निशा"अतुल्य" मुश्किल है जीना  स्वार्थ भरी इस  दुनिया में

निशा"अतुल्य"
मुश्किल है जीना 



स्वार्थ भरी इस  दुनिया में मुश्किल है जीना  
स्वार्थी है लोग सभी,नही मिले दिल को चैना 
स्वार्थ की इंतहा तो देखो बिन बात का विरोध करें
कानून है जो रखवाले तुम्हारे,उन्हीं को तुम तोड़ रहे ।


फिर कहते आजादी चाहिए, कैसी आजादी बोलो तो 
जब तब बात करो गद्दारों सी,देश को देते रोज ही गाली।


कभी करते हो टुकड़े देश के कभी कट्टरता की बात करो
सोचो पहले फिर तुम बोलो सोचो तुम क्या करते हो ।


मांग रहे तुम जैसी आजादी दूजे को भी  चाहिए वो ही
तुम कैसे हो दूध धुले और कैसे दूजा कट्टरपंथी ।


समझो आजादी की परिभाषा संविधान का मान करो 
प्रस्तावना है संविधान की प्रतिबद्धता सर्व प्रथम राष्ट्र की एकता,अखंडता ।


नही समझे जो मर्म देश का उसका मुश्किल है जीना
प्रेम और सद्व्यवहार रखो तो हर मुश्किल आसान रहे।


 


डाॅ. मिलिंद साळवे आसमान झुकता नहीं आभास होता है

डाॅ. मिलिंद साळवे


आसमान झुकता नहीं आभास होता है,
क्यूँ करे भरोसा ईश्वर
आभास होता है ।


कसमें तो बहुत खाई थी विश्वास था हमें,
तोडकर जाना कसमे आभास होता है ।


किस किस को बताये हम भी सब झूठ है,
मरने के बाद स्वर्ग एक आभास होता है ।


देवी बनाकर नारी की पूजा करते हैं,
नारी का देवी रूप आभास होता है ।


जरूरी नहीं भजन कीर्तन सुहाता है उसे,
उसकी पसंदी नापसंद आभास होता है ।


मीठे बोल अनमोल होते हैं सबके लिए,
बातों में शक्कर होना आभास होता है ।


जो है सभी नक्षत्रों का परिनाम कहते हैं,
ग्रहों इच्छा से जिंदगी आभास होता है ।


भूतों की प्रजातियाँ दोजख बनाए जीवन,
भूतों की सच्चाई भी आभास होता है ।


जो कुछ होता है हमारे किए ही होत है,
हमारा इंकार करना आभास होता है ।


              डाॅ. मिलिंद साळवे


देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी" मुक्तक

देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी" 


शादी के बाद जीवन की गाड़ी,
दो पहियों के सहारे  चलती है।
दोनों में ठीक सामंजस्य हो तो,
गाड़ी  ठीक से आगे  बढती है।


-----देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी"


एस के कपूर श्रीहंस बसंत मुक्तक माला

एस के कपूर श्रीहंस बसंत मुक्तक माला


(1)


*शरद ऋतु का अंत,,,,,,,बसंत*
*।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।*


शरद ऋतु  को  करके  प्रणाम
अब खुमारी सी  छाने लगी है।


लगता है ऋतु राज़  बसंत की
रुत अब कहीं  आने  लगी है।।


माँ सरस्वती का  आशीर्वाद तो
अब   पाना  है   हम   सबको।


मन की पतंग भी अब खुशियों
के   हिलोरे   खाने   लगी   है।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*


(2)
*ऋतु राज़ बसन्त।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।*


पत्ता  पत्ता   बूटा   बूटा  अब
खिला खिला   सा तकता है।


धवल रश्मि  किरणों सा अब
सूरज   जैसे     जगता     है।।


मौसम चक्र में मन  भावन  सा
परिवर्तन  अब   आया   जैसे।


ऋतु राज  बसन्त  का  अवसर
अब   आया   सा  लगता  है।।


*बसंत पंचमी की अनंत शुभ*
*कामनाओं सहित।।।रचयिता*
*एस के कपूर श्री हंस।।।बरेली*


मोब 9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।


डा० भारती वर्मा बौड़ाई राजकुमारी  ————-


डा० भारती वर्मा बौड़ाई


राजकुमारी 
————-
पिता 
राजा है 
अपनी बेटी का 
तभी तो 
कंधे पर 
अपनी राजकुमारी को 
बैठा कर 
करता जा रहा 
उससे बातें
दुनिया/जहान की,
बता रहा 
क्या-क्या घट रहा आजकल,
जंगल कम हुए 
तो जानवर आ गए 
शहरों में,
सफेदपोश जानवर 
हो गए अधिक खूँखार,
आते हैं 
कई-कई रूप बदल 
नित नये भेष में,
डर मत 
मेरी राजकुमारी!
तू पढ़ेगी/लिखेगी 
समर्थ/सक्षम बनेगी 
जो झेला 
हमारी और बेटियों ने
उस आग को 
अपने भीतर कभी 
बुझने न देगी,
मिले कोई वहशी झपटता 
किसी राजकुमारी पर 
दरिंदे को मृत्यु देकर 
हर बेटी की रक्षा की आवाज बनेगी 
मेरी राजकुमारी 
हर काल में 
राजा का धर्म 
पूरा करेगी......!!!!!!
—————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


सत्यदेव सिंह समथर

कहीं खिलौने सा एक पल में टूट जाता है।
बहुत रोते हैं हम जब अपना रूठ जाता है।।
न दवायें काम आतीं न दुआयें काम आती
कैसे किसी ममता का आँचल छूट जाता  है
सत्यदेव सिंह आज़ाद


अतिवीर जैन पराग मेरठ दूसरी माँ :- (जन्मभूमि ) पहली माँ जन्मदात्रि है,

अतिवीर जैन पराग मेरठ
दूसरी माँ :- (जन्मभूमि )


पहली माँ जन्मदात्रि है,
दूसरी माँ जन्मभूमि है.


पहली माँ दुध पिलाती,
लालन पोषण करती है.


दूसरी माँ के अन्न जल से ही 
हमें जवानी चढ़ती है. 


जन्मदात्री के दुध का
कर्ज मुझे चुकाना है,
जन्मभूमि की रक्षा हेतु 
सीमा पर मुझे जाना है.


काव्य रँगोली गणतंत्र दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 2020

काव्य रँगोली गणतंत्र दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 2020
आप सभी को यथोचित अभिवादन आप लोग पढ़कर हमे सूचित करें टॉप टेन अगर मेरी द्वारा चयनित सूची आप से मैच करती है तो भविष्य में हम आपको निर्णायक मंडल में शामिल करने हेतु विचार करेंगे।।


मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज विशेष प्रतिनिधि
काव्य रंगोली ऑनलाइन प्रतियोगिता 2020 प्रतियोगिता से विलग
वीरों का यह देश हमारा
 हमको है प्राणों से प्यारा
वीरों का यह देश हमारा
हमको है प्राणों से प्यारा।।


एक धरा है एक गगन है,
एक शक्ति से व्यापित मन है।
एक तिरंगा जब लहराए,
मन आनंदित बहु सुख पाए।
जहाँ विविधता एक हुई हो,
ऐसा भारत जग से न्यारा।।


वीरों का यह देश हमारा।
हमको है प्राणों से प्यारा।।


भगत सिंह सुखदेव राजगुरू,
तज गए प्राण सहज ही हँस कर।
वीर सावरकर, मंगल पाण्डे,
अमर शहीद रहे धरती पर।
लक्ष्मीबाई तात्या टोपे।
भीकाजी का त्याग सहारा।।


वीरों का है देश हमारा।
हमको है प्राणों से प्यारा।।


वीरों की है पावन धरती।
सोन चिरैया सी है फबती।
तीन रंग से सजा तिरंगा।
मध्य चक्र भाए निज अंगा।
तीली चौबीस  समय बताए।
राष्ट्र मधु जग से है न्यारा ।।


वीरों की यह देश हमारा।
हमको है प्राणों से प्यारा।।


प्रखर दीक्षित* 
*फर्रुखाबाद "
प्रथम राष्ट्र व्रत*


घाटियाँ जँह गहन तुंग हिम से घिरे,
      खुद शिशिर कांपती चौकसी रातदिन।
भारती भाल पर शुभ हिमालय मुकुट,
        और सागर पखारे चरण रातदिन।।  
सदा नीरा नदी सस्य श्यामल धरा,
     मरुधरा हिम धरा अरु  कछारी धरा,
आर्ष पावन सनातन वेदगत नीतियाँ,
      दिव्यता नव्यता  का वरण रात दिन।।


तिरंगा बना जब कफन देशहित, 
       प्राण प्रण को निभाना उन्हें आ गया ।
पिय हमारे थे अब हो गए देश के ,
       राष्ट्र रक्षा परायण जिन्हें भा गया।।
चंड़िका को नमन भारती को नमन,
      राष्ट्र फूले फले हर्ष उल्लास हो,
यज्ञ समिधा बने प्रथम राष्ट्र व्रत,
      घोष जय हिंद पावन ह्रदय गा गया ।।



नाम    : हेमंती 
           शिवकुमार शर्मा 
विधा   : कविता 
शीर्षक : गणतंत्र दिवस 
राज्य   : अंकलेश्वर, 
           गुजरात 


 



      *गणतंत्र दिवस* 


 


 


आया गणतंत्र दिवस
 खूब खुशियाँ बनाएं 
देश पर हुए शहीदों को 
श्रद्धा सुमन चढ़ाएं 
याद कर के शहीदों को 
दो मिनट का मौन रखें 
थाम लो एक दूसरे का हाथ 
देश में फैल रही कुरीतियों को मिटाएं
इतिहास बहुत पुराना 
संघर्षों का था वो जमाना 
चारों तरफ की तबाही 
वीरों ने आकर करी लड़ाई 
परिवार छोड़कर देश को बचाया 
फांसी के फंदे पर झूल गई 
ना की अपनी जान की परवाह
 बस आजादी की आस जगाई 
कूद गई थी झांसी की रानी 
परवाह नहीं की थी जान की अपनी 
इतिहास गवाह है जब-जब 
जिसने डाली बुरी नजर 
आजादी के मतवालों ने 
आंखें फोड़ दी उनकी 
तबाह कर दिया था उनको 
मेरे देश के वीर हैं ऐसे 
भारत माता को करते प्यार 
आए जब कोई कठिनाई 
कूद जाते दुश्मन को मार 
देश की रक्षा की खातिर 
ना जाने कितनी रातों से 
वो सोए नहीं 
ऐसे मेरे देश के वीर हैं 
आया गणतंत्र दिवस 
खूब खुशियाँ बनाए
देश पर हुए शहीदों पर 
श्रद्धा सुमन चढ़ाए।


नाम:- एड. नवीन बिलैया(निक्की भैया)
सामाजिक एवं लोकतांत्रिक लेखक
पता:- पृथ्वीपुर जिला निवाड़ी (म.प्र.) पिन:-472336
            *गणतंत्र दिवस* 
आजादी मिली हैं देश को मेरे
ये गणतंत्र हमे हमारा बतलाता हैं।
प्राणों से बढ़कर होता हैं देश सदा
ये गणतंत्र हमें हमेशा सिखलाता हैं।।
मिली ये आजादी हमको कैसे
इसकी पूरी दास्तान हमें दिखलाता हैं।।
बना रहे मान सदा उस गणतंत्र का इसलिए
उसकी रक्षा में सैनिक अपनी जान लुटाता हैं।।
इसलिए इस पावन अवसर पर नवीन
उन शहीदों के चरणों में अपना सर झुकाता हैं।।
बारम्बार नमन हैं उन वीर जवानों को भी
जिनके शौर्य से विश्वपटल पर तिरंगा लहराता हैं।।



नीरज कुमार द्विवेदी
गन्नीपुर - श्रृंगीनारी, बस्ती (उत्तरप्रदेश)
जय हिन्द जय अखण्ड भारत वन्दे मातरम
रंगोली गणतन्त्र दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 2020
कविता
था देश हमारा विश्वगुरु
यह सोने की चिड़िया थी
लूटा इसको विदेशियों ने
जो जादू की पुड़िया थी
कितने सेनानी वीरांगनाओं ने
स्वतंत्रता का आह्वान किया
देश की आजादी की खातिर
निज प्राणों को बलिदान किया
सन सैंतालिस में देश ये अपना
हुआ अंग्रेजों से पूर्ण स्वतंत्र
लेकिन ढाई वर्ष बाद फिर
अपना हिन्द देश बना गणतन्त्र
तारीख थी वो 26 जनवरी
सन था उन्नीस सौ पच्चास
जब लागू हुआ संविधान हमारा
थे सभी मना रहे उल्लास
श्रेष्ठ संविधान के मामले में
यह मेरा भारत एक है
देखो पढ़कर इसको कोई भी
सब बातें कितनी नेक है
संविधान ने हम सबको 
समता का एक आधार दिया
सर्वधर्म सद्भाव का इसने
खुद का मुख्य आधार दिया
आत्मा प्रथम राष्ट्रपति की है
बाबा साहेब का मन भी है
पूरे विश्व के संविधानों में
सबसे अधिक लचीलापन भी है
लेकिन संविधान की अब तो
अस्मत भी उजाड़ी जाती है
जब संसद के अन्दर बिल की
प्रतियाँ फाड़ी जाती हैं
जनमानस ने तो संविधान की
हर बातों का ही वरण किया
आरक्षण को लेकर खादी ने
संविधान का अपहरण किया
संविधान रोने लगता है 
कभी तो न्याय व्यवस्था पर
जब वो सोने लगती है
अपराधी के घर में जाकर
संविधान का उसके दिल में
सम्मान मिटाती है खादी
जब संसद की दीवारों में
नोट उड़ाती है खादी।।



रिपुदमन झा "पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
काव्य रंगोली गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता २०२०


न  हम  रहेंगे  न  तुम  रहोगे  मगर  ये अपना  वतन  रहेगा,
जो ना रहें बुलबुलें तो क्या है महकता खिलता चमन रहेगा।
रहें  न  सूरज औ चाँद - तारे  बहे  न  ये  झूमकर  हवाएं -
मगर  रहेगी  ज़मीं  वतन  की  तिरंगा  उड़ता  गगन  रहेगा।


हम  एक  थे  एक  हैं  एक  रहेंगे  हमारे  दिल में अमन रहेगा,
है ज़िंदा तहज़ीब जबतलक ये फ़िज़ा में गंग-ओ-जमन रहेगा।
न हिंदू-मुस्लिम न सिख-ईसाई हम एक आपस में भाई-भाई -
हैं सबसे पहले हम हिंदोस्तानी हमारा मज़हब वतन रहेगा।


 


नाम-कवि कृष्ण कुमार सैनी
पता-दौसा, राजस्थान
*देशभक्ति रचना*



आतंकी हमले  की निंदा  करके ये  रह जाएंगे ।
और शहीदों की अर्थी पर पुष्प चढ़ाकर आएंगे।।



इससे ज्यादा कुछ नहीं करते ये भारत के नेता हैं।
आज देश का बच्चा-बच्चा इन को गाली देता है।।



सीमा पार से आतंकी कैसे हमले कर जाते हैं?
दिनदहाड़े  देश  के 40  जवान  मर जाते  हैं।।



सत्ता के सत्ताधारी अब  थोड़ी  सी तो शर्म करो।
एक-एक आतंकी को चुनकर फांसी पे टांक धरो।।



घटना सुनकर के हमले की दिल मेरा थर्राया  है।
सोया शेर भी आज गुफा से देखो कैसे गुर्राया है?



सैनिक की रक्षा हेतु अब कदम बढ़ाना ही होगा।
संविधान परिवर्तित कर कानून बनाना ही होगा।।



कितनी बहिनें विधवा हो गई और कितनों का प्यार गया।
उस माँ पर क्या बीती होगी जिसका फूलों सा हार गया।।



जितने हुए शहीद देशहित,उनको मैं वंदन करता हूं।
उनके ही चरणों में  मैं  अपने  शीश को धरता  हूँ।।



डाँ.-जितेन्द्र"जीत"भागड़कर
पता- ग्राम-कोचेवाही(लाँजी)
       बालाघाट, म.प्र


         मेरा भारत
#####$$$$######
मेरे देश में है,जाति-धर्म अनेकानेक।
मिलकर देते सारे, एकता का शुभ संदेश।।


एकता की खुशबू से ,जग सारा सराबोर है।
यहाँ पल-पल, मानवता का जोर है।।


भारत ने विश्व को, ज्ञान-विज्ञान दिया है।
इसकी संस्कृति ने, रिश्तों को पहचान दिया है।।


हृदय के पाक बिछावन से, भेदभाव मिट जाते हैं।
यहाँ राम और अली एक ही थाली में खाते हैं।।


यहाँ कौन हिन्दू, कौन ईसाई,कौन मुसलमान।
सबके हृदय में जीता है, केवल इंसान।।


सबकी एक आवाज, सबका एक मंत्र।
जन-जन हो स्वतंत्र, ऐसा हो गणतंत्र।।


मंच को सादर नमन
नाम - बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - (बिन्दु)
पता - जमनीचक, सहरी, बाढ़, पटना - (बिहार)
विधा - दोहा गजल
शीर्षक गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता
स्वरचित मौलिक 


हमें समझ में आ गया, बलिदानों की शान
रहे  तिरंगा  यह  अमर, हो  इनका सम्मान।


लेकर  झंडा  हाथ  में, आए  बच्चे साथ
दीवानापन था गजब, होठों पर मुस्कान।


आज गणतंत्र हिन्द का ,  पर्व मनाते लोग
कुर्बानी  को  याद  कर, रखते  इनके मान।


नारा   वंदेमातरम् , की  करिये  जय धोष
दिल में रखिये जोश भी, खून रहे ऊफान।


करिये   सेवा   देश   की, बनिये  पहरेदार
इनकी सुरक्षा खुद करें, देकर अपनी जान।



हेमलता त्रिपाठी गुड़िया लखनऊ
काव्यरंगोली गणतंत्र दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 2020
मां भारती क आँचल,मेरी जान है तिरंगा।
एवरेस्ट पर फहरता मेरी शान है तिरंगा।
चंदा की सर जमी तक पहुंचा मेरा तिरंगा।
भारत के हर बशर की पहचान है तिरंगा।



आशा त्रिपाठी
       हरिद्वार
अमर रहे गणतंत्र हमारा।।
*अमर रहे गणतंत्र हमारा*।


अखिल विश्व में सबसे न्यारा।
*अमर रहे गणतंत्र हमारा*।।


विविध धर्म और भाषाऐं है।
जन गण मन की आशाऐं है।
विविध नही मिल एक है सारा।
*अमर रहे गणतंत्र हमारा*।।
जनता के हित जनता द्वारा,
जनता का ही शासन सारा।
समता,न्याय ,प्रगति हित  लेकर,
सुरभित होता पंथ हमारा।।
*अमर रहे गणतंत्र हमारा*।।
अमर शहीदों के बलिदानों से,
अद्भूत ये सौगात मिली है।
मातृभूमि  स्वरक्त सींचकर
आजादी की कली खिली है।
है संकल्प प्राण देकर भी,
भारत रहे स्वतंत्र हमारा।
*अमर रहे गणतंत्र हमारा*।।
जनमानस का जीवन हमको 
मिलकर सुखमय करना है।
भारत हो खुशहाल सर्वदा,
सपना यह सच करना है।
प्रतिपल रहे प्रजा का चिंतन
यही मंत्र होठों पर न्यारा।
*अमर रहे गणतंत्र हमारा*।।
दिशा दिशा में गुंजित गान।
हम सब मिलकर रखें मान।
हिन्द देश बंधुत्व बढ़ाये ,
विश्व गुरु हो देश हमारा।
*अमर रहे गणतंत्र हमारा*।।
संविधान की अनुपम गाथा,
र्गारेमा पर झुकता है माथा।।
धर्म एक और जाति एक है।
विविध रंग का संग सुहाता।
*आशा* का बस एक ही नारा।
*अमर रहे गणतंत्र हमारा*।।


 



काव्य रंगोली गणतंत्र दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता


नाम : डॉ रेखा सक्सेना
पता: मानसरोवर कॉलोनी मुरादाबाद उत्तर प्रदेश


कविता 


राष्ट्र- उत्सव  में   गणतंत्र
 की, इकहत्तरवी  वर्षगांठ ।
बाल- वृद्ध, नर- नारी माने
अपने घर का है यह ठाठ।।


जिस भारत की रक्षा की है
अपना खून  बहा  कर के ।
अमर शहीदों को नमन करें
पूजन- थाल सजाकर के।।


अनुपम साज से सजा तिरंगा
देखो, लहर- लहर हर्षाता  है।
नागरिकता का उत्सव है यह
"जन गण मन " भी गाता है।।


आसमान  से  बातें  करते
वायु सेना  के   जांबाज ।
जल- थल के रक्षक का भी
जोश भरा  है नव  अंदाज़।।


पुरस्कार  का  पर्व  हमारा
अनगिनत   उदगार    हैं ।
'परमवीर' से 'पदमश्री' तक
कितनों   के  कर्जदार  हैं।।


अमर रहे गणतंत्र हमारा
संकल्पित हों कर्तव्यों में।
स्वार्थपरक रहे  न  दृष्टि
अधिकारों के ही द्रव्यों में।।
       जय भारत 
**********************


''गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता"


नाम-  आशा जाकड़
पता - 747,सांईं कृपा कोलोनी
      होटल रेडीशन के पास
      कुशाभाऊठाकरे मार्ग
      इन्दौर। म.प्र. 452010


      कविता


 "भारत है गणतंत्र, वन्दे मातरम्"



  भारत है गणतंत्र वन्देमातरम
  करते जय- जय गान वंदे मातरम।


छब्बीस जनवरी का ये दिन 
हमको  याद  दिलाता  है ।
अधिकार और कर्तव्यों को
 संविधान में सजाया है ।
देश पे है अभिमान  वंदे मातरम।
 भारत है गणतंत्र वंदे मातरम।।


 गंगा की यहाँ पावन धारा,
 नदियों का यहां संगम प्यारा।
 कश्मीर में है केसर प्यारा, 
 महके चंदन दक्षिण सारा।
 प्रकृति का है वरदान वन्दे मातरम।
भारत है गणतंत्र वन्दे मातरम्।।


 विज्ञान ने खूब धूम मचाई, 
अंतरिक्ष तक दौड़ लगाई।
 नारी ने भी संविधान में ,
अपनी गरिमा खूब बनाई।
नारी भी यहां महान वंदे मातरम।
 भारत है गणतंत्र वंदे मातरम।।


 त्योहारों की गरिमा फैल रही, 
विज्ञान की ज्योत उजास हुई।
सत्य, त्याग और प्रेम ,अहिंसा, 
 ये भारतभूमि  प्रधान हुई ।।
झंडे को नवायें शीश वंदे मातरम।
 भारत है गणतंत्र वंदे मातरम।


जयहिन्द.
अतिवीर जैन "पराग "पूर्व उपनिदेशक,रक्षा मंत्रालय,
बी -34gf, सिल्वर सीटी, कंकरखेडा,मेरठ 
मोबाइल 9456966722


गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता,


कविता 
छब्बीस जनवरी :-


छब्बीस जनवरी गणतंत्र दिवस,
राष्ट्रीय पर्व हमारा है,
संविधान हुआ था लागू,
इसलिये सबसे प्यारा है.


देश के शहीदों को, प्रधानमंत्री फूल चढ़ाते है,
राजपथ पर तिरंगा फहराते,
सबमिल राष्ट्रगान को  गाते है.


राजपथ की परेड, देश की प्रगति को दर्शाती है,
सेन्ये शक्ति का प्रदर्शन देख,दुश्मन भी थर्राता है.


राज्यों की संस्कॄति की झाकिया,
राज्यों की सम्रदी  को दर्शाती है,
विविधता में एकता के रंगो को दिखलाती है.


देश भर में जगह जगह आज  तिरंगा फहराया जाता है,
राष्ट्र गान गाकर जय हिन्द,वन्देमातरम का नारा लगाया जाता है.


*गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता*
*नाम-* मनोज कुमार "मंजू"
*पता-* अयोध्या-सदन, इकहरा, बरनाहल, मैनपुरी, उत्तर प्रदेश


कैसे भूलूँ शहीदों की कुरवानियां
बिजलियां सैकड़ों थी चली आंधियां
कैसे पाई है आजादियों की फिजां
कुछ दरख्तों पे अब भी बने हैं निशां
ये तिरंगा नहीं ये तो अभिमान है
आन है ये यही तो मेरी जान है। 


भूल सकता नहीं जो पड़ी लाठियां
रक्त रंजित मगर सीने पर गोलियां
बोई बंदूकें ये है वही तो जमीं
लाल खोकर भी आंखों में ना थी नमीं
ये तिरंगा नहीं ये तो अभिमान है
आन है ये यही तो मेरी जान है।


अपनों में भी तो कुछ थी दगा बाजियाँ
माँ के सीने पे भी तो चली आरियां
देशभक्तों की फिर भी चली टोलियाँ
इसकी खातिर चुनी घास की रोटियां
ये तिरंगा नहीं ये तो अभिमान है
आन है ये यही तो मेरी जान है।


जुल्म पर जुल्म गोरों के होते रहे
नौजवां खून के घूंट पीते रहे
रौंद डाला गया हिन्दू के मान को
ठेस पहुंची बड़ी देश की शान को
ये तिरंगा नहीं ये तो अभिमान है
आन है ये यही तो मेरी जान है।


सब्र का बांध फिर एक दिन गिर गया
बच्चा बच्चा भी फिर अपनी जिद अड़ गया
रात की कालिमा एक दिन हट गई
रोशनी की किरण हर तरफ खिल गई
ये तिरंगा नहीं ये तो अभिमान है
आन है ये यही तो मेरी जान है।
     
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून 


प्रतियोगिता  हेतु 26जनवरी 
----------------------
गणतंत्र दिवस 
----------------------------
तोड़ कर सारे बंधन 
आओ खुशी के गीत गाएं,  
घर के सारे त्यौहार  से बड़ा 
आओ गणतंत्र दिवस मनाएं।


मिली आजादी बना संविधान 
उस विधान  को हम अपनाएं,  
आओ गणतंत्र दिवस मनाएं। 


हम सब एक हैं 
हो कोई भी जाति धर्म, 
इनसे ऊपर हैं गणतंत्र 
आओ नमन करें हम सब। 


वेश कैसा भी पहने 
देश का सम्मान  करें, 
खुली आँखों से देखे दुनियां 
गद्दारों  का बहिष्कार  करें। 


मेहनत और ईमानदारी को 
सत्यता और अहिंसा को, 
धर्म और मजहब बनाएं 
आओ गणतंत्र दिवस मनाएं। 


आज ध्वज के तीनों  रंगों में 
वीरता, शान्ति,  हरियाली में, 
खुद को इनमें  खो  जाएँ 
आओ गणतंत्र दिवस मनाएं। 



*गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता*
 नाम - माधवी गणवीर
जिला - राजनादगांव
राज्य - छत्तीसगढ़
कविता


देश की शान है ये, 
वीरता की पहचान है ये,
स गर्व अभिमान है ये, 
शहादत की निशानियां
लहराता तिरंगा
सफेद, हरा, केसरियां।
   
   दासता को तोड़ती हुई,
   आजादी को जोड़ती हुई,
  अटल अविराम बढ़ती हुई,
  बलिदानों की कहानियां,
  लहराता तिरंगा
  सफेद, हरा, केसरियां।


    अमर अविराम गति से इसको,
   चलो मिलकर सम्मान दे इसको,
  सभी झुककर प्रणाम करे  
    इसको,
   याद करें हजारों कुर्बानियां
   लहराता तिरंगा
  सफेद, हरा, केसरियां।
      


 


नाम-सीमा निगम
रायपुर छत्तीसगढ़


रचना-
 *  मेरा भारत *


गणतंत्र की गरिमा बनी रहे,
मेरे देश में शांति और अमन हो |


भाई-चारे समानता का भाव रहे,
सबके लिए ईद और दीवाली हो |


शहीदों की शहादत याद रहे ,
आजादी के वीरों का गुणगान हो |


कानून के प्रति लोगों का विश्वास रहे,
लूट हिंसा आतंक का सर्वनाश हो |


जन-जन में देशप्रेम का लहर रहे,
देश के लिए मर मिटने का जज्बा हो |


देश की एकता-अखंडता बनी रहे, 
अधिकारों और कर्तव्यों का निर्वहन हो|


गणतंत्र की सार्थकता बनी रहे,
एक राष्ट्रधर्म का नया आगाज हो|


   
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आशा दिनकर
नयी दिल्ली
गणतंत्र दिवस के लिए रचना
~~~~~~~~~~~~~~~~
सबकी जुबान पर आज यही गीत है आ रहा 
शान से एक तिरंगा हर दिल में है लहरा रहा


आजाद हिंद का गौरव विश्व पटल में छा रहा
गणतंत्र देश की महिमा का जादू सा छा रहा
जनतंत्र का मान मिला जन-जन है इतरा रहा
स्वाभिमान से लोकतंत्र के गान खुशी से गा रहा


पराधीनता के पर कतरे जश्न आज मना रहा
दुनियाँ में दुष्मन के जम के छक्के छुड़ा रहा 
इस जगत के साथ-साथ चाँद पर इठला रहा 


जनतंत्र में मतदान कर खुद सरकार बना रहा
एक-दूसरे से अब मिल कर कदम बढ़ा रहा
अपने गौरवशाली दिवस खुशियों में बिता रहा
जोश-होश के संग वो अपने सपने सजा रहा


अरि से है चौकन्ना,सैनिक दस्ता जुटा रहा
जल,थल,वायु सेना के परचम लहरा रहा
बड़ी शान से हर कदम आगे ही बढ़ा रहा
आज मेरा हिंदुस्तान आसमान पर छा रहा


गर्वित-हर्शित खुशी के दीप घर में जला रहा
दीप दिवाली, होली संग ही ईद मना रहा
घर-घर भाईचारे के रंगों से रंगोली सजा रहा
गणतंत्र दिवस की गौरव गाथा सबको सुना रहा


सबकी जुबान पर आज यही गीत है आ रहा 
शान से एक तिरंगा हर दिल में है लहरा रहा
~~~~~~~~~~~~~~
डा. महताब अहमद आजाद
पत्रकार, कवि, 


"जब आकाश में तिरंगा लहराता है"


जब कोयल गीत सुनाती है! 
जब भवंरा नगमें गाता है!! 
पुरवाई शौर मचाती है! 
जब बादल झूम के आता!! 


जब बात निकलती है हर सू! 
दिलदारों की मतवालों की!! 
जब याद सताती है हमकों! 
इस देश पे मरने वालों की!! 


तोपों के दहन खुल जातें हैं! 
बंदूक गरजने लगता है!! 
आकाश का दिल थर्राता है! 
धरती भी लरजने लगती है!! 


"आजाद"तिंरगी झण्डा यू! 
आकाश मे फिर लहराता है!! 
गणतंत्र दिवस के मौके पर! 
हम सब का मान बढाता है!! 


