एस के कपूर श्री हंस स्टेडियम रोड बरेली(ऊ प) कविता विविध मुक्तक माला

एस के कपूर श्री हंस
स्टेडियम रोड
बरेली(ऊ प)
कविता
विविध मुक्तक माला।।।।।।।
1,,,,,,,
।।।आंतरिक शक्ति।।।।।।।। 
।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।
मत  आंकों     किसी  को    कम ,
कि सबमें कुछ बात होती है।


भीतर छिपी प्रतिभा कीअनमोल,
  सी    सौगात     होती   है।।


जरुरत है तो  बस उसे पहचानने,
और फिर निखारने  की।


तराशने  के बाद  ही  तो  हीरे से,
मुलाकात    होती     है।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस
बरेली।।।।।।।।।।। ।।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।8218685464।।।।।।।।
2,,,,,,
।। सफलता का सम्मान।।।।।।।।।।।।।।।।
।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।


नसीबों  का   पिटारा   यूँ    ही
कभी खुलता नहीं है।


सफलता का सम्मान जीवन में
 यूँ ही घुलता नहीं है।।


बस कर्म  ही लिखता है  हाथ
की   लकीरें  हमारी ।


ऊँचा  हुऐ बिना  आसमाँ  भी
कभी झुकता नहीं है।।


रचयिता।।।।।एस के कपूर
श्री हंस।।।।।।बरेली।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।
3,,,,,
सत्य कभी मरता नहीं है।।।।
।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।


सच  कभी    मरता    नहीं
हमेशा  महफूज़   होता है।


ढेर में दब कर  भी जैसे ये 
चिंगारी और फूस होता है।।


लाख छुपा ले कोई उसको
काल  कोठरी   के  भीतर।


सात  परदों के पीछे से भी
जिंदा   महसूस   होता  है।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री
हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।
4,,,,
सत्य कभी मरता नहीं है।।।।
।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।


सच  कभी    मरता    नहीं
हमेशा  महफूज़   होता है।


ढेर में दब कर  भी जैसे ये 
चिंगारी और फूस होता है।।


लाख छुपा ले कोई उसको
काल  कोठरी   के  भीतर।


सात  परदों के पीछे से भी
जिंदा   महसूस   होता  है।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री
हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


बिना तुम्हारे प्राण-प्रेयसी, व्याकुल जिया तड़पता है

स्नेहलता नीर गीत
*****



बिना तुम्हारे प्राण-प्रेयसी,
व्याकुल जिया तड़पता है।
मन मिलने को आतुर होकर,
बालक-सरिस मचलता है।


उर से उर का पावन संगम ,
पावन प्रीति हमारी है।
तुम ही तुम हो इस जीवन में,
झूठी दुनियादारी है।


जनम-जनम का रिश्ता अपना ,
नीर-मीन-सा लगता है।
बिना तुम्हारे प्राण-प्रेयसी,
व्याकुल जिया तड़पता है।


मन के कोरे कागज पर नित, 
नाम तुम्हारा लिखता हूँ।
तुम बिन पल लगते सदियों से,
जाग-जाग कर गिनता हूँ।


नाम तुम्हारा ही दिल गाता,
जितनी बार धड़कता है।
बिना तुम्हारे प्राण-प्रेयसी,
व्याकुल जिया तड़पता है।


मन की वीणा के तारों को,
झंकृत तुमने कर डाला।
लगती प्रीति-प्रतीति तुम्हारी
अहसासों की मधुशाला।।


जग क्या जाने इस रिश्ते में,
कितनी अधिक गहनता है।
बिना तुम्हारे प्राण-प्रेयसी,
व्याकुल जिया तड़पता है।


स्नेहलता नीर गीत **** स्याह हुआ है जीवन दुख में ,

स्नेहलता नीर गीत
****


स्याह हुआ है जीवन दुख में ,
 एक आस की किरण दिखाओ।
जग के कष्ट मिटाने वाले,
आकर मेरे कष्ट मिटाओ।


रिश्तों की पावन बगिया में,
अंतहीन पतझर छाया है।
प्रीति छलावा मोह बाँधता,
 वैभव ने मन उलझाया है।


बनो नेह की श्याम बदरिया,
बरस -बरस कर मुझे भिगाओ।
स्याह हुआ है जीवन दुख में  ,
एक आस की किरण दिखाओ।


बनी तुम्हारी मैं दीवानी,
तुमको अपना सब कुछ माना।
ध्येय बनाया है  जीवन का,
बस तुमको ही है अब पाना।


दर्शन के अभिलाषी नैना ,
और न इनको अब  तड़पाओ।
स्याह हुआ है जीवन दुख में ,
एक आस की किरण दिखाओ।


लेकर चाह मिलन की तुमसे,
गमन निरन्तर मेरा जारी।
छलनी पाँव किये शूलों ने,
क़दम -क़दम है बढ़ना  भारी।


करके कृपा श्याम सुंदर अब,
निज चरनन की दास बनाओ।
स्याह हुआ है जीवन दुख में,


एक आस की किरण दिखाओ।


स्नेहलता नीर गीत साँस-साँस सहमी-सहमी है,

स्नेहलता नीर गीत
साँस-साँस सहमी-सहमी है,
हर पल लगता डर।
भूचालों पर खड़े काँपते
सुख-सपनों के घर।


दिन मेहनत के बल पर गुजरे,
जाग-जाग रातें।
आसमान भी लेकर आता
बेमौसम घातें।
धक-धक धड़काते हैं छाती,
चिंता के बादल।
हुआ किसानी में तन जर्जर,
अंतर्मन घायल।


सूखा कभी तुषार झेल कर ,
फसल रहीं सब मर


नेह बिना रिश्ते-नाते सब,
सूखे-सूखे हैं।
बोल और व्यवहार सभी के,
रूखे -रूखे हैं।
प्रीति-कोंपलों पर दुश्मन की ,
आरी चलती है।
सुनकर सीने में प्रकोप की,
ज्वाला जलती है।


दीन-धरम,ईमान तिरोहित,
सोच-समझ पत्थर।


बिका हुआ कानून,अदालत
अंधी-लँगड़ी है।
पड़ी झूठ के कदमों पर अब,
सच की पगड़ी है।
थोथे वादों,कुटिल इरादों, 
की सरकारें हैं।
फँसी भँवर में सबकी नैया,
बिन पतवारें हैं।


मौत नाचती है अब सिर पर,
नैन हुए निर्झर।


मस्त बहारें रूठ चुकी हैं,
सावन भी  रूठा।
कली-कली का तोड़ रहा दिल
मधुसूदन झूठा।
लाज आज बन चुकी खिलौना,
और चीज नारी।
जब चाहे शैतान खेलते,
कैसी लाचारी।


रिश्तों में ही घोल रहे हैं,
रिश्ते स्वयं जहर।


 


 


काव्य मंजरी साहित्यिक समूह का भव्य चतुर्थ वार्षिक महोत्सव "फुलवारी" सम्पन्न" निशा गुप्ता देहरादून सम्मानित

"नई दिल्ली में काव्य मंजरी साहित्यिक समूह का भव्य चतुर्थ वार्षिक महोत्सव "फुलवारी" सम्पन्न"


रविवार, 2 फरवरी 2020 को गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में काव्य मंजरी साहित्यिक समूह ने अपना चतुर्थ वार्षिक महोत्सव "फुलवारी" मनाया।


इस अवसर पर -श्रीमती निशा"अतुल्य" को सर्वश्रेष्ठ सक्रिय रचना कार के सम्मान से सम्मानित किया गया ।आप उत्तराखण्ड प्रान्त की प्रभारी हैं और नवरात्रों में नौ दिन नौ दुर्गा की अलग अलग स्तुति दे कर माता की चुनरी से सुशोभित हुई ।


इस भव्य समारोह में समूह के पहले साझा काव्य संग्रह "काव्य मञ्जरी" का लोकार्पण हुआ जिसकी मुख्य संपादिका डॉ नीरजा मेहता 'कमलिनी' जी हैं। कार्यक्रम का प्रारंभ पदमा शर्मा 'आँचल' ने गणेश वंदना से किया। नेहा शर्मा 'नेह' ने आयोजन के  "फुलवारी" नाम की सार्थकता बताई। तत्पश्चात दीप प्रज्वलन के बाद सुमधुर स्वर में डॉ स्वदेश मल्होत्रा 'रश्मि' ने सरस्वती वंदना गाई। समूह की संस्थापिका एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष गाज़ियाबाद से डॉ नीरजा मेहता 'कमलिनी' ने शॉल, मोमेंटो एवं मोती की माला पहनाकर अतिथियों को सम्मानित किया। समूह के प्रमुख अतिथियों श्री सुभाष चन्दर जी (वरिष्ठ व्यंग्यकार एवं आलोचक) ; श्री चन्द्रमणि ब्रह्मदत्त जी (संस्थापक,चेयरमैन इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल ; अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष नारायणी साहित्य अकादमी) ; डॉ तारा गुप्ता जी (गीतकार, गज़लकार , गान्धर्व निकेतन) ; सुश्री नीतू सिंह राय जी (राष्ट्रीय महासचिव, महिला काव्य मंच) ;  श्री रामकिशोर उपाध्याय जी (अध्यक्ष, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच न्यास) ; श्री ओम प्रकाश प्रजापति जी (संस्थापक एवं संपादक ट्रू मीडिया, देहली) ; सुश्री संतोष गर्ग जी (राष्ट्रीय कवि संगम, इकाई चंडीगढ़ की अध्यक्षा; अखिल भारतीय साहित्य परिषद, इकाई पंचकुला की सरंक्षक; मोहाली चंडीगढ़ में प्रेरणा सहायता सोसाइटी, एन जी ओ की उपाध्यक्ष) ; श्री अनिल शर्मा 'चिंतित' जी (इनकम टैक्स अफसर, राष्ट्रीय कवि संगम, इकाई चंडीगढ़ तथा अखिल भारतीय साहित्य परिषद, इकाई पंचकुला के महासचिव) ; दिलदार देहलवी जी (अधिवक्ता, लेखक, कवि, गज़लकार) के अनमोल वक्तव्य से सभी लाभान्वित हुए। अपने स्वागत भाषण में समूह के रजिस्टर्ड होने की घोषणा करते हुए संस्थापिका एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ नीरजा मेहता 'कमलिनी' ने नेहा शर्मा 'नेह' को उपाध्यक्ष एवं पदमा शर्मा 'आँचल' को महासचिव नियुक्त करते हुए उनको पुष्पहार पहनाकर उनका स्वागत किया। महासचिव पदमा शर्मा 'आँचल' ने समूह की जानकारी दी और उपाध्यक्ष नेहा शर्मा 'नेह' ने साझा काव्य संग्रह की समालोचना प्रस्तुत की।


