बसंत
मिटाए वेदना चित की,
उसे हम संत कहते है ।
कला जीने कि सिखलाए,
उसे सदग्रंथ कहते है ।।
कहीं पतझड़,कहीं मधुवन,
ये तो बस ऋतु प्रवर्तन है,
जान मुर्दे में जो फूके,
उसे बसंत कहते है ।।
डॉ शिव शरण "अमल"
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
बसंत
मिटाए वेदना चित की,
उसे हम संत कहते है ।
कला जीने कि सिखलाए,
उसे सदग्रंथ कहते है ।।
कहीं पतझड़,कहीं मधुवन,
ये तो बस ऋतु प्रवर्तन है,
जान मुर्दे में जो फूके,
उसे बसंत कहते है ।।
डॉ शिव शरण "अमल"
हलधर जसवीर
माँ शारदा को समर्पित एक छंद
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शारदा है कंठ वासी ,भवानी भुजा निवासी ,
अंतस में मेरे शिव शम्भू का प्रवास है ।
ध्यान योग के नियम ,प्राणायाम औ संयम ,
दोनों दृग बीच वसा तीजा नेत्र खास है ।।
ओज के सुनाऊं राग ,आग से बुझाऊँ आग ,
मेरे शब्द शब्द वसा ब्रह्म का प्रकाश है ।
सावन मल्हार गाउँ फागुन शृंगार गाउँ ,
करुणा दया का रस मेरे आस पास है ।।
हलधर -9897346173
सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
*"व्याकुलता"*
"सब कुछ पा कर भी साथी,
पल-पल जीवन में-
क्यों-रहती व्याकुलता?
बहुत कुछ पाने की चाहत ही,
साथी पग-पग-
देती आतुरता।
सागर की तरह जीवन में,
साथी सब कुछ-
समेट ले अपने में।
फिर भी पल पल साथी,
बनी रहती-
जीवन में व्याकुलता।
अपनत्वहीन जीवन में साथी,
मिटती नहीं पीड़ा-
इस तन-मन की।
होती नहीं आत्मसंतुष्टि साथी,
इस जीवन में-
कैसे-मिटती व्याकुलता?
सब कुछ पा कर भी साथी,
पल-पल जीवन में-
क्यों-रहती व्याकुलता?"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 31-01-2020
प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबा
कुछ मुक्तक
सुनयने सौम्य छवि मनहर भव्यता ईश का वंदन है।
ललक श्यामल मुरारी की झलक राधा का चंदन है।।
भवानी माँ का ताप तुममें वत्सला मूर्त ममता की,
कभी प्रस्तर कभी सरिता समर्पित भाव तनमन मीरा के ज़हर में तुम रमते तुलसी के राम तुम्हीं भगवन है।।
शबरी के बदरी के रस में अर्जुन के गीता ज्ञान सघन।।
गोपाल सूर के पद पद में द्रौपदी की साडी बने तुम्हीं, कान्हाँ राधा के बनवारी जय जयति जयति श्री नारायन।।
रे! तेरी बंशी हमें बैरन सतावै रात दिन मोहन।
करै व्याकुल चैन हर लै ठगो सो हाय री! तनमन।।
टेढो तू नज़र टेढी तू छलिया और बाजीगर,
तेरी छवि श्याम जियरा में बसे हो नैन में खनखन।।
जय श्री कृष्णा
==========
=रहे तू कान्हाँ अंग संग में तेरी नज़रें इनायत हों।
तेरी मोहन छवि मोहक दर्शन की रवायत हो।।
तू ही सृष्टि तू ही दृष्टि तुम्हीं जीवन का सरमाया,
दिया तूने झोली भर प्रखर न और कवायत हो।।
: जो कभी बेचैन करते थे वही अब चैन का कारण।
सजल नैना तकें राहें पात्यव्रत सत किया धारण।।
तुम्हीं सौभाग्य का कारक कंगन की खनक तुमसे
तुम्हारा साथ पिय संबल तो मैं जीतूँ जगत के रण।
