आफत
चुनाव चल दिस
कोरोना आगे
अधिकारी कर्मचारी आऊ
जनता के मन में भय समागे
वाह रे विज्ञान के चमत्कार
कईसन हे तोर मायाजाल
सोचत रेहेन,सुघघर दिन आ ही
सब झन के मन ल भा ही
सरग ले सूघघर,धरती बन ही
पर होवत हे,नवा नवा
आफत के बरसात
खुशी आऊ आंनद होगे सपना
प्रकृति नइय हो सकय,अपना
मानव चाहे, चांद आऊ मंगल में जाय
मौसम आऊ आफत के निठुरई म
कोनो नई,बच पाय
चुनाव चल दिस
कोरोना आगे
पता नही,आगे का का आ ही
समे के खेल आय
सहिले, विपत पीरा
हिम्मत झन हार
भरोसा ल राख
अंधियार जर जा ही
एकदिन अंजोर बगर जा ही
करम आऊ भक्ति ह
जिनगी के असली हे आधार
नाम कमा ले भाग बना ले
किस्मत के लकीर ल
अपन सत्कर्म से सजा लेे
आफत से बचे के आऊ
कोनो नइये दुसर उपाय
चुनाव चल दिस
कोरोना आगे
अधिकारी कर्मचारी आऊ
जनता के मन में भय समागे
नूतन लाल साहू
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
नूतन लाल साहू
रोहित मित्तल ❝रोहित❞ कृष्ण वन्दना
🌻 ❛❝जय श्री राधे कृष्ण ❞❜🌻
💦Զเधे👣Զเधे💦
मोर मुकुट माथे पर साजे पैरों में पायलिया...
नैनों से जो मन को हर ले ऐसा वह सांवरिया...
रूप तुम्हारा इतना सुंदर देख के मन हरषाया...
मुरलीधर नटवर तेरा गुणगान सभी ने गाया...
देख के सुंदर रूप सलोना हो गई मैं बावरिया...
मोर मुकुट माथे पर साजे पैरों में पायलिया...
नैनों से जो मन को हर ले ऐसा वह सांवरिया...
गऊऐ गोपी ग्वाल सभी है इतना तुम्हें सुहाते...
पाकर तुमको अपने दिल की पीड़ा सभी बताते..
धुन भी ऐसी मन को मोहे कान्हा की मुरलिया ...
मोर मुकुट माथे पर साजे पैरों में पायलिया...
नैनों से जो मन को हर ले ऐसा वह सांवरिया...
कान्हा मेरा सबसे प्यारा सबका राज दुलारा...
मैंने अपना तन मन धन सब इसके ऊपर वारा...
कान्हा की कोमल उंगली को घायल करे मुदरिया...
मोर मुकुट माथे पर साजे पैरों में पायलिया...
नैनों से जो मन को हर ले ऐसा वह सांवरिया...
दूध दही और मक्खन मेरे कान्हा को है भाते...
चोरी कर माखन की घर-घर नटवर चट कर जाते...
उछल-उछल ग्वालो के संग में फोड़े जब गागरिया...
मोर मुकुट माथे पर साजे पैरों में पायलिया...
नैनों से जो मन को हर ले ऐसा वह सांवरिया...
मित्र सुदामा दिल में बसता मन में बसती राधा ...
घर घर जाकर माखन खाते हरते सबकी बाधा...
मुरली वाले की बंसी पर जब फिर जाऐ अंगुरिया....
मोर मुकुट माथे पर साजे पैरों में पायलिया...
नैनों से जो मन को हर ले ऐसा वह सांवरिया...
लीलाधर की लीला प्यारी लगती सबको न्यारी..
मन पावन हो पातक हरते नर हो या हो नारी...
नाच दिखाते कीड़ा करते जब मोहन भोरहरिया.
मोर मुकुट माथे पर साजे पैरों में पायलिया....
नैनों से जो मन को हर ले ऐसा वह सांवरिया...
