डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"  दोहा छन्द शीर्षकः भौंक रहा फिर दहशती


डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" 


दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः🤔 भौंक रहा फिर दहशती☝️
रहता  है  जिस देश  में , किया  उसी से घात।
आया    भारत    लूटने , आतंकी     औकात।।१।।
भौंक रहा फिर दहशती,जु़ल्म आठ सौ साल।
दम्भ विनाशी सल्तनत , किया वतन बदहाल।।२।।
कौमी नफ़रत आग को , फिर  भड़काता दुष्ट।
दिवा  स्वप्न फिर  देखता , मुगलीयत बन रुष्ट।।३।।
हिन्दू  से   वह  पूछता , पुरुखों  की  पहचान।
कुएँ   के मेढक समान ,बकता  लोक  महान।।४।।
अतीत   लाखों  वर्ष  का , गौरवमय  आचार।
प्रेम  अमन  सहिष्णुता , दे   षोडश  संस्कार।।५।।
समरसता  की  भेंट   दी , भू  माना  परिवार।
मातु पिता व गुरु अतिथि , मानवता  आधार।।६।।
पूछ   रहा   काफ़िर ये , हिन्दू  से    योगदान।
बने    लूटेरे    दहशती , कातिल  वे   शैतान ।।७।।
मार काट नफ़रत फ़िज़ा,ले मज़हब की आड़।
लिया पाक पहले वतन ,फिर आतुर दो फाड़।।८।।
फैला     इस्लामीकरण , ज्ञान   नहीं  इस्लाम।
अमन प्रेम खुशबू  सुकूं , है कुरान  अल्फ़ाम।।९।।
बचे   हुए    गद्दार   कुछ , दे  आतंकी  साथ।
चमकाते    नेतागिरी , दे   मुस्लिम  को  हाथ।।१०।।
बेच  जम़ीर  खुद्दारियत , नफ़रत  की  दीवार।
शिक्षा  से  शाहीन   तक , दंगा   के   सरदार।।११।।
भारत  की  चिन्ता  यही , फैले   कुछ  गद्दार।
करें  एक  बन अरि दलन , हम  हैं चौकीदार।।१२।। 
जयचन्दों   को  चूनकर , भेजो  मीसा   जेल।
दमन   करो  आतंक  को , दंगाई   का  खेल।।१३।।
जन मन हित से हो विरत , हिंसा  में आसक्त।
फैलाए     उत्तेजना , सजा  उसे   दो   सख्त।।१४।।
आवाहन  सरकार   से , बने   सख्त   कानून।
जो  द्रोही  पाकी  वतन , भरो  जेल  या  भून।।१५।।
एन  आर  सी  नाम  पर , आन्दोलन  उन्माद।
सी ए  ए   अनज़ान  जो , तुले   देश    बर्बाद।।१६।।
शह  देते  नेता  यहाँ ,  शाहिन    बागी    द्रोह।
आज़ादी   जिन्ना  वतन , माँगे  पाक    गिरोह।।१७।।
हो  कठोर  शासक  वतन , समूल नष्ट  नासूर।
हो निकुंज समरस वतन, सुखद शान्ति दस्तूर।।१८।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


अतिवीर जैन 'पराग',मेरठ  बेटियां :- बेटियां मेरे आँगन में जो आई,


अतिवीर जैन
'पराग',मेरठ 
9456966722


बेटियां :-


बेटियां मेरे आँगन में जो आई,
खुशियाँ अनेकों अपार है लाई.


बेटियां होने पर दुख जो जताते,
ज़माने से करते है वे बेवफ़ाई.


घर में चिड़ियों सी चहचहाती है बेटियां,
त्योहारों की रीत निभाती है बेटियां.


कभी हँसती कभी 
रुठ जाती है बेटियां,
नीम सी जल्दी बढ़ जाती है बेटियां.


बेटियां होती है माँ 
बाप की परछाई,
यूँ तो होती है ये हरजाई.


दो दो कुलों की लाज निभाती है बेटियां,
माँ बाप को रूलाकर विदा हो जाती है बेटियां.


