कौशल महन्त"कौशल" जीवन दर्शन भाग !!१७!!* ★★★ पलना में इठला रहा,            लगे बाल गोपाल।

  कौशल महन्त"कौशल"


जीवन दर्शन भाग !!१७!!*


★★★
पलना में इठला रहा,
           लगे बाल गोपाल।
डाल रहा मुस्कान से,
           प्रेम पाश की जाल।
प्रेम पाश की जाल,
           लगे ज्यों किल किलकारी।
प्रहसित प्रमुदित रूप,
           बसे हैं दुनिया सारी।
कह कौशल करजोरि,
           पुहुप सम लागे ललना।
है कुल का उजियार,
          नयन का झूले पलना।।
★★★
टीका काजल का लगा,
            माँ करती शृंगार।
पाकर नित संतान सुख,
            करती बहुत दुलार।
करती बहुत दुलार,
            नेह की लोरी गाती।
करवा कर स्तनपान,
            अलौकिक सुख है पाती।
माँ का अतुलित प्रेम,
           नहीं होता है फीका।
कलुषित नजर बचाव,
           लगाती काजल टीका।।
★★★
काले कुंतल की कली,
            कर कणकण करताल।
पैजनिया पग में बजे,
           भल भावन भर भाल।
भल भावन भर भाल,
           सुहाये सूरत भोली।
किलकारी की गूंज,
           खुशी की भरती झोली।
कह कौशल करजोरि,
            इसे माँ ही सम्हाले,
सबका ही मन भाय,
            घुंघराले लट काले।।
★★★


कौशल महन्त"कौशल"
🙏🙏🌹


जयपुर से - डॉ निशा माथुर शुक्र है सुंदरता के प्रतीक, ये चमक धमक और इत्र

जयपुर से - डॉ निशा माथुर


शुक्र है सुंदरता के प्रतीक, ये चमक धमक और इत्र
शुक्र है कुशाग्र बुद्धि, कुशल वक्ता और आकर्षक व्यक्तित्व
शुक्र आते है सभी ग्रहों में बीस वर्ष की महादशा लेकर
बेहद चमक लिए, शांत सौम्य से शुक्र है वैभव के प्रतीक।


तो आज मौका भी है और ये दस्तूर भी
मना लीजिये शुक्र को ,आज शुक्र  है भरपूर भी।


शुक्र के शुक्रवार का आज शुकराना। सुबह का सादर प्रणाम,आदाब आप सभी को नजराना
नमस्ते जयपुर से - डॉ निशा माथुर🙏😃


नूतन लाल साहू नारी नारी तुम आदि शक्ति हो

नूतन लाल साहू


नारी
नारी तुम आदि शक्ति हो
भुल जाओ,आंखो से नीर बहाने को
रानी लक्ष्मी बाई से, सीख लो
सीखो,बंदूक तीर चलाने को
न समझो, नर की अबला हो
राजा महाराजाओं का तबला हो
तुम तो नर,की खान हो
ज्ञान,शक्ति और धन का भंडार हो
नारी तुम आदि शक्ति हो
भुल जाओ,आंखो से नीर बहाने को
रानी लक्ष्मी बाई से सीख लो
सीखो,बंदूक तीर चलाने को
दुर्योधन ने, द्रौपती का अपमान किया
कौरव वंश का,नाश हुआ
रावण ने सीता जी का,अपहरण किया
सब जानते है,रावण का क्या हाल हुआ
जिसने भी,नारी से नफ़रत किया
उनका, सब कुछ लुट गया
नारी तुम आदि शक्ति हो
भुल जाओ,आंखो से नीर बहाने को
रानी लक्ष्मी बाई, से सीख लो
सीखो,बंदूक तीर चलाने को
नारी तुम तो,घर की लज्जा हो
नारी तुम ही,मन मंदिर की पूजा हो
भव्य आरती,सजाने वाली
मंदिरों में,दीप जलाने वाली
कालो का काल,महाकाली हो
नारी बिन,सृष्टि भी हो जायेगी खाली
नारी तेरी महिमा है,सबसे निराली
नारी तुम आदि शक्ति हो
भुल जाओ,आंखो से नीर बहाने को
रानी लक्ष्मी बाई,से सीख लो
सीखो, बंदूक तीर चलाने को
नारी की,तारीफ कैसे करू
मेरे शब्दों में,इतना जोर नहीं है
सारी दुनिया में,जाकर ढूंढ़ लेना
नारी ही, महाशक्ति है
नूतन लाल साहू


