धर्म मर्यादा निशा अतुल्य

धर्म मर्यादा
दिनाँक         23/ 1/ 2020


धर्म मर्यादा के प्रतीक श्री राम थे
हर धर्म को निभाने वाले श्री राम थे
लाख संकट आये  संकटों में रखा धैर्य
समाज में एक पत्नी धारी श्री राम थे ।


अधर्म का करने को नाश 
वन को जाने वाले श्री राम थे।


पिता के दिये वचन को 
निभाने वाले श्री  राम थे ।


नवदा भक्ति का दिया ज्ञान 
शबरी के जूठे बेर खाने वाले श्री राम थे।


जात पात का भेद मिटाया
निषाद राज को गले लगाने वाले श्री राम थे।


हुआ अत्याचार अहिल्या पर जब
अहिल्या को जिसने तारा वो श्री राम थे।


स्वर्णमृग की बता के इच्छा सीता ने
पुरुषोत्तम बनाने को कदम उठाया जिनके लिए सीता ने वो श्री राम थे ।


धर्म के खातिर त्यागा भार्या को
फिर भी रही साथ सदा वो,ऐसे श्री राम थे ।


सीखें हम मर्यादा धर्म की 
धर्म मर्यादा बताने वाले श्री राम थे।


निशा"अतुल्य"


प्यार का परिणाम* विधा : कविता संजय जैन मुंबई

*प्यार का परिणाम*
विधा : कविता


प्यार को प्यार से देखोगे,  
तो प्यार पाओगे।
दिल में मुरझाए हुए,
फूल भी खिल जाएंगे।
जिस को भीड़ में,
ढूंढ रहे है तेरी निगाहें।
मेरा दावा है कि वो,
तुझे मिल जाएगा।।


निगाहों का निगाहों से, 
जो तुम खेल रहे हो खेल।
वो ही निगाहें अब तेरे, 
दिल को खिलाएंगी।
और लगी है प्यास जो तेरे दिलको,
वो प्यास अब तेरी बुझ जाएगी।
और तेरा जीवन भी,
फूलों की तरह महक उठेगा।।


प्यार करना और निभाना,
बहुत बड़ी बात है।
दिलरुबा को दिल में
सजाये रखना बड़ी बात है।
प्यार करते रहोगे दिल से,
अगर तुम दोनों।
निश्चित ही परिणाम भी,  
 अच्छा आ जायेगा ।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
23/01/2020


आशुकवि नीरज अवस्थी नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जयंती

आशुकवि नीरज अवस्थी


नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जयंती


नीरज अपने देश मे,नेता बने अनेक। लेकिन मेरी नजर में नेता दिखता एक।


सारे भारतवर्ष को होती जिससे आस। नेता केवल एक ही हमको लगे सुभाष।


जिनकी भाषा श्रवण कर होते थे सब मौन। वीर बोस जैसा निडर हुआ दूसरा कौन।


नमन करूँ लाखो तुम्हे सौ सौ बंदनवार। नेता जी के नाम पर तन मन धन बलिहार।
आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


शाश्वत" अभिषेक मिश्र ,पटना , लखीमपुर - खीरी ,उ०प्र०

शाश्वत" अभिषेक मिश्र ,पटना , लखीमपुर - खीरी ,उ०प्र०


हिन्दुस्तान के अमर क्रान्तिकारी नेता शब्द की सार्थकता को सिद्धि प्रदान करने वाले युवाओं के प्रेरक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी के जन्मदिवस की अशेष शुभकामनाओं के साथ ....
*******"""""""*******
देश के युवाओं को नवीन क्रान्ति लाने हेतु ,
जय - हिन्द जैसे उद्घोष की जरूरत है ,
भ्रष्ट कूटनीतियों का नाश हो सके समूल ,
भय काँप जाये ऐसे रोष की जरूरत है ,
आरती उतारे शारदा की क्रूर काल तक -
चढ़ हिमकूट ऐसे जोश की जरूरत है ,
आज फिर भारती का मान रखने के लिए ,
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जरूरत है ,
~~ "शाश्वत" अभिषेक मिश्र ,पटना , लखीमपुर - खीरी ,उ०प्र० .
स्वरदूत -- 9506997801


एस के कपूर श्री हंस पुरुषार्थ में ही निहित सफलता की कुंजी

एस के कपूर श्री हंस


पुरुषार्थ में ही निहित सफलता की कुंजी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


