एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।बरेली।।।।

*जीवन तेरा शमशान किसलिये है*
।*
*।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।*


इस  कदर  यह  गुस्सा और,
अभिमान  किसलिये  है।


उबलती  नफरतों   का  यह,
तूफान    किसलिये    है।।


इस  आग  में   जल  कर  तू,
भी    हो   जायेगा   खाक।


कह  उठेगा   तब   कि    तेरी,
दुनिया वीरान किसलिये है।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।


मधु शंखधर 'स्वतंत्र' प्रयागराज मधु के मधुमय मुक्तक कर्तव्यों से ही मिले, सदा नई पहचान

मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*


मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
◆कर्तव्यों से ही मिले, सदा नई पहचान।
कठिन डगर पर साथ दे, मनु जन बने महान।
कर्म करो फल छोड़कर, जानो सब यह बात,
श्रेष्ठ सदा  कर्तव्य है, देता है वरदान।।


◆कर्म दिखाए पथ नया, जो जन समझे ज्ञान।
कर्म पथिक को ही मिले, जीवन का  सम्मान।।
जो जन बैठे भाग पर,वो जन कोसे भाग,
कर्म करे कर्तव्य सा, वो ही बने महान।।


◆बाधा जीवन में मिले,कर्तव्यों के साथ।
जो जन बस कर्तव्य में, मिले सफलता हाथ।
जब मनु जीवन है मिला,  कर्तव्यों की ठान,
मधु कहती कर्तव्य के, साथ बसे हैं नाथ।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
🌹🌹 *सुप्रभातम्*🌹🌹


संजय जैन (मुम्बई) मेरी माँ मेरा आधार विधा : कविता

संजय जैन (मुम्बई)


मेरी माँ मेरा आधार*
विधा : कविता


कितना मुझे हैरान,
परेशान किया लोगों।
पर मकसद में वो,
कामयाब हो नहीं पाये।
क्योंकि है माँ का आशीर्वाद,
जो मेरे सिर पर।
इसलिए तो बड़ी से बड़ी, 
मुश्किलों से निकल जाता हूँ।।


धन दौलत से ज्यादा,
मुझे मेरी माँ प्रिये है।
तभी तो मैं भागता नहीं,
पैसों के लिए कभी।
पैसा और सौहरत हमें,  
 बहुत मिलती रहती है ।
क्योंकि मेरे साथ,
मेरी मां जो रहती है।।


पैसों की खातिर में अपनी,
मां को छोड़ सकता नहीं।
चाहे मुझे पैसा और सौहरत,
बिल्कुल भी न मिले।
पर मुझे पता है माँ से बढ़कर,
संसार में कुछ भी नहीं।
इसलिए तो मेरी माँ ही,
मेरे जीवन का आधार है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
17/01/2020


अंजना कण्डवाल नैना' 'नारी तेरे रूप अनेक'

 


अंजना कण्डवाल *'नैना'*


'नारी तेरे रूप अनेक'*


नारी एक माँ है तो,
नारी ममता का बिम्ब।
नारी अगर भार्या है तो,
नारी है आलम्ब।।


नारी एक बेटी है तो,
नारी है अभिमान।
नारी के हर रूप का,
करो नित सम्मान।।


नारी बिन घर आँगन सुना,
करो न तुम परिहास।
है सखी अगर नारी तो,
नारी है विश्वास।।


नारी है स्नेह अगर तो,
नारी भगनि का रूप।
नारी अगर गुरु है तुम्हारी,
तो है वो ज्योति स्वरूप।।



©®अंजना कण्डवाल *'नैना'*


सुमति श्रीवास्तव जौनपुर खो जाने दो  दिल कहता है

सुमति श्रीवास्तव
जौनपुर


खो जाने दो 


दिल कहता है कि जाने दो ,
अब ख्वाबों में खो जाने दो।
तुम प्रेम पुष्प बनकर मुझको ,
हृदय बाग में खिल जाने दो।।।
इन अधरों की  मुस्कान में ,
हम बन करके हास जिये ।
इन नैनों के दर्पण में तुम ,
प्रतिबिम्ब तुम्हारा बन जाने दो।।
हो गर्म स्पर्श इन साँसों का ,
जब धड़कन अपनी चलती हो।
इन नयी हृदय तरंगो को ,
मेरे दिल में बस जाने दो ।।
हो श्रृंगार मेरा तुझसे पूरा ,
मुझमें तेरा ही रूप मिले ।
बस विनती है मेरे प्रियवर ,
मुझकों खुद में बस जाने दो।।


सुमति श्रीवास्तव
जौनपुर


सन्दीप सरस, बिसवाँ कतरन  कब तक मैं प्रतिबिम्ब टटोलूँ परछाई के पीछे भागूँ,

सन्दीप सरस, बिसवाँ


कतरन 


कब तक मैं प्रतिबिम्ब टटोलूँ परछाई के पीछे भागूँ,
अपनापन अपना होता है मुझको अपनापन लौटा दो।



मेरी रीत मुझे प्रिय लगती,तुम्हें तुम्हारे स्वाँग मुबारक।
तुम्हें तुम्हारे उत्सव प्रिय तो मेरा दर्द हमेशा मारक।


कब तक ख़ुशी पराई बाँटू अपने सपने कहाँ सजाऊँ,
अपना घर अपना होता है मेरा घर आँगन लौटा दो।1।


क्योंकर इतना दुखी हृदय पर भार व्यथा का डाला जाए।
नयनों की पलकों से आँसू का न प्रवाह सम्हाला जाए।।


कब तक अपना दर्द सम्हालूँ आँसू पर बंदिशें लगाऊँ,
यदि स्वीकार न हो तो मेरी आहों का अर्चन लौटा दो।।2।


अब वे स्मृतियाँ बिसरा दो जहाँ बहक जाते थे सपने।
अब वे सारे पत्र जला दो जो भी तुम्हें लिखे थे मैंने।


अपने उस रूमाल का कोना जहाँ नाम मेरा लिक्खा था,
दे न सको रूमाल तो मुझको बस उतनी कतरन लौटा दो।3।


सन्दीप सरस, बिसवाँ


सन्दीप सरस, साहित्य सृजन मंच बिसवाँ सीतापुर

🔵


■रचनाकार-एक परिचय


■नाम:-


संदीप मिश्र 'सरस'


■सम्प्रति:-


कवि,साहित्यकार-समीक्षक


■संस्थापक/अध्यक्ष- साहित्य सृजन मंच, बिसवाँ, सीतापुर


■साहित्य सम्पादक~दैनिक राष्ट्र राज्य


■विशेष:- राष्ट्रीय स्तर पर पत्र पत्रिकाओं/टीवी चैनल/रेडियो से प्रकाशित, प्रसारित व पुरस्कृत


■लेखन:-


●पद्य~गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहा, छंद, क्षणिका, हाइकु, कुण्डलिया


●गद्य~समीक्षा, कहानी, लघुकथा


■जन्म:-
5 जुलाई, 1975 (बिसवाँ, सीतापुर)


■माता/पिता:-
श्रीमती रमा मिश्रा/श्री गंगा स्वरूप मिश्र


■शिक्षा:-
एम. ए. (हिन्दी साहित्य)


■प्रकाशन:-


◆कुछ ग़ज़लें कुछ गीत हमारे (काव्य संकलन)


◆साझा संकलन
  ●[समकालीन दोहाकार]
     (सम्पादक-रघुविन्द्र यादव),
  ●[हिंदी ग़ज़ल का बदलता मिज़ाज]
     (सम्पादक-अनिरुद्ध सिन्हा)
  ●[गुनगुनाएं गीत फिर से-2]
     (सम्पादक-राहुल शिवाय)
  ●अन्य बारह संकलन 


■शीघ्र प्रकाश्य:-


◆तूने चन्दन माँग लिया (गीत संग्रह)


◆ शर्ट के टूटे बटन सी जिंदगी(ग़ज़ल संग्रह)


◆और चाँद धुँधला गया(उपन्यास)


◆खूब कही (कुण्डलिया छन्द संग्रह)


◆पुरस्कृत हम नहीं होंगे(मुक्तक संग्रह)


◆ऐसा मत करना(लघुकथा संग्रह)


