एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*विविध हाइकू।।।।।।।।।।*


हो सरताज
वक़्त बिगड़ा जब
तो मोहताज


महा नगर
अलग  हैं  डगर
हैं बेखबर


कौन है मीत
अजब जग रीत
पैसा है जीत


जीवन अर्थ
रहता    असमर्थ
जीवन व्यर्थ


ये सच्ची प्रीत
दिल से दिल मिले
न जाने रीत


*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
*मोबाइल*        9897071046
                    8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।बरेली कैसे बितायें अपना जीवन

एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।बरेली


कैसे बितायें अपना जीवन।।।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


ये जीवन एक   पर्व  समान, 
बहुत उत्साह  से मनाइये।


करिये कर्म  बस गर्व समान,
फल  को    भूल  जाईये।।


शामिल है हर सुख चैन  इस,
छोटी  सी जिंदगी में ही।


ये दुनिया बनेगी स्वर्ग समान,
बस सबको गले लगाइये।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।बरेली।।।।।।।*


मोब  9897071046 ।।।।
8218685464 ।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।बरेली। समय का सदुपयोग।।।

एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।बरेली।


समय का सदुपयोग।।।।।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।*


वक़्त  से   जरूर   डरें    आप,
कि समय  बहुत   बलवान  है।


इसकी शक्ति तो झुका सकती,
यह   सारी  दुनिया  जहान  है।।


करें सदुपयोग कि  आता नहीं,
कभी बीता वक़्त    लौट  कर।


समय चक्र तो  चलता  निरंतर,
रखता पाप पुण्य का  ध्यान है।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।बरेली।।।।।।।।।*
मोब।।   9897071046 ।।।।
8218685464  ।।।।।।।।।।।


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी" आया बसंत

देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


आया बसंत...........


आया  बसंत , आया  बसंत ।
सबका  मन  हर्षाया  बसंत।।


फसल  समय  पर  पकाकर ;
कृषक  को  हुल्साया बसंत।।


सभी  ऋतुओं   के  राजा  ने ;
खुशी  फैलाया  दिक-दिगंत।।


जलाशयों में कमल खिलकर;
बिखेरे अपनी आभा  अनंत।।


पक्षियों  के कलरव से सर्वत्र;
वातावरण    गूंजते  अत्यंत।।


देश  का  मौसम  हो   ऐसा ;
न  रहे  कोई  मुद्दा  ज्वलंत।।


हर ओर  आनंद ही"आनंद";
बात नहीं  है यह मनगढ़ंत।।


- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी" हास्य कविता .मेरी समधन................... बड़ी  भोली-भाली  है

 


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी" हास्य कविता


.मेरी समधन...................


बड़ी  भोली-भाली  है , थोड़ी  नखरेवाली  है।
ये जो मेरी समधन है,समधी की घरवाली है।।


गोरे  गाल  बाली   है , काले  बाल  बाली  है।
तीखे नाक बाली है,झील-सी आँख बाली है।
ये जो मेरी समधन है , सौंदर्य की  थाली है।।


समधी के लिए छाली है,मदिरा की प्याली है।
इनकी चाल मतवाली है,हर अदा  निराली है।
ये जो  मेरी समधन  है, देती मोहे  गाली  है।।


सदा मुस्कानेवाली है ,द्वेष-घृणा से खाली है।
तीक्ष्ण  दिमागवाली  है , चिर सुहागवाली है।
ये  जो मेरी  समधन है ,बड़ी भाग्यशाली है।।


हर  दिन  होली  है ,  हर   रात  दीवाली  है ।
घर की ख़ुशीहाली है , मन की  हरियाली है।
ये जो मेरी समधन है , ये ही  मेरी साली है।।


