प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र गीत-प्रीति न कीजिए है अदावत बहुत

प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र


गीत-प्रीति न कीजिए है अदावत बहुत



प्रीति न कीजिए,है अदावत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।
*
मुख में अमृत है,दिल में ज़हर जो भरा।
खोट वाले हैं मिलते,न मिलता खरा।
अब कहीं नहिं मिलेगी शराफत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-01
*
आज मिलते बहुत जो दग़ाबाज़ हैं।
काक हैं गिद्ध हैं वो कहें बाज़ हैं।
आचरण से कहें है शिकायत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-02
*
जो मिले लूट लें,ऐसे बटमार हैं।
कालनेमि के वो तो कि अवतार हैं।
नहिं करे छलियों से हम शराफत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-03


मो.09589349070


एस के कपूर श्रीहंस बरेली सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान

*।।।।सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।मुक्तक ।।।।।।।।।।।।*


राष्ट्र की  हर सीमा पर,
तिरंगा हमें लहराना है।


सम्पूर्ण संसार में शान्ति,
संदेश हमें फैलाना है।।


प्रेम न्याय समता  का है,
विश्व दूत बनना हमको।


सोने की चिड़िया वाला,
हिन्दुस्तान कहलानाहै।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर* *श्रीहंस।।।।।।बरेली सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान
*मोबाइल*    9897071046
                  8218685464
*गणतंत्र दिवस के अवसर पर*
*राष्ट्र प्रेम को समर्पित  मेरी  एक*
*रचना शुभकामनायों सहित।*
*एस के  कपूर श्रीहंस*


एस के कपूर श्री हंस बरेली मुक्तक बस प्रेम का नाम मिले तुमको

*बस प्रेम का नाम मिले तुमको*


*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।*


जिस  गली से  भी  गुज़रो बस
 मुस्कराता  सलाम हो  तुमको।



किसी की मदद तुम कर सको
बस  यही  पैगाम  हो  तुमको।।


 
दुआयों का लेन देन हो तुम्हारा
बस  दिल  की   गहराइयों  से।



प्रभु से करो    ये  गुज़ारिश कि
बस  यही  काम   हो   तुमको।।



*रचयिता ।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*


मोब  9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।


सुनील कुमार गुप्ता कविता:-       *"मीठे बोल"*

सुनील कुमार गुप्ता


कविता:- "मीठे बोल"
"मिट सकती कटुता जीवन की,
साथी बोले जो-
मीठे बोल।
अपने भी हो जाते बेगाने,
साथी बोले जो-
विष घोल।
भूल हुई जो अपनो से,
क्षमा कर अपनाएं-
बोले मीठे बोल।
मधुरता छाती संबंधो में,
भक्ति संग-
साथी होती नव भोर।
मिट जाती पतझड़ की चुभन,
देखकर जीवन में-
साथी नव कोपल।
बन जाता स्वर्ग धरती पर,
साथी बोले जो-
मीठे बोल।
मिट सकती कटुता जीवन की,
साथी बोले जो -
मीठे बोल


अंजली मौर्या लखीमपुर खीरी            "हिंदुस्तान हमारा है"

अंजली मौर्या
लखीमपुर खीरी
           
     "हिंदुस्तान हमारा है"


सारे मुल्कों  से प्यारा है,
हिंदुस्तान हमारा है |
हम जिस देश में रहते हैं,
उसी को भारत कहते हैं|
सारे मुल्कों से प्यारा है,
हिंदुस्तान हमारा है |
यहां हिंदू -मुस्लिम ,सिख -ईसाई,
मिलकर रहते भाई -भाई |
यहां जाति पात नहीं होता है,
भेदभाव नहीं होता है |
समता का अधिकार सिखाते हैं|
इसी को भारत कहते हैं |
सारे मुल्कों से प्यारा है,
हिंदुस्तान हमारा है |
यहां मंदिर मस्जिद है ,
और गिरिजाघर  गुरुद्वारा |
इन सबका मकसद एक है,
ईर्ष्या और द्वेष मिटाना |
नेकी करना  सिखाता है |
इसी को भारत कहते हैं | 
सारे मुल्कों से प्यारा है ,
हिंदुस्तान हमारा है |
यहां पूरब से पश्चिम ,
और उत्तर से दक्षिण |                   
यहां विभिन्न संस्कृतिया हैं ,
और विभिन्न भाषाएं हैं |
अनेकता में एकता सिखाता है |
इसी को भारत कहते हैं |
सारे मुल्कों से प्यारा है ,
हिंदुस्तान हमारा है |
यहां गंगा यमुना सी,
नदियां बहती कल कल |
यहां खड़ा हिमालय है ,
प्रहरी बनकर हर -पल |
मिलकर रहना सिखाते हैं |
इसी को भारत कहते हैं |
सारे मुल्कों से प्यारा है ,      
हिंदुस्तान हमारा है |


प्रिया सिंह लखनऊ दौलत,और शोहरत देख कर इमान बदल जाता है 

 


प्रिया सिंह लखनऊ


दौलत,और शोहरत देख कर इमान बदल जाता है 
ऐसे ही हमारे भारत का संविधान बदल जाता है 


बात जब जन्म-मरण तक पहुंचे धर्म के वास्ते 
लिखा हुआ विधि का विधान बदल जाता है


बात गर मुझ तक नहीं आई तो कोई बात नहीं 
बात अपने पर आ जाये तो इन्सान बदल जाता है


नियम कानून तो जानवर पर लागू होता था कभी
आज आदमी का यहां पर पहचान बदल जाता है 


आवाम का ताज तामीर-औ-तरक्की के लिए था 
पर देख, पोशाक यहाँ स्वाभिमान बदल जाता है 


 


 


Priya singh


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"  गणतंत्र दिवस  पावन    गाथा   शौर्य    का , कुर्बानी        सत्नाम। 

 


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


 गणतंत्र दिवस 
पावन    गाथा   शौर्य    का , कुर्बानी        सत्नाम। 
आज़ादी      माँ    भारती ,  लोकतंत्र     अभिराम।।१।।
वर्षों   की  नित     साधना , सहे   ब्रिटानी     घात। 
कोटि   कोटि   बलिदान  दे , पा  स्वतंत्र    सौगात।।२।।
लुटीं     अस्मिता   इज़्ज़तें , ब्रिटानी     अत्याचार। 
तन मन धन    अर्पित   वतन , पराधीन     उद्धार।।३।। 
सही   यातना     कालिमा , मीसा   त्रासद    जेल।
तहस    नहस    संवेदना , दानवता  का      खेल।।४।।
खाये     डंडे      गोलियाँ , शैतानी           परतंत्र।  
जलियाँवाला   त्रास   भी , तभी   मिला   गणतंत्र।।५।।
कोल्हू   के    बैलों    समा , रौंदे  गये      किसान।
लाख   लाख   बहु बेटियाँ , लुटी   लाज दी  ज़ान।।६।।
छत्रपति    शिवराज  सम , था   प्रताप    जांबाज़।
तात्या   लक्ष्मी   कुँवर सम , नाना  सम   सरताज़।।७।।
भगत    राजगुरु   लाजपत , सुखदेव खुदी  राम । 
रोशन   बिस्मिल चन्द्र सम , सावरकर   अभिराम।।८।।
जंजीरों  की   सीखचें , सुन   भारत       चीत्कार। 
टूट   पड़ा    पूरा     वतन , लेने   को     प्रतीकार।।९।।
सत्य  अहिंसा   नीति  रथ ,आज़ादी  की  क्रान्ति ।
जवाहर  गाँधी  पटेल , तिलक  चले  पथ  शान्ति।।१०।।
बजा बिगुल जनक्रान्ति का, बना   सुभाष  नेतृत्व।
आजाद हिन्द की फ़ौज भी , आयी अब अस्तित्व।।११।।
आजादी    तुमको  वतन , चाहत  यदि  दो   खून।
चलो    साथ    मर्दन    करें , अंग्रेजों   को    भून।।१२।।
कोटि  कोटि  सैलाब जन , चला   राष्ट्र   बलिदान।
भारत   माँ   जयगान  से , पा   सुभाष     वरदान।।१३।।
शान्तिदूत    दूसरे   तरफ , चल   बापू       नेतृत्व।
भारत    छोड़ो     अंग्रेजों , सत्याग्रह     अस्तित्व।।१४।।
जयप्रकाश    राजेन्द्र   सम , कृपलानी    रणवीर।
किचलू    शास्त्री    मौलाना , आज़ादी    तकदीर।।१५।।
लाखों    की     कुर्बानियाँ ,  गये    करोड़ों   जेल।
मिली   तभी   स्वाधीनता ,  सत्य  त्याग श्रम मेल।।१६।।
अभिलाषा   नवराष्ट्र   की , सार्वभौम      गणतंत्र।