◆दोहा दर्पण(दोहा संग्रह)


■कार्यक्षेत्र- 


साहित्य, पत्रकारिता


■विशेष: 


★दूरदर्शन, न्यूज18 चैनल व आकाशवाणी, लखनऊ, विभिन्न काव्यमंचों से नियमित काव्य प्रसारण।


★कविताकोश व दोहाकोश में रचनाएँ सम्मिलित।


★समाचार पत्र 'जनसत्ता' में सम्पादकीय पृष्ठ पर 'खूब कही' काॅलम में दो वर्ष तक नियमित प्रकाशित।


★नियमित समीक्षा कॉलम(विमर्श)
में सौ से अधिक साहित्यकारों की पुस्तकों की समीक्षा


★नियमित कॉलम(कलमकार)में दो सौ से अधिक रचनाकारों की रचनाओं का सम्पादन


★एक दैनिक समाचारपत्र में
(बेबाक) कॉलम का दो वर्ष से नियमित लेखन


★आधा दर्जन पुस्तकों की अनुशंसा 


■सम्मान: 


1- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा बाल कविता हेतु पुरस्कृत- 1994 


2-संस्कार भारती संस्था से द्वारा साहित्य एवं पत्रकारिता के लिए पुरस्कृत 1996


3-गंगाश्रम संस्था द्वारा साहित्य गौरव सम्मान 1997


4-राष्ट्र-राज्य, दैनिक से सृजन सम्मान 1998


5-हिन्दी सभा,सीतापुर संस्था से युवा कवि पुरस्कार 1999


6-गाँजर शिक्षण संस्थान द्वारा चर्चित कवि पुरस्कार 2011 व 2014


7-एम एल एन डी सेवा संस्थान,बिसवां द्वारा बिसवाँ गौरव सम्मान-2017


8-जहाँगीराबाद प्रेस क्लब द्वारा सम्मान -2017


9- काव्य रंगोली, लखीमपुर द्वारा साहित्य-गौरव सम्मान- 2017


10-उ प्र जर्नलिस्ट एसो, बिसवां व प्रेस क्लब जहांगीराबाद द्वारा सम्मान - 2018


11-संस्कार भारती,बिसवां द्वारा सम्मान-2018


12-अवध भारती संस्थान, लखनऊ द्वारा अवधज्योति रजत जयंती सम्मान-2019


13-हिंदी साहित्य परिषद,सीतापुर द्वारा वागीश्वरी सम्मान-2019


14-कवितालोक,लखनऊ द्वारा गीतिकादित्य सम्मान-2019


15-श्यामसखा फाउंडेशन लखीमपुर द्वारा साहित्य रत्न सम्मान-2019


16-भाषा भारती न्यास द्वारा साहित्य श्री सम्मान-2019


17-अवधी सांस्कृतिक प्रतिष्ठान, नेपाल द्वारा सन्त तुलसी स्मृति सम्मान-2019


18-कवितालोक सृजन संस्थान, लखनऊ द्वारा गीतिका-सौरभ सम्मान-2019
 
19-काव्य रंगोली, लखीमपुर द्वारा साहित्य भूषण सम्मान- 2019


■सम्पर्क: 
◆आवास~वार्ड-शंकरगंज, पोस्ट-बिसवाँ, जिला-सीतापुर (उ. प्र.)-पिन-261201


■वार्तासूत्र :  (9450382515) (9140098712)


■ई-मेल :
sandeep.mishra.saras@gmail.com


🔵🔴🔴 कतरन 🔴🔴


कब तक मैं प्रतिबिम्ब टटोलूँ परछाई के पीछे भागूँ,
अपनापन अपना होता है मुझको अपनापन लौटा दो।



मेरी रीत मुझे प्रिय लगती,तुम्हें तुम्हारे स्वाँग मुबारक।
तुम्हें तुम्हारे उत्सव प्रिय तो मेरा दर्द हमेशा मारक।


कब तक ख़ुशी पराई बाँटू अपने सपने कहाँ सजाऊँ,
अपना घर अपना होता है मेरा घर आँगन लौटा दो।1।


