गोविंद भारद्वाज, जयपुर गीत द्वारे-द्वारे दस्तक देकर, लुटा हुआ बंजारा सा

गोविंद भारद्वाज, जयपुर
गीत


द्वारे-द्वारे दस्तक देकर, लुटा हुआ बंजारा सा।
बैठा यमुना-घाट के ऊपर, थका हुआ बटमारा सा।।


कौन दुलारे मेरी पीड़ा, कौन सँवारें दर्पण को,
कौन सजाये सपने मेरे, कौन बुलाये प्रियतम को,
आज उलाते बेच के बैठा, मैं तो एक अंधियारा सा।
द्वारे-द्वारे दस्तक देकर...................................................


बुझी आरती का दीपक हू, कौन मुझे अपनाने वाला,
कौन पुजारी है जो दे दे, आज मुझे अमृत का प्याला,
कब ये पूर्ण तपस्या होगी, मैं बैठा ध्रुवतारा सा।
द्वारे-द्वारे दस्तक देकर...................................................


तुझे मिले वो रजनीगंधा, मुझे मिले काँटों का ताज,
तुझे मुबारक ये शहनाई, मुझे मिले ये टूटे साज़,
तूे मेरा गंगाजल सजनी, मैं बैठा जलधारा सा।
द्वारे-द्वारे दस्तक देकर...................................................


सचिन साधारण गीत चले आना

_*गीत*_
_******_


_*यार चले आना,*_
_*यार चले आना......*_
_*याद हमारी जब आ जाऐ यार चले आना.........*_


_*नजर मिलाना,*_
_*फिर शर्माना,*_
_*दिल धडका कर,*_
_*पास बुलाना,*_
_*दूर निकल जाना......*_
_*याद हमारी जब आ जाऐ यार चले आना.........*_


_*याद मुझे है,*_
_*वही फंसाना,*_
_*बहुत सरल है,*_
_*दिल तक जाना,*_
_*और बदल जाना......*_
_*याद हमारी जब आ जाऐ यार चले आना.........*_


_*खाब मे आना,*_
_*खूब सताना,*_
_*चल न सकेगा,*_
_*कोई बहाना,*_
_*अब तुम कल जाना......*_
_*याद हमारी जब आ जाऐ यार चले आना.........*_


_*जीवन पथ है,*_
_*चलते जाना,*_
_*बीच सफर मे,*_
_*ठोकर खाना,*_
_*और संभल जाना......*_
_*याद हमारी जब आ जाऐ यार चले आना.........*_


_*सचिन साधारण*_
_*****************_


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड सच्चा मानव

🥀शुभ प्रभात🥀
***************
 सच्चा मानव कहलाता है
********************
जो जग का संताप मिटाने को,
अपने सुख को ठुकराता है,
वही मानव इस वसुधा पर 
सच्चा मानव कहलाता है।


मिल जाते है जब भी दीन क़हीं,
बन जाता है उनका  बन्धु वहीं।
हंस हंस कर जो आघात सहे,
संघर्षों में भी सौम्य रहे।


जो जीवन में विष पीकर,
पीयूष धरा पर बरसाता है।
वह मानव इस वसुधा पर,
सच्चा मानव कहलाता है।
*********
कालिका प्रसाद सेमवाल
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ० धाराबल्लभ पांडेय, 'आलोक'  पिता

🙏पिता को नमन🙏


विधा- कवित्त या मनहरण वर्णिक वृत्त। ८+८+८+७   ३१ वर्ण। ४ चरण।


पिता सदा पालक हैं।
घर के संचालक हैं।
सदा पितृ छाया में, 
जीवन बनाइये ।।


पिता जीवन की आन।
पिता ही घर की शान।
पिता का ही नाम सदा,
ऊंचा उठाइये।।


पिता, गृह पोषक हैं।
पिता ही संरक्षक है।
पिता से ही ज्ञान पाय,
जीवन बढ़ाइए।।


पिता से ही प्यार मिले।
घर में संस्कार मिले।
जीवन में ज्योति जले।
पितृ प्रेम पाइये।।१।।


पिता से समाज मिले।
पिता से पछ्याण बने। 
पिता से ही ज्ञान मिले। 
पिता को आराधिये।।


पिता लोक-लाज मिले।
आन-बान-शान मिले।
ज्ञान व सम्मान मिले।
ज्ञान अवधारिये।।
 
जीवन की राह मिले।
उन्नति का मार्ग मिले।
आदर सम्मान मिले।
पिता न विसारिये।।



पिता का ही नाम पाय।
पिता से संस्कार पाय।
जीवन की राह पाय,
सतत विचारिए।।२।।


पिता ही परमदेव ।
पिता ही आराध्य देव।
मातृ-पितृ ज्ञान मान, 
जीवन उतारिए।।


मातृ पितृ गुरु देव।
जीवन आधार ध्येय।
दिव्य ज्योति को सतत,
हृदय प्रकाशिए।।


पितृदेव, मातृदेव,
गुरुदेव, अतिथिदेव। 
भारतीय संस्कृति का,
मान अवधारिये।।


पिता की चरण धूलि।
मां की आंचल की भूमि।
गुरुजी से ज्ञान पाय,
संस्कार पाइये।।३।।


डॉ० धाराबल्लभ पांडेय, 'आलोक' 
29, लक्ष्मी निवास, कर्नाटक पुरम, मकेड़ी, अल्मोड़ा, पिन-263601
उत्तराखंड, भारत।
मो०नं० 9410700432


राजेंद्र रायपुरी।।  एक भजन  अब, आओ हे गिरधारी- -

 


राजेंद्र रायपुरी।।


 एक भजन 


अब, आओ हे गिरधारी- - - 
अब, आओ हे- -  गिरधारी।
कहती धरती, महतारी- - - - 
अब, आओ हे- -  गिरधारी।


तुम बिन सूना, वृंदावन है, 
तुम बिन सूना, वृंदावन है।
दर्शन को ये,व्याकुल मन है,
दर्शन को ये,व्याकुल मन है।
दर्शन दो ऐ, बंशी वाले- - -, 
दर्शन दो ऐ, बंशी  वाले- - -,
तृष्णा मिटे हमारी - - - - ।
अब, आओ हे- - गिरधारी- - - 
अब, आओ हे- - गिरधारी।


न वो वन है,न उपवन है- - - 
न वो वन है,न उपवन है- - - 
राह में फिरता,हर पशुधन है- - 
राह में फिरता, हर पशुधन है।
चारे खातिर, दर-दर भटकें- -,
चारे खातिर, दर-दर भटके- -,
गइयाँ तेरी सारी - - - - - -।
अब, आओ हे- - गिरधारी- - - 
अब, आओ हे- -  गिरधारी।


गली-मुहल्ले, हैं दु:शासन,
गली -मुहल्ले, हैं दु:शासन।
ये ही बैठे,ऊँचे आसन।
ये ही बैठे,ऊँचे आसन।
तत्पर हर पल,चीर रहन को,
तत्पर हर पल, चीर रहन को।
नहीं सुरक्षित नारी- - - - ,
अब,आओ हे- - गिरधारी- - -
अब, आओ हे- -  गिरधारी।


बढ़े हैं शकुनी, देश हमारे।
बढ़े है शकुनी, देश हमारे।
पासे फेंके, हर दिन सारे।
पासे फेंके, हर दिन सारे।
बढ़े, कलह- -आपस में निश दिन,
बढ़े, कलह- - आपस में निश दिन, 
करते ये, तैयारी - - - - - ,
अब,आओ हे- - गिरधारी- - -
अब, आओ हे- - गिरधारी।


एक नहीं, धृतराष्ट्र हजारो - - 
एक नहीं, धृतराष्ट्र हजारो।
चाह, हो गद्दी- -  पूत हमारो,
चाह, हो गद्दी- - पूत हमारो।
अँखियन पट्टी- -  बाँधे बैठी,
अँखियन पट्टी - - बाँधे बैठी,
गंधारी, महतारी  - - - - 
अब,आओ हे- - गिरधारी - - - 
अब आओ हे- - गिरधारी।


वचन,दिया था- -गीता में जो,
वचन,दिया था- -गीता में जो।
पूरा कर दो, हे गिरधर वो।
पूरा कर दो, हे गिरधर वो।
इतनी सी ही- -हे प्रभु मेरे - - 
इतनी सी ही- -हे प्रभु मेरे - - 
है अब, माँग हमारी - - - 
अब, आओ हे- -गिरधारी - - 
अब,आओ हे- -  गिरधारी।
   
           ।।राजेंद्र रायपुरी।।


सुषमा मलिक "अदब" रोहतक (हरियाणा नाजुक रिश्ते

नाजुक रिश्ते


बहुत नाजुक से हो गए है आजकल ये रिश्ते,
अपने हर रिश्ते को कुछ इस तरह से निभा लो!
अकड़ बढ़ गयी हो औऱ  हो टूटने के कगार पर,
तो कभी तुम झुक जाओ कभी उसे झुका लो।
अपने हर रिश्ते को कुछ इस तरह से निभा लो!!


दूरियां बहुत बढ़ गयी हो, और खलने लगे हो फासले!
तो कभी तुम साथ बैठ जाओ कभी उसे बिठा लो!!
अपने हर रिश्ते को कुछ इस तरह से निभा लो!!


आखों में उमड़ता हो सैलाब, और बहे आंसू बार बार,
तो कभी तुम खुद हंसलो औऱ कभी उसे हसांलो!!
अपने हर रिश्ते को कुछ इस तरह से निभा लो!!


भरने लगे जहर मन मे, औऱ बढ़ने लगी हो नफ़रतें।
तो कभी तुम गले लग जाओ कभी उसे गले लगालो!
अपने हर रिश्ते को कुछ इस तरह से निभा लो!!


शांति हो जब हर ओर, औऱ खामोशी छाई हो रिश्ते में!
तो कभी खुद तुम रो पड़ो औऱ कभी उसे रुला लो!!
अपने हर रिश्ते को कुछ इस तरह से निभा लो!!


दिल मे दर्द बेशुमार हो, पर टूटने न देना रिश्ते को!
कुछ बातें वो भूल जाये और कुछ बातें तुम भुला लो!
अपने हर रिश्ते को कुछ इस तरह से निभा लो!!


पराया नही अपना है रख, उसकी गोद मे सिर "मलिक"
कभी वो तुम्हे मना ले और कभी तुम उसे मना लो!
अपने हर रिश्ते को कुछ इस तरह से निभा लो!!


सुषमा मलिक "अदब"
रोहतक (हरियाणा


अतिवीर जैन पराग मेरठ

सभी को नमन, 
नारी का मनोबल :-
सीमा पर कुर्बान हुआ सुहाग,
हिम्मत ना हारी नारी,
बेटों को फिर फौज में भेजा,
नारी हिम्मत की बलिहारी.
बेटिओं से बसों में दरिन्दगी,
टूट गयी हिम्मत सारी,
राजधानी बदनाम हुई,
बढ़ गई तकलीफें सारी.
दरिंदो का पक्का ईलाज,
जब तुरन्त किया जायेगा,
तभी दूर होगी तकलीफें,
और मनोबल बढ़ पायेगा.
सीमा पर नारी का सुहाग और बेटा,
देश की रक्षा कर पायेगा.
अतिवीर जैन,मेरठ:


कीर्ति जायसवाल प्रयागराज शीर्षक- शुष्क बेल

कीर्ति जायसवाल
प्रयागराज


शीर्षक- शुष्क बेल
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भू-शय्या पर पड़ी
शुष्क बेल हूँ मूर्च्छित,                
तपोवन में तप करती
अभिलाषा है तेरी।


शून्य माँंग में फूल सजा दे;
कर दे हरी-भरी। 
तू गिर जा मुझ पर बरस-बरस,
मैं खिल जाऊँगी कली-कली।


आगन्तुक फिर आएँगे,           
कुछ खाएँगे; बिखराएँगे 
और आगन्तुक आएँगे 
फिर उन्हें वहन कर जाएँगे।          


सीकर नाद; विहग कलरव;         
शिखी नृत्य; मन गाएगा;              
कब से मैं हूँ तरस रही;
तू कर दे मुझको हरी-भरी।


झुक 'कर' दे उठा ले मुझको;                      
इधर-उधर को दौड़ूँगी।
फूलूँगी कुछ ऐसा मैं
संग तेरा न छोड़ूंगी।


'शिरा' शोभित पुष्प ताज;                         
लय अनुभव लहराऊँगी।                       
अब तो मुझ पर तरस, बरस;
मैं बन बैठूँ हाँ! हरी परी।


-कीर्ति जायसवाल
प्रयागराज


(शब्दार्थ:  सीकर नाद=बूँद की आवाज, शिखी=मोर,  शिरा=सिर, लय=हवा)


परिचय डॉ0 महालक्ष्मी सक्सेना मेधा शिक्षिका एवं साहित्यकार।  

डॉ0 महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा*'
              - शिक्षिका एवं साहित्यकार।  


 *अध्यक्षा*  -माँ भारती सामाजिक संस्थान मैनपुरी उ0प्र0


*ब्लॉक संगठन मन्त्री*  -  प्राथमिक शिक्षक संघ - मैनपुरी (उ0प्र0)


*सदस्य*  -  उत्तराखण्ड की जिया कुटुम्ब संस्था कानपुर, शाखा - देहरादून।


*सदस्य* -  हिमालय और हिन्दुस्तान वीरभद्र - देहरादून।


*जन्मतिथि* - 01/04/1980  


*शिक्षा* - बी0एस0सी0 (बायो), (एम0ए0 राजनीति शास्त्र), बीटीसी, पी0एच0डी0 (मानद- विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ- भागलपुर)


*प्रकाशित कृतियाँ* - 1.जीवन की राहें (गीत-गज़ल संग्रह)।
              2.योग की शक्ति (गद्य)।
              3-मेधांजलि -गीत संग्रह। (वर्तमान प्रकाशन में)
              4- मुक्तक संग्रह, छंद संग्रह , हाइकु संग्रह , महात्माबुद्ध ।(प्रकाशनार्थ कृतियाँ)


*लेखन विधाएँ* - गीत,  गज़ल,  मुक्तक, कविता ,  हाइकु,   छन्द,  लघु कथा , कहानी ।


*सम्मान एवं पुरस्कार*   - 
सम्मान पत्र - उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन1998।


अभिनन्दन पत्र- अपना दिवस, श्री देवी मेला एवं ग्राम सुधार प्रदर्शनी मैनपुरी क्रमशः  1998 , 2000, 2014 , 2015  , 2016 ।


सम्मान पत्र द्वारा माण्डवी प्रकाशन - गाजियाबाद सन् 2000।


सम्मान पत्र- युवा साहित्य मंडल एवं त्रिवेणी साहित्य  कला संस्थान - गाजियाबाद सन् 2000।


प्रशस्ति पत्र 12वाँ अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन गाजियाबाद।


प्रशस्ति पत्र -  विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद मैनपुरी, शाखा लखनऊ 2013


एक्सीलेंस अवार्ड  - हिमालय और हिन्दुस्तान फाउण्डेशन वीरभद्र- देहरादून 2015


प्रशस्ति पत्र -पं0कृष्णदत्त त्रिपाठी स्मृति सेवा संस्थान -मैनपुरी 2015।


सम्मान पत्र- हिमालय और हिन्दुस्तान हरिद्वार 2016।


ज्योतिवाबाई फुले पुरस्कार  - राष्ट्रीय भारतीय दलित साहित्य एकेडेमी दिल्ली।


स्वर्ण जयंती काव्य प्रशस्ति पत्र - होली पब्लिक जूनियर हाई स्कूल- मैनपुरी 2016।


'भारत भूषण' पुरस्कार के साथ नकद 1100/- धनराशि  - के0बी0 हिन्दी साहित्य समिति बिसौली बदायूं 2017


 छंदोनायिका सम्मान ,   के0एम0मुन्शी सम्मान ,  क्षेत्रीय गौरव सम्मान,  काव्य दीप सम्मान  -साहित्य संगम संस्थान दिल्ली पंजीकृत संख्या1801 /2017


सम्मान पत्र - कवियों की चौपाल संस्थान- दिल्ली 2017।


प्रशस्ति पत्र - नारी नव जागरण मंच मैनपुरी उ0प्र0 2017।


हिन्दी रत्न सम्मान - सरिता लोक सेवा संस्थान सुल्तानपुर (उ0प्र0) 


काव्य सम्मान - नवसृजन कला साहित्य एवं संस्कृति न्यास दिल्ली। 2018


श्रेष्ठ साहित्य साधिका सम्मान - बृजलोक कला संस्कृति अकादमी फतेहाबाद(आगरा) 2018


साहित्य संगम सम्मान  एवं 500/- नगद धनराशि - इन्दौर समारोह शाखा साहित्य संगम संस्थान दिल्ली 2018
 
प्रशस्ति पत्र - उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन के सौजन्य से  - मैनपुरी 2018


साहित्य सम्मान कानपुर  - उत्तराखंड की जिया कुटुंब शाखा देहरादून 2019


निर्मला देवी स्मृति सम्मान2017 ,   सुमित्रा कुमारी सिन्हा स्मृति सम्मान2018 के0बी0हिन्दी साहित्य समिति बिसौली, बदायूं।
इंडियन बेस्टीज अवार्ड २०१९ जयपुर- राजस्थान।


कवि सम्मलेन काव्य सम्मान पत्र नासिक -महाराष्ट्र।
  २०१९
सवैया सिद्ध सम्मान,   संगम सक्रिय सहभागी सम्मान ,  जन चेतना सम्मान ,  क्षेत्रीय बोली गौरव सम्मान,  काव्य सेतु सम्मान,  समीक्षाधीश सम्मान,  क्षेत्रीय बोली संबर्धन काव्य पाठ सम्मान,   वीणा पाणि सम्मान,   राष्ट्र चेतना सम्मान ,   साहित्य अभ्युदय सम्मान ,   गीतिका साधक सम्मान ,  दोहा गीत  साधक , संगम स्वांजलि  सम्मान ,  साहित्य गौरव सम्मान- 2018 ,   द्वारा साहित्य संगम संस्थान दिल्ली पंजीकृत संख्या 1801.


काव्य पाठ सम्मान पत्र 2018 -  महिला साहित्य सम्मेलन मेरठ ।


हीरक जयन्ती काव्य पाठ प्रशस्ति पत्र होली पब्लिक जूनियर हाई स्कूल मैनपुरी 2018


*विद्यावाचस्पति (पी0एच0डी0-मानद)* -  विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ -भागलपुर 2019


विद्यावती  'कोकिल' सम्मान -  नारी नव जागरण मंच मैनपुरी - उ0प्र02017


*उपनाम अलंकरण  'मेधा'* -   प्रमाण पत्र -साहित्य संगम संस्थान दिल्ली 2017


साहित्य सारथी ,  साहित्य ज्योति सम्मान,  वरदराज सम्मान ,
साहित्य संगम संस्थान दिल्ली 2018।


 सम्मान पत्र - अखिल भारतीय महिला साहित्य सम्मेलन मेरठ। 2018


गोपालदास नीरज सम्मान 2018 - साहित्य संगम संस्थान दिल्ली पंजीकृत संख्या 1801 . आयोजित कार्यक्रम द्वारा ।


पाणिनी वटुक सम्मान ,   फणीश्वरनाथ रेणु ,    गीत सम्राज्ञी सम्मान ,   क्षेत्रीय रत्न सम्मान 2019 - साहित्य संगम संस्थान पंजीयन संख्या 1801.


उत्तराखंड की जिया कुटुंब शाखा -देहरादून द्वारा आयोजित कानपुर में अखिल भारतीय कविसम्मेलन 07/04/2019.


सूर्यम साहित्य सागर राष्ट्रीय समूह द्वारा प्राप्त प्रशस्ति पत्र 30/05/1019.