🌻 🚩रोहित मित्तल ❝रोहित❞🚩 🌻
🌻 {R.K.OPTICAL❜S } 🌻
🌻{मौलिक स्वरचित } 🌻
लखीमपुर-खीरी 🌻
9889862286🌻
कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
💦किसी का जिया दुखाना नहीं है
*****************************
रहो तुम सुखी जिन्दगी भर प्रिये,
मैं हँसूगा कहीं भी तुम्हें जानकर।
दिया प्यार का अब जलाना नहीं है,
किसी को हँसाकर रूलाना नहीं है ,
विरह गीत गाकर भुलाना नहीं है ,
किसी का जिया अब दुखाना नहीं है,
मुझे फिर कभी , प्राण,आना नहीं है,
सही कह रहा हूँ बहाना नहीं है,
तुम्हारी हँसी जिन्दगी भर रहे ,
मैं लिखूंगा इसे नित्य ही मानकर।
पर मुझे प्रेम पथ का निभाना रहा,
प्रेम करके हिया का जलाना रहा ,
जल रहा है दिया अब बुझाना रहा,
प्राण , तेरे बिना यह जलाना रहा,
औ ,विरह के लिए गीत गाना रहा,
छोड़ तुमको, कहीं आज जाना रहा,
मिलेगा विरह का गरल यदि मुझे,
तो बढूँगा इसे भी सदा पान करके।
हाय , कैसे कहूं आज रोना नहीं,
है, तुम्हारे बिना, प्राण सोना नहीं,
यदि सरल हो निठुर आज होना नहीं,
पर पलक को विवश हो भिगोना नहीं,
पीर कण कण जगी शेष कोना नहीं,
मैं विकल रो रहा आज, टोना नहीं,
कदम को उठाये बढ़ाते चलो ,
मैं चलुँगा निरन्तर तुम्हें जानकर।।
***************************
📚कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171
सत्यप्रकाश पाण्डेय
तेरे बिन अधूरा हूँ.....
जब से जीवन ज्योति बनकर
किया आलोकित हृदय आँगन
अपनी यौवन सुरभि से सजनी
महकाया है मेरा मन उपवन
डाल बाहों का हार प्रियतमा
मेरा हृदय कर दिया अलंकृत
पिक सी मीठी वाणी सुनकर
रोम रोम हो जाता है झंकृत
कुंतल पुंज अलि बन करके
मुखरित करते है मुख मण्डल
मोती सी आभा दन्त अवलि
शोभित है मकराकृत कुण्डल
भूल गया सारे गम जगती के
तुम्हें पाकर ही भव में पूरा हूँ
तुम नहीं तो कुछ न जीवन में
सजनी मैं तेरे बिना अधूरा हूँ।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
निधि मद्धेशिया कानपुर उत्तर प्रदेश
वेबपेज पर प्रकाशनार्थ
काश...
काश इसी भरम में
उम्र गुजर जाए...
तुम मुझे चाहते हो,
हो मेरी पसंद
तुम मुझे माँगते हो।
काश....
इकरार न इजहार करना
वो व्यवहार न होगा
दिल दुख जाए।
काश....
ताके रहना जीवन को
झीनी-सी दूरी रखना बनाए।
काश.....
पास आएँ हम, मिलन
क्षितिज न हो जाए।
काश......
महसूस करते हैं पसंद
हैं इसलिए दूरियाँ
दूरियों का आभाष रह जाए।
काश......
प्रेम है बस इतना
तुम खुश रहो हमेशा
सदा होंठ तुम्हारे मुस्कुराए।
काश.......
पसंद मेरी तुम, मुझे माँगते हो
नगर में मेरे मित्र हैं इस मेले
में अकेला तू भाए।
काश .......
मैंने जन्म पाया किसी के लिए
किसी के लिए तुम जन्में,
सोंचते हैं दोनों ,
अच्छा हो एक हो पाए।
काश........
पसंद मेरी तुम हो
तुम मुझे माँगते हो,
काश....