क्योंकर इतना दुखी हृदय पर भार व्यथा का डाला जाए।
नयनों की पलकों से आँसू का न प्रवाह सम्हाला जाए।।


कब तक अपना दर्द सम्हालूँ आँसू पर बंदिशें लगाऊँ,
यदि स्वीकार न हो तो मेरी आहों का अर्चन लौटा दो।।2।


अब वे स्मृतियाँ बिसरा दो जहाँ बहक जाते थे सपने।
अब वे सारे पत्र जला दो जो भी तुम्हें लिखे थे मैंने।


अपने उस रूमाल का कोना जहाँ नाम मेरा लिक्खा था,
दे न सको रूमाल तो मुझको बस उतनी कतरन लौटा दो।3।


सन्दीप सरस, बिसवाँ


_डाॅ0 महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा' दोहा गीत- विषय- प्रणय प्रणय निवेदन प्रेम का,

_डाॅ0 महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा'


दोहा गीत-
विषय- प्रणय


प्रणय निवेदन प्रेम का, कर लो प्रिय स्वीकार।
माला भावों की लिए , प्रीति  खड़ी है  द्वार ।।


छवि अनुपम दृग देखते, मिले  कहीं एकांत,
दूर प्रेम  आभास  से , मन रहता  है   शांत,
चलते -फिरते जा रहा, हृदय प्रेम के पास ,
प्रियतम  मेरे  हो  गये , एक  यही  विश्वास,
बने हकीकत प्रीति अब, उठते हृदय विचार। 
माला भावों की लिए , प्रीति  खड़ी है  द्वार ।।


कली प्रणय की खिल रही , नित्य विकल अनुराग,
अकस्मात  दर्शन मिलें , प्रीति रही हिय जाग,
मन - मंदिर में  आस के , जले प्रेम के  दीप,
यादों  में  बैठा  हृदय , मोती  जैसे    सीप,
चिंतन में बिन एक के, फीका सब संसार।
माला भावों की लिए , प्रीति  खड़ी है  द्वार ।।


प्रणय सरीखे बन रहो, अब कोई आलेख,
विकल नैन शीतल बनें ,  चंद्रवर्ण को देख,
मधुर-मधुर मुस्कान लब, हृदय मनन में  चूर,
चित चिंतन  में पास हैं, कब रहते वह दूर,
प्रारब्धों  के  मेल  में , प्रभू  बने   आधार।
माला  भावों की लिए , प्रीति खड़ी है  द्वार ।।


*_डाॅ0 महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा'*


डाॅ0 महालक्ष्मी सक्सेना मेधा उल्लाला छंद नारी बहुत महान है,

डाॅ0 महालक्ष्मी सक्सेना मेधा


उल्लाला छंद


नारी बहुत महान है,
     बनी धरा पर शान है।
द्वय कुल का अभिमान है,
     रखती सबका ध्यान है।।


ईश्वर का वरदान है,
     मर्यादा की आन है।
जननी है जयगान है,
     पाती नित सम्मान है।।


सभी पूज्य ही मानते,
     सुंदर गुण पहचान को।
विश्व जगत जननी कहे,
     देव दे रहे मान को।।


रखती ममता मात की,
      सुत के चारों धाम है।
हर संकट अब दूर है
     सुलभ बनाती काम है।।


-डाॅ0 महालक्ष्मी सक्सेना मेधा


डाॅ0 महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा' मैनपुरी धरा पुकारे सुन रे बादल, कब तुम प्यास बुझाओगे।

डाॅ0 महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा' मैनपुरी


गीत-
******


धरा पुकारे सुन रे बादल, कब तुम प्यास बुझाओगे।
तरस रही हूँ बूँद-बूँद को कब तुम जल बरसाओगे।।


नदियाँ, नाले और समुंदर लगते सारे छोटे हैं।
मेरी छाती से जल लेने के पड़ते अब टोटे हैं।
विकल हुआ जग वर्षा लेकर कब तक तुम आ पाओगे।।
तरस रही हूँ बूँद-बूँद को कब तुम जल बरसाओगे।।