ध्येय  मनसि  चहुँमुख विकास ,भारत बने स्वतंत्र।।१७।।
पर   सत्ता  कुछ   लालची , खण्डित  भारत देश।
किया   विभाजन  धर्म पर , पाक   बना   परदेश।।१८।।
लाशों     के    आसन्द  पर , बैठे        सत्ताधीश।
संविधान   पीठ  हो  गठित  , राजेन्द्र   पीठाधीश।।१९।।
सच्चिदानंद    अध्यक्षता , बीता    द्वितीय     वर्ष।
संविधान   अंतिम   रूप ,  भीमराव       निष्कर्ष।।२०।।
लोकतंत्र   उन्नत   सबल , हो   शिक्षित   परिवेश।
नीति     रीति    सद्भावना ,  सर्वधर्म         संदेश।।२१।।
खोज   खोज  अच्छाईयाँ , लाए    देश    विदेश।
संसदीय   सुदृढ़    वतन , संघीय   राष्ट्र     प्रदेश।।२२।।
न्यायपालिका   हो  शिखर , माने   सब   आदेश।
निर्माणक   कानून    का ,   संसदीय     पटलेश।।२३।।
विधायिका  कार्यपालिका ,न्यायालय तिहुँ शक्ति।
केन्द्र प्रदेश  मिल सूचियाँ , समवर्ती     अनुवृत्ति।।२४।।
रक्षित जन    मूलाधिकार , बोधन जन    कर्तव्य।
राज   बने पंचायती  ,  सब जन  सुख   ध्यातव्य।।२५।।
जाति  धर्म   भाषा  विना, समरस   बिन   दुर्भाव।
निर्भय  नर  नारी  सबल , रहें  सुखी  निज  चाव।।२६।।
समता  व सहभागिता , अधिकारी   अभिव्यक्ति।
स्वधर्मी    उन्मुक्त  जन ,   राष्ट्र - धर्म    आशक्ति।।२७।।
राष्ट्र  प्रीति  सद्भक्ति   नित ,  मानवता   हो रक्ष्य ।
उद्योगी   विज्ञानी    वतन , महाशक्ति   हो  लक्ष्य।।२८।। 
बने सुखद शिक्षित सभी ,  न  दीन  धनी  विभेद।
पड़े  राष्ट्र    जब  आपदा , मददगार         संवेद।।२९।।
विश्वगुरु  फिर   से   बने , निधि  किसान विज्ञान।
बढ़े आन सम्मान नित ,  भारत    देश      महान्।।३०।। 
लहराए  नभ   तिरंगा ,  स्वाभिमान       जनतंत्र।
यही सोच  अम्बेदकर, नवभारत          गणतंत्र।।३१।।
शान्ति चैन सुख सम्पदा , मुख  सरोज मुस्कान।
परमारथ  आपद समय , खड़े    बने     वरदान।।३२।।
ध्येय  मनोहर   चारुतम , संविधान       आधार।
प्रगति परक आरोग्यतम , स्वच्छ  राष्ट्र  सरकार।।३३।।
पर अवसादित  अवदशा , प्रसरित  आपस द्वेष।
घृणा लोभ ईर्ष्या कपट ,  हिंसक  अब  परिवेश।।३४।।
तार   तार    सद्भावना , लूट  मार       मदहोश।
सत्ता  सुख  के    लालची , राष्ट्र विरोधी  जोश ।।३५।।
स्वार्थ- सिद्धि  में  बदजुबां, बोले पाकी   बोल।
मिले साथ  आतंक  के ,गद्दार मुल्क  अनमोल।।३६।।
लोभी   हैं  नासूर  बन , नेता    ये      प्रतिपक्ष।
जला    रहे    गणतंत्र   को , दंगाई       संरक्ष।।३७।। 
धमाचौकड़ी   लूट  की , पल पल रच साजीश।
शर्मसार    गणतंत्र   है  ,  व्यभिचारी   माचीश।।३८।।
सरकारी    जन  सम्पदा ,   जला  रहे  उन्माद।
निडर बने  हिंसक जना ,  अवरोधित    बर्बाद।।३९।।
दिवस आज गणतंत्र का , मनाए क्या  निकुंज।
पाक  साथ  गद्दार  भी  , हो  विनाश जग गुंज।।४०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" 
रचनाः मौलिक(स्वरचित) 
नई दिल्ली


