प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद बाल कविता चिंटू और गौरैया

प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद


बाल कविता*
************
*चिंटू और गौरैया*


चिन्टू लाल  चिन्टू लाल
गौरैया के बाल गुपाल
नीड में चहकें दू को छौने
मैया के बिन छौने पौने।।


गौरैया दाना ले आती
चहके दाना उन्हें खिलाती
कभी कभी मेरे घर आती
आंगन से दाने ले जाती।।


अम्माँ उसको पास बुलाती
बिठा हाथ पर फिर सहलाती
उन्हें देख के खूब चहकती 
उससे भीत मुडेर बहकती।।


पकड़े मिंटू चुनिया रानी
लाते दाना देते पानी
फुदके आंगन लगे सुहानी
हंसती काकी गुड़िया नानी।।


लेकर दाना फुर्र उड जाती
भोलीभाली सबको भाती
मस्त मगन पंचम सुर गाती
मेरा मन हर कर ले जाती।।


प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद


हीरालाल

*ग़ज़ल*
221 2121 1221 22/212


पर्वत  की दिल को आस थी, तिनका नहीं मिला।
इंसान   का  इंसान   से  रिश्ता   नहीं  मिला।


शिकवा  गिला  जिसे न कोई ज़िन्दगी से हो
इंसान    कोई   दह्र   में  ऐसा  नहीं  मिला।


औरों की ज़िन्दगी  है  क़रीने  से  चल रही
हमको  ही  ज़िन्दगी का तरीका नहीं मिला।


तब  तक  ही बस शरीफ़ है दुनिया में आदमी
जब तक  गबन  का  ठीक सा मौका नहीं मिला।


तूफ़ाँ  से  डर  के  जिसने भी  पतवार छोड़ दी
डूबा  भँवर  में  उसको  किनारा  नहीं मिला।


किस्मत अलग अलग  लिखा के आये हैं तभी
*हीरा* सभी  को  एक  सा  मौका नहीं मिला।


                     हीरालाल


दह्र-संसार


महेंद्र जैन 'मनु' इन्दौर (म० प्र०) मनहरण घनाक्षरी कल किसने देखा हैं

महेंद्र जैन 'मनु'
९८२७६१०५००
इन्दौर (म० प्र०)
मनहरण घनाक्षरी
कल किसने देखा हैं ?
●●●●●●●●●●●●
कल पे भरोसा करे ।
कल फिर कल करे ॥
कल नहीं आने वाला ।
कल - कल बोलता ॥१॥


देखता  ही  रहा करे ।
जनम  मरन  करे ॥
कल किसने है देखा ।
पल - पल तौलता ॥२॥


यहाँ वहाँ मारा फिरे ।
जनम  गवाँरा  करे ॥
अँन्धियारी गलीयों में ।
दिन रात डोलता ॥३॥


बिन ताला चाबी लिये ।
कर्महीन  भाग्य  लिये ॥
कल  पर  बात  रखे ।
कैसा ताला खोलता ॥४


कवि हलधर जसवीर गीतिका(हिंदी) ---------------- धार में पतवार अटकी हाल

कवि हलधर जसवीर गीतिका(हिंदी)
----------------


धार में पतवार अटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !
सिंधु ने ही नाव सटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !


जाल में ऐसे फसे हैं आज तक नहि काट पाये ,
शीश पर तलवार लटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !


काँच जैसे जड़ गए हम  पत्थरों की चौखटों में ,
देह यह  सौ बार चटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !


बोझ हम लादे रहे हैं मौन व्रत धारण किए है ,
राज की फोड़ी न मटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !


हम जिसे पूजा किए माना हमारा देवता है ,
बात उसकी आज खटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !


भ्रात हम कहते रहे हैं आज तक जिन ढोंगियों को ,
वो लगाते दाब पटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !


आग सड़कों पर लगाते घूमती हैं अब जमातें ,
देश की इक कौम भटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !


गम भुलाने के बहाने पी रहा क्यों  रोज" हलधर " ,
रात दारू खूब गटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !


                             हलधर -9897346173


संजय जैन (मुम्बई) वतन से प्यार करो* विधा : गीत

संजय जैन (मुम्बई)


वतन से प्यार करो*
विधा : गीत


छोड़ दिया साथ तो,
क्या में मार जाऊंगा।
अब में दिल किसी और
से कभी लगाऊंगा नही।
मुझको अब तक 
जितने मिले साथी,
सब के सब वो 
दिल से खेलने वाले थे।
गैरो की हम क्यों बात करे
हम तो अपनो के हाथों ही लूटे।।


अब किसी पर मुझे 
यकीन होता नही।
इसलिए दिल किसी से हम अब लगता नही।
छोड़कर प्यार मोहब्बत को हम,
अब वतन से दिल 
हम लगाने लगे।
और भारत माँ पर
कुर्बान होने लगे।।


दिल टूटने पर 
में मारने गया।
जैसे ही नदी में 
कूदने लगा।
पीछे से किसी ने 
मुझे पकड़ लिया।
क्यो मोहब्बत के लिए 
जान देते हो तुम।
तुम वतन से मोहब्बत 
अब करने लगो।
और कर जाओ 
कुछ ऐसा तुम,
नाम तेरा अमर 
हो जाये यहां।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
16/01/2020


कुमार कारनिक  (छाल, रायगढ़, छग)    सुबह सबेरे जय हो भारत

कुमार कारनिक
 (छाल, रायगढ़, छग)
   सुबह सबेरे
     """""""""""""""""""
  मनहरण घनाक्षरी
      *जय हो*
~~~~~~~~~
जय   हो   भारत  देश,
यहां   भिन्न    परिवेश,
सीमा   पर  है   प्रहरी,
       हौसला बढ़ाएंगे।

चौकस    है    हरपल,
सैनिक   है    वीरबल,
तभी  तो  सुरक्षित  है,
      सम्मान बढ़ाएंगे।
🏵🇮🇳
बरसात  हो  या  सर्दी,
खड़े सीना तान  वर्दी,
तेज     इनके    नजर,  
       बच नहीं पाएंगे।
🔅🇮🇳
करें    उनको    वंदन,
वीरों  का  अभिनंदन,
बचाते  देश  के लाज,
      हिम्मत बढ़ाएंगे।



कुमार🙏🏼कारनिक
 (छाल, रायगढ़, छग)

                  *******


कुमार नमन लखीमपुर-खीरी

नाम- कुमार नमन
पता-लखीमपुर-खीरी
मो0-8933000607
#घनाक्षरी छंद#
घट यदि पापियों के, पाप का जो टूट गया,
फिर कितना भी जोड़ो, जुड़ नहीं पाएगा।
काल का बुलावा यदि, एक बार आया तुम्हें,
फिर कितना भी टालो, टल नहीं पाएगा।
सौ गलतियां तुम्हारी, भले माफ़ कृष्ण करे,
किंतु यह शिशुपाल, बच नहीं पाएगा
माँ की जय बोलने से, तू जो परहेज़ करें,
सुन तेरा वंश अब, बच नहीं पाएगा।


-कुमार नमन
लखीमपुर-खीरी


कैलाश , दुबे ,होशंगाबाद

जो रब के करीब होता है ,


उसके एक हाथ में तस्वी ,
दूसरे हाथ में कासा होता है ,


उठते हैं उसके हाथ दुआ के लिए ,


तब ही परवरदिगार अम्न में शान्ति ,
सुख और सुकून देता है ,


कैलाश , दुबे ,


राजेंद्र रायपुरी कलयुगी दोहे

🤣🤣     कलियुगी -  दोहे     🤣🤣


हाथ-पाँव को  बाँध कर, पति पीटे जो रोज।
है   वही  सौभाग्यवती,  हुई  नई   है   खोज।


पति  परमेश्वर  को  अगर, मारो  डंडे  चार।
तो  दुख  आवे  घर  नहीं, सुखी रहे परिवार।


जो पत्नी निश दिन करे,निज़ पति से तक़रार।
बिन  माँगे  उसको मिले, सौ  तोले  का  हार।


पलंग बैठ  पत्नी अगर, पति से काम कराय।
दानपुन्य कुछ बिन किये,स्वर्ग लोक को जाय।


                ।।राजेंद्र रायपुरी।।


सन्दीप सरस साहित्य सृजन मंच बिसवां सीतापुर स्वाभिमान के भाव लजाना ठीक नहीं।

सन्दीप सरस साहित्य सृजन मंच बिसवां सीतापुर


स्वाभिमान के भाव लजाना ठीक नहीं।
गिरकर कोई चीज उठाना ठीक नहीं।
आयोजन कितना ही हो विशिष्ट लेकिन,
बिना बुलाये आना जाना ठीक नहीं।
🔵 सन्दीप सरस


अवनीश त्रिवेदी "अभय" मुक्तक

