सौदामिनी खरे,*दामिनी* रायसेन मध्यप्रदेश कविता जवानी पल पल घटता ये जीवन जीने की प्यास  बढ़ाता है

सौदामिनी खरे,*दामिनी* रायसेन मध्यप्रदेश कविता जवानी



पल पल घटता ये जीवन जीने की प्यास
 बढ़ाता है
सुख-दुख के झूले मे जीवन चलता जाता है
मौसम यू परिवेश बदलता हर पल हमें लुभाता है
पल पल *********
वर्षा मे शरदी की पुकार ,
शरदी मे गर्मी बुलाता है
हर मौसम की मुस्कान खुद मे समेटे जाता है
पल पल **********
बचपन यूँ खेल खिलाये जवानी 
मे सो सो कर समय बिताता है,
जवानी के अनमोल समय को यूँ  क्यों बिताता है 
पल पल *************
उम्र गुजरते ही ईश्वर से ध्यान  लगाता है,
धूल धूसरित मुर्झाया पुष्प ईश्वर को भेंट चढ़ाता है,
समय गया फिर क्यों पछताता है
पल पल घटता ये जीवन जीने की प्यास जगाता है ।


 
 
रचना कार-सौदामिनी खरे,*दामिनी* रायसेन मध्यप्रदेश ✍🏻🙏🏻


परिचय  बृजेश कुमार अग्निहोत्री (पेण्टर)  संपादक काव्य रँगोली हिंदी साहित्यिक पत्रिका

परिचय 
बृजेश कुमार अग्निहोत्री (पेण्टर) 


संपादक काव्य रँगोली हिंदी साहित्यिक पत्रिका
आत्मज-स्व. श्री दयाशंकर अग्निहोत्री 


लेखन-हाइकु, क्षणिका, दोहा, कुण्डलियाँ, मुक्तक, गीत,  कविता
संस्मरण, कहानियाँ,  सामयिक लेख इत्यादि l


प्रकाशन -
काव्य रंगोली, मधुराक्षर, अन्वेषी, शव्दगंगा, विन्दु में सिंधु, फतेहपुर जनपद के हाइकुकार, शव्द-शव्द क्षणबोध, पथविकास आदिक पत्रिकाओं एवं संकलनों सहित अनेक राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में l 


सम्प्रतिवृत्ति-
सामान्य आरक्षित अभियंता बल (ग्रेफ) में सेवारत l


स्थाई पता-
निवास-खरौली, पोस्ट-मिराई, 
जनपद-फतेहपुर, पिन-212665


वर्तमान पता -
मुख्यालय-1071क्षेत्रीय कार्यशाला (ग्रेफ)
पिन -931071
द्वारा -56 सेना डाकघर 


उपलब्धियां-


उत्तराखंड सरकार द्वारा आपदा के समय अतुल्य सेवा हेतु सम्मानित 


काव्य रंगोली द्वारा साहित्य के क्षेत्र में काव्य भूषण सम्मान 


36 कृतिक बल द्वारा हिंदी दिवस पर दो बार सम्मानित 


49 कृतिक बल द्वारा भी हिंदी दिवस पर दो बार सम्मानित l


काव्य रंगोली द्वारा मातृत्व ममता सम्मान द्वारा सम्मानित l


राजेन्द्र रायपुरी।। कविता आँसू और मुस्कान

 


राजेन्द्र रायपुरी।। कविता आँसू और मुस्कान


आँसू और मुस्कान,
ये ही तो हैं,जीवन की पहचान।
जब तक है ये ज़िंदगी,
ये दोनों रहेंगे।
मरने के बाद,
न आप हँस पाएँगे,
न आँसू बहेंगे।


आँसू,नहीं है केवल ग़म की निशानी।
खुशी में भी आ जाता है,आँखों में पानी।
यही तो है,
जो सुख-दुख में साथ निभाता है।
वर्ना मुस्कान तो,
ग़म में दूर भाग जाता है।


आँसू दिल के रास्ते आँखों तक आ जाते हैं,
और दिल की भावनाओं को बताते हैं।
जब कोई बिछड़ जाए अपना,
तो आँखों को भिगोते हैं,
और खुशी में,
भरे प्याले की तरह छलक जाते हैं।


