित भरित धनधान्य से , आनंदित मुस्कान।
कर प्रेमगंग स्नान हम , झूमे मस्ती  गान।।२।।
स्वयं दान निज राष्ट्र पर , मातु पिता सम्मान।
बनें शक्ति माँ भारती , खुशियाँ दें इन्सान।।३।।
खा गुड़ अक्षत तील को ,मातु पिता आशीष। 
तिलकुट दधि पोहा सुबह,दान करें नत शीश।।४।।
जले  लोहड़ी दहशती, बिहू  नृत्य उमंग। 
खिले कृषक मुस्कान मुख,रंक गेह सुखरंग ।।५।।
शिक्षा का आलोक जग,हरे मूढ़ तम स्वार्थ। 
पोंगल मोपुर हैं विविध , बने पर्व परमार्थ।।६।।
वैज्ञानिक व सनातनी , मकर राशि रवि भान।
खुशी शान्ति समरस सुखी , सब समान उत्थान।।७।।
मिलें साथ निष्पाप मन , मिटे सकल जग भ्रान्ति। 
सत्यरथी चल राष्ट्रपथ , अर्थ पर्व संक्रान्ति।।८।।
माने निज उन्नति वतन , सबल सुखद चहुँओर।
खिचड़ी सम समरस बने,जन जीवन हो भोर।।९।।
मंगल हो संक्रान्ति यह,भारत हो सुखधाम।
रहे शान्ति,दहशत मिटे , स्वच्छ प्रकृति अभिराम।।१०।।
रहें स्वस्थ जनता वतन, हों कर्मठ इन्सान।
हों उदार ईमान पथ , बनें राष्ट्र  वरदान।।११।।  
कवि निकुंज शुभकामना , मिले खुशी  नवनीत ।
मिटे वैर दुर्भाव मन ,जन गण हो नवप्रीत।१२।।
कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नवदेहली


बिक जाएँ चंद पैसों पर लोग सही मैं खुदका ईमान बना रहने दूँगा

*नाम*- *नीतेश उपाध्याय*
*पता*- *ग्राम केवलारी उपाध्याय पोस्ट हिनौती पुतरीघाट तह-तेंदूखेडा जिला दमोह 470880 मध्यप्रदेश*
*मो*- *7869699659



बिक जाएँ चंद पैसों पर लोग सही मैं खुदका ईमान बना रहने दूँगा
न बदलूँगा रंग औरों की तरह मैं खुदको इंसान बना रहने दूँगा 


कौन किस शहर से क्या हुनर सीख आया मालूम नहीं मुझे 
मुझे समझ सके हर कोई बस इसी खातिर 
अपनी शख्सियत को आसान बना रहने दूँगा   


 मैं कहीं और भी नजर आऊँ तो जुदा नजर आऊँ 
सब मुझे पहचान सके ऐसा खुदमें एक निशान बना रहने दूँगा 


जहाँ बस खुदके लिए जीना औरों की तकलीफों से अव्वल हो 
ऐसे लोगों के कायदों से खुदको अंजान बना रहने दूँगा 


साँस हो भी और साँसों का कुछ मतलब न हो 
ऐसी चलती हुई साँसों से भी खुदको बेजान बना रहने दूँगा  


जहाँ होना भी अपना मुनासिब न हो लोगों को यारो
ऐसी महफिलों से दूर कहीं  खुदको को वीरान बना रहने दूँगा 


जहाँ कदर न हो जज्बातों की 
जहाँ कदर न हो एहसासों की
ऐसी लोगों की जमातों से खुदको श्मशान बना रहने दूँगा


बिसरी हुई यादें

*बिसरी हुई यादों के मंज़र निकलने लगते हैं।*
*सीने में चुभ-चुभके खंज़र निकलने लगते हैं।।*
*क्या कमी रह गई, जो पूरी होती नहीं आरज़ू।*
*बोई जहाँ भी फ़सल, खेत बंज़र निकलने लगते हैं।।*
*मेरी क़िस्मत ने तो, आस्तीन में पाले हुए हैं साँप।*
*निकालूँ विष, तो ख़ून के समंदर निकलने लगते हैं।।*
*या ख़ुदा कर तो रहम, अब कुछ मेरी क़िस्मत पर।*
*माँगू थोड़ा सुक़ून, तो बवंडर निकलने लगते हैं।।*


*डॉ. ज्योति मिश्रा*
*बिलासपुर ( छत्तीसगढ़)*


आवाज मंशा शुक्ल अंबिकापुर सरगुजा

विषय   आवाज
 विधा   छन्दमुक्त


आवाज हूँ, मै आवाज हूँ
आवाज हूँ, मै उस बेटी की
करती चित्कार माँ के कोख से है।
मुझे मत  मारो,  मुझे  जीने दो
आने  दो, जग में आने  दो।
प्रतिरूप ही हूँ,माँ तेरा
तेरी ही तो परछाई हूँ, कँरुगी
स्वप्न तेरे पूरे जो माँ  रह गये अधूरे है
संकीर्ण विचारों को त्यगो ,बेटे बेटी में
भेद नही ।आने दो जग में आने दो
मुझे मत मारो मुझे  जीने दो।


आवाज हूँ मै, उस बेटी की 
जो   सरेराह  लुटी  जाती
नोची जाती काटी जाती
एसिड से जलाई जाती है
करती गुहार न्याय की है
अब और नही,अब और नही
कब तक   होगे यूँ  अत्याचार
जीने दो  हमको  जीने  दो।


आवाज हूँ मै उस दुल्हन की
अधजली पड़ी जो शैय्या पर
दुख सहे , सहे है अत्याचार
दहेज की पीड़ा से पीड़ित है
करती है प्रार्थना प्रभु से वो
बेटी  का जीवन  मत  देना
है जन्म कठिन है,है मृत्यु कठिन
  दूभर है  उसका जीना।


आवाज हूँ मै उस मात पिता की
जिनको अपनों ने  छोड़  दिया
बेबस  बेहाल  हाल  उनका
जीने  को  मजबूर  किया
नही मोल जिन्हे माँ की ममता का
नही मान पिता के  प्रेम का है
दो वक्त  की  रोटी दे  न सकें
हालत पर उनकी छोड़ दिया।
आवाज हूँ मै ,  आवाज हूँ मै।


मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर


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