इस अवसर पर 9 एकल पुस्तकों का भी विमोचन हुआ और सभी को शॉल, स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति-पत्र देकर "साहित्य सारथी सम्मान" से सम्मानित किया गया---देहरादून से सुश्री नीरू नैय्यर (नीलोफ़र) का काव्य संग्रह "भाव तरंगिनी" ; अयोध्या से डॉ स्वदेश मल्होत्रा 'रश्मि' के गीत संग्रह 'सुधियों के आंचल में', नोएडा से सुश्री किरण मिश्रा 'स्वयंसिद्धा' के काव्य संग्रह "शुगर फ्री सी ज़िंदगी" ; चंडीगढ़ से श्री मुरारी लाल अरोड़ा 'आज़ाद' के कविता एवं गीत संकलन "मोहब्बत करते रहना" ; चमोली उत्तराखण्ड से सुश्री शशि देवली का गज़ल संग्रह "इश्क़ से राब्ता" ; नोएडा से डॉ मीनाक्षी सुकुमारन का काव्य संग्रह "निबौरी" ; अलीपुर पश्चिम बंगाल से सुश्री पदमा शर्मा 'आँचल' का संस्मरण संग्रह "अतीत के पन्ने" ; मोहाली पंजाब से सुश्री नेहा शर्मा 'नेह' का कहानी संग्रह "स्नेह-पथ" ;  गाज़ियाबाद से डॉ नीरजा मेहता 'कमलिनी' का कहानी संग्रह "अधूरी कहानी" का लोकार्पण हुआ।


ये कार्यक्रम प्रातः 10 बजे से रात्रि 8 बजे तक तीन सत्रों (प्रथम सत्र--"प्रेरणा" में विमोचन एवं वक्तव्य ; द्वितीय सत्र--"वंदन अभिनंदन" में सम्मान समारोह ; तृतीय सत्र--"रस वृष्टि" में काव्य पाठ) में आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम का संचालन मोहाली पंजाब से आईं समूह की उपाध्यक्ष सुश्री नेहा शर्मा 'नेह' तथा अलीपुर पश्चिम बंगाल से आईं समूह की महासचिव सुश्री पदमा शर्मा 'आँचल' ने किया। इस अवसर पर साझा संग्रह से जुड़े सभी 35 रचनाकारों को स्टोल, मोती की माला, स्मृति चिन्ह और प्रशस्ति-पत्र देकर "साहित्य सेवी सम्मान" से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त 8 विशिष्ट सम्मान दिए गए---साहित्य के क्षेत्र में नोएडा से डॉ आभा नागर जी को वरिष्ठ साहित्यकार सम्मान, साहिबाबाद से भूपेंद्र राघव जी को गीत गौरव सम्मान, दिल्ली से श्री केदार नाथ शब्द मसीहा जी को शब्द साधक सम्मान दिया गया। पुस्तक 'परिणीता प्रेम' के लिए नोएडा से सुश्री किरण मिश्रा 'स्वयंसिद्धा' को भाव प्रणेता सम्मान ; सामाजिक क्षेत्र में भागलपुर से सुश्री सुमन सोनी को समाज सारथी सम्मान ; शिक्षा के क्षेत्र में देहरादून से सुश्री मीनाक्षी दीक्षित को प्रेरक सम्मान ; चित्रकला में नागपुर से सुश्री प्रीति हर्ष को उत्कृष्ट चितेरा सम्मान ; संगीत के लिए नोएडा से सुश्री स्तुति मेहता को भाव-भंगिमा सम्मान से सम्मानित किया गया। 


इसके अतिरिक्त समूह में आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं और आयोजनों के विजेताओं को सम्मानित किया गया---वाद-विवाद प्रतियोगिता सम्मान, मासिक प्रतियोगिता सम्मान, हिंदी दिवस पर आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी सम्मान, श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, श्रेष्ठ समीक्षक सम्मान, सक्रिय रचनाकार सम्मान, तकनीकी सहयोग सम्मान, नवरात्र आयोजन सम्मान, काव्य मंजरी सम्मान, प्रभारी सम्मान, संचालिका सम्मान से समूह के रचनाकारों को सम्मानित कर उत्साहवर्धन किया गया। प्रतियोगिताओं के विजेताओं को ट्रॉफी, मेडल दिया गया, श्रेष्ठ एवं सक्रिय रचनाकारों को सैश, मुकुट एवं ट्रॉफी से सम्मानित किया गया, नवरात्र आयोजन के विजेताओं को माता की चुनरी ओढ़ाई गई, प्रभारियों को उनके छाया चित्र लगे मग दिए गए, तकनीकी सहयोगी को साड़ी और मैडल दिया गया, काव्य मंजरी सम्मान के लिए स्टोल और प्रशस्ति-पत्र पत्र दिया गया और संचालिकाओं को स्टोल, ट्रॉफी और प्रशस्ति-पत्र दे कर सम्मानित किया गया।


समूह की संस्थापिका एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ नीरजा मेहता 'कमलिनी' को समूह की ओर से पगड़ी पहनाकर, शॉल ओढ़ाकर, ट्रॉफी और अभिनंदन पत्र देकर "राजमाता" उपाधि से सम्मानित किया गया। 


समूह की प्रभारी नोएडा की रेखा गुप्ता जी ने सभी आगन्तुकों को चंदन का टीका लगाकर और मिश्री देकर स्वागत किया। पूरे आयोजन के प्रमुख मोहाली पंजाब से आये श्री रंजन मगोत्रा जी ने सभी का स्वागत किया एवं सारे आयोजन की व्यवस्था देखी। समूह के विभिन्न प्रदेशों के सभी प्रभारियों (रंजन मगोत्रा, रेखा गुप्ता, नीरू नैय्यर (नीलोफ़र), कात्यायनी उपाध्याय 'कीर्ति',  स्वदेश मल्होत्रा 'रश्मि', मीनाक्षी सुकुमारन, निशा गुप्ता, सीमा गर्ग 'मंजरी', अनुपमा सक्सेना 'अनुपम', प्रतिभा गुप्ता, विनीता बाडमेरा, विजय कनौजिया) ने आयोजन के समस्त कार्यभार को संभालकर आयोजन को शीर्ष पर पहुंचा दिया। चार वर्ष पूर्व 29 जनवरी 2016 को व्हाट्सअप पर इस समूह की स्थापना की गई। तब से निरन्तर सृजन में सक्रिय इस समूह ने ये अपना पहला भव्य कार्यक्रम किया जिसकी सभी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।


समूह के रचनाकारों द्वारा सुंदर काव्य पाठ किया गया जिसकी रिकॉर्डिंग ट्रू मीडिया द्वारा की गई जो शीघ्र ही यू-ट्यूब पर आप सब सुन व देख सकेंगे। काव्य पाठ करने वाले सभी कवि/कवियित्रियों को "साहित्य मञ्जरी सम्मान" से नवाज़ा गया। अंत में समूह की संस्थापिका एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ नीरजा मेहता 'कमलिनी' ने सभी का आभार प्रकट किया और राष्ट्र गान के बाद कार्यक्रम की समाप्ति हुई।


पी एस ताल जाने दो ना* नैनों के इशारों में जो होता है हो जाने  दो ना,,

पी एस ताल


जाने दो ना*


नैनों के इशारों में जो होता है हो जाने
 दो ना,,
प्यार हुआ है तो प्यार,  हो जाने दो ना।



मोहब्बत की महफ़िल सजी हो तो ,
गुलाबी होठों की कलियों को प्रफुलित
 हो जाने दो ना।
दुःखों के पतझड़ अश्कों से बह रहे तो
बहते अश्कों से अलग हो जाने दो ना।


दो दिलों के हरे- भरे सबंधो में प्रीत की
 ओस बूंदे अंकुरित हो तो हो जाने दो ना।


यादों की खिड़कियों से ताजी- ताजी 
हवाओं के झकोरे आए तो आ जाने दो
 ना।



*✒पी एस ताल*


स्नेहलता नीर बसंत गीत ख़ुशियाँ ले आया अनंत है।

स्नेहलता नीर


बसंत गीत


ख़ुशियाँ ले आया अनंत है।
ऋतुओं में  प्यारा बसंत है । 
ऋतुओं  में  न्यारा बसंत है।
1
पतझर को आ  दूर  भगाया,
कोंपल जगी जिया मुस्काया।
धानी  धरा   बना   सरसाया,
मलय समीरण को महकाया।।
किया शिशिर काआज अंत है।
ऋतुओं  में   प्यारा  बसंत है।
ऋतुओं  में  न्यारा बसंत  है।
2
धरती  को  श्रृंगार  दिया   है,
नव   ऊर्जा  संचार  किया  है।
नाच  रहा  मन  मोर  पिया है,
हर्ष दिया सब  शोक लिया  है।।
नियति- नियंता दयावंत  है।
ऋतुओं   में   प्यारा   बसंत है।
ऋतुओं  में   न्यारा  बसंत  है।
3
फ़सले   लेतीं  हैं अँगड़ाई,
खेतों   में  सरसों   लहराई।
अमराई    भी    है    बौराई,
खिली धरा की यूँ  अँगनाई।।
लाली    छाई    दिग्दिगंत  हैं।
ऋतुओं   में   प्यारा   बसंत। है।
ऋतुओं  में  न्यारा  बसंत  है।
4
कली -कली  देखो  मुस्काई,
अलि डोलें तितली  इठलाई।
कोयल की  दे  कूक  सुनाई,
फगुआ  को  आवाज़  लगाई।।
सच  कुसुमाकर कलावंत  है।
ऋतुओं   में   प्यारा  बसंत है।
ऋतुओं  में  न्यारा  बसंत   है।
5
कृपा   शारदे   माँ  बरसाती,
हरे   मूढमति ज्ञान   लुटाती।
सृष्टि  सकल  जैसे मदमाती,
नेह  भरी  मधु पढ़ता  पाती।।
 माधव मन का बड़ा  संत है।
ऋतुओं   में   प्यारा  बसंत है।
ऋतुओं  में  न्यारा  बसंत  है।
6
अंतर्मन    में    प्रीत    जगाई,
विरहन सजन बिना अकुलाई।
सिसक -सिसक कर रात बिताई,
करो कृपा हे  कृष्ण  कन्हाई!
ला  दो  खोया कहाँ   कंत है।
ऋतुओं   में   प्यारा  बसंत है।
ऋतुओं  में  न्यारा  बसंत   है।


स्नेहलता नीर सजल ******** जल रहा है आज ये संसार कैसे

स्नेहलता नीर


सजल
********
जल रहा है आज ये संसार कैसे
ओस की बूँदें बनी अंगार कैसे
1
प्यार पर पहरा जमाने ने लगाया
फिर करूँ बोले प्रिये अभिसार कैसे
2
कर कड़ी मेहनत निवाले मैं जुटाता
फिर खरीदूँ मोतियों का हार कैसे
3
हर तरफ कलियुग पसारे पाँव बैठा
ईश लेंगे फिर भला अवतार कैसे
4
चीर हरता है मनुज अब नित धरा  के
फिर करे ऋतुराज भी शृंगार कैसे
5
दे रही है मौत रिश्तों को निरंतर
बन गयी है अब जिह्वा तलवार कैसे
6
नीर' मैं हूँ,आग तुम फिर भी अचानक
जुड़ गए मन के हमारे तार कैसे


---स्नेहलता'नीर'


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी" .तन्हाई में कारवां.

देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


.तन्हाई में कारवां.............


तन्हाई  में कारवां , बढ़  नहीं  पाता ।
प्यार भी  परवान , चढ़  नहीं  पाता।।


एक  दूसरे  से  सरोकार  न   हो  तो ;
सुन्दर   समाज   गढ़    नहीं   पाता।।


सूत   जितने  भी  सुंदर  क्यों  न  हो ;
कढ़ाई  न आए तो  कढ़ नहीं  पाता।।


अकेले  तो कोई  रास्ता  तय  कर ले ;
साथ न  हो तो देश  बढ़ नहीं  पाता।।


यादगार  चित्र सदा  रखें सहेज  कर;
कारीगर ठीक न  हो,मढ़ नहीं पाता।।


मन में  लगन न  हो यदि तो कोई भी;
सफलता की ऊंचाई,चढ़ नहीं पाता।।


हमारी तो कोशिश यही रहती"आनंद"
उसे जरूर पढ़ाए जो पढ़ नहीं पाता।।


------ देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


आशुकवि नीरज अवस्थी बसंत होली मुक्तक 9919256950 किसी को याद कर लेना, किसी को याद आ जाना।

आशुकवि नीरज अवस्थी बसंत होली मुक्तक


9919256950


किसी को याद कर लेना, किसी को याद आ जाना।


बड़ा रंगीन है मौसम हमारे पास आ जाना. 


सभी  बागों मे अमराई है, मौसम खुशनुमा यारों,


कसम तुमको है प्रीती तुम मेरे ख्वाबों में आ जाना. [1]    
                                        
दिल के बागों में प्रीति पुष्प खिला कर देखों ।
नेह  का रंग अमित प्रेम लुटा कर देखो..  ।    तेरी यादें  मुझे लिपटी है अमरबेलों सी,
होली आती है मुझे फ़ोन लगा के देखो.. (2)  
                    


डॉ0 नीलम अजमेर   यादों के झरोखे से

डॉ0 नीलम अजमेर


  यादों के झरोखे से
यादों के झरोखे से
कुछ पल खिसक गये
हवाओं में खनक थी
कुछ हर्फ बिदक गये


मैं तो अंजानी ना जानी
क्यूँ मुझसे वो रुठ गये
सारी- सारी रात मैं जागी
फिर भी हाथ से छूट गये
अक्षर-अक्षर बिखरे मोती-से
मुझसे मेरे अपने ही टूट गये


यादों के झरोखे से..........


बहुत सहेज रखे थे, दिल की तिजोरी में
अनजाने में कैसे ताले खुल गये
जरा-से पट खुले रह गये तनहाई में
अनजानी सदा सुनकर निकले
फिजाओं में बिखरा मह्क सारे घुल गये


यादों के झरोखे से......


   


डॉ0 नीलम अजमेर        *जाने दो न* ********************* जरा नजर भर हमको देखो

डॉ0 नीलम अजमेर


       *जाने दो न*
*********************
जरा नजर भर हमको देखो
दुनिया क्या कहेगी *जाने दो न*


इसकी उसकी किसकी बातें
क्यों लेकर बैठ गये
कुछ पल पास आकर बैठो अपनी भी दो बातें कर लो 


कोई भी सुन लेगा सुन लेने दो
क्या करेगा सुन कर बातें
*जाने दो न*


ये तो हैं जग वाले, कुछ तो बोलेंगे ही
कितने-कितने मुख हैं, कुछ तो मुख खोलेंगे ही
खुल जाएं तो खुल जाने दो


किस-किस का मुँह बंद करोगे
ज़हर भी गर उगलें तो उगलने दो
*जाने दो न* 


प्यार गर करते हो तो 
फिर किससे तुम डरते 
हो
प्यार करने वाले तो सरेआम मिला करते हैं


फूल प्यार के हर युग में ही खिलकर मुर्झाए हैं
मुर्झाने से पहले तो खिल जाने दो क्यों डरते हो
*जाने दो न*


    डा.नीलम


मधु शंखधर 'स्वतंत्र' प्रयागराज अवधी लोकगीत नवल गोरी ना मेलवा कै झूलवा झूलै चाहै गोरिया।

 


मधु शंखधर 'स्वतंत्र' प्रयागराज


अवधी लोकगीत नवल गोरी ना

मेलवा कै झूलवा झूलै चाहै गोरिया।
नवल गोरी ना.....
हो नवल गोरी ना.....।।2।।


सासु जब रोकै बोलै, कहाँ जाबू दुलहि।
बोल रही गोरिया, तू हऊ बड़ी बुढ़िया।
हमही करब ना....
रात दिन तोहार सेवावा..हमही करब ना...
हो नवल गोरी ना...........
मेलवा के झूलवा पै झूलै चाहै गोरिया...........।।