इन  आँखों  ने  लोगों   को
इतिहास   बनते  देखा  है।


अपने  पुरुषार्थ  से सफल
बेहिसाब   बनते  देखा  है।।


मंजिल  आँखों  से ओझल
देखा    है    उसको   पाते।


मामूली  से  उठ कर  ऊपर
उनको खास बनते देखा है।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।*


मोब 9897071046  ।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्रीहंस आजाद हिंद फौज

*नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी की* 
*जयंती 23 जनवरी पर शत शत नमन।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।*



*आज़ाद हिंद फौज* बना  कर
दिया  आंदोलन  का   अंजाम।


*दिल्ली चलो* का  नारा  देकर
फैलाया आज़ादी   का  पैगाम।।


*तुम मुझे खून दो* का उद्द्घोष
कर लड़ी   लड़ाई  आज़ादी की।


शत  शत   नमन *नेता  जी*  को 
सुभाष चंद्र बोस जिन  का नाम।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।


अर्चना द्विवेदी अयोध्या उत्तरप्रदेश      मुक्तक

लेकर नवल उमंग चेतना
भोर की लाली आई है।।
तम की होती हार हमेशा
सुखद संदेश ये लाई है।।
           अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश
        


डॉ. प्रभा जैन "श्री "  देहरादून लुभावनी धूप 


डॉ. प्रभा जैन "श्री " 
देहरादून


लुभावनी धूप 
----------------------
माँ मेरी लुभावनी धूप सी 
लिया मैंने जन्म 
ठंडी -ठंडी जनवरी  में, 
नरम सा स्पर्श और 
उसका मुझे सूखे में रखना, 
सुख देने की चाह में 
भरे कितने कष्ट 
माँ मेरी लुभावनी धूप सी.
 
कोरी गई तीन  पीढ़ी 
नहीं मिली कन्या -सौगात 
हुआ मेरा पालन -पोषण ऐसा 
राजकुमारी उतर स्वर्ग से आई जैसे 
मेरी सेवा करने में, 
माँ ने किये दिन-रात एक 
माँ मेरी लुभावनी धूप सी 


हो गई मैं जरा बड़ी पर
उनकी नज़र में,अभी बच्चीसी
 हर पल पर उनका ध्यान देना 
याद आता हैं माँ,अब हर पल, 
तुमहो मेरे जीवन की खिड़की सेंकती  मैं, लुभावनी धूप 
माँ मेरी लुभावनी धूप सी.


हूँ मैं तुम्हारी, कृतज्ञ, माँ 
सँवारा मेरा जीवन, जिस तरह
अब मैं वैसा ही फ़र्ज निभारही 
बन रही मैं भी,  लुभावनी धूप
हर पल मैं तुमको याद क़ररही 
माँ    मेरी   लुभावनी धूप सी.
 
माँ    मेरी  लुभावनी धूप सी. 


स्वरचित 
डॉ. प्रभा जैन "श्री " 
देहरादून


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड मां शारदे वन्दना

कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
मां शारदे वन्दना
***********
मां शारदे
तुम्हारी वंदना कैसे करूं
मां तुम्हारी अर्चना कैसे करूं
सभी शब्दों में समाहित तुम्हीं हो
सभी रागों की प्रतिध्वनित तुम ही हो
सभी देवों कि बुद्धि विवेक दाता तुम्हीं हो ।


मां शारदे
तुम सत्य के आधार हो
मां तुम्हीं ज्ञान दायिनी हो
तुम्ही विघा की भण्डार हो
मां तुम्हीं विवेक और सौन्दर्य का आकार हो


मां शारद
तुम दिव्य स्वरूपा हो
मां तुम्हारी मूर्त्ति को कैसे गढूं मैं
मां मुझे विघा विनय का दान दें
मुझ अज्ञानी का कल्याण कर
मां मुझे वरदान दे, मां मुझे वरदान दे।


गोपाल बघेल ‘मधु’ टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा भव भय से मुक्त अनासक्त !

गोपाल बघेल ‘मधु’ टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा


भव भय से मुक्त अनासक्त !
(मधुगीति २००१२२ अग्रसा) ब्रज


भव भय से मुक्त अनासक्त, विचरि जो पाबत;
बाधा औ व्याधि पार करत, स्मित रहबत !


वह झँझावात झेल जात, झँकृत कर उर;
वो सोंपि देत जो है आत, उनके बृहत सुर ! 
जग उनकौ लहर उनकी हरेक, प्राणी थिरकत;
पल बदलि ज्वार-भाटा देत, चितवन चाहत ! 


चहुँ ओर प्रलय कबहु लखे, लय कभू लगे;
विलयन की व्यथा मीठी लगे, साधना मखे ! 
आधार धार कबहु बहत, ऊर्द्ध्व भाव बह;
‘मधु’ त्रिलोकी की तर्ज़ सुनत, जगत में रमत ! 


 ✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’ 


रचना दि. २२ जनवरी २०२० रात्रि 
टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा
www.GopalBaghelMadhu.com


संजय जैन (मुम्बई) मायके की यादे* विधा : कविता बचपन की यादों को

 


संजय जैन (मुम्बई) मायके की यादे*
विधा : कविता


बचपन की यादों को,
मैं भूला सकती नहीं।
मां के आँचल की यादे,
कभी भूली ही नहीं।
दादा दादी और नाना नानी,
का लाड़ प्यार हमे याद है।
मौसी बुआ का दुलार,
दिल से निकला नही।
वो चाची की चुगली,
चाचा से करना।
भाभी की शिकायत
भैया से करना।
बदले में पैसे मिलना,
आज भी याद है।
और उस पैसे से,
चाट खाना याद है।
भाई बहिनों का प्यार,
और लड़ना भी याद है।
भैया की शादी का वो दृश्य,
आंखों के समाने बार बार आता है।
जिसमें भाभी की विदाई पर,
उनका जोर से रोना याद है।
खुद की शादी और विदाई का,
हर एक लम्हा याद आ रहा है।
मांबाप के द्वारा दी गई,
हिदायते और नासियते
दिल में रखें हूँ।
मानो अपनी दुनियां खो आई हूँ।
मांबाप का आंगन छोड़ आई हूं।
दिल में नई उमंगे लेकर,
पिया के साथ आई हूं।
जो मेरे जीवन का,
अब आधार स्तम्भ है।
मानो मेरी जिंदगी का
यही संसार है।
छोड़ा माता पिता और, 
भाई बहिनों को तो।
नये माता पिता और नंद देवर, 
भाई बहिनों जैसे पाये है।
छोटी सी दुनियां छोड़कर,
बड़ी दुनियां में आई हूँ।
अब जवाबदारियों का बोझ,
स्वंय उठाकर चल रही हूँ।
पिया से मिल रहा स्नेह प्यार,
जिससे नई दुनियां बसाई
हूँ ।
जो खुद कल बच्ची थी, 
आज माँ बन के सामने आई हूँ।।
और मां का फर्ज मैं 
खुद निभा रही हूं।
जिंदगी का चक्र,
ऐसे ही चलता रहेगा।
समय हमारे जीवन का 
यूही निकलता रहेगा।।


 जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
21/01/2020


अंजू अग्रवाल. गुलाबबारी अजमेर.कविता       भ्रूण हत्या.

अंजू अग्रवाल. गुलाबबारी अजमेर.कविता


      भ्रूण हत्या.                                    माँ!कहां थी तुम?
       तब !
  पापा!दर्द नहीं हुआ था क्या? 
      तब ।
  दादी! बुआ! तुम भी तो थी ना..
       वहाँ ।
 सब ने मिलकर मारा था ना मुझे!
      कोख में ! 
क्या वह कोख में बलात्कार नहीं था? 
   नारी थी ना मैं ?
  यही बताया था ना, 
   इशारों इशारों में,
   डॉक्टर आंटी ने, 
 और फिर......                 सच बताना माँ! 
क्या वह कोख में अत्याचार नहीं था?                           और माँ! 
बहुत रोई थी ना तुम 
   उस दिन....        . पढ़कर.. 
  निर्भया का हाल!!!
   हैदराबाद कांड !!!
छह माह की बच्ची से बलात्कार!!                  माँ! मैं तो....                एक दिन की भी नहीं थी,
 तो तुम क्यों नहीं रोई.           जार जार ..उस दिन!
क्यों टेक दिए घुटने!
और ........................उस रक्त से सनी कोख मे
    जन्मा है जो पुत्र 
रक्त के सैलाब में डूबता उतराता
 पाप के रक्त बीज से जन्मा..
   वहशी ही तो बनेगा!!!


*~अंजू अग्रवाल~*


 डा.नीलम अजमेर इक तेरी आहट की आस है मुझको

 डा.नीलम अजमेर
इक तेरी आहट की आस है मुझको
तू कहाँ है ये जरा बता दे मुझको


नज़र दूर तलक जा के लौट आती है
अब किससे पता पूछूं तेरा बतादे मुझको


हर बार झलक दिखला के लौट जाता है
ना जाने क्यों हरबार रुलाता है मुझको


दरो-दीवार पे हर सूं तेरा ही नाम लिखा है
आईना भी देखूं ,तो तू ही नजर आए मुझको


अब तो नाम भी अपना सा लगे है तेरा
हर कोई तेरे नाम से ही पुकारे है मुझको।


 


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"  आंखों का सागर..

देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


 आंखों का सागर.............


आंखों का सागर , कभी सूखता नहीं।
आशीष आे प्यार,कभी बिकता नहीं।।


इसमें प्यार से झांककर तो देखा करो;
एक बार बसे तो  कभी मिटता  नहीं।।


आंख की भाषा दिलवाले ही समझते;
दिल न लगा तो कभी समझता नहीं।।


दिल में गम भी हो,मुस्कुराओ जरूर ;
आंख भिगोने से ये कभी घटता नहीं।।


हवाएं बह रही है राजनीति,स्वार्थ की;
मुल्क का स्वार्थ, कभी दिखता नहीं।। 


जहां मौका लगा, उल्लू सीधा किया ;
राजनीति का धंधा कभी घटता नहीं।।


हम तो मूर्ख, निपट गंवार हैं"आनंद" ;
आंखों में स्वार्थ  कभी दिखता नहीं।।


----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी


प्रिया सिंह लखनऊ पूरा है देश पर आज अधूरी आजादी है

प्रिया सिंह लखनऊ


पूरा है देश पर आज अधूरी आजादी है
हमारे नेताओं में व्यस्त अधूरी आबादी है
पूरा है देश पर_ आज अधूरी आजादी है 


मिलें हैं कानून कुछ ऐसे भेष में हमको
जैसे अधूरी रेशम और अधूरी खादी है
पूरा है देश पर आज अधूरी आजादी है 


रंगो में पहचान ना बताया उसका कभी 
शहीदों के तन पर चढ़ी अधूरी खाकी है
पूरा है देश पर आज अधूरी आजादी है 


संघर्षों से जी कर देश आज महान बना
आज जम्हूरियत की ही अधूरी बरबादी है
पूरा है देश पर आज_अधूरी आजादी है 


कानून कुर्सी संसद किसका आखिर दोष दें 
सत्ता और पत्रकारिता ही अधूरी अपवादी है
पूरा है देश पर आज ___ अधूरी आजादी है 


आवाम की आवाज वो मगरूर सुनते नहीं 
मां की ममता भी आज अधूरी अवसादी है
पूरा है देश पर आज ___अधूरी आजादी है 


 


Priya singh


एस के कपूर श्री हंस बरेली। सच कभी छुपता नहीं है।

एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।


सच कभी छुपता नहीं है।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।*


आईना  भी   धोखे   में   कि
चेहरे पर चेहरे लगा   रखे हैं।


सच के   बंद   दरवाजों   पर
झूठ के पहरे    लगा रखे  हैं।।


अमन चुप  है   इन्तिज़ार   में
वक़्त   के  मरहम   के  लिए।


लेकिन जख्म छिपते नहीं जो
सीने पर  गहरे  लगा   रखे  हैं।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।


कैलाश , दुबे , होशंगाबाद मुक्तक तन्हाइयों से होकर हम

कैलाश , दुबे , होशंगाबाद मुक्तक


तन्हाइयों से होकर हम भी गुजर रहे हैं ,


कटते नहीं अब तन्हा दिन पर रातें गुजर रही हैं ,


काटें तो वक्त कैसे बस आग सी सुलग रही है ,


देखते हैं बस चँदा और तारे गिन रहे हैं ,


कैलाश , दुबे ,


वीरभोग्या वसुंधरा प्रखर दीक्षित जय भारत माता तुमहिं  नमन,

वीरभोग्या वसुंधरा प्रखर दीक्षित


जय भारत माता तुमहिं  नमन, नभ कीर्ति छुए शत शत वंदन।
जयघोष राष्ट्र को प्राण तत्व आंचर  पावन माटी चंदन।।