सारी सृष्टि सृजन कर रही मैं सबकी महतारी बन।
कैसे सबको प्यासा रख लूँ मन से इतना भारी बन।
मैं प्यासी बिरहन हूँ कब तुम प्रेम सुधा पिलवाओगे।।
तरस रही हूँ बूँद-बूँद को कब तुम जल बरसाओगे।।


प्रकृति का हर जीव-जंतु और हरियाली सब तरस रहीं।
तुम ना बरसे एक तुम्हारे लिए आँख सब बरस रहीं।
आँखो के अश्कों में कब तुम जल धारा मिलवाओगे ।।
तरस रही हूँ बूँद-बूँद को कब तुम जल बरसाओगे।।


*-डाॅ0 महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा' मैनपुरी*


राकेश कुमार मिश्रा कविता जिंदगी रात हो गयी

राकेश कुमार मिश्रा


जिंदगी रात हो गयी


कैसे ख्वाबों को रंगता मैं
रात भर
*'लहू'* के सिवा रंग कोई नजर
आता नहीं


दोस्ती करता भी तो मैं 
किससे
उम्र भर साथ कोई 
निभाता नहीं


*'जहर'* भर दिया है , इसकी
बुनियाद में इतना
कि *'दरख़्त'* इस वतन का ,
कद बढ़ाता नहीं


जेहन में पाल रखें हैं मैंने
*'जख्म'* इतने
अपने *'फफोलों'* का हिसाब ,
अब मैं लगाता नहीं


अंधेरा इतना कि जिंदगी 
*'रात'* हो गई
किसी सुबह का *'कोई उजाला'*
याद आता नहीं


आते हैं , जाते हैं , अपनी 
मर्जी से *'गम'*
*'घर आये मेहमान'* को
*'राकेश'* भगाता नहीं।
_*🎊राकेश कुमार मिश्रा🎊*_


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

स्वतंत्र रचनाः २४५
दिनांकः १७.०१.२०२०
वारः शुक्रवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः 🥀मन मयूर स्वागत प्रिये!❤️


फूलों   सा   कुसमित   वदन , अधरामृत  मुस्कान।
चारुचन्द्र    तनु   चारुतम , हो    कुदरत   वरदान।।१।।


मधुर   प्रेम   मन   रंजिता , चाहत   मिलन अपार।
परिणीता    वन्दित   हृदय , बनूँ    प्रीत    रसधार।।२।।


कमलनैन     रतिभंगिमा , अन्तर्मन      अभिसार।
भ्रमर    गुंज   नित  अर्चना ,  मनमादक    शृंगार।।३।।


चंचल  मन  मधुरिम  हृदय, सुरभित भाष सुहास।
मनोरमा  हरिणी  समा , मिलूँ    हृदय  अभिलास।।४।।


पीन  पयोधर  शिखर सम , त्रिवली  सरिता  धार।
लाल गाल  रसाल   मधुर , सुजन   प्रीति  उद्गार ।।५।।


अश्क  नैन  आतुर मिलन,प्रियतम मन  मधुमास।
रिझा गान कोकिल समा , मुदित  हृदय  विश्वास।।६।।


देरी   सुहाग  अति  रागिनी ,  राग  मनोहर चित्त।
मन   मयूर   स्वागत  प्रिये , प्रीत   भाव  आवृत्त।।७।।


उपालम्भ  अनुराग  प्रिय , दूँगी   हास    सुभाष।
सजूँ   सुभग  शृंगार  तनु ,  मनमोहनी   विलास।।८।।


बनूँ   प्रेमिका  राधिका , पिया  माँग   सिय  राम।
भक्ति  प्रीति मीरा  बनूँ , प्रियवल्लभ   सुखधाम।।९।।


रूप  मनोहर  चंद्रिका , दर्शन  कवि   अभिलास।
कुसमित सुष्मित कामिनी,कविता बन अहसास।।१०।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


डा० भारती वर्मा बौड़ाई पता- डा० भारती वर्मा बौड़ाई देहरादून- ( उत्तराखंड ) कविता गुरु

नाम- डा० भारती वर्मा बौड़ाई


पता- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
95, ब्लॉक- H, दिव्य विहार 
डांडा धर्मपुर, डाकघर- नेहरूग्राम 
देहरादून-248001 ( उत्तराखंड )


मो. 9759252537


कविता


गुरु
——-
गुरु मार्ग है 
ज्ञान प्राप्ति का
गुरु ही ईश्वर है...!


गुरु तेज है 
चमके मुख पर 
गुरु ही परम ब्रह्म है...!!


गुरु दीप है 
घने तिमिर में 
गुरु ही मार्गदर्शक है...!!!


गुरु सर्वस्व 
सँवारता जीवन 
गुरु ही सच्चा मीत है...!!!!


गुरु एक 
बस रूप भिन्न है 
पर गुरु अभिन्न है...!!!!!


मार्ग कई 
गुरु को पाने के 
देखो गुरु यहीं कहीं है...!!!!!!
———————————-
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


लता प्रासर पटना बिहार गुनगुनी धूप मुबारक

लता प्रासर पटना बिहार
गुनगुनी धूप मुबारक


बूंद-बूंद बचाएंगे हम सब
हरियाली बढ़ाएंगे हम सब
धरती के कोने कोने में
बृक्ष लगाएंगे हम सब


*गुनगुनी धूप मुबारक*


दिया शब्द किसी एक बन वाक्य उससे खूब
नमन हर शब्द को उसी में जाऊं मैं भी डूब
प्रकृति की छटा अनोखी हुई मुलाकात उससे
खो दिए खुद को ही उसमें नहीं उससे कोई ऊब!


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी" .परिंदे अब कहां जाएं

 


----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


.परिंदे अब कहां जाएं...........


तकदीर के मारे परिंदे,अब कहां जाएं?
वक़्त के मारे ये सारे ,अब कहां जाएं ?


किसे एहसास है , इनके बेचारगी की ;
फिज़ा में जहर हैं घुले,अब कहां जाएं?


कहीं तो दिख जाए,कोई ठौर राहत के;
मंज़िल है अनजाने , अब कहां  जाएं?


ये तो वक़्त वक़्त की बात है यार मेरे ;
हर तरफ हैं जलजले,अब कहां जाएं?


लाख कोशिशों के बाद रोशनी है नहीं;
दौड़ती नज़र में अंधेरे,अब कहां जाएं?


जान अकेली होती तो गम नहीं कोई ;
साथ में हैं पूरे कुनबे , अब कहां जाएं?


ऊपरवाले पर ही उम्मीद बची"आनंद"
कोई हल तो निकले, अब कहां जाएं?


----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


एस के कपूर श्री हंस बरेली मुक्तक

*न कोई दुर्भावना पाल कर रखिये*
*।।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


मत   रखिये  हर  बात  दिल में,
हंस कर   टाल  लिया  किजिये।


मत सहेजिये   दिल में   मलाल,
खुलकर इजहार दिया किजिये।।


दिल की गाँठे  बढ़ा   देती हैं  यूँ ,
ही बेमतलब   की कई  दूरियाँ।
 
हँसिये बोलिये और  समझाइये,
तकरार  भी    किया   किजिये।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस*
*।।।।।।।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब ।।   9897071046  ।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।


अपर्णा शर्मा           "शिव संगीनी"        गुजरात  कविता अहसास 

नाम  : अपर्णा शर्मा
          "शिव संगीनी"
विधा :  कविता 
राज्य :  अंकलेश्वर, 
           गुजरात 


 


           *अहसास*


 



तुम अचानक मेरी जिंदगी में 
हर दर्द तुमने मेरे दिल का 
लगाया अपने गले 
अहसास कराया कि तुम मेरे हो 
तुम्हारे बिना मैं अधूरी हूँ  
जिंदगी ले ले मेरी चाहे 
मगर तेरे प्यार में मैं लूटी हूँ  
जब भी तुम मेरे साथ रहते हो 
उमंगों के हंसी जज्बात तुम भरते हो 
तुम्हें मालूम है कि तुम मेरे दिल पर राज करते हो 
मेरी नाराजगी भी तुम नजरअंदाज करते हो 
क्योंकि तुम भी मुझे प्यार करते हो 
अहसास है हम दोनों को 
एक दूसरे के बिना हम रह नहीं सकते 
तुम आए अचानक मेरी जिंदगी में 
हर दर्द तुमने मेरे दिल का 
लगाया अपने गले 
तुम आए मेरी जिंदगी में।


