सत्यप्रकाश पाण्डेय

सौंदर्य लालिमा लिए तन तुम्हारा
अनुपम अवर्चनीय रूप की धारा


लाज हया की लगती हो मारी सी
आनन उजास चन्द्र उजियारी सी


गढ़ा हो विधु ने मनोयोग से तुमको
तेरी रूप मोहिनी ने बांधा मुझको


शीतल धवल मयंक ज्योत्सना सी
कुसमित अधर लगो मनोरमा सी


करे है विमोहित लज्जा की लाली
शोभित करवलय अनंग मतवाली


मेरे हृदय में बसी है छवि तुम्हारी
माधुर्य प्रतिमा तुम पर रति वारी


लजे हिना देख के लोहित लाली
भावनाएं मेरी हुई प्रिय मतवाली


देख देख तुम्हें रजनीचर शरमाए
तेरा सौंदर्य तो जड़ चेतन को भाए


हसमुख गुलाब की कली मनोहर
बन जाओ सत्य की प्रिय धरोहर।।



सत्यप्रकाश पाण्डे


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

लघु कथा:-


.........आवश्यकता को वरीयता.........


    दो मित्र बातें करते जा रहे थे।अचानक सामने एक घायल पक्षी आकर गिरा।एक ने उस पक्षी को देखकर उठा लिया।दूसरा झल्लाने लगा कि इतने दिनों बाद हमदोनों इकट्ठे हुए,अपनी सुख-दुख की बातें एक-दूसरे को सुनाने के लिए और तुम इन सब बातों में मज़ा किरकिरा कर दोगे।मित्र ने उसकी बात को तवज्जो नही दी।पक्षी को दुलराने लगा,घायल स्थान को साफ किया और अपने रुमाल से ज़ख्म पर पट्टी बांध दी।पक्षी अब बहुत राहत महसूस कर रहा था।धीरे-धीरे चलने लगा और कृतज्ञता की भाव से पहले मित्र को देखते हुए धीरे-धीरे उड़ गया।दूसरे मित्र की आँखें खुली और उसने माना कि आवश्यकता को वरीयता दी जानी चाहिए।


-------------देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


निशा"अतुल्य"

विषय          दरख़्त
दिनाँक        7/2 /2020



सूखने लगा है घर के सामने का वो दरख़्त
जिस की डाली पर बहुत से रिश्ते बैठे हैं
मेरे बचपन की यादों के संगी साथी 
वो उसकी छाया में गुड्डे की बारात का रुकना
गुड़िया को सजा बैठना दरख़्त की लकड़ियों से सजे मंडप में।
कितना कुछ संजो रखा है इस सूखे से दरख़्त ने खुद में
मेरी यादों का हर वो मंजर जो मेरे हंसने रोने का है।
फूटेंगी कोंपले इस पर मेरी यादों की बारात के मानिंद
मेरे यक़ीन की खाद और आँसुओं का पानी 
देगा पुनर्जन्म मेरे बचपन के साथी को। 
नित निहारतीं हूँ यादों के झरोखों से उसको
वो भी खिला खिला सा आ जाता है ख़्वाबों में मेरे
और दे जाता है यकीन खुद के जिंदा होने का।
मिल जाती है मुझे भी एक वजह मुस्कुराने की
मेरी यादों का वो दरख़्त नही सूख सकता कभी 
मुझे हो चला है ये यक़ीन क्योंकि उस पर टँगी है मेरे बचपन की यादें
जो जिंदा है मुझमें अभी जो जिंदा है मुझमें अभी।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


