सुनीता असीम

दिल में तुमने रखा था राज मेरा।
और पूरा उठाया ....‌..नाज मेरा।
***
रात दिन चैन भी नहीं..... आए।
क्या कहीं भी नहीं इलाज मेरा।
***
काम में सब लगे रहे .....अपने।
किसने पूछा कभी मिजाज मेरा।
***
एक पक्षी जो सामने आया।
डगमगाने लगा जहाज मेरा।
***
चार उनसे हुईं निगाहें जो।
धड़कनों का बजेगा साज मेरा।
***
जब कभी एक हो गए हम तो।
क्या बिगाड़ेगा ये समाज मेरा।
***
सुनीता असीम
५/२/२०२०


सुनील कुमार गुप्ता  सहारनपुर-

 


कविता:-
 "जीत"
"भटकता रहा मन बावरा साथी,
समझा न एक बात-
मन के हारे हार है-मन के जीते जीत।
मन से न हारना कभी साथी,
जीवन में तुम्हे-
हार मिले या जीत।
हार में होना न निराश साथी,
जीत में ज्य़ादा -
मनाना न जश्न मीत।
हँसते ही रहेगे लोग तो साथी,
जीवन में चाहे-
हार हो या जीत।
हार कर भी हारे न जो साथी,
चलता रहे लक्ष्य की ओर-
मिलती मंज़िल टूटे न आशा की डोर।
भटकता रहा मन बावरा साथी,
समझा न एक बात-
मन के हारे हार है-मन के जीते जीत।।
ःःःःःःःःःःःःःःःःः             सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          05-02-2020


लता प्रासर

सुप्रभात


कचरा भरा दिमाग में मन  कस स्वच्छ हो भाई
अपने आगे सब फीका है बन बैठा कसाई
स्वच्छ जगत हो स्वच्छ धरा हो सोचो सोचो
अपनी बात किए जाते हैं जनता जस लुगाई
लुट रही बिटिया लुटी व्यवस्था लूटा जन गण
भूखे पेट सोया है मुन्ना मुन्नी की छूटी पढ़ाई
टकटकी लगाए आंखें हैं कहां गया बच्चे की कमाई!
*लता प्रासर*


नूतन लाल साहू

भजन
बात समझ में, आईं अब हमारी
झूठी है सारी, दुनिया दारी
और न लो, परीक्षा हमारी
आईं शरण में प्रभु, हम तुम्हारी
मै तेरा था, भ्रम अब है टूटा
समय ने किया सब,ये रिश्ता झूठा
मोह माया में, मति गई मारी
आईं शरण में प्रभु हम तुम्हारी
बात समझ में आईं अब हमारी
झूठी है सारी दुनिया दारी
जिनके भरोसा करके, समझा था अपना
टूटा भरम सारा,मिथ्या था सब कुछ
मतलब की थी,सबकी यारी
आईं शरण में प्रभु हम तुम्हारी
बात समझ में आईं अब हमारी
झूठी है सारी दुनिया दारी
चंचल मन ने, बहुत नचाया
धन ही कमाने का,लक्ष्य बनाया
चैन गया उड़ी और नींद भी भागी
आई शरण में,प्रभु हम तुम्हारी
अंतिम आशा,भरोसा तिहारा
थक गया हूं, चहु ओर से हारा
ओम ओम ओम, हरि ओम ओम ओम
दृष्टि दया की, करो मंगल कारी
आई शरण में प्रभु हम तुम्हारी
बात समझ में,आई अब हमारी
झूठी है सारी, दुनिया दारी
और न लो अब,परीक्षा हमारी
आये शरण हम,प्रभु हम तुम्हारी
बात समझ में आई अब हमारी
झूठी है सारी दुनिया दारी
अपनी तो जिंदगी की
अजीब कहानी है
जिस चीज को चाहा
वो ही बेगानी है
हंसते भी है तो
दुनिया को हंसाने के लिए
वरना दुनिया डूब जाए
इन आंखों में,इतना पानी है
बात समझ में आई अब हमारी
झूठी है सारी दुनिया दारी
नूतन लाल साहू