डॉ० धाराबल्लभ पाण्डेय 'आलोक', , अल्मोड़ा, उत्तराखंड।

आज का विषय - 
" प्रारंभ जिंदगी का "
विधा -  कुंडलिया छंद
            १ 
जग में आकर जीव को, नूतन हो आभास।
नवजीवन नव जगत में, नव आशा विश्वास।
नव आशा विश्वास, नया घर नव संरचना।
नव समाज नव धर्म, विधाता धरता है पग। 
सीख -सीख अनुभव, लेकर पथ चलता है जग।।
              २
मधुर सरस जीवन लिए, मां की कोख समाय। 
प्रेम दया करुणा भरे, मां से ममता पाय।
मां से ममता पाय, प्यार की मीठी भाषा। 
सीखे सब व्यवहार, जिंदगी की प्रत्याशा। 
निर्मल पावन प्रेम, सरसता भरी हो प्रचुर।
पावे सुख विश्वास, स्नेह संसार में मधुर।। 


डॉ० धाराबल्लभ पाण्डेय 'आलोक',
२९, लक्ष्मी निवास,
कर्नाटकपुरम, मकेड़ी,
अल्मोड़ा, उत्तराखंड।


श्याम कुँवर भारती भोजपुरी देवी गीत - तोहरी चौखट से खाली  कइसे जाई ये माई 

श्याम कुँवर भारती


भोजपुरी देवी गीत - तोहरी चौखट से खाली  कइसे जाई ये माई 


तोहरी चौखट से खाली  कइसे जाई ये माई |
काहे रूसल बाडु फेर मुंह हमसे ये माई |


तोहरी किरीपा से सबकर दुख दूर हो जाला ,
बड़ी-बड़ी बिपतिया टरे कुछउ न बुझाला |
नजरिया फेरा हमरी ओर एक बार ये माई |
तोहरी चौखट से खाली कइसे जाई ये माई |


कइली  केवन कसूर हम हमसे दूर हो गइलू ,
बड़े बड़े पापी तरलु काहे हमके भूल गइलू |
अबोध बालक भारती तोहार दुहाई ये माई |  
तोहरी चौखट से खाली कइसे जाई ये माई |


छोडब न चरणीया बचनीया सुना मोर भवानी ,
ना चाही  हीरा मोती नाही हमके सोना चाँनी |
करा हमपे किरीपा इहे मोर दुहाई ये माई |
तोहरी चौखट से खाली कइसे जाई ये माई |


श्याम कुँवर भारती


रामनाथ साहू " ननकी "                               मुरलीडीह आज की कुण्डलियाँ                 ----वसुधा---

रामनाथ साहू " ननकी "
                              मुरलीडीह


आज की कुण्डलियाँ                 ----वसुधा---



वसुधा की आवाज सुन ,
                             करती है चीत्कार ।
कौन बचाये लाज रे , 
                              करें कौन श्रृंगार ।।
करे कौन श्रृंगार ,
                           हुए हैं सब जहरीले ।
बात करे पुरजोर ,
                       मंच तक बड़े सजीले ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
                        घटित घटनाएं बहुधा ।
होती सदा निराश ,
                     तड़पती लगती वसुधा ।।



                 ~ रामनाथ साहू " ननकी "
                              मुरलीडीह


रूपेश कुमार© चैनपुर सिवान बिहार कैसे कटेगे अब पहाड़ से ये दिन ~

रूपेश कुमार©
चैनपुर सिवान बिहार


कैसे कटेगे अब पहाड़ से ये दिन ~~


कैसे कटेगे अब पहाड़ से ये दिन ,
जीवन की टुक ,
मन की भूख ,
तन की भूख ,
कहाँ गयी कोयल की कूक !
दिन हूए पल छीन ,
             उपहार से ये दिन ,
कैसे कटेगे अब पहाड़ से ये दिन !
चरण अविराम के ,
रुक गए कैसे राम के !
सीता सरिखा मन , गये क्योदिन ,
                 बहार से ये दिन ,
कैसे कटेगे अब पहाड़ से ये दिन !
जेठ की तपन ,
मन की अगन ,
तन की जलन ,
लूट गया अगन छुआ गगन !
चली वह पश्चिमी नागिन ,
                    उजाड़ से ये दिन ,
कैसे कटेगे अब पहाड़ से ये दिन !