राजेंद्र रायपुरी।

एक ग़ज़ल, आपकी नज़र - - 


बहाने   बनाकर  न  दिल  को  चुराओ,
कली  हूँ  न भँवरा  सुनो बन के आओ।


रखोगे  कहाँ  तुम  चुरा  मेरे दिल  को,
जहां  में  जगह  कोई  हो  तो बताओ।


है फूलों  से  नाज़ुक सुनो मेरा दिल ये,
समझ   हीरे-मोती  न  थैली  मँगाओ।


सजाया-सँवारा  है  दिल  को जतन से,
मिला  दोगे   मिट्टी  न  इसको चुराओ।


बने हो  जो आशिक़  तो  रस्में निभाओ,
मेरे दिल को भाए वो दिल तो दिखाओ।


न  शीशे  की  पत्थर  से  यारी लगाओ,
निभी   ऐसी   यारी   कहाँ   है  बताओ।


शमा   बन  जलूँगी   ज़माने  में   मैं  तो,
अगर  जल  सकोगे  तभी  पास  आओ।


                ।।राजेंद्र रायपुरी।।


रीतु देवी"प्रज्ञा"         दरभंगा, बिहार

विषय:-बचपन
दिनांक:-07-02-2020
बचपन के दिन सुहाने


बचपन के थे दिन सुहाने,
गीत गाते थे हम मस्ताने,
भेदभाव का नहीं था नामोनिशान 
मोहमाया से थे हम अनजाने।
चंदा मामा लगते प्यारे
नित्य शाम को बाट निहारे
मन भाती थी पूनम रौशनी
रात्रि भी खेलते भाई-बहन सारे।
झट चढ जाते पेड़ों पर,
नजर रहते मीठी सेबों पर,
अपना-पराया का नहीं था ज्ञान
विश्वास करते श्रेष्ठजनों के नेहों पर।


हम भींगा करते छमछम बूंद में,
हम खोए रहते भीनीभीनी सुगंध में,
चंचलता रहता तन मे हरदम
परियों को देखा करते गहरी नींद में।
बचपन के थे दिन सुहाने ,
हर गम से थे बेगाने ,
मौज ही मौज था जीवन में
माँ की आँचल तले थे खजाने 
           रीतु देवी"प्रज्ञा"
        दरभंगा, बिहार
    स्वरचित एवं मौलिक


प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद

जयति भारती
*************


जिन्हें न प्रेम माटी से , उन्हें बेजान लिखता हूँ।
मैं संकल्पों में डुबो करके, अरमान लिखता हूँ।।
परहित में  जिया जीवन,वही तो सत्यत: जीवन,
भारती को प्रणति लिखकर हिंदुस्तान लिखता हूँ।।


ये उर्वर भूमि पराक्रम की, लिखी बलिदान गाथाऐं।
व्याधियाँ रास्ता देतीं नमन करती हैं बाधाऐं।।
तुंग ऊर्ध्व हो किंचित या सागर हो अचल गहरा,
विजय या वीरगति अंगी, स्वयं के कर्म उपमाऐं।।


*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

शुभ प्रातः -


निगाहों में थी जिस नगीने की ज़ुस्तज़ु।
बन गयी है वो ही मेरे  दिल की आरज़ू।


-----देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*विविध हाइकु।।।।।।।।*


हीर ओ रांझा
सांझा जीना हमेशा
मरना सांझा


वजन   दार
हमेशा कायदे का
बात का सार


भूखा द्वार पे
खाली पेट न जाये
तू  ये देख ले


बिन संघर्ष
उत्थान होता नहीं
न ही उत्कर्ष


जख्म न खोल
नमक    शहर    में
मीठा ही बोल



बिन  विचार
बने न ही व्यक्तिव
न ही आधार


*रचयिता।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।।।।बरेली*
मो 9897071046।।
8218685464।।।।।


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*आगे बढ़ने का नाम ही ज़िंदगी है।*
*।।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।*


मत रखो   जिन्दगी   को    तुम
यूँ  बहुत    संभाल  कर।


जरूरी  नहीं कि हर  काम करें
बहुत   देख भाल   कर।।


मत मलाल करो  खोना   पाना
तो हिस्सा है जिन्दगी का।


बस खुशी से आगे चलता चल 
यही  इक  कमाल    कर।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
।।।।मोब  9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।बरेली