-----देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


रामनाथ साहू " ननकी "             मुरलीडीह--- हौसला ---- डरकर जीना छोड़ दे ,

          -रामनाथ साहू " ननकी "
            मुरलीडीह--- हौसला ----



डरकर जीना छोड़ दे ,
                         रख हिम्मत ऐ यार ।
तू महान है जान ले ,
                       नहीं डाल हथियार ।।
नहीं डाल हथियार ,
                किसी से कम मत आँको ।
हो प्रतिभा संपन्न ,
                    जरा अंदर तो झाँको ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
                   हौसला रख अपने पर ।
कूद पड़ो मैदान ,
                छोड़ जीना अब डरकर ।।



              ~ रामनाथ साहू " ननकी "
                          मुरलीडी


हिंदी गीतिका श्याम कुँवर भारती [राजभर] वतन को बचाने चले है |

हिंदी गीतिका


श्याम कुँवर भारती [राजभर]


वतन को बचाने चले है |
लगा मजहबी आग आज वो वतन जलाने चले है |
भड़का सियासी चिंगारी वो वतन मिटाने चले है |
भरा नहीं दिल उनका फैला दंगा फसाद देश मे |
है कितने हमदर्द उनके लोगो सब दिखाने चले है |
करते बात देशहित हाथ दुशमनों मगर मिलाते है |
लगा देश बिरोधी नारा रोज मजमा लगाने चले है |
जवानो की शहादत पर ओढ़ लेते है खामोशिया | 
मौत दुशमनों पीट छाती वो मातम मनाने चले है |
करते राजनीति पर करते काम देशद्रोहियों वाला | 
सियासत ऐसी हाथ दुशमनों वो मिलाने चले है |
मंदिर मस्जिद गिरजा गुरुद्वारा से मतलब नहीं |
आए चूनाव सिर माथे चंदन वो चमकाने चले है |
फिक्र अपनी नहीं फिक्र वतन की करता है वो |
रहे भारत सलामत उम्र अपनी वो खपाने चले है |
टुकड़े गैंग या हो टोली गदारों वो डरता ही नहीं |
आवाम समझ भगवान सिर वो झुकाने चले है |
चलना साथ तुम भी चलो पहले दिल मैल दूर करो |
सबका साथ सबका विश्वास वतन वो बचाने चले है |  


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


कवि डॉ.राम कुमार झा "निकुंज" नई दिल्ली शीर्षकः. तजो घृणा चल साथ

कविडॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
नई दिल्ली
शीर्षकः. तजो घृणा चल साथ हम🇮🇳


भिन्न   भिन्न   मति  चिन्तना , मृगतृष्णा  आलाप।
मँहगाई      फुफकारती , सुने    कौन     आलाप।।१।।


मिले   हुए   सब    लालची , फैलाते       उन्माद।
लड़ा   रहे    कौमी   प्रजा , तुले   देश      बर्बाद।।२।।


बीजारोपण   नफ़रती , करे   अमन   का   नाश।
मार   धार   तकरार  बस , फँसे  स्वार्थ  के पाश।।३।।  


मानवता   नैतिक प्रथम , जन्में   हैं   जिस   देश।
राजधर्म   सबसे   अहम , शान्ति    प्रेम    संदेश।।४।। 


दहशत   में   माँ   भारती , बाधित  जन  उत्थान।
तजो घृणा चल साथ हम , कवि निकुंज आह्वान।।५।।


लानत  है  उस  धर्म  को , धिक्कारें  उस क्रान्ति।
अमन  प्रगति  बाधक  बने , फैलाए  बस भ्रान्ति।।६।।


वादाओं   से     है   सजा , है    चुनाव    बाज़ार।
भूले   पा   जनमत   वतन , बनते   ही   सरकार।।७।। 


जनमत    पाना   है  सही , किन्तु  तोड़ें  न  देश।
तजे   लोभ   हित  राष्ट्र में , प्रेम  अमन  परिवेश।।८।।


बंद    सभी     रंगेलियाँ , दरवाजे       घुसखोर।
सख़्त  आज  सरकार  है , रहे  मचा  सब  शोर।।९।।


