रीतु देवी"प्रज्ञा"     दरभंगा, बिहार समर्पण भारती वन्दना

रीतु देवी"प्रज्ञा"
    दरभंगा, बिहार


समर्पण
*******
समर्पित है माँ भारती तेरे चरणों जान,
वंदन कर नित्य तेरा बढाऊँ मान।
लालसा है रमी रहूँ तेरी गुणगान में
युगों -युगों तक चार चाँद लगा दूँ शान में
जीवन संवरे तेरी आँचल तले,
राष्ट्र कर्म पथ बढे पग अपना शनै:-शनै:।
नहीं है अभिलाषा पुष्पों सेज,
मिलती है खुशी  संतोष भरी थालियाँ सजाकर मेज।
पन्ना-पन्ना रच दूँ गौरव गाथा,
अटल अचल रह रक्षा करूँ तेरा स्वर्णिम माथा।
तेरे सम्मान की जीजीविषा पलती हरक्षण मन मंदिर में
राष्ट्रद्रोही की सिर कलम कर बहा दूँ समंदर में
समर्पित है माँ भारती तेरे चरणों जान,
वंदन कर नित्य तेरी बढाऊँ मान।
    रीतु देवी"प्रज्ञा"
    दरभंगा, बिहार
 22-01-2020
स्वरचित एवं मौलिक


अपर्णा शर्मा              "शिव संगीनी" विधा   कविता जिंदगी  गुजरात 

नाम    :  अपर्णा शर्मा 
            "शिव संगीनी"
विधा   :  कविता 
शीर्षक :  जिंदगी 
राज्य   : अंकलेश्वर, 
            गुजरात 


 


       
           *जिंदगी* 


 



जिंदगी का मतलब क्या है 
कोई ना जान सका 
जीवन सुख-दुःख धुप-छाँव  
कभी असफलता तो कभी 
                    सफलता है 
चाह तो सभी को होती है 
जिंदगी तो रोज नए सपने 
                      देखती है 
अपने अरमानों को पूरा करते हैं 
शांति से गुजर जाए हसीन  सी  
जिंदगी यही तो चाहती है 
जिंदगी सफर चलना है 
वो चलती रहती है 
यहीं रुक गई जिंदगी 
वो दुःख में भी चलते रहते है 
खत्म हो जाने के बाद 
जिंदगी की यादें रह जाती है 
जिंदगी का मतलब क्या है 
कोई ना जान सका।


सुनीता असीम गीतिका है हसीनों में यहाँ मान बहुत

 


सुनीता असीम


गीतिका


है हसीनों में यहाँ मान बहुत।
प्यार से वो तो हैं अनजान बहुत।
***
जिन्दगी जिनको मुसीबत ही लगे।
मैं कहूँ उनको है आसान बहुत।
***
झूठ में जीते रहे जीवन को।
पर रहें इसके भी नुकसान बहुत।
***
दायरा सच का बढ़ाऊँ कैसे।
मुझको लगता ये न आसान बहुत।
***
गर दिखाएँ वो बड़ा मान हमें।
छोड़ दो उनको हैं धनवान बहुत।
***
सुनीता असीम
२१/१/२०२०


देश भक्ति को समर्पित मुक्तक एस के कपूर श्री हंस

*।।।।देश भक्ति को समर्पित एक*
*।।।।।।।।।मुक्तक ।।।।।*


राष्ट्र की   हर सीमा पर
तिरंगा हमें लहराना है।


सम्पूर्ण संसार में शान्ति
संदेश हमें फैलाना है।।


प्रेम न्याय समभाव  का
संस्कार दूत बनना हमें।


सोने की चिड़िया वाला
हिन्दुस्तान कहलानाहै।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर* *श्रीहंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।


काव्यरंगोली हिंदी दिवस प्रतियोगिता परिणाम 2020*

*काव्यरंगोली हिंदी दिवस प्रतियोगिता परिणाम 2020*
आप सभी को बहुत बहुत बधाई सभी रचनाये एक से बढ़कर  एक थी जिसमें हमारे निर्णायक मंडल के द्वारा 10 रचनाओं को वरीयता क्रम में पुरस्कृत किया गया है । जिन रचनाओं को पुरस्कृत नहीं किया जा सका है वह रचनाएं भी किसी से कमतर नही है, अतः जो निर्णायक मंडल की दृष्टि में श्रेष्ठ रचनाएं चयनित हुई हैं उनके रचनाकारों के नाम निम्न वत है आप सभी को बहुत-बहुत बधाई ।
थोड़ा सा ध्यान रखें *किसी भी प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए नियमानुसार ही पोस्ट भेजें सबसे ऊपर अपना नाम निवास स्थान (मोबाइल नंबर आवश्यक नहीं है )उसके नीचे कविता ध्यान रहे जहां तक संभव हो गजल की जगह पर हिंदी गीतिका ही भेजें क्योंकि हमारा उद्देश्य हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार एवं उत्थान है इसे अन्यथा ना लें कविता गेयता प्रधान वाली और बहुत लंबी कविता ना भेजें अधिकतम 15 लाइन की कविता भेजें जिससे अगर आपकी कविता निर्णायक मंडल को पसंद आती है तो वह काव्य रंगोली के किसी अंग में उसको प्रकाशित भी कर सकें सभी को धन्यवाद*
  ब्रॉडकास्ट सूची के द्वारा सूचना प्रसारित यह व्यक्तिगत सन्देश नही है सभी के सूचनार्थ है। धन्यवाद आपका दिन शुभ हो


1 रेनू द्विवेदी 
लखनऊ


2-यशवंत"यश"सूर्यवंशी
       भिलाई दुर्ग छग


3-पंकज कुमार शुक्ल 
ग्राम-पुरैना शुक्ल 
पोस्ट-करायल शुक्ल 
तहसील-बरहज
जनपद-देवरिया


4-अरुणा अग्रवाल लोरमी छत्तीस गढ़


5-अवनीश त्रिवेदी "अभय" सीतापुर


6-पवन गौतम बृजराहीबमूलिया कलाँ
 जिला बाराँ(राज)


6-डॉ0 वसुंधरा उपाध्याय,
पिथौरागढ़


7-विजय तन्हा संपादक - 'प्रेरणा' पत्रिका पुवायाँ,  शाहजहाँपुर 
      
*8 दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता "काव्य रंगोली"*
*जीवन एक अनबुझ पहेली ,*
 *विशेष सम्मान*



9-नीरजा'नीरू
लखनऊ



9-अश्क़ बस्तरी
उरमाल


10- सुरेश चन्द्र "सर्वहारा" 
   3 फ 22 विज्ञान नगर,  कोटा - 324005(राज.)


कन्हैया लखीमपुरी" गीतिका काजू बर्फी चाट समोसा लाते लेमनजूस वगैरह, साहब को दफ़्तर मेँ जिस दिन मिल जाती है घूस वगैरह।

कन्हैया लखीमपुरी"


गीतिका


काजू बर्फी चाट समोसा लाते लेमनजूस वगैरह,
साहब को दफ़्तर मेँ जिस दिन मिल जाती है घूस वगैरह।


काश दिहाड़ी लग जाती जो रघुवा की बारिश से पहले,
छप्पर-छानी खातिर वो भी ले लेता कुछ फूस वगैरह।


दादा जी की हालत नाजुक भाभी ने भेजी है चिट्ठी,
जिद करता है पूरा घर तो पी लेते हैँ जूस वगैरह।


जाड़े आते सोहन मुनिया जिद करते कपड़ोँ की लेकिन,
आस लगाये कट जाते हैँ कातिक अगहन पूस वगैरह।


नेताओँ की चमचागीरी करते करते अनपढ़ बुधुवा,
घर मेँ भूँजी भाँग नही पर हो आया है रूस वगैरह।


उस चराग का जलते रहना नामुमकिन है तूफ़ानोँ मेँ
जिस चराग के दुश्मन होँ खुद बाती और फानूस वगैरह।


इस दुनिया मेँ लाख जुबानेँ किस -किस पर डालूँ मै ताला,
कोई कहता मुझे "कन्हैया"और कोई मनहूस वगैरह।
"कन्हैया लखीमपुरी"


कुमार कारनिक

*******
🌞सुबह🙏🏼सबेरे🌞
      """"""'''''""""""""
  मनहरण घनाक्षरी
 *पोलियो अभियान*
  """""""""""""""""""""""'"
         💧🍼
है  पोलियो  अभियान,
बच्चों  पर  कर  ध्यान,
नही   कर   अभिमान,
       खुराक दिलाइये।
💧🍼
है  दो   बूंद   हर  बार,
जीत    हो   बरकरार,
रहों    जी    खबरदार,
       दो बूंद पिलाइये।
🍼💧
चार  चरण   साल  में,
पिलाएं   हर  हाल  में,
हां होगें  खुशहाल  में,
        जीवन बचाइये।
💧🍼
ये दिन  भूल  न  जाएं,
जीवन को खो न पाएं,
चलो पोलियो  मिटाएं,
         कदम उठाइये।


 


*कुमार🙏🏼कारनिक*
 (छाल, रायगढ़, छग)
 ©®१८११/१८
                 *******


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी छोड़कर नहीं जाया कीजिए

 


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी


छोड़कर नहीं जाया कीजिए............


छोड़कर  इस  तरह,कहीं  नहीं जाया कीजिए।
कसम है  सनम, ख्यालों  में  आया  कीजिए।।


बेरुखी से  दिल  कहीं  हो  न  जाए  बिस्मिल ;
बहार की  फिजाएं कमाल,न जाया कीजिए।।


हम   तो   बैठे  हैं , पलक  पांवड़े  बिछा  कर ;
भीगते होठ छूकर, दिल में  समाया  कीजिए।।
 
मत जाइए कहीं धड़कते  जिगर  को छोड़कर;
जिगर  को  जिगर  के  करीब लाया कीजिए।।


उम्मीद  जगी  है  फसल - ए - बहार  देखकर ;
रूठकर उम्मीद पर पानी न फिराया कीजिए।।


ख़ामोश   लब   बहुत   कुछ   कह   जाते   हैं ;
लब  के  पैग़ाम  को दिल से लगाया कीजिए।।


दिल की प्यास ज्यों -  ज्यों  बढ़ चली"आनंद";
दिल  की  प्यास  दिल  से  मिटाया  कीजिए।।


--------------- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


कबीर ऋषि “सिद्धार्थी” कविता नहीं हूँ मैं


-कबीर ऋषि “सिद्धार्थी”


कविता


नहीं हूँ मैं
आसमानी झुंड में उड़ जाए वो परिंदा नहीं हूँ मैं
हर पेड़ों पर ठहर जाए जो वो परिंदा नहीं हूं मैं
मैं अकेले पेड़ के साथ जलने का हुनर रखता हूँ
मुसीबत में साथ छोड़ जाए वो परिंदा नहीं हूँ मैं
-कबीर ऋषि “सिद्धार्थी”
सम्पर्क सूत्र-9415911010
पता-बांसी सिद्धार्थनगर,उत्तरप्रदेश


यशवंत"यश"सूर्यवंशी 🌷       भिलाई दुर्ग छग दोहा

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग



छत्तीसगढ़ी दोहा



आनी-बानी खायके,मेला यश सकलाय।
दाँत झरे हे ढोकरा,ठाण चना पगुराय।। 


 


दिल मा दिल के मेल नहि,मेला हे इंसान ।
भीड़ भरे यश पोठ कन,हाबे  सब अनजान ।।



🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी 🌷
      भिलाई दुर्ग छग


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद मन में झंझावात बहुत

प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद


मन में झंझावात बहुत


तन का गणित समझने वालों, मन में झंझावात बहुत है।
प्रेम व्याकरण उलझा सुलझा, कठिन डगर आघात बहुत है।।


तुम क्या समझो विरह उदासी, दुविधाओं में जीना दुष्कर।
तिल तिल जलना तन्हां घुटना , फिर भी जीना प्रियवर प्रणकर।।
किंचित छायी सघन अमावस, यद्यपि आस प्रपात बहुत है।।
*मन में झंझावात बहुत....*


उपापोह के बीच जिंदगी, उछ्श्वांस का व्यस्त अभिकरण।
स्पंदित अधरों में क्रदंन, सरल नहीं प्रिय प्रेम व्याकरण।।
आकुल मानस चिंत वृत्ति उर, हा वय के क्यों उत्पात बहुत है।।
*मन में झंझावात बहुत....*


तुमसे भोर सुहावन मेरी, तुमसे निखरे अरुणाई।
खिली चंद्रिका सी अभिलाषा, तुम बिन सूनी तरुणाई।।
आ जाओ हद से हदवासी, कालगती की बिसात बहुत है।।
*मन में झंझावात बहुत....*


*********
*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


डॉ महेश मिश्र साहित्यकार परिचय

डॉ महेश मिश्र साहित्यकार परिचय
माता,पिताः स्वर्गीया दृगशीला देवी एवं पं. सुशील चन्द्र मिश्र
जन्मः 1-1-62 ग्राम घुँघचाई, जनपद पीलीभीत (उ०प्र०)
शिक्षाः बी.एस-सी.,बी.एच.एम.एस.,डी.एच.एम.एस-सी.
संप्रति ः चिकित्सक
साहित्य की प्रत्येक विधा में लेखन
कृतियाँ
उपन्यास ' टूटे कब अनुबंध' वर्ष 2003 में हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित।
शकुंतला ः खण्ड़काव्य
तेरी पीड़ा है नदी ःदोहा संग्रह
अंतिम पुरुषः कहानी संग्रह
बिल्ली बोली म्याऊँ ः बालगीत संग्रह
पथ आप प्रशस्त करो अपनाः आत्मकथा
दो उपन्यासःअभी लेखन में
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित


गोविंद भारद्वाज, जयपुर गीत उड़ता हूँ पंख लगा

गोविंद भारद्वाज, जयपुर गीत


उड़ता हूँ पंख लगा आसमान छूने को
छोर नहीं पाता हूँ लौट लौट आता हूँ।
 
क्षितिज बहुत दूर मगर छूने की ठानी है,
हौंसला है पंखों मंे हार नहीं मानी है,
भाषा संकल्पों की अविरल दोहराता हूँ।
छोर नहीं पाता हूँ लौट लौट................


लक्ष्य है कठिन लेकिन भेदकर ही मानूँगा,
हार-जीत क्या होती युद्ध से ही जानूँगा,
सीमाएँ तोड़ सभी विजय गान गाता हूँ।
छोर नहीं पाता हूँ लौट लौट................


पीता जो गरल वहीं शंकर बन जाता है
सागर मंथन से ही अमृत घट आता है
आशा बंजारन को रस्ता दिखलाता हूँ।
छोर नहीं पाता हूँ लौट लौट................


धरती का पुत्र मगर ब्रह्मा बन जाऊँगा,
आसमान मुट्ठी में लेकर ही आऊँगा,
पैने हैं पंख बहुत मंज़िल तक जाता हूँ।
लौट कर भी आता हूँ, चाँद को भी लाता हूँ।


गोविंद भारद्वाज, जयपुर


सचिन साधारण चीरहरण जख्म वो किसको दिखाऐ

सचिन साधारण


चीरहरण
*******


जख्म वो किसको दिखाऐ
दर्द वो किसको सुनाऐ,
यातनाऐ सह रही थी
भावनाऐ दह रही थी,
कौरवो के मध्य नारी
चीख करके कह रही थी,
क्यो नही आऐ कन्हैया
क्यो नही आऐ कन्हैया।


नग्न था मेरा बदन जब
शोर मे डूबा सदन जब,
नुच रहा था वक्ष मेरा
मौन था हर पक्ष मेरा,
खून मे लतपत खडी मै
प्रश्न तुमसे कर रही थी,
क्यो नही आऐ कन्हैया
क्यो नही आऐ कन्हैया।


वार जितनी बार मैने 
सह लिए वो वार कम थे,
और नयनो से छलकते
आंसुओं के तार कम थे,
ज़ालिमो के हाथ मेरी 
लुट रही अस्मत बचाने,
क्यो नही आऐ कन्हैया 
क्यो नही आऐ कन्हैया।


चल रही हूं लड़खड़ा कर
चोट एसी खा चुकी हूं,
मै कली से फूल बन कर
टूट कर मुरझा चुकी हूं,
प्रश्न अंतिम है बिखरते 
ख्वाब तुम मेरे बचाने,
क्यो नही आऐ कन्हैया 
क्यो नही आऐ कन्हैया।


सचिन साधारण
7786957386
**************


डा० भारती वर्मा बौड़ाई कविता तुम से सीखे....

डा० भारती वर्मा बौड़ाई


कविता


तुम से सीखे....!
——————
जीवन के 
हर पल को 
कैसे जीना है
फटे और उधड़े 
रिश्तों को 
कैसे सीना है 
यह कोई तुम से सीखे....!


छोड़ उदासी 
ओढ़ के अंबर
डाल दे अपना 
कहीं भी लंगर 
संग लिए नदी/पर्वत/जंगल
कैसे उड़ना है 
यह कोई तुम से सीखे....!!


सबके अपने 
चंदा/सूरज/तारे 
सुख/दुख/सपने 
उनमें अपना कुछ 
मेल मिला कर 
कैसे चलना है 
यह कोई तुम से सीखे......!!!


टूटे अंबर
या फट जाये वसुधा 
चारों ओर चाहे 
मच जाये त्राहि 
बाधाओं को बहला/फुसला
कैसे बढ़ना है 
यह कोई तुम से सीखे..........!!!!
———————————-
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


निशा अतुल्य कविता सपना ,सपनों में रंग भरो 

निशा अतुल्य


सपना
दिनाँक      21/ 1/ 2020



सपनों में रंग भरो 
आगे बस आगे बढ़ो
काम कुछ ऐसा करो
नाम कर जाइये ।


चेहरा न याद रहे
याद व्यवहार करें
रहना सरल सदा
याद सदा आइये ।


मात पिता का वंदन
प्रभुवर का नमन 
जिस घर होय सदा
उस घर जाइये।


संस्कार पोषित करो
निर्मल बच्चों को करो 
बनेगा महान देश
ऐसे गुण गाइये।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


मधु शंखधर 'स्वतंत्र प्रयागराज मधु के मधुमय मुक्तक बंशी बजती श्याम की,राधा आए पास।

मधु शंखधर 'स्वतंत्र
प्रयागराज


मधु के मधुमय मुक्तक
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
बंशी बजती श्याम की,राधा आए पास।
अधर हँसी मुस्कान से, नव जीवन की आस।
एक कृष्ण का प्रेम ही,देता है संज्ञान,
राधा अन्तर्मन बसी, प्रेम सहज विश्वास।।


श्याम वर्ण मुख तेज है,घुँघराले हैं बाल।
छवि अनुपम यह देखकर,हर्षित हैं सब ग्वाल।
प्रेम ग्वाल का है अलग, दर्शन की बस चाह,
एक नज़र देखें अगर, जीवन हो खुशहाल।।


मोह, प्रेम दोनों अलग, जानो इसका रूप।
प्रेम मनोहर छाँव है,मोह सघन है धूप।
प्रेमी पूजें कृष्ण को, राधा जी के साथ,
मधु प्रेम धन से बने,मन मंदिर में भूप।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*21.01.2020*


अतिवीर जैन,पराग,मेरठ लघुकथा शन्नो

डाक्टर शन्नो :-(बाल कथा )
तीन साल की शन्नो बोलना सीख गयी तो सारा घर परेशान हो गया.शन्नो हर समय अपनी अम्मा (दादी )और दादू के साथ खेलती,उनका मन लगाकर रखती,बड़ी बड़ी बाते करती.दादू उसके लिये डाक्टर सेट ले आये.अब तो शन्नो ने सबको मरीज बना दिया,गले में आला लगाकर कभी अम्मा को कभी दादू को या अपने पापा मम्मी को चेक करती.आला लगाकर देखती शन्नो डाक्टर है लेट जाओ,जिब निकालो,साँस लो,आदि आदि.चेक करने के बाद कहती लेट जाओ अब शन्नो टुच (इंजेक्शन )करेगी.कोई पूछता की तो कहती शन्नो बड़ी होकर डाक्टर बनेगी. स्वरचित,अतिवीर जैन,पराग,मेरठ


डॉ मंगलेश जायसवाल कालापीपल गजल

 


  डॉ मंगलेश जायसवाल कालापीपल


गजल


ज़माना गुजर गया, मै भी गुजर जाऊँगा।
बहाना आँसू सब,मै नज़र नही आऊँगा।।
कभी तश्वीर मे ढूंढोगे मुझे एक दिन सभी।
मगर मै आसमां मे सितारा बन जाऊँगा।।
ना कोई शिकवा ना कोई गिला किसी से।
गर्त के आगोस में एक दिन समां जाऊँगा।।
तालीम रखना याद तासीर को भूल जाना।
फिर भी हरपल तुझे मै राह दिख लाऊंगा।।
याद मे मंगलेश की अश्क ना बहाना कभी।
लाख चाहोगे तुम लौट कर मै नही आऊँगा।।
यह दीवारे यह शहर यह राहे और तुम भी।
भुला दोंगे सभी मगर मै भुला ना पाऊंगा।।
सोचोगे इत्मीनान से कभी मेरे बारे मे तुम।
जब तक तो मै यहाँ से रूकसत हो जाऊँगा।।


        डॉ मंगलेश जायसवाल कालापीपल


डा० भारती वर्मा बौड़ाई धरा जमीन कविता

डा० भारती वर्मा बौड़ाई


धरा
——-
मैं 
सबकी 
प्रिय धरा 
बोल रही हूँ 
अपने 
मन की परतें 
आप सबके 
समक्ष खोल रही हूँ 
हो गया आज 
अति आधुनिक किसान 
कम कार्य करके 
अधिक उपज 
पाना चाहता है 
तभी तो 
यूरिया से भी आगे बढ़ 
मुझमे न जाने कितने 
रसायन डालता जाता है 
उसकी बदौलत अधिकतम उपज 
उन्हें तो मालामाल कर रही है,
मेरी प्राकृतिक शक्ति का 
क्षरण करते हुए 
लोगों को असाध्य रोगों से 
जकड़ रही है 
मौत के मुँह में ढकेल रही है...!
करबद्ध निवेदन करती हूँ 
प्रत्येक कृषि स्वामी से 
घरों में गृहवाटिका में 
शाक-भाजी उगाने वालों से 
छोड़ दीजिए अधिक कमाई के मोह में 
रसायनों  का प्रयोग,
जैविक कृषि के तरीके अपनाइए 
जैविक खाद  बनाएँ और बनवाइए
मेरी प्राकृतिकता को भी रखें सहेज 
लोगों के स्वास्थ्य को 
बिगड़ने से बचाइए
मैं आपकी धरा 
मुझे मरने से बचाइए......!!!!!!!!
—————————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


सुनीता असीम  गजल आपसे हमको जुदा कौन किया करता है।

सुनीता असीम 


गजल


आपसे हमको जुदा कौन किया करता है।
वो बुरा हमको बड़ा सिर्फ लगा करता है।
***
छोड़कर सारे बुराई को बनें सच्चे से।
बस इसी बात में अपना मन रमा करता है।
***
साथ हम सबके रहें साथ हमारे सब हों।
साथ में सबके सही रंग जमा करता है।
***
आदमी वो ही सही  काम जो आए  सबके।
पुण्य उसको ही मिले सबपे दया करता है।
***
जानता हो जो वफा प्यार करेगा वो ही।
क्या मुहब्बत वो करेगा जो जफा करता है।
***
सुनीता असीम


उत्तम मेहता 'उत्तम' गजल

 


 


उत्तम मेहता 'उत्तम'


गजल


ख़्वाब मेरे बिन तेरे वीरान हैं। 
नींद आहत,धड़कनें  हैरान हैं ।


फ़क्र जिसको ख़ुशनसीबी पर रहा। 
हादसों से शख़्स वो अनजान है। 


जो हुआ हासिल उसी में ख़ुश रहो। 
ग़म तो बस दो पल का ही महमान है ।


जो तराशे दर्द ने अशआर कुछ। 
ये मेरे उस्ताद का वरदान है ।


नज़्म यह भी ख़ूबसूरत है मेरी। 
यूँ कि इसमें तेरा ही गुणगान है ।


हैं सभी उस्ताद औ आलिम यहाँ। 
आप से ही महफ़िलों की शान है ।


मैं कोई मशहूर शायर तो नहीं। 
नाम उत्तम ही मेरी पहचान है ।


उत्तम मेहता 'उत्तम'
       


रवि रश्मि 'अनुभूति 'मुंबई   दोहे

रवि रश्मि 'अनुभूति 'मुंबई


  दोहे

1) खुशियाँ लाये ज़िंदगी , बढ़ती रहे उमंग ।
सादा जीवन ही रहे , कोई रहे न तंग ।।


2 ) 
राहों पर चलते हुए , सहयोगी बन आज ।
खुशियाँ तुम बाँटो सदा , करना अब यह काज ।।


3 ) 
प्यारा होगा यह जहां , रखना तुम मन साफ़ ।
दे जो कष्ट कभी उसे , करना सदैव माफ़ ।।


4 ) 
ऐसे बीजी रोपिए , नेकी पौधा बोय ।
घमंड करता ही रहे , ऐसा कभी न  होय ।।रवि रश्मि 'अनुभूति '


कालिका प्रसाद सेमवाल   रूद्रप्रयाग उत्तराखंड मां दुर्गा भजन

हे शेरावाली
***********
हे मां शेरावाली
अन्दर ऐसा प्रेम जगाओ
जन जन का उपकार करूं,
प्रज्ञा की किरण पुंज तुम
हम तो निपट  अज्ञानी है।


हे मां पहाड़ा वाली
करना मुझ दीन पर कृपा तुम
निर्मल करके तन-मन सारा
मुझ में विकार मिटाओ मां
इतना तो उपकार करो।


हे मां अम्बे
पनपे ना दुर्भाव ह्रदय में
घर आंगन उजियारा कर दो
बुरा न करूं -बुरा सोचूं,
ऐसी सुबुद्धि  प्रदान करो।


हे मां भुवनेश्वरी
इतना उपकार करो
निर्मल करके मन मेरा
सकल विकार मिटाओ दो मां
जो भी शरण तुम्हारी आते
उसे गले लगाओ मां।।
***************************
🙏✡ कालिका प्रसाद सेमवाल
            रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
*****************************


मुक्तक ठंडक लता प्रासर पटना बिहार ठंडा ठंडा कह कह कर ठंड की गरिमा बढ़ा रहे

मुक्तक ठंडक लता प्रासर पटना बिहार


ठंडा ठंडा कह कह कर ठंड की गरिमा बढ़ा रहे
मौसमी हवाएं कानों में बसंती राग गुनगुना रही
खिल उठा है बगिया बगिया हरियाली बौराई है
कभी कुहासा कभी धूप की आंख मिचौली चल रही!
*लता प्रासर*


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