स्वरचित,अतिवीर जैन 
'पराग 'मेरठ
9456966722


प्रिया सिंह लखनऊ गीतिका कमबख्त मेरे पाँव के छाले नहीं जाते

कमबख्त मेरे पाँव के छाले नहीं जाते ।
फिर भी मेरे आँखो से जाले नहीं जाते ।।


मेहनत मेरी तरह कोई कर के तो बता दो।
मगर,बच्चों के पेट तक निवाले नहीं जाते।।


उम्र का मेरी हथेलियों पर हिसाब नहीं होगा ।
मेरे हाथों से भी औजार और भाले नहीं जाते।।


बात ऐसी हो गई कि रोगों में जकड़ गया हूँ ।
दर्द दरअसल अब मुझसे सम्भाले नहीं जाते।।


लहू पर मेरे चल कर साहब, देश इतराता है।
कुछ कष्ट भरा संघर्ष  जो टाले नहीं जाते ।।


यूँ तो देश को आस्तीन की जरूरत तो नहीं है।
पर ये सांप बिना आस्तीन के पाले नहीं जाते।।



Priya singh


कैलाश , दुबे , होशंगाबाद सब देशों में तिरंगे की कितनी शान है

कैलाश , दुबे ,


सब देशों में तिरंगे की कितनी शान है ,


कितना प्यारा मेरा हिन्दुस्तान है ,


सीमा पर खड़ा किया हिमालय 


जहाँ गंगा यमुना नदी महान है ,


कितना प्यारा हिन्दुस्तान है ,



कैलाश , दुबे ,


राष्ट्रीय बालिका दिवस अवनीश त्रिवेदी "अभय"

राष्ट्रीय बालिका दिवस अवनीश त्रिवेदी "अभय"


एक छंद प्रस्तुत है....


हर  घर  आँगन की, ये  फुलवारी  महके,
बेटी  रूपी  सुमन से, हमें  सदा प्यार  हो।
दो घरों की इज्जत हैं, ये बेटियाँ ही हमारी,
खुशबू   से   महकता,  हर   परिवार   हो।
बेटियाँ नाम रौशन, जहाँ  में  करें अपना,
रौशनी से चमकता, ये  सारा  संसार  हो।
हर माँ बाप इनको, पढ़ाए लिखाए ताकि,
ये बेटियाँ सबसे भी, ज़्यादा होशियार हो।


अवनीश त्रिवेदी "अभय


एस के कपूर श्री हंस बरेली मुक्तक,

*नफरत।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*


*मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*


क्यों हम बांटते जा  रहे हैं इस,
सुन्दर   से  जहाँ  को।


हमारी मंजिल तो कहीं और है,
हम   जा रहे कहाँ को।।


नफरत के घर में    मिलता नहीं,
किसी को भी सुख चैन।


प्यार    बसता   हो   जहाँ    पर,
बस हम चले वहाँ  को।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*
*श्री हंस।।।।बरेली।।।।।।।।।।।।*


मोब 9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।बरेली।। मित्र

*दोस्त।।।।मित्र।।।।।।।।।।।।।*


*।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।*


तमाम  उम्र ही  गुजर   जाती  है,
दोस्ती को निभाने  में।


एक  पल की भी देर नहीं लगती,
है   उसको  गवांने  में।।


बस अच्छे भाव ही  रखिये  और, 
नियत हो  साफ़ आपकी।


सच्ची दोस्ती है पूंजी सबसे बड़ी,
आज भी इस ज़माने में ।।
*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब।।  9897071046 ।।।।
8218685464 ।।।।।।।।।।।


अर्चना द्विवेदी।।  अयोध्या उत्तरप्रदेश बेटी दिवस कविता कलियाँ उपवन में महफूज़ न हो अगर,

अर्चना द्विवेदी।।
 अयोध्या उत्तरप्रदेश


बेटी दिवस कविता


कलियाँ उपवन में महफूज़ न हो अगर,
बागबां का गुलिस्तां उजड़ जाएगा।।


हर कली मुस्कुराये वो अवसर तो दो,
आसमाँ से फरिश्ता उतर आएगा।।


रब की रहमत बरसती रहेगी सदा,
बेटी-बेटो में अंतर न रह जायेगा।।


बेटियाँ चाँद सूरज सी चमकेंगी जब,
स्वर्ग आकर धरा पर ही बस जाएगा।।


सर पे आँचल न हो भाल सूना लगे,
माँ,बहन,बेटी किसको तू कह पायेगा।।


मां का पूजन करो बेटी इज्जत बने,
देव मंदिर सा घर ये संवर जाएगा।।
                                                  ।।अर्चना द्विवेदी।।
 अयोध्या उत्तरप्रदेश


गजल सुनीता असीम ,यहाँ सबके बने प्यारे मकाँ हैं।

 


सुनीता असीम


यहाँ सबके बने प्यारे मकाँ हैं।
मुहब्बत है कहीं और तल्खियाँ हैं।
***
बुराई की जिन्हें आदत रही हो।
वहीं उनकी बुरी बीमारियाँ हैं।
***
जहाँ होता दखल मां बाप का बस।
सदा टूटी वहीं पर शादियां हैं।
***
नियत होती बुरी है आदमी की।
निशाना सिर्फ होतीं लडकियाँ हैं।
***
अकेला वो नहीं बेशक गगन में।
वहाँ पर तो हजारों आसमां हैं।
***
सुनीता असीम
२४/१/२०२०


निशा"अतुल्य" अपमान

निशा"अतुल्य"


अपमान
दिनाँक       24 /1 /2020


अजनबी सा लगता है ये जहां मुझे
जहाँ उठती गिरती निगाहे तौलती है मुझे
लगता है कोई खंजर चीर गया जिस्म को मेरे
माँगती है जब जबाब अनगिनत प्रश्नो का करती अपमान मेरी अस्मिता का ।
ये प्रश्न सूचक उठती गिरती निगाहे 
जो हैंआत्मीय बहुत करीब दिल के मेरे 
अचानक से चीरता उनका कोई प्रश्न 
उठता है अस्मिता पर मेरे
 झकझोर देता है मुझे।
हिल जाती हूँ सोचती हूँ 
होकर विचलित 
क्यों  जीवन किया समर्पित
ऐसे लोगो के लिए ।
तब याद आता है उपदेश कृष्ण का
न कोई तेरा है ना तू किसी का 
उठ, मत भटक अज्ञान के अंधेरे में 
उठा शस्त्र और कर निर्णय 
अभी इस का ।
कर्म क्षेत्र है बस तेरा 
बाकी सभी अजनबी है यहां
ये रिश्ते ये नाते सभी स्वार्थ पूरक हैं 
जिनमें कहीं न कहीं 
स्वार्थ छुपा है तेरा ।
इस संसार में कर कर्म अपने सभी 
बन कर बस अजनबी
रह निर्विकार होगा सार्थक 
जीवन तभी तेरा ।
ना मान है तेरा, न कोई अपमान
जो भी है बस मैं हूँ
कर मुझे निमित और हो जा मुक्त 
सबसे परे निश्चिंत,
 मैं हूँ ना।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद* मादर ए हिंद* हम रहें न रहें जिंदगी

प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


मादर ए हिंद*


हम रहें न रहें जिंदगी चार दिन, फर्ज रहेगा सदा ये जमाना नहीं ।
मादर ए हिंद को लाख सजदा मेरा, करें कुर्बान तन मन सताना नहीं।।
ताज हिमालय सुघर पासबां  वो प्रखर, पाँव धोता समन्दर  रहकर तले,
आसमां को तिरंगा छुए चक्र से, व्यर्थ कतरा लहू का बहाना नहीं।।


धूलि इसकी है चंदन सुरम्य घाटियां, बाग वन सर सरोवर मिटाना नहीं।
चीर धानी सुहावन  अरुण भाल पर, स्याह धब्बे वदन पर लगाना नहीं।।
पालती पोषती वत्सला  मॉं मेरी, भारती आरती पुत्र सक्षम रहें,
वन्दे मातरम् भारतम् मंगलम्, इस उद्घोष रव को झुकाना  नहीं।