*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*
।
निशा"अतुल्य"
*प्रेम स्तुति*
तेरी राह निहारूँ मैं तो, कब आओगे
बोलो कान्हा
बन जाऊं मैं तेरी राधा,बन पाऊँगी क्या
मैं कान्हा
सोच सोच कर विचलित होती कैसे तुम
को मैं पाऊँगी
राह विषम लगती जीवन की,तुम ही
राह दिखाओ कान्हा।
मीरा भी बन जाऊं प्रभुवर पी जाऊंगी
मैं भी हाला
वैराग्य दिखाओ बोध जगाओं मन के
अंदर तुम्हीं कान्हा।
द्रोपदी सा मित्र बनाऊं कष्ट पड़े तो तुम्हे पुकारूँ
मित्र बन कर तुम आ जाना,मेरी लाज
बचाने कान्हा।
उद्धव सुदामा बन कर मैं भी तेरे भक्ति
के गुण गाऊँ
मुझको भी तुम भक्ति देना जैसी भक्ति
उन्हें दी कान्हा।
मेरा मन नही लगता तुम बिन बैठी राह
निहारूँ हर पल
कब होगा जीवन का वो पल जब देखूं
तुमको हर पल कान्हा।
प्रेम रस का अद्भुध अनुभव तुमसे ही
सिखा है मैंने
माखन मिश्री भोग रखा है आओ भोग
लगाओ कान्हा।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
प्रिया सिंह गीतिका
हसरत-ए-मक़ामात मेरा अब कुछ भी नही जाना
खयालातों पर हक मेरा अब कुछ भी नही जाना
चाहत कहां.... समन्दर को दरिया तक पहुंचने का
हिज्र का शोर है दरिया का अब कुछ भी नही जाना
पायब सी निखरी बिखरी खुद में मदमस्त सी नदी
कागजी नाँव की औकात अब कुछ भी नही जाना
चलती ठहरती इतराती लहराती ये तलब इश्क की
समन्दर में मैं... मेरी प्यास अब कुछ भी नही जाना
कई तारे चमकते समंदर पर जाने क्यो आ झलके
समन्दर को चांद की कमी अब कुछ भी नहीं जाना
हालातों में बनता और बिगड़ता छोटा सा कतरा ये
दर्द अकेले मेरे हैं के तेरा अब कुछ भी नहीं जाना
Priya singh
9920796787 रवि रश्मि 'अनुभूति '
मदिरा सवैया
प्यार भरा जब हो मन में ,
दुनिया दिखती तब सुंदर सी ।
हो जब भेद सुने मन को ,
हर चीज़ दिखे तब मंदिर सी ।।
आज करें खग शोर सभी ,
अब चाल चलें सब मंथर सी ।
मूरत तो प्रभु देख सकें ,
हमको दिखती अब शंकर सी ।।
ज्ञान सुनो अब हमको दो ,
सुन आँख खुले अब तो सबकी ।
आन खड़े अब द्वार सभी ,
कर ध्यान गुणी लखते अब की ।।
देख ज़रा अब हालत ये ,
कर ध्यान अभी सुधरे सबकी ।।
मूरत आज दिखे जिनकी ,
तिन देख सकें हम तो तब की ।।
$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$
(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
सुनीता असीम
हमने किया जो प्यार तो अखबार हो गए।
उसने जो फेरीं नज़्र तो बीमार हो गए।
***
हम क्या कहें जमाल अदाओं का हुस्न की।
अपने तो डूबने के से आसार हो गए।
***
सोचा था ज़िन्दगी को अकेले बिताएं हम।
पर इश्क में किसी के गिरफ्तार हो गए।
***
पाने को इक झलक भी बिताईं थी मुद्दतें।
दीदार ओ किया तो दिले यार हो गए।
***
हमको लगे खुदा से हमेशा ही आप तो।
पर झूठ के ही आप तो संसार हो गए।
***
सुनीता असीम
१/२/२०२०
देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"
महंगाई व उसकी वास्तविकता............