        ।। राजेन्द्र रायपुरी।।


एस के कपूर श्री हंस मुक्तक

*है जीवन प्रतिध्वनि की* *भांति।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।*


जैसा दोगे तुम  यहाँ  वैसा
ही  लौट     कर   आयेगा।


विश्वास   घाती   स्वयं   भी
अवश्य  धोखा   खायेगा।।


जीवन  प्रतिध्वनि की तरह
वैसा  ही  जवाब  पाते  हैं।


आदर देने वाला ही जीवन
में  सदा  सम्मान  पायेगा।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।बरेली।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।


निशा"अतुल्य" कविता भूल 

 


निशा"अतुल्य"
भूल 


कुछ पल बीते याद दिलाते हैं
जब माँ ने अ आ सिखाया था
पकड़ हाथ मेरा सँग लेखनी
लिखना मुझको सिखलाया था।


अब अक्षर ज्ञान बघार कर
मन मेरा भरमाया था ।


कैसे मन मेरा भूल गया 
अस्तित्व मेरा नही बिन उनके था ।


कर दी रचना समर्पित जब माँ को 
तब दूर मन का व्यवधान हुआ था।


आशिर्वाद स्वरूप तब माँ से 
हर सफल रास्ता पाया था ।


आज जो भी हूँ उनकी हूँ कृति
बन गई,जो उन्होंने मुझे बनाया था।


ये ज्ञान दिया था उन्होंने मुझको 
सोच का मेरे विस्तार किया था ।


मैं शत शत नमन करूँ मात पिता को
जिन्होंने जीना मुझे सिखाया था।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


अवनीश त्रिवेदी "अभय" हमराह चाहिए

अवनीश त्रिवेदी "अभय" हमराह चाहिए


जिंदगी  की  राह  पर,  चले  हैं अकेले खूब,
अब  आगे   चलने   को,   हमराह   चाहिए।
जीवन के सभी गम,  मिल कर  मिटा  सकें,
ऐसी   कोई  हमें  कभी,  तो पनाह  चाहिए।
जिस पे चल के पायें,  मंजिलें  सदा  ही हम,
अब  सफ़र  में  कोई,  वैसी    राह  चाहिए।
हैं दर्शनीय  वस्तुएँ, जहाँ  में  "अभय"  खूब,
किसे, कहाँ, कैसे  देखे, वो निग़ाह  चाहिए।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


गनेश रॉय "रावण "गरीबी की सियासत"

गनेश रॉय "रावण


"गरीबी की सियासत"
""""""""""""""""""""""""""""""
चंद रुपय में बिकता है
जिश्म यहाँ गरीबी का
चिथड़े ढाँप रखा है तन
देखो खेल फकीरी का


दीन हीन सब विलाप रहे हैं
हाय ! रे खेल नशिबो का
अच्छा ठगा है किसी ने
खेल है बस कुर्सियों का


अपराधों का चलन बढ़ा है
राजनीति के साये में
पढ़े लिखे अब घूम रहे हैं
लिये हथियार बाजारों में


देखो सियासी बोल रहे हैं
चुनावी अखाड़ो में
अब गरीबी दूर होगा
इस बार चुनावों में 


लेकर आस नेता जो चुनते
जनता हरबार चुनावो में
वही मुँह की खानी पड़ती
जुमले बस चुनावों के ।।


✒गनेश रॉय "रावण"✒
भगवानपाली,मस्तूरी,बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


अतिवीर जैन,पराग,मेरठ कविता अपराधी


अपराधी :-


मैं अपराधी हूँ,
क्योंकि मैं सच को सच,
झुठ को झुठ कह जाता हूँ.


कोई मुझे चालाक समझता,
कोई बेवकूफ कहता है.
घरवाले भी आधी छिपाते,
आधी बताते है.
जब बिगड़ जाता कोई काम,
दोषी मुझे ही ठहराते है.
हाँ मैं अपराधी हूँ,
क्योंकि मैं सदा मुस्कराता हूँ,
रहना चाहता हूँ शान्त,
पर रह नही पाता हूँ.
स्वरचित,
अतिवीर जैन,पराग,मेरठ


कविता ,जीवन सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"जीवन"*
"जीवन नाम है-गीत का,
उल्लास का-
उत्कर्ष और आनंद का।
जीवन ही जीवन देता यहाँ,
अटल नियम -
सृष्टि चक्र का।
श्रम साधना से ही तो,
पूर्ण होती इच्छाएं-
मिलता सुख जीवन का।
सत्य और सत्यानुभूति भी,
चाहती साधना-अराधना-
पूर्ण होती जीवन की कामना।
भक्ति संग ही चलता जो यहाँ,
जीवन पथ पर-
होता प्रभु से सामना।
फिर-
होती न भटकन जीवन में,
न होती कभी-
अधूरी कामना।
जीवन नाम है-गीत का,
उल्लास का-
उत्कर्ष और आनंद का।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः        20-01-2020


सुनील कुमार गुप्ता कविता इस जीवन से

कविता:-
      *"इस जीवन से"*
"मिट सकती चिन्ताएं सारी,
साथी इस जीवन से।
हो सकता है आनंदमय,
जीवन भक्ति से।
गुनगुनाएं जा सकते गीत,
साथी इस जीवन में।
मिल सकती मुक्ति जीवन में,
साथी चिन्ताओं से।
-लेकिन,
करनी होगी जीवन में अपने,
साधना-अराधना।
अन्यथा चिन्ताएं साथी,
खा जायेगी जीवन को।
दे जायेगी जीवन को अपने,
रोग-शोक-निराशा।
मिट सकती है चिन्ताएं सारी,
साथी इस जीवन में।
हो सकता है आनन्दमय,
साथी जीवन भक्ति से।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः      19-01-2020


प्रियव्रत कुमार हमारा देश हमारा परिवार

प्रियव्रत कुमार


हमारा देश हमारा परिवार
=============


नजरें छुपा-छुपा कर
तुम जा कहाँ रहे हो
ये देश है हमारा 
क्यूँ इसे ठुकरा रहे हो।


बन के तू आतंकी
पुरानी सीरत गवा रहे हो
अपने गोलियों के धुन से
क्यूँ इसको डरा रहे हो


क्या तुम्हें पता है
इसी भूमि पर पले बढ़े हो
फिर इन बारूदों से
क्यूँ सीना इसका दहला रहे हो।


कल तक था जिनको पूजा
आज उन्हें ही रूला रहे हो
कल बनाया जिसे सुहागन
आज सुहाग उसका मिटा रहे हो
नजरों की बात छोड़ो
क्यूँ बहन से कलाई छुपा रहे हो।


यहाँ मां, बहन, बेटी,भाई सभी  हमारे
फिर क्यूँ दरिंदे बन रहे हो
अपनी दरिंदगी से 
क्यूँ इनको सता रहे हो।


अब भी वक्त है तू आ जा
जिस राह से गुजर रहे हो
जिससे खिल उठे वतन हमारा
क्यूँ न उसे अपना रहे हो।
ये देश नहीं परिवार है हमारा
क्यूँ इसको सता रहे हो।


आपका:--प्रियव्रत कुमार


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"  दोहा छन्दः मात्रिक शीर्षकःबनी अधीरा बावली

कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


 दोहा छन्दः मात्रिक
शीर्षकःबनी अधीरा बावली


प्रियतम    संग    अठखेलियाँ , पीली   सरसों  खेत। 
फूलझड़ी  सम    चंचला ,मद    यौवन   अभिप्रेत।।१।। 


मटकाती    पतली  कमर , लहराती     शिर    बाल।
बनी   कटारी    नैन   से , प्रियतम   दिल     भूचाल।।२।।


दूज चन्द्र    मुस्कान   मुख   , ओढ़   दुपट्टा    लाल।
बोली    मधुरिम   घातकी , कोमल   पुष्पित   गाल।।३।।


हहराती    आँधी    समा , भरती    हिरण     उड़ान।
सजी   बावली    यौवना ,  प्रीत    मिलन   अरमान।।४।।


दिखा     रही     मासूमियत , अश्क  प्रीत  भर नैन।
मादकता   हर    भंगिमा,  हरती    साजन      चैन।।५।।


प्रीत    गंध    मकरन्द   बन , मनमोहन    रतिराग।
बनी     अधीरा    बावली ,  आलिंगन     दिलबाग।।६।।


उरोज  तुंग    चारुतम , उच्छल   जलधि      तरंग।
नितम्ब   युगल   मचक रही , मिलन प्रीत  के  संग।।७।।


कुमुदिनी   कुसमित वदन , अभिसारित निशिचन्द।
बदली  रूप   सरोजिनी , खिल   प्रभात   मकरन्द।।८।।


लुकी  छिपी  बचती  नज़र , आयी   लिपटी   मीत।
गायी   सजनी   मधुरिमा , कोकिल   साजन  गीत।।९।।


प्रमुदित चित्त चकोर सम , लखि  यौवन अभिराम।
बनूँ  श्याम  प्रिय  राधिका , हो  निकुंज  सुखधाम।।१०।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


प्रिया सिंह लखनऊ गजल

ए खुदा मेरे महबूब से मुझे मिला क्यों नहीं देते
इन्तजार का मेरे कुछ तुम  सिला क्यों नहीं देते 


गर____ वजूद को मेरे उखाड़ फेंकना है तुझे 
तो जड़ मोहब्बत का तुम हिला क्यों नहीं देते 


बेहोश कर रखने से कोई फायदा नहीं हमदम
तुम चाशनी मोहब्बत की पिला क्यों नहीं देते 


बना कर गर कठपुतली रखा है इस दिल को
इजाज़त__ मोहब्बत की दिला क्यों नहीं देते 


एक ख्वाब की वादी को भर रखा है गुलों से 
मेरे आंगन में भी, फूल खिला क्यों नहीं देते 


 


Priya singh


तनुज गोयल टोहाना पता- शहर टोहाना, जिला फतेहाबाद(हरियाणा) विजय दिवस  ‌अमर आज इतिहास हो गया

तनुज गोयल टोहाना
पता- शहर टोहाना, जिला फतेहाबाद(हरियाणा)


विजय दिवस 


‌अमर आज इतिहास हो गया :-                            सोलह दिसंबर 1971 - यह दिन बड़ा ही निराला था,   
पूरी दुनिया ने भारत का मिलकर लोहा माना था,
 
सुनो ध्यान से दुनिया वालों,शहादत की यह ऐतिहासिक ज़ुबानी है,           
पाकिस्तान पर भारत की जीत की अमर कहानी है, 


पूर्वी पाकिस्तान में मचा हुआ था बवाल,           
जनता हो रही थी त्राहि-त्राहि ओर बहुत ही बे-हाल,      
भारतीय कमांडर जगजीत सिंह का तब जोश से माथा ठन-का, 
हजारों सैनिकों का काफ़िले लेकर वह पाक पर खूब बरसा,
पाकिस्तानी कमांडर - नियाजी को लगा तब डर सताने, 
तिरानवें हजार सैनिकों के संग आ गए आत्मसमर्पण करवाने,
युद्ध की इस जद्दोजहद में हमारा भी नुकसान हो गया,
शहीद हो गए बहादुर कुछ तो कुछ का लहूलुहान हो गया,
                                                                
देखते ही देखते बांग्लादेश भी आजाद हो गया, 
बलिदान दिया उन शूरवीरों का ,
अमर आज इतिहास हो गया- 
अमर आज इतिहास हो गया।।                           तनुज की कलम से


कैलाश , दुबे , शायरी

शायरी


इश्क किया उनसे ,
और बो खफा हो गए ,


दिल लगाया भी हमसे ,
और कहीं दफा हो गए ,


राह ताकते रहे हम भी ,
जाने कहाँ बो खो गए,


हरेक जुल्फ से खिजाब ले आऊँ ,
तू कहे तो मैं लिहाफ ले आऊँ ,


न बुढ़ापे का पता न ठंड का पता चल पाये ,


गर तू कहे तो मैं और खिजाब ले आऊँ 


कैलाश , दुबे ,


 


विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छग अभिव्यक्ति मत मुझको लेकर आह भरो

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग अभिव्यक्ति


मत मुझको लेकर आह भरो
----------------------;;-----------


मैंने तुमसे कभी कहा क्या
तुम मेरी परवाह करो
मुझे दया मय भाव न देना
मत मुझको लेकर आह भरो।


