प्रिया सिंह लखनऊ तेरी परछाइयों ने सनम मुझे

तेरी परछाइयों ने सनम मुझे रूलाया बहुत है
और मैंने जान-ए-मन तुझे बुलाया बहुत है


बहुत थोड़ी सी बाकी  रह गई हूँ मैं मुझमें  
जरा सुनो सनम तुमने मुझे बुताया बहुत है


हर आहट मुझे तुझ तक खिंच ले जाती है
तेरी यादों को भी मैंने आज भुलाया बहुत है


कैसा तन्हाई में शोर करता है मेरा धड़कन
ये किस्सा हर बार तुमको सुनाया बहुत है


बहुत तकलीफों से हो कर गुजरता है दिल 
मैंने अश्क कई बार तुमसे छुपाया बहुत है


 


Priya singh


अवनीश त्रिवेदी "अभय" हंसगति छंद हे!  बसंत  ऋतुराज

अवनीश त्रिवेदी "अभय"


हंसगति छंद


हे!  बसंत  ऋतुराज,  तुम्हें  नमन  हैं।
अभिनन्दन हैं आज, महका चमन हैं।
पीले   सरसों   फूल,  लुभाते  मन  हैं।
शोभा निरखि समूल, खुश हुये जन हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


अंजुमन मंसूरी आरजू छिंदवाड़ा  छंद  पञ्चचामर /  नाराच / गिरिराज सरस्वती निरंजना

अंजुमन मंसूरी आरजू छिंदवाड़ा


 वसंत पंचमी की अनंत शुभकामनाओं सहित..
छंद   - *पञ्चचामर /  नाराच / गिरिराज*
विधान     -षोडषाक्षरावृत्ति , ऐइण
गण सूत्र   -जगण रगण जगण रगण+गुरु
मात्रा भार -121 212 121 212 121 2


ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः
सरस्वती निरंजना नमामि पद्मलोचना ।
महाफला महाबला नमामि वारिजासना ।
नमामि पद्मवस्त्रगा सुवासिनी शिवानुजा ।
नमामि शास्त्ररूपिणी महाङ्कुशा महाभुजा ।


   -अंजुमन आरज़ू  ©✍
🌻🌻🌻🌻🌻


निशा"अतुल्य बसंत खुशियों का लगा मेला

निशा"अतुल्य


बसंत


खुशियों का लगा मेला 
जग हुआ पीला पीला 
गगन पतंग उड़े 
वंदना भी गाइये।


पीत वस्त्र धारण हो
मीठे मीठे चावल हो
भोग शारदा को लगा
सब जन खाइये।


नए नए पात आएं
हरी हरी धरा होएं
तितली भी उड़ चली
सुगन्ध उड़ाइये।


धानी चुनर कमाल
सबरंग बेमिसाल
मीठी भँवर गुंजार 
मन मे बसाइये ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य


अवनीश त्रिवेदी "अभय" प्रधानाचार्य एस वी सी आई द्वारिकापुरी, नेरी- सीतापुर (उत्तर प्रदेश बसंत अभिनन्दन ऋतुराज बसंत को कोटि प्रणाम हैं।

अवनीश त्रिवेदी "अभय"


प्रधानाचार्य
एस वी सी आई
द्वारिकापुरी, नेरी- सीतापुर (उत्तर प्रदेश


बसंत अभिनन्दन


ऋतुराज बसंत को कोटि प्रणाम हैं।
प्रकृति बदल रही अपने  आयाम हैं।
भीनी महक़ चहुँओर  फ़ैल  रही  हैं।
मदमस्त  नायिकाएँ  टहल  रही  हैं।
हर वातावरण  सुगंधित  हो  रहा हैं।
दृश्य  देख  जहाँ अनंदित हो रहा हैं।
प्यारे  लगे  ये  सरसों  के   फूल  हैं।
फ़िज़ा  में  उड़ती  संझा की धूल हैं।
मनोरम छवियाँ चहुँओर दिखती  हैं।
हर जगह नेह कहानियां  लिखती हैं।
पवन  बसंती  हिचकोले   भरती  हैं।
सबको  छूकर   मनमानी  करती हैं।
बागों  में  कोयल की  मधुर तान  हैं।
सबसे  सुंदर  ये  अपना  जहांन   हैं।
सुबह  मनमोहक  मतवाली  शाम हैं।
ऋतुराज बसंत को  कोटि  प्रणाम हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