✍🏻✍🏻✍🏻 रूपेश कुमार©
चैनपुर सिवान बिहार


कह मुकरी डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव."प्रेम" सीतापुर।

कह मुकरी 


खेलूं जिस से रंग हमजोली ,
घूमे  जिसमें घर-घर टोली ,
संभले जिससे रंग हुड़दंग,
 क्या सखि साजन , न सखि ढंग।


 जिस पर कान्हा रास रचाये,
 गोपी हमको रही बताये,
 घायल कर दे चंचल चितवन ,
 क्या सखि राधा ,ना सखि निधिवन। 


 जिससे हर्षित झूम चकोर ,
 नाचे देख जिसे मन मोर ,
 सुख पाता मन हर्षित "नंदा" 
 क्या सखि साजन ना सखी चंदा।


 जिसके आते रौनक आये,
 फौरन चहल पहल हो जाये, 
  जिसकी मीठी लगती  झिड़की।
  क्या सखि साजन,  ना सखि     लड़की ।


स्वरचित ,मौलिक रचना
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव."प्रेम" सीतापुर।


निशा"अतुल्य" लिफ़ाफ़ा  हाइकु

 



निशा"अतुल्य"


लिफ़ाफ़ा 
दिनाँक    17 /1/ 2020 
हाइकु


कैसा लिफ़ाफ़ा
जीवन रूप मिला
चाह अतृप्त।


कहीं रंगीन
बरेंग बिखरा कहीं
भटकता क्यों।


करना कर्म
पुरुषार्थ जरूरी
है जीवन में।


लिफ़ाफ़ा बांचु
मैं कैसे पाती बंद
बोलो साजन।
 
गोपाला तुम
निर्विकार दो ज्ञान
फिर से हमें।


संताप दूर
लेकर तेरा नाम 
हो बेड़ा पार।


हो कर्मक्षेत्र
विस्तारित सबके
भरे हों पेट।


जीवन मृत्यु
बना है सृष्टि चक्र 
सदा से तेरा।


आ करो कर्म
जो निमित तुम्हारे
धर्म जीवन।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


रेखा बोरा लखनऊ ज़िन्दगी 

रेखा बोरा लखनऊ


ज़िन्दगी 


चाहती हूँ
ज़माने के सारे
बंधन तोड़ कर ,
तुम तक पहुंच जाऊँ !
पर भय लगता है
ये सोचकर ,
कहीं तुम क़ैद हुए,
रीति रिवाज़ों की
उन हदों मैं,
जिन्हें शायद
मैं न तोड़ पाऊँ !
फिर से ये
अकेलापन,
मेरे वज़ूद का
हिस्सा न बन जाए,
पर इससे घबराना कैसा,
अपने सीने के
तूफ़ान को छुपाकर,
कशमकश के
दायरे में क़ैद होकर,
फिर से
जियेंगे उस मौत को,
जिसे लोग ज़िंदगी कहते हैं !
रेखा बोरा,
लखनऊ


मधु शंखधर 'स्वतंत्र' प्रयागराज मधु के मधुमय मुक्तक

मधु शंखधर 'स्वतंत्र'
प्रयागराज


मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷


◆मन में उठती भावना इक आस है।
इक सुखद अनुभूति का एहसास है।
राह एक सबको मिलाती है यहाँ,
उसको अपनाता महज विश्वास है।।


◆माँ ने जन्मा लाल को ये प्यार है।
ये सृजन की भावना का सार है।
एक बस विश्वास की डोरी बंधी,
ये ही अनुपम जीव का व्यवहार है।।


◆राह हो मुश्किल तो जीवन आस है।
आस में ही शक्ति का एक वास है।
जो बना दे जिन्दगी को चाह एक
मधु  ये मानव का अटल विश्वास है।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
*17.01.2020*
🌹🌹सुप्रभातम्🌹🌹


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