व्यर्थ की बातें करें व्यर्थ का दंभ भरेंऐसी वृत्ति का देखा ठिकाना नहीं।
गिर जाए अबल गर निश्चित उठाइए, नजर से गिरे को कभी भी उठाना नहीं।।
क्या ले आए जग क्या साथ जाए प्रखर, वाहक विद्वेष कर मनभेद  को बढ़ाऐं क्यों?
निस्पृह जीवन शुद्ध ह्रदय प्रेम विवेक बुद्धि, अनर्गल प्रलाप कर पर हिय को दुखाना नहीं।।


*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


अवनीश त्रिवेदी "अभय" मेरे जीवन मे कुछ कमी है

 अवनीश त्रिवेदी "अभय"


मेरे जीवन मे कुछ कमी है वही तो  तुमको  बता  रहा हूँ।
संग संग रहने की आरजू है अपनी ख्वाहिश जता रहा हूँ।
तुम्हारा जो भी हो फैसला अब वही हमको मंजूर होगा।
बेइंतेहा हैं मोहब्बत तुमसे बस  यही  कर खता रहा  हूँ।


 अवनीश त्रिवेदी "अभय


संजय जैन मुंबई आज फिर याद आये* विधा : गीत

संजय जैन मुंबई आज फिर याद आये*
विधा : गीत


मेरे दिल मे बसे हो तुम,
तो में कैसे तुम्हे भूले।
उदासी के दिनों की तुम,
मेरी हम दर्द थी तुम।
इसलिए तो तुम मुझे,
बहुत याद आते हो।
मगर अब तुम मुझे,
शायद भूल गए थे।।


आज फिर से तुम्ही ने,
निभा दी अपनी दोस्ती।
इतने वर्षों के बाद,
किया फिरसे तुम्ही याद।
में शुक्रगुजार हूँ प्रभु का,
जिन्होंने याद दिला दि तुमको।
की तुम्हारा कोई दोस्त,
आज फिर तकलीफ में है।।


में कैसे भूल जाऊं,
उन दिनों को में।
नया नया आया था,
तुम्हारे इस शहर में।
न कोई जान न पहचान,  
 थी तुम्हारे इस शहर में।
फिर भी तुमने मुझे, 
अपना बना लिया था।।


मुझे समझाया था कि,
दोस्ती कैसी होती है।
एक इंसान दूसरे का,
जब थाम लेता है हाथ।
और उसके दुखो को,
निस्वार्थ भावों से सदा।
करता है उन्हें जो दूर, 
वही सच्चा दोस्त होता है।। 


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
24/01/2020


डा० भारती वर्मा बौड़ाई रे मानव!

डा० भारती वर्मा बौड़ाई


रे मानव!
———-
अन्याय 
होता देख 
मूर्ति से बने 
खड़े तो न रहो 
ठंडे हो चुके 
रक्त में उफान ला 
न्याय के लिए 
आगे तो बढ़ो,
ऐसा न हो 
अकर्मण्यता देख 
मूर्तियाँ खो बैठे 
अपना आपा 
और पिल पड़े 
तुम्हीं पर सुधारने को 
तुम्हें!
कुछ सोच तो 
रे! अकर्मण्य मानव!
—————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


एस के कपूर"श्री हंस" विविध हाइकू।

एस के कपूर"श्री हंस"


विविध हाइकू।


(1)
*जीवन मर्म*
*और जीवन धर्म*
*करें अच्छे कर्म*


(2)
*दिल से मित्र*
*मतलब है सदा*
*दिल में चित्र*


 (3)
*नेता का वादा*
*मिलता नहीं कभी*
*यह इरादा*


(4)
*दूर या पास*
*मंजिल मिलने की*
*न खोना आस*


(5)
*जीवन जीना*
*काफी नहीं इतना*
*बनो नगीना*


(6)
*सौ की सौ चोट*
*जब नकाफी  हों तो*
*लोहारी चोट*


*रचयिता।।।।एस के कपूर"श्री हंस"*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।
8218685464।।।।।।।।।