बाधाओं से लड़ना भिड़ना
सहज वृत्ति से ही सीखा है
क्रूर प्रहार समय का
चाहे कितना भी तीखा है
अनुनय विनय नही करना 
अनुचित बातों पर
देखूं कितना शक्ति समाहित
कुटिल काल के आघातों पर
निज प्रवृति पर कायम रह
केवल केवल दाह करो
मैने तुमसे कभी कहा क्या
तुम मेरी परवाह करो ।


भ्रम भय से मै मुक्त
सतत् ही सजग रहा हूं
पथ के पत्थर तोड़
निरंतर अग्र बहा हूं
सींचा हूं बंजर धरती
उसे उर्वरा बनाया
कभी नही सोचा बदले मे
क्या क्या पाया
गह सकते तो निश्छल
मन से बांह गहो
मैने तुमसे कभी कहा क्या
तुम मेरी परवाह करो ।


विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग अभिव्यक्ति-686


हीरालाल गजल  सराबों  में  जीवन  बिताया  न  कर।

हीरालाल गजल 


सराबों  में  जीवन  बिताया  न  कर।
हक़ीक़त  से  नज़रें  चुराया  न  कर।


मुकम्मल  नहीं  जो  कभी   हो  सके
वो सपना किसी को दिखाया न कर।


बुराई  के  पथ  पर  बढ़ा  कर  कदम
सुकूँ  चैन  दिल  का  गँवाया  न कर।


हुआ  सो  हुआ  दिल  उसे  भूल जा
सहर  शाम  आँसू   बहाया  न  कर।


फ़रेबों    से   *हीरा*   जहां   है   भरा
ज़माने   की  बातों  में आया न कर।


                 हीरालाल


इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर वरिष्ठ उपाध्यक्ष आलोक लोक सेवा संस्थान

*आलोक लोक सेवा संस्थान (रजि0)*


दिवस: रविवार
दिनांक: 19-01-2020
*सादर समीक्षार्थ प्रस्तुत*


मनहरण घनाक्षरी।


(1)
प्रेम के जो भाव मिले दिल छू गए हैं आज,
भाव जहाँ दिव्य सुखधाम है स्वतंत्रता
शब्द शर से जो लगे घाव उन्हें पूरें यहाँ
कष्ट हरे सब के वो नाम है स्वतंत्रता
कामना से दूर करे वासना से मुक्त करे
प्रेमयुक्त ललित ललाम है स्वतंत्रता
छदमवेश धारी लगे संस्कार लुप्त करें
हुई आज देखो बेलगाम है स्वतंत्रता।


(2)
प्रेम में मगन जो हैं सतरंगी सपने ले,
बुन बुन उन्हें अतिशय सुख पाते हैं।
वेगवती प्रेमिका है चाँदनी सी प्रीति लिए,
मन में बसी है किंतु देख के लजाते हैं।
स्नेह अंतरात्मा का नयनों का नीर बने,
बोल अधरों पे किन्तु कह नहीं पाते हैं।
उपजें ही बरबस भाव यहाँ मन में जो,
भाव वही छंदबद्ध गीत बन जाते हैं।


(3)
दूसरों के पेट की क्षुधा को तृप्त करें यदि,
आज सबसे बड़ा यही तो मित्र धर्म है।
धर्म है निभाना यदि अहंकार त्यागकर,
इसे त्यागने में साथी कैसी आज शर्म है।
शर्म है अगर आज काम कुछ बने नहीं,
काम जो बनाये सदा वह सत्य कर्म है
कर्म है वही करें जो वश में हमारे यहाँ,
इसे पहचानें यही धर्म का जो मर्म है।


(4)
राम की ही भक्ति की व व्रत उपवास किये,
मन में तो कामना थी बस मित्र दाम की।
दाम की ही कामना में फँसते गये थे मित्र,
लगन लगी थी रोज रोज नए काम की। 
काम की जो आग लगी तपने लगा शरीर,
वासना में डूबे रहे फिक्र न थी नाम की।
नाम की ही महिमा में डूबा मन जब आज,
अपने हृदय में दिखी छवि श्री राम की।