सहनशील मतलब  नहीं , हो  बहुजन  अपमान। 
राष्ट्र विरत  नफ़रत फ़िजां , पाया  जहँ  सम्मान।।१०।।


खास  कौम  तुष्टीकरण , भड़क  रही  है  आग।
सुलग रही सहनशीलता , मचे न    भागमभाग।।११।।


देश    विरोधी    ताकतें , तहस   नहस  तैयार।
जन मन   फैलाते  ज़हर , बस   नेता     गद्दार।।१२।।


न्याय   लचीला   देश  का , निडर  बने  शैतान।
कपटी   दे    धोखा  वतन ,  बने   दुष्ट    हैवान।।१३।।


चाहे   कोई   कौम   हो , प्रथम   राष्ट्र   कर्तव्य।
हरे  शान्ति सुख  प्रेम जो , है  दुश्मन  ध्यातव्य।।१४।।



दहशत  में  माँ   भारती , बाधित  जन  उत्थान।
तजो घृणा चल साथ हम,कवि निकुंज आह्वान।।१५।। 


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


सोनू कुमार जैन गजल

तुम्हे चाहता हूँ, तुम्हे चाहना है,
कोई और सपना नहीं पालना है।


तुम्हे जानता हूँ, तुम्हे मानता हूँ,
मुझे और कुछ भी नहीं जानना है।


तेरी जीत पक्की है इस बार यारा,
तेरा मुझसे ही आमना-सामना है।


ज़रा मेरी दुश्वारियों को तो समझो,
मुझे अपने हाथों को ख़ुद बाँधना है।


मुझे तुमने 'सोनू' भुलाया है लेकिन,
मेरे दिल को केवल तेरी कामना है।


✍ सोनू कुमार जैन


डा0विद्यासागर मिश्र सीतापुर उ0प्र0   माँ शारदे की आराधना  वीणापाणी शारदे माँ विनती हमारी याक, अवधी रचना

डा0विद्यासागर मिश्र
सीतापुर उ0प्र0 


 माँ शारदे की आराधना 
वीणापाणी शारदे माँ विनती हमारी याक,
शीश पर हाथ मेरे धरि दुलराय लेउ।
ज्ञान का भंडार खूब दिहेव सूर  तुलसी का,
थ्वारा ज्ञान देने हेतु हमका बोलाय लेउ।
नजरि घुमावा जैसे मीरा व कबीरा पर,
वैसे ही नजरि मातु हमपे घुमाय लेउ।
करौ न अबेर अब पीठ पर हाथ फेरो,
हमका भी निज चरनन मा बिठाय लेउ।।
रचनाकार 
डा0विद्यासागर मिश्र
सीतापुर उ0प्र0


नमस्ते जयपुर से - डॉ निशा माथुर

फ़लक पे भोर की दुल्हन सज के आई है।।


आज दिन उगा है या सूरज के घर सगाई है।।


जैसे ओस की बूँद फूलो पे खिल आई है।।। 
 
फरवरी की दिलकश रूत ने  ली अंगङाई है।।


बासंती रंगों को ले फागुन रूत  महक आयी है।।
                                                                       बहकी बहकी पुरवा झूम के खुशीयां लायी है।।


देखो,मेरे सुप्रभात ने लबो पे मुस्कान सजाई है।। 


गुलाबी गंध गुलाबी गुलाब लिए प्रेम ऋतु भी आई है।
  ...................................
                            
   इसी शुभकामनाओं के साथ फुर्सत के लम्हों का शुभ शुभ वंदन।।।...                                                              आप सबका दिन  फूलों सा खिलता हुआ महकमय और मंगलमय हो।.🌼🌼🌻🌻🌞🌞😊😊🙏🏻🙏🏻💐💐
नमस्ते जयपुर से - डॉ निशा माथुर🙏😃


डॉ शिव शरण "अमल" बसंत

बसंत


मिटाए वेदना चित की,
उसे हम संत कहते है ।
कला जीने कि सिखलाए,
उसे सदग्रंथ कहते है ।।
कहीं पतझड़,कहीं मधुवन,
ये तो बस ऋतु प्रवर्तन है,
जान मुर्दे में जो फूके,
उसे बसंत कहते है ।।


डॉ शिव शरण "अमल"


हलधर जसवीर माँ शारदा को समर्पित एक छंद  ------------------------------------- शारदा है कंठ वासी ,

हलधर जसवीर


माँ शारदा को समर्पित एक छंद 
-------------------------------------
शारदा है कंठ वासी ,भवानी भुजा निवासी ,
अंतस में मेरे शिव शम्भू का प्रवास है ।


ध्यान योग के नियम ,प्राणायाम औ संयम ,
दोनों दृग बीच वसा तीजा नेत्र खास है ।।


ओज के सुनाऊं राग ,आग से बुझाऊँ आग ,
मेरे शब्द शब्द वसा ब्रह्म का प्रकाश है ।


सावन मल्हार गाउँ फागुन शृंगार गाउँ ,
करुणा दया का रस मेरे आस पास है ।।


हलधर -9897346173


सुनील कुमार गुप्ता कविता:-          *"व्याकुलता"*

सुनील कुमार गुप्ता


कविता:-
         *"व्याकुलता"*
"सब कुछ पा कर भी साथी,
पल-पल जीवन में-
क्यों-रहती व्याकुलता?
बहुत कुछ पाने की चाहत ही,
साथी पग-पग-
देती आतुरता।
सागर की तरह जीवन में,
साथी सब कुछ-
समेट ले अपने में।
फिर भी पल पल साथी,
बनी रहती-
जीवन में व्याकुलता।
अपनत्वहीन जीवन में साथी,
मिटती नहीं पीड़ा-
इस तन-मन की।
होती नहीं आत्मसंतुष्टि साथी,
इस जीवन में-
कैसे-मिटती व्याकुलता?
सब कुछ पा कर भी साथी,
पल-पल जीवन में-
क्यों-रहती व्याकुलता?"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
         सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          31-01-2020


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद कुछ मुक्तक सुनयने सौम्य छवि मनहर भव्यता ईश का  वंदन है।

 


प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबा


कुछ मुक्तक


सुनयने सौम्य छवि मनहर भव्यता ईश का  वंदन है।
ललक श्यामल मुरारी की झलक राधा का चंदन है।।
भवानी माँ का ताप तुममें वत्सला मूर्त ममता की,
कभी प्रस्तर कभी सरिता समर्पित भाव तनमन मीरा के ज़हर में तुम रमते तुलसी के राम तुम्हीं भगवन है।।
शबरी के बदरी के रस में अर्जुन के गीता ज्ञान सघन।।
गोपाल सूर के पद पद में द्रौपदी की साडी बने तुम्हीं, कान्हाँ राधा के बनवारी जय जयति जयति श्री नारायन।।



रे! तेरी बंशी हमें बैरन  सतावै रात दिन मोहन।
करै व्याकुल चैन हर लै ठगो सो हाय री! तनमन।।
टेढो तू नज़र टेढी तू छलिया और बाजीगर,
तेरी छवि श्याम जियरा में बसे हो नैन में खनखन।।


 


जय श्री कृष्णा
==========
=रहे तू कान्हाँ अंग संग में तेरी नज़रें इनायत हों।
तेरी मोहन छवि मोहक दर्शन की रवायत हो।।
तू ही सृष्टि तू ही दृष्टि तुम्हीं जीवन का सरमाया,
दिया तूने झोली भर प्रखर न और कवायत हो।।



: जो कभी बेचैन करते थे वही अब चैन का कारण।
सजल नैना तकें राहें पात्यव्रत सत किया धारण।।
तुम्हीं सौभाग्य का कारक कंगन की खनक तुमसे
तुम्हारा साथ पिय संबल तो मैं जीतूँ जगत के रण।


*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*



निशा"अतुल्य" *प्रेम स्तुति* तेरी राह निहारूँ मैं तो, कब आओगे बोलो कान्हा

निशा"अतुल्य"


*प्रेम स्तुति*
तेरी राह निहारूँ मैं तो, कब आओगे
बोलो कान्हा
बन जाऊं मैं तेरी राधा,बन पाऊँगी क्या
मैं कान्हा
सोच सोच कर विचलित होती कैसे तुम
को मैं पाऊँगी
राह विषम लगती जीवन की,तुम ही
राह दिखाओ कान्हा।


मीरा भी बन जाऊं प्रभुवर पी जाऊंगी
मैं भी हाला
वैराग्य दिखाओ बोध जगाओं मन के
अंदर तुम्हीं कान्हा।


द्रोपदी सा मित्र बनाऊं कष्ट पड़े तो तुम्हे पुकारूँ
मित्र बन कर तुम आ जाना,मेरी लाज
बचाने कान्हा।


उद्धव सुदामा बन कर मैं भी तेरे भक्ति
के गुण गाऊँ
मुझको भी तुम भक्ति देना जैसी भक्ति
उन्हें दी कान्हा।


मेरा मन नही लगता तुम बिन बैठी राह
निहारूँ हर पल
कब होगा जीवन का वो पल जब देखूं
तुमको हर पल कान्हा।


प्रेम रस का अद्भुध अनुभव तुमसे ही
सिखा है मैंने
माखन मिश्री भोग रखा है आओ भोग
लगाओ कान्हा।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


प्रिया सिंह गीतिका हसरत-ए-मक़ामात मेरा अब कुछ भी नही जाना

प्रिया सिंह गीतिका


हसरत-ए-मक़ामात मेरा अब कुछ भी नही जाना
खयालातों पर हक मेरा अब कुछ भी नही जाना


चाहत कहां.... समन्दर को दरिया तक पहुंचने का
हिज्र का शोर है दरिया का अब कुछ भी नही जाना 


पायब सी निखरी बिखरी खुद में मदमस्त सी नदी
कागजी नाँव की औकात अब कुछ भी नही जाना 


चलती ठहरती इतराती लहराती ये तलब इश्क की
समन्दर में मैं... मेरी प्यास अब कुछ भी नही जाना 


कई तारे चमकते समंदर पर जाने क्यो आ झलके
समन्दर को चांद की कमी अब कुछ भी नहीं जाना 


हालातों में बनता और बिगड़ता छोटा सा कतरा ये
दर्द अकेले मेरे हैं के तेरा अब कुछ भी नहीं जाना 


 


Priya singh


9920796787 रवि रश्मि 'अनुभूति '   मदिरा सवैया  प्यार भरा जब हो मन में , 

9920796787 रवि रश्मि 'अनुभूति '


  मदिरा सवैया 


प्यार भरा जब हो मन में , 
        दुनिया दिखती तब सुंदर सी ।
हो जब भेद सुने मन को , 
        हर चीज़ दिखे तब मंदिर सी ।।
आज करें खग शोर सभी , 
        अब चाल चलें सब मंथर सी ।
मूरत तो प्रभु देख सकें , 
        हमको दिखती अब शंकर सी ।।


ज्ञान सुनो अब हमको दो , 
     सुन आँख खुले अब तो सबकी ।
आन खड़े अब द्वार सभी , 
      कर ध्यान गुणी लखते अब की ।।
देख ज़रा अब हालत ये , 
       कर ध्यान अभी सुधरे सबकी ।।
मूरत आज दिखे जिनकी , 
       तिन देख सकें हम तो तब की ।।
$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


सुनीता असीम हमने किया जो प्यार तो अखबार हो गए।

सुनीता असीम


हमने किया जो प्यार तो अखबार हो गए।
उसने जो फेरीं नज़्र तो बीमार हो गए।
***
हम क्या कहें जमाल अदाओं का हुस्न की।
अपने तो डूबने के से आसार हो गए।
***
सोचा था ज़िन्दगी को अकेले बिताएं हम।
पर इश्क में किसी के गिरफ्तार हो गए।
***
पाने को इक झलक भी बिताईं थी मुद्दतें।
दीदार ओ किया तो दिले यार हो गए।
***
हमको लगे खुदा से हमेशा ही आप तो।
पर झूठ के ही आप तो संसार हो गए।
***
सुनीता असीम
१/२/२०२०


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी" महंगाई व उसकी वास्तविकता............ यूं तो  मुल्क  के आवाम  समस्याओं  से  हैं  त्रस्त।

 


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


महंगाई व उसकी वास्तविकता............


यूं तो  मुल्क  के आवाम  समस्याओं  से  हैं  त्रस्त।
पर  खास  तौर  से  ये  लोग  महंगाई  से हैं ग्रस्त।।


इधर हमारे  थालियों से हैं  व्यंजन  घटते  जा रहे ;
उधर नेता और  मंत्री रंगरेलियां मनाने में हैं मस्त।।


पढ़ाई , इलाज आदि   खर्च , सोच  से   है  बाहर ;
पर प्रशासन और  सरकार,आंकड़ों  में है व्यस्त।।


सभी व्यापारी कहते हैं , उनकी हालत ठीक नहीं ;
फिर किनकी है ठीक , ये सवाल  दे रहे  हैं गश्त।।


पहले अत्यधिक  खाने  की आदत  से थे परेशान;
अब मजबूरन भूखे पेट,पानी पीकर होते हैं दस्त।।


कुछ हवाई  यात्रा करते , बांकी पैदल को मजबुर;
अधिकतर लोग ऐसी जिंदगी से हो रहे हैं  पस्त ।।


यही वास्तविकता है,अभी के जमाने की"आनंद";
मज़बूरी है जीने की,इसलिए हम हो रहे हैं अस्त।।


-------------------- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी


सुनील कुमार गुप्ता कविता:-    *"ऐसा कर्म करे साथी"*

सुनील कुमार गुप्ता


कविता:-
   *"ऐसा कर्म करे साथी"*
"ऐसा कर्म करे साथी ,
मिट जाये जीवन से-
मन बसा अज्ञान।
पग-पग जीवन में अपने ,
करे साथी-
अपनों का सम्मान।
सद्कर्मो संग ही सींचे,
साथी जीवन बगिया-
होता सत्य का ज्ञान।
सत्य पथ चल कर ही, 
जीवन में साथी-
मिटता अज्ञान।
दीप से दीप जला स्नेंह का,
जीवन में साथी-
मिलता अपनों से सम्मान।
ऐसा कर्म करे साथी,
मिट जाये जीवन से-
मन बसा अज्ञान।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         01-02-2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय चाहत........... चाहत से जीवन सृजन

सत्यप्रकाश पाण्डेय


चाहत...........


चाहत से जीवन सृजन,
चाहत से संसार।
चाहत से ही सुख मिले,
चाहत से ही प्यार।।
चाहत यदि कमजोर है,
तो जीवन बने धूल।
नकारात्मकता कांटे हैं,
सकारात्मक फूल।।
अति चाह असंतोष है,
अभिष्टता संतोष।
चाह से दुःख कृपणता,
चाहत है मधु कोष।।
जीवन फसल उपज रही,
चाहत है वह बीज।
एक सुखद अनुभूति मिले,
बिन चाह के खीज।।
चाहत से मिले सफलता,
चाह से ही उत्पात।
चाहत से ही सुख सृजन,
और मिटे जग रात।।
चाहत मन का शुभ शकुन,
चाह उन्नति का द्वार।
चाहत ही वह सामर्थ है,
हरे वणिक व्यापार।।
जहां चाह वहां राह है,
कहते है सब लोग।
दुःख दारिद्र का शमन,
मिलें जगत के भोग।।