 


नाम- पुरंदर शर्मा
पता- मु.पो. मूण्डवाड़ा, वाया खूड़ जिला-सीकर राजस्थान


कविता** जान तिरंगा **


अगणित कुर्बानियां देकर पाया है तिरंगा।
वीर सपूतों के शोणित में नहाया है तिरंगा।।


हम फौजियों की जान तिरंगा।
भारत मां की शान तिरंगा।।


सांस सांस में रचा बसा तिरंगा।
हिंदुस्तानियों के दिलों में तिरंगा।।


जवानी के तूफान से लहराया तिरंगा।
शहादत की कहानियों से फहराया तिरंगा।।


बाल युवा और वृद्धों में जोश दिलाता तिरंगा।
असंख्य कुर्बानियों बाद आजादी में पाया तिरंगा।।


तिरंगा की आन में हम फौजी देखो सीमा पर डटे।
हिमकृत सर्द में भी देशरक्षार्थ देखो पहरे पर बैठे।।


हमारी जान तिरंगा हमारी आन तिरंगा।
हर फौजी के दिलों में देखो रमा तिरंगा।।


दिनांक :  26/1/2020
नाम :  मंजूषा श्रीवास्तव 'मृदुल'
पता :  मकान न•5
 महावीर रेज़ीडेंसी
(निकट तुलसी कार केयर),मांस विहार 
इंदिरा नगर लखनऊ 
पिनकोड:  226015


रचना-


परचम हमारे देश का ऐसा लहर गया |
भारत हमारा  विश्व के दिल में उतर गया |


सीने पे खा जो गोलियाँ जय बोलते रहे-
उनके लहू से देश का चेहरा निखर गया |


जाँबाज सरफरोश निडर देश के वो लाल-
करतब को जिनके देख के दुश्मन सिहर गया |


फांसी का फंदा चूम के जो चढ़ गये सलीब -
तप त्याग बल से उनकी भारत सँवर गया |


कह के गए जाने वतन होना न तू उदास-
मैं जर्रा हूँ पवन ,सुगन्ध बन बिखर गया |


गणतंत्र अमर है अमर है इसकी आन बान-
ज्यों सप्त रंग इंद्रधनुष  बन ठहर गया |


मन 'मृदुल' कह रहा है मिटेंगे सभी विषाद-
अब ज्ञान की  मशाल ले जन- मन फहर गया |


गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता हेतु रचना
नाम:-रीतु देवी"प्रज्ञा"
पता:-करजापट्टी, केवटी, दरभंगा, बिहार
कविता:-गणतंत्र दिवस


गणतंत्र दिवस है आया देशभक्ति भरा,
शौर्य जुलूस है निकला रिपु शक्ति हरा।
वतन में छाया है हर्षोल्लास,
माँ भारती वंदन गूंज  से हुआ है उजास।
वीर लाल प्रदर्शित कर रहे हैं प्रतिभा,
ओजपूर्ण कर्म से चमका रहे हैं आभा।
सबसे अनमोल है हमारा गणतंत्र ,
विविधता में एकता का है अनूठा मंत्र ।
सबने कसम खायी है संरक्षित हो संविधान,
अधिकारों संग कर्तव्यों का सबने लिया है संज्ञान।
सलामी पाकर झूम रहा है तिरंगा,
चहुंओर राष्ट्र प्रेम का बह  रहा है गंगा।
गणतंत्र दिवस है आया देशभक्ति भरा,
शौर्य जुलूस है निकला रिपु शक्ति हरा।


गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता
===================
नाम- डाँ अजीत श्रीवास्तव "राज़"
पता-कृमोलशा मेडिकल्स
       गांधी कला भवन के सामने 
       गांधी नगर, जिला-बस्ती 
       उ०प्र०-272001
मो०न०-9336815954


    कविता 
========


वीरों की ये मातृभूमि बदनाम नहीं होने देंगे
भगत सिंह की कुर्बानी की शाम नहीं होने देंगे
खून की जब तक मेरे तन में एक बूंद भी बाकी है
मातृभूमि की इज्ज़त हम नीलाम नहीं होने देंगे


नाता ही कुछ ऐसा है इस मातृभूमि की माटी से 
इक रिश्ता होता बच्चे का जैसे मां की छाती से
सांसो का आना जाना जब तक बाकी है सीने में
अपने भारत के सूरज की शाम नहीं होने देंगे


मस्तक ऊंचा रहे देश का यही मेरी अभिलाषा है
राणा और शिवाजी वाली अब मेरी भी भाषा है
छिन्न-भिन्न कर डालेंगे दुश्मन के मंसूबों को हम
देश द्रोहियों के गढ़ में आराम नहीं होने देंगे


अच्छा हो कि ये जीवन इस मातृभूमि के काम आए
कभी शहीदों के शज़रे में मेरा भी इक नाम आए
सही कहेंगे साथ रहेंगे मिलजुल कर आपस में हम
गांधी गौतम का जाया पैग़ाम नहीं होने देंगे



नाम -वर्षा वार्ष्णेय
पता-वर्षा वार्ष्णेय w/o गणेश कुमार वार्ष्णेय संगम विहार कॉलोनी गली नंबर3 नगला तिकोना रोड सुरेन्द्रनगर अलीगढ़
8868881051
कविता #वतन मेरे #
गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता
वतन मेरे वतन मेरे 
मुझको तुम पर नाज है 
शान हो तुम विश्व की 
तिरंगा जिसका साज है 


वीरता की हो मिसाल 
हिंदुत्व की पहचान हो 
मंजिलों का हो आधार 
शौर्य का इतिहास हो ।


वतन मेरे वतन मेरे 
मुझको तुम पर नाज है 
शान हो तुम विश्व की 
तिरंगा जिसका साज है 


राम की पावन धरा 
कृष्ण का संगीत हो 
शिव का तांडव भरा 
त्रिशूल का तुम नाद हो ।


वतन मेरे वतन मेरे 
मुझको तुम पर नाज है 
शान हो तुम विश्व की
 तिरंगा जिसका साज है ।


बलिदान की हो संस्कृति 
त्याग की पहचान हो ।
संगीत का हो सुर तुम्हीं 
रणभेरियों की मृदंग हो ।


वतन मेरे वतन मेरे 
मुझको तुम पर नाज है 
शान हो तुम विश्व की 
तिरंगा जिसका साज है ।


गीता की धरती तुम्हीं ,
गंगा यमुना का उद्गम भी हो 
गाय कहलाती है माता 
पुण्य भूमि का आधार हो ।


वतन मेरे वतन मेरे 
मुझको तुम पर नाज है 
शान हो तुम विश्व की 
तिरंगा जिसका साज है ।


अखंडता और सहिष्णुता 
की सदियों से पहचान हो 
मर्यादा और संस्कारों की 
धरती पर तुम खान हो ।


वतन मेरे वतन मेरे 
मुझको तुम पर नाज है 
शान हो तुम विश्व की
 तिरंगा जिसका साज है
 
परचम अपनी जीत का 
हम आज भी लहरायेंगे ।
न झुके गद्दारों के आगे 
न शीश को झुकायेंगे ।


वतन मेरे वतन मेरे 
मुझको तुम पर नाज है 
शान हो तुम विश्व की
तिरंगा जिसका साज है


छंट गए वो काले बादल 
धूम अब मचायेंगे ।
युग पुरुष के साथ मिलकर 
हम गीत यही गाएंगे 
*भारत हमको जान से प्यारा है 
विश्व विजयी तिरंगा हमारा है *
जय हिन्द वंदे मातरम 


प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद


फूले फैले भारती गौरव, उच्च घोष जयहिंद  का नारा।
स्वातंत्र्य के हेत मिट गए, दहला अरिदल मन से हारा।।
मातृ भूमि की रज धर माथे, चिरनिद्रा मैं लीन हो गए,
धीर वीर गंभीर बांकुरे, अनूप समर्पण अद्भुत न्यारा।।


जाने वह इतिहास सुनहरा, चुप हो बैठें नहीं गवारा।।
बलिदानों से सीखें नितप्रति, नव पीढ़ी को कुछ दे जाएं,
विश्व गुरू हो फिर भारत मम अमर रहे गणतंत्र हमारा ।।


दिनांक : 26/01/2020
नाम-वेद प्रकाश प्रजापति 'वेद'
पता-ग्राम-रिठैयाँ, पोस्ट-सरायइनायत,
जिला-प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
पिन-221505


रचना-


तिरंगा    हाँथ   में   लेकर, 
          चलो खुशियाँ मनाएं हम।


वतन  सिरमौर  हो अपना, 
          सदा  गरिमा  बढ़ाएं हम।।


मिला लाखों जतन करके, 
          हमे   गणतंत्र   ये  प्यारा।


करें   इसकी   सदा   रक्षा, 
          सपथ आओ उठाएं हम।।



आचार्य गोपाल जी 
         उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले सम्पादक काव्य रंगोली प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार
प्रतियोगिता से विलग


सागर जिसके चरण पखारे
 गिरिराज हिमालय रखवाला है
कोसी गंडक सरयुग है न्यारी
गंगा यमुना की निर्मल धारा है
 अनेकताओ में बहती एकता
 अदभुत गणतंत्र हमारा है
केसरिया सर्वोच्च शिखर पर
मध्य में इसके तो उजियारा है
यह चक्र अशोक स्तंभ का देखो
 तिरंगे के नीचे में हरियाला है
तीन रंग का ये अपना तिरंगा 
ये हम सबको प्राणों से प्यारा है
 वीर सपूतों किए पावन धरती
शहीदों ने स्व लहू से संवारा है
जनता यहां करती है शासन
 अकेले आजाद वो रखबारा है


जय सरस्वती मैया
काव्य रंगोली गणतंत्र दिवस आनलाइन प्रतियोगिता २६ जनवरी २०२०
नाम संदीप कुमार विश्नोई
पुत्र स्व0 श्री सतपाल जी सिंवर
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
गीत


सीना चीरो गद्दारों का मारो इन मक्कारों को , 
खून बहाने दुश्मन का तैयार करो हथियारों को। 
*************************************
आतंकी जो घर में रखते उनको आग लगाओ तुम , 
जो गद्दारी करते हम से फाँसी पर लटकाओ तुम। 
खून हमारा खोलेगा तो क्या तुम सह भी पाओगे , 
आतंकी सरदारो सुन लो घुटनों के बल आओगे। 
*************************************
बीच सड़क के दौड़ा कर अब मारो इन बेकारों को , 
खून बहाने दुश्मन का तैयार करो हथियारों को। 
*************************************
पंडित जन को वापिस भेजो अब केसर की घाटी में , 
जो दंगे करवाते उनको मार मिला दो माटी में। 
मैं भी भारत का बेटा हूँ गुण्डों को ललकारूंगा , 
 शस्त्र कलम को ले कर कर में बाण शब्द के मारूंगा। 
*************************************
दे दो अब आजादी तुम भी अपने पहरेदारों को , 
खून बहाने दुश्मन का तैयार करो हथियारों को। 
**********************


अवनीश त्रिवेदी "अभय"
मोहरनिया, सीतापुर


प्यारा गणतंत्र


जग में  सबसे  अच्छा  ये   गणतंत्र  हमारा।
हमें  गर्व  हैं  इस  पर  ये  हैं  हमको  प्यारा।
सभी धर्म के लोग यहाँ पर मिल  कर  रहते।
सबके  हैं  अधिकार  सब इसे अपना कहते।
हैं  शस्य  श्यामला  धरती  सोना   उपजाती।
ये  स्वर्ग  से   सुंदर   हैं  हम  सबकी   थाती।
इस जहाँ में सबसे उज्जवल इसकी छवि हैं।
इसे  उजाला   देता   सबसे   पहले  रवि  हैं।
सबके  रहन-सहन, खान-पान का विधान हैं।
सभी  सुरक्षा   देता   देश  का  संविधान  हैं।
हम   सब  परस्पर  मिलकर  शांति  फैलाए।
भ्रांति  जो  भी  दरम्यां  हो अब उसे मिटाए।
जब  तक  दुनिया  में  ये नीला आकाश रहे।
तब  तक  राष्ट्र  की  बगियाँ में  मधुमास रहे।


गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता
जयप्रकाश सूर्य वंशी 
साकेत नगर १०७  पो . भगवान नगर नागपुर ४४००२७ 
 
 शीर्षक  कविता- सुन्दर प्यारा  देश हमारा 


सुन्दर प्यारा, देश हमारा,
लगता है हम सब को प्यारा। 
सत्य अहिंसा, अमन चैन का
घर घर मे गूनजे खुशी काम नारा


आजादी के महा यज्ञ मे बलिदान किया 
वीर सपूतो ने अपना तन मन सारा।
गांधी, नेहरू, वीर भगत सिंह
इनके सपनो का देश हमारा
हिन्दू, मुस्लिम, सिख , ईसाई
सबके है अभिमान का तारा।


धर्म , जाति, भाषा के  फूलो से
महक रहा है, देश  ये सारा।



सुन्दर प्यारा, देश हमारा
लगता है हम सब को प्यारा ।



नाम :डॉ गुलाब चंद पटेल कवि लेखक अनुवादक, पता :हरि कृपा प्लॉट 127 /1 सैक्टर 14 गांधी नगर पिन 382016 ' तिरंगा' कविता


गण तंत्र दिवस प्रतियोगिता 
तिरंगा देश की शान :


"हिन्दू मुसलमान, शिख हमारा हे भाई प्यारा 
ये हे झंडा आजादी का, इसे सलाम हमारा" 


तिरंगा भारत की शान है, 
ये हे तो देश जान जहान है 


फहराने लगेगा तिरंगा अब लद्दाख में 
गूंज उठेगी शहनाई  जम्मू कश्मीर में 


तिरंगा मे तीन रंग हे 
भारतीयों के गौरव का जंग हे 


रंग सफेद, हरा और केसरी हे 
बीच में अशोक चक्र प्रतीक है 


फहराया तिरंगा 15 अगस्त 1947 
आजादी मिली हे भारत को 1947 


तिरंगा फहराने लगा क्षितिज आकाश 
तीन रंगों मे लगता है जेसे इंद्र धनुष 


तिरंगा देश की पहचान है 
संस्कृति का वो सुन्दर प्रतीक है 


नहीं झुकेगा नहीं झुकेगा 
निशान मेरे देश भारत का 
विजय ई विश्व हे झंडा हमारा 
झंडा ऊँचा रहे हमारा 


कवि गुलाब को उस पर नाज़ है 
भारत देश हमारा सुन्दर राज हे



शीर्षक -गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता


 नाम - डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव  "प्रेम"।


 पता  - वरिष्ठ परामर्शदाता प्रभारी ब्लड बैंक जिला चिकित्सालय सीतापुर।


   दोहा गजल 


पावन छब्बीस जनवरी, संविधान रच तंत्र, 
 आया  स्थापना दिवस, शुरू हुआ गणतंत्र ।
बापू नेहरू जब बने, जनता के कर्णधार,
 संविधान लागू हुआ, शुरू हुआ जनतंत्र।
 शास्त्री नेहरू इंदिरा, बने राष्ट्र निर्माता,
  देश आगे बढ़ गया, धन्य प्रजा का तंत्र।
 बल्लभ भाई पटेल ने, किया राष्ट्र को एक,
 हुआ राज्यों का विलय ,भारत हुआ स्वतंत्र।
 भारत देश महान है, धन्य, धन्य संविधान,
 विश्व गुरु भारत बने,रहे "प्रेम" का तंत्र।



*गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता*


नाम - निरुपमा मिश्रा 'नीरू'
पता - हैदरगढ़ जिला बाराबंकी ( उ०प्र०) 
दोहा - 
अखंडता गरिमामयी, भारतीय गणतंत्र|
सत्य अहिंसा के यहाँ, सदा गूँजते मंत्र|१|



देता है संसार को, समरसता 
का ज्ञान|
शक्तिसम्पन्न रूप है, अपना देश महान|२| 


बलिदानी गाथा बिना,आधा है यशगान |
वीर शहीदों का सदा,अमर हुआ बलिदान|३| 


गौरवशाली देश है,अमर रहे गणतंत्र |
नयन में उल्लास लिए, पुष्ट रहे जनतंत्र|४| 


स्वार्थ भावना से बड़ा, प्यारा अपना देश |
शांति -अहिंसा का हमें, रखना है परिवेश |५|



काव्य रंगोली गणतंत्र दिवस  आनलाइन काव्य     प्रतियोगिता 
नाम----प्रज्ञा जैमिनी 
पता-----44बी,एमआईजी फ्लैट, पाॅकेट- सी,फेज-3,अशोक विहार, दिल्ली- 52
कविता- गणतंत्र दिवस 


भारत के इतिहास गगन में 
स्वर्णाक्षरों से
अंकित हैं जिनके नाम
और सर्वस्व लुटाकर भी 
जो रहे गुमनाम
शीश हथेली पर धर
बढ़ाते देश का मान-सम्मान 
चाहे वह सैनिक हों
पुलिस वाले हों या किसान
समाजसेवक हों या वैज्ञानिक 
जो करते नित नए अनुसंधान 
कर्तव्य पूर्ति की राह में, 
तत्पर रहते जिनके प्राण
गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर 
करते हैं हृदय से,हम उन्हें सलाम  
 संविधान की प्रस्तावना में निहित 
स्वतंत्रता सेनानियों की अभिलाषा 
गांधी जी के 'विश्व कुटुंबकम् 'की आशा
पूर्ण करने का करेंगे प्रयास 
विश्वास दिलाता है आपको यह दास



गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता 
नाम - कवि अनूप सत्यवादी 
पता - लखनऊ 
कविता - 
जीवन का समय इसमें खपाना चाहता हूं मैं।
सनातन धर्म है जो वह निभाना चाहता हूं मैं।
बस एक  कारण  से  उठाई  है कलम  हमने
वंदेमातरम  लिख कर  के गाना  चाहता हूं मैं।
                                         