(5)
जीवन को जीते जीते अपने से हुए दूर
अवगुण त्याग गुण धारने में जीत है
कहता जो प्यार उसे पल में ही मान जाँय,
रूठे हुए प्रिय को पुकारने में जीत है।
कामना सताए यदि अपने को साध साध
वासना दमित करें मारने में जीत है।
सत्य ही स्वीकार करें त्याग त्याग अहंभाव
त्रुटियों को अपनी सुधारने में जीत है।


(6)
छद्मवेशी छल छंद से बचेंगें आप जब,
मन में अज्ञान का ये कोहरा न छायेगा।
अंधकार दूर करने को बनें ज्ञान पुंज,
ज्ञान सूर्य जग में तभी तो उग आएगा।
धर्मग्रंथ अपने सभी हैं शुद्ध इतिहास,
इन्हें पढ़े परिवार तो ही बल पायेगा।
आत्मसात इतिहास अपना करेंगे जब,
तभी सारे विश्व में तिरंगा लहराएगा।


--इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर
वरिष्ठ उपाध्यक्ष
आलोक लोक सेवा संस्थान।


लता प्रासर जल जीवन हरियाली की जय

लता प्रासर
जल जीवन हरियाली की जय


सड़क किनारे पेड़ लगाकर हरियाली हम बढ़ाएंगे
नदी तालाब में जल संचय कर स्वच्छ जल की मात्रा बढ़ाएंगे
गांव शहर और गली गली में जागरूकता फैलाएंगे
ऑक्सीजन और जल की सुरक्षा से जीवन आसान बनाएंगे!
लता प्रासर


घनाक्षरी अवनीश त्रिवेदी अभय

एक घनाक्षरी
सादर समीक्षार्थ


महकी बयार हैं तू, इत्र  की  फुहार  हैं  तू, 
चलती हैं ऐसे जैसे, हिरनी  की  चाल  हो।
लट लटकाती कभी, मन  मुसकाती कभी,
देती  हैं  जवाब  जैसे, करती  सवाल  हो।
ये रूप हैं गुलाब सा, ह्रदय के  हिसाब सा,
ऐसे  झूमती  हैं  जैसे, सुमनों की डाल हो।
ये  चंचल  नयन  हैं, ये  पावन  भी  मन  हैं,
बड़ा   इठलाती  जैसे,  करती   धमाल  हो।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


मधु के मधुमय मुक्तक मधु शंखधर प्रयागराज

*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*त्याग*


◆दूजों का हित करने को जो,अपना भी सुख त्याग सके।
नव आशा की ज्योति जलाकर, अंधकार में जाग सके।
अपना सब कुछ अर्पण करना, इतना भी आसान नहीं।
भाव त्याग जब अन्तर्मन में,सर्वस्व वही  त्याग सके।।


◆ त्याग दधीचि का यही समझो,अस्थि सहज ही दान दिया।
कर्ण सहज ही दान दिया था, कवच व कुंडल जान दिया।
त्याग भरत का जीवन जानो, राज त्याग कर बैठे जो,
हँसके त्यागे जीवन अपना,भारत माँ ने मान दिया।।


◆ जब तक मन में लोभ बसा हो,त्याग भाव क्या आएगा?
पाने की बस इच्छा हो जब, दान भला  कर पाएगा।
मन पर धरे नियंत्रण जो जन, सहज भाव बस वो पाए,ं
*मधु* कहती है बात निरंतर, *त्याग* अमर हो जाएगा।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
*19.01.2020*


निशा"अतुल्य" मैं भारत माँ का बेटा हूँ

निशा"अतुल्य"
मैं भारत माँ का बेटा हूँ
19 /1/ 2020 


भारत देश हमारा विविधता की पहचान है
तीन रंग संग चक्र चमकता इसकी शान है 
सहिष्णुता पहचान है इसकी सर्वधर्म समभाव है
मैं भारत माँ का बेटा हूँ भारत मेरी जान है।


सुबह सवेरे आँख खुले जब पक्षी कलरव करतें हैं
सारी ऋतुएं आएं समय पर हर मौसम सँग खिलते हैं।


नील गगन में उड़ी पतंगे संक्रांति त्यौहार है 
कहीं हैं पोंगल, कहीं पे खिचड़ी लोहड़ी का त्यौहार है।