नूतन लाल साहू सलाह जग में,अनमोल बनना है तो

सलाह
जग में,अनमोल बनना है तो
गुरु के शरण में,जाना ही पड़ेगा
पद धन बल,काम न आयेगी
विद्यार्थी बनकर रहना ही पड़ेगा
ढाई अक्षर का,शब्द प्रेम है
मानव जीवन का है,अनमोल रतन
सदाचार ही, वो सीढ़ी है
जो व्यक्ति को, बनाता है अमर
जग में अनमोल, बनना है तो
गुरु के शरण में,जाना ही पड़ेगा
पद धन बल,काम न आयेगी
विद्यार्थी बनकर,रहना ही पड़ेगा
चाहे कथा बन,चाहे कहानी बन
चाहे ज्ञानी बन,चाहे विज्ञानी बन
चाहे हिन्दू बन,चाहे मुस्लिम बन
चाहे गरीबों का,राशन कार्ड बन
जग में अनमोल बनना है तो
गुरु के शरण में,जाना ही पड़ेगा
पद धन बल,काम न आयेगी
विद्यार्थी बनकर,रहना ही पड़ेगा
अनेक जातियों की,फूलों से
पुष्पित है,जग की बगिया सारी
सभी जातियों का,तू सम्मान कर
वीर शहीदों की,इतिहास पढ़कर
कोई भूल न पाये,ऐसा नेक काम कर
जग में अनमोल,बनना है तो
गुरु के शरण में,जाना ही पड़ेगा
पद धन बल,काम न आयेगी
विद्यार्थी बनकर,रहना ही पड़ेगा
मत सोच की तेरा,
सपना क्यों पूरा नहीं होता
हिम्मत वालो का इरादा
कभी अधूरा नहीं होता
जिस इंसान के कर्म
अच्छे होते है
उसके जीवन में
कभी अंधेरा नहीं होता
नूतन लाल साहू


नूतन लाल साहू माटी माटी का है,बना ये दुनिया

नूतन लाल साहू


माटी
माटी का है,बना ये दुनिया
माटी है, अनमोल
माटी का कोई भेद न जाने
माटी है, अनमोल
कालिया बन जाओ तुम
फूल बन मुस्कुराओ
मधुर मधुर,मस्त मस्त
गीत तुम सुनाओ
तुम सपूत हो,हिंदुस्तान का
तुझसे ही,बना है हिंदुस्तान
माटी का है, बना ये दुनिया
माटी हे, अनमोल
माटी का कोई भेद न जाने
माटी हे, अनमोल
कथा बनो,कहानी बनो
नेता बनो,अभिनेता बनो
धनवान बनो,बलवान बनो
ज्ञानी बनो, विज्ञानी बनो
माटी का तिलक लगा लो
माटी का है, बना ये दुनिया
माटी है, अनमोल
माटी का कोई भेद न जाने
माटी है, अनमोल
बम चलाने वाले प्यारे
खुद मर जाते है, बेमौतो से
जो देश के खातिर,मर मिटे
उसे कुर्बानी, कहते है
माटी है, बेजोड़ जगत में
ममता का चादर ओढ़
माटी का है,बना ये दुनिया
माटी हे, अनमोल
माटी का कोई भेद न जाने
माटी है, अनमोल
गंगा मांग रही बलिदान
जमुना मांग रही कुर्बानी
आज वतन में जो मिट जाये
वो है, सच्चा हिन्दुस्तानी
नूतन लाल साहू


