हमीद कानपुरी
विषय - एकता
विधा- दोहा
बात एकता की करें , बोते पर बिखराव।
पल पल बढ़ता जा रहा , हर सू यूँ टकराव।
सिर्फ सियासत के सबब,नफरत वाले भाव।
जनता कब है चाहती , आपस में टकराव।
हमीद कानपुरी
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
हमीद कानपुरी
विषय - एकता
विधा- दोहा
बात एकता की करें , बोते पर बिखराव।
पल पल बढ़ता जा रहा , हर सू यूँ टकराव।
सिर्फ सियासत के सबब,नफरत वाले भाव।
जनता कब है चाहती , आपस में टकराव।
हमीद कानपुरी
सुरता
आवत हे अवईया ह
जावत हे जवईया ह
बाचे हे कहईया ह
सुनत हे सुनईया ह
समय के चक्का ह चलत रहिथे
जवईया के संगी
सिरिफ सुरता ह रहिथे
बऊसला म छोल छोल के
ददा बनावय गिल्ली भौरा
लईका पन के सुरता आथे
मिल के खेलन भौरा बाटी
अडबड़ मजा आवय संगी
जब भौरा मारय भन्नाटी
आवत हे अवईया ह
जावत हे जवइया ह
बाचे हे कहईया ह
सुनत हे सुनईया ह
समय के चक्का ह चलत रहिथे
जवईया के संगी
सिरीफ सुरता ह रहिथे
बड़े बिहनिया ले गोबर कचरा म
हाथ गोड सनाये
नानकुन परछी म
बछरू गरवा बंधाये
कांख कांख के चूल्हा फुंकई
माटी के बरतन भड़वा
बोचकु टुरा के डबरा छिंचई
धरे ओहर बाम्बी डड़वा
आवत हे अवइया ह
जावत हे जवईया ह
बाचे हे कहईया ह
सुनत हे सुनईया ह
समय के चक्का ह चलत रहिथे
जवईया के संगी
सीरिफ सुरता ह रहिथे
एक फूल कभी, दो बार नहीं खिलता
ये जनम, बार बार नहीं मिलता
जिन्दगी में मिल जाते है हजारों लोग
मगर सुनहरा पल, बार बार नहीं मिलता है
नूतन लाल साहू
देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सीतापुर-उत्तर प्रदेश
दीपक ----------------------------
पैदा स्वभाव ऐसा कर लो , जैसे दीपक का होता है
हो महलों या झोपड़ियों में , रोशनी भेद न करता है
रोज रोज वो जल करके, आलोकित जग को करता है
पर नहीं किसी से जीवन में, वो लेश मात्र भी जलता है
समता स्वतन्त्रता कारण ही, वो विश्व विभूषित होता है
नित ईर्ष्या से दूरी रखके , वो घर घर पूजा जाता है
जो जीवन में निज के उर का , जला दीप ना पाया है
वो अज्ञान अंधेरे में पड़कर , कर देता जीवन जाया है
न झुकता दीपक पैसों से , न ही तोप और तलवारों से
'निडर' भाव से लड़ जाता, वितान हुए अंधियारों से
साहस तो देखो दीपक का , जो तम से लड़ता रहता है
नहीं डालता हथियारों को जब तक वो ज़िन्दा रहता है
अपने जीवन में जो मानव इक दीप नहीं बन सकता है
विश्वास मानिए मेरा भी , वो मनुज नहीं बन सकता है
राजेन्द्र शर्मा राही
गजल
शान है मेरी तिरंगा मत इसे कपड़ा समझना
ताक में दुश्मन खड़ा हैे मत कभी पलकें झपकना
मुश्किलों से मिल सकी है देश को आजाद धरती
अब नहीं स्वच्छंदता से मंच पर फूहड़ मटकना
ये धरा है ऋषि मुनी की तप तपोबल से भरी है
छोड़ तो तुम अब नशे को मत कभी पीना बहकना
काट डाले पेड़ वन के यह धरा विकसित बनाने
अब कहां है डाली पर वो पक्षी का उड़ना चहकना
अब नदी नाले भरे हैं अपनी डाली गंदगी से
अब कहां वो बाग जिसमें फूल का खिलकर महकना
पाप की हर कामना को आज से अब से भगा दो
देशहित में नित जियो यह बात ढंग से सब समझना
मत जगाओ बाल मन में काम कुत्सित कामनायें
देख सुन बिगड़े युवा अब मंच पर कैसा मटकना
अब चलो हम उठ खड़े हों राष्ट्र की इस वंदना में
बात राही कह रहा हैं सोचना ढंग से समझना
राजेन्द्र शर्मा राही
*नयन*
****************
नयन कजरारे जाते जाते
कह गए कुछ ऐसी बात।
दिल में हलचल मची है मेरे
चेन न आये अब दिन रात ।
मृगनयनी है वो तो देखो
नयन करें उसके मदहोश ।
उन नयनों में डूब जाऊँ मैं
रहे न अब मुझे कोई होश ।
कमल नयन हैं उसके यारो
मन्द -मन्द मुस्काये वो ।
गहराई मैं नाप रहा हूँ
कितना और डुबोएँगे वो ।
कभी नयन जो छलके उनके
उनमें नहाया करता हूँ ।
मन ही मन मैं करूँ प्यार
पर व्यक्त नहीं कर पाता हूँ ।
स्व रचित
🌹🙏 सुलोचना परमार🙏🌹
शेर की कविताए...
