*🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई सरस्वती वंदना अवधी

*चलते-चलते:0130*
आज बसंत पंचमी के पावन पर्व पर माँ सरस्वती की वंदना मेरे गृहनगर प्रतापगढ़ (उ. प्र.) के ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाने वाली *अवधी* भाषा में। 


*⚜ बाँकी झाँकी मईया तोहरी ⚜*
*बाँकी झाँकी मईया तोहरी, हमका सोहात बा।*
*जऊने पल दिन मईया, वो ही पल रात बा।।* 


*बींदिया बा दिनकर सोहै, मईया के ललाट पे।* 
*तरवा व चन्द्र सोहै, आँख के विराट पे।।*
*मेघ सम केश सोहै, शीश पे सोहात बा।*
*बाँकी झाँकी मईया तोहरी, हमका सोहात बा।।*


*बाटै श्वेत सारी तन पा, कर मा बाटै वरदण्ड।* 
*कण्ठ पै माँ हार सोहै, दूजे कर सोहै छंद।।* 
*एक कर मा सोहै कमलिनी, चरण कमल पा राजत है।* 
*हँस के सवारी मईया, कैसी सुंदर साजत है।।*
*दर्पण मा रूप तोहरा, आवत की शर्मात बा।* 
*रूपवै मा दर्पण आज, अपुने देखात बा।।* 
*रूप क बयान के, मईया कऊन बिसात बा।* 
*बाँकी झाँकी मईया तोहरी, हमका सोहात बा।।*


*नाहीं बाटै चिंता हमका, खुश चहै नाराज रहा।*
*एतनी बाटै बिनती तोहसे, मईया सम तू साज रहा।।* 
*भूलि गऊ पूत का तो, बढ़ि के कवन बात बा।* 
*बाँकी झाँकी मईया तोहरी, हमका सोहात बा।।*


सर्वाधिकार सुरक्षित 
*🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई*


श्लेष चन्द्राकर  महासमुन्द (छत्तीसगढ़) बसंत पंचमी दोहे मातु शारदे आपको, नमन अनेकों बार।

श्लेष चन्द्राकर 
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)


बसंत पंचमी दोहे


मातु शारदे आपको, नमन अनेकों बार।
सबको अनुपम ज्ञान का, देती हो उपहार।।


माता वीणा वादिनी, हरे सभी दुर्योग।
आने से ऋतुराज के, आनंदित हैं लोग।।


ज्ञान रश्मियों से मिटा, जढ़ता का अँधियार।
जीवन में माँ शारदे, लाती नई बहार।।


सब ऋतुओं से मानते, ऋतु बसंत को खास।
भरता इसका आगमन, हर मन में उल्लास।।


धरती ने धारण किया, वासंती परिधान।
अपलक जिसको देखना, चाहे सकल जहान।।


🌻 श्लेष चन्द्राकर 🌻
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)


शोभित सूर्य धौरहरा शारदे माता बुद्धि दाता विनती है इतनी ,

शोभित सूर्य धौरहरा


शारदे माता बुद्धि दाता विनती है इतनी ,
यह जीवन बीते आपके गुणगान में।


आप बसे रोम रोम धरा से  लेकर व्योम,
मैं सर्वस्व देख लूँ आपके प्रतिमान में ।।


बुद्धि औ विवेक रहे कामनाएं नेक रहें ,
घबराए नहीं देश हित बलिदान में।


भारत की हरे पीर तोड़ दे हर जंजीर ,
सुभाष जैसा वीर पैदा हो हिंदुस्तान में।।


शोभित सूर्य


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ, बसन्त( चौपाई) अलि बांवरा हुआ सखि देखो,

कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ,


बसन्त🌻🌻( चौपाई)


अलि बांवरा हुआ सखि देखो,
फूल फूल पर मंडराय है|
मकरंद लिपटी सगर तन पे,
बस इधर उधर बौवराय है|


पीला सूरज, पीली सरसों,
बही खेतों में रवानीं है|
ओढ़े धरती पीत  चादर,
गोरी की चुनरी धानीं है|


फैल रही सुगंध कलियों की,
झरे सब पीत -पात  धरा पर,
नये कोंपल संग वृक्ष  झूमें
लिपटे लता प्रेम निज तनपर |


बसन्त सुनाता प्रिय संदेशा,
मास फाल्गून का आनें को,
रंग-बिरंगा हो अंबर भी,
देगा सौहार्द मिलानें को|


स्वागत कर दिल से मौसम का,
हवा बसंती भाये मोंहे,
सुख की धूप खिली सखि देखो,
ऋतुराज बसन्त सोहे मोंहे|


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ,


किशोर कुमार कर्ण  पटना बिहार दो पुष्प ~~ वसंत आगमन पर 

किशोर कुमार कर्ण 
पटना बिहार


दो पुष्प ~~


वसंत आगमन पर 
कुसुम पल्लवित पुष्प खिले 
पावन दिन में 
धरा पर दो पुष्प खिले 


वो पुष्प सुवासित 
ज्ञान सुगंधित महके
एक नभ का प्रकाश जयशंकर 
तो दूजा धरा का मान निराला हुए


अनामिका, परिमल, गीतिका और  अणिमा 
निरालाजी की अविरल रचना हुई 
कानन कुसुम, झरना, आंसू और कामायनी 
जयशंकरजी ने अवर्णिय धाराएँ बहाई


---किशोर कुमार कर्ण 
पटना बिहार


प्रतिभा गुप्ता आलमबाग,लखनऊ माँ  तुम्हारी  वंदना  करती  रहूँ।

 


प्रतिभा गुप्ता
आलमबाग,लखनऊ
माँ  तुम्हारी  वंदना  करती  रहूँ।
काव्य की मैं साधना करती रहूँ।
************
धूप,दीपक और रोली, पुष्प से,
हो मगन मैं अर्चना करती  रहूँ।
***********
है तिमिर घनघोर माँ आलोक दो,
हो निडर मैं सामना करती रहूँ।
***********
श्रेष्ठ भावों से सजी हो गीतिका,
मैं कलम से सर्जना करती रहूँ।
***********
मन कभी ना चूर हो अभिमान में,
सिर झुकाकर प्रार्थना करती रहूँ।
********
अनवरत प्रतिभा चले यूँ लेखनी,
व्यक्त अपनी भावना करती रहूँ।
**********
प्रतिभा गुप्ता
आलमबाग,लखनऊ


महाकवि निराला जी की वन्दना द्वारा कैलाश दुवे होशंगाबाद वर दे, वीणावादिनि वर दे !

महाकवि निराला जी की वन्दना द्वारा कैलाश दुवे होशंगाबाद


वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
        भारत में भर दे !


काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
        जगमग जग कर दे !


नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
        नव पर, नव स्वर दे !


वर दे, वीणावादिनि वर दे।
*वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं*


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।।बरेली शहीद हमारे अमर महान हो गए।*

एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली


शहीद हमारे अमर महान हो गए।*


*।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।*


नमन है उन शहीदों को जो
देश पर कुरबान हो गए।



वतन   के  लिए देकर जान
वो   बे जुबान  हो   गए ।।



उनके प्राणों  की  कीमत से
ही सुरक्षित है देश हमारा।



उठ  कर  जमीन  से   ऊपर
वो जैसे आसमान हो गए।।


*रचयिता।।। एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।*


मोब  9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।


ममता कानुनगो इंदौर ऋतुराज बसंत 

ममता कानुनगो इंदौर


ऋतुराज बसंत 
बसंत ऋतुराज,
पहना केसरिया ताज,
बौर अंबुआ फूले,
मतवाली कोयल कूके,
भंवरों से गुंजा उपवन,
महका महका यौवन,
नवकोपल ने ली अंगड़ाई,
शाख पात सब मुस्काई,
धूप गुनगुनी हो गयी तीखी,
तान कोकिला सुनाए मीठी,
सतरंगी हुई दिशाएं,
टेसू पलाश खिलखिलाए,
वीणावादिनी  ने स्वर छेड़ा,
रंग बासंती चहुंओर बिखेरा,
मां शारदा का करुं मैं पूजन,
बसंतोत्सव का हो रहा शुभागमन।


      ममता कानुनगो इंदौर


सन्दीप सरस बिसवां सीतापुर गीत~मां अभ्यर्थन शारदे   लेखनी  में  समा  जाइए, 

सन्दीप सरस बिसवां सीतापुर


गीत~मां अभ्यर्थन


शारदे   लेखनी  में  समा  जाइए, 
मेरे गीतों की गरिमा संवर जाएगी।


प्रेरणा आप हो अर्चना  आप हो ,
मेरे मन से  जुड़ी भावना आप हो।


काव्य की सर्जना स्नेह है आपका,
मेरे हर शब्द  की साधना आप हो।


हाथ रख  दो मेरे  शीश पर स्नेह से,
काव्य प्रतिभा हमारी निखर जाएगी।1।


सारगर्भित  रहे  मुक्तकों  सा सदा ,
और जीवन बने सन्तुलित छंद सा।


पारदर्शी   रहे   गीत   की   भावना ,
नव सृजन का हो संकल्प निर्द्वन्द सा।


ज्ञान की वर्तिका प्रज्वलित कीजिए,
मेरे जीवन में आभा बिखर जाएगी ।2।


मेरी अनुभूतियों को गहन कीजिए,
भावनाओं को अभिव्यक्ति दे पाऊं माँ।


भाव   ऐसे   हृदय  में  जगा   दीजिए
कल्पना को सहज शक्ति  दे  पाऊं माँ।


लेखनी  को हमारी  मुखर  कीजिए,
शब्द  की  साधना भी सुधर जाएगी।


सन्दीप सरस


सुनीता असीम अगर तन छोड़कर जाएँ जहाँ से।

अगर तन छोड़कर जाएँ जहाँ से।
नहीं हम मोह रक्खें आशियाँ से।
***
नहीं थकते कभी बातों से तुम हो।
कि बातें इतनी हो लाते कहाँ से।
***
जो फूलों को चमन से तोड़ना हो।
इजाजत लेना पहले बागबाँ से।
***
किसी से बात कड़वी मत करो तुम।
मुहब्बत की करो बातें जुबाँ से।
***
नहीं रहना उदासी से भरे तुम।
विदा लेना कभी जब कारवाँ से।
***
कचहरी में गवाहों का दखल है।
पलटते हैं गवाही में बयाँ से।
***
जिगर से चाक होंगे सब विरोधी।
चलाएं तीर सरकारें कमाँ से।
***
सुनीता असीम
३०/१/२०२०


डाॅ.रेखा सक्सेना  *बसंत के रंग*

डाॅ.रेखा सक्सेना 


*बसंत के रंग* 🌻🌻
****************************


ओ कुसुमाकर, ओ ऋतुराज,
 प्रमुदित नर-नारी सब आज।। 


तेरा आगमन, बड़ा मनभावन,
 तन- मन को करता है पावन।।


'सरस्वती' का प्रकटीकरण है, 
उल्लासपूर्ण  अंतः करण  है।।


 ना   जाड़ा है,  ना गर्मी   है ,
 संदेश   संतुलन   धर्मी  है।।


 दिगदिगन्त मादकता छाई
 सरसों भी फूली न समाई ।।


 कलियों ने अवगुन्ठन खोले
 भंवरें भी गुन गुन हो डोले।।


वन- उपवन सौरभ महका है,
 प्रेमाकुल खग- दल चहका है।।


 विविध पुष्प  चूनर सतरंगी, 
 धरा- वधु ओढ़े निज अंगी।।


इस बदलाव का है अभिनंदन,
मधुमास का  है  जग- वंदन ।।


वीणावादिनी शुभ वरदायिनी
 कुहुक तान कोकिला सुहानी।


🌻स्वागतम् ऋतुराज🌻
स्वरचित डाॅ.रेखा सक्सेना 
मौलिक  29-01-2020
 🌻🌻🌻🌻🌻🌻


डा० भारती वर्मा बौड़ाई ३० जनवरी बापू की पुण्यतिथि पर 

डा० भारती वर्मा बौड़ाई


३० जनवरी बापू की पुण्यतिथि पर 


बापू!
———-
आ गया 
दिवस वही 
लौट कर फिर 
जब खोया था हमने 
तुम्हें बापू!
अपने सपनों का भारत 
बनाने का सपना संजोये 
तुम चले तो गए बापू!
उस सपने का ध्वजवाहक
आ गया है,
तुम्हारे विचारों को 
करता हुआ प्रसारित 
नई पीढ़ी को बापू की देन 
समझाता है,
नहीं मरेंगे 
कभी तुम्हारे विचार!
बनेगा तुम्हारे 
सपनों का भारत
एक दिन विश्व गुरु!
तुम्हारा काम 
और बलिदान 
व्यर्थ नहीं जायेगा,
उसकी नींव पर 
खड़ा भारत अपना 
नया इतिहास लिखता जायेगा,
तुम देखना बापू!
तुम्हारे सपनों का भारत!
नये रंग लेकर आयेगा।
—————————-
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


जयपुर से-- डॉ निशा माथुर बसंत

नवयौवना ने बासंती यौवन की आज ली अंगड़ाई है
अलौकिक आनंद अनोखी छटा बसंत ऋतु आयी है
चंचल पुरवा,नवल मधुमास  ऋतुयों की ऋतु कुसुमायी है।
स्वर्ण धरा का सफल समागम गौरी ने पायलिया खनकायी है।


आज बसंत पंचमी की खनक, चारों और फूलों की प्यारी सी महक, धरती के इस सौलह श्रृंगार की दमक के साथ आप सभी को आज के दिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं ,ढेर ढेर सारी बधाई।, इसी शुभकामना के साथ हैप्पी पीले चावल
नमस्ते जयपुर से-- डॉ निशा माथुर🙏😃


गोविंद भारद्वाज, जयपुर

अंगारा हूँ अगर तपन से प्यार करो तो आ जाना,
मैं पागल दीवाना हूँ, स्वीकार करो तो आ जाना,
मेरे दिल की दिल्ली पर अधिकार करो तो आ जाना।
अंगारा हूँ अगर ..........................................................


सोया दर्द जगाया तूने, महकी चाँदनी रातों में,
बिरहा की अग्नि में जलता, सावन की बरसातों में,
सूना मन मन्दिर है ये, श्रृंगार सजाने आ जाना।
आवारा बादल हूँ मैं, तुम बदली बनकर छा जाना।
अंगारा हूँ अगर ..........................................................


तुमने चाही छाँव घनेरी, मैंने तपती धूप चुनी,
तुमने दिल की एक न मानी, मैंने मन की बात सुनी,
वीणा के तारों में तुम, झंकार करो तो आ जाना।
अंगारा हूँ अगर ..........................................................


तेरी साँसों की सरगम से जाने कितने गीत सुने,
पलकों पर हँसते जख़्मों ने जाने कितने स्वप्न बुने,
बेबस गूँगे सपनों पर, उपकार करो तो आ जाना
मेरे दिल की दिल्ली पर अधिकार करो तो आ जाना।
अंगारा हूँ अगर ..........................................................


गोविंद भारद्वाज, जयपुर


राहुल मौर्य 'संगम'            गोला लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश  "ऋतुराज बसंत                विधा- दोहा

 


राहुल मौर्य 'संगम'
           गोला लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश
 "ऋतुराज बसंत
               विधा- दोहा


नव किसलय की आंधियाँ, छायी आज अनंत ।
झूम  उठा  मन  आँगना ,  आयी   आज  बसंत ।।


मन  मयूर  थिरके  यहाँ ,  स्वागत में ऋतुराज ।
गाए   कोयल   बाबरी  ,  मतवाली   सरताज ।।


देव , मनुज   औ  राक्षसी , सब गाते गुणगान ।
देख  रूप  तब सृष्टि का , सुख  पाती  संतान ।।


रंगो   भरी   बयार   में , रँगी  सृष्टि  अरु फूल ।
रंग  संग  के  साथ  ही , मिटे  कष्ट  अरु शूल ।।


नव वधु सी धरती सजी ,  बने  बराती   बाग ।
कोयल  शहनाई  बजी , ना  बोले कुछ काग ।।
 
कुहू - कुहू के शोर से ,  मनवा  हुआ  अधीर ।
निशा गमन के भोर से,कसक उठी अब पीर ।।


अगन  लगाकर प्रेम की , करो  सदा  उद्धार ।
जग  में   छाये   एकता  ,  दुष्टों  का   संहार ।।
🌹🍀🌹🍀🌹🍀🌹🍀🌹🍀🌹🍀🌹
               
                   #स्वरचित /मौलिक
                ✍🏻राहुल मौर्य 'संगम'
           गोला लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश


शशि कुशवाहा लखनऊ,उत्तर प्रदेश

"मनवा डोल रहा"


फगुनवा की आयी है बहार
कि मनवा डोल रहा....
चारो ओर फैली रंगों की फुहार
कि मनवा डोल रहा ...


कान्हा दोनों हाथ भरे है गुलाल
रंगना है राधा को लालमलाल
राधा हुई शर्म से लाल 
कि मनवा डोल रहा ....


झूमे , नाचे ,गाये खुशियाँ मनाये
गोपियों संग कान्हा रास रचाये
व्रन्दावन में हुआ रे धमाल 
कि मनवा डोल रहा ....


बच्चे दौड़ दौड़ रंग बरसाए
उछल कूद घर सर पे उठाये
हुड़दंग, हँसी ठिठोली का त्यौहार
कि मनवा डोल रहा .....


साजन लगाये रंग सजनी के गाल
प्रीत के रंग से रंगी है ये शाम
नैनो में भरे मिलन के ख्वाब
कि मनवा डोल रहा.....


गिले शिकवे मिटा जाओ
प्रेम से सबको गले लगाओ
भर गया मन में नया उल्लास
कि मनवा डोल रहा ......


फगुनवा की आयी है बहार
कि मनवा डोल रहा....
चारो ओर फैली रंगों की फुहार
कि मनवा डोल रहा ...


शशि कुशवाहा
लखनऊ,उत्तर प्रदेश


अर्चना द्विवेदी अयोध्या उत्तरप्रदेश          सरस्वती वंदना

अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश


         सरस्वती वंदना
माँ शारदे की वीणा,झंकार कर रही है
अज्ञान के तमस से,हमें दूर कर रही है


आसन कमल विराजे,शुभ्र वस्त्र धारिणी है
मस्तक मुकुट है साजे,भय शोक तारिणी है


आभा मुखार विंद की,शोभा बढ़ा रही है।
अज्ञान के तमस से,हमें दूर कर रही है।।


मीरा सी भक्ति देना,विषपान भी बने सुधा
दुर्गा सी शक्ति देना,दैत्यों से मुक्त हो वसुधा


वरदायिनी है मैया,वरदान दे रही है।
अज्ञान के तमस से,हमें दूर कर रही है।।


महिमा तेरी है दिखती,रंगों में नजारों में
ज्ञान चक्षु खोलती है,मंदिर में गुरुद्वारों में


जगती बनी जगत को,लीला दिखा रही है ।
अज्ञान के तमस से,हमें दूर कर रही है। ।


मौसम हुआ बसन्ती,कलियाँ भी झूमती हैं
तरु लद गए हैं बौर से,कोयल भी कूकती है


तिथि पंचमी से ऋतु की,सूरत बदलरही है।
अज्ञान के तमस से हमें दूर कर रही है।।


राम शर्मा परिंदा

*बसंत पंचमी*
दिखाओ नित--नव पंथ पंचमी
जिस पथ चले सब संत पंचमी
अवगुण झड़े पतझड़ के  जैसे
रहे जीवन हमेशा बसंत पंचमी
*शारदे जन्मोत्सव की हार्दिक*
*बधाईयों के साथ*
*राम शर्मा परिंदा*


कहानी चिंता/महेश राजा महासमुंद।छत्तीसगढ़।।

चिंता/महेश राजा महासमुंद।छत्तीसगढ़।।
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   गर्मियों के दिन निकट थे। सब जानवर अपने-अपने ठिकानों में दुबके पड़ेथे।जंगल के राजा शेरसिंह को शिकार नहीं मिल पा रहा था।वह सोच रहा था,आजकल ईंसानों तो जंगल आना छोड ही दिया।उन्होंने अपना खुद का जंगल राज बना लिया है'।यह सोच कर उसे बड़ी कोफ्त हुई।वह भूख के मारे बैचेन था।शरीर साथ न दे रहा था।क्या करें,क्या न करें।वाली स्थिति थी।अब वह बूढ़ा हो चला था तो मातहत भी उसकी बात सुनते नहीं थे।


   तभी दूर से किसी गांव से भटकती,रास्ता भूलती हुयी  एक बकरी पर उसकी नजर पड़ी ।शेर की आँखे चमक उठी।उसने पुचकार  कर आवाज दी-"क्या बात है, ओ बकरी बहन .बड़ी कमजोर नजर आ रही हो?क्या बीमार चल रही हो।कुछ घांँस -फूस नहीं मिल रही हो  खाने को तो।आओ ,मैं तुम्हारे भोजन का प्रबंध कर दूँ।आखिर कार तुम मेरी प्रजा हो।और मैं तुम्हारा राजा।मेरे राज्य में कोई भूखा रहे, यह मुझे मँजूर नहीं।"



   बकरी ने यह सुन कर पैर जोड़े और लगभग भागते हुए जवाब दिया,-"आदरणीय शेर सिंह जी, आपको मेरी चिंता हो रही है या अपनी?"


    इतना कह कर वह दूर जंगल से गांँव की तरफ दौड़ पड़ी।


   शेरसिंह खिसयानी हँसी हँसते हुए सिर खुजा रहा था,-"सा...आजकल छोटे-छोटे जानवर भी कितने चालाक हो गये है।"


  अब वह   फिर से चल पड़ा,शिकार की तलाश में।।



....
*महेश राजा*,वसंत 51,कालेज रोड.महासमुंद।छत्तीसगढ़।।


कहानी दर्पण:महेश राजा/ महासमुंद छग

दर्पण:महेश राजा/
------------------------
 
     बस छूटने ही वाली थी।दरवाजे की तरफ से अजीब सा शोर उठा,जैसे कोई कुत्ता हकाल रहा हो।परेशानी और उत्सुकता के मिले जुले भाव लिये मैंने उस ओर देखा तो पता चला कोई बूढ़ा व्यक्ति है,जो शहर जाना चाह रहा था।वह गिडगिडा रहा था,'"-तोर पांव परथ ऊं बाबू.मोला रायपुर ले चल।मैंगरीब टिकीस के पैसा ला कहां लेलानहूँ।" "उसका शरीर कांँप रहा था।


     -"अरे चल चल।मुफ्त में कौन शहर ले जायेगा।चल उतर।तेरे बाप की गाड़ी नहीं है।कंडक्टर की जुबान कैँची की तरह चल रही थी।"।किसी गाड़ी के नीचे आजा,शहर क्या सीधे ऊपर पहुंच जायेगा."।
एक जोरदार ठहाका गुंँज उठा।


  
     एक सज्जन जिन्हें ड्यूटी पहुंँचने के लिये देर हो रही थी बोले,-"इनका तो रोज का है।इनके कारण हमारा समय मत खराब करो।निकालो बाहर"।


   
     एक अन्य साहब ने चश्मे के भीतर से कहा,-"और क्या।धक्के मार कर गिरा दो।तुम भी उससे ऐसे बात कर रहे हो.जैसे वह भिखारी न हो कोई राजा हो।"



    और सचमुच।!एक तरह से उसे धक्के मार कर ही उतारा गया।यात्रियों ने राहत की सांँस ली।डा्ईवर ने मनपसंद गाना लगाया।बस  गंतव्य की ओर चल पड़ी।


    मेरी सर्विस शहर में थी।रोज बस या ट्रेन से अपडाउन करता था।मैंनेअपने कान और आंँखे बंँद ली थी।नहीं तो और भी जाने क्या क्या सुनना पडता?


     पर साथ ही पिछले सप्ताह की एक घटना याद हो आयी।इसी बस में एक सज्जन जल्दबाजी में चढ़े।बाद में जनाब को याद आया कि बटुआ  तो वे घर पर ही भूल आये है।।मुझे अच्छे से याद है,चार चार लोग आगे बढ़े उनकी  मदद करने को,उनकी टिकीट कटाने को।अंँत में कंडक्टर  ने स्वयं,- ये हमारे रोज के ग्राहक है।कल ले लूंगा।" कह कर अपने रिस्क पर उन्हें शहर ले जाने को तैयार हो गये।



    सोचना बंद कर एक बार पीछे मूड़कर देखता हूँ।।सभी अबतक   वही
 बात कर रहे थे।जल्दी से आगे की तरफ नजर धूमा लेता हूँ।


तभी मेरी नजर सामने की तरफ लगे,दर्पण पर पडी।उसमें मुझे अन्य लोगों के साथ अपना भी चेहरा  साफ नजर आया। धबरा कर मैंने अपनी आंखेँ बंद कर ली।
.......


*महेश राजा*,वसंत 51'कालेज रोड।महासमुंद।छत्तीसगढ़


मधु शंखधर प्रयागराज विशेष प्रतिनिधि काव्य रँगोली इंद्रधनुष सी हो गई,धरती अब सतरंग।

मधु शंखधर प्रयागराज


विशेष प्रतिनिधि काव्य रँगोली


सभी मित्रों को बसंत पंचमी की अनंत शुभकामनाएं .....🌷🌷🌹🌹
इंद्रधनुष सी हो गई,धरती अब सतरंग।
मनु जीवन में हर्ष है, छाए नवल उमंग।।


धरा करे ऋंगार यूँ,नव दुल्हन सी नार।
पीत पुष्प ऐसे लगे,  स्वर्ण सुशोभित हार।
ऋतु बसंत के साथ ही,खुशियाँ आई संग।
इंद्रधनुष सी हो गई.................।।


लाल,गुलाबी पुष्प की, चुनर ओढ़े जात।
पवन बसंती जब चले, लहर- लहर लहरात।
इस जीवन के रंग का,अलग अनोखा ढंग।
इंद्रधनुष सी हो गई.................।।


सात रंग जीवन लगे,प्रियतम के सम प्यार।
प्रकृति का यह रूप ही,होता नव उपहार।
धरा मचलती यूँ दिखे, चढ़ गई जैसे भंग।।
इंद्रधनुष भी हो गई............।। 


देव धरा पर आ गए, देखन को त्यौहार।
मातु शारदा दे रहीं,ज्ञान रूप आधार।
खुशियाँ आई द्वार पे, *मधु* जीवन के संग।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी मिलता नहीं सभी को

देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी


मिलता नहीं सभी को.............


मिलता नहीं सभी को  अपना  अपना  प्यार।
जितना  है  तकदीर  में,मिलता उतना प्यार।।


वक़्त वक़्त की बात,कब मिले कब जुदा हुए;
कुछ के लिए बना है यह दिल का कारोबार।।


हकीकत में है  जो प्यार में  पूरा  डूबा  हुआ ;
उन्हें  दुनियादारी   से  नहीं  रहता  सरोकार।।


खुशकिस्मती से  जिसे  मिलता  प्यार अपना;
उसकी जिंदगी में तो फिर  पूरा रहता  बहार।।


बदकिस्मत प्यार की तपिश में ऐसा झुलसता;
उसकी  जिंदगी तो एकदम  ही रहता बेजार।।


प्यार का चिराग रौशन हो  हर  एक  दिल में ;
एक दूसरे में बांटते  रहें अपना अपना प्यार।।


हर एक गुंचे में  खिलाया  करें  गुल"आनंद" ;
सभी  का  सुखी  हो अपना अपना परिवार।।


-------------- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली* मुक्तक

एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली* मुक्तक


संभाल कर रखो अपने रिश्तों को।*
*।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।*


सच्ची दोस्ती तो बस महोब्बत
की   मेहमान   होती   है।


गर आ जाये   बेरुखी तो  फिर
ये    अनजान   होती   है।।


बुला लो जो बिछुड़ गये  रिश्ते
यूँ ही हाथ से फिसल कर।


जरा आवाज़ देकर देखो तो टूटे
रिश्तों में भी जान होती है।।


*गर चाहें तो हर तदबीर बदल सकते हैं।*
*।।।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।*


गर इरादे मजबूत हों  तो तकदीर
बदल    सकते   हैं।


हम   चाहें   गर तो  हर   तकरीर
बदल   सकते    हैं।।


किस्मत  मोहताज    नहीं   होती 
हाथ की लकीरों की।


ठान ले जब हम तो  पूरी तसवीर
बदल    सकते    हैं ।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मोबाइल                9897071046
                             8218685464


एस के कपूर वंदना माँ शारदे की

*वंदना माँ शारदे की।।।।।।।*


हे माँ शारदे,माँ हंस वाहिनी,
आये तेरी शरण को,
ऐसा कल्याण कर ,
हम सब को  तार दे।


तू ही माँ सरस्वती, है
बुद्धि प्रदायिनी, आये
तेरे द्वार को, सबको
ज्ञान का  प्रकाश दे।


तू ही जग तारिणी, दया
प्रेम की देवी,
महिमा अपार तेरी,
इस भव सागर के पार दे।


हे माँ वागेश्वरी, जगत पालिनी,
कमल विराजित,
कष्ट हमारा हार दे,
अपने आशीष का उपहार दे।


श्वेत वस्त्र धारण,
पुस्तकें ही तेरे कारण,
आये तेरे वंदन को,
अंतर्मन को तू झंकार दे।


हे माँ मधुर भाषिणी,
हे वीणा वादिनी,ह्रदय
के अंधकार को ,सूर्य
का आकाश दे,प्रकाश दे।


हे माँ भुवनेश्वरी, तेज़
तेरा अनंत अपार,
तुझसे ही आलोकित संसार,
हर बाधा से उद्धार दे।


तेरा शीश वंदन करता हूँ,
पूजा तेरी नित करता हूँ,
हे मातेश्वरी ,बस
सर पर   हाथ वार दे।
*बस यही एक उपकार दे।।*
*बस यही एक उपकार दे।।*


*रचयिता,,,, एस के कपूर" श्री हंस"*
*बरेली*


मोबाइल            9897071046
                        8218685464


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