मुक्ता तैलंग बीकानेर माना तुम्हारे जैसे ओहदेदार नहीं है।

माना तुम्हारे जैसे ओहदेदार नहीं है।
कुछ तो हैं मगर काम के बेकार नहीं है।। 


लोगों की निगाहों में नाचीज ही सही।
जिंदगी से फिर भी बेजार नहीं है।।


तेरे बसाए हुए नफरत के शहर में। 
जानते हैं हम किसी का प्यार नहीं है।। 


दिलों को जोड़ने वाले हैं धागे मोहब्बत के।
जड़ों को काटने वाली ये तलवार नहीं है।।


बांटते फिरते हैं जो इल्म की दौलत। 
सेवा है ये सच्ची व्यापार नहीं है।।


कोशिशें नाकाम हैं, नाकाम हैं असर।
अगर किसी को हम पे ऐतबार नहीं है।।


है शगल तुम्हारा रिश्तों को तोड़ना। 
तो फिर जुड़े रहने के आसार नहीं हैं।।


सुख दुख में साथ रहकर एक दूसरे को। 
जो हौंसला ना दे वो परिवार नहीं है।।
    -- मुक्ता तैलंग, बीकानेर।


कवि डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज' दोहे

स्वतंत्र रचनाः २५१
दिनांकः २२.०१.२०२०
वारः बुधवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः 🇮🇳नमन करूँ माँ भारती🇮🇳
नमन   करूँ   माँ   भारती , मातु    पिता   पदपद्म।
नमन  राष्ट्र  अरु  गुरुचरण , प्रीति हृदय  बिन छद्म।।१।.
लोकतंत्र   जनमन   वतन , पूजें   नव   अभिलास।
मिलें   साथ  चल  प्रगति पथ ,अमन  प्रेम विश्वास।।२।।
तजें    स्वार्थ    दुर्भावना , रमें    मनुज    कल्याण।
राष्ट्र   प्रेमरस   पान   कर , लगें      देश    निर्माण।।३।।
करें   सफल  निज  जिंदगी , हर  सेवा जन क्लेश।
तभी   राष्ट्र   निर्मल   सुखद , शान्ति  प्रेम  हो देश।।४।।
त्राहि   त्राहि   चारों   तरफ़ , मचा   हुआ   उत्पात।
लोग   विमुख   कर्तव्य  से ,  कुरेद  रहे   ज़ज़्बात।।५।।
कवि मनसि बस यही व्यथा, मिले आज सब चोर।
राष्ट्र   प्रजा   चिन्ता   किसे , मात्र   विरोधी   शोर।।६।।
जिससे   करते   प्यार  हम , तजे  अंत तन  साथ। 
करें प्रीत परहित  वतन , यश  अपयश बस  हाथ।।७।।
सोच   किसे    पर्यावरण , जलवायु       बदलाव।
स्वारथ  में   जग  लीन  है , चिन्ता  प्रकृति बचाव।।८।।
जीवन   दूसरों   के   लिए , मानवता     हितकाम।
तभी सफल मानव जनम , अमरकीर्ति  अभिराम।।९।।
लक्ष्य यान   चालक  भरें ,  हौंसलों   की    उड़ान।
आजीवन    अर्पण  वतन , दूँ   परहित    अवदान।।१०।।
कवि निकुंज  कवि  कामिनी , राष्ट्रभक्ति अनुरक्ति।
यशोगान   गाती  मुदित ,वतन प्रगति अभिव्यक्ति।।११।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज'
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


अर्चना कटारे    शहडोल( म.प्र) जिन्दगी ..... तुम बहुत खूबसूरत हो,

अर्चना कटारे
   शहडोल( म.प्र)


जिन्दगी
-------------------------------------
जिन्दगी .....
तुम बहुत खूबसूरत हो,
बच्चों की मुस्कान हो।
भूखोँ की रोटी हो,
प्यासों का पानी हो।।


निर्धन का पैसा हो,
बीमारों की दवा हो।
मजदूर की ताकत हो,
वृद्धों की लकड़ी हो।।


सृष्टी का सृजन हो,
तपती धूप मे पेड की छाँव हो।
जाडे की गुनगुनी धूप हो,
सूखे की बारिस हो।।


सुहागिनोँ का सिन्दूर हो,
नारी की शक्ति हो।
तरूणाईयों का यौवन हो 
नर्तकियों की घुँघरु हो।।


योगियों की ज्योति हो,
कवियों का भाव हो।
शिल्पियों के कल्पना हो,
ताँत्रिक की साधना हो।।


विद्यार्थियों की मेहनत हो,
सैनिकों का हौसला हो।
खिलाडियों का तमगा हो,
वीरों का झँडा हो।।


बुढापे की आस हो,
मुसाफिरों का ठिकाना हो.
चालक की नजरें हो,
माझी की पतवार हो।।


शराबियो का मैखाना हो,
नशेड़ियों का नशा हो।
जुआरियों की बाजी हो,
चोरों की अँधेरी रात हो।।


जिन्दगी .......
पता नहीं क्या हो.....।
जो भी हो ,
तुम बहुत खूबसूरत हो।।


   अर्चना कटारे
   शहडोल( म.प्र)


प्रिया सिंह लखनऊ डरे सहमे लोग

डरे सहमे__ से आज यहाँ हालात क्या करेगें।
आतंक के शोर में अहिंसा की बात क्या करेगे ।।


आज मनुष्य को अपने घर की परवाह नहीं है।
ऐसे भारतवर्ष में गांधी के खयालात क्या करेंगे।।


दे कर नहीं लेकर पाप सब जा रहें हैं धीरे-धीरे ।
जाते-जाते बेनज़ीर, नार के हवालात क्या करेंगे।।


हर शब्द पर उनके यहाँ ___ अंगारे शर्मिन्दा हैं।
इस नागवार मालिक से___ सवालात क्या करेंगे।।


जम्हूरीयत को बेच कर वो शहंशाही दिखाते हैं।
इस नाचीज़ के लेखन का मक़ामात क्या करेंगे।।


 


 *Priya singh*


अतिवीर जैन "पराग " नेताजी

नेताजी :-


आजाद हिन्द फौज का कमांडर था,
जन गण के मन का नेता था.


इक्कीस ऑक्टोबर उन्नीस सौ तेतालीस को,
आजाद हिन्द सरकार सिंगापुर में बनायी थी.


पहली आज़ादी देश ने, तीस दिसम्बर उन्नीस
सौ तेतालीस को पायी थी,
जब नेताजी 
सुभाष चन्द बोस ने (अंडमान निकोबार) शहीद स्वराज पर प्रथम प्रधानमंत्री के रुप में प्रथम बार स्वंत्रता का तिरंगा  फहराया था.
आजाद हिन्द सरकार ने,विश्व के नौ देशों से मान्यता पायी थी.


पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सेतालीस  को,
देश ने बँटवारा पाया था.


नेताजी वीर सुभाष चन्द बोस से,अँग्रेजी   शासन थर्राया था.


"तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूँगा" का
नारा एक लगाया था.
देश की जवानी को जयहिन्द कहना सिखाया था.


जय हिन्द,जय नेताजी, वन्देमातरम.
अतिवीर जैन "पराग "
मेरठ,9456966722


रचना ममता कानुनगो इंदौर मध्यप्रदेश : *आत्म-अभिव्यक्ति*

 


रचना ममता कानुनगो इंदौर मध्यप्रदेश : *आत्म-अभिव्यक्ति*
कथन औ कथ्य से परे
स्वतंत्रभिव्यक्ति चाहती हूं
बंधन औ बाध्य से परे
निर्बाध मौन को मैं
सांसों में सहेजना चाहती हूं।।


समय गतिमान है
ना रुकता है,ना ही रुकेगा
काल के प्रवाह को
स्वगति देना चाहती हूं
निर्बाध मौन को मैं
सांसों में सहेजना चाहती हूं।।


कल्पित-कपोल रुढ़ियों से
अनचाही परंपराओं से
मुक्त हो नवीन संरचना चाहती हूं
स्वहित हेतू कुछ नियम बदलना चाहती हूं
निर्बाध मौन को मैं
सांसों में सहेजना चाहती हूं।।