जेठनी बोलै बोलिया , काम कर गोतनी।
बोल रही गोरिया, तू हऊ बड़ी छलिया,
हमही करब ना....
सब काम तोहरे सथवा..हमही करब ना।
हो नवल गोरी ना.....................।
मेलवा के झूलवा पे झूलै चाहे गोरिया...................।।


ननदी कहै भाभी हो, हमहू चलब ना।
बोल रही गोरिया तू हऊ बड़ी चपला।
हमही करब ना........
तोहार ब्याह बड़े घर ना....हमही करब ना।
हो नवल गोरी ना........
मेलवा के झूलवा पै झूलै चाहे गोरिया...................।।


जात- जात मेलवा कहै लागे देवरा,हमहू साथे ना।
बोल रही गोरिया, तू हय सबसे लहुरा,
हमही भेजब ना..........
तोहै कॉलेज के डगरिया, हमही भेजब ना।।
हो नवल गोरी ना............
मेलवा के झूलवा पे झूलै चाहै गोरिया.....................।।


चल दिही गोरिया सजन साथे मेलवा,
हो झूल रही ना,
कह रही गोरिया, तू हय मोरे जियरा।
साथ झूलब ना.....हम साथ साथ झूलवा...सदैव झूलब ना।
हो नवल गोरी ना....।
मेलवा के झूलवा पे झूल रही झूलना ।
पिया संग ना....हो नवल गोरी ना।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
*04.02.20*


कवि✍️ डॉ.राम कुमार "निकुंज" नई दिल्ली विधाः दोहा छन्दः मात्रिक शीर्षकः🌹 कर स्वागत मधुमास🌹

कवि✍️ डॉ.राम कुमार "निकुंज"
नई दिल्ली



विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः🌹 कर स्वागत मधुमास🌹
कुसमित   मंजर  माधवी , मुदित  रसाल   सुहास ।  
कलसी  प्रिया  हिली  डुली , कूक  पिक  उल्लास।।१।।
नवयौवन   सुष्मित  प्रकृति,सजा धजा  ऋतुराज ।
खिली  कुमुद  पा  चन्द्रिका , चाँद  प्रीत   सरताज।।२।।  
मधुशाला    मधुपान  कर , मतवाला     अलिवृन्द।
खिली  कुसुम  सम्पुट कली , पा   यौवन अरविन्द।।३।।
नवकिसलय   अति   कोमला ,माधवी  लता लवंग।
बहे   मन्द   शीतल  समीर , प्रीत   मिलन   नवरंग।।४।।
नवप्रभात की  अरुणिमा  , कर  स्वागत  मधुमास।
दिव्य    मनोरम  चारुतम , नव जीवन  अभिलास।।५।।
खगमृगद्विज   कलरव मधुर , सिंहनाद  अभिराम।
लखि वसन्त गजगामिनी,मादक  रति    सुखधाम।।६।।
नवजीवन     उल्लास   बन , सरसों   पीत   बहार।
मंद   मंद     बहता    पवन , वासन्तिक    उपहार।।७।। 
नयना    निर्झरनी    बनी , श्रावण   प्रीत    वियोग। 
देख   चकोरी    मिलन  को , सिसक  रहा  संयोग।।८।।
वासन्तिक   इस  मधुरिमा , मीत   प्रीत     शृंगार। 
नव   ख्वाबों  से  फिर   सजे , टूटे  दिल के   तार।।९।।   
मन्द  मन्द   बहती    हवा , सहलाती    हर   घाव।
कोयल  बन मृदु   रागिनी , प्रीत  मिलन   सम्भाव।।१०।।
है   वसन्त  नव किरण  बन ,मन मादक  रति राग।
लता    लवंगी   प्रियतमा , मचल  सजन  अनुराग।।११।।
अति    विह्वल  मृदुभाषिणी , सज  सोलह शृङ्गार।
दूजे    सम    मुस्कान   से , साजन    दे    उपहार।।१२।।
मृगनयनी    सम   चंचला , कोमल   गात्र   सुवास।
आतुर   हृदया   मानिनी , प्रीत   मिलन अभिलास।।१३।।
मौसम     बना    लुभावना , मीठी    मीठी    शीत।
राहत    देती   रविकिरण ,   प्रेम   युगल    उद्गीत ।।१४।।
नवपादप   नवपल्लवित ,सुरभित   पुष्पित   फूल।
बन   विहार  नव प्रीत   का , वासन्ती     अनुकूल।।१५।।
मन   पावन   गंगा    समा , कामदेव   सम    रूप।
विनत शील गुण कर्म चित , वासन्तिक  सम  धूप।।१६।।
त्याग सहज समधुर प्रकृति, सत्य पूत   प्रिय भाष। 
आनंदक   ऋतुराज सम , पूर्ण  मनुज   अभिलाष।।१७।। 
चहक व्योम उड़ता विहग,उन्मुक्त चाह   सुखधाम।
सरसिज सम कुसुमित मनुज,आह्लादक अभिराम।।१८।।
नवजीवन   उल्लास   बन , सरसों    पीत    बहार।
मंद   मंद     बहता   पवन , वासन्तिक     उपहार।।१९।।
अभिनंदन   ऋतुराज  का ,  करे   चराचर   आज ।  
रखें    स्वच्छ    पर्यावरण ,  समरसता     आगाज़।। २०
रंजित   नित   चितवन निकुंज , इन्द्रधनुष  सतरंग।
तुषार   हार   मोती   समा , चहके    प्रीत     उमंग।।२१।।