यूं तो मुल्क के आवाम समस्याओं से हैं त्रस्त।
पर खास तौर से ये लोग महंगाई से हैं ग्रस्त।।
इधर हमारे थालियों से हैं व्यंजन घटते जा रहे ;
उधर नेता और मंत्री रंगरेलियां मनाने में हैं मस्त।।
पढ़ाई , इलाज आदि खर्च , सोच से है बाहर ;
पर प्रशासन और सरकार,आंकड़ों में है व्यस्त।।
सभी व्यापारी कहते हैं , उनकी हालत ठीक नहीं ;
फिर किनकी है ठीक , ये सवाल दे रहे हैं गश्त।।
पहले अत्यधिक खाने की आदत से थे परेशान;
अब मजबूरन भूखे पेट,पानी पीकर होते हैं दस्त।।
कुछ हवाई यात्रा करते , बांकी पैदल को मजबुर;
अधिकतर लोग ऐसी जिंदगी से हो रहे हैं पस्त ।।
यही वास्तविकता है,अभी के जमाने की"आनंद";
मज़बूरी है जीने की,इसलिए हम हो रहे हैं अस्त।।
-------------------- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी
सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
*"ऐसा कर्म करे साथी"*
"ऐसा कर्म करे साथी ,
मिट जाये जीवन से-
मन बसा अज्ञान।
पग-पग जीवन में अपने ,
करे साथी-
अपनों का सम्मान।
सद्कर्मो संग ही सींचे,
साथी जीवन बगिया-
होता सत्य का ज्ञान।
सत्य पथ चल कर ही,
जीवन में साथी-
मिटता अज्ञान।
दीप से दीप जला स्नेंह का,
जीवन में साथी-
मिलता अपनों से सम्मान।
ऐसा कर्म करे साथी,
मिट जाये जीवन से-
मन बसा अज्ञान।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 01-02-2020
सत्यप्रकाश पाण्डेय
चाहत...........
चाहत से जीवन सृजन,
चाहत से संसार।
चाहत से ही सुख मिले,
चाहत से ही प्यार।।
चाहत यदि कमजोर है,
तो जीवन बने धूल।
नकारात्मकता कांटे हैं,
सकारात्मक फूल।।
अति चाह असंतोष है,
अभिष्टता संतोष।
चाह से दुःख कृपणता,
चाहत है मधु कोष।।
जीवन फसल उपज रही,
चाहत है वह बीज।
एक सुखद अनुभूति मिले,
बिन चाह के खीज।।
चाहत से मिले सफलता,
चाह से ही उत्पात।
चाहत से ही सुख सृजन,
और मिटे जग रात।।
चाहत मन का शुभ शकुन,
चाह उन्नति का द्वार।
चाहत ही वह सामर्थ है,
हरे वणिक व्यापार।।
जहां चाह वहां राह है,
कहते है सब लोग।
दुःख दारिद्र का शमन,
मिलें जगत के भोग।।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति
जिस पथ चलना आम नही
-------------------------------;;----
तुम बैठे बैठे दिन काटो
और तुम्हें कुछ काम नही
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।
उपक्रम शून्य हुआ जीवन तो
देह प्राण की कहां जरूरत
तुम चाहो तो ढूंढ़ो जितना
करो प्रतीक्षा मिले मुहूरत
अपने लिए नही कोई प्रातः
और नही है शाम कोई
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।
डर डर कर जो जीवन काटे
और भयाकुल मर जाएं
नही यथार्थ से कभी मिले वे
खालिस मन मे शंकाएं
ऐसे लोगों का दुनिया मे
क्या रहता है नाम कहीं
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।
सरल नही यह निर्णय करना
साहस करना पड़ता है
कठिनाईयां प्रबल होती हैं
नित नित मरना पड़ता है
आदि अंत तुम ही सोचो
हम सोचें परिणाम नही
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।
उस पथ पर चलते हैं जो भी
दृढ़ संकल्प लिए मन मे
निज क्षमता आजाद हुए वे
कहां रहे कोई बंधन मे
श्रम उपक्रम ही मुख्य श्रोत है
कभी किया विश्राम नही
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-698
राज श्री शर्मा
खंडवा मप्र
🌻🌻🌻🌻
गेंदा फूला जब बागों में
सरसों फूली जब खेतों में
तब फूल उठी सहस उमंग
मेरे मुरझाये प्राणों में;
🌼🌼 🌼🌼🌼
है आस नई, अभिलाष नई
नवजीवन की रसधार नई
ले नई साध ले नया रंग
मेरे आंगन आया बसंत
🌼🌼🌼🌼🌼
तुम नई स्फूर्ति इस तन को दो,
तुम नई चेतना मन को दो,
तुम नया ज्ञान जीवन को दो,
ऋतुराज तुम्हारा अभिनन्दन!