श्याम कुँवर भारती [राजभर]

भोजपुरी होली गीत 3


-मस्त फागुन |
आया है मस्त फागुन 
उड़ती है तेरी चुनरिया |
सर सर बहती है मह मह महकति है हवा |
तुझे रंग लगाऊँगा मै हर हाल मे |
होली खूब खेलूँगा आज मै |
चलो मनाए फागुन |
आया है मस्त फागुन 
उड़ती है तेरी चुनरिया |
सर सर बहती है मह मह महकति है हवा |
बागो बहारों कलियाँ खिलने लगी |
फागुन महीने गोरी मचलने लगी |
गोरी तू अन्जान मत बन |
आया है मस्त फागुन 
उड़ती है तेरी चुनरिया |
सर सर बहती है मह मह महकति है हवा |
तेरी अंगड़ाई मन बहकने लगा है |
खेलूँगा होली दिल मचनले लगा है |
संतोष भारती है तेरा सजन |
आया है मस्त फागुन 
उड़ती है तेरी चुनरिया |
सर सर बहती है मह मह महकति है हवा | 


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


देवानंद साहा " आनंद अमरपुरी "

 जीवन-सत्य


फूल   सभी   चुनते  हैं , पर   काँटे   छोड़   देते हैं;
प्यार   सभी   करते  हैं , पर   वादे   तोड़  देते   हैं।
सिर्फ   मैं   ही   नहीं ,  सारा   जमाना   कहता   है;
सुख में  देते  हैं  साथ  सभी, दुःख में छोड़ देते हैं।।


मेरे ख्याल में मानव को ,सिर्फ इंसान रहना चाहिए;
न  तो भगवान  और  न  ही  हैवान  बनना  चाहिए।
इंसान   की  मर्यादा   इंसान   ही  बने  रहने  में  है-
व्यर्थ महत्वाकांक्षी चकाचौंध में,न फसना चाहिए।।


इतिहास  साक्षी है,जब  महत्वाकांक्षाओं ने  घेरा है;
मनुष्य  ने  हमेशा  ही , परिवर्तन का माला फेरा है।
पर   परिवर्तन   के   पर्दे   के  पीछे से , बराबर ही-
मानवता   और    इंसानियत    को   ,  छेड़ा   है ।।


मनुष्य   अपने   आपको  , पहचानना   सिख   ले;
अपने  हाथों से अपनी तकदीर  , बनाना सीख ले।
अगर  इन  नकाबपोश  हमदर्दों  से , बचना है तो-
स्वयं  को  शब्दजालों   से ,  बचाना   सिख   ले।।


फिर   भी   मानव-प्रकृति  ,  नियति  का  दास है;
परिस्थितियों  से भागना , जीवन  का परिहास है।
जिन्दगी   को   सभ्यता   से  ,  जिया   जाय  तो-
जीवन   का    प्रत्येक    महीना  ,  मधुमास   है।।


------------------ देवानंद साहा " आनंद अमरपुरी "


डा.नीलम अजमेर

 


जीत की चाह में वो हद से गुज़र गए
लाशों के ढेर पर ढेर लगाते चले गए


शत्रुता की हर हद पार करते चले गए
साम-दाम-दण्ड-भेद हर पैतरे अपनाते चले गए


हम तो शांति के लिए क़ानून
बनवाते चले गए
वो क़ानून के परखच्चे उड़ाते चले गए


जो शांतिदूत बनते हैं सफ़ेद पोशाक पहन कर
वाणी से वही आग भड़काने चले गए


अपनेपन से गले लगाते हैं महफ़िल में 
एकांत में मगर पीठ में खंज़र घुपाते चले गए।


      डा.नीलम


स्नेहलता 'नीर'

कुण्डलिया छंद


नारी को हक कब दिया,जिसकी वो हकदार


फिर भी तो हर रूप में,लुटा रही नित प्यार।
लुटा रही नित प्यार,काम घर का सब करती।
कठपुतली -सी नाच,नाच कर कभी न थकती।
भरा वक्ष में दूध,जिंदगी फिर भी खारी।
बना पुरुष हैवान,बड़ी बेबस है नारी।।


कुण्डलिया नंबर- 2
-------------------------


नारी को कब है मिला,समता का अधिकार।
कभी कहा अबला उसे,कभी दिया दुत्कार।।
कभी दिया दुत्कार,न उसको गले लगाया।
कठपुतली -सा नित्य,गया है नाच नचाया।
जाग गयी है आज,बनी तलवार दुधारी।
अरे पुरुष नादान,नहीं नर से कम नारी।।



कुण्डलिया संख्या -3
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नारी को देवी कहा,दिया नहीं सम्मान।
क्यों समाज रक्खा बना,अब तक पुरुष प्रधान।।
अब तक पुरुष प्रधान,रहा नारी क्यों अबला।
करता अत्याचार ,नहीं अब तक भी बदला।
नाच -नाच कर नाच,बनी वनिता चिंगारी।
भारी पड़ती आज,सभी पुरुषों पर नारी।।



कुण्डलिया संख्या-4
--------------------------
नारी का करता मुझे,सच मे विचलित चित्र।
क्यों कठपुतली है बनी,रमणी प्राण -पवित्र।।
रमणी प्राण -पवित्र,बनी  क्यों नर की दासी।
हाड़ -माँस की देह,हृदय है मथुरा काशी।
छलकें नयना 'नीर',बड़ी दिखती दुखियारी।।
मौका दो दिल खोल,गगन चूमेगी नारी।।


---स्नेहलता 'नीर'


रहें एक हम सब वतन🇮🇳 मूरख   इस   संसार  में , निर्विवेक  हम  लोग।


विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः ✊रहें एक हम सब वतन🇮🇳
मूरख   इस   संसार  में , निर्विवेक  हम  लोग।
बहकें   कौमी   भावना , राष्ट्र   द्रोह     दुर्योग।।१।।
खाने  के  लाले  पड़े , बने  क्रान्ति  का  लाल।
भड़काते  निज  स्वार्थ  में , नेता चलते  चाल।।२।।
बने  लोग  कुछ  दहशती , बेचे   लाज ज़मीर।
जला रहे  जनता  वतन, तरुणायी    तकदीर।।३। 
आज़ादी के नाम पर , साध  रहे  निज स्वार्थ।
मानवता    सम्वेदना , भूले   सब     परमार्थ।।४।।
मातृभूमि  सबसे  अहम् , रक्षण   है  कर्तव्य।
सौ जीवन अर्पण उसे , स्वाभिमान ध्यातव्य।।५।।
मिले साथ सरकार हम , करें  राष्ट्र   मजबूत।
करें नाश दुश्मन वतन , जो  भी  देश  कपूत।।६।
मँहगाई   है  आसमां  , जनता   है    मज़बूर।
सजीं   चुनावी     दंगलें , राजनीति    दस्तूर।।७।।
गाली   दंगा   नफ़रतें , मेला   सजी   चुनाव।
जनमत  है   क्रेता  यहाँ , दे  नेता  हर  भाव।।८।
लोकतंत्र  रक्षक   यहाँ , चले  दाँव पर  दाँव।
लोक   लुभावन   तोहफे, बाँटे   पूर्व  चुनाव।।९।।
मिली जीत  चुनाव रण,  सत्ता  पा  सरताज।
भूलें    वादाएँ   सभी , जनता  की  आवाज।।१०।।
सत्ता पा  ऐय्याशियाँ ,  संचय  धन   भण्डार।
लूटे जनता  कोष को , दर्शन  हो       दुस्वार।।११।।
हो उदार इन्सानियत , नीति  प्रगति  हो ध्येय।
शिक्षा समरसता प्रकृति, नेता जनमन    गेय।।१२।।
धीर  वीर    गंभीर  हो , राष्ट्रभक्ति  अभिप्रेत।
लोकमान्य व्यक्तित्व नित ,  निर्णेता  उपवेत।।१३।।
सच्चाई  मन  में  बसे, कर्म  शील   आधार ।
तन मन धन अर्पित वतन, हों   नेता   तैयार।।१४।। 
देश    विरोधी   ताकतें , फैले    देश विदेश।
एक रहें हम सब वतन ,कवि निकुंज संदेश।।१५।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


निधि मद्धेशिया कानपुर

 


कभी मन की सुन ली
कभी मन से सुन ली
सृजन के भाव सभी
कभी भावों की सुन ली।


निधि मद्धेशिया
कानपुर


नेता जी मच पर बैठे नेता जी

नेता जी


मच पर बैठे नेता जी
सुनकर मेरी कविता
खूब मुस्कुरायें, 
खिलखिलायें.
तालियाँ बजायें,
फिर बुलाकर मुझे मंच पर 
थपथपायें मेरी पीठ,
थमाकर सौ रुपये का नोट 
बढ़ाये मेरा हौसला।
फिर धीरे से बोले :
"ये लो मेरा कार्ड
पड़े जब जरुरत
नि:संकोच करना मुझे याद
मैं जरुर आउँगा आपके काम।"


मैं हो गया गदगद
सुनकर नेताजी की बात
सोचा -
जरुर करुँगा 
नेताजी से मुलाकात।


एक दिन 
समय निकालकर
मैं नेताजी के घर आया, 
उन्हें एक अर्जी-पत्र थमाया, 
पत्र विना पढ़े 
नेताजी ने किया सवाल- 
"आपके घर कितने सदस्य हैं जनाब? 
इलेक्शन में
हमें कितने वोट दिलवा सकते हैं आप? 
अपने परिवार से
हित, नात, परिचित, रिश्तेदार से।"
 मैंने कहा रखके सीने पे हाथ -
 "सिर्फ एक ..."


नेताजी अर्जी-पत्र दिए फेक ।


-दीपक शर्मा 
जौनपुर उ. प्र.


निशा"अतुल्य"

विधा     कविता
5/ 2/ 2020
     कविता 
कविता मेरे मन भाव की
उपवन में महक फूलों की 
स्वछंद उड़े तितली बनके
गुंजार है उसमें भँवरें की।


कभी विरह की बात उठे
कभी मिलन की रात लिखूँ
कभी हँसना हंसाना सँग चले
कभी रूठों की मनुहार लिखूँ ।


भाव जो मन में उठते हैं 
प्रबल वेग से बहते हैं 
मैं बांध न इनको साथ रखूं
ये मसी कागज पर बहते हैं।


न छंद लिखूं न गजल कहूँ
ये अपने मे मस्त ही रहते हैं 
भावों को पिरोकर शब्दों को
ये सँग जीवन के बहते हैं ।


अब साँस साँस में बसती है 
जीवन की धड़कन बन बैठी है 
कविता मेरी कविता बन कर
ह्रदय पटल भावों से भर बैठी है ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तुम्ही हमारे हमदम तुम्ही से प्यार करते है
तुम्ही हमसफ़र हो हमारे इजहार करते है


जीना मरना रहेगा मेरा साथ तुम्हारे ही प्रिय
रहेंगे सदा साथ ही तेरे ये इकरार करते है


तरसती है आँखें जब तक नहीं देख पाते
हर पल तुम्हारे दीदार का इंतजार करते हैं


कैसे कहें अपने दिल की लगी किसी से हम
न कोई तुम्हारे सिवाय जिससे प्यार करते है


जानेमन जानेजिगर दिलजुबा हो तुम हमारी
तुम्हीं हो जिसपर सारा जहां निसार करते है।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


मेरी धड़कन हो...* विधा : कविता

*मेरी धड़कन हो...*
विधा : कविता


धड़कता दिल अब मेरा,
तुम्हारे ही लिए।
मेरी दिल की धड़कन,
 बन जो गई।
मुझे पता ही नही,
ये हुआ कैसे।
अब भूलना भी चाहूं,
पर भूलता ही नहीं।।


निकलती है दिल से वो,
हर सांस तुम हो। 
जो बोले बिना ही,
व्या कर देती।
चोट लगती है तुमको,
दर्द मुझे होता है।
क्या हाल हो गया, 
मेरी जिंदगी का।।


तुम्हें क्या होता है,
मुझे नहीं पता।
दीवानापन मुझ में शमा,
सा गया है।
तड़प मिलने की है तो,
तड़प में भी रहा।
मिलन की शुभ घड़ी,
दोनों देख रहे।।
दोनों देख रहे ...।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
05/02/2020


दिल्ली चुनाव  - लेकर निकल पड़े सभी, तीर और  तलवार।

😄😄 -  दिल्ली चुनाव  - 😄😄


लेकर निकल पड़े सभी, तीर और  तलवार।
इक-दूजे  पर  कर  रहे, जोर-जोर  से वार।


दिल्ली  का दिल जीतने, लगा रहे सब जोर।
ख़ुद को  सब  साधू  कहें, और गैर को चोर।


मुद्दे की  न  बात  कभी, कीचड़ रहे उछाल।
एक  नहीं  सबका  यही, देख  रहे  हैं  हाल।


दिल्ली दिन-दिन हो रही,कहते हैं  बदहाल।
फ़िक़्र नहीं उसकी उन्हें, बजा रहे बस गाल।


सोच-समझ कर आमजन, करें वहाँ मतदान।
दिल्ली किसके दिल बसी,करें प्रथम पहचान।


                  ।।राजेंद्र रायपुरी।।


भावनाओं का खेल है भाव से ही संसार है

भावनाओं का खेल है
भाव से ही संसार है
भावनाएं यदि शुद्ध हों 
तो भव से बेड़ापार है


भावनाएं हमारी नाथ
आपको समर्पित हैं
भक्त वत्सल भगवान
जीवन भी अर्पित है


भक्तों के भाव समझो
भवसागर उद्धारक
भावनाएं आहत न हों
जगकर्ता जग कारक


भोर की किरण हो तुम
मेरी भंवर में है नैया
भक्तों का त्रास हरो तुम
भक्त नाव के खिवैया।


भक्तवत्सल श्री श्याम के चरणों में नमन🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐💐


सत्यप्रकाश पाण्डेय


काह करौं श्याम* विरहागन ताप पजारै हिया,

*काह करौं श्याम*


विरहागन ताप पजारै हिया,
टप टप नैना बरसैं आली।
बेसुध सी हाल बेहाल भई,
कुम्हलानी रंगत री लाली।


सखी सांस उसांस पैंजनी चुप,
गैंयां बिनु श्याम  उदास रहाय।
बृज गैल सून  दोहनि रूसी,
मंथर कालिंदी सखी बहाय।।
बृज गैल जमुना तट मधुवन मँह ,
भरमावत रसिया वनमाली।।
*कुम्हलानी रंगत री.......*


टोना सो करा नटखट कान्हाँ,
सखी भूलि  गई सिंगार बरै।
बेनु बजाय रिझाय लई,
छलिया बृजराज री! चित्त हरै।।
कारो कनुआ मनभाय गयो,
मोय नारी लगैं अंखियाँ काली।।
*कुम्हलानी रंगत री.......*


वादा झूठे सब सपने टूटे,
काय छांड़ि चले मथुरा जू कहो ।
मृगतृष्ना सी हिय  चाह विकल,
निशि वासर  विरहा ताप सहौ।।
श्मसान भयो वपु श्याम बिना,
बेसुध सी भई बृज की लाली।।
*कुम्हलानी रंगत री.......*



*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


गीतिका दिल्ली धरना से अकुलायी दिल्ली ।

प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद


गीतिका
दिल्ली


धरना से अकुलायी दिल्ली ।
किसने ये सुलगायी दिल्ली।।


टुकड़े पत्थर गरल वाणियाँ,
राह पतन अपनायी दिल्ली ।।


कहीं ही ईंट कहीं कि रोड़ा,
आकर भक्त पिटाई दिल्ली।।


खुद न समझे न समझा पाए,
आ बेसुरी बीन बजायी दिल्ली।।


हम करें भरोसा कैसे उन पर,
जिनके हाथ सतायी दिल्ली ।।


इंकलाब से देश निखरता,
पर नारों ही परजायी दिल्ली।।


बदनियती की ढहेगी लंका,
सिया सी दाना पाई दिल्ली।।


लिख कर हाल-ए-दिल मुझसे..दिखाया ना गया

लिख कर हाल-ए-दिल मुझसे..दिखाया ना गया
इस चश्मे-तर आंखों को मुझसे छिपाया ना गया


सितम क्या हुआ जख्मी दिल के साथ मेरे मौला
निशां बदन पर चोट का मुझसे मिटाया ना गया


वक्त ने बहुत तालीम दे दी जाते जाते फकीर को
इश्क में हद से गुजरना मुझसे सिखाया ना गया


रात कोरी मेरे आंगन से यूँ  चुपचाप गुजरने लगी
बाहों में भर के चाँद रात मुझसे बिताया ना गया 


फेर कर रूख बैठी है हाँथ की लकीरें आज भी
जोड़ दे जो हाँथ को वो साथ मिलाया ना गया


खाक जो परी है मेरे जलते हुए से पांव पर तो
ज़हर  चाहत का वापस उसे खिलाया ना गया 



 Priya singh


मत्त सवैया तन मन सब पावन तुलसी सम,

मत्त सवैया


तन मन सब पावन तुलसी सम, अधरन से रस धार बहाती।
इस हिय को प्रिय लगती हैं वो, नयनन को भी बहुत सुहाती।
वो  प्यार  पगी बातें करके, इस  मरु  उर  पर जल बरसाती।
हिरनी सम बल ख़ाकर चलती, मुँह ढककर के मृदु मुस्काती।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


बहुत कुछ सिखाती    बताती  पढ़ने   की  हर  इक  किताब।

* *विषय।।।।।बच्चों को सीख।।।।।।।।।।।।*
*पुस्तक।।।।।।।।किताब।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।।*


बहुत कुछ सिखाती    बताती 
पढ़ने   की  हर  इक  किताब।


दिखाती जगाती   हम  सबमें
संस्कार    सपने      जज्बात।।


पुस्तक   होती    सच्ची   मित्र 
विकसित   करती   चरित्र  है।


अच्छे  पाठकों     ने    पायें हैं
जीवन   में  असंख्य   खिताब।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।।।।


बदले नहीं व्यवहार अपना

*बदले नहीं व्यवहार अपना*
*।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


किताब हो जाये पुरानी पर
अल्फ़ाज़  नहीं  बदलते  हैं।


चाहते जो  दिल से सदा पर
लिहाज़  नहीं    बदलते  हैं।।


बदलते  नहीं   वह देख कर
कभी    फितरत ज़माने की।


वक्त  की   तेज    रफ़्तार  में 
अपनाअंदाज़ नहीं बदलते हैं।।
*रचयिता।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।बरेली।।।।।।। ।।*
*मोब   9897071046  ।।।*
*8218685464  ।।।।।।।।।*


आया बसंत सज धज कर के

*विविध मुक्तक।।।।।।।।।।।।*


आया बसंत
सज धज कर के
ठंड का अंत


चली है हवा
चहुं ओर महक
रही चहक


कैसा संसार
पुण्य का फल यहाँ
होता बेकार


प्यार हो कैसा
साबित नहीं होता
ये बिन पैसा


ये तक़दीर
बदल सकती है
यह लकीर


प्रेम  व  स्नेह
अनमोल तोहफा
आत्मीय नेह


खून रवानी
पहचान जोश की
यह जवानी


*रचयिता।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।।।बरेली।।*
मो 9897071046।।।
8218685464।।।।।।


सुरभि सुहानी"* "मधुमास छाया मौसम में,

नाम:- सुनील कुमार गुप्ता
S/0श्री बी.आर.गुप्ता
3/1355-सी ,न्यू भगत सिंह कालोनी,बाजोरिया मार्ग, सहारनपुर-247001(उ.प्र.)



कविता:-


     *"सुरभि सुहानी"*
"मधुमास छाया मौसम में,
महकने लगा धरती अंबर-
सुरभि सहानी बहने लगी।
भौरो की गुंजन भी यहाँ,
अपनी अलग ही-
कहानी कहने लगी।
रंग-बिरंगी तितलियों से,
जीवन में पग पग-खुशियाँ छाने लगी।
मदहोश करता ये मौसम,
प्रेयसी मिल -
प्रेम गीत गुनगुनाने लगी।
मधुमास छाया मौसम मे,
महकने लगी धरती अंबर-
सुरभि सुहानी बहने लगी।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः          04-02-2020


एस के कपूर श्री हंस स्टेडियम रोड बरेली(ऊ प) कविता विविध मुक्तक माला

एस के कपूर श्री हंस
स्टेडियम रोड
बरेली(ऊ प)
कविता
विविध मुक्तक माला।।।।।।।
1,,,,,,,
।।।आंतरिक शक्ति।।।।।।।। 
।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।
मत  आंकों     किसी  को    कम ,
कि सबमें कुछ बात होती है।


भीतर छिपी प्रतिभा कीअनमोल,
  सी    सौगात     होती   है।।


जरुरत है तो  बस उसे पहचानने,
और फिर निखारने  की।


तराशने  के बाद  ही  तो  हीरे से,
मुलाकात    होती     है।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस
बरेली।।।।।।।।।।। ।।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।8218685464।।।।।।।।
2,,,,,,
।। सफलता का सम्मान।।।।।।।।।।।।।।।।
।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।


नसीबों  का   पिटारा   यूँ    ही
कभी खुलता नहीं है।


सफलता का सम्मान जीवन में
 यूँ ही घुलता नहीं है।।


बस कर्म  ही लिखता है  हाथ
की   लकीरें  हमारी ।


ऊँचा  हुऐ बिना  आसमाँ  भी
कभी झुकता नहीं है।।


रचयिता।।।।।एस के कपूर
श्री हंस।।।।।।बरेली।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।
3,,,,,
सत्य कभी मरता नहीं है।।।।
।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।


सच  कभी    मरता    नहीं
हमेशा  महफूज़   होता है।


ढेर में दब कर  भी जैसे ये 
चिंगारी और फूस होता है।।


लाख छुपा ले कोई उसको
काल  कोठरी   के  भीतर।


सात  परदों के पीछे से भी
जिंदा   महसूस   होता  है।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री
हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।
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सत्य कभी मरता नहीं है।।।।
।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।


सच  कभी    मरता    नहीं
हमेशा  महफूज़   होता है।


ढेर में दब कर  भी जैसे ये 
चिंगारी और फूस होता है।।


लाख छुपा ले कोई उसको
काल  कोठरी   के  भीतर।


सात  परदों के पीछे से भी
जिंदा   महसूस   होता  है।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री
हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


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