नूतन लाल साहू बादर पानी माघ के महीना, जुड़ जुड़ बिहनिया

नूतन लाल साहू


बादर पानी
माघ के महीना, जुड़ जुड़ बिहनिया
रूस रूस रूस रूस, लागय रौनिया
दिन भर, चलय जुड जुड हवा
जुड सरदी,जर बुखार म,हफरत हे दुनिया
सुरुज नारायण ल,देखत हे परानी
जब उगही तब, मिलही रौनिया
गोरसी अंगेठा,अब नदावत हवय
योगासन कर ले,नई लागय, पइसा रुपिया
माघ के महीना,जुड जुड बिहनि या
रूस रूस रूस रूस, लागय रौनिया
जुड सरदी,जर बुखार म, हफरत हे दुनिया
जंगल रुख राई, अडबड़ कटावत हे
बादर पानी ह, कहर बरपावत हे
बीते दिन के, झन रोवव रोना
हो ही उही जोन, हो ही होना
माघ के महीना,जुड जुड बीहनिया
रूस रूस रूस रूस, लागय रौनीया
दिन भर चलय,जुड जुड हवा
जुड सरदी,जर बुखार म, हफरत हे दुनिया
जग म परे हे, विपत भारी
रोग राई संकट,दुर्गति के
दिन गुजरत हे, ओसरी पारी
जलवायु परिवर्तन बर, अडे हे दुनिया
पाप के माते हे चिखला, नईये उजियारी
माघ के महीना, जुड जुड बीहनिया
रूस रूस रूस रूस, लागय रौनिया
दिन भर चलय,जुड जुड हवा
जुड सरदी,जर बुखार म, हफरत हे दुनिया
नूतन लाल साहू


संजय जैन (मुंबई ख्यालो में मिले वो*

संजय जैन (मुंबई


ख्यालो में मिले वो*
विधा : कविता


सवाल का जबाव 
सवाल में ही मिला मुझे ..।
वो शख्स मेरा ख़्याल था, ख़्याल में ही मिला मुझे।
फिर भी न जाने ये दिल,  
 क्यों यहाँ वहां पर भटकता है।
जबकि मुझे पता है।
मेरे ख्यालो का राजा मुझे, ख्यालो में ही मिलता है।।


गमे ख्यालो को हम,  
 वरदास कर नहीं पते।
फिर भी अपने प्यार का, 
इजहार कर नहीं पते।
डूब जाते है ऐसे,
सपनो की दुनियां में।
जहाँ से हम तैयाकर भी, वापिस नहीं आ पते।।


जब जब खुदा ने, 
मुझसे ख्यालो में पूछा।
क्या चाहते हो, 
तमन्नाये कहने लगी।
की बस मेरे ही ख्यालो में, उनके दीदार हो जाये।
और जब मुझे सही में, 
उन से प्यार हो जाये।
तो मेरा हम सफर बनकर,   
 मेरे साथ हो जाये।।


ख्यालो की बनाई दुनियां।
अब हकीकत में बदल गई।
जो ख्यालो में आता था, 
अब वो मेरा हमसफ़र बन गया।
मानो मेरी जिंदगी का, 
वो आधार बन गया।
अब तो साथ साथ जिंदगी को,
हंसते खिल खिलाते जी रहे है।
और ख्यालों की दुनियां से निकलकर,
हकीकत में जी रहे है।।


 जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई)
01/02/2020


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।।बरेली मुक्तक

*शहीद हमारे अमर महान हो गए।*


*।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।*


नमन है उन शहीदों को जो
देश पर कुरबान हो गए।



वतन   के  लिए देकर जान
वो   बे जुबान  हो   गए ।।



उनके प्राणों  की  कीमत से
ही सुरक्षित है देश हमारा।



उठ  कर  जमीन  से   ऊपर
वो जैसे आसमान हो गए।।


*रचयिता।।। एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।*


मोब  9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली* हाइकू

*विविध हाइकु।।।।।।।।।।।*


यह मुखौटा
चेहरे  पे  चेहरा
है दिल खोटा


गठ बंधन
स्वार्थ की ये दोस्ती है
बन नन्दन


प्रभु की भक्ति
नर   सेवा   इससे
मिलती शक्ति


यह गलती
मिटता ये अहम
तब दिखती


मेरे अपने
दिल के ये टुकड़े
मेरे सपने


ये    मेहमान
चार दिन की बस
जिन्दगी नाम


ये कलाकार
बदले   किरदार
हैं  फनकार


पैसा ओ पैसा
आज बन   गया है
जीवन   ऐसा


यह सुविधा
नहीं मिलती जब
बढे दुविधा


ये आसमान
सोचो करो बड़ा हो
तेरा मुकाम


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
*मोबाइल।*         9897071046
                        8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।बरेली।