प्रधानाचार्य
एस वी सी आई
द्वारिकापुरी, नेरी- सीतापुर (उत्तर प्रदेश


संजय जैन (मुम्बई) अजनबी विधा: कविता ट्रेन में सफर के दौरान,

संजय जैन (मुम्बई)


अजनबी
विधा: कविता


ट्रेन में सफर के दौरान,
मिला था एक अजनबी।
फिर बातों ही बातों में, 
दोनों के दिल मिल गये।
लम्बा था सफर दोनों का, इसलिए एक दूसरे को,  
 अच्छे से समझ पाये।
और एक दूजे के 
दिलों में बसने लगे।
और अजनबियों के दिलों में,
प्यार के फूल खिल गये।।


अजनबियों का दिल मिलना,
बहुत बड़ी बात होती हैं।
और वो भी लड़का लड़की होना,  
बहुत बड़ी बात होती है।
फिर वार्तालाप से ही, 
प्यार अंकुरित हो गया। 
और दोस्ती का रिश्ता, 
मोहब्बत में बदल गया।
और फिर एक दिन दोनों ने,
एक दूजे को प्रोपोज कर दिया।।


कलयुग में भी सतयुग जैसा,
हमें देखने को मिला।
दिलों की भावनाओं का,
यहां मिलन हो गया।
इंसानियत भी दोनों की
जिंदा यहां रही।
ऐसी मोहब्बत का उदाहरण, 
लोगो को देखने को मिला।
आज वो अजनबी,
मेरा जीवन साथी है।
और उसकी के साथ,
जिंदगी जीये जा रहे है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
30/01/2010


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली विषयः  सरस्वती वन्दना

कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
नयी दिल्ली



विषयः  सरस्वती वन्दना
विधाः कविता
शीर्षकः🥀 हे भारती हर क्लेश जग🙏
पूजन  करूँ   मैं   आरती , नित  शारदे  माँ   भारती।
चढ़    सत्यरथ  नित   ज्ञानपथ , श्वेतवसना   सारथी।। 
हे सर्वदे सरसिज  मुखी  तिमिरान्ध  जीवन  दूर कर।
वीणा निनादिनी सन्निधि , सद्ज्ञान पथ  उन्मुक्त कर।।
नवनीत  कर  समधुर  सरस रव को  बना  माँ शारदे।
अज्ञान पथ  मदमत्त मन हर आलोक बन माँ  तार दे।।
स्वार्थ रत  नित छल कपट  असत् पथ नर  लोक  में।
हर  पाप जग  संताप सब  सम्बल करो हर शोक  में।।
श्वेताक्षि  मृदु  शरदेन्दु  शीतल  सरस्वती   वदनाम्बुजे।
नमन  करूँ नित कमल  पदतल माधवी  शुभदे  शुभे।।
कलहंस  वाहिनि  धवल गात्रे  चन्द्रमुख   जगदम्बिके।
समरस  सुधा सुललित  चित्त  करुणा दया भर शारदे।।
कटुभाव  हर  समशान्ति  मन उन्माद पथ नर  दूरकर।
नित कोप रिपु मद मोह तृष्णा घृणा जन मन मुक्तकर।।
चन्दन  धवल  कोमल हृदय वेदांग कर  नित  शोभिते।
दे सुमति नर  सद्विवेक  नित अरुणाभ जीवन  ज्ञानदे।।
सरस्वति महामाये देवासुर मनुज त्रिलोक नित पूजिते।
नयना  विशाल  सरोज सम स्मित वदन नित सुरभिते।।
हे भारती हर क्लेश जग अरि दलन  कर  द्रोही  वतन।  
प्रवहित सतत स्नेहिल सरित् समुदार जन रसधार मन।।
हर तिमिर जन आलोक जग दे सुज्ञान मानव चिन्तना।
संगीत बन  सुनीति पथ तू अवलम्ब  माँ  करूँ वन्दना।।
भव्या मनोहर भारती षोडश कला विद्या चतुर्दश गायिनी।
नृत्य गीत संगीत रीति गुण अलंकार साम नवरस भाविनी।
अज्ञान तम आबद्ध सुत मतिहीन नित दिग्भ्रमित  पथ।
माँ ज्ञान दे मेधा विनत सब संताप हर चलूँ आशीष रथ।।
कल्याण कर तिमिरान्ध हर सुख शान्ति जग समृद्ध दे।
निर्मल सबल पावन विनत माँ  सुकीर्तिफल वरदान  दे।। 
फाल्गुनी मधुमास में  ज्ञान  आलोक बन  जग तार  दे।
पूजन  करूँ  तिथि  पञ्चमी  नत  विनत  देवी  शारदे।।
नवपल्लवित कुसुमित मुकुल पादप रसाल निकुंज में।
वैदिक रीति सामग्री सकल पूजन आरती रत भक्ति में।।
हे ब्रह्मचारिणि शुभदे  शुभे संत्रास  से  जग उद्धार  दे।
सुविवेक सत्पथ प्रीति समरथ परहित वतन रत ज्ञानदे।।
कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


कवि अतिवीर जैन "पराग ",मेरठ 

कवि अतिवीर जैन "पराग ",मेरठ 
9456966722


जय माँ शारदे,
सभी को नमन,


माँ शारदे तुझे प्रणाम :-


माँ शारदे का जन्मदिन 
बसंतपंचमी,
छटा नई ले आता है,
मौसम में परिवर्तन होता,
शीत विदा हो जाता है.


नयी हवायें,नया कलेवर,
प्रक्रति को मिल जाता है.
सूरज की रोशनी से देखो,
नवअंकुर खिल जाता है.


रंग बिरंगे फूलो से धरती  पर यौवन आता है.
बासंती हवाओं से प्राणी,
नया जीवन पाता है.


यूँ तो वीणावादिणि,
मेरे उर में बेठि रहती है,
कलम उठाकर बार बार,
कुछ लिखने को कहती है.


पीले फूलों का थाल लिये,
मन में श्रध्दा अपार लिये,
जन्म दिवस उपहार लिये,
हे हँसवाहिनी,
कमलदायीनी,
वीणा -पुस्तक धारिणि,
वंदना तेरी बारम्बार,
माँ शारदे तुझे प्रणाम.
माँ शारदे तुझे प्रणाम.


स्वरचित,
अतिवीर जैन,पराग,
मेरठ
9456966722.


आशुकवि नीरज अवस्थी (बसंत)  जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली

बसंत 
जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली7। 
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..।। 
नयी कोपले पेड़ और पौधो पर  हरियाली.
उनके मुख मंडल की आभा गालो की लाली.। 
चंचल चितवन उनकी नीरज खोजै गली गली।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली।
कोयल कूकी कुहू कुहू और पपिहा पिउ पीऊ , 
अगर न हमसे तुम मिल पाई तो कैसे जीऊ।
मै भवरा मधुवन का मेरी तुम हो कुंजकली ।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.
बागन में है बौर और बौरन मां  अमराई 
कामदेव भी लाजै देखि तोहारी तरुनाई ,
तुमका कसम चार पग आवो हमरे संग चली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.. 
हरी चुनरिया बिछी खेत  में सुन्दर सुघड़  छटा । 
नीली पीली तोरी चुनरिया काली जुल्फ घटा ।
आवै फागुन जल्दी नीरज गाल गुलाल मली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..     
आशुकवि नीरज अवस्थी
खमरिया पण्डित खीरी
9919256950


सुनील कुमार गुप्ता भगत सिंह कालोनी, कविता तालीम

नाम: सुनील कुमार गुप्ता
S/0 श्री बी.आर.गुप्ता
3/1355-सी,
न्यू भगत सिंह कालोनी,
बाजोरिया मार्ग,सहारनपुर-247001(उ.प्र.)


कविता: -
      *" तालीम"*
"तालीम ऐसी मिले बच्चो को,
जिससे- उपजे -
जीवन में संस्कार।
दे मान सम्मान अपनो को,
मिटे उनके मन मे-
छाया हुआ विकार।
तालीम ऐसी हो साथी,
भटके न युवा-
मिले रोजगार।
तालीम ही सीखती है,
आपस में भाईचार-
सभ्यता संस्कृति का बने आधार।
तालीम के बिना ही तो,
भटकते युवा-
उत्पन्न होते विकार।
तालीम ऐसी मिले बच्चो को,
जिससे-उपजे-
जीवन में संस्कार।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः       सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः        30-01-2020


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड नमन् करूँ माँ शारदे

नमन करूं मां सरस्वती
*******************
पार करो मां अंधकार से
अब तार दो मां अज्ञान से
दो नयन तेरे मतवाले है
मां सरस्वती वे तेरे दीवाने है।


बसन्त उत्सव आया है
अब रसना को संवार दे मां
आप्लावित कर  रस से मां
रस रसना पर वार दे मां।


मन हर्षित कर तन हर्षित कर
कर दे हर्षित मेरे रोम रोम मां
जो आये मां शरण तुम्हारे
शब्द  सोम  रस घोल दे।


दो नयन प्यालों में अब मां
शब्द   मद  मय  घोल  दे
मधुर  बैन बोले  हम सब
सभी जनों में रस घोल दे
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


सुनील कुमार गुप्ता कविता:-         *"मंज़िल"* "पा सके मंज़िल अपनी साथी,

सुनील कुमार गुप्ता


कविता:-
        *"मंज़िल"*
"पा सके मंज़िल अपनी साथी,
सहज नही-
इस जीवन में।
असम्भव नही काम कोई साथी,
जो कर न सके-
इस जीवन में।
सुख दु:ख धूप छाँव से,
साथी संग चलते-
इस जीवन मे।
भक्ति संग ही तो साथी,
मिलता सुख -
इस जीवन में।
थक न जाये तन-मन साथी,
जब तक आस -
इस जीवन में।
महकती रहे जीवन बगिया,
साथी अपनत्व संग,
इस जीवन में।
चलते रहना सत्य -पथ पर,
जब तक मिले न मंज़िल-
इस जीवन में।
पा सके मंज़िल अपनी साथी,
सहज नहीं -
इस जीवन में।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         28-01-2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय मेरे प्राणों के प्राण

मेरे प्राणों के प्राण प्रणय है तुमसे
प्रियतम प्रियवर प्रीति मेरी तुमसे


प्रण पालक प्रजा पालक हो तुम्ही
प्रियजन परिजन पावन हिय तुम्ही


प्रज्ञा पुंज प्रदीप्त प्रभा के आगार
प्रभव प्रभाव पापों से हो परिष्कार


पलक पांवड़े पल पल मैं बिछाऊँ
परमज्योति प्रकाश तेरा मैं पाऊँ।


श्रीकृष्णाय नमो नमः💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय मेरे प्राणों के प्रा


कवि अतिवीर जैन,पराग,मेरठ .इक फूल सा -- - - - :- कोहरे और बादलों को 

कवि अतिवीर जैन,पराग,मेरठ .
9456966722 


इक फूल सा -- - - - :-


कोहरे और बादलों को 
चीरता नज़र आता है.
इक अरसे बाद सूरज 
उगता नज़र आता है.
शीतलहर और कम्प्कपी से निजात दिलाता है.
इक फूल सा ख्वाबों में 
खिलता नज़र आता है.


ठंड खाये कुम्हलाए पौधे 
खिलते से नज़र आते है.
ठिठुरते इंसानों के ख्वाब
खिलते से नज़र आते है.
ठंड से बेरोजगार जब 
रोज़गार पा जाते है.
इक फूल सा ख्वाबों में 
खिलता नज़र आता है.


स्वरचित,
अतिवीर जैन, पराग,मेरठ


गजल हीरालाल बनी  यूँ   झूठ  का  बाज़ार  दुनिया

*ग़ज़ल*
1222 1222 122


बनी  यूँ   झूठ  का  बाज़ार  दुनिया।
नहीं करती है सच स्वीकार दुनिया।


भली  चंगी  नज़र आती  है लेकिन
बहुत  है  जेह्न  से  बीमार  दुनिया।


किया  करता  है  जो भी जी हुजूरी
लुटाती  है  उसी  पर  प्यार दुनिया।


यही  कहता  मिलेगा   आदमी   हर
है उसके ग़म की जिम्मेदार  दुनिया।


जहाँ   भी   देखती  है   प्रेम   बढ़ता
उठाती   है   वहीं   दीवार   दुनिया।


चले  जाते  नहीं  क्यों  छोड़  *हीरा*
लगे  इतनी  है  जो  बेकार  दुनिया।


                 हीरालाल


लघुकथाः महंगाईःमहेश राजा:

लघुकथाः महंगाईःमहेश राजा:
------------------------------------------
मैनें दूधवाले से पूछा-"क्यों भैया,ये ससुरी महंँगाई इतनी बढ़ी चली जा रही है,लेकिन आपने अपने दूध की कीमते अब तक नहीं बढ़ायी?


दूधवाला भ ईया हंसा,-"आपको हमारे
 दूध मे कोई फरक नजर आया क्या?


वैसा ही दे रहे है बरसों से।हमे जनता का बडा ध्यान रहता है साहब जी ।


बेचारे वैसे ही महंगाई के बोझ तले दबे जा रहे है।इसलिये हम ऐसा करते है कि दूध मे थोडा सस्ता वाला दूध पावडर और साफ पानी मिला देते है।"


*महेश राजा*  महासमुंद।।


अजय 'अजेय' अष्टपदी वासंती छंद ---- शीत के निष्ठुर अहम कूं तोड़े

अजय 'अजेय'


अष्टपदी वासंती छंद ----
शीत के निष्ठुर अहम कूं तोड़े
घर की अटिया घाम कूं ओढ़े
बयार बहे मन सिहरन लागे
भावज के बसना गावन लागे
फूल पात मिल करें ढिठाई
हँसि हँसि आपस लेंय बलाई
मौसम बेई जो सबकूं पसंद है
कानन बागन बगरो बसंत है
कामदेव कूं पिता बनाऐं
धरती रंग विरंग नहाएं
सृजन डुले सर्जना लहराऐं
कोमल कोंपल तोतली गायें
हिय हिरनी तन कूं हुलरायें
कोयल कूक खग मृग दुलरायें
मौसम बेई जो सबकूं पसंद है
कानन बागन बगरो बसंत है
आम के बौर भरें किलकारी
चुनुआ मुनुआं बजावें तारी
सरसों मारे हिलोर रंगन की
छनक पीत बिछौना नी की
सूखे पत्ता खोंदर कारें
अम्मा रिसिआय आंगन बुहारें
मौसम बेई जो सबकूं पसंद है
कानन बागन बगरो बसंत है
माघ माह शुक्ल पक्ष पंचमी
माँ वाणी अवतरण विक्रमी
कवि कोविद गावहिं चालीसा
राग बसन्ती रचें मुनीसा
शब्द गढ़ें साहित्य उवाचें
कविता कलरव भरे कुलाचें
मौसम बेई जो सबकूं पसंद है
कानन बागन बगरो बसंत है
-- अजय 'अजेय'


विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर, छ.ग. इस जीवन से मुक्ति मिले

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर, छ.ग.


इस जीवन से मुक्ति मिले
----------------------------;;------
बार बार मरने से अच्छा
इस जीवन से मुक्ति मिले
जिवित रहूं तो मान बच सके
ऐसी कोई युक्ति मिले ।


भाषा शब्द बदलने लगते
फिर नयनों की भाव भंगिमा
कर्कशता हो बहुत प्रभावी
छूटे छाया और मधुरिमा
मान बचा पाउं मर जाउं
ऐसी कोई शक्ति मिले
बार बार मरने से अच्छा
इस जीवन से मुक्ति मिले ।


परिवर्तन के क्रूर पटल पर
आशाओं से परे घटे जब
किन कोनों मे जीवन ढूंढ़ें
खंड खंड मे हृदय बंटे जब
शब्द कैद हो निष्ठूरता के
फिर कैसे अभिव्यक्ति मिले
बार बार मरने से अच्छा
इस जीवन से मुक्ति मिले ।


विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर, छ.ग. अभिव्यक्ति - 695


आलोक मिश्र 'मुकुन्द'* दोहे विषय - खाकी  साजन, सजनी से सदा, रहता है ज्यों दूर।

आलोक मिश्र 'मुकुन्द'*


दोहे विषय - खाकी 


साजन, सजनी से सदा, रहता है ज्यों दूर।
विरह पीर जलती रही, खाकी में मजबूर।।


खाकी को डसते सदा, राजनीति के नाग।
इसीलिए  देखो  बहुत, लगे  हुए  हैं  दाग।।


नींद  बेच खाकी  सदा, खड़ी  देश  रक्षार्थ।
कलियुग में इससे बड़ा, नहीं अन्य परमार्थ।।


देश भक्ति पथ पर सदा, नहीं स्वयं को रोक।
रोजी,  रोजा   से   बड़ी, होती   है  आलोक।।


खाकी से सबकी जुड़ी, अपनी- अपनी आस।
पर   कोई   रखता  नहीं, अंदर  उर  विश्वास।।


व्यथा पुलिस की देखिए, वेतन मिलता अल्प।
अंदर  शोषण  हो  रहा, बदलो  काया  कल्प।।


भारत   में  जयचंद  जो, खाकी  उनकी  काल।
कफन शीश धर चल दिए, भारत माँ के लाल।।


व्यक्त   करे    संवेदना, अश्रु    दिया   है  रोक।
देख पुलिस की उर व्यथा, दुखी हुआ आलोक।।


*✒ आलोक मिश्र 'मुकुन्द'*


अमित शुक्ल कब तक तसव्वुर से बहलाएँ खुद को।

कब तक तसव्वुर से बहलाएँ खुद को।
 कभी बुझाए कभी जलाएं खुद को।
आज तुमको भुलाने की कसम खाई है।
चलो फिर आज आजमाएं खुद को।
तुम्हें तलाशने से जो मिले फुर्सत।
तब कहीं जाकर नजर आएं खुद को।
गुजरता रात का सफर सिसकिंयों के तले।
रख के तकिया मुंह पर खुद से छिपाएं खुद को ।
सौ सवाल आते हैं अमित तुम को लेकर।
तुम ही बताओ अब क्या बताएं खुद को।
      @ अमित शुक्ला @


निधि मद्धेशिया कानपुर अथाह* धन-वैभव मिला है अथाह...

निधि मद्धेशिया
कानपुर


अथाह*


धन-वैभव मिला है अथाह...
मीराधा बनूँ इच्छा अथाह...


पहले ही कर दिया नाम
मेरे एक वन,जिसमें
बावली-सी फिरती रहूँ अथाह...


बनते नवगीत कैसे
छंद हैं सारे अधूरे, 
कर्मो को मिले मार्ग अथाह...


आयी कैसे धुन परदेशी
हैं अधूरे राग भी,
बस समझना है अथाह...


स्वांग की कोरी शहनाई सुन
कठिनाइयों में हो जाओ चुपके
बनती है बात अथाह...


1/1/2020
10:51 AM
निधि मद्धेशिया
कानपुर


डा० भारती वर्मा बौड़ाई देहरादून, उत्तराखंड  हे हंसवाहिनी! आ सबके घर में।

डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड 


हे हंसवाहिनी!
आ सबके घर में।


उतर कर सबके हृदय से 
ईर्ष्या-द्वेष दूर कर दे,
शूल पथ के सारे चुन कर 
चहूँ ओर सुमन भर दे,


हे वीणावादिनी!
आ सबके घर में।


चीर कर घनघोर तिमिर 
प्रकाश का रंग भर दे,
अज्ञानमय इस जग में आ 
ज्ञान का रंग भर दे,


हे ज्ञानदायिनी!
आ सबके घर में।


राह से भटके हुए नहीं जानते 
क्या लक्ष्य है जीवन का,
बस चल रहे बिन सोचे-समझे 
दुरुपयोग करते समय का,


हे नवान्नदायिनी!
आ सबके घर में।


मेरे शीश पर सदा तेरा हाथ हो 
बनूँ छाया धूप के लिए,
वेदना के गहन क्षणों में  साथ हो 
चलूँ दीन-दुखियों के लिए,


हे सुखदायिनी!
आ सबके घर में।
——————————-
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड 
9759252537


मुक्तक सोनू जैन मन्दसौर मोहब्बत मोहब्बत कभी किसी की नाकाम न हो,

सोनू जैन मन्दसौर


मोहब्बत


मोहब्बत कभी किसी की नाकाम न हो,
मोहब्बत किसी की चौराहे पर बदनाम न हो।
मोहब्बत की राह नही कोई आसान हम सब जानते है,,
मग़र मोहब्बत में किसी पर कोई तोहमतें इल्जाम न हो।✍✍✍✍😊😊
*सोनू जैन मन्दसौर की कलम से स्वरचित मौलिक*


एस के कपूर " श्री हंस"* *बरेली* विविध हाइकू।।।।

एस के कपूर " श्री हंस"*
*बरेली*


विविध हाइकू।।।।।।।।।।।।।*


महा नगर
संवेदनाएं शून्य
मौन डगर


ये पहनावा
फटी हुई जीन्स ये
कैसा दिखावा


यह मुस्कान
लोकप्रियता की ये
मानो दुकान


वाणी की आरी
यह तो  है   सबसे
तेज़   कटारी


यह सावन
मौसम   बहुत ही
मन भावन


यह   बसंत 
शरद ऋतु का ये
जैसे हो अंत


भाषा नमन
साहित्य समाज का
होता दर्पण


शब्द कलश
अमृत विष भरे
कटुता हर्ष


स्वर्ग नरक
तेरे अपने हाथ
हर तरफ


यह भक्षक
और हमारे बीच
भी हैं रक्षक


*रचयिता।।।एस के कपूर " श्री हंस"*
*बरेली*
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देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी" ........जय माता सरस्वती....

.देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


........जय माता सरस्वती...........


जय माता सरस्वती, हम हैं तेरे सन्तान।
तेरी अर्चना के नियम से,हम हैं अज्ञान।


भटकते हैंअंधकार में,नहीं हमें है ज्ञान।
तेरी कृपा सेअब,होगा हमारा कल्याण।


तेरे वीणा की आवाज़,हरे हमाराध्यान।
तेरे हाथ में पुस्तक,बढ़ाये हमारा ज्ञान।


हँस तुम्हारी सवारी,श्वेत वस्त्र परिधान।
हमें चाहिए तुमसे,बुद्धिऔर विद्यादान।


कमल आसन शोभित,दे ऐसा वरदान।
जीवन बीते'आनंद'से,करें हमगुणगान।


-----देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


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