 -अवतार सिन्हा अँगार
पता- गरियाबंद छत्तीसगढ़
विधा- कविता



शीर्षक-*एक दीया शहीदों के नाम*


मातृभूमि की रक्षा खातिर ,त्याग दिये अपने प्राण।
आओ मिलकर जलाये ,एक दीया शहीदों के नाम।।


पथ हो पहाड़ हो चट्टानों की दीवार हो।
जल हो मरुस्थल हो हिम् या दलदल हो।।
करते देश की रक्षा चाहे कोई भी हो अंजाम।
आओ मिलकर जलाये एक दिया शहीदों के नाम।।


पुलवामा पठानकोट कश्मीर और हो उरी।
लड़ते देश की ख़ातिर  कोई भी हो मजबूरी।।
धर्म जिसका देशभक्ति भारत जिसका मुकाम।
आओ मिलकर जलाये एक दीया शहीदों के नाम।।



पत्नी रोती घर मे माँ का आँचल सुना।
बहन का खोया राखी पिता का बेटा नगीना।।
धरती रोती अम्बर रोता ,रोता हिंदुस्तान।
आओ मिलकर जलाये एक दीया शहीदों के नाम।।


भारत माँ के सच्चे सपूत देश के तुम जाबाज।
नाज पूरे भारत को  तेरी जांबाजी पे आज।।
तेरी इस कुर्बानी को सदा वतन करेगा सलाम।
आओ मिलकर जलाये एक दीया शहीदों के नाम।।


 


 


लता प्रासर
पटना बिहार
गणतंत्र स्वतंत्र रहे
*सुप्रभात*


गण और तंत्र सम्हलकर गर चलता है
दिवस का मान ऊंचा है ऊंचा रहेगा
जन गण मन स्वतंत्र रहे धन और बल से
मेरा भारत खुशहाल रहे प्रेम से मालामाल रहे


 



सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
     *"गणतन्त्र दिवस"*
"अपना विधान-अपना संविधान,
यही तो है-देश की शान।
अनेकता में एकता की साथी,
यही तो है-अपनी पहचान।।
मना वर्षगांठ गणतन्त्र दिवस की,
इसका पल पल करें अभिनंदन।
दे मान-सम्मान इसको साथी,
उज्ज़वल हो अपना विधान।।
अधिकारो की बात करे जब जब,
कर्त्तव्यों का भी रहे भान।
ऐसा न हो जीवन में साथी,
करे कोई इसका अपमान।।
चुन-चुन कर भेजे ऐसे इन्सान,
बने रक्षक बढ़े देश का मान।
अपना विधान-अपना संविधान,
यही तो हैं-देश की शान।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          


 


डॉ0 मृदुला शुक्ल
सम्पादक काव्यरंगोली
प्रतियोगिता से विलग
1- बना  रहे  गणतन्त्र  हमारा,
बनी       रहे      परिपाटी ।
सुरभित मलय बुहारे आंगन
महके   केसर   की   घाटी ।।


"गणतन्त्र दिवस" राष्ट्रीय पर्व की आप सभी को मंगल कामनाएं



गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता से विलग
********************
बृजेश अग्निहोत्री (पेण्टर)
सम्पादक काव्यरंगोली
1071क्षेत्रीय कार्यशाला-ग्रेफ
पिन 931071
द्वारा -56 सेना डाकघर 


देश के जवानों को समर्पित 
*********************
चलो जवान वादियों में गीत गुनगुनाएँ हम l
टैंक, तोप गोलियों के साज मिल बजाएँ हम ll


धीर-वीर सिंह को सियार घेरने लगे, 
सिंहनी की अस्मिता पे हाथ फेरने लगे l
खंभ से नृसिंह उग्र रूप अब दिखाएँ हम, 
टैंक, तोप,  गोलियों के साज मिल बजाएँ हम ll


कायरों की पौध मातृभूमि को सूखा रही, 
नित नवीन ज़ख्म ह्रदय अनवरत दुखा रही l
निज लहू से सींच भूमि उर्वरा बनाएँ हम, 
टैंक, तोप, गोलियों के सज मिल बजाएँ हम ll


भाईयों से भाईयों को दुष्ट बाँटने लगे, 
छुप के वीर सैनिकों के शीश काटने लगे l
क्रूरता को शूरता का पाठ कुछ पढ़ायें हम, 
टैंक, तोप, गोलियों के साज मिल बजाएँ हम ll


सोंच लो अभी ये शीश शर्म से झुके नहीं, 
शौर्य का कदम स्वतंत्र युद्ध में रुके नहीं l
भारती के पद सरोज शीश निज चढ़ाएँ हम, 
टैंक, तोप, गोलियों के साज मिल बजाएँ हम ll


              



आनंद कुमार त्रिवेदी"आनंद"
मु.पो.--सोण्डका
खरसिया-रायगढ़ छत्तीसगढ़


कठिन दौर से गुजर रहा है,
विश्व का महान गणतंत्र।
लोलुपता की पराकाष्ठा चहुँओर,
है द्रष्टव्य षड़यंत्र।।


नहीं उतरता खरा परिभाषा,
दिये जो इसके पूर्वगामी।
विल्सन ही नजर आते हैं,
लिंकन के नहीं हैं अनुगामी।।


राजनीति में साम हैं गायब,
दाम ही दाम आज दिखते हैं।
तज सिद्धांत जन कुर्सी दौड़ में,
शामिल सर-दर घिसते हैं।।


भ्रष्टाचार मुद्दा ही न रहा,
बन गया आज शिष्टाचार।
सर से पग हैं डूबे सर्व जन,
अस्तु हो गया आम व्यवहार।।


बिना परिश्रम लगे दुहने,
देश की संपदाओं को।
मिट्टी खोदते ,जड़ें तलाशते,
बुला रहे विपदाओं को।


"अनेकता में एकता"केवल,
सीमित रह गया पन्नों में।
जितना हो सके बाँट लो समाज,
मिठास भी नहीं आज गन्नों में।।


जड़ें बहुत गहरी है इसकी,
सह लेता हर एक तूफान।
आशा है अपना गणतंत्र,
आगे भी मार लेगा मैदान।।


"गणतंत्र दिवस अमर रहे"
"जयहिंद


 


ममता सिंह  राठौर
राजनगर एकटेंशन
गाजियाबाद


जय हिंद है  जय हिंद था  जय हिंद रहेगा  
हम रहे या  न  रहे  मेरा  हिन्द  रहेगा


धरती  पे भारत भूमि का सिरमौर रहेगा
 झंझावतों    के बीच मे   निर्भीख  रहेगा


धरती पे   मेरा भारत महान रहेगा 
धैर्य की  धरा पे सदा   शौर्य  रहेगा


सारी  धरा क यह  केंद्रबिंदु रहेगा
सभ्यता ,संस्क्रति  ,हमारा धर्म रहेगा


जय  हिंद  है  जय  हिंद  , जय हिंद रहेगा


 


 



शशि दीपक कपूर
मुंबई


जय हिंद, जय भारत, जय गणतंत्र का नाद है,
जन-जन की जान ,जन-जन का अभियान है,
   आन-बान-शान है शहीदों और बलिदानों का
 राष्ट्रभक्ति से राष्ट्र की पूरे विश्व में पहचान है ।।
                          


 


कमलकिशोर ताम्रकार"काश "अमलीपदर  गरियाबन्द छ.ग



-::  काश, अगर मै कवि जो होता  ::-



लेखनी से करता वारा न्यारा. 
मानो बहता गंगा की धारा. 
मन भावन भावो को पिरोता. 
काश,.......... 



सतयुग से त्रेता तक कथा. 
द्वापर से कलयुग तक गाथा. 
काव्य रूप मे उसे कह जाता. 
काश,....... 



कोयल की कुक को कहता. 
झरने की कल कल लिखता 
प्रकृति श्रृगांर मे मै रम जाता. 
काश,....... 



बचपन का वह चंचल मन. 
नारी का नख शिख वर्णन. 
अनुभव बुजुर्गो का मै कहता. 
काश,...... 



चित्कार पुकार क्रन्दन. 
देख दर्द भरी दास्तान. 
उसी भावनाओ मे बहजाता 
काश,......... 



कुर्सी देख छिन्ना झपटी. 
लडतेे कुत्ते खाने  रोटी. 
सबक इन्हे जनता सिखाता 
काश,....... 



नेताओ का नकाब उतारता 
हवा जेल की उसे खिलाता 
सीधे राह उन्हें ले आता. 
काश,....... 



ब्यंग्य बाण ऐसे चलाता 
मखमली जूतो से लगाता 
सोयी जनता को जगाता 
काश,...... 



राम राज्य साकार करने
क्षमा दया करूणा भरता 
न राजा न रंक कोई होता 
काश,...... 



मातृभूमि की लाज बचाने 
तिरंगा कभी झुकने न देता 
तलवार कलम जगह पकडता 
काश,........ 



संकट कभी देश पर आये 
न्योछावर को प्रेरित करता 
प्राणो का पुष्प स्वयं चढाता 
काश,............. 



काश,  अगर मैं कवि जो होता. 


 



-लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
ग्राम-कैतहा,पोस्ट-भवानीपुर
जिला-बस्ती


     ★हमारा गणतंत्र ★


गणतंत्र से मिला है संवैधानिक अधिकार,
शोषण अन्नाय का  हम करते हैं प्रतिकार।
गणतंत्र दिवस हमारे भारत में  लागू हुआ,
इच्छा से जीने का  हुआ  सपना साकार।।


संविधान ने दिया  हमें समता  का उपहार,
अराजकता व अपराध  का  हुआ उपचार।
मन से रहने व काम का  अधिकार  मिला,
गणतंत्र का बख़ूबी संविधान करता प्रचार।।


गणतंत्र  दिवस पर  संविधान हुआ है लागू,
ऊँच नीच, अगड़े  पिछड़े का तब भेद मिटा।
गणतंत्र दिवस पर ख़ुशियाँ हम सभी मनाते,
गुलामी से बंधन का हम सब का कष्ट कटा।।


अनगिनत  रणबांकुरों ने लड़ आज़ादी पाई,
अंग्रेजों ने अपने मुँह की ही  जम  कर खाई।
भगत सिंह सुखदेव व राजगुरु जैसे देशभक्त,
सैकड़ों ने  देश के  लिए अपनी जान गवांई।।


विश्व का दीर्घतम हमारे राष्ट्र का है संविधान,
वर्षों के संघर्षों से स्वतंत्र  हुआ है हिंदुस्तान।
अस्मिता व भाईचारा की रक्षा संविधान करे,
गणतंत्र दिवस पर प्रसन्न देश का हर इंसान।।
★★★★★★★★★★★★★
          स्वरचित व मौलिक
★★★★★★★★★★★★★


 



नाम-पवन गौतम बृजराही बमूलिया कलाँ  बाराँ(राज)
*********
कविता
अमर हुआ बलिदान राष्ट्र की बने धरोहर


जो थे बीज मिटे बन मीठे तरवर..
अमर हुआ बलिदान राष्ट्र की बने धरोहर।
--------
आज हिमालय की छाती 
की पीर सुनाने आया हूँ !
फिर से निकले कोई गंगा 
नीर बहाने आया हूँ ! 
लैला को मजनूं रांझा से
हीर मिलाने आया हूँ !
खण्ड खण्ड भारत की मैं 
तस्वीर दिखाने आया हूँ !


फिर अखण्ड होगा कर रक्तिम निर्झर.
अमर हुआ बलिदान राष्ट्र की बने धरोहर।
-------
अब ना कोई चन्दरशेखर 
ओर ना राजगुरू होगा !
यवनो से लडने वाला ना 
झेलम वीर पुरू होगा !
जौहर के त्योहार तो जैसे 
नानी की बातें होगी !
आलम अंधकार का कायम 
हाँ ! काली राते होंगी !


गर सरहद पर फिर से सैनिक लड़े झपटकर...
अमर हुआ बलिदान राष्ट्र की बने धरोहर।
----------
राजनीति वाचाल हो गई
नेता हुए खूब मक्कार !
छीना झपटी हाथापाई 
और संसद हैै शर्मोसार !
क्या गाँधी ने इसीलिए 
थी खाई अंग्रेजों की मार !
बालतिलक ने माँगा था क्या 
ऐसा जन्म सिद्ध अधिकार !


ऐसा ही होगा गर शहीद को रहे भूलकर...
अमर हुआ बलिदान राष्ट्र की बने धरोहर।
-------------
हत्या चोरी और डकेती 
जाति धर्म वाला भूचाल !
किसने डाला दूध में खट्टेपन
का चुपके से कूचाल !
एक और रोटी के लाले 
उस पाले में मालामाल ।
भूख मिटाने की मजबूरी 
हवस भेडिए बने दलाल ।


वो गौरव के लिए मिटे फाँसी में झूलकर...
अमर हुआ बलिदान राष्ट्र की बने धरोहर।
-----------
*राष्ट्रीय चिह्नो की स्थिति* 


'हॉकी' हारी 'मोर' तडपता 
'बाघ' भागता जंगल से !
गुमसुम है मासूम 'तिरंगा' 
मंगल चिह्न अमंगल से !
'कमल' महकना छोड़ चुका है 
'राजभवन' है दंगल से !
'राष्ट्रगीत' और 'राष्ट्रगान' अब 
गाये जाते जिंगल से !


'बट' की छाया को तडपे 'राही' 
की करूण पुकार हुई!


----------------------------------


निशा"अतुल्य"
देहरादून
गणतंत्र दिवस


आया गणतंत्र हमारा लहरा लो तिरंगा प्यारा
सम्मान रहे संविधान का जन गण मन का प्यारा
सर्वधर्म समभाव रहे,रहे सबके मन में प्यार 
ऐसा है गणतंत्र दिवस हमारा, हमको है जान से प्यारा ।


हुए स्वतन्त्र काट गुलामी की बेड़ी
बनाया अपना संविधान 
हुआ देश मे लागू ये दिन 26 जनवरी सन1950 महान।


देश अपना,अपना कानून कदम बढ़ाया आगे
जो भी आई बाधाएं किया हिम्मत से उनको पार ।


ये देश है गंगा जमुना का,ये देश है सब
धर्मों के आलंबन का
रहते हैं सब हिलमिल कर लहराते
तिरंगा प्यारा।


दिखाते जौहर जब सैनिक अपने युद्ध
कौशल का
समदृष्टि क्षमता विकास का ये है देश
हमारा प्यारा।


नित नए अनुसंधान हैं होते,विषमताओं
को पार हैं करते
नित नए आयाम बनाता विश्व में देश
हमारा प्यारा ।


करो सम्मान सदा इसका ये है हमारी
जान
लुट जाये चाहे जान हमारी,बनी रहे
इसकी आन, बान, शान 


देखे जो तिरछी नजर से इसको,खींच 
लेंगे तन से उसके प्राण 
है देश ये वीरों की भूमि, न्यौछावर इस
पर हर प्राण ।


नाम- भरत नायक "बाबूजी"
पता- लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.) पिन- 496100
मो- 9340623421


(गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता)
*"अपना देश महान "*(सरसी छंद गीत)
****************************
विधान-16+ 11= 27 मात्रा प्रतिपद, पदांत Sl, युगल पद तुकांतता।
****************************
*लहराता है ध्वजा-तिरंगा, भारत की है शान।
लाख नमन है इस मिट्टी को, अपना देश महान।।
देश हमारा प्यारा-न्यारा, इस पर है अभिमान।
लाख नमन है इस मिट्टी को, अपना देश महान।।


*धोता पाँव सदा सागर है, मुकुट हिमालय माथ।
जीवनदायी बहतीं नदियाँ, प्रगति-लहर के साथ।।
हरियाली से खुशहाली का, मिला विमल वरदान।
लाख नमन है इस मिट्टी को, अपना देश महान।।


*बहती सुरसरि है शुचिता की, रवितनया सम भाव।
सरस्वती-सत्संगति मिलती, रहे न द्वेष-दुराव।।
है सच संगम गहन-गुणों का, देव-लोक प्रतिमान।
लाख नमन है इस मिट्टी को, अपना देश महान।।


*वीरों की यह धरा पुनीता, अमल अमोलक भान।
जाए जान न मान गँवाये, शूर-सुधीजन खान।।
मुस्लिम गीता गा सकते हैं, हिंदू पढ़ें कुरान।
लाख नमन है इस मिट्टी को, अपना देश महान।।