निधि मद्धेशिया
कानपुर
उत्तर प्रदेश
निशा"अतुल्य" देहरादून
प्रभुता
दिनाँक 6 /2/ 2020
प्रभुता देख विस्मित हूँ प्रभुवर
भाँति भाँति के फूल खिलाये
फूल खिलाये वो तो बेहतर
इतने रंग प्रभु कहाँ से आये ।
तितली उड़ती इधर उधर है
मधु फूलों का चूस रही है
मधु चूस रही वो तो बेहतर
इतना मिठास कहाँ से आई।
भिन भिन करती मधु मक्खी
इतना सारा शहद बनाई
शहद बनाई वो तो ठीक है
पर ये तकनीक कहाँ से आई ।
सूरज उगता समय से अपने
और शाम को छिप जाता है
दोनों बात तो ठीक है प्रभुवर
पर छिप कर वो कहाँ पे जाये।
नभ पर चाँद सितारे देखो टँगे हुए हैं उल्टे सारे
प्रभुता तेरी तू ही जाने, मैं तो हूँ बालक अज्ञानी
बस देना ज्ञान प्रभु मुझको, रखूं साथ सदा अपनो का
मुझको अपनी शरण में रखना, जैसे क़ायनात है सारी।
स्वरचित
निशा"अतुल्य
संजय जैन (मुम्बई)
*क्या स्तर है*
विधा : कविता
गिरती हुई अर्थव्यवस्था,
को कौन बचाएगा।
मरते हुए इंसान को,
कौन बचाएगा।
यदि ऐसा ही चलता रहा,
तो देश डूब जाएगा।
और इसका श्रेय फिर,
किस को देओगे।।
जब जब भी अच्छा हुआ,
वो मेरी किस्मत थी।
अब बढ़ रही महंगाई,
तो ये किसी की किस्मत हुई?
और गिर रही है विश्व में साख,
तो इसका श्रेय किसको दोगें।
ये तो आप ही बताओगें,
या फिर इसका दोष भी,
ओरो पर लगाओगें।।
अब तक जो भी किया,
उनसब में फेल हो गये।
अच्छे दिनों की जगह,
बुरे दिनों में खुद ही फस गये।
हां देश में जाति कार्ड के,
जरूर ही हीरो बन गए।
और इंसानों को अपास में,
लड़वाने में सफल हो गये।।
बनी बनाई अर्थव्यवस्था का,
चकना चूर कर दिए।
और अपने बड़ बोलेपन से,
खुद ही हीरो बन गये।
कितने बद जुबान है
जिम्मेदार लोग,
जो जहर उगल रहे है।
और युवा पीढ़ी को
रास्ते से भटका रहे है।।
विदेशों में जाकर गांधी को,
अपना आदर्श बताते है।
और उसके नाम को,
वहां पर भुनाते है।
और उसकी के देश में,
उसे देशद्रोही कहते है।
और उसके हत्यारे का,
गुण गान करते है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
06/02/2020
राजेंद्र रायपुरी
🙏आओ कर लें,माँ को प्रणाम 🙏
ममता की मूरत,
नहीं खूबसूरत।
पर चरणों में उसके,
हैं चारो धाम।
आओ कर लें,
माँ को प्रणाम।
निष्काम सेवा,
चाह नहीं मिले मेवा।
है दौलत उसकी,
संतान की मुस्कान।
आओ कर लें,
माँ को प्रणाम।
दुलारती,पुचकारती,
उतारती है आरती।
ख़ुद के दुख से नहीं,
बच्चों के दुख से,
हो जाती है परेशान।
आओ कर लें,
माँ को प्रणाम।
प्रथम गुरू वही,
देती हमें ज्ञान।
चाह बस इतनी,
बनें हम नेक इंसान।
आओ कर लें,
माँ को प्रणाम।
माँ, अम्मा, जननी, धात्री,प्रसू,
न जाने कितने हैं उसके नाम।
पर एक ही है काम।
लालन-पालन,
शिक्षा -दीक्षा।
संतान की,
निष्काम।
आओ कर लें,
माँ को प्रणाम।
।।राजेंद्र रायपुरी।।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
प्रेम के धागे थे,
जिनसे बांध गया कोई।
मेरी जीवन डोर,
खुद ही थाम गया कोई।।
जिंदगी थाती थी,
मुरलीधर तुम्हारी ही।
तुम राधा के भाग्य,
राधे तो तुम्हारी ही।।
तुम साथ मेरे तो,
नहीं शिकवा मुझे कोई।
श्याम से ही राधा,
तेरे बिन और न कोई।।
अनजाने ही कृष्ण,
पर सानिध्य तेरा मिले।
सौभाग्य मेरा प्रभु,
कृष्ण पूर्व ही नाम मिले।।
श्रीराधे गोपाल की जय🌸🌸🌸🌸🌸🙏🙏🙏🙏🙏
सत्यप्रकाश पाण्डेय
कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली
शीर्षकः मचल रही मनमीत मैं
रिमझिम रिमझिम वारिशें , भींगी भींगी नैन।
मचल रही मनमीत मैं, आलिंगन निशि रैन।।१।।
मंद मंद शीतल . पवन , हल्की मीठी धूप।
लहराती ये वेणियाँ ,चन्द्रमुखी प्रिय रूप।।२।।
काया नव किसलय समा ,गाल बिम्ब सम लाल।
नैन नशीली हिरण सी, मधुरिम बोल रसाल।।३।।
चली मचलती यौवना , मन्द मंद मुस्कान।
खनक रही पायल सुभग ,नवयौवन अभिमान।।४।।
लहर दुपट्टा लालिमा , कजरी नैन विशाल।
पीन पयोधर तुंग सम , गजगामिनि बेहाल।।५।।
उतावली साजन मिलन, चपल प्रिया रुख्सार।
छलकाती नैनाश्रु को , मनुहारी अभिसार।।६।।
सजी धजी तन्वी प्रिया , तनु षोडश शृङ्गार।
दौड़ी मृग सम रूपसी , मिलन सजन दिलदार।।७।।
तन मन शीतल साजना, प्रेम सरित रसधार।
मुख सरोज स्मित अधर , बनी प्रीत गलहार।।८।।
बनी सुभग वन माधवी ,कोकिल प्रियतम गान।
मचल रहा अलिवृन्द मन ,गन्धमाद रतिभान।।९।।
सुरभित वासन्तिक कशिश,नँच निकुंज मनमोर।
अलंकार रसमाधुरी , कविता रव चितचोर।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नयी दिल्ली
प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद
पंच मुक्तिका
दर्द को कर दवा
=========
व्यर्थ का बैर पाले क्यों उलझा खड़ा।
जो आया यहाँ, उसे जाना पड़ा।।
व्यर्थ का रोब ये व्यर्थ की दास्तां,
आयी संकट घड़ी , कौन होता खड़ा ।।
सांस दो सांस जीवन, संभालो इसे ।
द्रोह आवेश गंदला, निकालो इसे।।
न गया साथ कुछ, तू लाया था क्या,
वक्त पाशा अमोलक उछालो इसे ।।
वक्त चूके अगर तो फिर पछताओगे ।
गर निराशा जहन तो पिछड़ जाओगे।।
जिंदगी चार दिन की पुरुषारथ करो,
प्रखर कर लो जतन, तो निखर जाओगे ।।
न हमारा है कुछ, जग तुम्हारा नहीं।
करूँ सिद्धान्त खारिज गवारा नहीं ।।
हम तुम्हें रास आऐं , न आऐं प्रखर,
सत्य मारग से मेरा , किनारा नहीं।।
कर्म करिए जहन , सदवृत्ती रहे।
पाक दामन रखें नहीं मंदा* कहें ।।
आचरण हो सहज, मान सम्मान दें,
दर्द को कर दवा, कष्ट विपदा सहें।।
ज्ञान विज्ञान हो , और अनुभूतियाँ।
सफल साकार हो, वेद की सूक्तियाँ।।
शिष्टता दिव्यता प्रखर परहित जिऐं,
धैर्य का हो वरण, नाश कमजोरियाँ।।
बांसुरी सी बजे जिंदगी मधुरमय।
भाव निस्पृह सदा पास हो न अनय।।
सत्य को जानकर झूठ को छानकर,
क्रोध हिंसा तजें प्रखर होगी विजय।।
*मंदा= निकिष्ट
*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*
कवि शमशेर सिंह जलंधरा टेंपो हांसी , हिसार , हरियाणा
ग़ज़ल
खुशियों की हो बस बौछार जिंदगी में ।
तुम बांटते रहना प्यार जिंदगी में ।।
तुम पूछ लो कीमत अपनेपन की उससे ,
जिस को नहीं मिलता प्यार जिंदगी में ।
वह खुशनसीब है यारों बहुत कसम से ,
सपने हो जिसके साकार जिंदगी में ।
तुम भी उठा लो बीड़ा बदल के रहना ,
करना नया है हर हाल जिंदगी में ।
वादा करो मिलजुल कर हमें है करना ,
इंसानियत का प्रचार जिंदगी में ।
उसको झुका देंगे हौसलों से अपने ,
बोता है जो नफरत खार जिंदगी में ।
नुकसान होकर भी " टेंपो " यकीनन ,
घटते नहीं है आसार जिंदगी में ।
@9992318583@
मासूम मोडासवी
सब कूछ यहां पे छोडके जाना है सोचीये
नाता सभीसे हमको निभाना है सोचीये
हमने हसीन ख्वाब जो देखाथा जिंदगीका
जहेमत उठाके उसको ही पाना है सोचीये
जीसने बनाया हमको महोबत से शादमां
वाअदा निभाने उनको ही आना है सोचीये
चाहा जीसे उनसे अपना भला वास्ता रहे
उल्फत भरे तरानों को हमें गाना है सोचीये
मासूम अधुरे पन का ये मिलना नहीं कबुल
हो के निसार खुद को हमें पाना है सोचीये
मासूम मोडासवी
कवि शमशेर सिंह जलंधरा टेंपो ऐतिहासिक नगरी हांसी , हिसार , हरियाणा
सफलता वाला फल
संघर्ष की जीवन में ,
महत्वता होती है बहुत बड़ी ,
भरोसा और विश्वास ,
होती है जिसकी सबसे प्रबल कड़ी ।
जिसके टूट जाने से ,
संघर्ष का सारा साम्राज्य खत्म हो जाता है ,
या यूं कहें फलहीन हो जाता है ।
मतलब हाथ लगती है ,
सिर्फ निराशा , असफलता ।
विश्वास की कड़ी टूटने से ,
दम तोड़ने लगता है ,
आशा का दीपक ,
क्षीन पड़ने लगती है ,
सफलता की संभावनाएं ।
यानी विश्वास वाली कड़ी ही ,
सफलता का मूल है ,
जिसे सीचना होता है ,
कठिन परिश्रम से ,
डालनी होती है ,
हौसले वाले खाद ,
ताकि मिलती रहे ,
मूल को शक्ति ,
और बढ़ता रहे संघर्ष ।
फिर एक दिन मिलता है ,
सफलता वाला फल ,
जिसका स्वाद होता है निराला और बहुत आनंददाई ।
@9992318583@
विजयी नहीं होने दूँगा विडंबना तो देखो ईश्वर!
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड
विजयी नहीं होने दूँगा
विडंबना
तो देखो ईश्वर!
दोनों का भाग्य
एक सा लिखा तुमने
मुझे अपंग बना
पहले पिता फिर
माँ छीन ली
इस मासूम को भी
अनाथ कर डाला,
पर सुनो!
मैं तुम्हें
विजयी नहीं होने दूँगा...!
हम अनाथ अब
एक-दूसरे का साथ बनेंगे
अपने सुख-दुख
मिल कर जियेंगे,
मनुष्यों की भीड़ में
इस साथ से बढ़ कर
विश्वसनीय नहीं
कोई दूसरा अब हमारे लिए.....!!
————————————-
नशापान सै मौत का, पक्का दस्तावेज
भूपसिंह भारती,
आदर्श नगर नारनौल
नशापान
नशापान सै मौत का, पक्का दस्तावेज।
जीणा सै तो भाइयों, इससै करो परहेज।
इससै करो परहेज, छोड़ दो हुक्का पाणी।
सिकरट दारू करै, जीण की खत्म कहाणी।
करै कैंसर कसूत, बणा क्यूँ नादान सै।
कैंसर का ही दूत, दिखे यो नशापान सै।
विश्व कैंसर दिवस
अभिजित त्रिपाठी "अभि" पूरेप्रेम, अमेठी उत्तर प्रदेश
आया है फिर से वसंत
प्रणय छंद लेकर अनंत।।
आया है, फिर से वसंत।।
मधुर गंध, सुंदर सुगंध।
चली वायु जब मंद-मंद।
सम्मुख सरसों के पुष्प गुच्छ।
जग वैभव लगते सभी तुच्छ।
जग में है आई नव बहार।
हैं सभी प्रफुल्लित निर्विकार।
लिखते हैं निराला और पंत।।
आया है, फिर से वसंत।।
प्रकृति यूं सुहावन-मनभावन।
ज्यों लगता, फिर आया सावन।
हरा, लाल , नारंगी, पीला।
मौसम एकदम रंग-रंगीला।
सूनी धरती की है भरी गोद।
हर ओर ठिठौली और विनोद।
गाते नर, किन्नर और संत।।
आया है, फिर से वसंत।।
अभिजित त्रिपाठी "अभि"
पूरेप्रेम, अमेठी
उत्तर प्रदेश
मो. - 7755005597
डा० भारती वर्मा बौड़ाई देहरादून, उत्तराखंड
ठिठुरती ठंड
ठिठुरती सुबहें हैं ठंडी शाम
धूप बिना अब कहाँ आराम
चाय गरम और संग पकौड़े
देख इन्हें हर कोई खाने दौड़ें
ठिठुरती ठंड लो कहने आयी
कोई मुझे भी दो शॉल रजाई
मूँगफली रेवड़ी के दिन आये
गुड़ पट्टी लड्डू गजक मन भाये
स्वेटर शॉल उतर नहीं पाते
शाम हुई झट हीटर लगाते
नानी घर के क्या हैं कहने
सर्दी में हम जब जाते रहने
तिल लड्डू गाजर का हलवा
बच्चों बीच कराता बलवा
तब नाना रेफ़री बन कर आते
हँसते हँसते मीठी डाँट पिलाते
उढ़ा रजाई झट सबको बैठाते
सुना कहानी हौले ज्ञान बढ़ाते
नाना घर सर्दी भी मन भाती थी
अब सर्दी उनकी याद दिलाती।
————————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
डॉ. राम कुमार झा निकुंज नयी दिल्ली
अंगूठी
मैं अंगूठी नायाब हूँ
मैं अंगूठी हूँ प्रमाण इतिहास का,
भारत के पुरातन राष्ट्र निर्माण का,
मैं हूँ शाश्वत चिरन्तन प्रतिमानक,
खूबसूरत मुहब्बत ए दीदार का।
अंगूठी हूँ स्मृतिचिह्न सिया राम की,
वियोगिनी विरही मिलन नवाश की,
मैं डोर हूँ हर कशिश दिलदार की,
मानक मैं अनुराग का परस्पर मिलन हूँ।
तोहफ़ा या समझो सगुन अनुबन्ध का,
प्रेमी युगल तटबन्ध नित जीवन्त हूँ,
आभास हूँ अहसास बन प्रेमी हृदय,
प्रेमी युगल नित प्रीत का उद्गार हूँ।
चारुतम कंचन रजत मणि हीरा जड़ित,
पत्थरों में सजी हूँ अनवरत रंगीन मैं ,
मैं मांगलिक परिणय युगल नव जिंदगी,
ऊँगुलियों में सजी शोभा बनी अंगूठी हूँ।
बन शान व सम्मान खूबसूरत महफ़िलें,
समरस अमन समदर्श का प्रतीमान हूँ,
सुन्दर मनोरम जिंदगी हर चाहतें ,
बेवफ़ाई के सितम ए गमों में अंगूठी ,
दर्द ए ज़िगर अभिलेख बन नयनाश्रु हूँ।
जोड़ती हर प्यार को बन मधुरिमा,
हौंसलों की उड़ान मैं खिली मुस्कान हूँ,
हूँ सहेली हमसफ़र प्रेम का शृङ्गार मैं,
मनोहर आनंदकर प्रियहृदय अभिलाष हूँ।
सुन्दर सुखद नित प्रेमरस पैगाम हूँ,
सजनी सजन रतिराग बन अनुराग हूँ,
नवकिरण बन जिंदगी नव उल्लास मैं,
अंगूठी प्रियतर मनुज रोशनी नायाब हूँ।
डॉ. राम कुमार झा निकुंज
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली
प्रिया सिंह लखनऊ
कहता है ऊलजलूल जमाना तो कह लेने दो ना
आज मनगढ़ंत बातों को उसकी सह लेने दो ना
कलंकित जब सीता है जमाने में तो..मैं क्या हूँ
दो अश्क इन आँखो से भी आज बह लेने दो ना
खामोशियां उलझ जातीं है दामन में मेरे तो क्या
शहर-ए-महफिल को भी खामोश रह लेने दो ना
आशियाना दिल का अब खंडहर होने को है तो
बचे ईंट को भी इमारत से आज ढह लेने दो ना
एक चिंगारी शोला बन तन बदन में आग लगा दे
उस आग से बनकर अगरबत्ती मुझे दह लेने दो ना
Priya singh
श्याम कुँवर भारती [राजभर] भारत वन्दना
हिन्दी कविता- हिन्द को नमन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
धरती और गगन वंदे मातरम है वतन |
गंगा यमुना सरस्वती करे पाप को समन |
खिले फुले राष्ट्र विविध रंग है सुमन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
बिहार बंगाल यूपी झारखंड है वतन |
महाराष्ट्र आंध्र तमिल गुजरात है वतन |
केरल कर्नाटका गोवा दमन दीप है वतन |
जम्मू कश्मीर लद्दाख अरुणाचल है वतन |
उड़ीसा आसाम मिजोरम तेलांगना है वतन |
मध्य प्रदेश छतिसगड़ उत्तराखंड है वतन |
गांधी शुभाष तिलक पटेल जिंदा है वचन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
महाराणा लक्ष्मी बाई विक्रमादित्य
सम्राट अशोक है वतन |
आजाद भगत खुदीराम बिस्समिल वीर विरसा है वतन |
वीर शिवाजी चौहान पृथविराज है वतन |
नानक कबीर रहीम सूरदास तुलसीदास है वतन |
रैदास वेदब्यास बाल्मीकी प्र्हलाद है वतन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
पुरोसोत्तम श्रीराम सावरे घनश्याम है वतन |
मीराबाई सुभद्रा निराला परशुराम है वतन |
प्रेमचंद बच्चन टेगौर वकीमचंद है वतन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
मिर मिर्जा खुसरो ज्ञान विज्ञान इसरो है वतन |
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई जैन बौद्ध है वतन |
हिन्दी उर्दू बांग्ला भोजपुरी संस्कृत भाषा है वतन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
पंजाबी मराठी खोरठा संथाली भाषा तमिल है वतन |
विश्वन्नाथ पार्श्वनाथ केदारनाथ बैदनाथ है वतन |
माता वैष्णो कामख्या तारापीठ
बिंधयाचल छिन्नमस्ता है वतन |
दक्षिणेश्वर कालीघाट बालाजी महाकाल
अमरनाथ सारनाथ गौरीनाथ साईनाथ है वतन |
हिन्द को नमन जय हिन्द है नमन |
मोदी योगी साह अमित खिलाया है चमन |
दुश्मनों मार गिराया पहनाया है कफन |
बच्चे बुजुर्ग नारियो जवानो का वतन |
हर खासो आम सारी आवाम का वतन |
श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,
मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286
ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई
*चलते-चलते:0205*
*⚜ आँखें ⚜*
*चित्त चपल चंचल चितवन, चपला चंद्र चकोरी हो।*
*कुञ्ज कली की कंचन काया, कुमुद कामिनी गोरी हो।।*
*नित्य नमन नित नेह नयन नित, नवनूतन श्रृंगार रहा।*
*जैसे चँदा का पूनम से, सदा सनातन प्यार रहा।*
*नेह सरोवर में अंबुज की, अर्ध खिली सी पाँखें हों।*
*कारी सी कजरारी सी प्रिय, मृगनयनी सी आँखें हों।।*
*जैसे शोभित नीलगगन में, सूरज और सितारे हैं।*
*लाज हया या नेह स्नेह ये, दोनों नयन हमारे हैं।।*
*विपदा कोई अनचाही सी, अपनों पर जब होती हैं।*
*सच कहता हूँ दोनों आँखें, सदा मौन हो रोती हैं।।*
*या खुशियों की खुश्बू कोई, तनमन में छा जाती है।*
*जाने क्यूँ तब अपनी भी ये, दो आँखें भर आती हैं।।*
*लाज हया से पलभर को जब, साँसे तक रुक जाती हैं।*
*अनजाने में जाने कैसे, आँखें भी झुक जाती हैं।।*
*क्रोध अगन में तन तपता जब, अपनी गीली दाल हुई।*
*जाने कैसे अनजाने ही, दोनों आँखें लाल हुईं।।*
*अगर कहीं हम सहज नहीं या, मिलने से कतराते हैं।*
*किन्तु अगर मिल जाए तो भी, उनसे आँख चुराते हैं।।*
*नेह नयन की मेरे प्रियवर, सीधी सत्य कहानी है।*
*सम्मानित है जीवन जबतक, इन आँखों में पानी है।।*
सर्वाधिकार सुरक्षित
*🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई*
कवि सिद्धार्थ अर्जुन छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय
राष्ट्र के प्रतिकूल यदि तेरा कोई भी काम होगा,
तू,तेरा परिवार,तेरा वंश भी बदनाम होगा......
माँग तू अधिकार अपने पर रहे यह ध्यान शाहीन,
राष्ट्र की गरिमा गिरी तो फिर बुरा अंजाम होगा....
नीर से ज़्यादा लहू है हिन्द की मिट्टी में यारों,
एकता ही एकता है भूत की चिट्ठी में यारों,
इस तरह टुकड़ों में बंटने से भला क्या काम होगा?
राष्ट्र की गरिमा गिरी तो फिर बुरा अंजाम होगा.....
देख ले बुनियाद इसकी,धर्म संगम है वहाँ,
अपने भारत देश जैसी संस्कृति भी है कहाँ?
धर्म-संस्कृति गर मिटी तो फिर नही आराम होगा,
राष्ट्र की गरिमा गिरी तो फिर बुरा अंजाम होगा....
ऐ हुक़ूमत ख़त्म कर दे साँप सब आस्तीन के,
हक़ हमारा है जहाँ तक ले लेंगे हम छीन के,
एकजुट संघर्ष का ही अब यहाँ कुछ दाम होगा,
राष्ट्र की गरिमा गिरी तो फिर बुरा अंजाम होगा...
कवि सिद्धार्थ अर्जुन
छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय
(सर्वाधिकार सुरक्षित,मौलिक)
सुनीता असीम
दिल में तुमने रखा था राज मेरा।
और पूरा उठाया ......नाज मेरा।
***
रात दिन चैन भी नहीं..... आए।
क्या कहीं भी नहीं इलाज मेरा।
***
काम में सब लगे रहे .....अपने।
किसने पूछा कभी मिजाज मेरा।
***
एक पक्षी जो सामने आया।
डगमगाने लगा जहाज मेरा।
***
चार उनसे हुईं निगाहें जो।
धड़कनों का बजेगा साज मेरा।
***
जब कभी एक हो गए हम तो।
क्या बिगाड़ेगा ये समाज मेरा।
***
सुनीता असीम
५/२/२०२०
सुनील कुमार गुप्ता सहारनपुर-
कविता:-
"जीत"
"भटकता रहा मन बावरा साथी,
समझा न एक बात-
मन के हारे हार है-मन के जीते जीत।
मन से न हारना कभी साथी,
जीवन में तुम्हे-
हार मिले या जीत।
हार में होना न निराश साथी,
जीत में ज्य़ादा -
मनाना न जश्न मीत।
हँसते ही रहेगे लोग तो साथी,
जीवन में चाहे-
हार हो या जीत।
हार कर भी हारे न जो साथी,
चलता रहे लक्ष्य की ओर-
मिलती मंज़िल टूटे न आशा की डोर।
भटकता रहा मन बावरा साथी,
समझा न एक बात-
मन के हारे हार है-मन के जीते जीत।।
ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 05-02-2020
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