रक्त शिराओ मे भर लेना
ज्वाला तुम सम्मान का।
कर्ज चुकाना है भारत के
वीरो के बलिदान का ।
भगवा और तिरंगा दोनो,
साथ चले तो क्या होगा ।
धर्म राष्ट्र का मूल मंत्र तो,
पीढी को देना होगा ।
शेर सिंह सर्राफ
नीलम जैन
बाड़मेर राजस्थान
बेबस व्याकुल द्वार खड़ी मैं,
जाने कब से राह निहारुं।
जब से तुम आने का कह गए,
दहलीज पर तांक रही हूं ।।
भोर उजाले आते औं जाते
दिन भर की थकान उतारुं।
चैन सुकून को परोस प्यार से,
सुख की चादर बिछा रही हूं।।
सांझ की लाली चटक रही हैं,
रात के सितारें नगमें जड़ाऊं।
ख्वाबों की बेला इत्र सी महके
कस्तूरी सुगंध फैला रही हूं।।
बेबस व्याकुल द्वार खड़ी मैं,
जाने कब से राह निहारुं।
कान्हा की मुरली मन को मोहे,
मन की ज्योत जला रही हूं।।
**************
*नीलम जैन🌹*
*बाड़मेर राजस्थान*
*चलते-चलते:0127*
*⚜ मेरा गाँव ⚜*
(धाराप्रवाह गीत)
*ये देश धरा की माटी का।*
*ये भारत की परिपाटी का।।*
*ये संस्कार का दर्पण है।*
*ये पावन पुण्य समर्पण है।।*
*ये धरती सोंधी मिट्टी की।*
*ये धरती चोखा लिट्टी की।।*
*ये खेत और खलिहानों की।*
*ये धरती है अरमानों की।।*
*ये मेघों की आशा है।*
*ये जीवन की परिभाषा है।।*
*ये संघर्षों की धरनी है।*
*ये आदर्शों की जननी है।।*
*ये नंग धड़ंगे बच्चों की।*
*ये अन्तर्मन के सच्चों की।।*
*ये धरती है हल वालों की।*
*ये धरती बाल गोपालों की।।*
*ये चाचा ताऊ भईया की।*
*ये जीवन नाव खेवईया की।।*
*ये मस्जिद और शिवालों की।*
*ये धरती मेहनत वालों की।।*
*ये धरती का रंग धानी है।*
*ये इन आँखों का पानी है।।*
*ये मेघों से आस लगाती है।*
*ये नेह से सींची जाती है।।*
*ये टूटी फूटी राहों की।*
*ये मेहनतकश के बाहों की।।*
*ये पुण्य धरा का वंदन है।*
*ये सचमुच छुधानिकंदन है।।*
*ये धरती भाव अभावों की।*
*ये धरती अपने गाँवों की।।*
सर्वाधिकार सुरक्षित
*🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई*
डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज' दोहा मुक्तक
दाँव-पेंच अब छोड़ दो,करो न थोथे काम।
मिट जायेगा इस तरह, नहीं चलेगा नाम।
उम्र बीतने तलक अभी,गर नहिं आया होश,
'सहज' यकीनन तय शुदा, मानो काम तमाम।
@डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
अधिवक्ता/साहित्यकार
श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी
हिन्दी ओज कविता-अभिनन्दन बना लेंगे |
मिट्टी वतन सिर माथे चन्दन बना लेंगे |
ऊंचा तिरंगा भारत सदा वंदन बना लेंगे |
रंगी शहीदो खून आजादी नमन उनको |
कुर्बानी शहीदों हम वचन बंधन बना लेंगे|
आजाद भारत आ पहुंचा किस मुकाम तक |
बिगड़े हालात इसे ब्रिज नन्दन बना लेंगे |
लाख तूफानो बुनियाद कोई हिला न सका |
हर वीर जवानो हिन्द अभिनन्दन बना लेंगे |
चाल चलता दुशमन मगर पार पाता नहीं |
मोदी अमित डोभरवाल दुश्मन क्रंदन बना लेंगे |
जड़े जमी भारत जमीन पाताल हिलाना मुश्किल |
पहरेदार ऊंचा हिमालय दीवार वतन बना लेंगे |
है हर खासो आम दीवाना हिन्द का बहुत |
मिल सब दुशमनों वतन दुख भंजन बना लेंगे |
श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,
मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286
*चमक नहीं रोशनी चाहिये।।।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*
वही अपनी संस्कार संस्कृति
यहाँ पुनः बुलाईये।
वही स्नेह प्रेम की भावना फिर
यहाँ लेकर आईये।।
हो उसी आदर आशीर्वाद का
यहाँ बोल बाला।
हमें चमक ही चमक नहीं
यहाँ रोशनी चाहिये।।
*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।
सरगोशी सरगर्मियां सब शान्त हो जायेंगे
देशभक्ति राष्ट्रहित सब शान्त हो जायेंगे
ये सूरज भी यहाँ अब कल की तैयारी में है
जोश और जूनून हर शब्द शान्त हो जायेंगे
तारीख अपने कैलेंडर को समय से पलट दे
इतिहास में बहे वो खून भी शान्त हो जायेंगे
तुम पलटते रहना अखबार का पन्ना धीरे-धीरे
एक दिन ये देश के हालात भी शान्त हो जायेंगे
तुम्हें बक-बक पसन्द नहीं तो कोई बात नहीं
एक दिन आयेगा मेरे कलम शान्त हो जायेंगे
चिल्लाना आखिर नहीं पड़ेगा मुझे भी कभी
चाहतें एकता की एक दिन शान्त हो जायेंगे
Priya singh
शेर
कह दीजिये पैमाने से हम फूल की शबनम हैं।
पानी की तरह कभी भी तुझमें मिल नही पाएंगे।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
प्रीत
दिनाँक 27/ 1/ 2020
प्रीत की रीत निभाये कान्हा
वृंदावन में छाए कान्हा
बैठ कदम्ब की छांव में
बंसी की तान सुनाए कान्हा।
सुध बुध खोए राधा रानी
सपनो में भी बस आये कान्हा ।
गोपिन जब पनघट पे जाए
रास की रीत दिखाए कान्हा ।
कर्म योग का उपदेश दिया जब
भूल गए वृंदावन कान्हा ।
भूले बंसी भूले कदम्ब को
सुदर्शन चक्र धारे कान्हा ।
मीरा ने भरा भक्ति का प्याला
राधा ने भी प्रीत निभाई कान्हा
द्रौपदी के बन कर सखा फिर
तुमने लाज बचाई कान्हा।
दिया गीता का ज्ञान जब तुमने
विरक्ति मन में जगाई कान्हा ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
या खुदा मुझे भी एक कफन दे दे ,
मर सकूँ वतन के वास्ते कसम दे दे ,
न मेरे मरने का गम हो किसी को जरा भी ,
न तनिक किसी की रूह काँपे ,
मुझे तो मेरा वतन बस आजाद दे दे ,
कैलाश , दुबे ,
गम्भीर होकर बस बिलखती रही जिन्दगी
किताबों के पन्नो सी पलटती रही जिन्दगी
शब्दों ने इसमें मिलकर चरित्र बना डाला
एक ही किताब में सिमटती रही जिन्दगी
किस्से कहानियाँ सब इकठ्ठा तो है इसमें
कई पयाम देकर भटकती रही जिन्दगी
गेसुओं की दरकार नहीं इस बेनज़ीर को
इश्क के इब्तिदा में उलझती रही जिन्दगी
काँच के टुकड़ों पर कारीगरी दिखाती वह
इबादत के शाख से बिखरती रही जिन्दगी
अल्लाह, बेदाद करती है मेरी मासूम सी जां
मुक़द्दर के आस में निखरती रही जिन्दगी
पयाम:-संदेश
इब्तिदा :- आरम्भ/अनुष्ठान
इबादत:- पूजा
बेदाद:-अन्याय /अत्याचार
मुकददर:- किस्मत
Priya singh
आकर चारि लाख चौरासी।
जाति जीव जल थल नभ बासी।।
सीय राम मय सब जग जानी।
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।
।श्रीरामचरितमानस।
चार प्रकार के जीव चौरासी लाख योनियों में जल,पृथ्वी और आकाश में रहते हैं।सम्पूर्ण विश्व को श्रीसीताराममय जानकर मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
उत्पत्ति के स्थान,मार्ग व प्रकार के आधार पर जीव चार प्रकार के होते हैं।
1--जरायुज अथवा योनिज---
मृगादि पशु,दोनों ओर दाँत वाले व्याल,राक्षस,पिशाच और मनुष्य आदि जरायुज अथवा योनिज कहलाते हैं क्योंकि ये सभी जरायु अर्थात झिल्ली में बन्द योनि मार्ग से जन्म लेते हैं।
2--अण्डज---
विभिन्न प्रकार के पक्षी, सर्प,घड़ियाल,मछली, कछुआ आदि अण्डज हैं क्योंकि ये सभी अण्डे से पैदा होते हैं।इनमें जलचर व थलचर दोनों प्रकार के जीव होते हैं।
3--स्वेदज-- स्वेद अर्थात पसीना।
जो पसीना और गर्मी से उत्पन्न होते हैं उन्हें स्वेदज कहते हैं जैसे जुआँ,चीलर,मच्छर, मक्खी, खटमल,डांस आदि।
4--उद्भिज--
बीजों अथवा शाखाओं से उत्पन्न होने वाले स्थावर उद्भिज कहलाते हैं जैसे विभिन्न प्रकार के वृक्ष, लताएँ, वनस्पतियां आदि।इनके भी कई प्रकार होते हैं जैसे विभिन्न प्रकार के फल और फूल।जिनमें फूल और फल दोनों होते हैं और फल पक जाने पर जिनका नाश हो जाता है उन्हें औषधि कहते हैं।जिनमें फूल नहीं होता है और केवल फल होता है, उन्हें वनस्पति कहते हैं।जिनका अस्तित्व फल और फूल देकर भी बना रहता है उन्हें वृक्ष कहते हैं।मूल या जड़ से ही जिनकी लताएँ पैदा होती हैं और जिनमें शाखा नहीं होती हैं उन्हें गुच्छ कहते हैं।एक ही मूल से जहाँ बहुत से पौधे उत्पन्न होते हैं उन्हें गुल्म कहते हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
युवा दिलो की धड़कन नवल सुधांशु श्रंगार कवि
लखीमपुर खीरी
रात का है पक्ष भारी उल्लुओं के गांव में।
सूर्य जब धुंधला दिखा
नाखून सन्ध्या पर गड़ाए
चन्द्रमा के हर ग्रहण पर
इन्होंने उत्सव मनाए
किन्तु फिर भी अमावस ने ला दबोचा दांव में।
रात का है पक्ष भारी उल्लुओं के गांव में।
नयन पर पट्टी बंधाये
जुगनुओं की चाल ढूंढें
रात कुछ तोते प्रवक्ता
उल्लुओं की डाल ढूंढें
कोयलों का स्वर मिला है काग की हर कांव में।
रात का है पक्ष भारी उल्लुओं के गांव में।
बिना देखे एक कौवा
कर रहा था मन्त्रणा
अप्रकाशित क्षेत्र को थी
काटने की योजना
देख पहली किरण भागे भूत बांधे पांव में।
रात का है पक्ष भारी उल्लुओं के गांव में।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
सीतापुर- उत्तर प्रदेश
बसंत अभिनन्दन
ऋतुराज बसंत को कोटि प्रणाम हैं।
प्रकृति बदल रही अपने आयाम हैं।
भीनी महक़ चहुँओर फ़ैल रही हैं।
मदमस्त नायिकाएँ टहल रही हैं।
हर वातावरण सुगंधित हो रहा हैं।
दृश्य देख जहाँ अनंदित हो रहा हैं।
प्यारे लगे ये सरसों के फूल हैं।
फ़िज़ा में उड़ती संझा की धूल हैं।
मनोरम छवियाँ चहुँओर दिखती हैं।
हर जगह नेह कहानियां लिखती हैं।
पवन बसंती हिचकोले भरती हैं।
सबको छूकर मनमानी करती हैं।
बागों में कोयल की मधुर तान हैं।
सबसे सुंदर ये अपना जहांन हैं।
सुबह मनमोहक मतवाली शाम हैं।
ऋतुराज बसंत को कोटि प्रणाम हैं।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
सीतापुर- उत्तर प्रदेश
ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई
⚜बबुआ के दोहे⚜
*प्रिय प्रियतम प्रियवर प्रिये, पाहुन परम प्रवीन।*
*कृष्ण सुदामा मित्र द्वय, कौन भूप को दीन।।*
*सत्य सहज सुंदर सरल, सफल सुफल संयोग।*
*अभिलाषा श्रीकृष्ण की, मिटे भाव भय भोग।।*
*नमन नमस्ते नमस्कार, नमन नमूँ सौ बार।*
*बबुआ बस ये कामना, सुखी रहे संसार।।*
*चित चिंतन चितवन चपल, चपला चँद्र चकोर।*
*हरि इच्छा से हो निशा, हरि इच्छा से भोर।।*
*कारण कारक कर्मणा, कुदरत के कब काम।*
*जैसी मन की भावना, वैसो ही परिणाम।।*
सर्वाधिकार सुरक्षित
*🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई*
कुण्डलिया छंद
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
अभिनन्दन हैं आपका, हे! बसंत ऋतुराज।
जल्दी आप पधारिये, खूब बजे फिर साज।
खूब बजे फिर साज, अब मधुर कोयल गाये।
हर्षित सभी समाज, सदा उपवन महकाये।
कहत "अभय" कविराय, हैं हर धूल भी चन्दन।
पूजो माथ लगाय, करो इसका अभिनन्दन।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
*।।।।।।।।। विषय।।।।।।।।।।*
*रिश्ते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*
टुकड़ों टुकड़ों में न बंटे,
देश ,समाज ,हर घर।
रिश्ते नाते न भटकें कभी,
इस दर , उस दर।।
सबके भीतर जागृत हो,
संवेदनायों की अलख।
मैं बस तेरी बात करूँ,
तू मेरी बात कर।।
*रचयिता।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।*
मोब 9897071046 ।।।
8218685464 ।।।।।।।।
विचार प्यारा ये हमने भी पाल रक्खा है।
सदा हि दिल में खुदा का जमाल रक्खा है।
***
हवा के जोर से हिलता हुआ तेरा आँचल।
के दिल हमारा उसीने उछाल रक्खा है।
***
दिया नहीं है दिखाई मुझे तेरा चहरा।
हिजाब कैसा भला तूने डाल रक्खा है।
***
ली बादलों ने हवाओं से आज अंगड़ाई।
कि धड़कनों ने मेरी ए'तिदाल रक्खा है।(संतुलन)
***
तेरी अदा ने मुझे कर दिया बड़ा घायल।
उदास रात ने जीना मुहाल रक्खा है।
***
सुनीता असीम
२८/१/२०२०
*नफरत।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
क्यों हम बांटते जा रहे हैं इस,
सुन्दर से जहाँ को।
हमारी मंजिल तो कहीं और है,
हम जा रहे कहाँ को।।
नफरत के घर में मिलता नहीं,
किसी को भी सुख चैन।
प्यार बसता हो जहाँ पर,
बस हम चले वहाँ को।।
*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*
*श्री हंस।।।।बरेली।।।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।
निशा"अतुल्य"
मुश्किल है जीना
स्वार्थ भरी इस दुनिया में मुश्किल है जीना
स्वार्थी है लोग सभी,नही मिले दिल को चैना
स्वार्थ की इंतहा तो देखो बिन बात का विरोध करें
कानून है जो रखवाले तुम्हारे,उन्हीं को तुम तोड़ रहे ।
फिर कहते आजादी चाहिए, कैसी आजादी बोलो तो
जब तब बात करो गद्दारों सी,देश को देते रोज ही गाली।
कभी करते हो टुकड़े देश के कभी कट्टरता की बात करो
सोचो पहले फिर तुम बोलो सोचो तुम क्या करते हो ।
मांग रहे तुम जैसी आजादी दूजे को भी चाहिए वो ही
तुम कैसे हो दूध धुले और कैसे दूजा कट्टरपंथी ।
समझो आजादी की परिभाषा संविधान का मान करो
प्रस्तावना है संविधान की प्रतिबद्धता सर्व प्रथम राष्ट्र की एकता,अखंडता ।
नही समझे जो मर्म देश का उसका मुश्किल है जीना
प्रेम और सद्व्यवहार रखो तो हर मुश्किल आसान रहे।
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...