*तेरा सद्कर्म ही सबको याद*
*आयेगा।।।।।मुक्तक।।।।।।।*


जिन्दगी का बहुत आसान सा
हिसाब  प्रभु  ने   बनाया है।


खाली हाथ ही भेजा  यहाँ पर
और खाली   ही  बुलाया है।।


सहयोग  ही  तो   जिन्दगी  का
है     एक      नाम     दूसरा ।


बस वही याद  आता है जिसने
काम कुछ अच्छा कमाया है।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।


संजय जैन (मुम्बई)

*संदेश*
विधा : गीत


नींद आती नहीं,
चैन पाते नहीं ।
फिर भी तड़पाने से, 
बाज आते नहीं।
थोड़ा सा बदलो,
अपना तुम दृष्टिकोण।
कुछ तो जैनधर्म का, 
 अनुसरण करो।।


खुद जीओ औरों को,
भी जीने दो।
महावीर स्वामी का संदेश, 
जीवन में अमल करो।
छोड़कर हिंसा को,
अहिंसा पर चलो।
और जीवन को अपने,
सफल बना लो।।


दूसरे की लोकप्रियता से,
तुम मत जलो।
बने जहां तक,
औरों की मदद करो।
और इंसानियत को,
जिंदा दिल में रखो।
अपने कर्तव्यों से,
 मुँह मत फेरो।।


जिंदगी की हकीकत,
तुम जान लो।
फर्ज ईमान का,
तुम निभाते चलो।
दिलों में प्यार,
अपने जागते चलो।
प्यार की दुनियां,
तुम बसते चलो।।


इंसानियत को जिंदा,  
 इंसानों में रखो।
भाईचारे का माहौल,
बना के रखो।
एक दिन तेरी,
करनी रंग लाएगी।
और फिरसे हमसब,
चैन से रह पाएंगे।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
07/02/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तेरे प्यार में हुई बाबरी,
तूने छीनों चेन हमारों।
तेरी सूरत देख सांवरे,
अब कोई लगे न प्यारों।।


बेगानी सी रहती हूं मैं,
पल भर भूल न पाऊँ।
सोते जगते मेरे कृष्णा,
बस तेरे ही गुण गाऊं।।


हो मेरे आलम्बन प्रिय,
प्रभु आके मोय संवारों।
तेरी सूरत देख सांवरे,
अब कोई लगे न प्यारों।।


कैसे सूरत देखूं कान्हा,
हया की लाली व्यापै।
मेरौ मन मयूर सदा ही,
माधव नाम ही जापै।।


तेरे लिए व्याकुल रहूँ,
ये जीवन तुम पै वारौ।
तेरी सूरत देख सांवरे,
अब कोई लगे न प्यारौ।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


गनेश रॉय "रावण" भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

"लड़कपन का ईश्क़"
""""""""""""""""""""""""""""
चले जो धूप में....
तो पैर छिलने लगे
और चले जो ईश्क़ में....
तो दिल जलने लगे
ये लड़कपन का ईश्क़ था
जो सर चढ़ कर बोलने लगे थे
खाये जो ठोकर तो सर पकड़ कर रोने लगे
लाख समझाया था इस दिल को
..….......लेकिन.....
ये अपने हुनर पर इतराने लगे
खुद ही जलाया है 
अपने ही ठिकाने अपने हाथो से
पर आज फुरसत की ठिकाने ढूँढने लगें
ठोकर खा कर सम्भल तो गया है
डर है मुझे इस बात की
कहीं पैर फिर से ना फिसलने लगे
अब की बार फिसला तो कौन इसे संभालेगा
ये दिल तो आजाद पंक्षी है जनाब
कौन इस पर लगाम लगाएगा ।।


गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


अम्बरीष अम्बर

'वहाँ कीजिये कैद'