अतिवीर जैन "पराग " मेरठ प्यारा गणतंत्र :- सबसे प्यारा गणतंत्र हमारा,

अतिवीर जैन "पराग " मेरठ


प्यारा गणतंत्र :-


सबसे प्यारा गणतंत्र हमारा,
छब्बीस जनवरी को मनाते है.
राजपथ पर परेड में,
देश की प्रगति को दर्शाते है.


देश के सभी राज्यों की,
झाकिया दिखलाते है,
सेना के शौर्य की झलक,
हम राजपथ पर पाते है.


अपने गणतंत्र की वेभव शक्ति,
दुनिया को दिखलाते है,
देखकर हमारी शक्ति शौर्य,
दुश्मन भी थर्राते है.


तिरंगे को फहराकर सबमिल 
राष्ट्रगान हम गाते है.
जैहिँद,वंदेमातरम बोलकर,सबमिल 
गणतंत्र दिवस हम  मनाते है.


सबसे प्यारा गणतंत्र हमारा,
छब्बीस जनवरी को मनाते है. 


स्वरचित,अतिवीर जैन "पराग " मेरठ
9456966722


अवनीश त्रिवेदी "अभय" जग में  सबसे  अच्छा  ये   गणतंत्र  हमारा।

 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


जग में  सबसे  अच्छा  ये   गणतंत्र  हमारा।
हमें  गर्व  हैं  इस  पर  ये  हैं  हमको  प्यारा।
सभी धर्म के लोग यहाँ पर मिल  कर  रहते।
सबके  हैं  अधिकार  सब इसे अपना कहते।
हैं  शस्य  श्यामला  धरती  सोना   उपजाती।
ये  स्वर्ग  से   सुंदर   हैं  हम  सबकी   थाती।
इस जहाँ में सबसे उज्जवल इसकी छवि हैं।
इसे  उजाला   देता   सबसे   पहले  रवि  हैं।
सबके  रहन-सहन, खान-पान का विधान हैं।
सभी  सुरक्षा   देता   देश  का  संविधान  हैं।
हम   सब  परस्पर  मिलकर  शांति  फैलाए।
भ्रांति  जो  भी  दरम्यां  हो अब उसे मिटाए।
जब  तक  दुनिया  में  ये नीला आकाश रहे।
तब  तक  राष्ट्र  की  बगियाँ में  मधुमास रहे।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


     प्रधानाचार्य
  एस. वी.सी.आई.
द्वारिकापुरी, नेरी- सीतापुर (,उत्तर प्रदेश)


निशा"अतुल्य' मीरा के श्याम भक्ति का स्वरूप मीरा  पी गई विष का प्याला 

निशा"अतुल्य'


मीरा के श्याम
दिनाँक      25/ 1/ 2020   


भक्ति का स्वरूप मीरा 
पी गई विष का प्याला 
गिरधर गिरधर करते करते
अमृत बन गई हाला।


मेरे तो गिरधर गोपाल
न कोई दूजा चाहा
हो गई अमर मीरा 
रटते रटते गोपाला ।


किनी साधु की संगत 
तब घर बार सब छोड़ा 
समा गई गिरधर में खुद ही 
पट मंदिर जब खोला ।


मीरा जैसी भक्ति दो प्रभुवर
मीरा के श्याम तारो मुझको 
पार करूँ व्यवधान सभी मैं 
पा कर कर्म ज्ञान तुम्हारा ।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य'


अर्चना द्विवेदी        अयोध्या उत्तरप्रदेश.. *देखा एक विवश नारी को*..... बेबस  आँखें , निर्बल  काया, कांतिहीन मुख पे दुःख छाया।

अर्चना द्विवेदी
       अयोध्या उत्तरप्रदेश


हाल में ही एक यात्रा के दौरान भीख माँगते एक 20-21 वर्षीय बहन को देखा और उसकी दयनीय स्थिति, मनोदशा देखकर लगा कि जहाँ आज एक तरफ हम बेटी दिवस मना रहे हैं वहीं दूसरी तरफ हमारी बहन,बेटियों की वास्तविक स्थिति क्या है....


*देखा एक विवश नारी को*.....


बेबस  आँखें , निर्बल  काया,
कांतिहीन मुख पे दुःख छाया।
बिखरे बाल,विक्षिप्त सी बातें,
तकते  सब  ही  आते  जाते।


ममता का आँचल फैलाये।
दया मिले  न  बेचारी को।।
देखा एक विवश नारी को..


था अबोध शिशु वक्ष से लिपटा,
मानों भाग्य देश का सिमटा।
पेट भरे शिशु का कैसे वो ,
थी असहाय बहुत जैसे वो।


मिल जाता संतोष हृदय को।
दंड हो यदि अत्याचारी  को।।
देखा एक विवश नारी को....


उदर भरण था बहुत जरूरी,
भिक्षुक बनना हुई मजबूरी।
था वह  कोई  प्रेम  निशानी,
या फिर हवस की एक कहानी


दिन प्रतिदिन की घटनाओं से
कौन बचाये बेचारी को....😢
देखा एक विवश नारी को...


क्यूँ समाज है निष्ठुर सोया,
क्यूँ झूठे सपनों में खोया।
त्यागा,भोग की वस्तु समझकर,
पाहन समझा,हीर परखकर।


सृष्टि सृजन की धुरी है भामा।
तरसेंगे सब किलकारी को।।
देखा एक विवश नारी को.....


देवालय की पूजित प्रतिमा,
वेद पुराणों की जो महिमा।
वनिता की यह देख दुर्दशा,
मन होता है विचलित सहसा


कब तक नारी सहन करेगी,
कामी वहशी व्यभिचारी को।।
 देखा एक विवश नारी को.....
       अर्चना द्विवेदी
       अयोध्या उत्तरप्रदेश


 


डा० भारती वर्मा बौड़ाई देहरादून, उत्तराखंड  भक्ति  ——— काम सब तेरे दिए हैं 

 


डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड 


भक्ति 
———
काम सब तेरे दिए हैं 
पूर्ण उनको कर रही,
अलग से भक्ति करूँ 
कैसे यह सोच रही।


सृष्टि तेरी ही रचित है 
मैं उसका ही एक अंग,
एक दूजे में निहित हैं 
हर समय का है संग।


भावपूरित हृदय मेरा 
भाव ही मेरे हैं चंदन,
कर्म ही भक्ति है मेरी 
कर्म ही मेरा है वंदन।


हो हँसी हर अधर पर
बस यही सपना धार,
जीवन है चार दिन का 
रह न जाये निराधार।
———————-
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड 
9759252537


सुनीता असीम आगरा मुक्तक

मुक्तक
शनिवार
२५/१/२०२०
श्वान कितने पीछे पड़े हैं हाथी अपनी जगह अड़ा है।
कोशिश करते उसे हिलादें वो तो अपनी जगह खड़ा है।
नहीं किसी की परवाह उसको अपना मान है रखता-
जानता है छोटे उससे सारेऔर  वो उन सबसे बड़ा है।
***
सुनीता असीम


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।बरेली

*सबको याद रहे दास्ताँ तुम्हारी*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।*


चार दिन की मेहमां जिंदगी
बस यही अफसाना है।


कर  जायो  तुम  कुछ  भला
बस यही  फरमाना  है।।


छोड़  कर  जायो  दुनिया  में
ऐसी दास्तान अनकही।


वरना वही राख का ढेर  सब
का अंतिम ठिकाना है।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*
मोब   9897071046।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


डॉ0 नीलम अजमेर प्रभा*  बिखेर कर रविकिरणें भोर मुस्करा गई

आज का शब्द........


        *प्रभा* 


बिखेर कर रविकिरणें
भोर मुस्करा गई
रजनी ने करवट ली
प्राची-प्रभा खिलखिला गई


वंदन शंखनाद से मंदिरों ने किया
अर्चन अजान से मस्जिदो ने किया


परिंदे पंख पसार परवाज 
भरने लगे
नन्हें छोने खोल चोंच कलरव करने लगे


जाग कर सड़कें ईधर-उधर भागने लगीं
पेट की आग में इंसान से करतब कराने लगी


कलियों ने भी पंख खोल
वातावरण महका दिया
भोर का सितारा भी ठिठक कर अपनी राह चल दिया


घर- आँगन ,द्वार-दहलीज़
सब खुल गये
नर-नारी सब अपने-अपने कर्म में लग गये।


     डा.नीलम


देवानंद साहा देश  प्रेम  की  भावना  बढ़ाए   चलिए।

.................देश प्रेम......................


देश  प्रेम  की  भावना  बढ़ाए   चलिए।
अपने  देश  को  आगे  बढ़ाए  चलिए।।


देश हम से है कम,देश से  अधिक हम;
देश से अपनी पहचान  बताए चलिए।।


देश की मिट्टी में जन्मे,बढ़े,मिल जाएंगे;
इस मिट्टी से वफादारी निभाए चलिए।।


हमें शत्रु से ज्यादा,जयचंदों से है चिंता;
जयचंदों को सही  पाठ पढ़ाए चलिए।।


किसी  का पिछलग्गू  न बना,न बनेगा ;
आकाओंके सही जगह बताए चलिए।।


"जियो और जीने दो"को मानते हैं हम ;
जो नहीं माने उसे हस्र दिखाए चलिए।।


इस देश की मिट्टी के मुरीद हैं"आनंद" ;
देश के लिए अपने सर कटाए चलिए।।


------- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


कवि कुमार अमित (कटरा बाजार गोण्डा उ.प्र) बचपन में खेला कूदा संग संग किया पढ़ाई।

कवि कुमार अमित (कटरा बाजार गोण्डा उ.प्र) 9696876685
(2) बचपन में खेला कूदा संग संग किया पढ़ाई।
 कैसे जन्मा भेदभाव की पौध कहाँ से आई॥
 भारत माँ जननी है मेरी हम सब बालक उसके।
 सागर की धाराएं निशदिन चरण पखारें जिसके॥ 
जातिवाद पर भेदभाव का अब तुम बन्धन तोड़ो। 
एक राष्ट्र है एक धर्म है उसको आगे जोड़ो॥
पुरखो ने कुर्बानी दे दे आजादी हमे दिलाई।
 कैसे जन्मा भेदभाव की पौध कहाँ से आई॥
 एक  जैसा है रक्त है सभी का एक ही सबकी भाषा।
उत्पीड़न ना किसी का होए,ना हो कोई तमासा॥
 विश्व गुरु हम भारतवासी यह दायित्व निभाएँ।
मेरे घर और शिक्षा लेकर परदेशी भी जायें॥
 किसी ग्रन्थ में नहीं मिला, संविधान में नहीं लिखाई। 
कैसे जन्मा भेदभाव की पौध कहाँ से आई॥


सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक ए टी आई कानपुर- कविता---सिंह वाहिनी देवी मां    

नाम--- सुरेन्द्र पाल मिश्र


पूर्व निदेशक ए टी आई कानपुर
निवास--ग्राम व पोस्ट जेठरा जिला लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश २६२७२२
मोबाइल--८८४०४७७९८३,९९५८६९१०७८
कविता---सिंह वाहिनी देवी मां
             -------------------------
हे देवी मां सिंह वाहिनी तन मन विमल करो
चिर संचित मन की अभिलाषा देवी पूर्ण करो।
तेरी स्मृति से मन बेकल बरसों से जो रखी संजोकर।
दर्शन आशा लिए हृदय में भटक रहा है सुध बुध खोकर।
  मानव चले धर्म के पथ पर ऐसी कृपा करो। हे देवी मां सिद्धिदात्री तन मन विमल करो।
शक्ति स्वरूपा देवी तुम ही तुम ही मायापति की माया।
शुभदा सुखदा कल्याणी तुम तुम में ही यह जगत समाया।
  पाप नष्ट कर प्रेम शांति की वर्षा सघन करो।
  हे देवी मां सिंह वाहिनी तन मन विमल करो।
पूजन अर्चन विधि ना जानूं किस भांति रिझाऊं मैं तुमको।
सुन लो पुकार मम् अन्तर की मैया अब दर्शन दो मुझको।
  प्यासे अश्रु भरे नयनों में अपना रूप भरो।
  हे देवी मां सिद्धिदात्री तन मन विमल करो।