अक्षुण्ण रक्षित अहर्निश सीमा, चहुँओर निगेहबानी चौकस।
हिमराज किरीट भाल ऱाजै, सुषमा मोहै मनुआ बरबस।।
नित सागर चरन पखारत माँ, जन जन पौरुष को शुभ अर्चन।।
*नभ कीर्ति छुए शत......*


जहि वीरभोग्या वसुंधरा, कण कण पौरुष रग रग साहस।
बलिदान करे कृतकत्य भए, न्योंछावर कीन्ह आप्त सरबस।।
घूँघट कै आंसूँ अटल शक्ति, प्रण पूर्ण करे हिल अभिनंदन।।
*नभ कीर्ति छुए शत......*


पुनि जगत गुरू भारत बनि कै, उजियार करै उत्कर्ष रहे।
धन धान्य फलै मन चित् मिलै, सदभाव की  पावन गंग बहे।।
अरि कांप उठै  हुंकार जबै, विद्वेष मनस मँह भय क्रंदन।।
*नभ कीर्ति छुए शत......*


*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


मधु शंखधर 'स्वतंत्र' प्रयागराज गीत विषय -माँ माँ के सीने से लग करके,

मधु शंखधर 'स्वतंत्र'
प्रयागराज


गीत
विषय -माँ
माँ के सीने से लग करके,बहुत सुखद पल पाया है।  
माँ ही ममता माँ ही जीवन, स्पर्श मातु का भाया है।।


माँ की गोदी में जब झूलूँ, पाऊँ मैं संसार नया।
सुख अहसास मिले कुछ ऐसा, दुख अपने से दूर गया।
अधर मधुर मुस्कान लाल के, मातु ईश की छाया है।
माँ के सीने से लगकरके............।।


माँ तूने ही जन्म दिया है,,ममता से ही पाला है।
अपने आँचल से माँ तूने ,पल पल मुझे सँभाला है।
हर माता है यशुदा जैसी, माँ की अद्भुत माया है।
माँ के सीने से लगकरके..............।।


अधर मधुर मुस्कान तुम्हारी, तू ही मातु हमारी है। 
दुनिया भर में तेरी सूरत,मुझको सबसे प्यारी है।
माँ मैं भी हूँ अंश तुम्हारा, तेरा मुझ पर साया है।
माँ के सीने से लगकरके.............।


तेरे लाल कहाऊँ जग में, नाम तुम्हारा कर जाऊँ।
नींद न आए जब भी माता, तेरी गोद सिमट जाऊँ।
अनुपम जीवन देने को माँ, तूने मुझको जाया है ।।
माँ के सीने से लगकरके............।।
मधु शंखधर 'स्वतंत्र'
प्रयागराज


अवनीश त्रिवेदी"अभय"

 


अवनीश त्रिवेदी"अभय"


एक अनुप्रासयुक्त घनाक्षरी


चंदन   चमन   बीच,   चमचमाते   चेहरे, 
अरु  चंचल  चक्षुओं, से  चित्त चुराती हैं।
हिय हर्षाती हिलाती, हवा में हाथ हमेशा,
हमराह   मम   उर,  तीव्र  धड़काती  हैं।
मृदु  मंजु  मनोहर,  मुख  मुसकान  बड़ी,
मनमोहक    मुरली,  मृदुल  बजाती   हैं।
उर   उपवन  उठे,  उमंग    उदार    उस,
प्रेम की पीर को अब, सदा ही जताती हैं।


अवनीश त्रिवेदी"अभय"


अतिवीर जैन 'पराग ' मेरठ  कविता पिया मिलन :-

अतिवीर जैन 'पराग ' मेरठ 


कविता


पिया मिलन :-
लगाकर पांवों में मेंहदी, 
गौरी चली पी के द्वार,
छोड़ बाबुल का घर,
मन में लिये स्वप्न अपार.


पेरो में पायल के घुँघरू,
जब आवाज़ करते है,
मानो गौरी के दिल में,
घबराहट की झंकार भरते है.


पिया मिलन को गौरी ने,
आज किये सोलह
श्रॄंगार,
लगाकर पांवों में मेंहदी,
गौरी चली पी के द्वार.


स्वरचित,अतिवीर जैन 'पराग ' मेरठ 
चलभाष :9456966722


डा० भारती वर्मा बौड़ाई कविता (कवि!)

