कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
गणतंत्र दिवस
पावन गाथा शौर्य का , कुर्बानी सत्नाम।
आज़ादी माँ भारती , लोकतंत्र अभिराम।।१।।
वर्षों की नित साधना , सहे ब्रिटानी घात।
कोटि कोटि बलिदान दे , पा स्वतंत्र सौगात।।२।।
लुटीं अस्मिता इज़्ज़तें , ब्रिटानी अत्याचार।
तन मन धन अर्पित वतन , पराधीन उद्धार।।३।।
सही यातना कालिमा , मीसा त्रासद जेल।
तहस नहस संवेदना , दानवता का खेल।।४।।
खाये डंडे गोलियाँ , शैतानी परतंत्र।
जलियाँवाला त्रास भी , तभी मिला गणतंत्र।।५।।
कोल्हू के बैलों समा , रौंदे गये किसान।
लाख लाख बहु बेटियाँ , लुटी लाज दी ज़ान।।६।।
छत्रपति शिवराज सम , था प्रताप जांबाज़।
तात्या लक्ष्मी कुँवर सम , नाना सम सरताज़।।७।।
भगत राजगुरु लाजपत , सुखदेव खुदी राम ।
रोशन बिस्मिल चन्द्र सम , सावरकर अभिराम।।८।।
जंजीरों की सीखचें , सुन भारत चीत्कार।
टूट पड़ा पूरा वतन , लेने को प्रतीकार।।९।।
सत्य अहिंसा नीति रथ ,आज़ादी की क्रान्ति ।
जवाहर गाँधी पटेल , तिलक चले पथ शान्ति।।१०।।
बजा बिगुल जनक्रान्ति का, बना सुभाष नेतृत्व।
आजाद हिन्द की फ़ौज भी , आयी अब अस्तित्व।।११।।
आजादी तुमको वतन , चाहत यदि दो खून।
चलो साथ मर्दन करें , अंग्रेजों को भून।।१२।।
कोटि कोटि सैलाब जन , चला राष्ट्र बलिदान।
भारत माँ जयगान से , पा सुभाष वरदान।।१३।।
शान्तिदूत दूसरे तरफ , चल बापू नेतृत्व।
भारत छोड़ो अंग्रेजों , सत्याग्रह अस्तित्व।।१४।।
जयप्रकाश राजेन्द्र सम , कृपलानी रणवीर।
किचलू शास्त्री मौलाना , आज़ादी तकदीर।।१५।।
लाखों की कुर्बानियाँ , गये करोड़ों जेल।
मिली तभी स्वाधीनता , सत्य त्याग श्रम मेल।।१६।।
अभिलाषा नवराष्ट्र की , सार्वभौम गणतंत्र।
ध्येय मनसि चहुँमुख विकास ,भारत बने स्वतंत्र।।१७।।
पर सत्ता कुछ लालची , खण्डित भारत देश।
किया विभाजन धर्म पर , पाक बना परदेश।।१८।।
लाशों के आसन्द पर , बैठे सत्ताधीश।
संविधान पीठ हो गठित , राजेन्द्र पीठाधीश।।१९।।
सच्चिदानंद अध्यक्षता , बीता द्वितीय वर्ष।
संविधान अंतिम रूप , भीमराव निष्कर्ष।।२०।।
लोकतंत्र उन्नत सबल , हो शिक्षित परिवेश।
नीति रीति सद्भावना , सर्वधर्म संदेश।।२१।।
खोज खोज अच्छाईयाँ , लाए देश विदेश।
संसदीय सुदृढ़ वतन , संघीय राष्ट्र प्रदेश।।२२।।
न्यायपालिका हो शिखर , माने सब आदेश।
निर्माणक कानून का , संसदीय पटलेश।।२३।।
विधायिका कार्यपालिका ,न्यायालय तिहुँ शक्ति।
केन्द्र प्रदेश मिल सूचियाँ , समवर्ती अनुवृत्ति।।२४।।
रक्षित जन मूलाधिकार , बोधन जन कर्तव्य।
राज बने पंचायती , सब जन सुख ध्यातव्य।।२५।।
जाति धर्म भाषा विना, समरस बिन दुर्भाव।
निर्भय नर नारी सबल , रहें सुखी निज चाव।।२६।।
समता व सहभागिता , अधिकारी अभिव्यक्ति।
स्वधर्मी उन्मुक्त जन , राष्ट्र - धर्म आशक्ति।।२७।।
राष्ट्र प्रीति सद्भक्ति नित , मानवता हो रक्ष्य ।
उद्योगी विज्ञानी वतन , महाशक्ति हो लक्ष्य।।२८।।
बने सुखद शिक्षित सभी , न दीन धनी विभेद।
पड़े राष्ट्र जब आपदा , मददगार संवेद।।२९।।
विश्वगुरु फिर से बने , निधि किसान विज्ञान।
बढ़े आन सम्मान नित , भारत देश महान्।।३०।।
लहराए नभ तिरंगा , स्वाभिमान जनतंत्र।
यही सोच अम्बेदकर, नवभारत गणतंत्र।।३१।।
शान्ति चैन सुख सम्पदा , मुख सरोज मुस्कान।
परमारथ आपद समय , खड़े बने वरदान।।३२।।
ध्येय मनोहर चारुतम , संविधान आधार।
प्रगति परक आरोग्यतम , स्वच्छ राष्ट्र सरकार।।३३।।
पर अवसादित अवदशा , प्रसरित आपस द्वेष।
घृणा लोभ ईर्ष्या कपट , हिंसक अब परिवेश।।३४।।
तार तार सद्भावना , लूट मार मदहोश।
सत्ता सुख के लालची , राष्ट्र विरोधी जोश ।।३५।।
स्वार्थ- सिद्धि में बदजुबां, बोले पाकी बोल।
मिले साथ आतंक के ,गद्दार मुल्क अनमोल।।३६।।
लोभी हैं नासूर बन , नेता ये प्रतिपक्ष।
जला रहे गणतंत्र को , दंगाई संरक्ष।।३७।।
धमाचौकड़ी लूट की , पल पल रच साजीश।
शर्मसार गणतंत्र है , व्यभिचारी माचीश।।३८।।
सरकारी जन सम्पदा , जला रहे उन्माद।
निडर बने हिंसक जना , अवरोधित बर्बाद।।३९।।
दिवस आज गणतंत्र का , मनाए क्या निकुंज।
पाक साथ गद्दार भी , हो विनाश जग गुंज।।४०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली