देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी" ........जय माता सरस्वती....

.देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


........जय माता सरस्वती...........


जय माता सरस्वती, हम हैं तेरे सन्तान।
तेरी अर्चना के नियम से,हम हैं अज्ञान।


भटकते हैंअंधकार में,नहीं हमें है ज्ञान।
तेरी कृपा सेअब,होगा हमारा कल्याण।


तेरे वीणा की आवाज़,हरे हमाराध्यान।
तेरे हाथ में पुस्तक,बढ़ाये हमारा ज्ञान।


हँस तुम्हारी सवारी,श्वेत वस्त्र परिधान।
हमें चाहिए तुमसे,बुद्धिऔर विद्यादान।


कमल आसन शोभित,दे ऐसा वरदान।
जीवन बीते'आनंद'से,करें हमगुणगान।


-----देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


सुनीता असीम अक्स आता है नज़र प्यार की परछाईं में

सुनीता असीम


अक्स आता है नज़र प्यार की परछाईं में।
दूर होते हैं गिले इश्क की गहराई में।
***
प्यार माकूल सदा  उसके लिए सिर्फ रहा।
खो गया इश्क की जो भी यहाँ रानाई में।
***
दर्द दिल का हो बेहद जियादा तब तो।
डूबने आँसू लगे शादी की शहनाई में।
***
शायरी लिखने लगे फिर तो कलम खूब मेरी।
जोर मुझको जो मिला हौंसला अफजाई में।
***
जब समाँ आया उदासी का सताती थी हवा।
चाँद देता था तपन हिज्र की पुरबाई में।
***
 सुनीता असीम
२९/१/२०२०


ममता कानुनगो इंदौर मध्यप्रदेश विधा:तांका विषय:बसंत

ममता कानुनगो इंदौर मध्यप्रदेश


विधा:तांका
मापनी:५+७+५+७+७
विषय:बसंत
मनभावन,
सुखद सुहावन,
शीत पवन,
महका उपवन,
वो आ गया बसंत।
*****************
कुके कोयल,
अंबुआ डाली पर,
गूंजे भ्रमर,
पुष्प क्यारी पर,
लो छा रहा बसंत।
****************
पीत वर्णिका,
चुनर ओढ़ धरा,
मात शारदे,
दे आशीष विद्या का,
धन्य हो ये जीवन।
****************
ममता कानुनगो इंदौर मध्यप्रदेश


डॉ0 नीलम अजमेर ऋतुराज भंवरों ने छेड़ा मधुर राग

डॉ0 नीलम अजमेर


ऋतुराज
भंवरों ने छेड़ा मधुर राग
कलियों का खोला घूंघट आज
छूआ जो पी ने हौले से गात
फूलों से महकने लगा
चमन का हर कोना आज


मौसमों का बनकर सरताज
आया आज *ऋतुराज*


पेड़ों से उतर गये जर्जर पात
झूम के शाखों ने फिर किया
नव श्रृंगार
खेतों पर छाया पीली सरसों का खुमार 


 फूलों की रंगीन दुनिया का सरताज आया आज *ऋतुराज*


लहक-लहक वन- उपवन में
मदिरामय भौरों के सुर गूंजे
पंछियों ने छेड़ी तान ,आम्र बौर महक गये
सौधी-सौंधी खुश्बू लेकर आया *ऋतुराज*


हवाओं ने छेड़ा बसंत राग
थिरका गया आँगन ,आया धूप में निखार
दिवस की सिहरन गई,
ठिठुरती रात को आया आराम


गुलाबी नरम-गरम शीत लेकर आया *ऋतुराज*


       डा.नीलम


संजय जैन (मुंबई) इंतजार है   विधा : कविता तुझे देखने का हर रोज,

संजय जैन (मुंबई)


इंतजार है  
विधा : कविता


तुझे देखने का हर रोज,  
हम इंतजार करते हैं।
दिल से हम तुम्हे बहुत,
प्यार करते है।
कल का दिन तुझे देखे,
बिना निकल गया।
अब आज हमे  तेरा,
बहुत इंतजार है ।।


आंखों से तीर छोड़ने की,
जो तेरी अदा है।
तेरी आँखों में नशा है।  
जो निगाहो से ओझल,
होकर भी उतरता नहीं।
तेरी इन्ही अदाओ पर,
कितने लोग फ़िदा है।।


दिल से मिलने की,
आज मुझे प्यास है।
तेरे हाथो से पिने की
बहुत आस है।
कुछ भी जी भरके,
हमे तुम पिला दो।
सोया हुआ अपना,
प्यार जगा दो।।


अब ये दिल तेरे बिना,
कही लगता नही।
क्योकि हर सांसो पर,
नाम जो तेरा लिखा है।
मेरे दिल में एक तूफान है,
जो तेरी आग को बुझा देगा।
कसम से कहता हूं मैं ,
की हम दोनों को प्यार है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई)
29/01/2020


निशा"अतुल्य" ऋतुराज       मनहरण घनाक्षरी छंद सरसों है खिली खिली

निशा"अतुल्य"


ऋतुराज
     
मनहरण घनाक्षरी छंद


सरसों है खिली खिली
धरा हुई पीली पीली
ऋतुराज आये अब 
खुद को संभालिये।


गन्ध मकरंद हुआ
महक चमन गया
मधुमास आया अब 
मन को मनाइये ।


भँवरे की है गुंजार 
मन वीणा है झंकार
तितली सी उड़ चलूं
सब को बताइये ।


गेंदा खिला क्यारी क्यारी
रात फैले रात रानी
मद मस्त है पवन
ऋतुराज आइये ।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


अवनीश त्रिवेदी "अभय" कुण्डलिया बसंत सुखद  सदा रहे, जड़  चेतन आनंद।

अवनीश त्रिवेदी "अभय"


कुण्डलिया


बसंत सुखद  सदा रहे, जड़  चेतन आनंद।
कविता वनिता चमक हो, रचें मनोरम छंद।
रचें  मनोरम  छंद, खूब  रस  भूषण  छाये।
सरस् बने मकरंद, हर  तरफ खुशबू  आये।
कहत "अभय" कविराय, अब मिले विरहणी कंत।
वैर   सभी   बिसराय,  मनाओ   सब  जन  बसंत।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद जयति शारदे मातु जू शारद करहु  कृपा, अघ मेटहु दूषण तमस ढ़िठाई।

प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद


जयति शारदे


मातु जू शारद करहु  कृपा, अघ मेटहु दूषण तमस ढ़िठाई।
मुद मंगल आंतर छाँव रहा।, परसै  बरसै माँ प्रभुताई।।
ज्ञान को करि आलोक हुए, पढ़ि पावौं प्रेम को आखर ढ़ाई।
आलस नींद प्रमाद हरौ, उजियार करौ देहु  नेह मिताई।।


श्वेतासन हंस वाहिनी माँ, वीणपाणि शुभदा  माई।
उछाह उमंग तरंग जिया, सरजन  मँह रखियो शुचिताई।।
देहु भगति विमल साधना प्रखर , रितम्भरा जग महामायी।
नाशहु संताप हरहु  संशय जग जननी उपजायी।।


सुपंथ गहैं शुभ काज सरैं, सोई नीति गुना जो वेद बताई।
आरूढ़ मराल को आसन ह्वै, आ दीजो ज्ञान प्रचुर माई।।
विभक्ति विभेद न द्रोह रहाय, कांखौं आखर शुभ फलदायी।
सुकंठ सुवर्ण लालित्य रम्य, शपणागत प्रखर शीश नायी।।


अज्ञान तमस की गहन कोर, आच्छादित बदरी संशय की।
देहु शब्द यथा अरु भाव गहन, वल्गाऐं थामौ प्रश्रय की।।
अर्थन को सकल निरुपण शुचि रुचि भाव व्यञ्जना आशय की।
रस राग रंग छांदस यति युति बल बुद्धि प्रबल मति निश्चय की ।।


*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


सूर्य नारायण शूर  । कर दो इतना उपकार प्रिये ।।


सूर्य नारायण शूर 


। कर दो इतना उपकार प्रिये ।।


          अभिवादन लो स्वीकार प्रिये ।
          है प्रेम का यह आधार प्रिये।
अभिवाद लो ।।।।1
          इस नये वर्ष की बेला में ।
          जीवन के तंग झमेला में ।
          कर दो इतना उपकार प्रिये ।।
अभिवाद लो ।।।।2
        उत्तर। दक्षिण  पूरब  पश्चिम ।
       तुम खुब बरसे मुझपर रिमझिम। 
       तन  मन  भीगा  इस बार प्रिये ।।
अभिवादन लो।।।।3
       तुम मिले हो जब से जीवन में ।
       तब से न निराशा   है मन में ।
       आशा का तुम हो द्वार प्रिये ।।
अभिवादन लो ।।।।


             सूर्य नारायण शूर 


🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में

 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में
बिक जाते हैं कान्हा तो केवल प्यार में


जिनके दर्शन पाने में बीतें जन्म हजारों
जप करके हार गये ऋषि मुनि मेरे यारो


वो कान्हा दौड़े आयें भक्तों की पुकार में
मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में


ग्वाल बाल संग खेल कूदके वह बड़े हुए
धर्म रक्षा के लिए सदा ही वह खड़े हुए


कैसे अवर्चनीय गुण देखो मेरे करतार में
मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में।


श्रीश्यामाय नमो नमः


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राम शर्मा परिंदा मनावर ज़िला धार मप्र

 
राम शर्मा परिंदा
मनावर ज़िला धार मप्र


मत सोचो आराम आएगा
सर्दी गई तो  घाम आएगा


शांति से परहेज़ किया तो
विश्व  में कोहराम आएगा


रावण सा जीवन बिताया
और सोचते  राम आएगा


आज दुकानें जद में आई
कल तेरा  गोदाम आएगा


आज असत्य के भाव बढ़े
सत्य का भी दाम आएगा


वश में होते दंड के दम पे
कैसे कह दे साम आएगा


ये आखिरी सूची  नहीं  है
'परिंदा' तेरा नाम आएगा


( घाम -धूप , साम-शांति )
मत सोचो
========
मत सोचो आराम आएगा
सर्दी गई तो  घाम आएगा


शांति से परहेज़ किया तो
विश्व  में कोहराम आएगा


रावण सा जीवन बिताया
और सोचते  राम आएगा


आज दुकानें जद में आई
कल तेरा  गोदाम आएगा


आज असत्य के भाव बढ़े
सत्य का भी दाम आएगा


वश में होते दंड के दम पे
कैसे कह दे साम आएगा


ये आखिरी सूची  नहीं  है
'परिंदा' तेरा नाम आएगा


( घाम -धूप , साम-शांति )
राम शर्मा परिंदा
मनावर ज़िला धार मप्र
मो 7869196304
मो 7869196304


अपना संविधान ---- ----देवेन्द्र कश्यप 'निडर'

----अपना संविधान ----
----देवेन्द्र कश्यप 'निडर'


अपने भारत का संविधान, सबकी आँखों का तारा है।
चाहे  नर  हो  या  नारी  हो, हम सबका यही सहारा है।।


अधिकार दिया इसने सबको सबको कर्तव्य बताया है
नित शिक्षित ज्ञानी होने का, सुन्दर मंतव्य सुझाया है।
हर तबके को  इंसाफ दिया,  शोषक तक इससे हारा है।।


है समता  का  सन्देश  दिया, आजादी  का परिवेश दिया।
नित प्रेम  मोहब्बत दे करके , सिखलाता  भाई  चारा  है।।


ये मानवता का पोषक है, पर नहीं किसी का शोषक है
भारत की उन्नति खातिर ही इसमें जनहित का नारा है।


हैं शब्द संयमित इसके सब, है जन जन का सम्मान यहाँ
अक्षर अक्षर में स्वाभिमान, ना प्राणी का अपमान यहाँ।
युग सृष्टा  कैसे  भारत  हो, बह रही समर्पित  धारा है।।


यह  संविधान है बतलाता , वीरों  की सुन्दरतम गाथा।
हर  अनुच्छेद  से  होता  है , भारत  का  बस ऊँचा माथा।
उजियारे  को  फैला करके उन्मूलित अब अँधियारा है।


सबको आगे  बढ़ने  का ही, अधिकार दिलाता संविधान।
नित दवा मर्ज  की बन करके , खुद आगे आता संविधान।
बस देश  विरोधी  गतिविधियां इसको अब नहीं गँवारा है।।


है सभा  संघ  भाषण  देने का,  यह देता अधिकार सदा
आने  जाने  रहने  का  भी  है अनुसूची में उल्लेख यहाँ
शोषित  पीड़ित  जनता  का , जीवन  बहुत  सँवारा है।


है लोकतन्त्र का प्रतिनिधि ये अधिकारों का भी रक्षक है।
है मजा चखाता उसको भी, जो हक़ का करता भक्षक है।
यह 'निडर'  भाव  सबमें  भरता, ये  दुनिया से भी न्यारा है।
          परिचय -
नाम देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सेवारत - बेसिक शिक्षा परिषद सीतापुर
ग्राम अल्लीपुर , पत्रालय कुर्सी तहसील  जिला सीतापुर ( उप्र )
चलभाष संख्या 9621575145


अवनीश त्रिवेदी "अभय" दोहा कंचन काया लग रही,

अवनीश त्रिवेदी "अभय"


दोहा


कंचन काया लग रही,नयनन बसत सनेह।
"अभय" नही बरनत बनें, ऐसी पावन देह।।


 


हिय हरषै जब भी  दिखे, वह मनमोहक रूप।
अमलताश सम नेत्र  हैं,  शोभित  बड़े  अनूप।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


कैलाश , दुबे , हर सख्स की निगाह तुझ पर है ,

कैलाश , दुबे ,


हर सख्स की निगाह तुझ पर है ,


पर तू देख रही है मुझे ऐ हसीं ,


ये एहसान भी तुझ पर ही है ,


ये दिल सोच कर ही देना मुझे ,


मेरा तो खाली मकान आज भी है ,


कैलाश , दुबे ,


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद स्वागतेय बसंत ऋतुराज बसंत सुखद आली,

प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद
स्वागतेय बसंत


ऋतुराज बसंत सुखद आली, मनभावन सुरभि हिय चित्त हरै।
वन बाग तड़ाग सरोवर लौं , मनभायी पुरबा  केलि करै।।
बरै पियरी सरसौं मटकै खेतन, बस अंत भयो सखी शीत कठिन,
मंजरी खुली अमराई गमक,रुचि भोर अरुणिमा उमंग भरै।।


चंचल चितवन कजरारे नयन, पूनौ आभा आरोह वयस।
पारुल पांखुरि मधुरोष्ठ रसिक, लखि पिघला तिल तिल ह्रदय अयस।।
नखशिख भूषण अरुणाभ चिबुक, मतवारी  अंगना  बृजवारी,
झीनो घूँघट गजगामिनि तिय, प्रखर प्रेम उत्पल कसकस।।


 


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली विधाः दोहा छन्दः मात्रिक शीर्षकः रखो लाज हर चीर

कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
विधाः दोहा छन्दः मात्रिक
शीर्षकः रखो लाज हर चीर
नमक  हरामी  से  डरे , भरी  सभा  में  भीष्म।
दुश्शासन  ने हाथ  से , खींच  रहा  था  जिस्म।।१।।
बेची  ख़ुद  की  इज्जतें , पति  दुश्मन के हाथ।
बलशाली    नामर्द  थे , मिला  मीत  का साथ।।२।।
सत्ता  के  बन   लालची , बन  अंधा  नृप मौन।
व्यभिचारी  कामी  खली ,लाज  बचाए   कौन।।३।।
सब गुरुता कृप द्रोण का ,बल वैभव अस्तित्व।
नतमस्तक था नमक का, गुनहगार  व्यक्तित्व।।४।।
पड़ा कुसंगति दानवीर , ठोक  रहा  था जाँघ।
बुला   रहा   था   द्रौपदी , मर्यादा  को   लाँघ।।५।।
याज्ञसेनि   थी  चीखती , दुश्शासन तज चीर।
बचा रही  निज अस्मिता ,आकुल सहती पीर।।६।।
शिथिल पड़ा गांडीव धनु,लानत था दिव्यास्त्र।
सत्तर गजबल व्यर्थ था ,धर्मराज सब   शास्त्र।।७।।
लोभ मोह ईर्ष्या कपट, फँसे पाश  सब  लोग।
राजनीति  चौसर  तले , खल  कामी    दुर्योग।।८।।
लानत थी उस शक्ति को,अंधी थी जो   भक्ति।
देख रहे  सब  चीरहरण, भातृप्रेम     अनुरक्ति।।९।।
मानवता  लज्जि़त  हुई ,लखि   नारी अपमान।
भरी  सभा  नैतिक    पतन , अट्टहास   शैतान।।१०।।
विदुरनीति थी सिसकती , दुष्कर्मी   कृत  पाप।
सर्वनाश  की  आहटें , सुनी  नार्य    अभिशाप।।११।।
नफ़रत थी चारों तरफ़ , जनमानस    आक्रोश।
नार्यशक्ति थी   लुट   रही , सरेआम    मदहोश।।१२।।
शील त्याग  गुण  कर्म सब , चढे़  द्यूत  उपहार।
चालबाज़   शकुनि   प्रबल ,  दुर्योधन   सरदार।।१३।।
आज  न्याय लाचार  था , संकट  में  था   सत्य।
क्षमा  चुरायी  नज़र  को , निन्दनीय     दुष्कृत्य।।१४।।
था   नृशंस   खल   दास्तां , बलात्कार   प्रयास।
रजस्वला  थी   द्रौपदी , निर्मम  खल   उपहास।।१५।।
सजल नैन रक्षण स्वयं , माँग   दया  की  भीख।
बुज़दिल कायर  कुरुसभा , सुनी न नारी  चीख।।१६।। 
कैसी    थी    निर्लज्जता , दरिंदगी      दुष्काम।
आज  वही  तो  हो  रहा , शीलहरण   अविराम।।१७।।
मीत  बने   भाई   समा ,भक्ति   प्रीति   भगवान।
बढ़ा  चीर  रख  लाज  हरि , दे    नारी   सम्मान।।१८।।
द्वापर   हो या  कलियुगी , नहीं   सोच   बदलाव।
कामुक   कायर   घूमते , हिंसक    मन    दुर्भाव।।१९।।
सोच  घृणित  विक्षिप्त नर , फाँसी   से   निर्भीत।
बना    दरिंदा    नोंचता , नारी    जिश्म    पतीत।।२०।।
घूम  रहे    नित    दरिंदे , कीचक   बन  दुष्काम।
हरदिन  लुटती  द्रौपदी , अबला   बन    बदनाम।।२१।।
बदल  चुका  है  समय अब , है    नारी   निर्भीत।
पढ़ी  लिखी  सबला प्रखर  , अधिकारी   निर्मीत।।२२।।
रक्षा    खु़द   नारी   समर्थ , अवरोधक    संत्रास।
नहीं   चीख  होगी  श्रवण , कृष्णा का   उपहास।।२३।।
महाशक्ति  नारी   सजग , स्वयं  लाज    सम्मान।
उन्नत  जीवन शिखर पर , कीर्तिफलक अरमान।।२४।।
जहाँ  मान   न   पूज्य हो , नारी   देश    समाज।
शान्ति सम्पदा मान बिन,बन मरघट  बिन  ताज़।।२५।।
लोक लाज  मानक   वतन, घर   नारी अभिराम।
सकल देव रनिवास  बन , बने   गेह    सुखधाम।।२६।।
बनो वतन  हर पुरुष हरि , रखो लाज  हर  चीर।
लायी   जो    तुमको  धरा , रक्षक   नारी    नीर।।२८।।
कवि निकुंज अलिगुंज वन,सुरभित मन आनन्द।
खिले चमन मुस्कान बन , नार्य  कुसुम  मकरन्द।।२९।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


राजेन्द्र रायपुरी माता  देवी   शारदा,  विनती   बारंबार।

🌹🌹 माँ सरस्वती से विनय 🌹🌹


माता  देवी   शारदा,  विनती   बारंबार।
मैं  अज्ञानी  मूढ  मति, कर  दे तू उद्धार।


माता  तुझसे  है  विनय, दे दे थोड़ा  ज्ञान।
कर पाऊँ दोहा सृजन, श्रेष्ठ कबीर समान।


चाह नहीं रहिमन बनूँ,या फिर तुलसीदास।
चाह  नहीं  कबिरा  बनूँ, या मैं कालीदास।


चाह  यही माँ  लिख सकूँ, ऐसे छंद  हजार।
जिनमें मिल जाए हमें, इस जीवन का सार।


                 ।।राजेंद्र रायपुरी।।


परिवर्तन नूतन लाल साहू

परिवर्तन
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में
एक दिन ऐसा परिवर्तन आयेगा
मै क्यों सोच नहीं पाया
पितृ भक्त, पुत्र ने
पिता के मरते ही
उनकी ही याद में
उनकी ही पूंजी से
छोटी सी मठ
खलियान में बन वाली
मन में इतनी उमंग थी
जैसे स्वर्ग लोक बनवा दी
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में
एक दिन ऐसा परिवर्तन आयेगा
मै क्यों सोच न पाया
विरोधा भासी दृश्य देख
आश्चर्य हुआ,आत्मीय जनों को
शयन कक्ष में,भड़क दार कैलेंडर
टांग रखे हैं, घरवाली ने
मातृ पितृ भक्ति की जगह
आधुनिकता ने क्यों जन्म ली
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में
एक दिन ऐसा परिवर्तन आयेगा
मै क्यों, सोच नहीं पाया
छोटे छोटे बच्चो को,अंग्रेजी शिक्षा
सरकार दे रही,प्राइमरी में
नई सदी में,शिशु
पृथ्वी पर,आयेगा तो
रोयेगा भी अंग्रेजी में
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में
एक दिन,ऐसा परिवर्तन आयेगा
मै क्यों,सोच नहीं पाया
प्यार की राह,दिखा दुनिया को
रोके नफरत की आंधी
तुममें से ही,कोई गौतम होगा
तुममें से ही कोई,होगा गांधी
नूतन लाल साहू


अंतरराष्ट्रीय कवयित्री डॉ0 कमलेश शुक्ला कीर्ति कानपुर। गीत--- मेरा भारत महान, मेरा भारत  है  सबसे महान।

अंतरराष्ट्रीय कवयित्री
डॉ0 कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर।


गीत--- मेरा भारत महान
************************
मेरा भारत  है  सबसे महान।
  सभी को रखना है इसका ध्यान।।


कई भाषा  के  लोंग  हैं  रहते।
संविधान का सम्मान हैं करते ।
मिलजुलकर यहाँ सभी हैं रहते
घण्टा बजते अजान भी पढ़ते।
सबका रखते हम यहाँ हैं  मान ।
मेरा  भारत  है  सबसे   महान।


यहाँ पर गंगा  माता हैं बहती
सबके तन को पावन हैं करती।
लगता कुम्भ पर मेला  अपार
सभी वेदों से  मिलता  है  सार।
पर्वत  हैं  औषधियों  की खान।
मेरा  भारत  है  सबसे  महान।


वीर भगत सिंह यहाँ पर जन्मे
आजाद बसे  हैं सबके तन में।
कई  वीरों   की  जन्मभूमि  है
अब्दुल कलाम की कर्मभूमि है।
तिरंगे में बसती  सबकी जान
मेरा  भारत है  सबसे  महान।


यहाँ पर जन्मे वीर परशुराम 
 कण कण में बसते जहाँ हैं राम।
यहाँ सत्य से यमराज भी हारे
करने लगे सावित्री के जयकारे।
ब्रह्मास्त्र जैसे  हैं  तीर  कमान।
मेरा  भारत  है  सबसे  महान।


अंतरराष्ट्रीय कवयित्री
डॉ0 कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर।


हिमांशु श्रीवास्तव *भानु* रुदौली,अयोध्या धाम। कहानी खाना बचा पर जान नही

मेरी "प्रथम" कहानी सादर प्रस्तुत है। कृपया इसे पूरा जरूर पढ़ें एवं अपने अमूल्य सुझाव दें।।  धन्यवाद
--------- *कहानी*---------
*खाना बचा पर जान नही*


गुप्ता जी ने बेटे के तिलकोत्सव में दिल खोलकर खर्च किया था। नोटबन्दी का उनपर जैसे कोई असर ही न हुआ हो। पूरी राजशाही व्यवस्था थी। कार्यक्रम परिसर को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि स्वर्ग में आ गए हो।
एक से बढ़कर एक लजीज व्यंजन बनवाये गए थे। व्यंजनों की सूची गिनना आम आदमी के बस में नही था।
लोगो ने खाना शुरू किया । तभी मेरी नज़र दूर खड़े एक बूढ़े पर पड़ी जो कि गेट पर खड़े दोनों दरबानों से अंदर आने की विनती कर रहा था।
विनती क्या पूरी तरह से गिड़गिड़ा रहा था।
दरबान भला उसे क्यों आने देता, न आने देने के लिए ही तो उसे वहाँ नियुक्त किया गया था। घर मालिक का सख्त आदेश भी था बिना कार्ड के कोई भी अंदर न आने पाये।


भूख से व्याकुल बूड़े की आंख और पेट दोनों गर्त में चले गए थे। शायद उसे आज प्याज और सूखी रोटी भी नही नसीब हुई थी। लज़ीज़ व्यंजनों को देखकर भूख से त्रस्त पापी पेट उसे उसके स्वाभिमान को डगमगा रहा था। कई बार मना करने के बावजूद भी वो मात्र खाना खाने के लिए हाथ पैर जोड़ रहा था। अचानक दूर से घर मालिक को आता देख दरबान ने वाहवाही लूटने के चक्कर मे बूढ़े को जोरदार धक्का दे दिया और वो पुराने टेलीफोन के खंभे से जा टकराया। वहीं गिर गया उसकी परवाह भला कौन करता ? गरीब जो ठहरा।।।


और इधर अंदर , दावत अपने पूरे शबाब पर थी। क्या आम क्या खास, सभी के हाथों में प्लेट थी। सब भिखारियों के माफिक सब्जी,पूरी, मटर पनीर, पुलाव छप्पन भोग पर टूट पड़े थे। 
लालचवश ढेर सारा खाना ले रहे थे । 
और भला कोई आदमी खड़े-खड़े खा भी कितना सकता है ? 
ढेर सारा खाना बर्बाद कर रहे थे।
पढ़े लिखे लोग जो थे , थोड़ा खाना खा रहे थे, ज्यादा फेंक रहे थे। 
और अपनी झूठी शानो शौकत कथित 'प्रोफेशनल समाज' को दिखा रहे थे।


मैं भी सफारी सूट पहन कर शान से पैर पर पैर रख कर एक गद्देदार कुर्सी पर धंसा हुआ था। मेरा दयालू चित्त बार बार मुझसे कर रहा था कि जाओ और उस बूढ़े को भरपेट भोजन कराओ। क्योंकि इससे बड़ा पुण्य कोई नही हो सकता। एक आदमी खा लेगा तो कम नही पड़ जायेगा।


क्योंकि सागर से एक बूंद जल ले लेने से सागर का कुछ नुकसान नही होता है।
ये सारे उपदेश मुझे अच्छी तरह से याद थे लेकिन मैं टस से मस नही हो रहा था।
भला होता भी तो कैसे ? इस घर का दामाद जो ठहरा। मेरा अहम मेरे सामने दीवार बनकर खड़ा था। मैंने कई बार रिश्तों के बंधन से निकल कर उस बूढ़े की मदद करने की सोची किन्तु मेरी इज्जत का क्या होगा ये सोचकर ठिठक गया।
वो बूढा अभी भी उसी टेलीफोन के खंभे की ओट में निढाल सा बिठा था। मैं भी इधर गद्देदार कुर्सी में आराम से बैठा रह गया।
अच्छा ऐसा नही था कि गुप्ता जी सामाजिक,पढेलिखे,जागरूक नही थे ।
ये सब उनके अंदर था, तभी तो "Save Food, Save India" नामक संस्था को फोन करके बचे हुए खाने को ले जाने के लिए कहा।
बड़ी सी गाड़ी आयी, बाकायदा तीन चार लोग हाइजीनिक तरीके से सारे खाने को उस कंटेनर में ले जाने के लिए रखने लगे।
सारे आम और खास लोग गुप्ता जी की बार बार तारीफ किये जा रहे थे।
कैमरा मैन भी पूरी घटना को बड़े शिद्दत से रिकॉर्ड कर रहा था।
मैं भी चेहरे पर बनावटी मुस्कान लाने की कोशिश कर रहा था। कैमरे के फ़्लैश बार बार चमक रहे थे। ये तो तय था कि, कल के क्षेत्रीय समाचार पत्र में खाना बचाओ अभियान की अनूठी पहल की न्यूज़ जरूर रहेगी। मैं खुद को बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा था। आखिर ऐसे घर का रिश्तेदार जो ठहरा।
रात काफी हो गयी थी। 
सारा प्रोग्राम समाप्त हो गया था।
टेंट वाले,आर्केस्ट्रा वाले, बैंड वाले, दरबान वाले, कैटर्स वाले सब लोग अपना अपना सामान पैकअप कर रहे थे।
सारे रिश्तेदार सोने के लिए अपने अपने रूम की तरफ प्रस्थान कर चुके थे।
उस बूढ़े की कोई हाल खबर लिए बिना सब के साथ मै भी आराम करने के लिए वहाँ से हट गया। बिस्तर पर पहुँच कर मैं लेट तो गया लेकिन नींद कोसो दूर थी।
बार बार उसी बूढ़े का झुर्रीदार चेहरा, फटी धोती, फटा हुआ थैला, हाथ मे बांस का पतला डंडा जिस पर कई रंग की पन्नी लपेटी हुई थी, ये सब मेरी आँखों के सामने नाच रहा था।
मैं सोच रहा था पता नही वो कितने दिनों से भूखा रहा हो ?
उसकी ऐसी हालत के पीछे कौन जिम्मेदार है ?
कहा रहता होगा ?
क्या खाता होगा ?
काफी देर तक मैं इन्ही उलझनों में खोया हुआ था।
मैंने अपनी जिज्ञासा बगल में लेटे हुए साढू भाई से बताई।
तो उन्होंने कहा ये सब ढोंगी होते हैं, यही इनका पेशा है।
बड़े लोगों की शादियों मे पहुँच कर नखरा करना इनके अभिनय का एक हिस्सा भर है।
इतने प्रबल तरीके से उन्होंने समझाया कि उस बूढ़े के प्रति मेरा नजरिया ही बदल गया।
थोड़ा गुस्सा भी आया, कि ऐसे ऐसे लोग भी होते हैं इस दुनिया में ?
कुछ देर बाद मुझे नींद आ गयी और मैं सो गया।
देर रात में सोने के कारण सुबह देर से आंखे खुली।
घर के बाहर निकला तो भीड़ जमा थी, कौतूहल वश मैं भी भीड़ की तरफ बढ़ चला।
पास जाकर देखा तो मेरे होश उड़ गए।
अरे ये तो वही रात वाले बूढ़े बाबा जी है।
क्या हुआ इन्हें ? मैने पूछा।
पता चला इनकी तो मौत हो गयी।मैं तो आवाक रह गया।
करीब से जाकर देखा तो सच मे वों अब इस दुनिया मे नही रहे। 
उनकी आत्मा ने
जर्जर शरीर, 
फटे वस्त्र, 
एक चौथाई प्याज, 
आधी रोटी, 
पेप्सी के गंदे बोतल में थोड़ा पानी, 
डंडे में बंधी हुई पन्नी, 
कुछ चिथड़े आदि उसकी निजी संपत्ति को छोड़ दिया था। 


आज के पेपर में कल के भोजन संरक्षण की खबर तो थी किन्तु भूख से मरने वाले बूढ़े बाबा की कोई खबर नही।
उस दिन सिर्फ वो बूढ़े बाबा ही नही मरे थे, बल्कि हम जैसों और हमारे कथित प्रोफेशनल समाज का ज़मीर भी मर चुका था। आइये हम सब मिलकर अपने समाज को सभ्य बनाये।।


कहीं ये न हो कि,
*खाना बचा, पर जान नही*
😞😞😞😞😞😞😞🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔
✍🏻हिमांशु श्रीवास्तव *भानु*
रुदौली,अयोध्या धाम।
15-04-2017


पूरी कहानी पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।।


निशा चड्ढा जीवन गर्म हवायें झेली तूने 

निशा चड्ढा
जीवन
गर्म हवायें झेली तूने 
वर्षा में भी भीगा , 
नीड़ बनाया तिनके चुन चुन 
सब को गले लगाया .
पीछे रह कर तुने सब को 
आगे आगे भेजा, 
पहुँच शिखर पर पीछे मुड़कर 
नहीं किसी ने देखा . 
नेक कमाई की है तूने 
काहे तू भरमाये, 
लेने से बेहतर है बन्दे 
कुछ दे कर ही जाये .


संजय वर्मा "दॄष्टि " 125,शहीद भगतसिंग मार्ग  मनावर (धार )मप्र विरहता विरहता के समय 

संजय वर्मा "दॄष्टि "


125,शहीद भगतसिंग मार्ग 


मनावर (धार )मप्र


विरहता


विरहता के समय 
आती है यादें
रुलाती है यादें 
पुकारती है यादें 
ढूंढती है नजरे 
उन पलों को जो गुजर चुके 
सर्द हवाओ के बादलों की तरह 



खिले फूलों की खुशबुओं से 
पता पूछती है तितलियाँ तेरा 
रहकर उपवन को महकाती थी कभी 
जब फूल न खिलते


उदास तितलियाँ भी है 
जिन्हे बहारों की विरहता 
सता रही 
एहसास करा रही 
कैसी टीस उठती है मन में 
जब हो अकेलापन 
बहारें न हो


विरहता में आँखों 
का काजल बहने लगता
तकती निगाहें ढूंढती 
आहटों को जो मन के दरवाजे पर 
देती थी कभी हिचकियों से दस्तक
जब याद आती 
विरहता में


संजय वर्मा "दॄष्टि "


125,शहीद भगतसिंग मार्ग 


मनावर (धार )मप्र


पुष्पा शर्मा अजमेर दोहा

दोहा


युगल चरण का आसरा,
       ब्रज जीवन आधार,
श्री राधे वृषभानुजा,
       मोहन नंदकुमार।।


पुष्पाशर्मा"कुसुम"🌹🌹🙏🏻


कवि सत्यप्रकाश पाण्डेय तेरी पलकों के साये में,

तेरी पलकों के साये में,
दिन रात गुजर कब जाते है।
मेरी आंखों में न जाने,
क्यों तेरे चित्र उभर कर आते है।।


नाहक सा लगता जीवन,
तेरे बिन पल पल लगता रूखा सा,
सावन की घोर घटाओं में,
मुझे तो लगता है सूखा सूखा सा।।


मैंने भी देखे थे सपने,
मिलेंगी प्यार भरी बौछारें मुझको।
तेरे हृदय वृक्ष के नीचे,
सुख देंगी बसंत बहारें मुझको।।


हिय चमन मुरझा गया,
जबसे मिला न स्नेह नीर तुम्हारा।
आंखों में वीरानी छाई,
जब तेरी वाणी का मिला न सहारा।।


परम् प्रकाशक बनकर,
मम हृदय ज्योति तुम आ जाओ।
पवित्र भाव प्रारब्ध रूप,
मम जीवन मोद से भर जाओ।।


प्रिया प्रेयसी हे प्रियतमा,
प्रेम प्रीति की पुंज मनोहर तुम।
प्रेरित रहूँ प्रेरणा पाकर,
परिणीति परिणय की प्रिय तुम।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छग कभी छांव कभी धूप

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग


कभी छांव कभी धूप
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पथिक सुनो पथ जीवन मे
कभी छांव कभी धूप
आशा और निराशा दोनों
जीवन के दो रूप ।


बिरवा अगर लगाया है तो
शीतल छांव भरोसा रख
भ्रम भटकाव छोड़़ दे पगले
निज भावों को सदा परख
अंत एक सबकी गति
क्या सेवक क्या भूप
पथिक सुनो पथ जीवन मे
कभी छांव कभी धूप ।


कुमति कपट से मुक्त हो
सुंदर स्वच्छ विचार 
अंतर मन की व्याधि का
एक यही उपचार
भव सागर से पार लगाए
निज कर्मों प्रतिरूप
पथिक सुनो पथ जीवन मे
कभी छांव कभी धूप ।


विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-694


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