काव्य रंगोली अरुणिमा स्मृति सम्मान 2019 


साहित्य सृजन मंच चतरा झारखंड अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में। काव्यश्री सम्मान पत्र प्राप्त। 31/6/2019


होली पब्लिक स्कूल मैनपुरी में। काव्य गोष्ठी में प्रशस्ति पत्र प्राप्त।


हिन्दी साहित्य अकादमी सूक्ष्म,लघु एवं उद्यम मंत्रालय भारत सरकार द्वारा पंजीकृत संस्था के तत्वावधान में ऐतिहासिक नगरी हस्तिनापुर में कवि कुम्भ  आयोजन में सम्मान पत्र दिनांक 17-18 अगस्त 2019।


शब्द सम्मान - केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद द्वारा प्राप्त। 15/9/2019



साहित्य सृजन सम्मान दिसंबर 2019. द्वारा- शाक्य प्रकाशन मैनपुरी उ0प्र0।


के0बी0 हिन्दी साहित्य समिति पंजीयन संख्या-763 , द्वारा कीर्ति चौधरी स्मृति सम्मान 2019 प्राप्त।


समय-समय पर कई श्रेष्ठ रचनाकार एवं श्रेष्ठ दैनिक टिप्पणीकार प्रमाण पत्र प्राप्त।
          उपरोक्त सहित विभिन्न अखिल भारतीय , राष्ट्रीय एवं स्थानीय  साहित्यिक संस्थानों द्वारा   *100  से भी अधिक  सम्मान पत्र एवं  प्रशस्ति-पत्र प्राप्त* ,  *आकाशवाणी से रचनाएँ प्रसारित*  एवं सन् 1995 से अनेकों पत्र-पत्रिकाओं तथा साझा संकलनों में रचनाएँ व कहानी प्रकाशित।


*साझा संकलन -  सन् 1995 से अब तक  -  अमर साधना (मैनपुरी) , नूपुर अन्तर्मन के (गाजियाबाद) , मन की बात (दिल्ली), मैनपुरी के साहित्यकार (मैनपुरी) , हस्ताक्षर (गाजियाबाद) , काव्य सौरभ (मैनपुरी) , संगम संकल्पना  (दिल्ली) , संगम स्मारिका (दिल्ली) , समकालीन महिला साहित्यकार भाग 2 (मेरठ) , समकालीन महिला साहित्यकार  भाग 3 (मेरठ), संगम साझा संकलन स्मारिका 2017  (इन्दौर) ।  संगम साझा संकलन स्मारिका2018  (दिल्ली) , काव्य रंगोली  (दिल्ली),  संगम समागम संकलन 2018 ,योग विशेषांक २०१९ (दिल्ली)।


*पत्र-पत्रिकाओं में स्थान -*यू एस एम पत्रिका , भारद्वाज परिवार पत्रिका , झंकृति पत्रिका , लल्लू जगधर , युवावाणी, मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद पत्रिका, हितोपदेशक ,  ग्राम सुधार देवी मेला स्मारिका (मैनपुरी) भाव स्पंदन, संगम संकल्पना , अविचल प्रवाह, साहित्य त्रिवेणी, एक पृष्ठ मेरा भी , माध्यम (महाराष्ट्र) , साहित्य धरोहर ई-पत्रिका  , समीक्षा सुधा ,   गजल - गुंजन (दिल्ली) , क्षितिज पत्रिका ( बदायूँ) ,  छंदेष्टि (दिल्ली), प्रकृति मंथन पत्रिका आदि दर्जनों पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित । 


*सम्पर्क सूत्र-* महावीरपुरम , पैराडाइज़ स्कूल के पास स्टेशन रोड- मैनपुरी (उ0प्र0) 205001, मो.न.-7409498125


*ई-मेल* - laxmisaxena123456gmail.com.


कुमार कारनिक कविता (उम्र भर) उस जिंदगी को- संवारने मे,

कुमार कारनिक
उम्र भर


उस जिंदगी को-
संवारने मे,
पसीने के बूंदों से-
घबराया नही हूँ।
अजायब घरों मे-
मौत आनी है,
उसे आने दो-
मौत से हारा नही हूँ।
धड़़कने तेज-
अहसास है,
घर-द्वारों मे-
कभी ठहरा नही हूँ।
कदम कदम बढ़ते-
किसकी पसंद है,
जीवन की ओर-
अभी बहका नही हूँ।
काँटों मे फूल खिला-
सर्तकता से,
माली बनके-
खुद को सँवारा नही हूँ।
शिक्षा मुझे मिला-
सत्य राह पर चलना,
डरपोक की तरह-
डरा नही हूँ।
सार्थक होगा-
जीवन मेरा,
राहों मे-
अभी थका नही हूँ।


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डॉ मंगलेश जायसवाल फिर विरोध किया करो...

 


डॉ मंगलेश जायसवाल


फिर विरोध किया करो....