कवि✍️ डॉ.राम कुमार "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली


संदीप कुमार विश्नोई दुतारांवाली अबोहर पंजाब चतुष्पदी पुष्प खिले नव कुंजन में मकरंद समीर निहार चली। 

 


संदीप कुमार विश्नोई
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
चतुष्पदी


पुष्प खिले नव कुंजन में मकरंद समीर निहार चली। 


मंजुल कोमल सी दुबली यह झूम रही कचनार कली।


कोकिल बोल रही वन में ऋतुराज पधार रहे धरती-


भृंग के दल घूम रहे अटवी छुप देख रही उनको तितली। 


स्वरचित
संदीप कुमार विश्नोई
दुतारांवाली अबोहर पंजाब


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली विविध हाइकु।

एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली


विविध हाइकु।


ये मुलाकात
करती शक  दूर
बनती बात


दिन ओ रात
अनवरत  जारी
यह सौगात


ये वफादार
चेहरे पे  चेहरा
हैं अदाकार


हम सफर
एक साथ मंजिल
एक डगर


ये जरूरत
हर नाच नचाती
सही गलत


राह  के रोडे
साहस   भरपूर
जीवन दौड़े


*रचयिता।।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली*
मोबाइल 9897071046
8218685464


जय जिनेन्द्र देव की क्या था भारत .. विधा : गीत कहाँ से हम चले थे,

जय जिनेन्द्र देव की


क्या था भारत ..
विधा : गीत


कहाँ से हम चले थे,
कहाँ तक आ पहुंचे।
सभी की मेहनत ने,
दिखाया था जोश अपना।
तभी तो हम भारत को,
इतना विकसित कर सके।
पिन से लेकर एरोप्लेन,
अब हम बनाने जो लगे।।


कड़े लगन और परिश्रम,
के द्वारा ये हुआ है।
तभी तो भारत को,
दुनियां में स्थापित कर सके।
हमें उन विध्दमानो और,
वैज्ञानिकों के योगदानों को।
कभी भी भूल नहीं सकते,
उन किये गये कामों को।।


पर अब हम फिर से,
वही पर पहुँच रहे है।
जहाँ इंसानों और जानवरों में,
कोई अंतर नहीं दिखता।
पढ़े लिखे और बुध्दिजीवी भी,
वही सब काम कर रहे।
जो उन से बेहतर अनपढ़,
हमारे देश में कर सकते।।


कहाँ से हम चले थे, 
कहाँ तक आ पहुंच है।
सारी मेहनत और लगन का, 
अब बुरा हाल हो गया।
यदि ऐसा ही चलता रहा,
हमारे अपने देश में।
तो हम इंसानियत की,
सारी मर्यादाओ भूल जाएंगे।
और फिर इंसान ही इंसान को, 
बड़े आसानी से खा जाएगा।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
04/02/2020


सुनीता असीम सूरत तेरी जो देखी तो चन्दा मचल गया।

सुनीता असीम


सूरत तेरी जो देखी तो चन्दा मचल गया।
देखा जो ताब हुस्न का सूरज पिघल गया।
***
जिस प्यार का ज़बाब मुझे मिल नहीं सका ।
परिणाम जान प्यार का मन ही बदल गया।
***
कैसे कहूं मुझे है मुहब्बत तो आपसे।
बस आपके मिजाज पे ये दिल फिसल गया।
***
इस इश्क की किताब का मजमून मौन था।
पर बोलते ही वक्त भी कितना निकल गया।
***
मजनूं मरा व लैला मरी प्रेम के लिए।
मरने के भी ख्याल से दिल में दहल गया।
***
सुनीता असीम
४/२/२०२०


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।बरेली सबको मुंह दिखाना प्रभु के*

एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।बरेली सबको मुंह दिखाना प्रभु के*
*दरबार में।।।।।।।।।।।।।।।।*
*मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*


प्रेम की  दूकान   चलाते हैं,
नफरत के बाज़ार में।


लाभ  कम  शान्ति  ज्यादा,
है  इस  कारोबार  में।।


जितनी भी  जिन्दगी    बस ,
कट  रही  है सुकून  से।


हो न    बुरा   किसी  का भी,
जाना प्रभु के दरबार में।।
*रचयिता।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046  ।।।
8218685464  ।।।।।।।।


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली* दिया एक रोशनी का जला कर तो*

एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*


दिया एक रोशनी का जला कर तो*
*देखो।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


बनो  तुम  उजाला  अंधेरों  को
तुम जरा    चुरा  कर देखो।


जरा   दिल  साफ  कर  दीवार
नफरत की गिरा कर देखो।।


लगा कर   तो  देखो   तुम  भी
कोई   एक  प्रेम  का पौधा।


बहुत सुकून मिलेगा दिया एक
प्रेम का जला कर तो देखो।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
*मोबाइल*         9897071046
                    8218685464


राजेंद्र रायपुरी गणपति वंदना  जय  गणेश, जय  गणपति  देवा।

राजेंद्र रायपुरी


गणपति वंदना 


जय  गणेश, जय  गणपति  देवा।
भक्त   करें   सब   तुम्हरी   सेवा।


जय  गणेश, गज-बदन, विनायक।
जय गणपति,जय,जय गणनायक।


रिद्धि - सिद्धि   के  तुम  हो  दाता।
जो   ध्यावे,  कभी  दुख  न  पाता।


हे   गिरिजा   सुत,   हे    लम्बोदर।
करहु  कृपा  प्रभु  तुम हम सब पर।


भक्त   खड़े   सब    द्वार   तुम्हारे।
हाथ   जोड़ि   विनवत   हैं    सारे।


पड़े    गजानन,     शरण     तुम्हारे।
पुरवहु     मनसा     सभी     हमारे।


                   (राजेंद्र रायपुरी)


सत्यप्रकाश पाण्डेय अक्षत है न सुमन है न पूजा की थाली हैफ प

सत्यप्रकाश पाण्डेय


अक्षत है न सुमन है न पूजा की थाली है
कुमकुम है न केशर ये हाथ भी खाली हैं


नहीं दीपक न स्नेह नहीं कोई मंत्र मैं जानूँ
न अर्चन विधि कोई तुम्हें कैसे मैं पहचानूँ


करूँ अभिषेक मैं कैसे तुम्हें कैसे मनाऊँ
न ज्ञान न बुद्धि कैसे गुण तुम्हारे मैं गाऊं


है भावनाओं का जल उससे स्नान कराऊँ
करूँ श्रद्धा सुमन अर्पित और गान मैं गाऊं


तुम ठाकुर हो मेरे ठकुरानी वृजकिशोरी है
नहीं कोई मेरा श्री कृष्ण और राधे मोरी हैं।


युगलछवि को नमन💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


निशा"अतुल्य" देहरादून जाने दो ना

निशा"अतुल्य"
देहरादून


जाने दो ना
दिनाँक       4 /2 /2020


बीती कैसे पिछली रातें, जाने दो ना
आओ बैठें करेंगे बाते,जाने दो ना
कुछ मैं बोलूं कुछ तुम कहना
बीत जाएंगी गम की रातें,जाने दो ना।


साथ चले तो सरल हो राहें
हाथ पकड़ लो, जाने दो ना ।


गम तो हर सू फैला ही है 
बात करें क्या उसकी बोलो,जाने दो ना।


मिलें हमें जो दो पल फ़ुर्सत के
क्यों खो दें हम उनको बोलो,जाने दो ना ।


हम तुम दोनों आज मिलें है सदियां बीती
करेंगे मिलकर ढ़ेर सी बातें,जाने दो ना


बीती बातें आज बिसारे गले मिलें हम
ना छोड़े हम साथ ये अपना जाने दो ना।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


स्नेहलता'नीर गीत बेबस व्याकुल द्वार खड़ी मैं

स्नेहलता'नीर


गीत


 


बेबस व्याकुल द्वार खड़ी मैं जाने कब से राह निहारूँ।
कब आओगे प्रियतम प्यारे,निशि-वासर नित नाम पुकारूँ।
1
प्रीति- रीति इस जग की झूठी,देख -देख कर कल तक  रोई।
नैनों में छवि बसी तुम्हारी,नहीं सुहाता है अब कोई।


मोहनि- मूरत श्यामल- सूरत,निरख कोटि उर तुम पर वारूँ।
कब आओगे प्रियतम प्यारे,निशि-वासर नित नाम पुकारूँ।
2
दर्शन के अभिलाषी नैना,इन नैनन की प्यास बुझाओ।
हाथ थाम कर मेरा कान्हा,भव सागर से पार लगाओ।


निरख निरख कर दर्पण मोहन,खुद को मैं दिन -रात सँवारूँ।
कब आओगे प्रियतम प्यारे,निशि-वासर नित नाम पुकारूँ।
3
चंपा की कलियाँ चुन- चुन कर,रोज जतन कर सेज सजाती।
हलवा पूरी खीर बनाती,माखन रखती, दही जमाती।


आओ गिरिधर भोग लगाने,अश्रु धार से चरण पखारुँ।
कब आओगे प्रियतम प्यारे,निशि-वासर नित नाम पुकारूँ।
4
रँगी तुम्हारे ही रँग माधव,लोग कहें पागल दीवानी।
हँसती है मुझ पर ये दुनिया,तड़प नहीं अन्तस् की जानी।


पथराये हैं नयन 'नीर' के,बोलो धीरज कितना धारूँ।
कब आओगे प्रियतम प्यारे,निशि-वासर नित नाम पुकारूँ।


'


सुनीता असीम तेरे मेरे प्यार का कैसा फ़साना हो गया।

सुनीता असीम


तेरे मेरे प्यार का कैसा फ़साना हो गया।
रोज मिलने के लिए जाना बहाना हो गया।
***
कह रहा है आदमी खुद को मगर बनता नहीं।
कर जमाने की बुराई समझा सयाना हो गया।
***
वक्त कैसा आ गया मां-बाप की इज्जत नहीं।
रोज उनको बस रुला नजरें चुराना हो गया।
***
वो कभी रोता कभी हसता दिखाने के लिए।
किस तरह का आज ये तो मुस्कराना हो गया।
***
इस तरह का प्यार करते लोग सारे आजकल।
वस्ल की इच्छा जताना दिल लगाना हो गया।
***
सुनीता असीम
३/२/२०२०


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