 


विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति जिस पथ चलना आम नही -------------------------------;;---- तुम बैठे बैठे दिन काटो

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति


जिस पथ चलना आम नही
-------------------------------;;----
तुम बैठे बैठे दिन काटो
और तुम्हें कुछ काम नही
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।


उपक्रम शून्य हुआ जीवन तो
देह प्राण की कहां जरूरत
तुम चाहो तो ढूंढ़ो जितना
करो प्रतीक्षा मिले मुहूरत
अपने लिए नही कोई प्रातः
और नही है शाम कोई 
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।


डर डर कर जो जीवन काटे
और भयाकुल मर जाएं
नही यथार्थ से कभी मिले वे
खालिस मन मे शंकाएं
ऐसे लोगों का दुनिया मे
क्या रहता है नाम कहीं
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।


सरल नही यह निर्णय करना
साहस करना पड़ता है
कठिनाईयां प्रबल होती हैं
नित नित मरना पड़ता है
आदि अंत तुम ही सोचो
हम सोचें परिणाम नही
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।


उस पथ पर चलते हैं जो भी
दृढ़ संकल्प लिए मन मे
निज क्षमता आजाद हुए वे
कहां रहे कोई बंधन मे
श्रम उपक्रम ही मुख्य श्रोत है
कभी किया विश्राम नही
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।


विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-698


राज श्री शर्मा खंडवा मप्र गेंदा फूला जब बागों में

राज श्री शर्मा
खंडवा मप्र
🌻🌻🌻🌻
गेंदा फूला जब बागों में
सरसों फूली जब खेतों में
तब फूल उठी सहस उमंग
मेरे मुरझाये प्राणों में;
🌼🌼 🌼🌼🌼
है आस नई, अभिलाष नई
नवजीवन की रसधार नई
ले नई साध ले नया रंग
मेरे आंगन आया बसंत
🌼🌼🌼🌼🌼
तुम नई स्फूर्ति इस तन को दो,
तुम नई चेतना मन को दो,
तुम नया ज्ञान जीवन को दो,
ऋतुराज तुम्हारा अभिनन्दन!
🙏🌼शुभ बसंत🌼🙏


कालिका प्रसाद सेमवाल  मानस सदन अपर बाजार  रूद्रप्रयाग उत्तराखंड   प्यार ही धरोहर है

कालिका प्रसाद सेमवाल
 मानस सदन अपर बाजार
 रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
 
प्यार ही धरोहर है
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प्यार अमूल्य धरोहर है
इसकी अनुभूति
किसी योग साधना
से कम नहीं है,
इसके रूप अनेक हैं
लेकिन
नाम एक है।


प्यार रिश्तों की धरोहर है
और इस धरोहर
को बनाये रखना
हमारी संस्कृति
एकता  और अखंडता है ,
यह अनमोल है।


प्यार 
निर्झर झरनों की तरह
हमारे दिलों में
बहता रहे
यही जीवन की
सच्ची धरोहर है। में


प्यार
उस परम पिता परमात्मा
से करें
जिसने हमें 
जीवन दिया है,
इस धरा धाम पर
हमें प्रभु ही लाते हैं।


प्यार
उन बेसहारा
बच्चों से करें
जो अभाव का जीवन जी रहे हैं
जो कुपोषण के शिकार हैं
और जो अनाथ है


आओ
हम सब संकल्प लें
हम सभी के प्रति
प्यार का भाव रखेंगे
किसी के प्रति
गलत नज़रिया
नहीं रखेंगे,
तभी मनुष्य जीवन सफल हो सकता है।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
 मानस सदन अपर बाजार
 रूद्रप्रयाग उत्तराखं


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