कभी अश्लीलता का भी विरोध किया करो,
नारी पर अत्याचार खुद भी मत किया करो,
हर नारी देवी की मूरत होती हे साहेब,
यह कटु सत्य भी स्वीकार किया करो।


खुद भी कभी गिरेबां में झाँक लिया करो,
अपने दृष्टि-दोष को भी कभी माप लिया करो,
नेट पर क्या सर्च कर रही हमारी अंगुलिया,
कभी-कभी यह भी भांप लिया करो,


कभी अपने अतीत को भी खोज लिया करो,
हो सके तो खुद पर ही शोध् किया करो,
पहले खुद मीठा खाना छोडो मंगलेश,
फिर गुड़ का विरोध किया करो।।।।


        *डॉ मंगलेश जायसवाल*
 *कालापीपल,जिला:शाजापुर(म. प्र.)*
             *९९२६०३४५६८*


लता प्रासर कविता चाहत पत्तों की तरह मैं

पत्तों की तरह
मैं भी हवा संग 
उड़ना चाहती हूं
भंवरों की तरह
मैं भी फूलों संग 
गुनगुनाना चाहती हूं
पंछियों की तरह
मैं भी आकाश को
गले लगना चाहती हूं
केंचुओं की तरह
मैं भी धरती संग
मिट्टी हो जाना चाहती हूं
लता की तरह
मैं भी पेड़ों संग
लिपट जाना चाहती हूं
पानी की तरह
मैं भी नदी संग
बह जाना चाहती हूं
चींटी की तरह
मैं भी मीठा संग
डूब मरना चाहती हूं
मछलियों की तरह
मैं भी धारा संग
सागर तक जाना चाहती हूं
आंसू की तरह
मैं भी आंखों संग
सजल हो जाना चाहती हूं
मां आपकी तरह
मैं भी भावों संग
विह्वल हो जाना चाहती हूं
पिता आपकी तरह
मैं भी जटिलता संग
कठोर हो जाना चाहती हूं
प्रिय तुम्हारी तरह
मैं भी प्रेम संग
प्रियसी हो जाना चाहती हूं!
लता प्रासर


हलधर गीतिका देश के ध्वज का हमेशा मान होना चाहिए

हलधर गीतिका


 (हिंदी)
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देश के ध्वज का हमेशा मान होना चाहिए ।
राष्ट्र गरिमा का सभी को भान होना चाहिए ।


रात दिन जो सरहदों को सींचते हैं खून से ,
उन शहीदों का सदा सम्मान होना चाहिए ।


देवता के तुल्य पूजा अर्चना हो वीर की ,
हर गली हर गांव में यश गान होना चाहिए ।


लिख गए जो वीर गाथा काल के भी भाल पर ,
उन शहीदों पर हमें  अभिमान होना चाहिए ।


गल रहे नित बर्फ में कुछ जल रहे बारूद में ,
इन सवालों का सभी को ध्यान होना चाहिए ।


जिन जवानों ने जवानी राष्ट्र हित में वार दी ,
याद में उनकी बड़ा स्थान होना चाहिए ।


राजगद्दी के  लिए जो एकता खंडित करे ,
उस बसर का मंच से अपमान होना चाहिए ।


जाति मजहब नाम पर फिरका परस्ती बंद हो ,
बस तिरंगा कौम का परिधान होना चाहिए ।


एक ही आवाज आये हर शहर हर गांव से ,
भारती का विश्व में उत्थान होना चाहिए ।


देश हित लिखता रहूँ मेरी यही है कामना ,
गीत "हलधर" कौम को वरदान होना चाहिए ।


हलधर -9897346173


संजय जैन (मुम्बई) बच्चो को शिक्षित बनाये

संजय जैन (मुम्बई)


बच्चो को शिक्षित बनाये*
विधा : गीत


रहो हिल मिलकर मेरे, 
समाज के भाई बहिनों।
में लेकर आया हूँ,
स्नेह प्यार का संदेशा।
रहे हम सब पर,
हमारे बड़े बूढ़ो का हाथ।
तभी तो हर जाती धर्म को
दुनियाँ में पहचान जाएगा।


दिलाओ बच्चों को शिक्षा
 तुम सभी लोगों।
तभी तो समाज को मिलेगा,
शिक्षित समाज का दर्जा।
इसलिए बैर भाव,
आपसी के तुम सब छोड़ों।
और बच्चो को पढ़ाई के लिए 
सदा ही प्रेरित तुम करो।। 


यही एक चीज ऐसी है,
जो कोई छीन नही सकता।
वो अपने ज्ञान के बल पर, 
कभी भूखा रह नहीं सकेगा।
इसलिए आप सभी पढ़ाई पर
बच्चों का ध्यान केंद्रित करो।
फिर कोई भी तुम्हारी
संस्कृति पर, 
नही उठा पायेगा कोई प्रश्न।
और हर जगह तुम्हे और 
समाज को सम्मान मिलेगा।
तभी तो तुम्हरी जाती धर्म का,
दुनियाँ में नाम हो जाएगा।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
18/01/2020


राजेंद्र रायपुरी  नया साल  न कोई न सुर न ताल है,

राजेंद्र रायपुरी


 नया साल  ::::::::