बहुत अजीज  है तू  मुझे  ये  सबसे  कहा  जाता नही।
बिना  तेरे  अब  मुझको  ऐसे  तन्हा  रहा  जाता  नही।
जिंदगी की सभी तकलीफें तो कट ही जाती है "अभय"।
अकेलापन   कटता  पर  अधूरापन  सहा  जाता  नही।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार

-निकेश सिंह निक्की
 जन्म:-2/11/1999
 जन्म स्थान-खोकसा रसलपुर दलसिंहसराय समस्तीपुर बिहार
 कृति:-अखण्ड भारत (काव्य संग्रह)
जागो पुनः एक बार (काव्य संग्रह)
जनक्रांति (काव्य संग्रह)
स्मृति के पार (कहानी संग्रह)
पति परमेश्वर (नाटक)
अवध के राम (महाकाव्य) अपूर्ण
प्रकाशित दीक्षा प्रकाशन दिल्ली
राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
सम्मान:-साहित्य गौरव सम्मान
हिंदी साहित्य अंचल मंच बिहार
काव्य गौरव सम्मान
मधुशाला साहित्यिक परिवार
उदयपुर राजस्थान
साहित्य सागर सम्मान
भारती साहित्य सागर मंच अररिया
साहित्य गौरव सारथी सम्मान
 साहित्य संगम संस्मरण नयी दिल्ली।


भारत गाथा 
     जिस भारत के ज्ञान निधि में,
     सकल विश्व नहलाता है।
     खड़ी नालंदा बता रही है,
      सकल विश्व ललचाता था।


     जिसके आगे मैक्समूलर भी,
     मां कह न फूल समाता था।
     इतिसांग भी जिसके गुण को,
     गाते ही थक जाता था।


     जब जगत में फैला था,
     तिमिर का व्यापक सम्राज्य।
     तभी लिखकर छोड़ा भारत,
      पावक का अनुपम इतिहास।


    पढ़ना लिखना कोई न जाने,
     सकल विश्व में कौन सिखावें।
     छः शास्त्र नव ग्रन्थ के ज्ञाता,
    सकल विश्व भारत को मानें।


    कहे निकेश भारत की गाथा,
    सकल विश्व में भाग्य विधाता।
     देकर सकल विश्व को ज्ञान,
     आज बनीं है स्वयं अंजान।


डॉ0 सुलक्षणा अहलावत विलक्षणा एक सार्थक पहल सम्मान सूची

विलक्षणा एक सार्थक पहल संस्था द्वारा चयनित सम्मानित होने वाले महानुभाव
कला एवं संस्कृति रत्न से सम्मानित होने वाली विभूतियां :


1. श्री संजय भसीन जी
2. श्री जगबीर राठी जी
3. श्रीमती सोनाली फौगाट


विलक्षणा रत्न से सम्मानित होने वाली विभूतियां :


1. श्रीमती सन्तरा देवी - खेल - हरियाणा
2. श्री शमशेर सिंह - समाज सेवा - बिहार
3. श्रीमती संतोष देवी - महिला सशक्तिकरण - राजस्थान
4. श्री संजय कुमार - समाज सेवा - हरियाणा
5. डॉ उषा देवी - शिक्षा - कर्नाटक


विलक्षणा समाज सारथी सम्मान से सम्मानित होने वाली संस्थाएं एवं विभूतियां :


1. श्री शिवशंकर बोहरा - शिक्षा - राजस्थान


2. डॉ गौरव सच्चर - शिक्षा - हरियाणा


3. श्री जय लाल स्वामी - समाज सेवा - गोआ


4. श्री कंवर भान - शिक्षा - हरियाणा


5. श्री मदन लाल - शिक्षा - हरियाणा


6. श्री नरेंद्र कुमार - शिक्षा - हरियाणा 


7. मानव मित्र मंडल, नरवाना - सामाजिक कार्य एवं महिला सशक्तिकरण - हरियाणा


8. वक़्त दें रक्त दें रक्तदान सेवा सोसायटी - रक्तदान - हरियाणा


9. अभिनव टोली, रोहतक - सामाजिक कार्य - हरियाणा


10.गुगन राम एजुकेशनल एण्ड सोशल वेलफेयर सोसायटी, बोहल (भिवानी) - शिक्षा एवं साहित्य - हरियाणा


11. श्री विनोद अत्रि - शिक्षा - हरियाणा


12. श्री अजय लोहान - शिक्षा - हरियाणा


13.. श्री सन्नी मलिक - सामाजिक कार्य - हरियाणा


14. श्री सुरेश गर्ग - पत्रकारिता - हरियाणा


15. श्री अजय वैष्णव - पत्रकारिता - हरियाणा