सुनील कुमार गुप्ता कविता:-        *"सुख-दु:ख"* "साथी दु:खी नहीं मानव,

सुनील कुमार गुप्ता


कविता:-
       *"सुख-दु:ख"*
"साथी दु:खी नहीं मानव,
अपने दु:ख से-
इस जीवन में।
देख कर सुख अपनो के,
साथी सुखानुभूति भी-
बदल जाती दु:ख में।
त्यागमय होता जीवन जो,
द्बेष न होता-
साथी मन में।
देखकर सुख अपनो के,
व्यथित न होता-
साथी जीवन में।
सद्कर्मो संग जीवन पथ पर,
मिल जाये जो-
साथी जीवन में।
संतोष कर भोगे सुख,
साथी अपनो संग-
पल पल जीवन में।
साथी दु:खी नहीं मानव,
अपने दु:ख से-
इस जीवन में।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःः
       25-01-2020


भूपसिंह 'भारती'  मतदाता दिवस पर खास :- मतदाता सै पारखी,  

भूपसिंह 'भारती' 


मतदाता दिवस पर खास :-


मतदाता सै पारखी,  करता सही पिछाण।
देख बोट की चोट तै,  चोखी  काढै काण।
चोखी  काढै काण,  ताण दे सबका तोता।
लोकतंत्र  हिमाती,  गजब  मतदाता होता।
कहै  भारती  बणा,  लोकतंत्र का विधाता।
मौक्का  पै  चौक्का,  देख  ठोकै मतदाता।


      मतदाता समझदार हो,  लोकतंत्र की  शान।
असली नेेता  कोण सै,  करै  सही  पहचान।
करै   सही   पहचान,  चुणै वो  नेता  चोखा।
पढा लिखा मतदाता,  कदे ना खावै  धोखा।
कह  'भारती'  नेता,  जो   जंता  नै  सताता।
कुर्सी   लेवै   खोस,  विधाता  सै   मतदाता।


     भूपसिंह 'भारती' 


राजेंद्र रायपुरी।। सरिता की पुकार   देश  हमारे  हर  नदी, करती  यही  पुकार।

                ।।राजेंद्र रायपुरी।।


सरिता की पुकार  


देश  हमारे  हर  नदी, करती  यही  पुकार।
स्वच्छ रहें हम भी सदा,मिले हमें अधिकार।


कूड़ा- कचरा  डालकर, करो  नहीं  बर्बाद।
खेत  नहीं  हैं  हम  सुनो, डालोगे जो खाद।


प्रभु को जो अर्पित किया,नहीं बहाओ धार।
करें   प्रदूषित  ये  हमें,  पनपें  कीट  हजार।


किया  प्रदूषित  यदि  हमें, होगे  ही  बीमार।
सरिता जल हर जीव के, जीवन का आधार।


नारे  लिखने   से   नहीं,  स्वच्छ  बनेंगे  यार।
कार्य  रूप  परणित  करो,  विनती  बारंबार।


                ।।राजेंद्र रायपुरी।।


संजय जैन (मुम्बई) मत दो धोका प्यार में विधा: कविता


संजय जैन (मुम्बई)


मत दो धोका प्यार में
विधा: कविता


मत खेलो किसी की,
भावनाओ से तुम।
वरना बहुत तुम भी, 
आगे पषताओगे।
जब याद तुम्हें अपनी,
करनी की आएगी।
तब अफसोस जताने का,
समय भी तेरे पास नहीं होगा।।


माना कि प्यार भावनाओ,
पर ही टिका है।
इसमें दो दिल का मिलन,
दिल से होता है।
पर तुम तो इसे शायद,
एक खेल समझ रहे हो।
इसलिए तो लोगो के दिलो से,
खेलने की आदत हो गई तेरी।।


न जाने कितने मासूमो को,
तुमने लूट लिया।
प्यार की मीठी मीठी बातो
में फसा लिया।
लोगो धोका देना अब आदत बन गई तेरी ।
इस को तुम जैसों ने 
वदनाम कर दिया।।


मत खेल तू इस आग से,
ये बहुत जुलनशील है।
तेरा भी घर इसी में,
एक दिन जल जाएगा।
फिर तू अकेली ताड़फेगी,
इस दुनियां में।
तब तेरा साथ देने को, 
कोई भी नही आएगा।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
25/01/2020


अर्चना कटारे शहडोल (म.प्र) बस इतना मांगतीं हूँ। कविता मेरी पूजा हिन्दुस्तान

 


अर्चना कटारे शहडोल (म.प्र) बस इतना मांगतीं हूँ। कविता


मेरी पूजा हिन्दुस्तान
मेरा धर्म हिन्दुस्तान
मेरा देश रहे महान
बस इतना मांगती हूँ...


मेरे झंडे की रहे ऊँची शान
इस पर तन मन है कुर्बान
इसकी छटा बिखेरे ज्ञान
बस इतना मांगती हूँ....


सब धर्मों की रहे आन
सभी का मरम एक समान
फिर क्यों लडे इंसान
सभी में हो प्रेम समान
बस इतना मांगती हूं....


राजनीति के दांव पैंच मे
शिक्षा संस्थान क्षेत्र में
ऊँच नीच के भेद भाव में
हर कोई  न रहे परेशान
बस इतना मांगती हूँ


न आतंकी हमला हो
न ही कोई दंगा हो
होवे राष्ट्र का गान
बस इतना मांगती हूँ


न ही भारत के टुकडे हों
न ही खून से लतपथ चिथड़े हों
रहे अमन शाँति का ध्यान
बस इतना मांगती हुँ


हर नारी का रहे स्वाभिमान
जिन पर करें हम अभिमान
उनका होता रहे उत्थान
बस इतना मांगती हूँ


न सूखा न पाला हो
खेतों में हीरा सोना हो
किसान न दुखियारा हो
बस इतना मांगतीं हुँ


चारो ओर हरियाली हो
कोयल गौरैयों की कूकें हो
नयी नयी पेडों की कोपल हों
बस इतना मांगतीं हूँ


बडे बूढों कि सम्मान हो
भूंखा न कोई इंसान हो
बेबश न कोई लाचार हो
बस इतना मांगतीं हूँ


हिमालय की आपनी शान रहे
समुद्ररों की अपनी आन रहे
जंगलो में अपनी जान रहे
बस इतना मांगतीं हूँ


न कोई राकेट मिशाइल चले
न बम धमाके हों
न ही युद्ध का बिगुल बजे
अमन शाँति के वातावरण में
मेरा हिन्दुस्तान रहे


रहे तिरंगा हर हाथों में
और इंकलाब की बोली हो
हर बच्चा बच्चा बोले
भारत माता की जय हो


बस इतना चाहती हूँ
बस इतना मांगतीं हूँ


           अर्चना कटारे 
          शहडोल (म.प्र)


इन्दु झुनझुनवाला सम्पादक काव्य रंगोली गीत-- दिल में नश्तर चुभे,ठोकरों भी लगी।

इन्दु झुनझुनवाला सम्पादक काव्य रंगोली गीत--


दिल में नश्तर चुभे,ठोकरों भी लगी।
वो काँटों पे काँटे बिछाता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।


कोई अपना ना कोई पराया यहाँ, 
मील का हर निशां ये बताता  गया।
इन्दु  बढता कदम कुछ सिखाता गया।


जंग दिल में लगी ,जंग होने लगी,
तीर तर्को के वो फिर चलाता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।


मील के पत्थरो से पता पूछते ,
हरेक बार धोखा ही खाता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।


रिश्तो के शहर में ,ना ठिकाना मिला,
सम्भलता कभी डगमगाता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।


जब खुद से पता पूछने लग गए,
साथ खुद का हमें रास आता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।


अब ना कोई फिकर, है मन में सबर, 
मन का दीपक अंधेरा मिटाता गया।
इन्दु  बढता कदम कुछ सिखाता गया।


रास्तों के जंगल महकने लगे ,
रोशनी से शहर जगमगाता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।
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भूपसिंह 'भारती' बालिका दिवस बेटी तो परिवार की,  असली है  पहचान।

भूपसिंह 'भारती' बालिका दिवस


बेटी तो परिवार की,  असली है  पहचान।
बेटी से  संसार की,  बने   निराली   शान।
बने निराली शान,  मान ये सबका करती।
अधरों पर मुस्कान,  सदा ये अपने धरती।
कहे  भारती  देख,  हमारी  आफत  मेटी।
आन बान अर शान,  बनी है  म्हारी  बेटी।


                  - भूपसिंह 'भारती'


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