नया कोई न सुर न ताल है,
फिर कैसा ये नया साल है।
कल जैसा था वही हाल है,
फिर कैसा ये नया साल है।


वही  है नफ़रत की चिंगारी,
वही भुखमरी  और बेकारी।
जनता अब भी तो बेहाल है,
फिर  कैसा ये  नया साल है।


फटे  हाल  अब भी  स्कूल, 
कई  गाँव   शिक्षा   से  दूर।
शिक्षक का दयनीय हाल है,
फिर  कैसा ये नया साल है।


किस-किस का मैं करूँ बखान, 
हर   बात  न   आए  ज़ुबान।
नेताओं  की   वही   चाल  है,
फिर  कैसा  ये  नया  साल है।


             (राजेंद्र रायपुरी)


कालिका प्रसाद सेमवाल अपना मुझे बना लो राम


कालिका प्रसाद सेमवाल
अपना मुझे बना लो राम
दीन बंधु हो, दया सिन्धु हो,
भक्तो के रक्षक हो राम।
युगों युगों से अखिल विश्व के,
तुम ही संचालन हो राम।
मर्यादा पुरुषोत्तम तुम ही हो,
जन-जन के तुम प्राणाधार।
भक्ति शील सौंदर्य खान तुम,
तुम ही तो प्रभु करूणाधार  हो।
हनुमानजी परम कृतार्थ हो गये,
नाथ तुम्हारी सेवा कर।
तब पूजन -अर्चन करने को,
सुर नर मुनि रहते तत्पर।
होगा तभी सार्थक नर-तन,
जब मुझको अपना लो राम।
करता हूं सर्वस्व समर्पित,
अपना मुझे बना लो राम।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल


रत्ना वर्मा   धनबाद- झारखंड " बसंत आ गया है "   कविता " ....

 


रत्ना वर्मा
  धनबाद- झारखंड
" बसंत आ गया है "
  कविता " ....
             " बसंत आ गया है "
          प्रकृति  सौन्दर्य को न्योता दे रहा है कोई,
          लगता  है बसंत  आ गया है !!


       मन में उठते उमंगों की डोली सजने लगी है ,
         लगता है बसंत आ गया है !!


      सांसो की सिहरन छेड़ रहा है राग कई ,
        लगता  है  बसंत आ गया है !!


       गुलाबी  गालों  पे कामदेव की थपकी ,
        लगता है बसंत  आ गया  है !!


      शाखों से लगे पत्ते कुछ झूम रहे बौराए से ,
          लगता है बसंत आ गया  है !!


       महुए की महक, जैसे मद का प्याला,
       लगता है  बसंत आ गया है !!


     भ्रमर और तितलियों का फूलों पर फिरना ,
       लगता है बसंत  आ गया है !!


  स्वरचित मौलिक रचना 
  सर्वाधिकार-सुरक्षित 
   रत्ना वर्मा
  धनबाद- झारखंड


              डॉ.आभा माथुर राम

*राम*
यूँ ही नहीं समा गये,
जनमानस  में  राम
लोकादर्श  के  गढ़े
नवल धवल प्रतिमान
पित्राग्या  धारण करी
रचा  एक  आदर्श
दारा ,भ्राता संग ले
वन गमन किया सहर्ष
जीवन मुक्त किया लंकेश
बाँध  बना  सागर पर
पुनरागमन कर जन्मभूमि को
हर्ष दिया जनता को
पाया सुख फिर भी नहीं
किया  भार्या  त्याग
जन इच्छा का मान रख
पाई  विरह  की  आग
गरल  विरह का पान कर
कर्म  किये निष्काम
इसीलिये  स्थापित मन में
 हर  हिन्दू के राम
              *डॉ.आभा माथुर*


अवनीश त्रिवेदी "अभय" विदाई गीत

अवनीश त्रिवेदी "अभय"


विदाई गीत


बाबा मुझकों न भेजों इतनी दूर।
ये जानें कैसा  जहाँ  का  दस्तूर।


बहुत याद आयेगी माँ  की लोरी।
गुझियां,पापड़,खुरमे वाली होरी।


दीवाली में छत पर  दियें  जलाना।
मिठाई सबसे पहले मुझे खिलाना।


हमें रूठने पर अब कौन मनाएगा।
परियों की कहानी कौन सुनाएगा।


माँ-बाबा कभी  मुझे  भुला न  देना।
आएँ- गए रहना कभी रुला न देना।


जहाँ जन्में वो  आँगन  छोड़ना  हैं।
अब हमको नया रिश्ता जोड़ना हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


मुक्तक अवनीश त्रिवेदी"अभय"

अगर ये  जवानी  गुजर  गई  मिलेगी  नही।
फिर तो उर उपवन में कलियाँ खिलेगी नही।
आओ   हमराह  बनकर  ये  जीवन  गुजारे।
कभी तन्हा जीवन  में खुशियाँ  पलेगी  नही।
अवनीश त्रिवेदी"अभय"


निशा"अतुल्य" उड़ान

निशा"अतुल्य"