16. श्री सुखविंद्र सिंह मनसीरत - साहित्य - हरियाणा


17. डॉ मनीषा दुबे - साहित्य - मध्य प्रदेश 


18. श्री राजेश - शिक्षा - हरियाणा 


19. श्रीमती दर्शना कुमारी - शिक्षा एवं महिला सशक्तिकरण - हरियाणा


20. श्री सुरेंद्र कुमार मोरवाल - शिक्षा - हरियाणा


21. श्री नवीन कुमार नागपाल - शिक्षा - हरियाणा 


22. डॉ लता एस पाटिल - शिक्षा एवं शोध - कर्नाटक


23. डॉ बी संतोषी कुमारी - शिक्षा एवं शोध - तमिलनाडु


24. डॉ मन्जुनाथ एन अंबिग - शिक्षा एवं शोध - केरल


25. डॉ विजय महादेव गाड़े - शिक्षा - महाराष्ट्र


26. डॉ श्रीकृष्ण काकाणी - शिक्षा - आंध्र प्रदेश


27. श्रीमती सीमा चावला - शिक्षा एवं समाज सेवा - हरियाणा


28. श्री प्रकाश चँद अरोड़ा - शिक्षा एवं समाज सेवा - हरियाणा


29. श्री राजवीर सिंह रोहिल्ला - समाज सेवा - हरियाणा 


30. श्रीमती अम्बिका शर्मा - महिला सशक्तिकरण - हरियाणा 


31. श्री अशोक कुमार गुप्ता - नागरिक सुरक्षा - उत्तर प्रदेश


32. श्री मनजीत सिंह - शिक्षा - हरियाणा


33. श्री विक्रम डाला - समाज सेवा - हरियाणा


34. श्री राजेश कुमार (राष्ट्रीय शिक्षक अवार्डी) - शिक्षा  - हरियाणा 


35. श्री राजेश कुमार - शिक्षा - हरियाणा


36. श्रीमती दलवंती सहरावत - शिक्षा - हरियाणा


जयप्रकाश चौहान अजनबी पता -जिंदोली ,तहसील-मुण्डावर ,अलवर (राजस्थान) -अपने -पराये

नाम :- जयप्रकाश चौहान *अजनबी *


पता:-
       ग्राम पोस्ट ऑफिस -जिंदोली
      तहसील-मुण्डावर
      जिला -अलवर (राजस्थान)
       पिनकोड नम्बर :-301404


सम्पर्क सूत्र:-9672172698...1
                  6378046460...2


शीर्षक:--अपने -पराये


आजकल औपचारिक ही रह गए हैं अपने,
जैसे रात को हम नींद में देखते हैं सपने।
वैसे दिखाते बहुत है अपनापन का भाव,
जरूरत पर लगाते है शब्दों का आडम्बर जपने।


अपने वो जो हर समय पर काम आये,
वो नही जो विपत्ति में भी कन्नी काट जाये।
जो देते है अक्सर प्रतिकूलता में धोखा,
वो नाम के अपने वैसे होते हैं पराये।


अपनत्व में हमेशा होती हैं भरपूर समाई,
ना हो जिनमे कभी मतभेद व लड़ाई।
जरूरी नहीं कि वो हो अपने समाज का,
वे लोग ही करते हैं एक-दूसरे की भलाई।


जीवन में मैंने अपने भी बहुत देखे ,
जीवन में मैंने पराये भी बहुत देखे।
जो देते है सम्बल हमेशा सुमार्ग का ,
बस वो शख्स ही होते हैं सगे भाई सरीखे।


आजकल के दौर में अपना -अपना ना रहा,
जो था प्यार समाज में अब वो प्यार ना रहा।
पहले जैसा सा  पक्का वो ईमानदार ना रहा,
शीत में तपते थे जो हाथ वैसा अब तपना ना रहा।


जयप्रकाश चौहान *अजनबी*


तरीके हैं मेरे पास ऐसे पचास
मेरा नाम हैं * जय प्रकाश *


बचपन से पाला मुझे आशीर्वाद दिया पूरा।
पिता हैं सोनाराम ,माता हैं मेरी कश्मीरा।


जहाँ पर मैंने पहली बार अपनी अखियाँ खोली।
वो मेरा छोटा सा गाँव हैं मेरी जन्मभूमि जिंदोली।


वैसे दिखने में बहुत सीधे - सादे हैं हम,
शब्द बाणों से दिखाते हैं अपने तेवर।
जो दादा अलीबक्स की कर्मभूमि ,
वो  तहसील   हैं   मेरी  मुण्डावर।


साहित्य प्रेमी तो हम हैं ही,
अपने जिले के हैं हम लवर।
हैं जो राजस्थान का सिंहद्वार,
वो ही जिला हैं मेरा " अलवर"।


देश की आन,बान, शान
और  शूरवीरों को  खान।
जहाँ की सुनहरी धरती ,
वो राज्य है मेरा "राजस्थान"।


विभिन्नता में एकता हैं जिसकी विशेषता,
भिन्न- भिन्न बोलियों का हैं जहाँ परिवेश।
हिमालय जिसका मस्तक विदेशी भी देते दस्तक,
हैं जो बहुत महान वो हैं मेरा "भारत देश"।


जयप्रकाश चौहान * अजनबी*


आशुकवि नीरज अवस्थी समान सौ बरस का आशाओं का हुआ खात्मा

 समान सौ बरस का पल की खबर नहीं है बिल्कुल सच है नील गगन में उड़ने वाले धरती को पहचान,किसी का रहा नही अभिमान इस नश्वर संसार में कुछ भी नहीं रहने वाला कल क्या होगा कोई नहीं जानता पल में पल से पल में क्या हो जाए मानव तेरे शरीर का कुछ पता नहीं तकदीर का बहुत से भजन चेतावनी द्वारा समय-समय पर विद्वानों ने समाज को उद्बोधन कराया है । आशाओं का हुआ खात्मा दिल की तमन्ना बनी रही , जब परदेसी हुआ रवाना सुंदर काया पड़ी रही हम कितना मजबूर होते हैं समय-समय पर बहुत से काम ऐसे होते हैं जो हम न चाहते हुए भी करते हैं और बहुत से काम ऐसे होते हैं जिनको चाहते हुए भी नहीं कर पाते हैं आपके हाथ में कुछ भी नहीं है और वास्तव में वह परम सत्ता दुनिया बनाना और बनाके फिर चलाना बस उसी का काम है, बड़ा जोरदार जिसका इंतजाम है इसलिए ऐसा नहीं है कि हम किसी भी चीज का संचय न करें क्योंकि जब तक जीवन है तब तक आवश्यकताएं है और उन की पूर्ति के लिए संसाधनों का भी प्रयोग अति आवश्यक है ।किंतु अगर हमारे पास में कोई संसाधन है और किसी व्यक्ति को उसकी आवश्यकता है तो उसकी पूर्ति हमें करनी चाहिए क्योंकि आपकी सहभागिता बहुत जरूरी है । *जब हम नहीं होते हैं तब चार कंधों की आवश्यकता पड़ती है वह किसी दूसरे के ही होते हैं* इसलिए किसी भी चीज के ऊपर गुमान नहीं करना चाहिए और उस परम सत्ता के प्रति सदैव तन मन धन वचन कर्म से समर्पित रहना चाहिए यह हमारे व्यक्तिगत विचार हैं आशा है आप लोग पसंद भी करेंगे।
 धन्यवाद
 आशु कवि नीरज अवस्थी खमरिया पंडित खीरी


              विवेक अग्निहोत्री रतौली सीतापुर अवधी काविता प्रधान बनाए देव

हे भगवन्ना याक दाँउ हमका परधान बनाइ देउ  ।
ए. सी.वाली कारइ बढ़िया आधा दर्जनु खरिदाइ देउ .।।
फिरि गर-गर-गर-गर चला करब
न सर्दी-गर्मी कछु लागी ।
सगरा मनई फिरि गाँउं भरेक हाँजू- हाँजू पाछे लागी ।।
हम ध्यानु कोऊ वर नाइ द्याब नेकिल आश्वासनु द्याब खूब ।
यहिके एतने वहिके वतने रुपया पइसा फिरि ल्याब खूब ।।
अबकी चुनाउ मा सबकी मति हमरेन वरिहाँ भरमाइ देउ ।
हे भगवन्ना याक दाँउं हमका परधान बनाइ देउ ।।
कगजन पर सगरे काम करब न भुँइं पर तनिकउ करब काम ।
वृध्दा विधवा पेन्सनि तक का पइसा न छ््वाड़ब दाम-दाम ।।
कालोनी अउ शउचालइ का एकधौं हम सबका सखरि ल्याब ।
नेकिल जब अइहँइं तब सगरी धीरेन- धीरे हम डकरि ल्याब ।।
जब नम्बरु धरब मनरेगा पर तब रुपयन की खरही लगिहँइं ।
जिनके खाते से दस हजार निकसी उइ दुइ सै लइ भगिहँइं ।।
नाली अउरु खड़ंजा का पइसा कइसेउ निकसाइ देउ ।
हे भगवन्ना याक दाँउं हमका परधान बनाइ देउ ।।
हम गाँउंक अइस विकासु करब भों-भों-भों-भों मनई रोइहँइं ।
हमरी परधानिकि दइ मिशाल दोसरे गाँवन का समुझइहँइं ।।
आगा-पाछा सबु सोंचि लेहेउ फिरि पंच अउरु परधान चुनेउ ।
सब खूब बकइहँइं तुमका पर तुमहूँ कुछु अपने मन की सुनेउ ।।
देखेउ-भालेउ,जानेउ- समझेउ फिरि चिंतनु-मंथनु करेउ खूब ।