*समरसता का सागर लहरे, हो नित नव शुचि भान।
इस मिट्टी पर मिट जायेंगे, रक्षित करने आन।।
"नायक" जप-तप-योग-भजन में, हो भारत-गुणमान।
लाख नमन है इस मिट्टी को, अपना देश महान।।
***********************


गणतंत्र दिवस की अशेष शुभकामनाओं के साथ


कटाये सर जिन्होंने हैं वतन की शान की खातिर,
लुटाया है सभी कुछ धर्म व ईमान की खातिर,
मेरी कविता मेरी ग़ज़लें उन्हीं को ही समर्पित है,
कभी मैं कुछ नहीं लिखता किसी इंसान की खातिर।
~शाश्वत अभिषेक मिश्र



गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता
नाम    डॉ.आभा माथुर
पता     1045 गाँधी नगर
           ईदगाह रोड,उन्नाव,
            उ.प्र. 
 ++++मत  तोड़ो+++++


मत तोड़ो इस
पुण्य भूमि  को
सब मिल रहते आये 
अभी भी
सब मिल कर रहेंगे
"जय श्रीराम" कहो तो
हम  भी
"क़सम ख़ुदा की" कहेंगे
अपने देश से ग़द्दारी कर
मिल  सकती  है जन्नत ?
सभी ख़ुश रहें
सब  मिल  गायें, यही
हमारी  मन्नत
निजी स्वार्थों में फँस कर
कोई मत ग़द्दारी करना
क्या करना शाहीन बाग़ में
घर  का  बाग़  महकाना


नन्दलाल मणि त्रिपाठी
सम्पादक काव्यरंगोली
प्रतियोगिता से विलग


माँ भारती की जय,वन्देमातरम् जय जय हिन्दुस्तान कहूँगा।।
जन गण मंगल दयाक जय है !!            
स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा।।
अरमानो के आसमान में फहराते लहराते तिरंगे का अवनि आकाश कहूँगा।।                        स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा।।
भारत कि आजादी कि बात कहूँगा।।                           तिरंगे आजादी के जंगों का जज्बा औ जज़्बात कहूँगा।।      
स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा।।
अमर शहीदों का त्याग और बलिदान कहूँगा। स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा।।
आजाद हिन्द की सेना के लहू का हिसाब कहूँगा।।
खून और आजादी के रिश्तों की नेता की आवाज़ कहूँगा।।
स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा ।।
तात्या और लक्ष्मी बाई का आजादी का संग्राम कहूँगा।।
 क्रूरता की लाठी टूटी इरादों का फौलाद ना टूटा भारत की माटी का  लाला लाज़पथ राय कहूँगा।
स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा।
काकोरी और चौरी चौरा आजादी के दीवाने परवानों की  सिंह दहाड़ कहूँगा।।
आज़ाद,भगत, बिस्मिल की सरफरोसि की तमन्ना जवां जोश आजादी के अंगार कहूँगा।   
स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा।अत्याचार ,अन्याय ,दमन का दम्भ तोड़ता बापू की सत्य अहिंसा सिद्धांत कहूँगा।।  स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा।।          राजगुरु ,बटुकेश्वर ,सुखदेव, असफाक के हंसते हँसते आज़ादी पर  मिट जाने को भारत का ओज तेज नौजवान कहूँगा।।
स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा।। 
दुष्ट दंश की हद डायर की हरकत गोली बौछारो से खून की होली का जलियावाला बाग़ कहूँगा।।      
स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा।।   
बिखरे भारत की अखण्डता का अक्क्षुण अध्याय  लौह पुरुष बल्लभ सरदार कहूँगा।।
स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा।।             राजेन्द्र ,विवेका ,चितरंजन दास ज्योति जवाहर लाल  कहूँगा।।      
आजादी का खाब सजाये जाने कितने हिन्दुस्तानी ने जान गवाए काला पानी निकोबार कहूँगा।।  
स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा।।       
जगदम्ब शिवा का शौर्य मराठा की शान कहूँगा।।                  
राणा सांगा की ज्वाला का जंग पन्ना की कुर्बानी मेवाड़ मुकुट  कहूँगा ।।
चन्द्रगुप्त ,चाणक्य ,पद्मवती का जौहर भारत के वीर सपूतों की गौरव गाथा वर्तमान इतिहास कहूँगा ।।         
आजादी की चिंगारी बागी बलिया का मंगल पाण्डेय को आजादी का काल कराल विकराल कहूँगा।।
स्वतंत्रता का शुभ मंगल गणतंत्र राष्ट्र आन मान सम्मान कहूँगा।।


कवयित्री ख्याति शिल्पी मौर्या बाराबंकी


न तन के लिए न मन के लिए 
न सुख संपत्ति वेतन के लिए एकबार नही सौ बार मरुं यदि मरु तो अपने वतन के लिए न मुझको कोई गम होगा न तन पे कोई सितम होगा मेरे रक्त की बूंद उछलती है हर जर्रा जर्रा कहता है मैं हँस हँस कर मिटना चाहूँ  यदि मिले तिरंगा कफन के लिए



रामा नन्द "सागर"
दरियाबाद बाराबंकी
उत्तर प्रदेश 
मो०9936692815
         गणतन्त्र दिवस
विश्व पटल पर,अमित छवि की
परम प्रखर  पहचान है।
मेरा भारत देश महान है।।


पावन पुनीत करने वाली,
निर्मल धारा,गंगा की है।
त्रिवर्ण में सार समेटे है,
गौरव गाथा तिरंगा की है।।
जन -जन करता, जन गण मन का,
अंतर्मन से सम्मान है।
मेरा भारत देश महान है।।


 


हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई,
सबमे भाईचारा है।
धर्म और मज़हब से बढ़कर,
राष्ट्रधर्म का नारा है।।
कृषि कार्य में,रहें कृषक रत,
सीमा पर डटे जवान है।
मेरा भारत देश महान है।।



समता का अधिकार सभी को,
है तन्त्र मानवतावादी।
"सागर" जैसे निर्बल जन को,
बना देता फौलादी।।
कहीं कठोर तो कहीं लचीला,
ऐसा संविधान है।
मेरा भारत देश महान है।।



चंचल पाण्डेय बिहार
*गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!!*
विजयी विश्व तिरंगा झंडा
निज प्राणो से प्यारा है।
इसके शान बढाने खातिर
सिर कितनो ने वारा है||
आँख उठा कर जिसने देखा
उसने प्राण गवाया है|
तीन रंग का शौर्य जगा तो
लाहौर तक लहराया है||
जियूँ मरुँ बस देश की खातिर
कफन तिरंगा ही पाऊँ|
भगत आजाद सा शौर्य लिये
वन्दे मातरम् ही गाऊँ||
         
नाम: श्रीकान्त दुबे
पता: ग्राम व पोस्ट - मंशानगला, तहसील- दातागंज, जिला- बदायूँ
 
*गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता 2020*


*मेरी ख़्वाहिश*


किसी ने ताज को मांगा किसी ने तख़्त को मांगा,
गुजारूं हिन्द की ख़िदमत में मैंने वक़्त को मांगा।
नहीं ख़्वाहिश मुझे ये ताज, दौलत और शोहरत की,
हिफ़ाजत में वतन की बह सके उस रक्त को मांगा।।


ये जां जाए तो जाए पर वतन लुटने नहीं दूंगा,
ह्रदय पर मां के दुश्मन के कदम रुकने नहीं दूंगा।
हुआ जब जन्म मेरा इस जमीं ने अंक में पकड़ा,
जमीं का इंच भर टुकड़ा भी अब बंटने नहीं दूंगा।।


मेरा ये जन्म केवल देश हित में ही गुज़र जाये,
हर एक कोने से शांति और ख़ुशियों की ख़बर आये।
ना हों झगड़े क़भी भी मुल्क़ में जाति और धर्मों पर,
फ़िज़ाएं महकें अपनेपन से ख़ुशबू इस क़दर आये।।



"गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता" 


नाम - वंदना दुबे 
पता- 17 , आनंदेश्वर मार्ग, धार( मप्र)
कविता - 
 
शीर्षक  -
           " छब्बिस जनवरी"


( बचपन का स्मरण कराती रचना)



वो यादों की महफ़िल सजाती रही है 
छब्बिस जनवरी याद आती रही है 


झंडे तिरंगे का श्रृंगार करने
चोरी से फूलों की बगिया में जाना 
वो रंगी-बिरंगी बनी फूल लड़ियाँ
बहुत बाल मन को लुभाती रही है 


नन्हे कदम से, कदमताल करना 
सूरज की गरमी, शरमसार करना 
वो प्यासे गले, कुम्हलाए-से चेहरे
मगर जोश दुगना बढ़ाती रही है 


जूतों में पाॅलिश , वो गणवेश उजले
बेफिक्र सैनिक वो नन्हें सजीले
लगाते थे नारे वतन के, जुबां भी
वतन शान में गुनगुनाती रही है ।


तबले की तालों पे, गीतों की सरगम 
लेझिम की रूनझुन, इधर से उधर हम
उत्साह हर पल बढाती रही है 
छब्बिस जनवरी याद आती 


दलबैंड धुन पर सलामी का आलम
पी टी , कदमताल, भाषण का संगम
तिरंगेतले, जन-गण-मन  का गाना 
हमेशा जुबां गुनगुनाती रही है 


हिन्दू ,न मुस्लिम, न सिक्ख, ईसाई 
क्या हम ये समझें, बड़ों की लड़ाई 
हिन्दोस्तां -भारत -इंडिया  ही
जेहन में अपने सदा-से , सदा-ही


बचपन की यादों को मन में संजोया
क्या हमने पाया , खोया ही खोया
नन्हें से कल की यही कल्पना ही
मन को सदा ही भिगाती रही है 


यादों की महफ़िल सजाती रही है 
छब्बीस जनवरी याद आती रही है 



गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता
नाम - कवि मंगल शर्मा 
पता - गाँव व् डाक - पाली 
जिला - रेवाड़ी (हरियाणा)
M.9813185427


 


इरादे हो कडे जिनके वही कुछ काम करते है
जो भारत माँ के चरणो में हमेशा ध्यान धरते है 
वतन के नाम पर जिना वतन के नाम मर जाना 
वो मरकर भी अमर होते जगत में नाम करते है


कर्म अच्छे करो हरदम दया को मान दो दिल में 
विचारो में हो पावनता सुरों की तान हो दिल में 
न हो अहंकार न हो द्वेष न ही लोभ मद माया 
बसा के मन में मूरत भारती की शान हो दिल में


जमाना जो कहे मुझको वही मैं मान लेता हूँ
जो गलती हो कही मेरी उसे में जान लेता  हूँ
मै भारत का निवासी हूँ मुझे गौरव मिला है ये 
जहां भारत की चर्चा हो तो सीना तान लेता हूँ


अर्चना द्विवेदी
ग्राम-मलिकपुर
पोस्ट-डाभासेमर
अयोध्या उत्तरप्रदेश


एक ईश्वर,एक धरती,ये 
अम्बर  एक  हमारा  है।
कहीं मंदिर कहीं मस्ज़िद
कहीं  ईशु  सहारा   है।।


क्यूँ बनते देशद्रोही तुम,
करा कर नित नये दंगे।
वतन जितना हमारा है 
वतन उतना तुम्हारा है।।


बहा लो  खून अपनों  का 
न होगा कुछ तुम्हें हासिल
पड़ोसी  देश  हँसता  है 
हमें कहकर , बेचारा है.।।


कोई हिन्दू,कोई मुस्लिम 
कोई सिख है ईसाई है,
मनाते  ईद  होली  संग 
अजब अद्भुत नज़ारा है।।


न  तोड़ें  एकता  अपनी
तनिक छोटी सी बातों से,
निभा लें संस्कृति अपनी 
अडिग ये भाई चारा है।।


प्रेम  सौहार्द से  अपना 
रहा सदियों का नाता है।
रहे शांति सदा इस देश 
में इतना इशारा है.....।।



*शीर्षक - गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता
नाम - डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
पता - 19/303 इन्दिरा नगर।   लखनऊ  उ.प्र. 226016
कविता
*आर्यावर्त्त महान -------


कहती है पूरब की लाली 
*आर्यावर्त्त महान -------


जय हिंद ; हिंद यह देव भूमि   
तेज पुंज ये ज्वाल ।
पुण्य भूमि यह ज्ञान सिंधु हम,      ,
तिरते नद शैवाल ।
जहाँ अपरिमित  सैन्य शक्ति हो ।
अरिमर्दन संकल्प,
गौरव गाथा गुंजित चहुँ दिक
 मुखरित है कल गान
*आर्यावर्त्त महान -------


हँसती गाती केसर क्यारी
अपना है ये गर्व,
सत्य सनातन सहज साधना
है पुनीत हर पर्व 
पवन फागुनी लेकर आता
सतरंगी ये फाग
लहराती गेहूँ की बाली 
भर देती मुस्कान
*आर्यावर्त्त महान -------


शांति दूत का परचम अपना
रहा प्रेम का मंत्र  
आपस की तकरार द्रोह से
दुखी हुआ गणतंत्र 
चहके चुनमुन सोन चिरैया 
ग्रहण लगे न हंत  
रहे चमकता विश्व गुरू यह   
हिंद सिंध की शान      
*आर्यावर्त्त महान -------
             


जनार्दन शर्मा
🇮🇳 हमारा गणतंत्र दिवस 🇮🇳*


न कोई गण हैं, न जिसका कोई तंत्र है।
मेरे देश का कैसा अजीब गणतंत्र है।


संविधान को जब चाहा ,तोड़ दिया ।
अपने वोटो के लिये,इसे मरोड़ दिया ।


धर्म,व जातिवाद का फैला ऐसा जहर हैं
आतंकवाद,व भ्रष्टाचार का टूटा कहर है।


हर तरफ बेरोज़गारी, कुपोषण का असर हैं। 
अब तो संविधान का विधान भी बेअसर है।


राष्ट्रीय पर्व बनाकर, पहली बार तिरंगा लहराया।
सर्वधर्म,एकता,अखंडता का नारा सबसे लगवाया


आज देश कि दुर्दशा देख, संविधान आँसू बहाता है।
बलिदान हुआ शहीदो का,सबका देश से टूटा नाता है।


आस्तीनो के साँप ही अब, देशद्रोह का दंश दे रहे हैं।
अखंड भारत के, खंडित होने का ख्वाब देख रहे हैं।


देश के कर्णधार बने जो,वो ही देश को खा गये।
सोने की चिड़िया से देश को,गर्त मे लेकर आ गये ।


आज देश को डर विदेशी ताकतो से नही, अपनो से हो गया
धर्म निरपेक्ष राष्ट्र, धर्म और जातीवाद में ही बंटकर रह गया।


जागो देशवासियों राष्ट्रभक्ति की भावना को जगाओ।
फिर एकजुट होकर सब, राष्ट्र ध्वज का मान बढ़ाओ।


आओ फिर हम सब एक राष्ट्रध्वज के निचे आये
फिर कोई फिरंगी हम पर,राजकरने न आ जाये।


स्वतंत्र भारत का ये गणतंत्र,फिर कही परतंत्र न हो जाए। 
फिर कही परतंत्र न हो जाये।



रश्मि लता मिश्र
सरकंडा,बिलासपुर


शुभ गणतंत्र


शुभ गणतंत्र प्यारा है
नवमंगल नभ ज्यों न्यारा है।
पूरी आजादी का परचम,
लाल किले जब है पहरा।
गूंज उठा करतल ध्वनियों से
देश का हर जर्रा जर्रा।
प्रभात फेरिया ,वंदे मातरम
जय भारती कह उठे कदम।
तिरंगा शान तिरंगा जान,
यही है इज्जत यही तो मान।
आजादी ना लुटने पाए,
देश ना हो बेजार कभी।
नाम,अनाम शहीदों की बलि
हो न जाये ख्वार कभी।
बलिदानों के बलि की साख
बचाना फर्ज हमारा है।
उठो जवानों और दीवानों,
शुभ गणतंत्र तुम्हारा है।
देश की खातिर निजता छोड़ो,
संप्रभुता का नारा है।
कुटुंब वसुधैव की राह चलो,
सत संकल्प भी प्यारा है।
मानवता की रक्षा खातिर,
जागो फर्ज तुम्हारा है।
वीर लाल तुम भारत मां के,
मां ने पुनः पुकारा है।
उठो जवानो वीर दीवानों,
शुभ गणतंत्र तुम्हारा है।



सुशीला शर्मा
 सोडाला  जयपुर -


ओ आतंकी रुक जा वर्ना 


ओ आतंकी रुक जा वर्ना ऐसी मुँहकी खाएगा 
पानी भी ना मिलेगा तुझको, तू प्यासा मर जाएगा।
बात ना मानी अगर अभी तो, सर्वनाश हो जाएगा 
भारत का हर सैनिक तुझको कच्चा ही खा जाएगा ।
   
               निर्दोषों को मारके तूने ,अपनी औकात दिखाई है 
                धोखा देकर ,हमला करके, कायरता दर्शाई है 
                बार बार मुँहकी खाकर भी ,बात समझ ना आती है 
                 तेरे देश के  मासूमों की, जान व्यर्थ ही जाती है ।


अबकी बार पुलवामा में ,तूने जो चक्र चलाया है 
भारत माता के वीरों को, ये सब रास ना आया है 
चुन चुन कर अब लेंगे बदला, ये संकल्प उठाया है 
खबरदार जो तूने फिर से, ऐसा आतंक मचाया है।


            भारत का हर एक सिपाही, सौ दुश्मन पर भारी है 
             धूल चटा देगा तुम सबको, सुलग रही चिंगारी है 
             अब मुड़कर देखा तो ,तेरी दोनों आँख निकालेंगे 
             दोबारा सीमा लाँघी तो, दोनों पैर उड़ा देंगे।


पीठ के पीछे वार किये हैं ,कायरता दिखलाई है 
दुष्ट, अधम है तू पाखंडी, समझ रहा चतुराई है 
अब ना रुकेंगे वार हमारे, आगे बढ़ते जाएँगे 
और खदेड़ेंगे तुम सबको, घर तक छोड़कर आएँगे ।


सुबोध कुमार शर्मा शेरकोटी गदरपुर ऊधम सिंह नगर  उत्तराखंड



गणतंत्र दिवस 
गीतिका


आओ मिलकर हम, गणतंत्र दिवस मनाये
संविधान का है यह ,दिवस सबको बताये।।


आज़ाद भारत मे रहकर ,भी जो भ्रमित है
ऐसे   भ्रम को उर से ,उनके   हम मिटाये।।


राष्ट्र हित को त्याग जो नित ज्वाला जलाते।
उनको शांति का पाठ अब कैसे      पढ़ाये ?


प्रश्न चिन्ह लगता है उनके     राष्ट्र प्रेम पर ।
जो आ सड़को परं राष्ट्र सम्पदा      जलाये।।


जातियता को जो नित अपनी ढाल बनाते
यह विष-खेल  है सत्यता उनको समझाये।।


छोटे छोटे बच्चे भी आ मांग रहे है आजादी
डर बैठाया जो उनके उर में उसे     मिटाये ।।


संविधान   भूल      जो पाक के नारे लगाते
देशद्रोही है वो  उन्हें देश से ही        भगाये।।।


राष्ट्र गान व राष्ट्र गीत सम्मान संविधान   का।
विरोध करे इनका वो राष्ट्र भक्त कैसे कहाये  ।।


*गणतंत्र दिवस अॉनलाईन प्रतियोगिता* *2020* 
नाम - विक्रम कुमार
ग्राम - मनोरा
पोस्ट - बीबीपुर 
जिला - वैशाली
बिहार- 844111
मोबाईल नंबर - 6200597103


 *गणतंत्र के दिवस की बहुत बधाई देश को* 
सौंप भाव सारे इस दिवस विशेष को
गणतंत्र के दिवस की बहुत बधाई देश को


उत्साह पूरे जग का भरा है इसी महत्व में
इस दिवस को संविधान आया था अस्तित्व में
वर्षों का तप पूरा हुआ मां भारती की भूमि पर
स्वीकार किया देश ने विधान के संदेश को
गणतंत्र के दिवस की बहुत बधाई देश को


अपना ध्वज, अपना प्रतीक और अपनी रीत को
अपने बोल अपनी धुन और अपने राष्ट्रगीत को
अधिकार और कर्तव्य की सीमाएं भी बनी यहां
अपनाया हमने पुरोधाओं के अमर उपदेश को
गणतंत्र के दिवस की बहुत बधाई देश को


अमर दिवस सदियों से ये मान अपनी भूमि का
गणतंत्र का दिवस है ये सम्मान अपनी भूमि का
मान हिंद का बढे़ ऐसे कदम उठाएं हम
मानें दिल से हम सदा मानवता के आदेश को
गणतंत्र के दिवस की बहुत बधाई देश को
गणतंत्र के दिवस की बहुत बधाई देश को


गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता 
___________________
नाम डॉ अखण्ड प्रकाश
कल्याणपुर कानपुर 
 विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र भारत देश है।
सभ्य है संस्कृति हमारी विश्व को संदेश है।।
भाषा सरस विज्ञानम


यी, परिवार वादी सोच है।
परहित भरा जीवन जिएं,हट धर्म में संकोच है।
 बड़ों आषीश ले छोटों को देते हैं दुआ।
बहुजन हिताय का यहां, रहता सदा उद्देश्य है।
विश्व का सबसे बड़ा.....
देखो प्रकृति ने भी यहां अनुपम छटा बिखराई है।
शीत फिर हेमंत फिर, महकी यहां अमराई है।।
सीखने के योग्य अपने राष्ट्र का परिवेश है
विश्व का सबसे बड़ा.....
हम लड़ें झगडें भले रखते सभी का मान है।
(अ) नेकता में एकता, यह विश्व में पहचान है।।
चहुदिश दुआ के संग में यज्ञों का ही संदेश है।
विश्व का सबसे बड़ा..…
आभा प्रभा में रत है भारत तभी इसका नाम है।
पूछता है प्रकाश को, ज्ञान अर्चना एक काम है।।
धर्म के संग आधुनिक विज्ञान का संदेश है।
विश्व का सबसे बड़ा.....



काव्य ‌रंगोली गणतंत्र दिवस आनलाइन काव्य प्रतियोगिता।  2020
नाम- जयश्री तिवारी
पता- MA 32 वत्सला विहार खंडवा 
कविता- तिरंगा


              "तिरंगा"
आन ,बान और शान तिरंगा
मेरा तो ईमान तिरंगा
शहीदों की जान तिरंगा
 स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी है तिरंगा
तिरंगे में लिपटकर जब शव आता है शहीद का
तब मान बढ़ जाता है तिरंगे का
चाहता तो तिरंगा भी नहीं कि
कोई शव मुझ में लिपटकर आए
पर बिना कुर्बानी के देश कैसे सुरक्षित रह पाए
तिरंगे का एक ही फरमान
अखंड भारत की एकता मेरी शान
जब तक दुनिया कायम रहेगी
तिरंगे की शान में कोई कमी ना रहेगी


 


राजेंद्र रायपुरी।।


प्रस्तुत है एक मुक्तक -- 


शुभकामना हर एक को,
                पावन परब गणतंत्र पर।
कुछ हाथ से भी काम हो,
               हर काम मत हो यंत्र पर।
हर हाथ तब ही काम होगा,
                      दूर होगी भुखमरी।
गणतंत्र पर कुछ आप भी,
                 मंथन करे इस मंत्र पर।


              


 


कौशल महन्त"कौशल"-
मौहाडीह.-झरना-जांजगीर
(चाम्पा) छ. ग.
रचना-
,          *जीवन दर्शन*


★★★
झंडा लहराता रहे,
           अमर रहे गणतंत्र।
देशप्रेम का भाव ही,
            जन-जन का हो मंत्र।
जन-जन में यह मंत्र,
           गूँज हो जब जन गण का।
सब पर है ऋण भार,
            धरा के इस कण-कण का।
कह कौशल करजोरि,
            नहीं चल पाये डंडा।
करो आज जयघोष
            हाथ में लेकर झंडा।।
★★★
समता हो सब धर्म में,
           सबका हो उत्थान।
भाई चारा का रहे,
           सब में भाव समान।
सब में भाव समान,
          समय हो नित हितकारी।
सुरभित हो दिनरात,
          देश की यह फुलवारी।
कह कौशल करजोरि,
         भारती माँ की ममता।
पाकर होंगे धन्य,
          सभी में हो जब समता।।
★★★
सागर थे अंबेडकर,
           कानून के महान।
अपने भारत के लिये,
           लिख सहज संविधान।
लिख सहज संविधान,
           राष्ट्र का ग्रंथ बनाया।
देश प्रेम का भाव,
          सभी के हृदय जगाया।
कह कौशल करजोरि,
          नाम को किया उजागर।
अवतारी थे दिव्य,
           ज्ञान के जो थे सागर।।
★★★
                      



एस के कपूर श्री हंस बरेली(ऊ प)
कविता।



हिन्दू  मुस्लिम  सिख  ईसाई,
एक संग नाम लेना है।


हैं एक देश की   संतानें  बस,
सभी को मान देना है।।


इतनी महोब्बत हो कि  निशां,
नफरत का मिट जाये।


हम सब हैं भारत  वासी बस,
यही   पैगाम  देना है।।



विश्व के शिखर पर हमें भारत
का    नाम   चाहिये।


चोटी     पर  लहराता   तिरंगा   
आलीशान    चाहिये।।


चाहिये वही पुरातन  विश्व गुरु
का  दर्जा   भारत   को।


फिर वही  सोने  की   चिड़िया
वाला हिंदुस्तान चाहिये।।



शत शत नमन उन शहीदों को
जो देश पर कुर्बान हो गये।


वतन के लिए होकर बलिदान
वह बस बे जुबान हो गये।।


उनके प्राणों की कीमत पर ही
सुरक्षित  है  देश   हमारा।


वह जैसे जमीन ऊपर उठ कर
आसमान     हो    गये ।।


संख्या।।।।।।।4।।।।।।।।।।।।


अम्बर के  उस  पार   जा  कर,
नया हिंदुस्तान  बनाना है।


भारत   के   गौरव चंद्रयान  से,
चाँद को छू कर आना है।।


अंतरिक्ष की  उड़ान से सम्पूर्ण,
मानवता को देना है संदेश।


सम्पूर्ण विश्व    में    भारत  को, 
हमें  महान   कहलाना  है।।


 


श्रीमति शशि मित्तल "अमर"
बतौली ,सरगुजा (छत्तीसगढ़)
*******************
हम हिंद देश के वासी हैं
ये  "भारत " हमारा है !
सबसे प्यारा ,सबसे न्यारा
ये  देश  हमारा  है..


इस माटी में जन्मे हैं
अनेक  वीर  जवान
अपने देश की खा़तिर
हो  गए  वो कुर्बान !!


तुम झुके नहीं ,डरे नहीं ,
तुम राह  से  हटे  नहीं
झूल गए इंकलाब बोल 
फांसी से डरे नहीं.....!


भारत की आन -बान पर
भारत की शान पर ,
कर जिंदगी दान कर
अमर इतिहास बन गये...


इस देश की माटी में मिला है
लहू वीर जवानों का ...
लहू से लिख छोड़ा है
इतिहास वीर कुर्बानों का!!


जहाँ माता -पिता संग
गुरु भी पूजे जाते हैं !
यहाँ  धरती  माँ संग ,
गाय भी कहलाती माता है!!


धर्म व आध्यात्म का संगम,
बन जाता कुंभ का मेला ..
जहाँ स्वानुशासन का देखा रेला,
ऐसा  अद्भुत है भारत अलबेला!!


रामायण,गीता हैं,ग्रंथ -पुराण ,
कुरान-शरीफ का भी होता सम्मान
गंगा-यमुना की है, पावन धारा ,
ऐसा  भारत  देश  निराला !!


तीन रंगो से सजा तिरंगा,
बीच अशोक चक्र महान
है  "भारत "की पहचान !
ऐसा  मेरा  देश  महान !!


 


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
कोलकाता - 700082


..गणतंत्र दिवस-एक आत्मचिंतन..


गतवर्ष    की   तरह   इस   वर्ष  भी,
गणतंत्र  दिवस   फिर   लौट  आया।
अपने साथ  नवउल्लास, नवचेतना,
नवजागृति    का    पैगाम    लाया।।


याद  दिला  रहा  है  यह  दिवस हमें,
भारतीय संविधान के प्रस्तावना की।
जिन्हें हमने  पन्नों पर  रख छोड़ा है-
भूलकर हिदायतें बड़े महामना की।।


संविधान के तहत हमने जिन कर्तव्य
और  नीतियों  को  स्वीकार   किया ।
वक़्त  आने  पर,उसी  संविधान  का,
हमने  स्वार्थवश  तिरस्कार   किया।।


क्या जनता!क्या नेता!क्या प्रशासन!
सबअपनी डफली पर राग बजाते हैं।
देश के संविधान  की चिंता किन्हें है?
जिन  पर  स्वार्थ - फसल उगाते  हैं।।


देश  के  ऊंचे  राजनैतिक  महलों  में,
संविधान का मख़ौल क्या कमाल है!
जहां प्रतिनिधि द्वारा कानून की प्रति,
जलाना  एकदम  ही  बेमिशाल  है।।


आज  राष्ट्र के तिरंगा के नीचे आकर,
हमें  मिलकर  यह  शपथ  खाना  है।
पिछली  गलतियों  को  न  दुहराकर,
सही नीति को हृदय से अपनाना है।।


 



 नन्दकुमार मिश्र आदित्य 
कविवासर ,मालतीमंडपम्
 रानीपुर ,  आश्रम वृन्दावन 
                
कविता  :      जय   हो   !
 
वीर सुभाषके अमृत मंत्र ' जय हिन्द ' मंत्रकी जय हो !
अखिल विश्वके सर्वोत्तम भारत जनतंत्रकी जय हो !!
हिन्द हिमालय हिन्दुस्तानी हिन्दी हो सिरमौर सदा 
सर्वतंत्रसे शुभ स्वतंत्र भारत गणतंत्रकी जय हो !!!


 


 - विजय कनौजिया
काही- अम्बेडकर नगर


*फिर ये पर्व मनाना है*
****************
आओ साथ हमें फिर मिलकर
उत्सव का पर्व मनाना है
गणतंत्र दिवस का हर्ष आज है
ये सबको बतलाना है..।।


भारत का सम्मान आज फिर
विश्व पटल पर अंकित हो
आपस में सद्भाव जगाकर
सबका मान बढ़ाना है..।।


रहे तिरंगा हरदम ऊंचा
चाहे हम और आप नहीं हों
हिंदुस्तान की शान अमर हो
ये विश्वास दिलाना है..।।


भारत तेरे टुकड़े होंगे
ऐसा कहने वालों को
लेते हैं सौगंध आज हम
उनको सबक सिखाना है..।।


देश तोड़ने वालों के
मंसूबे नहीं सफल होंगे
हर मजहब में हम हों शामिल
ऐसा प्यार दिखाना है..।।


हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई
हम सब भारत के वासी
परंपरा भाईचारे की
मिलकर इसे निभाना है..।।


भटक रहें हैं युवा आज कुछ
देश विरोधी नारों से
उनकी भी है जिम्मेदारी
यह भी अब सिखलाना है..।।


सार्वजनिक संपत्ति तोड़कर
आग लगाने वालों को
मिले सबक उनको कुछ ऐसा
उनसे देश बचाना है..।।


हम सबकी है जिम्मेदारी
देश की शाख  बचाने की
आओ मिलकर साथ चलें हम
फिर ये पर्व मनाना है..।।
फिर ये पर्व मनाना है..।।



नाम - चन्दन सिंह 'चाँद'
, जोधपुर - ( राजस्थान )
     
                   कविता - हमारा कर्तव्य 


अधिकारों की बात भी कर ली 
अधिकारों की माँग भी कर ली 
संविधान ने दिए हमें अधिकार
हुए सबके सपने अब साकार 


पर चलो आज हम बात करें
देश के प्रति अपने कर्तव्य का
चलो आज से पालन करें
अपने नागरिक कर्तव्य का


प्रथम कर्तव्य है वृक्ष लगाना
धरती पर हरियाली लाना 
जैविक खेती को अपनाना 
प्रकृति संग मिल आगे बढ़ना 
वन्य जीवों की रक्षा करना 
प्राकृतिक जीवन को अपनाना 
चलो अनगिनत वृक्ष लगाएँ
वसुंधरा को हरित बनाएँ


दूजा कर्तव्य है साफ़ - सफ़ाई
घर आँगन की साफ़ - सफ़ाई
गली मुहल्ले स्वच्छ रखें हम 
सफ़ाई की आदत अब डालें हम 
स्वच्छ रहें और निरोग रहें हम 
कबाड़ से जुगाड़ करके देखें हम 
चलो दृढ़ इच्छाशक्ति दिखलाएँ
भारत को हम स्वच्छ बनाएँ


तीसरा कर्तव्य है पढ़ना - पढ़ाना
शिक्षा की है अलख जगाना
हर व्यक्ति को साक्षर बनाना 
तकनीकी शिक्षा को अपनाना 
चरित्रवान बनाए यह शिक्षा 
संस्कारवान बनाए यह शिक्षा 
चलो रोजगारपरक शिक्षा अपनाएँ
शत प्रतिशत साक्षरता लाएँ


चौथा कर्तव्य करें सब मतदान 
हर एक मत है मूल्यवान 
चुनें एक उत्तम सरकार 
जो देश के सपने करे साकार 
व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठें हम 
राष्ट्रहित के लिए सोचें हम 
चलो कलाम के सपने को पंख लगाएँ
चलो विकसित यह देश बनाएँ


पाँचवाँ कर्तव्य है मिल - जुलकर रहना 
हर धर्म - सम्प्रदाय का आदर करना 
सबके त्योहारों में शामिल होकर 
हँसी - खुशी और प्यार बाँटना
सबकी संस्कृति को जान पाना 
सबके दुःख - दर्द में काम आना
चलो मिलकर हम देश बनाएँ
भारतीय संस्कृति की महिमा गाएँ



नाम-दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
न्यू टाऊन ,कलकत्ता


शीर्षक-"गणतंत्र दिवस"
26 जनवरी 1950 को
शुरू हुआ अपना गणतंत्र
लागू हुआ इसी दिन
दुनिया का सबसे बड़ा संविधान
आज ही के दिन मिला
अपना सब अधिकार
गणों का तंत्र 
ये है अपना गणतंत्र
राजपथ पर  शक्ति प्रदर्शन
होता इसी दिन
तीनों सेनाओं के कौशल
का होता प्रदर्शन
देखता है सारा विश्व शक्ति हमारी
जल में थल में और गगन में
अब हम हैं सबसे भारी
देश प्यारा गणतंत्र प्यारा
26 जनवरी के ये पर्व प्यारा
इस गणतंत्र के पहले नागरिक
बने डॉ राजेंद्र प्रसाद
"दीनेश" नमन आज उन सबको
जिन्होंने अपनी जान देकर
हमें ये सुंदर गणतंत्र दिया


 


संजय जैन 
मुंबई


*हिंदुस्तान का तिरंगा*
विधा : गीत


सुनो मेरे देशवासियों,
मनाने जा रहे, 
71व गणतंत्र दिवस,
कुछ संकल्प ले लो।
नहीं करेंगे कोई भेद,
हम जाती और धर्म पर।
समान भाव सबके प्रति,
हम सब मिलकर रखेंगे।
तभी हमारा ये देश,
दिखेगा विश्व में विशेष।।


हमे इस पर है अभिमान, 
और इसे बहुत है हमे प्यार।
इसलिए नहीं गिरने देंगे इसका कभी स्वभिमान।
लड़ेंगे इसके लिए एक साथ,
नहीं आने देंगे कोई आंच।
ये हमारा देश है हिंदुस्तान,
जो हमको प्राणो से प्यारा है।
इसे हम कैसे अकेला छोड़ दे।।


हम दे देंगे चाहे अपनी प्राण,
पर तिरंगे को कभी झुकने नहीं देंगे।
चाहे कोई भी हो वो शैतान,
यदि करेगा देश से गद्दारी।
तो उसको देंगे मृत्यु दंड।
इसलिए संजय कहता है
की दिल से करो इसे प्यार।
और निभाओ अपना फर्ज
तुम सब।
ये हमारा देश है हिंदुस्तान।
जो हम सब को प्राणो से 
प्यारा है।
इससे कैसे हम अकेला 
छोड़ दे।।


 


 


 डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून ( उत्तराखंड )



कविता- 
वतन ( मनहरण घनाक्षरी )
—————————-
वतन के लिए जियें
वतन के लिए मरें 
वतन ही ओढ़ कर 
देशभक्त बनिये।


वतन मेरी श्वास है 
वतन मेरी आस है 
वतन ही विश्वास है 
मुक्त मन कहिये।


वतन मेरी शान है 
वतन मेरी आन है 
वतन अभिमान है 
तन कर कहिये।


वतन की मिट्टी प्रिय 
वतन का नीर प्रिय 
वतन की वायु प्रिय 
कहते ही रहिये।
—————————



इन्दु झुनझुनवाला 
संपादक काव्यरंगोली
बंगलौर
प्रतियोगिता से विलग


सिर कफन बाँध,सेहरा समझ,मिलने चले आजादी से।
फिर रोक सका ना कोई उन्हें, दुश्मन की बर्बादी से।


 दुर्गम पहाड़,उँची  लहरें, गहरे सागर,छिछले  सीने,
कोई ना सीमा रोक सकी ,चढ जाते वे सारे जीने।
बात भूमि के मान की हो ,वो लड़ते रहे जांबाजी से।
फिर रोक सका ना कोई उन्हें, दुश्मन की बर्बादी से।


दुश्मन की छाती भेदी और,अपने तन की परवाह ना की।
सारे नाते रिश्ते छूटे , सिर कटे मगर उफ आह  ना की।
ऐसे लालों को कैसे टोके, अर्जुन-सी तीरंदाजी से।
फिर रोक सका ना कोई उन्हें, दुश्मन की बर्बादी से।


अपने ध्वज की पहचान उन्हें , भारत माँ की आन बने।
 जान की भी परवाह नही ,  तिरंगा सबकी शान बने।
इस पावन धरती के सपूत, हर ओर बढे शाबाशी से।
फिर रोक सका ना कोई उन्हें, दुश्मन की बर्बादी से।


दूजों के हित की खातिर ,मृत्यु का बढकर वरण करे।
मिट्टी का कर्ज अदा करने ,वे प्रतिपल परवान चढे।
चाहे कितनी भी बाधाएं,ना मिले कभी नाकामी से।
फिर रोक सका ना कोई उन्हें, दुश्मन की बर्बादी से।


सभी को गणतंत्र दिवस की बधाई



इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव अम्बर सीतापुर.


पुण्यभूमि हे भारतमाता शत शत वंदन सादर
यक्ष और गंधर्व देवता देते इसको आदर


तरु वन गह्वर हिमगिरि सरिता सुरभित केसर वादी
नवखग कलरव कूजित पुष्पित निर्मल पावन घाटी
यथा शीघ्र आच्छादित करती संस्कारों की चादर
यक्ष और गंधर्व देवता देते इसको आदर
पुण्यभूमि हे भारतमाता......
  
शीतल मृदु जल झरते निर्झर सरयू गंगा यमुना 
दया क्षमा आभूषण शोभित अंतर्मन शुचि करुणा
वर मुद्रा आशीष अस्त्र कर मन में नहीं अनादर
यक्ष और गंधर्व देवता देते इसको आदर
पुण्यभूमि हे भारतमाता......


 


नामःअर्चना कटारे
पताःजैन मंदिर के पीछे शहडोल (म.प्र)
कविता ःगणतंत्र दिवस 
शीर्षक ःबस इतना मांगती हूँ


बस इतना मांगतीं हूँ
मेरी पूजा हिन्दुस्तान
मेरा धर्म हिन्दुस्तान
मेरा देश रहे महान
बस इतना मांगती हूँ...


मेरे झंडे की रहे ऊँची शान
इस पर तन मन है कुर्बान
इसकी छटा बिखेरे ज्ञान
बस इतना मांगती हूँ....


सब धर्मों की रहे आन
सभी का मरम एक समान
फिर क्यों लडे इंसान
सभी में हो प्रेम समान
बस इतना मांगती हूं....


राजनीति के दांव पैंच मे
शिक्षा संस्थान क्षेत्र में
ऊँच नीच के भेद भाव में
हर कोई  न रहे परेशान
बस इतना मांगती हूँ


न आतंकी हमला हो
न ही कोई दंगा हो
होवे राष्ट्र का गान
बस इतना मांगती हूँ


न ही भारत के टुकडे हों
न ही खून से लतपथ चिथड़े हों
रहे अमन शाँति का ध्यान
बस इतना मांगती हुँ


हर नारी का रहे स्वाभिमान
जिन पर करें हम अभिमान
उनका होता रहे उत्थान
बस इतना मांगती हूँ


न सूखा न पाला हो
खेतों में हीरा सोना हो
किसान न दुखियारा हो
बस इतना मांगतीं हुँ


चारो ओर हरियाली हो
कोयल गौरैयों की कूकें हो
नयी नयी पेडों की कोपल हों
बस इतना मांगतीं हूँ


बडे बूढों कि सम्मान हो
भूंखा न कोई इंसान हो
बेबश न कोई लाचार हो
बस इतना मांगतीं हूँ


हिमालय की आपनी शान रहे
समुद्ररों की अपनी आन रहे
जंगलो में अपनी जान रहे
बस इतना मांगतीं हूँ


न कोई राकेट मिशाइल चले
न बम धमाके हों
न ही युद्ध का बिगुल बजे
अमन शाँति के वातावरण में
मेरा हिन्दुस्तान रहे


बस इतना मांगती हूँ
बस इतना मांगतीं हूँ


         


संतोष कुमार वर्मा कविराज
पता - कांकिनाड़ा, कोलकाता
पश्चिम बंगाल
कुछ साथी सफर में छूट गए* 



कुछ  साथी सफर में छूट गए
या सभी का साथ न मिलने से  रूठ गए।


मोहब्बत से बड़ी है उनकी मोहब्बत,
जो मातृभूमि के लिए निकल गए।


हृदय में मातृभूमि का जोश है
जो मचल गए...तो मचल गए।


 बुजदिली  का हमने सीखा नहीं परिचय,
जो दुश्मनी किए  वो आग में जल गए।


जोश की उनको बारम्बार सलाम
मार गिराए दुश्मन को उसने भी 
लड़ते - लड़ते सीमा पर कदम जिनके थम गए।


उदारता को समझते रहे वो कमजोरी,
पराक्रम दिखाया शौर्य का तो
दुश्मन भी घुटने टेक दिए।


पर जिनके रागो में दौड़ती है गद्दारी
वैसे लोग ही हमसे रूठ गए।


पर हार हम माने नहीं,
जो चल दिए तो चल दिए।


कुछ  साथी सफर में छूट गए
या सभी का साथ न मिलने से  रूठ गए।


 



नाम:अमलेन्दु शुक्ल
पता:सिद्धार्थनगर उत्तर प्रदेश
गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता 


विषय:संविधान


संविधान यह संविधान,
जीवन का अपने यह विधान।
पूजनीय सम्पूर्ण राष्ट में,
यह ही गीता,यह ही कुरान।
विषय नहीं यह साधारण,
भारत का यह है महाप्रान।
संविधान, यह संविधान,
जीवन का अपने यह विधान।
पूजनीय सम्पूर्ण राष्ट्र में,
यह ही गीता,यह ही कुरान।


हमको स्वतंत्रता यह देता,
बदले में कुछ न खुद लेता।
अपने मुख से कुछ बोल सकें,
कुछ राज दिलों के खोल सकें।
बहु भाँति जतन करता जब,
आजादी अभिव्यक्ति की देता।
हर भाँति सुरक्षित हमको करता,
अपना यह प्यारा विधान।
पूजनीय सम्पूर्ण राष्ट्र में,
यह ही गीता,यह ही कुरान।


स्वावलंबी बना हमको,जिसने
जीवन का सम्मान दिया।
बन्धुत्व और समरसता का,
जिसने हमको वरदान दिया।
हमको समस्त जग जान सके,
वह अनुपम पहचान दिया।
अनुकरण करे शासन जिसका,
वह अपना है संविधान।
पूजनीय सम्पूर्ण राष्ट्र में,
वह ही गीता,वह ही कुरान।


जिसने अप्रतिम उपहार दिया,
आजीविका का आधार दिया।
स्वच्छन्द करें विचरण हम सब,
ऐसा सुन्दर संसार दिया।
सारी सम्भव पीड़ाओं का,
संवैधानिक उपचार दिया।
जो श्रेयस्कर है सब ग्रन्थों में,
वह है अपना संविधान।
पूजनीय सम्पूर्ण राष्ट्र में,
वह ही गीता,वह ही कुरान।


     



ओजकवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नयी दिल्ली
 कविता तिरंगा प्यारा


ध्वजा वतन  तिरंगा प्यारा ,
बढ़े कीर्ति  सम्मान हमारा,
है प्रतीक नित कुर्बानी का, 
झंडा  ऊँचा  भारत  न्यारा। 
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


शौर्य कीर्ति योद्धा प्रमाण यह,
असुर निकंदन  शौर्य चक्र यह,
नीलगगन  निर्मल  अनंत  यह,
हरित भरित पृथिवी जग सारा।
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


धीर वीर  साहस सहिष्णुता ,
सद्भावन  समरस  नैतिकता,
है प्रमाण  विज्ञान  विश्व  का,
भारत  है सोने  की चिड़िया।
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


उन्मुक्त गगन  लहराए झंडा,
अमन  चैन  समृद्ध   प्रीतिदा,
त्रिरंगों   का  ध्वजा   तिरंगा,
दे खुशियाँ  ज़न्नत का सारा ।
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


जाति पाँति बिन भेदभाव का ,
बिन छूआ छूत व ऊँच नीच का,
भाषा हजारों जन कंठहार बन ,
भूल  भेद   सब  क्षेत्रवाद   का।
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


यायावर पथ निरत निरन्तर , 
ध्वजवाहक संवाहक रथ पर ,
बाधित दुर्गम कँटिल विषमतर,
संघर्षक पथ प्रतीमान  तिरंगा।
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


पार्थ  सार्थ  गांडीव  चक्रधर ,
भीमकाय बलधाम प्रलयंकर,
महाकाल  भोले  शिव शंकर ,
बन महाशक्ति है रिपु संहारक।
मान शान और आन  हमारा
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


शील  त्याग  गुण  कर्म   समन्वित,
तज निज सुख परहित मन सिंचित, 
समता ममता  नारी  शक्ति  पूजित,
मुस्कान  खिले जनता  मुख न्यारा।
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


महके  खुशबू  लोकतंत्र  का ,
चलें साथ मिल जनमन सारा,
रहे एक निरपेक्ष स्वराज्य यह,
हो भारत भाल  तिरंगा प्यारा। 
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


सब  धर्मों का   मान सरोवर,
सद्भावन समरस भावुकतर,
महाशक्ति  पौरुष यश निर्मल,
चल संविधान निर्माण हमारा।
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


सुनीति प्रीति नित रीति पथिक ,
हो  नीरोग  भारत  जन  सारा ,
सदा मनोरम प्रकृति  चराचर ,
सुष्मित कुसमित चमन हमारा ।
है  ध्वजा वतन  तिरंगा प्यारा... 


विश्व विजेता प्रतिमानक यह ,
विश्वशान्ति सम्वाहक अविरत,
मीत प्रीत नवनीत गीत विश्व में,
मानक धारक जनन्याय प्रदाता।
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


जनगण मन अधिनायक भारत ,
नहीं चलेगी  द्रोह गद्दार शरारत,
नित शत्रु नाश संबल सैनिक बल,
हरित  भरित भू  शस्य  श्यामला।
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


नित आन  बान सम्मान तिरंगा ,
लोकतंत्र   का  सरनाज़  तिरंगा , 
प्रगति शान्ति सुख सारी खुशियाँ ,
मनभावन  पावन  वतन  तिरंगा।
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


शिक्षित  दीक्षित  युवा देश यह ,
विज्ञानी   सामाजिक   सुदृढतर,
सकल कला संकुल संस्कृतियाँ,
एक वतन ध्वज लहराए तिरंगा। 
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


जय जय जय हो देश हमारा ,
मंगल दायक शत्रु  विनाशक ,
अमर रहे आजाद वतन का ,
सबसे  न्यारा है भारत प्यारा।
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


नमन करें सादर विनीत मन ,
बलिदानी जो आज़ाद वतन ,
है कृतज्ञ  जनता मानस नत ,
गणतंत्र विश्व लहराए तिरंगा।
है  ध्वजा वतन तिरंगा प्यारा... 


 


निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार
अनुशासन मांग रहा गणतंत्र


  रक्तो की इन होली में ,
  गुंडों की इन टोली में।
  थर थर कांप रही जनतंत्र,
   अनुशासन मांग रहा गणतंत्र।


  गांधी को गाली मिलती है,
  गुंडों को ताली मिलती है।
  नष्ट भ्रष्ट सरकारी तंत्र,
  अनुशासन मांग रहा गणतंत्र।


  लुट हत्या होती नित दिन,
   गरीबों की घर रोती है।
   मौन खड़ा है नौकर तंत्र,
   अनुशासन मांग रहा गणतंत्र।


   धर्मो के नाम पर देखो,
   दंगा नित दिन होती है।
  मानों हम सब है परतंत्र 
  अनुशासन मांग रहा गणतंत्र।


 कहें निकेश जल रही है,
 स्वार्थ में हमारा देश।
 राग आलापे झठा मंत्र ,
 अनुशासन मांग रहा गणतंत्र।
               


रचनाकार मिथिलेश जायसवाल
पता भज्जापुरवा बहराइच यूपी
9918552285



26 जनवरी गणतंत्र दिवस
शीर्षक गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता


देश भक्ति में हरदम रमा कीजिए
 आई 26 जनवरी बड़े गर्व की
 मातृभूमि को शत-शत नमन कीजिए


 है हमारे यहां देशभक्ति में सब
 झूमते हैं यहां अपनी मस्ती में सब
 खेतों में है किसान सीमा पे है जवान
 इन जवानों को अपनी दुआ दीजिए


 आया पावन त्यौहार लाया खुशियां हजार
 आओ मिलकर करें देशभक्ति जयकार
 पर नहीं भूले अपने जवानों की माँ
उन जवानों की मां को नमन कीजिए 


थी गुलामी यहां हो रहा था दमन
 अत्याचारी बढ़ी रो रहा था वतन
 भारती मां का आंचल भी भीगा हुआ
 भारती मां को शत-शत नमन कीजिए 


दौर आए आजादी का यह सोचकर
 मंगल पांडे सुभाष और भगत आ गए 
खुद चढ़े फांसी तब है आजादी मिली 
उन शहीदों को शत शत नमन कीजिए !


गणतंत्र दिवस प्रतियोगिता...
नाम : गीता चौबे "गूँज"
पता : ग्रीन गार्डेन अपार्टमेन्ट, हेसाग, हटिया, राँची, झारखंड 


देशभक्ति
*******
यहीं पैदा हुए हैं हम, यही धरती हमारी है।
ये अपनी मातृभूमि तो, सारे जग से न्यारी है।
चलो ऐलान करते हैं, हम भारत के दुश्मन से ,
नज़र डालो नहीं इसपे, अगर जो जान प्यारी है।


बड़े जुल्मों सितम सह के, यह आजादी है पायी।
बड़ा बलिदान देकर ही, खुशी की यह घड़ी आयी।
इसे जाने नहीं देंगे, चलो हम यह शपथ लेते,
अरे हम जां लुटा देंगे, जरा सी आंच भी आयी।


यदि कोई दोस्ती चाहे, हमें हर दोस्त प्यारा है।
पर हो खोट नीयत में उसे चुन चुन के मारा है।
सदा शांति के पोषक हैं, किसी से यूँ नहीं उलझें,
चुप भी रह नहीं सकते यदि किसी ने ललकारा है।
               
अंजली मौर्या
लखीमपुर खीरी
           
     "हिंदुस्तान हमारा है"


सारे मुल्कों  से प्यारा है,
हिंदुस्तान हमारा है |
हम जिस देश में रहते हैं,
उसी को भारत कहते हैं|
सारे मुल्कों से प्यारा है,
हिंदुस्तान हमारा है |
यहां हिंदू -मुस्लिम ,सिख -ईसाई,
मिलकर रहते भाई -भाई |
यहां जाति पात नहीं होता है,
भेदभाव नहीं होता है |
समता का अधिकार सिखाते हैं|
इसी को भारत कहते हैं |
सारे मुल्कों से प्यारा है,
हिंदुस्तान हमारा है |
यहां मंदिर मस्जिद है ,
और गिरिजाघर  गुरुद्वारा |
इन सबका मकसद एक है,
ईर्ष्या और द्वेष मिटाना |
नेकी करना  सिखाता है |
इसी को भारत कहते हैं | 
सारे मुल्कों से प्यारा है ,
हिंदुस्तान हमारा है |
यहां पूरब से पश्चिम ,
और उत्तर से दक्षिण |                   
यहां विभिन्न संस्कृतिया हैं ,
और विभिन्न भाषाएं हैं |
अनेकता में एकता सिखाता है |
इसी को भारत कहते हैं |
सारे मुल्कों से प्यारा है ,
हिंदुस्तान हमारा है |
यहां गंगा यमुना सी,
नदियां बहती कल कल |
यहां खड़ा हिमालय है ,
प्रहरी बनकर हर -पल |
मिलकर रहना सिखाते हैं |
इसी को भारत कहते हैं |
सारे मुल्कों से प्यारा है ,      
हिंदुस्तान हमारा है |


 


रेनू द्विवेदी"
   लखनऊ
"गीत"


भाँति-भाँति के त्योहारों से,
सुरभित देश हमारा है।
नीला अम्बर धानी धरती,
भारत सबसे न्यारा है।


बलिदानी यह पावन मिट्टी,
नव उमंग नित भरती है।
कण-कण में है शौर्य-पराक्रम,
वीरों की यह धरती है


सारी धरा प्रकाशित इससे,
नभ का यह ध्रुव तारा है।
नीला अम्बर--------


विविध रूप के धर्म-जाति हैं,
विविध रूप की बोली है।
सात-रंग की चूनर ओढ़े,
मौसम करे ठिठोली है।


मोक्षदायिनी माँ गंगा की,
अविरल बहती धारा है।
नीला अम्बर---------


वेदों की बहुमूल्य ऋचाएं,
जीवन मूल्य बतातीं हैं।
नैतिकता का पाठ पढ़ाकर
धर्म-कर्म सिखलातीं हैं।


सत्यमेव जयते के सम्मुख,
विश्व समूचा हारा है।
नीला अम्बर--------


भूमि-गर्भ अनमोल खजाना,
रक्षा कवच हिमालय है।
संस्कृति इसकी बहुत अनूठी,
हर घर यँहा शिवालय है।


पावन इस धरती पर प्रभु ने,
सुन्दर स्वर्ग उतारा है।
नीला अम्बर-----------


सर्व-प्रथम भारत दर्शन कर,
धन्य-धन्य सूरज होता।
किरणों का उपहार भेंट कर,
बीज ख़ुशी के नित बोता।


देव नमन भी करतें झुककर
अद्भुत यहाँ नजारा है।
नीला अम्बर-----------


 


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा.. गीत नैन नयन ने नयनसे कही

 


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा..


गीत
नैन
नयन ने नयनसे कही, नयनन की बतियाँ ,
जब से हैँनैन मिले , कटे नही रतियाँ,


नैना अब तरसते हैं ,नेह सँग बरसते हैँ,
नयनन में आस जागी ,प्रेम धुन अँग लागी ,


अब तो आओ साँवरे ,नैन हुये बाँवरे ,
अँसुवन की धारा बहे,नयन की राह रे ,


अब जो ना आये प्रिय ,नैन हठ ले लेँगे,
व्याकुल हो नयन मोरे,पलके न खोलेँगे ,


नयनोँ संग नयनोँ नेँ ,हठ ये लगाई है ,
आन मिलो  प्रियतम जी ,बैरी जुदाई है ,


नृत्य करे नयना मोरे ,शुभ घड़ी आई है ,
प्रिय के आने की खबर , अब बहार छाई है ,


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा..


सुनील कुमार गुप्ता ठहर कर कुछ पल

कविता:-
     *"ठहर कर कुछ पल"*
"ठहर कर कुछ पल जीवन में,
साथी सोचते-
इस जीवन में।
मैं-ही-मैं संग यहाँ साथी,
कितना-मिलेगा संग-
इस जीवन में।
छोड़ कर मैं कुछ पल को,
चलते संग जो साथी-
इस जीवन में।
पा लेते अपनत्व का सुख,
अपनो से-
इस जीवन में।
महक उठती जीवन- बगिया,
गुनगुनाते गीत खुशी के-
इस जीवन में।
त्याग कर सुख अपना कुछ पल,
देते सुख अपनो को-
इस जीवन में।
ठहर कर कुछ पल जीवन में,
साथी सोचते-
इस जीवन मे।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः        27-01-2020


राजेंद्र रायपुरी।।  धोना पड़ेगा पाप को  

 


राजेंद्र रायपुरी।।


 धोना पड़ेगा पाप को  


हैरान    हूँ     ये    देखकर।
  हड़ताल  होती   देश   भर।
    जो देश ख़ातिर कुछ किया।
      इनको  लगे  क्यूँ  उससे डर।


है कुछ  समझ  में  आ रहा।
  क्यों  शूल   बोया  जा  रहा।
    जो  देश  हित कुछ कर रहा,
      इनको  नहीं   क्यूँ  भा  रहा।


इनको   सताए   डर   यही।
  फिर  लौट  आए  मत  यही।
    हैं   इसलिए   कहते   गलत,
      जो  बात  बिल्कुल  है  सही।


सोची  ये  समझी   चाल  है।
  इस  देश  में  जो  बवाल  है।
    जिसका न होना अहित कुछ,
      गुस्से  में   वो   ही   लाल  है।


होगा    समझना    आपको।
  इस  बेवजह  के  प्रलाप को।
    अब भी न  समझे  आप  तो।
      धोना    पड़ेगा    पाप    को।


             ।।राजेंद्र रायपुरी।


शिवानी मिश्रा प्रयागराज भविष्य(कविता)

शिवानी मिश्रा
प्रयागराज


भविष्य(कविता)


जब मैं आगे बढ़ने के लिये
कदम उठता,
क्यों,वह मुझे पीछे
खींच ले जाता है,
मैं स्थिर हो जाता हूँ,
आगे मेरा भविष्य खड़ा है,
पीछे मेरी यादें हैं,
किधर बढ़ाऊ कदम मैं अपने
दुविधा ये भारी है,
आगे है आग का दरिया
पीछे बचपन की यादें
कैसे छोड़ू साथ मैं इनका
आगे दुनियादारी है,
अगर समझना है सच को
तो आगे बढ़ना ही होगा,
छोड़ के अपने जज्बातो को
मैं निकल पड़ा हूँ, बढ़ने को,
हाथ बढ़ाओ और
मुझे थाम लो,मैं
विचलित प्राणी ठहरा।



शिवानी मिश्रा
प्रयागराज


कालिका प्रसाद सेमवाल भूल मुझसे हुई,प्यार तुझसे हुआ

कालिका प्रसाद सेमवाल


भूल मुझसे हुई,प्यार तुझसे हुआ
**************  
पास रहतीं न तुम दीप जलाता न यों
प्राण , रहतीं न तुम प्यार पलता न यों।


रीति उनकी रही प्रीति जिसने न की,
प्रीति उसकी रही रीति जिनसे न की,
स्वप्न उसके हुए नींद जिसकी रही,
गीत उसके हुए नीति जिसने न की।


काश, मेरे नयन में समाती न तुम,
दूर रहतीं अगर प्राण जलता न यों।


भाव यों ही रहे स्वप्न बनते गये,
दूर मंजिल रही पांव चलते गये,
शूल से थीं डगर, प्राण !मेरी भरीं,
पांव छिलते रहे , अश्रु ढलते गये।


लघु प्रणय की तरी छोड़ जाती न तुम,
चक्र खाते भंवर बीच फंसता न यों।


हर कली को रहा मुस्कराना सदा,
हर कली को प्रणय कर बुलाता सदा,
भूल मुझसे हुई, प्यार तुझसे हुआ,
ध्येय जिसका रहा उर जलाना सदा।


व्यर्थ के गान यह आज़ बनते न यों,
सोच तुमको सदा अश्रु ढलता न यों।
********************
 कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


गणतंत्र दिवस बधाई संदेश सौरभ कुमार मिश्रा मंत्री उ0प्र0 प्राथमिक शिक्षक संघ धौरहरा लखीमपुर खीरी ।।

71वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !*
💐💐🇮🇳🇮🇳🙏🏻🙏🏻😊😊


 *आज देश की वर्तमान परिस्थितियों में सिर्फ एक ही सशक्त माध्यम है , जिसका विवेकपूर्ण अनुपालन आवश्यक है--- और वह है हमारा संविधान जो हमे एक सम्पूर्ण गणतंत्र बनाता है...🙏🏻🙏🏻🇮🇳🇮🇳*


*71वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित*💐💐🇮🇳🇮🇳🙏🏻🙏🏻😊😊


आपका अभिन्न...🙏🏻🇮🇳😊
*सौरभ कुमार मिश्रा*
                *मंत्री*
*उ0प्र0 प्राथमिक शिक्षक संघ धौरहरा*
लखीमपुर खीरी ।।


इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव अम्बर सीतापुर गणतंत्र दिवस पर विशेष: *'कुकुरमुत्ता और गुलाब'*

इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव अम्बर सीतापुर गणतंत्र दिवस पर विशेष:
*'कुकुरमुत्ता और गुलाब'*


कुकुरमुत्ता और गुलाब 
अलग-अलग हैं उनके जॉब
खुशबू के साथ के काँटें  
इसी गुलाब ने हैं बाँटे
महककर चुभा देता हर बार
समूचे बदन को कर देता तार-तार
छलता है कभी बोलकर हे राम!
किन्तु है अंतर में लाल सलाम
पच्छिम जा ले आया सभ्यता नयी
बढ़ाया कद पर खुशबू तो गयी
असलियत जानते हैं बस ग्रंथी
कमीनेपन में हो गया कामपंथी
डाल पर इतराता
बगीचे में बरगलाता
पहना बन्द गले का जो कोट
चाहता चम्पाकली का वोट
बाँध कर गले में मफलर 
खुद तो कहता है सेक्युलर
चुभाता अनगिनत खार
बस यही है तेरा प्यार
जाति के नाम पर माँग मत भीख
कुकुरमुत्ते ने दी उसको अच्छी सीख
बना सबको बेवकूफ गुलाब छा गया 
पर कुकुरमुत्ते पर अनायास ही ताव खा गया
बोला क्यों उलझ रहा है बिन बात
कुकुरमुत्ते! क्या है तेरी औकात?
एक पल में धो दूँगा
देख ले काँटे फाड़कर रख दूँगा
बोला कुकुरमुत्ता उसकी ओर घूम
अकेला मत समझना मैं हूँ अब मशरूम
कितने भी तू कर ले जतन 
निकाल आँखें लग जाऊँगा बनकर 'बटन'
उधर देख मेरी टॉक्सिक लुगाई
पल में तेरे प्राण ले लेगी भाई
तू मुझे चाहकर भी खत्म नहीं कर पाता
क्योंकि अब मैं भी हूँ उगाया जाता
इसलिए अब राष्ट्रवाद की ही सह
देशद्रोही मत बन औकात में रह!


--इंजी0 अम्बर


शाश्वत अभिषेक मिश्र कटाये सर जिन्होंने हैं

गणतंत्र दिवस की अशेष शुभकामनाओं के साथ


शाश्वत अभिषेक मिश्र


कटाये सर जिन्होंने हैं वतन की शान की खातिर,
लुटाया है सभी कुछ धर्म व ईमान की खातिर,
मेरी कविता मेरी ग़ज़लें उन्हीं को ही समर्पित है,
कभी मैं कुछ नहीं लिखता किसी इंसान की खातिर।
~शाश्वत अभिषेक मिश्र


प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र गीत-प्रीति न कीजिए है अदावत बहुत

प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र


गीत-प्रीति न कीजिए है अदावत बहुत



प्रीति न कीजिए,है अदावत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।
*
मुख में अमृत है,दिल में ज़हर जो भरा।
खोट वाले हैं मिलते,न मिलता खरा।
अब कहीं नहिं मिलेगी शराफत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-01
*
आज मिलते बहुत जो दग़ाबाज़ हैं।
काक हैं गिद्ध हैं वो कहें बाज़ हैं।
आचरण से कहें है शिकायत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-02
*
जो मिले लूट लें,ऐसे बटमार हैं।
कालनेमि के वो तो कि अवतार हैं।
नहिं करे छलियों से हम शराफत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-03


मो.09589349070


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