डा० भारती वर्मा बौड़ाई


कवि!
———-
कवि!
तुम लिखना 
इसलिए मत छोड़ना 
कि नहीं की किसी ने 
तुम्हारी प्रशंसा,
तुम लिखना 
तब छोड़ना 
जब मन 
लिखने के लिए 
बिलकुल तैयार न हो।
—————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


निशा"अतुल्य" बेटी नन्ही नन्ही कलियाँ खिलती

निशा"अतुल्य"


बेटी
दिनाँक       22/ 1/ 2020



नन्ही नन्ही कलियाँ खिलती
हर उपवन को महकाती हैं
आबाद रहें ये फूले फलें 
बुरी नजर न कोई कभी पड़े।
मत नोचों तुम बेदर्दी से
तुमसा कोई जन्म लेगा धरती पर इनसे 
सृष्टि निर्माण कार्य तभी तो निर्बाध बढ़े
मत मारों इनको कोख में तुम 
मत इनको तुम बर्बाद करो।
ये उपवन की कलियाँ महके 
हर घर आँगन की क्यारी में
प्यार बरसता बातों से 
काम सदा करती है ये
बस तुमसे ये हमदर्दी की 
थोड़ी सी उम्मीद रखे ।
तुम भी साथ निभाओ इनका 
आबाद रहे उन्नत भाल रहे इनका।
ये बेटी घर आँगन की 
बहन किसी की बनके रहे
कल रिश्ते सभी निभाएगी
जो रिश्ते माँ जैसे हैं बने 
जीवन साथी वो बन कर
फिर माँ का धर्म निभाएगी 
तुम इसका मान करो मन से 
ये सारे धर्म निभाएगी 
आबाद रहे बेटी घर की
बस इतना तुम अहसान करो
मत मारो नोचों इसका तन और मन
इसका तुम सम्मान करो ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


प्रखर दीक्षित विधा   :  कविता (मुक्तक) शीर्षक :  जीवन  : फर्रुखाबाद, (उत्तर प्रदेश)   

नाम    :  प्रखर दीक्षित
विधा   :  कविता (मुक्तक)
शीर्षक :  जीवन
राज्य   : फर्रुखाबाद, (उत्तर प्रदेश) 
 
*मुक्तक*
=====
*जीवन*


जीवन के उस पार झांक लो तुम्हें किनारा मिल जाएगा।
जरा देखना दीन का जीवन पत्थर दिल भी हिल जाएगा।।
तिनका तिनका जो बिखरा है उसके दिल से प्रखर पूछना,
उसका घर भी बच जाएगा चिथडा जीवन सिल जाएगा।।


 तिनका तिनका बिखरा जीवन आशाऐं दम तोड़ गयीं।
रिश्ते नाते आपनों का पन दुखद  उदासी छोड़ गयी।।
एक सहारा बस पावक का श्मशान भूमि तक साथ करे
ये लाचारी भुखमरी ग़रीबी ख़ुशियों से मुँह मोड़ गयी।।


हेमंती शिव कुमार शर्मा अंकलेश्वर गुजरात कविता (जिंदगी )जिंदगी मिली है एकबार 

नाम    : हेमंती शिव 
           कुमार शर्मा 
विधा   : कविता 
शीर्षक : जिंदगी 
राज्य   : अंकलेश्वर,
            गुजरात
दिनांक: 21/01/2020


 


          *जिंदगी*


 



जिंदगी मिली है एकबार 
इसलिए सोच समझकर 
कदम रखती हूँ 
 जीवन की राह भी मैं खुद चुनती हूँ 
  जो मैं हर बार देखती हूँ  
उसे पूरा करने की कोशिश करती हूँ 
जिंदगी को चलाने के लिए 
साथ रहना पड़ता है
 चोट लगे तो दर्द भी सहती हूँ 
 कुछ कमी हो जिंदगी में 
ना चैन आता है 
ना कोई ख्वाबों में बुलाता है 
यही तो गम मुझे सताता है 
जिंदगी मिली है एकबार 
इसको कयों ना हंस के गुजारे 
बंधन तोड़ दो बंधनो के 
राहे बुलाती हैं और जीने को 
कदम रखती हूँ  
  बहुत  सोच समझकर 
जिंदगी मिलती है एकबार 
इसलिए सोच समझकर कदम रखें।


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