भारत मेरा देश महान ये मेरे जीवन की शान है
मातृभूमि पर मर मिट जाऊँ, ये मेरी आन और बान है ।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


गनेश रॉय "रावण"🖋 भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ "फरेब"

 


गनेश रॉय "रावण"🖋
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


"फरेब"
"""""""""'
मत देखो मेरे अतीत के पन्ने
तुझे पलट कर क्या मिलेगा
कल जैसा था....
आज वैसा हूँ नही
आज जैसा हूँ....
वैसा कल था ही नही
वक़्त ने मुझे सीखा दिया फरेब करना
वरना मैं भी कल इंसान था....
कोई भेड़िया नही
अपने और परायो में फर्क था नही....
सब को अपना समझता था
पर कोई अपना था ही नही
आज अपनो ही ने मुझे लुटा है
इसलिए परायो पर विश्वास नही
सब कहते हैं मुझे...
कितना मतलबी ये इंसान है
खुद की खुदगर्जी करता है
और किसी इंसान पर....
क्यो इनको भरोसा नही
कैसे समझाऊँ इन लोगो को
किसी इंसान ने ही किसी इंसान ने छला है
अच्छा है .........
ये काम किसी शैतान का नही।।


🖋गनेश रॉय "रावण"🖋
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


आशा त्रिपाठी       हरिद्वार सुरभित जीवन की रस धारा,

 


आशा त्रिपाठी
      हरिद्वार


सुरभित जीवन की रस धारा,
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
 
मन भव मृदुल ,सहज दृग दीपक,
स्वप्न सरस नव,छवि मनमोहक।
चितवन चपल मिलन सुखदायक।
सुधि तेरी अविराम सहारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*


पग ध्वनि सुन श्वांसों पर कम्पन।
प्रणय प्रीत नव भाव आलम्बन।
सुख सोना करुणा रस बंधन।
निर्मल प्रीत सुरसरि जल धारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*


 हृदय राज पुलकित यह तन मन,
 नवल श्रृंगार तुम्ही  नवजीवन।
आत्म प्राण प्रिय हो जीवन धन।
तुम आदि-अंत लख प्रीतम प्यारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*


इच्छाओं की मधुर आरती,
बन वीणा सुखसार वारती।
तुमसे प्रिय जीवन हारती।
तुझ पर प्रिय यह जीवन वारा
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
अक्षय स्मृति मम प्राण प्रीत,
सुरभित निकेत है प्रखर रीत।
रोंमों मे पुलकित अमिय मीत।
मधुमय बसन्त जीवन न्यारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
प्रिय तुमसे ही अक्षय सुहाग,
मधुमित काया नव वीतराग।
सुमधुर गुंजन ,सुधि हो विहाग।
गुजिंत मम उर प्रीतम प्यारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
  श्याम मेरे हिय की गति जानो।
  मै हूँ  मीरा सम राधे मानो।
  दृग दीपक मम स्वप्न अधारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*


*आश* गीत प्रिय स्नेह का बन्धन।
माथ की बिन्दियाँ भाव का कंगन।
कनक मणि मम हिय उजियारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
✍आशा त्रिपाठी
     १९-०१-२०२०
      हरिद्वार


अपर्णा शर्मा           "शिव संगीनी" विधा   : कविता  शीर्षक: दर्द राज्य  : अंकलेश्वर,            गुजरात 

नाम  : अपर्णा शर्मा 
         "शिव संगीनी"
विधा   : कविता 
शीर्षक: दर्द
राज्य  : अंकलेश्वर,
           गुजरात 


 


             *दर्द*


 


यादें मेहमानों की तरह 
आती जाती हैं 
जो बिन बताए कहीं भी 
मिल जाती है 
इनके जाने के बाद दिल में 
तूफान सा मचता है 
जिसे जितना दबाए उतना 
उभर आता है 
दबे हुए जख्मों को फिर से 
उभार देता है 
जिंदगी तेरे बिना यूँ ही कट जाती है 
तेरी यादें इस दिल में लौट आती हैं 
दर्द जुदाई का जो तुम देकर जाते हो 
अब हाल मेरा ऐसा है ना मरती हूँ  ना जीती हूँ 
 यादें मेहमानों की तरह आती जाती हैं 
जो बिन बताए कहीं भी 
मिल जाती है।


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