🙏🌼शुभ बसंत🌼🙏
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
प्यार ही धरोहर है
**************
प्यार अमूल्य धरोहर है
इसकी अनुभूति
किसी योग साधना
से कम नहीं है,
इसके रूप अनेक हैं
लेकिन
नाम एक है।
प्यार रिश्तों की धरोहर है
और इस धरोहर
को बनाये रखना
हमारी संस्कृति
एकता और अखंडता है ,
यह अनमोल है।
प्यार
निर्झर झरनों की तरह
हमारे दिलों में
बहता रहे
यही जीवन की
सच्ची धरोहर है। में
प्यार
उस परम पिता परमात्मा
से करें
जिसने हमें
जीवन दिया है,
इस धरा धाम पर
हमें प्रभु ही लाते हैं।
प्यार
उन बेसहारा
बच्चों से करें
जो अभाव का जीवन जी रहे हैं
जो कुपोषण के शिकार हैं
और जो अनाथ है
आओ
हम सब संकल्प लें
हम सभी के प्रति
प्यार का भाव रखेंगे
किसी के प्रति
गलत नज़रिया
नहीं रखेंगे,
तभी मनुष्य जीवन सफल हो सकता है।
*************************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखं
कौशल महन्त"कौशल"
जीवन दर्शन भाग !!१७!!*
★★★
पलना में इठला रहा,
लगे बाल गोपाल।
डाल रहा मुस्कान से,
प्रेम पाश की जाल।
प्रेम पाश की जाल,
लगे ज्यों किल किलकारी।
प्रहसित प्रमुदित रूप,
बसे हैं दुनिया सारी।
कह कौशल करजोरि,
पुहुप सम लागे ललना।
है कुल का उजियार,
नयन का झूले पलना।।
★★★
टीका काजल का लगा,
माँ करती शृंगार।
पाकर नित संतान सुख,
करती बहुत दुलार।
करती बहुत दुलार,
नेह की लोरी गाती।
करवा कर स्तनपान,
अलौकिक सुख है पाती।
माँ का अतुलित प्रेम,
नहीं होता है फीका।
कलुषित नजर बचाव,
लगाती काजल टीका।।
★★★
काले कुंतल की कली,
कर कणकण करताल।
पैजनिया पग में बजे,
भल भावन भर भाल।
भल भावन भर भाल,
सुहाये सूरत भोली।
किलकारी की गूंज,
खुशी की भरती झोली।
कह कौशल करजोरि,
इसे माँ ही सम्हाले,
सबका ही मन भाय,
घुंघराले लट काले।।
★★★
कौशल महन्त"कौशल"
🙏🙏🌹
जयपुर से - डॉ निशा माथुर
शुक्र है सुंदरता के प्रतीक, ये चमक धमक और इत्र
शुक्र है कुशाग्र बुद्धि, कुशल वक्ता और आकर्षक व्यक्तित्व
शुक्र आते है सभी ग्रहों में बीस वर्ष की महादशा लेकर
बेहद चमक लिए, शांत सौम्य से शुक्र है वैभव के प्रतीक।
तो आज मौका भी है और ये दस्तूर भी
मना लीजिये शुक्र को ,आज शुक्र है भरपूर भी।
शुक्र के शुक्रवार का आज शुकराना। सुबह का सादर प्रणाम,आदाब आप सभी को नजराना
नमस्ते जयपुर से - डॉ निशा माथुर🙏😃
नूतन लाल साहू
नारी
नारी तुम आदि शक्ति हो
भुल जाओ,आंखो से नीर बहाने को
रानी लक्ष्मी बाई से, सीख लो
सीखो,बंदूक तीर चलाने को
न समझो, नर की अबला हो
राजा महाराजाओं का तबला हो
तुम तो नर,की खान हो
ज्ञान,शक्ति और धन का भंडार हो
नारी तुम आदि शक्ति हो
भुल जाओ,आंखो से नीर बहाने को
रानी लक्ष्मी बाई से सीख लो
सीखो,बंदूक तीर चलाने को
दुर्योधन ने, द्रौपती का अपमान किया
कौरव वंश का,नाश हुआ
रावण ने सीता जी का,अपहरण किया
सब जानते है,रावण का क्या हाल हुआ
जिसने भी,नारी से नफ़रत किया
उनका, सब कुछ लुट गया
नारी तुम आदि शक्ति हो
भुल जाओ,आंखो से नीर बहाने को
रानी लक्ष्मी बाई, से सीख लो
सीखो,बंदूक तीर चलाने को
नारी तुम तो,घर की लज्जा हो
नारी तुम ही,मन मंदिर की पूजा हो
भव्य आरती,सजाने वाली
मंदिरों में,दीप जलाने वाली
कालो का काल,महाकाली हो
नारी बिन,सृष्टि भी हो जायेगी खाली
नारी तेरी महिमा है,सबसे निराली
नारी तुम आदि शक्ति हो
भुल जाओ,आंखो से नीर बहाने को
रानी लक्ष्मी बाई,से सीख लो
सीखो, बंदूक तीर चलाने को
नारी की,तारीफ कैसे करू
मेरे शब्दों में,इतना जोर नहीं है
सारी दुनिया में,जाकर ढूंढ़ लेना
नारी ही, महाशक्ति है
नूतन लाल साहू
सलाह
जग में,अनमोल बनना है तो
गुरु के शरण में,जाना ही पड़ेगा
पद धन बल,काम न आयेगी
विद्यार्थी बनकर रहना ही पड़ेगा
ढाई अक्षर का,शब्द प्रेम है
मानव जीवन का है,अनमोल रतन
सदाचार ही, वो सीढ़ी है
जो व्यक्ति को, बनाता है अमर
जग में अनमोल, बनना है तो
गुरु के शरण में,जाना ही पड़ेगा
पद धन बल,काम न आयेगी
विद्यार्थी बनकर,रहना ही पड़ेगा
चाहे कथा बन,चाहे कहानी बन
चाहे ज्ञानी बन,चाहे विज्ञानी बन
चाहे हिन्दू बन,चाहे मुस्लिम बन
चाहे गरीबों का,राशन कार्ड बन
जग में अनमोल बनना है तो
गुरु के शरण में,जाना ही पड़ेगा
पद धन बल,काम न आयेगी
विद्यार्थी बनकर,रहना ही पड़ेगा
अनेक जातियों की,फूलों से
पुष्पित है,जग की बगिया सारी
सभी जातियों का,तू सम्मान कर
वीर शहीदों की,इतिहास पढ़कर
कोई भूल न पाये,ऐसा नेक काम कर
जग में अनमोल,बनना है तो
गुरु के शरण में,जाना ही पड़ेगा
पद धन बल,काम न आयेगी
विद्यार्थी बनकर,रहना ही पड़ेगा
मत सोच की तेरा,
सपना क्यों पूरा नहीं होता
हिम्मत वालो का इरादा
कभी अधूरा नहीं होता
जिस इंसान के कर्म
अच्छे होते है
उसके जीवन में
कभी अंधेरा नहीं होता
नूतन लाल साहू
नूतन लाल साहू
माटी
माटी का है,बना ये दुनिया
माटी है, अनमोल
माटी का कोई भेद न जाने
माटी है, अनमोल
कालिया बन जाओ तुम
फूल बन मुस्कुराओ
मधुर मधुर,मस्त मस्त
गीत तुम सुनाओ
तुम सपूत हो,हिंदुस्तान का
तुझसे ही,बना है हिंदुस्तान
माटी का है, बना ये दुनिया
माटी हे, अनमोल
माटी का कोई भेद न जाने
माटी हे, अनमोल
कथा बनो,कहानी बनो
नेता बनो,अभिनेता बनो
धनवान बनो,बलवान बनो
ज्ञानी बनो, विज्ञानी बनो
माटी का तिलक लगा लो
माटी का है, बना ये दुनिया
माटी है, अनमोल
माटी का कोई भेद न जाने
माटी है, अनमोल
बम चलाने वाले प्यारे
खुद मर जाते है, बेमौतो से
जो देश के खातिर,मर मिटे
उसे कुर्बानी, कहते है
माटी है, बेजोड़ जगत में
ममता का चादर ओढ़
माटी का है,बना ये दुनिया
माटी हे, अनमोल
माटी का कोई भेद न जाने
माटी है, अनमोल
गंगा मांग रही बलिदान
जमुना मांग रही कुर्बानी
आज वतन में जो मिट जाये
वो है, सच्चा हिन्दुस्तानी
नूतन लाल साहू
नूतन लाल साहू
बादर पानी
माघ के महीना, जुड़ जुड़ बिहनिया
रूस रूस रूस रूस, लागय रौनिया
दिन भर, चलय जुड जुड हवा
जुड सरदी,जर बुखार म,हफरत हे दुनिया
सुरुज नारायण ल,देखत हे परानी
जब उगही तब, मिलही रौनिया
गोरसी अंगेठा,अब नदावत हवय
योगासन कर ले,नई लागय, पइसा रुपिया
माघ के महीना,जुड जुड बिहनि या
रूस रूस रूस रूस, लागय रौनिया
जुड सरदी,जर बुखार म, हफरत हे दुनिया
जंगल रुख राई, अडबड़ कटावत हे
बादर पानी ह, कहर बरपावत हे
बीते दिन के, झन रोवव रोना
हो ही उही जोन, हो ही होना
माघ के महीना,जुड जुड बीहनिया
रूस रूस रूस रूस, लागय रौनीया
दिन भर चलय,जुड जुड हवा
जुड सरदी,जर बुखार म, हफरत हे दुनिया
जग म परे हे, विपत भारी
रोग राई संकट,दुर्गति के
दिन गुजरत हे, ओसरी पारी
जलवायु परिवर्तन बर, अडे हे दुनिया
पाप के माते हे चिखला, नईये उजियारी
माघ के महीना, जुड जुड बीहनिया
रूस रूस रूस रूस, लागय रौनिया
दिन भर चलय,जुड जुड हवा
जुड सरदी,जर बुखार म, हफरत हे दुनिया
नूतन लाल साहू
संजय जैन (मुंबई
ख्यालो में मिले वो*
विधा : कविता
सवाल का जबाव
सवाल में ही मिला मुझे ..।
वो शख्स मेरा ख़्याल था, ख़्याल में ही मिला मुझे।
फिर भी न जाने ये दिल,
क्यों यहाँ वहां पर भटकता है।
जबकि मुझे पता है।
मेरे ख्यालो का राजा मुझे, ख्यालो में ही मिलता है।।
गमे ख्यालो को हम,
वरदास कर नहीं पते।
फिर भी अपने प्यार का,
इजहार कर नहीं पते।
डूब जाते है ऐसे,
सपनो की दुनियां में।
जहाँ से हम तैयाकर भी, वापिस नहीं आ पते।।
जब जब खुदा ने,
मुझसे ख्यालो में पूछा।
क्या चाहते हो,
तमन्नाये कहने लगी।
की बस मेरे ही ख्यालो में, उनके दीदार हो जाये।
और जब मुझे सही में,
उन से प्यार हो जाये।
तो मेरा हम सफर बनकर,
मेरे साथ हो जाये।।
ख्यालो की बनाई दुनियां।
अब हकीकत में बदल गई।
जो ख्यालो में आता था,
अब वो मेरा हमसफ़र बन गया।
मानो मेरी जिंदगी का,
वो आधार बन गया।
अब तो साथ साथ जिंदगी को,
हंसते खिल खिलाते जी रहे है।
और ख्यालों की दुनियां से निकलकर,
हकीकत में जी रहे है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई)
01/02/2020
*शहीद हमारे अमर महान हो गए।*
*।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।*
नमन है उन शहीदों को जो
देश पर कुरबान हो गए।
वतन के लिए देकर जान
वो बे जुबान हो गए ।।
उनके प्राणों की कीमत से
ही सुरक्षित है देश हमारा।
उठ कर जमीन से ऊपर
वो जैसे आसमान हो गए।।
*रचयिता।।। एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।
*विविध हाइकु।।।।।।।।।।।*
यह मुखौटा
चेहरे पे चेहरा
है दिल खोटा
गठ बंधन
स्वार्थ की ये दोस्ती है
बन नन्दन
प्रभु की भक्ति
नर सेवा इससे
मिलती शक्ति
यह गलती
मिटता ये अहम
तब दिखती
मेरे अपने
दिल के ये टुकड़े
मेरे सपने
ये मेहमान
चार दिन की बस
जिन्दगी नाम
ये कलाकार
बदले किरदार
हैं फनकार
पैसा ओ पैसा
आज बन गया है
जीवन ऐसा
यह सुविधा
नहीं मिलती जब
बढे दुविधा
ये आसमान
सोचो करो बड़ा हो
तेरा मुकाम
*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
*मोबाइल।* 9897071046
8218685464
*बस हर किसी के लिए दुआ हो*
*तेरे दिल में।।।।।मुक्तक।।।।।।।*
व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व बनो
आओ हमेशा याद।
दिल तुम्हारा सुन सके हर
दर्द की फरियाद।।
ये जिन्दगी तो है पतंग सी
कब डोर कट जाये।
हर किसी के लिए दिल में
दुआ रहे आबाद।।
*रचयिता।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।*
*मोबाइल*
9897071046
8218685465
हमारे सम्पर्क के लगभग सभी लोंगो ने आदरणीया रश्मि शर्मा जी के असामयिक आकस्मिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए अपनी संवेदना व्यक्त की है अधिकांश लोंगो ने कारण भी जानना चाहा
गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड होल्डर आदरणीया रश्मि शर्मा राज हापुड़ में एक महाविद्यालय में कला की प्रोफेसर थी आपके पति आकाशवाणी दिल्ली में म्यूजिक डायरेक्टर है और आपका पुत्र अपना स्टूडियो है तथा साहित्य एवम संगीत में पारंगत है एक बेटी है जो bams की पढ़ाई कर रही है।गाल ब्लेडर में स्टोन थी और उसी में पता नही चला पीलिया की जांच में पता चला कि कैंसर लास्ट स्टेज पहुंच गया और वह 24 जनवरी को इस नश्वर संसार से विदा हो गई।वास्तव में बहुत ही दुःख की खबर है यह इससे बड़ी दुःखद कोई खबार नही हो सकती।हम लोंगो का यह हाल है तो परिवार का क्या होगा खैर ईश्वर का निर्णय स्वीकार करना ही पड़ता है क्योकि उसका सिस्टम कभी फेल नही होता हम अपने सिस्टम से देखते है।बस वह परम सत्ता हम सभी का कल्याण करे और काव्य रंगोली परिवार से सम्बंधित किसी भी हमारे सदस्य को कभी भी कोई गम दुंख शोक वियोग कष्ट हानि अहित होने की सूचना न मिले यही प्रार्थना है।
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...