अविरल धारा सी
होती रहूं प्रवाहित मैं
होकर समाहित सागर में
थाह उसकी पाना चाहती हूं
सीप का मोती बनकर मैं
स्वयं में सागर समाना चाहती हूं
निर्बाध मौन को मैं
सांसों में सहेजना चाहती हूं।।


शब्द राग से परे
भावनाओं से व्यक्त हो
ना साज हो ना आवाज हो
अपनेपन का स्वच्छंद एहसास हो
निच्छल प्रेम का मैं
गीत गुनगुनाना चाहती हूं
निर्बाध मौन को मैं
सांसों में सहेजना चाहती हूं।।


हर श्वांस और प्रश्वांस में
खुद को ढूंढना चाहती हूं
हर एक स्पंदन में 
मैं आत्मानुभूति चाहती हूं
स्वयं को पाकर मैं स्व में खोना चाहती हूं
निर्बाध मौन को मैं
सांसों में सहेजना चाहती हूं।।
स्वरचित: ममता कानुनगो इंदौर मध्यप्रदेश


डा० भारती वर्मा बौड़ाई सुभाषचंद्र बोस

 


डा० भारती वर्मा बौड़ाई


सुभाषचंद्र बोस 
——————
अपने शौर्य 
और पराक्रम से,
अपने जुनून और 
सूझबूझ से,
प्राण हथेली पर ले 
अपना बचपन और जवानी 
घर के नाते सभी भूल कर,
सर्वस्व समर्पित कर 
देश की स्वतंत्रता हेतु 
भूमिका बनाने,
नींव रखने में 
जिन्होंने बलिदान दिया था 
उनमें सुभाषचंद्र बोस भी थे।
नेता जी से प्रसिद्ध हुए,
आजाद हिंद थी फौज बनायी,
“तुम मुझे खून दो,
मैं तुम्हें आजादी दूँगा “ के नारे से 
भर डाला था जोश सभी में,
देते साथ सभी नेता तो 
होते सफल और 
रूप देश का और कुछ होता,
गुत्थियाँ कुछ सुलझी 
कुछ अब भी अनसुलझी हैं,
जीवित हैं या नहीं हैं 
आज भी उनके प्रिय अनुयायी 
इसी सोच में हैं,
धन्य है अपनी भारत भूमि 
अवतरित हुए यहाँ 
सुभाषचंद्र बोस!
जिन्होंने स्वतंत्रता का 
किया था जय घोष!
उन्हें नमन है।
——————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


सुनीता असीम मुक्तक

मुक्तक
गुरूवार
२३/१/२०२०


कभी मत प्यार की करना तिजारत तुम।
करो ऐसा तो करना मत शिकायत तुम।
खुदा सी पाक होती है मुहब्बत ये-
कभी इससे नहीं करना हिकारत तुम।
***
सुनीता असीम


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी" जल में या थल में..

देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


जल में या थल में....


जल  में  रहूं या  थल में।
आकाश छु लूं  पल में।।


कोशिश  है  मेरी  जारी ;
भरोसा  अपने  बल में।।


सावधानी  रखता  हूं  मैं;
मेहनत न जाए जल में।।


शत्रु  के  चाल  समझूं मैं;
फांसे न  कोई  छल में।।


वक़्त का मोहरा नहीं मैं ;
कुछ  तरकीब पहल में।।


कोई साथ दे,ठीक,वर्ना ;
अकेले काफी महल में।।


कोई परवाह नहीं"आनंद"
नज़र है  सिर्फ  फल में।।


-देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


अखंड प्रकाश कानपुर स्वस्थ मनोरंजन मिले,कवि का हो सम्मान

अखंड प्रकाश कानपुर


स्वस्थ मनोरंजन मिले,कवि का हो सम्मान।
पाठक की अभिव्यक्ति हो,संग सुपथ का भान।।
संग सुपर का भान, लेखनी ध्वज लहरेगा।
कवि कविता का धर्म मंच पूरा समझेगा।।
कह अखण्ड कविता भरती आंखों में अंजन।
सुभग ज्ञान संग प्राप्त करें, स्वस्थ मनोरंजन।।


काव्य रंगोली के सभी सदस्यों को बधाई एवं अभिनन्दन......


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