देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"
सरस्वती - वन्दना
हम अंजान हैं,न जाने वंदना की विधि;
कैसे करें हम वंदना,मां सरस्वती तेरी।
हम अज्ञान हैं,न जाने अर्चना की रीति;
कैसे करें हम अर्चना,हे भगवती तेरी।।
अंधकार में भटकते,कृपा की चाह में;
तेरा नाम बसा है,हमारी हर आह में।
तू ही दीप जला दे,ज्ञान और स्नेह की;
कुछ नहीं दिखता,जिंदगी की राह में।।
एक हाथ में पुस्तक,एक हाथ में वीणा;
कमल आसन पर,मां तू शोभित है।
हमारी अज्ञानता पर तुम तरस खाओ ;
क्यों हमारी अज्ञानता पर कुपित है।।
ज्ञान का तू भंडार , विद्या का तू अंबार;
सब कुछ तुम्हारे , कर कमलों में ।
दे ऐसी बुद्धि और ज्ञान हमें , तू मां ;
ले आएं जीवन में,अपने अमलों में।।
श्वेत वस्त्र और हंस की सवारी ;
हे मां , तुम्हारी अद्भुत निशानी है ।
छात्रों में विद्यादान तथा बुद्धि वर्धन ;
हे मां , तुम्हारी अनुपम कहानी है।।
----- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"