कविडॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
नई दिल्ली
शीर्षकः. तजो घृणा चल साथ हम🇮🇳
भिन्न भिन्न मति चिन्तना , मृगतृष्णा आलाप।
मँहगाई फुफकारती , सुने कौन आलाप।।१।।
मिले हुए सब लालची , फैलाते उन्माद।
लड़ा रहे कौमी प्रजा , तुले देश बर्बाद।।२।।
बीजारोपण नफ़रती , करे अमन का नाश।
मार धार तकरार बस , फँसे स्वार्थ के पाश।।३।।
मानवता नैतिक प्रथम , जन्में हैं जिस देश।
राजधर्म सबसे अहम , शान्ति प्रेम संदेश।।४।।
दहशत में माँ भारती , बाधित जन उत्थान।
तजो घृणा चल साथ हम , कवि निकुंज आह्वान।।५।।
लानत है उस धर्म को , धिक्कारें उस क्रान्ति।
अमन प्रगति बाधक बने , फैलाए बस भ्रान्ति।।६।।
वादाओं से है सजा , है चुनाव बाज़ार।
भूले पा जनमत वतन , बनते ही सरकार।।७।।
जनमत पाना है सही , किन्तु तोड़ें न देश।
तजे लोभ हित राष्ट्र में , प्रेम अमन परिवेश।।८।।
बंद सभी रंगेलियाँ , दरवाजे घुसखोर।
सख़्त आज सरकार है , रहे मचा सब शोर।।९।।
सहनशील मतलब नहीं , हो बहुजन अपमान।
राष्ट्र विरत नफ़रत फ़िजां , पाया जहँ सम्मान।।१०।।
खास कौम तुष्टीकरण , भड़क रही है आग।
सुलग रही सहनशीलता , मचे न भागमभाग।।११।।
देश विरोधी ताकतें , तहस नहस तैयार।
जन मन फैलाते ज़हर , बस नेता गद्दार।।१२।।
न्याय लचीला देश का , निडर बने शैतान।
कपटी दे धोखा वतन , बने दुष्ट हैवान।।१३।।
चाहे कोई कौम हो , प्रथम राष्ट्र कर्तव्य।
हरे शान्ति सुख प्रेम जो , है दुश्मन ध्यातव्य।।१४।।
दहशत में माँ भारती , बाधित जन उत्थान।
तजो घृणा चल साथ हम,कवि निकुंज आह्वान।।१५।।
कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली