देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी" चलो मितवा..........

.- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


चलो मितवा..........


चलो मितवा , कहीं  दूर चलें।
सब छोड़कर, कहीं दूर चलें।।


अपने  सभी  हो  गए बेगाने ;
इन्हें छोड़कर ,कहीं दूर चलें।।


अब बेगाने  को बनाएं अपने;
अपने मुड़कर,कहीं दूर चलें।।


जिन्हें अपना  हमदर्द  समझा;
वो गए मुकर , कहीं दूर चलें।।


मर जाएंगे,दगाबाजी न करेंगे;
ऐसे छोड़कर , कहीं दूर चलें।।


देश के  गद्दारों से  रहें  सतर्क ;
गद्दार छोड़कर,कहीं दूर चलें।।


अपना वजूद न मिटे"आनंद" ;
वजूद रखकर ,कहीं दूर चलें।।


- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


अखण्ड प्रकाश कानपुर पत्तों को नोचते तो बहुत दिन गुज़र गये।

 


अखण्ड प्रकाश


कानपुर


पत्तों को नोचते तो बहुत दिन गुज़र गये।
जड़ ही उखाड़ दो तो जवां बात कुछ बने।
ये आंख आज खून में पानी है देखती।
तुम लो कसम जवानी की तो बात कुछ बने।।


वो इंकलाबी नारे जोश वतन परस्ती।
काफी दिनों से ये कोई किस्से नहीं सुने।।
कुरवान हुए एक जमाने में सूरमा। अब तुम मरो तो एक कहानी नयी बने।।


तालाब था कुछ कमल थे अब काई है लगी।
बदला नहीं गया यहां पानी जरा सुने।।
साथी तुम्हारी आज जरूरत है देश को।
आया समय कि आंख तुम्हारी ज़रा तने।।


गांधी की अहिंसा हो या आजाद की हिंसा।
सत्याग्रह करो या दुनाली यहां तने।।
बदलाव की बयार में आंधी सी चले अब।
ताण्डव करें नटराज भवानी ज़रा नचें।।


मुकेश सोनी सार्थक बुद्धेश्वर रोड़ रतलाम कविता गर्द गर्द से लिपटे शीशे जैसा


मुकेश सोनी सार्थक
बुद्धेश्वर रोड़ रतलाम
मो.9752052608
कविता
गर्द
गर्द से लिपटे शीशे जैसा
मेरा जीवन जीने को
अनजाना कोई चेहरा
गर्द हटा कर आँचल से झाक रहा है भीतर को
मन की सुनी गलियों में फिर मेलो की गन्ध मिली
फिर चाहत की खुशबू मात कर रही चंदन को
फिर भीगी मिट्टी की खुशबू अलसाये पेड़ो की छाँव को
याद दिला कर चली गई बारिश की कागज की नाव को
उन राहो को तकता रहता जिनका कोई पता नही
उस खत को पढ़ लेता हूँ जो
उसने अब तक लिखा नही
अँखियों का पैगाम मिला है
फिर अँखियों के नाम को
मुकेश सोनी सार्थक


श्रीमती शशि मित्तल बतौली सरगुजा (३६गढ़) सपने कविता

 


श्रीमती शशि मित्तल
बतौली सरगुजा (३६गढ़)
सपने
मैने भी बोए थे
कुछ सपने सलोने
जीवन के ठोस धरातल पे
नेह- स्नेह के जल से सींचा
प्यार रुपी खाद से पोषा 
आज बना वो वटवृक्ष
बाहें फैलाए मेरे
उतर आया चौबारे
पुलकित होगा 
वह भी अब तो
खुशियों की 
सौगात लिए
हर डाल-डाल
पात -पात में
झलक रहा संस्कार 
स्वप्न हुआ साकार
लेने लगा है आकार!
इस वसुधा की माटी पे
मैने भी......
सपनों का संसार अनोखा
ख़्वाबों का नहीं लेखा-जोखा
सपने कभी होते पूरे
कभी रह जाते अधूरे
नेक फरिश्तों से 
करती हूँ आशा
पूरी करना मेरी 
अभिलाषा....
परिवार बनें संस्कारवान
समाज़  का  हो  उत्थान
निश्छल बनो,न हो खींचतान
ऐसा  हो  हमारा  हिंदुस्तान !!


प्रिया सिंह लखनऊ उसके हिस्से की मैं हक में दुआएं मांग लाती हूँ 

प्रिया सिंह लखनऊ


उसके हिस्से की मैं हक में दुआएं मांग लाती हूँ 
हो तैनात काल तो मैं हक में बलाएँ मांग लाती हूँ  


बेसबर जिन्दगी बस रोज बदलती रहती है प्रिया 
मैं उस रब से अब क्या क्या बताएं मांग लाती हूँ 


वो राह जिसमें हमसफ़र कोई नहीं होता शायद 
ऊपर वाले से वहाँ उसकी सदाएं मांग लाती हूँ 


गुस्ताखी कर ली तुझसे अब मोहब्बत कर के तो
तेरे दामन में सिमटी सारी खताएं मांग लाती हूँ 


वो अंदाज फरेबी मेरे मालिक की अदा बन गई 
जरा उस रब से अपने लिए वफाएं मांग लाती हूँ 


बहुत से तौर बाकी हैं मेरे अंदरखाने में यकीनन 
दफन करने खुदी को लहद से अदाएं मांग लाती हूँ 



Priya singh


एस के कपूर श्री हंस,  बरेली जीवन अर्थ मर्म।।विविध मुक्तक

एस के कपूर श्री हंस,   06,
पुष्कर एनक्लेव, स्टेडियम रोड,
बरेली,243005(ऊ प)
कविता
जीवन अर्थ मर्म।।विविध मुक्तक।।
1,,,,
मनुष्य में भी ईश्वर का वास होता है।
।।।।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।
जिस दिन इंसान  को इंसान में
इंसान  नज़र आयेगा।


दूसरे  के  मान   में   ही  अपना
सम्मान नज़र आयेगा।।


जब समझ लेगा मनुष्य कि सब 
हैं एक ईश्वर की संतानें।


आदमी   को आदमी  में  ही तब
भगवान नज़र आयेगा।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर श्री हंस
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।
2,,,,,,,
 जो याद रहे वह कहानी बनो।।
।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।


बस   अपना  ही  अपना  नहीं
किसी और पर मेहरबानी बनो।


चले जो   साथ हर  किसी  के 
तुम ऐसी  कोई   रवानी  बनो।।


जीवन  तो  है  हर  पल   कुछ
नया  कर  दिखाने   का  नाम।


कोई भूल बिसरा  किस्सा नहीं
जो याद रहे  वो कहानी  बनो।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस
बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
मोब   9897071046।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।
3,,,,,,,,
 जीवन की आखिरी।।।।।शाम
।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।
न जाने कब जीवन की
आखरी शाम आ जाये।


वह  अंतिम  दिन बुलावा
जाने का पैगाम आ जाये।।


सबसे  बना  कर रखें हम
दिल  की  नेक नियत से।


जाने  किसी की दुआ कब
जिंदगी के काम आ जाये।।


रचयिता।।।।।एस के कपूर
श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।
मोब।।।   9897071046।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।
4,,,,,,,,,,
 बस प्रेम का नाम मिले तुमको
।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।


जिस  गली से  भी  गुज़रो बस
 मुस्कराता  सलाम हो  तुमको।


किसी की मदद तुम कर सको
बस  यही  पैगाम  हो  तुमको।।


दुआयों का लेन देन हो तुम्हारा
बस  दिल  की   गहराइयों  से।


प्रभु से करो    ये  गुज़ारिश कि
बस  यही  काम   हो   तुमको।।


रचयिता ।।।।एस के कपूर श्री
हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।


निशा"अतुल्य" *पत्थर* पत्थरों का भी अपना अपना नसीब होता है 

 


निशा"अतुल्य"
*पत्थर*


पत्थरों का भी अपना अपना नसीब होता है 
कोई खाता ठोकर कोई भगवान बन जाता है ।
मन की भावनाओं का है खेल सारा
हाँ ये ही सच है भाग्य पत्थरों का भी होता है ।


अब इंसान भी पत्थर सा दिल रखते हैं
धड़कने है दिल में अहसास न जाने कहाँ सोता है।



दुख में है पड़ोसी और तू तान के चादर सोता है 
न पूछता है कोई बात न दिल की बात कहता है ।


टूट रही रिश्तों की कड़ियाँ बस अपने घर को सीता है 
ना जाने हो गया है क्या इंसान को क्यों खुदगर्जी में जीता है ।


हाँ कुछ पत्थर सा इंसान रहता है नसीब अपना अपना
इंसानों के साथ नसीब पत्थरों का भी होता है ।


रखो भावनाओं का प्रस्फुटन, प्रेम का दरिया खुद में 
पत्थर बन कर नही कुछ हासिल तुम्हे होता है ।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


गनेश रॉय" रावण"✒ भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ "नही मिला सुकून मुझे"

गनेश रॉय" रावण"✒
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


"नही मिला सुकून मुझे"
"""""""""""""""""""""""'''''""""""'
सुकून के कुछ पल बिताने
गया था मैं अपने गाँव में
ठंडी पूर्वाइयो के छाँव में
पंछियों के मीठी तान में
पेड़ों पर लिपटी 
अमरबेल के साथ मे
वो गाँव की पुरानी पनघट में
गोरी की खनकती चुडे में
झम - झम करती पाजेब में
काली जुल्फों की बादल में
बनके आवारा उड़ने चला था
मस्त गगन के छाँव में
पर ऐसा हुआ नही
मेरे अनुरूप गाँव मे
चारो तरफ थे सोर सराबे
और रंजिशों के माहौल थे
एक से बढ़ कर एक खड़े थे
चुनावी मैदान में
ऐसे में मेरा दम था घूँटता
कैसे सुकून का पल मैं ढूंढता
चला आया मायूस होकर
कल-कारखाने की संसार में
पल भर भी नही मिला 
सुकून मुझे मेरे गाँव मे।


✒गनेश रॉय" रावण"✒
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


रामचरित मानस को सभी पसन्द करंगे आनन्दित होंगे बलराम सिंह यादव पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इन्टरकालेज खमरिया पण्डित धर्म एवम अध्यात्म व्यख्याता

कबित्त रसिक न राम पद नेहू।
तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू।।
भाषा भनिति भोरि मति मोरी।
हँसिबे जोग हँसे नहिं खोरी।।
प्रभुपद प्रीति न सामुझि नीकी।
तिन्हहिं कथा सुनि लागिहि फीकी।।
हरि हर पद रति मति न कुतरकी।
तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुबर की।।
  ।श्रीरामचरितमानस।
  जो न कविता के रसिक हैं और न जिनका प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में प्रेम है उनके लिए भी यह कविता सुखद हास्यरस का काम करेगी।सर्वप्रथम तो यह भाषा की रचना है, दूसरे मेरी बुद्धि भोली है।अतः यह हँसने योग्य ही है अर्थात इस पर हँसने में उन्हें कोई दोष नहीं है।जिन्हें न तो प्रभु के चरणों में प्रेम है और न अच्छी समझ ही है उनको यह कथा सुनने में फीकी लगेगी।जिनकी भगवान विष्णु और भगवान शिवजी के चरणों में प्रीति है और जिनकी बुद्धि कुतर्क करने वाली नहीं है उन्हें श्रीरघुनाथजी की यह कथा मधुर अर्थात प्रिय लगेगी।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  उपरोक्त चौपाई में गो0जी का यह आशय है कि इस ग्रँथ से सभी प्रकार के पाठकों व श्रोताओं को कुछ न कुछ उनकी पात्रता के अनुसार मनोरंजन व सुख की सामग्री अवश्य मिलेगी।कविता के रसिकों को हास्यरस से सुख मिलेगा क्योंकि यह हँसने योग्य है।सँस्कृत भाषा के अभिमानी विद्वान भी इसे साधारण भाषा में जानकर हँसेंगे।जो प्रभु के भक्त नहीं हैं और जिनकी समझ भी अच्छी नहीं है उन्हें न तो भक्ति रस का सुख मिला और न ही कविता का रस ही मिला।भगवान विष्णु और भगवान शिवजी में जो भेद या ऊँच नीच की कल्पना नहीं करते हैं उन्हें यह कथा अवश्य ही प्रिय लगेगी क्योंकि इस कथा के मूलरचनाकर भगवान शिव जी ही हैं।यथा,,,
रचि महेस निज मानस राखा।
पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा।
तातें रामचरित मानस बर।
धरेउ नाम हिय हेरि हरष हर।
  इस ग्रँथ में प्रारम्भ में शिव चरित्र है और बाद में प्रभु श्रीराम जी के चरित्र का वर्णन है अतः शैव व वैष्णव सभी भक्तजनों को यह कथा अवश्य ही मधुर अर्थात प्रिय लगेगी,ऐसा गो0जी को विश्वास है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्ज बिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


श्रीमती स्नेहलता'नीर गीत सूखी पड़ी नेह की नदिया,

श्रीमती स्नेहलता'नीर


गीत


सूखी पड़ी नेह की नदिया,मरुथल हुई प्रीति की पुलकन
सुख की कोरी रही कल्पना,झुलस रहा मन का वृंदावन।
1
नहीं प्रेम की एक बूँद भी,इस जग से हमको मिल पाई।
राग-द्वेष की दुसह पीर की,अंतर् में बढ़ती गहराई।।


डाल रही दुनिया घावों पर,मिर्च, रामरस,अम्ल-रसायन
2
संबंधों के मतलब बदले,स्वार्थ सभी का ध्येय बना है।
सबके हाथों खूनी खंजर,अविवेकी मन रक्त सना है।


मीठे बैन छलावा केवल,अंतरंग है बहुत अपावन।
3
जिस पर किया भरोसा अतिशय,उसने छला हमें नित पल-छिन।
वर्षों बाद समझ पाए हम, भाग्य-रेख में बैठी नागिन।।


रात-दिवस व्याकुल नयनों से,झरझर-झरझर बहता सावन।
4
घुटती साँसों की नजरों से,रूठ गया अपना ही साया।
कफन दुखों का हमें उढ़ाकर,सबने जिंदा लाश बनाया।


अनहद दूर मौत जा बैठी,शूलों का है बना बिछावन।


श्रीमती स्नेहलता'नीर


डॉ. प्रभा जैन "श्री " देहरादून ----------------------- गगन  ----------- हुआ भोर का आगमन

डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून
-----------------------
गगन 
-----------
हुआ भोर का आगमन 
गगन यूँ मग्न हुआ, 
इक कली ने घूँघट हटा 
पहली बार संसार देखा। 


पक्षियों ने उड़ते गगन में 
बाँह  खोल, ली मस्त उड़ान, 
सूर्य पिघला हुआ स्वर्ण सा 
आ गया ले सवारी गगन। 


 बैठी छत पर  मैं 
 कैनवस पर उतार रही प्रकृति
झील  में उमड़ता जल, 
गगन का नीलापन 
दिखा रही कैनवस पर।  


पायलें  गीत गुनगुनाने लगी 
फूलों की पंखुरी पर, 
महकने लगी 
पक्षियों ने डाला डेरा, 
कूँ- कूँ,ची-ची,चे-चे  कलरव 
धरा से गगन तक कर डाला। 


हैं,  प्रात :काल 
गगन में  ॐ ध्वनि बज रही, 
आरती, दीप, सुगंध,शंखध्वनि 
सब सुनाई दे रही। 


मंत्रों  का उच्चारण 
हर घर मंदिर से हो रहा,  
हर मन शान्त, ललाई लिए 
चहुँ ओर  नज़र आ रहा। 


मन मेरा भी दौड़ लगा रहा 
उड़ कर पहुँचू नील  गगन में, 
ऊँचाईयों को छू  लूँ । 


देख आऊँ  मैं  गगन के पार 
होता क्या ब्रह्माण्ड में, 
क्या हैं वहाँ भी जीवन 
हैं तो कैसा हैं जीवन। 
हैं तो कैसा हैं जीवन 


कितने सूरज, कितने तारे 
कितने चंदा हैं हमारे,  
क्या कोई कर रहा हैं इंतजार 
मेरा भी आने को गगन। 


बहुत मन हैं मेरा 
देखूँ मैं विशाल गगन


स्वरचित 
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून


मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज मधु के मधुमय मुक्तक सफल ◆सफल मनुज वो ही बने

मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज


मधु के मधुमय मुक्तक
सफल


◆सफल मनुज वो ही बने,जिसका उच्च विचार।
आशा की नव ज्योत से,होता जग विस्तार।
करो सदा कर्तव्य को,ऐसा हो विश्वास,
सफल बने निश्चित वही, जो धरता आधार।।


◆कभी हार मत मानिए,करिए अपना काम।
अथक परिश्रम जो करे,वो ही करता नाम।
मत भूलो इस देश का, ऐसा ही इतिहास,
धीर वीर ही सफल हैं,धरती के सुखधाम।।


◆जाने सारे मनु यही,मन में हो विश्वास।
जीने की इक चाह हो,सुखद भाव का आस।
सफल बने हर क्षेत्र में,जो मनु करता काम,
मधु जीवन में सफल ही,रचता है इतिहास।।


ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई भोर का नमन  मेरी पुस्तक *गीत गुंजन* से 

ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई


भोर का नमन 
मेरी पुस्तक *गीत गुंजन* से 


*हे मात पिता हे गुरुवर प्यारे, इतना सा उपकार करें।*
*नमन भोर का करूँ आपको, प्रभुवरश्री स्वीकार करें।।*


*अम्बर धरती भानु शशी हे, अनल पवन हे प्रिय प्यारे।*
*तरु तरुवर हे पर्वत सागर, नील गगन के सब तारे।।*
*हे अरि मित्र सकल प्रिय परिजन, इतना सा उपकार करें।*
*नमन भोर का करूँ आपको, आप सहज स्वीकार करें।।*


*मनवीणा की सरगम साँसे, गीत नेह का गाती हैं।*
*और आपके कृपाभाव से, पुलकित सी हो जाती हैं।*
*पुण्य पटल प्रिय प्रीत पुनीता पुनि पावन परिवार करें।*
*नमन भोर का करूँ आपको, आप इसे स्वीकार करें


माँ शारदे माँ शारदे" राहुल मौर्य 'संगम' गोला गोकरननाथ खीरी

 "माँ शारदे माँ शारदे"
राहुल मौर्य 'संगम'
गोला गोकरननाथ खीरी उत्तर प्रदेश
संपर्क-9452383538


 
जय-जय-जय माँ शारदे,करो सकल कल्याण।
शब्द - शब्द गाथा  बने , भर  दो  उनमें  प्राण।।


मैं  बालक  नादान  हूँ , सरगम   से अनजान ।
करो   कृपा   माँ   शारदे , गाऊँ   तेरा   गान ।।


श्वेत  कमल   माँ   भारती , बारम्बार  प्रणाम ।
बस   तेरा  गुणगान  ही , करता आठों  याम ।।


हंसवाहिनी   ज्ञान  की , बरसा   दो  रसधार ।
नाम  रहे  संसार   में ,  जाऊँ जब उस  पार ।।


आसन  माँ  का श्वेत है , कर वीणा का वास ।
दूर  करो   माँ  शारदा , मानवता  का   त्रास ।।


वीणा    की   झंकार    से ,  गूँजे   मेरे   गीत ।
सकल विश्व कल्याण में,बिखरे अनुपम प्रीत ।।


जगती  माँ  हे  भारती , अंतिम यह अरदास ।
जगत  में आये एकता , पूर्ण करो सब आस ।


किशोर कुमार कर्ण  पटना बिहार वो वासंती मौसम 

किशोर कुमार कर्ण 
पटना बिहार
वो वासंती मौसम 


उनकी खुशबू 
अब भी ताजी है 
वर्षों से सांसों में समायी है 
जब भी चलती है
उनकी महक आने लगती है 


अब भी मंद-मुस्काती 
अधर उनकी दिखती है 
गुलिस्ता भरी चमन में 
जब कई कलियाँ आपस में 
लिपटी रहती है 


गेसूंओ में उलझी उंगली 
वसंत आने से महसूस होती है 
कली- लता से उलझती है 
आहिस्ता से कहती है 
मैं वहीं हूँ जिसे छेड़ा करते थे


वो वासंती मौसम 
भी अजीब था
पहली और आखिरी मिलन का
मिलानेवाला और
आखिरी राजेदार था


-


अविरल शुक्ला राष्ट्र धर्म राष्ट्र के समक्ष यदि बात आये धर्म की तो

अविरल शुक्ला राष्ट्र धर्म


राष्ट्र के समक्ष यदि बात आये धर्म की तो
देश  प्रेम  दिल  में  उभारना  जरूरी  है।


सारथी ही रथ का जो मिल जाए शत्रु से तो
रण  में   प्रथम   उसे  मारना  जरूरी  है।


देशद्रोह की हो आग, जुबां पे विदेशी राग
ऐसे  वक्षस्थलों  को  फाड़ना  जरूरी है।


भारती की आरती में शामिल न हो सके जो 
ऐसे  शीश  धड़  से  उतारना  जरूरी  है।


©️अविरल शुक्ला


राजेंद्र रायपुरी। मन की कामना  

राजेंद्र रायपुरी।


मन की कामना  


कामना मन है यही, 
              हर जीव का कल्यान हो।
कामना मन है यही,
                हर श्रेष्ठ का सम्मान हो।


कामना  मन है यही,
            दुख का कहीं मत नाम हो।
हर तरफ सुख-चैन हो,
                  आराम ही आराम हो।


कामना मन है यही, 
                   भूखा नहीं इंसान हो।
कामना मन है यही,
                  भरपूर हर खाद्दान हो।


कामना मन है यही,
            हर नव-जवां खुशहाल हो।
वो चले सन्मार्ग पर, 
             बहकी न उसकी चाल हो।


कामना मन है यही, 
              श्रम का सदा सम्मान हो।
आलसी का मान या,
             श्रम का नहीं अपमान हो।


                 ।।राजेंद्र रायपुरी।।


कौशल महन्त"कौशल" जीवन दर्शन भाग !!१९!!* ★★★ पूरी हो जब माँग तो,

,      कौशल महन्त"कौशल"


जीवन दर्शन भाग !!१९!!*


★★★
पूरी हो जब माँग तो,
             पुलकित है मनबाग।
जब माँगा पाये नही,
            करता भागम भाग।
करता भागम भाग,
            उधम भी खूब मचाता।
जाता है जब रूठ,
            मात को बहुत नचाता।
कह कौशल करजोरि,
             आस सब रहे अधूरी।
नटखट का हर माँग,
            नहीं हो जब तक पूरी।।
★★★
दादी दादा से करे,
            अठखेली का खेल।
करता कभी लुका छुपी,
            कभी बनाये रेल।
कभी बनाये रेल,
            दौड़ते छुक-छुक करके।
करता कभी किलोल,
            भाग अरु रुक-रुक करके
कह कौशल करजोरि,
            बना वादी संवादी
अतुलित करें दुलार,
            नित्य ही दादा दादी।।
★★★
सच्चा नित ही बोलता,
            छोड़ कपट मन द्वेष।
खुशियाँ ही खुशियाँ लिये,
            मन में अमिट अशेष।
मन में अमिट अशेष,
            प्रेम का भरता सागर।
तुतले मीठे बोल,
            हृदय को करे उजागर।
कह कौशल करजोरि,
            भले है तन से कच्चा।
पर निश्छल मनभाव,
           परम होता है सच्चा।।
★★★


कौशल महन्त"कौशल"
🙏🙏🌹


कौशल महन्त"कौशल"  *जीवन दर्शन भाग !!१८!!* ★★★

,     कौशल महन्त"कौशल"


 *जीवन दर्शन भाग !!१८!!*


★★★
चलता घुटनों पर कभी,
            कभी पसारे पैर।
नटखट निज घर में करे,
            तीन लोक की सैर।
तीन लोक की सैर,
            धूल मिट्टी में खेले,
दिखे कहीं कुछ चीज,
            पकड़ हाथों में ले ले।
कह कौशल करजोरि,
            कुमारों जैसे पलता।
हाथ मात का थाम,
            कदम डगमग डग चलता।।
★★★
माता की पहचानता,
             हर आहट हर बोल,
प्रेमिल हर आभास को,
            देखे नैनन खोल।
देखे नैनन खोल,
            कभी सपनों में रहकर।
कभी जगाये रात,
            नींद में माँ माँ कहकर।
कह कौशल करजोरि,
            दीप कुल का कहलाता।
रोता भी गलखोल,
            नहीं दिखती जब माता।
★★★
भोली सूरत देख कर,
            सब की जागे प्रीत।
बचपन सदा लुभावनी,
          यही जगत की रीत।
यही जगत की रीत,
            उम्र दिन-दिन बढ़ते हैं।
डगमग करते पाँव,
            सीढ़िया भी चढ़ते हैं।
कह कौशल करजोरि,
            सखाओं की हो टोली।
ढूंढ रहा है नैन,
            किसी की सूरत भोली।।
★★★


कौशल महन्त"कौशल"
🙏🙏🌹


नमस्ते जयपुर से -डॉ निशा माथुर

कुछ अलग सा अहसास लेकर आता है सोमवार।
मुस्तैदी से सबको काम पर लौटा देता है सोमवार।
आलस छोड़ो काम पे लौटो रविवार गया है बीत,
कल गया है कल आएगा यही है प्रकृति की रीत।


..............                                                                          सौम्य सुबह का सुहाना वंदन सुहानी शुभकामनाओ के साथ आप सभी का सोमवार सहज सुकोमल सुमधुर और सकून वाला हो!!! गुलाबी प्रभात का गुलाबी वंदन 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻💐💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹🌹🍁🍁🍁🍁🍁🌼🌼🌼🌼🌼☘☘☘☘☘.......
नमस्ते जयपुर से -डॉ निशा माथुर🙏😃


सत्यप्रकाश पाण्डेय भजन कान्हा तेरी बंशी मन को लुभाती है

 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


भजन


कान्हा तेरी बंशी मन को लुभाती है
भावों की गोपी दौड़ी दौड़ी आती हैं


सुन वेणु का नाद मिले खुशी मुझको
विश्रांति मिलती करके स्मरण इसको


एक उमंग सी मेरे हृदय में समाती है
भावों की गोपी दौड़ी दौड़ी आती हैं


मझधार में जीवन झंझावात ने घेरा है
बिन कृपा स्वामी चहुंओर अंधेरा है


बन अरुणिमा बंशी प्रभात बुलाती है
भावों की गोपी दौड़ी दौड़ी आती हैं


कैसा सौभाग्य मिला अधरों पै विराजे
गोवर्धन धारों उन करकमलों पै राजे


निशदिन माधव तेरे संग सुहाती है
भावों की गोपी दौड़ी दौड़ी आती हैं


मुरलीधर घनश्याम की जय💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन (मुम्बई) कुछ तो कमी रहेगी* विधा : कविता हर नामी में कुछ कमी तो रहेगी,

 


संजय जैन (मुम्बई)


कुछ तो कमी रहेगी*
विधा : कविता


हर नामी में कुछ कमी तो रहेगी,
आँखें थोड़ी-सी शर्माती रहेंगीl
जिंदगी को आप कितना भी संवारिये,
बिना हमारे कोई-न-कोई कमी तो रहेगी।।


खाली हाथ आप आये थे संसार में हज़ूर,
खाली हाथ आप जायेंगे संसार से जरूर।
संसार में रहकर,
बातचीत न करके आप,
कितनी चिल्लर संसार से बचाएंगे हजूर।।


कभी दोस्त कहते हो,
और दुआ देते हो,
कभी दुआ देते हो,
और दोस्ती निभाते हो।
कभी-कभी वक्त नींद से ज्यादा देते हो,
बात जब भी करते हो,
दिल से करते हो।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
03/02/2020


बसंत आशा त्रिपाठी डीपीओ *विपुल* मधु ऋतु सहज मृदुल मतवाली,

आशा त्रिपाठी *विपुल*


मधु ऋतु सहज मृदुल मतवाली,
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
हरित धरा चुनर भई धानी,
प्रकृति पूजन की बेलि सुहानी।
सिहर रही वसुधा रह-रहकर,
यौवन सुरभित सौरभ आली।।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
नूतन किसलय नवल आरती,
बासन्ती धरे रुप भारती।।
मोद-मधुर पूरित परिमल नव,
विपुल धरा करती रखवाली।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
छवि विभावरी नवल रस गागर
हर्षित जल-थल सरसित सागर।
मधुरिम पवन मकरन्द सुवासित
पुलकित नभ वन डाली- डाली।।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
बोराई अमवा की डाली,
खेतों में गेहूँ की बाली।
कृषक हृदय उल्लास परम भव,
सरसों महक रही मतवाली।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
चन्द्र -छ्टा छवि अनमोल।
कोयल कूक रही रस घोल।
छाई शरद रजत मुस्कान।
अभिभव अमिय सहज खुशहाली।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
खग-कुल-कलरव मृदुल सुहावन।
पावस -सरस गरल मनभावन।
लता-सुमन- मकरन्द भार से।
हर लतिका पर छायी लाली।।
. *वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
शाश्वत प्रकृति ,अलौकिक उपवन,
मन मयूर नॉचे मृदु तन-मन।
सरस सुमन चहुँ ओर सुवासित
मदन-वाण द्दोड़े वनमाली।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
✍आशा त्रिपाठी *विपुल*
       02-02-2020
           हरिद्वार


संजय जैन (मुम्बई आदर्श परिवार* विधा : कविता   जोड़ जोड़कर तिनका, 

संजय जैन (मुम्बई


आदर्श परिवार*
विधा : कविता  


जोड़ जोड़कर तिनका, 
 पहुंचे है यहां तक।
अब में कैसे खर्च करे, 
 बिना वजह के हम।
जहां पड़े जरूरत, 
करो दबाकर तुम खर्च।
जोड़ जोडक़र ......।।


रहता हूँ मैं खिलाप, 
 फिजूल खर्च के प्रति।
पर कभी न में हारता, 
मेहनत करने से ।
और न ही में हटता, 
अपने फर्ज से।
पैसा कितना भी लग जाये, 
वक्त आने पर।।


बिना वजह कैसे लूटा दू,
अपने मेहनत का फल।
सदा सीख में देता हूँ,  
 अपने बच्चो को।
समझो प्यारे तुम सब, 
इस मूल तथ्य को।
तभी सफल हो पाओगे,  
 अपने जीवन में।।


क्या खोया क्या पाया,  
 हिसाब लगाओ तुम।
जीवन भर क्या किया,
जरा समझ लो तुम।
कितना पाया कितना खोया, 
सही करो मूल्यांकन।
खुद व खुद समझ जाओगे, 
जीवन को जीने का मंत्र।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई
02/02/2020


निधि मद्धेशिया कानपुर कबीर/सरसी छंद माणिक,सीप,संख दे सागर,

निधि मद्धेशिया
कानपुर


कबीर/सरसी छंद


माणिक,सीप,संख दे सागर,
अरु अनगिन उपहार।
माँ लक्ष्मी संग विराजेंगे
विष्णु - विष्णु आधार।


मेरे प्रियवर बस कृष्ण रहे,
देखूँ राधा रास,
मन संग मथि माखन खिलाऊँ,
मिटाऊँ नयन प्यास।



निधि मद्धेशिया
कानपुर


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