*बस हर किसी के लिए दुआ हो*
*तेरे दिल में।।।।।मुक्तक।।।।।।।*


व्यक्ति नहीं  व्यक्तित्व बनो
आओ हमेशा याद।


दिल तुम्हारा सुन सके हर
दर्द  की  फरियाद।।


ये जिन्दगी तो है पतंग सी
कब डोर कट जाये।


हर किसी के लिए दिल में
दुआ रहे  आबाद।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।*
*मोबाइल*  
9897071046
8218685465


डॉ. रश्मि शर्मा राज हापुड़ डेथ

हमारे सम्पर्क के लगभग सभी लोंगो ने आदरणीया रश्मि शर्मा जी के असामयिक आकस्मिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए अपनी संवेदना व्यक्त की है अधिकांश लोंगो ने कारण भी जानना चाहा
गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड होल्डर आदरणीया रश्मि शर्मा राज हापुड़ में एक महाविद्यालय में कला की प्रोफेसर थी आपके पति आकाशवाणी दिल्ली में म्यूजिक डायरेक्टर है और आपका पुत्र अपना स्टूडियो है तथा साहित्य एवम संगीत में पारंगत है एक बेटी है जो bams की पढ़ाई कर रही है।गाल ब्लेडर में स्टोन थी और उसी में पता नही चला पीलिया की जांच में पता चला कि कैंसर लास्ट स्टेज पहुंच गया और वह 24 जनवरी को इस नश्वर संसार से विदा हो गई।वास्तव में बहुत ही दुःख की खबर है यह इससे बड़ी दुःखद कोई खबार नही हो सकती।हम लोंगो का यह हाल है तो परिवार का क्या होगा खैर ईश्वर का निर्णय स्वीकार करना ही पड़ता है क्योकि उसका सिस्टम कभी फेल नही होता हम अपने सिस्टम से देखते है।बस वह परम सत्ता हम सभी का कल्याण करे और काव्य रंगोली परिवार से सम्बंधित किसी भी हमारे सदस्य को कभी भी कोई गम दुंख शोक वियोग कष्ट हानि अहित होने की सूचना न मिले यही प्रार्थना है।


विष्णु असावा                बिल्सी ( बदायूँ घनाक्षरी छन्द  शारदे नमन तुम्हें बार बार बार बार बार बार चरणों में बलिहारी जाऊँ माँ

विष्णु असावा
               बिल्सी ( बदायूँ


घनाक्षरी छन्द 


शारदे नमन तुम्हें बार बार बार बार
बार बार चरणों में बलिहारी जाऊँ माँ


है बसंत पंचमी की शुभ तिथि शुभ दिन
ऐसे शुभ अबसर शीश को झुकाऊँ माँ


सभा बीच लाज मेरी रख लेना मेरी अम्ब
पड़े जो मुसीबत तो तेरा प्यार पाऊँ माँ


कंठ में बिराजो स्वर साधना आकंठ करो
सजा थाल पूजन का तुझको मनाऊँ माँ


बसंत पंचमी की इन्हीं शुभकामनांओं सहित आपका अपना
                  विष्णु असावा
               बिल्सी ( बदायूँ )


कौशल महन्त"कौशल" जीवन दर्शन भाग !!१६!!* बालक बन जन्मा यहाँ,

कौशल महन्त"कौशल"


जीवन दर्शन भाग !!१६!!*


बालक बन जन्मा यहाँ,
           हर्षित हैं माँ बाप।
किलकारी की गूँज में,
           मिटे सभी संताप।
मिटे सभी संताप,
            उजाला घर में फैला।
उपजी खुशी अपार,
            प्रेम का भर-भर थैला।
कह कौशल करजोरि,
            विधाता है संचालक।
देख पुण्य प्रारब्ध,
           बनाया तुझको बालक।।
★★★
तुतली बोली बोल कर,
           बाँट  रहा   आनंद।
रुदन कभी हँसना कभी,
           मुस्काना भी मंद।
मुस्काना भी मंद,
           बाल लीला है करता।
पल में बनता वीर,
           और पल में है डरता।
कह कौशल करजोरि,
           नहीं है सागर उथली।
महके ज्यों मकरंद,
          तनय की बोली तुतली।।
★★★
माता की ममता भली,
           और पिता का प्यार।
पूत सुता माता पिता,
          बनते हैं परिवार।
बनते हैं परिवार,
          प्यार जब पनपे मन में।
सुखी सदा संसार,
         सुमत हो जब जीवन में।
कह कौशल करजोरि,
        हृदय में प्रेम समाता।
बचपन का सुखधाम,
        पिता पालक अरु माता।।
★★★


कौशल महन्त"कौशल"
🙏🙏🌹


श्याम कुँवर भारती [राजभर] भोजपूरी लोकगीत (पूर्वी धुन ) – तोहरो संघतिया  याद आवे जब तोहरो संघतिया

श्याम कुँवर भारती [राजभर]


भोजपूरी लोकगीत (पूर्वी धुन ) – तोहरो संघतिया 
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
करे मनवा तनवा के झकझोर |
बिसरे नाही प्रेमवा के बतिया ,
बरसे मोरे नयनवा से लोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
कइके वादा हमके बिसरवला |
तोड़ी नेहिया के बहिया छोडवला |
सुनाई केतना हम आपन बिपत्तिया |
मिले नाही हमके कही ठोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
तोड़े के रहे काहे दिलवा लगवला |
सुघर काहे हमके सपना देखवला | 
साले हमके तोहार सावर सुरतिया |
चले नाही केवनों दिलवा प ज़ोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
भूखियो न लागे हमके नींदियों ना लागे |
मखमल के सेजिया कटवा जस लागे |
सही केतना हम लोगवा ससतिया |
तरवा गिनत हमके होई जाला भोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
जिनगी डुबवल भवरिया सवरिया |
बिरह के अगिया जरे ई गूज़रिया |
नागिन जईसे डसे कारी रतिया |
भरीला तू भर अंकवरिया माना बतिया मोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
करे मनवा तनवा के झकझोर |



श्याम कुँवर भारती [राजभर]
 कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


चंचल पाण्डेय 'चरित्र' वसंत पंचमी              छंद कलाधर श्वेत  वस्त्र  धारिणी  सुहंस  पै  रही  सवार,

चंचल पाण्डेय 'चरित्र'


वसंत पंचमी 
            छंद कलाधर
श्वेत  वस्त्र  धारिणी  सुहंस  पै  रही  सवार,
मातु   ज्ञान   दान   दे   सुचेतना  उभार  दे|
अंधकार  हार  के  हरो  सभी  हिये   विकार,
दिप्त   शुभ्र   विश्व   में   सुलोचना   पसार  दे||
तत्व  ब्रह्म  वेद  की  समस्त  ज्ञान  धारिणी  तु,
लेखनी   मयूर   पंख   छंद   बंध   सार  दे|
शब्द   शब्द  में  रहे  स्वराष्ट्र   भावना  समाय,
नीति   सूर्य   के   समान   रोशनी  निखार  दे||
भक्ति  भाव  ज्ञान  से  हरो  सभी  मनोविकार,
दिव्य  भूमि  आज  राम  राज्य  को  प्रसार   दे|
पाप  अंधकार  गर्त  छाँट  के  कुतंत्र  मंत्र,
सत्य   सूर्य   चंद्र   सर्व   प्राण   में   उतार  दे||
स्वप्न  ले  हजार  द्वार  पे  खडा  निहार  मात,
काव्य  शिल्प  व्यंजना  प्रगीत - गीत  वार  दे|
आपकी   उदारता   महानता   विशुद्ध   शुद्ध,
हो  सके  पधार  मातु  मंच  को  प्रसार  दे||
हस्त   बद्ध   हो   चरित्र  भाव  ले  हिये  पवित्र|  
श्लेष   वंदना   करें   सदा   चरित्र  शारदे||
                चंचल पाण्डेय 'चरित्र'


संजय जैन (मुम्बई) भारत है हमारा विधा : गीत सुनो मेरे देशवासियों,

संजय जैन (मुम्बई)


भारत है हमारा
विधा : गीत


सुनो मेरे देशवासियों,
में हूँ एक साधारण इंसान,
मुझे भारत से प्यार है।
मुझ वतन से प्यार है।।


कभी नहीं दिया किसी को धोखा, 
और न खाई झूठी कसमें,
जिन से की हमने दोस्ती,
दिया साथ सदा उनका।
चाहे वो कोई जाति धर्म का हो,
वो है हमारे देश की शान।
उन्हें कैसे दे हम धोखा
उन्हें कैसे दे हम धोखा।।


नहीं की कभी भी गद्दारी,
नहीं किया है भेदभाव।
नही देखा गलत नजरो से,
अपनी माता बहिनों को।
चाहे वो हो अमीर या हो चाहे वो हो गरीब,
हमारे देश की आन है,
हमारे देश की शान है।।


वतन से करते है हम बहुत प्यार,
हमारा देश बने गुलस्थान।
इसमें बसी है मेरी जान,
तो क्यो फैलाये इसमें नफरते हम।
यहां पर जन्मे हर मजहब के भगवान,
बसी है सब की देश में जान,
हमारा देश है बहुत महान।
हमे इससे बहुत प्यार है
हमे इससे बहुत प्यार है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
31/01/2020


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग (उत्तराखण्ड) शारदे वंदन

🙏🌹मां सरस्वती🌹🙏


हे मां सरस्वती
हे माँ जनोपकारणी
जग जननी, जल जीवधारणी। 
स्वर्णिम ,श्वेत, धवल साडी़ में
चंचल, चपल,चकोर चक्षुचारणी।


ज्ञानवान सारा जग करती माँ
अंधकार, अज्ञान सदैव हारणी 
विद्या से करती,जग जगमग
गुह्यज्ञान,गेय,गीत,  गायनी।


सर्व सुसज्जित श्रेष्ठ साधना सुन्दर
हर्षित, हंस-वाहिनी,वीणा वादिनी
कर कृपा,करूणा, कृपाल,कब कैसे,
पल में हीरक---रूप-- प्रदायिनी।


मूर्त ममतामय,ममगात मालती,
जब भटके,तम में माँ तुम्ही संवारिणी,
कितने कठिन, कष्ट कलुषित झेले माँ,
मार्ग प्रकाशित करदे माँ,मोक्षदायिनी।


जनप्रिय माँ जनोपकारणी
जग जननी, जल जीवधारणी। ।
💐💐💐💐💐💐💐💐
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग (उत्तराखण्ड)


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड बसन्त स्वागत है तुम्हारा

कालिका प्रसाद सेमवाल
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


बसन्त स्वागत है तुम्हारा
******************


*हे बसन्त तुम ऋतुओं में ऋतुराज हो*
*खग, नभ, और धरा*
*हम सब तेरी प्रतिक्षा कर रहे हैं*
*स्वागत है ऋतुराज वसंत तुम्हारा*


*हे ऋतुराज वसंत*
*निरस धरा और हताश जीवों में*
*करते हो तुम खुशियों का संचार*
*आओ ऋतुराज वसंत आओ*


*कोयल गान सुनाने को आतुर*
*आम, सरसों और पलाश*
*अपनी कलियों को बुलाने को व्याकुल*
*आओ ऋतुराज बसंत आओ*



*हे ऋतुराज वसंत*
*तुम को सब वन्दन करते है*
*तेरे आगमन की राह देखते है*
*आओ ऋतुराज वसंत आओ*
****************
*कालिका प्रसाद सेमवाल*
*रूद्रप्रयाग उत्तराखंड*


शारदे वन्दना कवि अतिवीर जैन "पराग"मेरठ  धार देना :-

शारदे वन्दना
कवि अतिवीर जैन "पराग"मेरठ 
9456966722


धार देना :-


हे माँ वाणी नमन तुम्हे,
आप मेरी कलम को, 
कुछ ऐसी धार देना.


देशद्रोहीयों पर करे प्रहार,
लेखनी में प्रहार देना.


दूर हो धर्म भिभेद,
कुछ ऐसे विचार देना.


राग देष से दूर रहे,
कुछ ऐसी धार देना.


देश आगे बढ़ता जाये,
कुछ ऐसा प्रवाह देना.


सौहार्द प्यार के गीत लिखूं,
मेरी लेखनी को धार देना.


देश हित में ही लिखे,
कुछ ऐसा उपहार देना.


हे माँ वाणी नमन तुम्हे,
सर्वे भवन्तु सुखिनः की
बात लिखूं,
ऐसा वर उपहार देना.


स्वरचित,
अतिवीर जैन पराग,मेरठ.


सत्यप्रकाश पाण्डेय भजन

मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में
बिक जाते हैं कान्हा तो केवल प्यार में


जिनके दर्शन पाने में बीतें जन्म हजारों
जप करके हार गये ऋषि मुनि मेरे यारो


वो कान्हा दौड़े आयें भक्तों की पुकार में
मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में


ग्वाल बाल संग खेल कूदके वह बड़े हुए
धर्म रक्षा के लिए सदा ही वह खड़े हुए


कैसे अवर्चनीय गुण देखो मेरे करतार में
मेरे श्याम सा कोई देखा नहीं संसार में।


श्रीश्यामाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐💐


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय भजन

अपने हृदय में हम कोई तस्वीर लगाये रहते है
मन के दर्पण में कोई प्रतिबिम्ब बनाये रहते है


कर दिया समर्पित यह जीवन जिसको हमने
अपने मन मंदिर में वही मूरत बिठाये रहते है


प्रातः काल अरुणिमा सी आलोकित करती वो
उस मोहिनी सूरत को आँखों में बसाये रहते है


कुंदकली सी मुस्कान आनन्दमयी कणिका वो
मेरे जीवन में सुखद अनुभूति दिलाये रहते है


अनुराग पीयूष से पूरित मकरन्द भरी वह
स्व यौवन सुरभि से अंग महकाये रहते है।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय भजन

गुणातीत हे जगतपिता
तुम्ही आदि अंत सृष्टि के
श्रीराधा हृदय के प्राण 
तुमआधार सुख वृष्टि के


जो जपे तुम्हारा नाम
माधव वह तेरा हो जाये
जग कष्ट न कोई घेरे 
खुशी दौड़ दौड़के आयें


मानव देह मिली मुझे
पूजन अर्चन करूँ तुम्हारा
मोह माया में फँसकर
स्वामी भूला नाम तुम्हारा


नारायण हे राधे रानी
जीवन नौका की पतवार
जग बंधन से मुक्त करो
सत्य शरण हे करुणाधार।


श्रीराधे कृष्णाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सत्यप्रकाश पाण्डेय सरस्वती वंदना वीणापाणि वर दे

सत्यप्रकाश पाण्डेय


सरस्वती वंदना


वीणापाणि वर दे
झोली खुशियों से भर दे
पद्मासना हे माता
हृदय आलोकित कर दे
तेरा स्नेह पाकर
आती पतझड़ मे बहार
हिय सरोवर में माँ
प्रकटे है ममता की धार
जिसको कृपा मिली
वो जग में हुआ निहाल
ज्ञान दायिनी माता
हर लो तमस विकराल
शरण आपकी माते
मेरी भरो ज्ञान से झोली
रहे न कालिमा मेरे
माँ पिक सी करदो बोली।


माँ शारदे का प्राकट्य दिवस आपके जीवन में सुख समृद्धि और संपन्नता लेकर आये🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


बलराम सिंह पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कालेज खमरिया पँ0 खीरी धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक व्याख्याता हँसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी।

बलराम सिंह पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कालेज खमरिया पँ0 खीरी धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक व्याख्याता


हँसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी।
जे पर दूषन भूषन धारी।।
निज कबित्त केहि लाग न नीका।
सरस होउ अथवा अति फीका।।
जे पर भनित सुनत हरषाहीं।
ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि जोक्रूर,कुटिल और बुरे विचार वाले हैं और जो पराये दोषों को आभूषण रूप से धारण करने वाले हैं, वे ही मेरी इस कविता पर हँसेंगे।स्वरचित कविता किसको अच्छी नहीं लगती है चाहे वह रस युक्त हो अथवा फीकी हो।जो दूसरों की कविता सुनकर प्रसन्न होते हैं ऐसे श्रेष्ठ लोग संसार में बहुत नहीं हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  यहाँ गो0जी ने उन चार प्रकार के लोगों को कहा है जो उनकी इस कविता का उपहास करेंगे।
1--कूर अर्थात क्रूर अथवा दयारहित, दुष्ट व दुर्बुद्धि।
2--कुटिल अर्थात कपटी स्वभाव वाले।
3--कुविचारी अर्थात बुरे विचार व समझ वाले।
4--दूसरों के दोषों को देखने वाले व उन दोषों को आभूषण के रूप में ग्रहण कर धारण करने वाले।
  आज भी समाज में बहुत से लोग केवल दूसरों की बात का खण्डन ही करते रहते हैं और वे श्रीरामचरितमानस में विभिन्न विषयों पर अकारण ही कुतर्क करते रहते हैं।वास्तव में गुणों और दोषों की वास्तविक परख तो सज्जनों को ही होती है और वे भौरों की तरह केवल सुगन्धित पुष्पों का ही चयन करते हैं।दुर्जन लोग तो मक्खियों की तरह सड़ी गली दुर्गन्धित वस्तुओं को ही ढूँढते रहते हैं।इस श्रीरामचरितमानस जैसे सद्गुणों से युक्त महाकाव्य में दुष्टजन तो उसी प्रकार दोष खोजने का प्रयास करते हैं जैसे मणियों में भी चींटी छिद्र खोजने का प्रयास करे।गो0जी पुनः कहते हैं कि स्वरचित कविता तो सभी को प्रिय लगती है जैसे अपना बनाया हुआ भोजन सभी को स्वादिष्ट ही लगता है।दोहावली में गो0 जी कहते हैं---
 तुलसी अपनो आचरन भलो न लागत कासु।
तेहि न बसात जो खात नित लहसुनहू को बास।।
 कहने का तात्पर्य यह है कि जो दूसरों की कविता अथवा वाणी सुनकर प्रसन्न होते हैं, वे ही श्रेष्ठ व सज्जन पुरुष हैं।लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


डॉ. प्रभा जैन "श्री " देहरादून बसंत  -------- खिल    जाता मन 


डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून


बसंत 
--------
खिल    जाता मन 
सुनते ही नाम बसंत। 


सूरज की पहली किरण 
देखती धरा को मग्न, 
खिल गए फूल- फूल 
और खिली सरसों क्यारी। 


चल रही ठंडी  मधुर बयार 
कली -कली भँवरा  मल्हार, 
पत्ती -  पत्ती    डोल   रही 
गीत    सुहाने    बोल रही। 


पक्षियों   की   धुन  निराली
प्रार्थना प्रभु जी की कर डाली
राग    बसंती    गा   रहे, 
कोयल कुहू -कुहू कर रही। 


स्वर्ग   सा   नज़ारा  
बिखरा    धरा  पर, 
ऋतुओं का राजा 
बसंत, आया धरा पर
तितली भी मग्न हो रही। 


पीले वस्त्रों में आओ सखी 
प्रेम के गीत गाओ सखी,  
पीले चावल भोग लगाओ 
भर लो आँचल खुशियों से। 


सुन्दर   पवन    संग
 नृत्य  कर लो सखी। 


स्वरचित 
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून 9756141150.


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...