जेहिते ई पाँच साल तुमका काटइ मा फिरि लागइ न ऊब ।।
हम कहब जउनु ऊ करब नाइं नेकिल हमका जितवाइ देउ ।
हे भगवन्ना याक दाँउं हमका परधान बनाइ देउ ।।
              विवेक अग्निहोत्री 
              (9455443343)
               (20-12-2019)


सुनीता असीम आगरा

कभी तो दूर करो मेरी ये शिकायत भी।
करोगे सिर्फ कभी हमपे कुछ इनायत भी।
****
कि पाप के हो गए आज तो  सभी पेशे।
नहीं बची है जलालत से अब वकालत भी।
****
लगाए तुमने थे इल्जाम तो बहुत सारे।
कभी तो सुन लेते उनकी ज़रा हकीकत भी।
****
अगर चले गए हम तोड़के कभी तुमको।
नहीं सुनेंगे रही कोई जो शिकायत भी।
****
दो बोल प्यार के क्या सुन लिए जरा तुझसे।
कि उसके बाद भली लगती है जलालत भी। 
****
सुनीता असीम
१६/१/२०२०


एस के कपूर श्री हंस बरेली मुक्तक स्वर्ग से भी सुन्दर संसार

स्वर्ग से भी सुन्दर संसार
मुक्तक


राग  द्वेष    भेद     भाव   की
गिर   जाये  हर  इक  दीवार।


भाषावली से ही मिट जाये हर
शब्द  जो   लाता हो तकरार।।


संवेदना सदभावना बस  जाये
हर   दिल   में    सबके  लिए।


धरती  पर  तब    बन  जायेगा
स्वर्ग   से  ही  सुन्दर    संसार।।
रचयिता एस के कपूर श्री हंस बरेली
मोब   9897071046   
8218685464
स्वर्ग से भी सुन्दर संसार


एस के कपूर श्री हंस बरेली मुक्तक स्वर्ग से भी सुन्दर संसार

स्वर्ग से भी सुन्दर संसार
मुक्तक


राग  द्वेष    भेद     भाव   की
गिर   जाये  हर  इक  दीवार।


भाषावली से ही मिट जाये हर
शब्द  जो   लाता हो तकरार।।


संवेदना सदभावना बस  जाये
हर   दिल   में    सबके  लिए।


धरती  पर  तब    बन  जायेगा
स्वर्ग   से  ही  सुन्दर    संसार।।
रचयिता एस के कपूर श्री हंस बरेली
मोब   9897071046   
8218685464
स्वर्ग से भी सुन्दर संसार


आलेख मेरा भ्रमण भाष

नाम-  पूर्णिमा  शर्मा "पाठक"                           168/11/AA अनुग्रह  कुंदन नगर अजमेर                      मेरा भृमण भाष संख्या 9588873850


माँ की यादें
जहाँ जहाँ नज़र मेरी गई,
यादें निशानी आपकी।
आसुओं से आँख के, झरती हैं यादें आपकी।
देखूं जहाँ में दिख रहीं हैं, रिक्शो की प्यारी कतारें।
उनके ऊपर आ रहीं, जैसे सवारी आपकी।
 संसार में जो लोग हैं,वो दोस्त कम दुश्मन हज़ार।
अहसास करवातें मुझें वो गैरहाजरी आपकी।
जब कभी मिलता हैं कोई, निष्कपट मन से मुझें।
अहसान से सर झुकता हैं, कि ये निशानी आपकी।
सुनु किसी के प्रिय की बातें, या बिछड़े प्यारा कोई।
आतीं यादें और रुलाती हैं, जुदाई आपकी।
नया पुराना जानतीं हूँ, रोती भी हूँ हंसतीं भी हूँ।
नया पुराना कुछ नहीं बस यादें ताज़ा आपकी।
क्या मिला और क्या नहीं, हैं क्या फिकर इस बात की।
अंत में तो पास मेरे, यादें अनोखी आपकी।


शिक्षक सर्वोपरि है

राहुल मौर्य 'संगम' (स0 अ0)
प्रा0 वि0 कटैला
वि0 ख0 धौरहरा
जिला- लखीमपुर खीरी
मोबाइल- 9452383538
स्वरचित
विषय - "शिक्षक सर्वोपरि है"
विधा- कविता


शिक्षक जीवन सदियों से ही, कहता नई कहानी है ।
वसुधा के हिय पर हर-पल , लिखता नई कहानी है।।


शिक्षक कभी न बूढ़ा होता,
शिक्षक कभी न मरता है।
चक्षु ज्ञान पटल प्यालों से,
वह पात्र कुम्भ सा गढ़ता है।।


विश्व पटल  के  सम्मुख वह, कहता नई कहानी है ।
निर्झर नीरव नीर सा निर्मल,लिखता नई कहानी है।।


शिक्षक कभी नहीं इठलाता है,
शिक्षक कभी नहीं घबराता है।
जीवन की कठिन तपस्या से,
वह नव भारत को चमकता है।


खून-पसीना भी उसका अब, कहता नई कहानी है ।
भरकर हुँकार रण-कण पर, लिखता नई कहानी है।।


शिक्षक टेंशन का मारा है,
शिक्षक पेंशन का मारा है।
दिन ढल जाने पर अक्सर,
विधु का एकमात्र सहारा है।


शिक्षक जीवन सदियों से ही, कहता नई कहानी है ।
वसुधा के हिय पर हर-पल , लिखता नई कहानी है।।


प्यार का एकपल सुहाना लगता है

नाम - लक्षमण दावानी
पता - आई - 11 पंचशील नगर
         नर्मदा रोड़ जबलपुर म.प्र.
मो.न. - 9424708598
कविता - गज़ल


2122  2122  2122
प्यार का इक पल सुहाना चाहता हूँ
गम  मिटा कर  मुस्कराना चाहता हूँ


दूर  कर  के  अँधेरे अब ज़िन्दगी से
आसमाँ  पर  जग मगाना चाहता हूँ


ज़िन्दगी को दौड़ में जो खो दिया है
चैन   ओ   सुकून  पाना  चाहता  हूँ


दरमियाँ  है  फासला जो  भी हमारे
प्यार  से  अपने  मिटाना  चाहता हूँ


चुभे है  जो प्यार के नश्तर दिलों में
आँसुओ  से   वो  हटाना  चाहता हूँ


सौंप कर  पतवार  अब हाँथो में तेरे
पार  कस्ती  को  लगाना  चाहता हूँ


जो कियाहै खुदसे वादा हमने यारो
वो  मुहब्बत  से  निभाना चाहता हूँ
     ( लक्ष्मण दावानी ✍ )
20/4/2019


अजन्मी बेटी

*अजन्मी बेटी*


तू शायद मुझे बचा लेती
एक बार जो तुझको माँ कहती
ओ माँ, मेरी माँ,कह देती
तू गोद में मुझे उठा लेती,
एक------------
मैंने तो सुना था माँ अपने
बच्चों का दर्द समझती है
एक चोट लगे बच्चे को तो 
माँ सौ सौ आँसू बहाती है
मैं तडप रही हूं दर्द से कितना
फिर क्यों तू समझ नहीं पाती
मेरे कोमल तन के माँ क्यों
टुकड़े टुकड़े करवा देती
एक-------------
माँ की ममता से बच्चों की
दुनिया रोशन हो जाती है
मेरे लाल को मेरी उमर लगे
ये भाव हृदय में लाती है
मैं भी तो कुछ पल जी लेती
क्यों सांस मेरी रूकवा देती
एक---------------
तेरे बच्चों का माँ तुझको
सुंदर सा एक संसार मिले
मुझको तो जीवन मिला नहीं
माँ तुझको तेरा जहाँ मिले
पाने को तेरा प्यार मुझे माँ
जीवन फिर एक बार मिले
जीवन फिर एक बार मिले
नाम -मीना विवेक जैन वारासिवनी
पता-जैन दूध डेयरी दीनदयाल चौक वारासिवनी
मोबाइल नंबर-8821821849


काव्यरंगोली नोजवान कविताये

नाम-दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
पता/DC-119/4, स्ट्रीट न.310
कलकत्ता-700156.
मोबाईल
 न.-9434758093


"काव्य रंगोली"
जीवन एक अनबुझ पहेली ,
इसमें भरी है काव्य रंगोली ।
जीवन से करो इतना प्यार ,
रंगोली में उतने रंग हजार ।
काव्य के है जैसे रंग हजार ,
जीवन उतना ही सुंदर संसार।
रंग रूप अनेक,अनेक भाषा बोली,
अनोखी है ये अपनी काव्य रंगोली।
संबंध है जितना गहरा दामन चोली,
उतनी ही शानदार है काव्य रंगोली।
छटा प्रकृति की ऋतु और हरियाली,
सब इसमें समायी है काव्य रंगोली ।
जीवन हो जाता अंधेर काली ,
होती नहीं यदि काव्य रंगोली ।
प्रेम, त्याग,मिलान ,विरह की लाली,
सुखमय जीवन जहाँ काव्य रंगोली।
माया,मोह,ममता,माता,पत्नी,साली,
सब रंग अपने में समेटे काव्य रंगोली।
व्रत,त्यौहार,ईद,दीवाली और होली ,
"दीनेश" मिले सब,जहाँ काव्य रंगोली।
आज विश्व हिंदी दिवस की लाली,
सब मिल के मनाए काव्य रंगोली।
दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता


शीर्षक-“नौजवान "
न मंदिर बनाएंगे ,न मस्जिद बनाएंगे 
बेघरों के लिए हम घर बनाएंगे
न गीता पढ़ेंगे , न कुरान पढ़ेंगे
भाईचारे का संदेश दे जो 
ऐसी कोई किताब पढ़ेंगे 
बेसहारों का सहारा बनेंगे 
भूखों को खाना खिलाएंगे 
हम नौजवान कुछ ऐसा करेंगे 
बुरी नजर से देखे अगर कोई 
हम उसकी  नजर झुका देंगे 
उसका इट का जवाब हम पत्थर से देंगे 
अब न किसी का सर कटने देंगे 
अब न किसी का सुहाग उजड़ने देंगे 
अब न किसी बलात्कारियों को बख्शेंगे
अब हम युवा कुछ ऐसा करेंगे 
निर्भया निर्भय होकर बेखौफ 
सड़कों पर विचरण करेगी
ऐसा वातावरण हम तैयार करेंगे 
हम युवा कुछ ऐसा करेंगे 
अब न उजड़ने देंगे दलितों की बस्तियाँ
अब न जलने देंगे दहेज की आग में बेटियां 
समाज के हर कुरीतियों को मिटायेंगे 
हम युवा कुछ ऐसा करेंगे 
ऊंच-नीच का कोई भेद न रहेगा
जाती-पाती का कोई खेलना न रहेगा 
हर तरफ अमन-चैन का राज रहेगा 
हम नौजवानों का ऐसा काज रहेगा 
छूत-अछूत का भेद सब  मिटा देंगे 
हम नौजवान कुछ ऐसा करेंगे 
देश का नाम रोशन करेंगे 
हम युवा कुछ ऐसा करेंगे
दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"  कोलकाता


प्रतिरूप कविता

नाम      नीना महाजन


शिक्षा - एम.ए., बी.एड.


पता      A-904
             गौर कास्केड
            राजनगर एक्सटेंशन
            गाजियाबाद
            उत्तर प्रदेश


ईमेल     neenamjn@gmail.com



मैं नीना महाजन एक ग्रहणी हूं मैंने अपनी संपूर्ण शिक्षा दिल्ली में पूर्ण की है और वर्तमान में परिवार सहित एनसीआर में रहती हूं ।
                कोशिश करती हूं कि लेखनी ऐसी हो जिससे सकारात्मक सोच को बढ़ावा मिले।
 दिमाग में उत्पन्न विचारों , कल्पनाओं को कागज पर उकेरना ही एक लेखक की कला है ।
      महत्वपूर्ण है...शब्दों और भावनाओं का जुड़ाव इस तरह हो कि एक नई कहानी , एक नई रचना बनती रहे।



              मेरी अनेक रचनाएं विभिन्न पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुकी हैं ।
       तीन कहानियों का कुकू एफएम में प्रसारण हुआ है।
   और विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा 2४ सम्मान पत्र प्राप्त हो चुके हैं।


प्रतिरूप



देखती हूं तुम्हें 
खुले नभ में
       पंख पसारे... 
सोचती 
आती तुम कुछ पल 
        पास हमारे 


कुछ किस्से बांटती... 
         साथ तुम्हारे
दिल में छुपी दास्तां 
     सुनाती तुम्हें... सुनाती तुम्हें 
     व्याकुल स्वर में गीत अनेक 


क्यों... 
       डरती हो मुझसे
 क्यों... 
पास नहीं आती हो मेरे 
क्यों... 
आसमां में उड़ जाती हो 


क्यों… मैं
            ना तुम संग उड़ पाती हूं 
गिरती , बिखरती , फड़फड़ाती हूं.. 


तुम्हारे जैसा 
              अपने अंदर
 मैं भी इक घोंसला बनाती हूं ...
            फुदकती इधर-उधर 
हवा में नाचती तुम संग
           फिर ऊपर उड़ जाती हूं 


क्यों... 
तुमसे कुछ कह ना पाती 
      नि:शब्द मैं रह जाती


 अच्छा.. ... अच्छा तुम नहीं


    तुम्हारा प्रतिरूप ही ले आती 
  असली पिंजरा... 
मिट्टी की चिड़िया...
       बैठाती उसे 
जीवित होने का अहसास हूं पाती 


वो अनकहा गीत जो... ना 
    किसी को सुना पाती 
मेरा वह गीत
                तुम ही गाती…


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