उड़ान
दिनाँक      18/ 1/ 2020


मैं स्त्री 
सुनती सबकी 
करती भी थी कही सबकी 
आज मैंने अपने पंखों को 
जरा सा खोला
थोड़ा सा फड़फड़ाया 
और भरी एक उड़ान
देखा सभी ने आश्चर्य से मुझे
खुले पंखों को देख मेरे
नही किया यकीन किसी ने 
कि मेरी परवाज भी हो सकती है 
इतनी ऊँची आसमान के करीब
खिलते पुष्प सी,डोलते भंवरों सी
रंग बिरंगी उड़ती तितली सी
व्यक्त करती अपनी अभिव्यक्ति
दर्ज करती विरोध अव्यवस्थाओं का
देख जिसे दबाई अँगुली दांतो तले
और देखी मेरी उड़ान 
ऊँची मेरी तमन्नाओं की
हो कर जिस पर सवार मैं
हो गई उन्मुख 
तोड़ती सभी दायरों को 
जो नही स्वीकार्य अब मुझे 
मेरा आकाश,मेरी उड़ान 
मेरी जिंदगी मेरे ही सपने 
है आश्चर्यचकित सभी
जिंदगी की चाहते अब मेरी 
जो हैं सिर्फ मेरी 
मेरे ही पंखों पर सवार 
उड़ान मेरी 


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


गनेश रॉय "रावण"🖋 भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ बेजान सी मूरत"

 


"गनेश रॉय "रावण"🖋
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ बेजान सी मूरत"
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एक छोटी सी गली में...
एक मासूम सी काली थी
आते-जाते मुझे .......
एकटक देखा करती थी
कभी हँसती थी
कभी शर्माती थी
कभी पाँवो में पायल
कभी जुड़े में गजरा
कभी होंठो पे लाली
कभी माँथे पे बिंदिया
कभी हाथो में कँगन
कभी आँखों मे काजल
कभी कमर में करधानिया
नाजाने........कितने....
सोलह श्रृंगार करती थी
कहना चाहती थी कुछ बात
फिर किस बात से वो डरती थी
गाँव की तंग गलियों में....
दबे पांव वो चलती थी
कोई सुन...ना..ले आहट मेरी
ये सोच के घबराती थी
परेशान तो मैं भी था उस रात
जब डोली उसकी सजी थी
दोनो के आँखों मे नमी थी
पर उसे किसी बात की कमी थी
दिखने में तो बड़ी सुंदर दिख रही थी
पर वो सोलह श्रृंगार बेजान सी लग रही थी
क्या....उसे मुझसे प्यार था
या.....कुछ और ही बात था
ये बात मुझे आज तक समझ नही आया
जब भी आती है वो गाँव में
उसे देखकर ऐसा लगता है
जैसे कोई मूरत हो बेजान सा ।।


🖋गनेश रॉय "रावण"🖋
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


कबीर ऋषि सिद्धार्थी बदनाम, नादानियों  ने  बदनाम  कर दिया  हमें

 


कबीर ऋषि सिद्धार्थी


बदनाम★
नादानियों  ने  बदनाम  कर दिया  हमें
वरना  इतने   बुरे  भी   नहीं  थे   हम।


नाम तो   बहुत  होगा  ठुकरा   दिया है
तो      बदनाम   भी     बहुत      होगा।


वो रिश्तों  को  अब नाम देना  चाहते हैं
सच कहें  तो बदनाम  करना  चाहते हैं।


काश! मैं  तेरे इश्क़ में  नीलाम हो जाऊं
अगर  तू  कहे   तो   बदनाम  हो जाऊं।


फिर भी  तुम्हें   प्यार  करना   चाहता हूँ
सच कहें  तो मैं बदनाम  होना चाहता हूँ।


-कबीर ऋषि सिद्धार्थी
सम्पर्क सूत्र-9415911010


सुनीता असीम आगरा आप हमको प्यार में बस आजमाना छोड़ दें

सुनीता असीम आगरा


आप हमको प्यार में बस आजमाना छोड़ दें।


साथ देके कुछ हमारा यूँ जताना छोड़ दें।


***


कर दिया हमको बड़ा माँ-बाप ने जैसे किया।


कर्ज उनका क्या बड़े होकर चुकाना छोड़ दें।


***


जिन्दगी में साथ अपने कुछ बुरा जो हो गया।


तो खुदा के सामने सर को झुकाना छोड़ दें।


***


दीन दुखियों को सताना और उनको मारना।


पाप ऐसे कर्म से हम अब कमाना छोड़ दें।


***


प्यार देती है हमें ममता लुटाती है सदा।


प्रेम की मूरत रही माँ को रूलाना छोड़ दें।


***


सुनीता असीम


१८/१/२०२०


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।बरेली।।।।

*जीवन तेरा शमशान किसलिये है*
।*
*।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।*


इस  कदर  यह  गुस्सा और,
अभिमान  किसलिये  है।


उबलती  नफरतों   का  यह,
तूफान    किसलिये    है।।


इस  आग  में   जल  कर  तू,
भी    हो   जायेगा   खाक।


कह  उठेगा   तब   कि    तेरी,
दुनिया वीरान किसलिये है।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।


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