जितने बैठे बाग में, हो करके मुस्तैद।
आठ फरवरी को उन्हें, वहाँ कीजिये कैद।
वहाँ कीजिये कैद, न हो अब कोई माफ़ी
पड़ न सकेगा वोट, सजा होगी यह काफी।
मौज कर रहे लोग, वहाँ पर जाने कितने।
अभी पुलिस को भेज, घेर लें बैठे जितने।


-- 'अम्बर'


प्रखर दीक्षित फर्रूखाबाद(उ.प्र)

मुक्तक


*जयति परात्मन*
*******
यदि परात्मन पराशक्तिमय बिन तो , नहिं राधा कृष्णमयी होती।
तब बृजरज विभूति न बन पाती , तब न बंसुरी मधुर सरस होती।। 
शाश्वत प्रेम में बसा ईश्वर में , जहाँ मनभाव आकर्षण,
भक्ति करुणा रस जहाँ सरसे नहीं वँह कीर्ति क्षति होती।।



चले आओ कन्हैया अब हमें नित बेचैनियाँ छलती।
मेरी आशा का तुम्ही संबल तुमसे श्वांस यह चलती।।
ये बृज की रेणु चंदन सम जहाँ शैशव बिताया था,
प्रखर उर ताप विरहा का अब तुम बिन ज़िंदगी खलती।।


प्रखर दीक्षित
फर्रूखाबाद(उ.प्र)


श्याम कुँवर भारती [राजभर] भोजपुरी

भोजपुरी गीत- हमरे मोदी जी महान |
बढ़वले हमरे देशवा के सम्मान   |
हमरे मोदी जी महान |
महकइहे मह मह गुलिस्तान |
हमरे मोदी जी महान |
घर घर शौचालय बनवले |
बेघर के आपन आलय बनवले |
जय भारत जय हिन्दुस्तान |
हमरे मोदी जी महान |
केतनों सतावे बर बिमारी औरी दुशमनवा |
फ्री मे इलाज होखे मिलल सबके आयुष्मनवा |
इलाज करावे दीहले सबके वरदान  |
हमरे मोदी जी महान |
मेहरारू सबके चूल्हा फूंकल छुटल |
रसोई सबके उज्ज्वला जाई पहुंचल |
बनावे सब खूब पुआ औरी पकवान |
हमरे मोदी जी महान |
खेतवा लहराये धनवा मगन भईले किसनवा |
तोपवा बन्दुकिया पाके जोसियईले जवनवा |
छप्पन इंची सीना देखि घबराईल पाकिस्तान |
हमरे मोदी जी महान |
तीन तलाक भईले हलाक सुना मोर बहिनी |
 धारा तीन सौ सत्तर खतम अब भईली |
आतंकियन मार गिरावे भेजे कब्रिस्तान |
हमरे मोदी जी महान |
जनधन योजना सबके खाता खुल गईले |
मुद्रा लोन से पईसा लेके धंधा सबके भईले |
मोदी राज मे होखे केहु नाही परेसान |
हमरे मोदी जी महान |
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई इज्जत सबके देले |
सबकर साथ सबकर विश्वास सबके विकाश करेले |
राम मंदिर के शुरु करवले ई निर्माण |
हमरे मोदी जी महान |
बढ़वले हमरे देशवा के सम्मान   |


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
 कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

........... इंतजार के क्षण...........
शाम का
अन्तिम प्रहर,
नीरवता में शहर।
झील के किनारे खड़ा,
एकांत चिंतामग्न सोच रहा था।
जीवन की
अभिलाषाओं के
बारे में उठते तूफान,
मन की भावनाएं,तम के
साम्राज्य में विलीन हो रहा था।
देखता हूं,
चांद की छाया
को झील की पानी में।
सोचता हूं, आयेगा पूनम
का चांद कब मेरी जिंदगानी में?
यही अरमान,
बसा है मेरे दिल 
और जिगर में।जाऊं 
कहां,इस दुनिया के वीरान
और सुने खंडहर में?लगता नहीं
है,दिल अब
इस मरघट में।
मन मचल रहा है,
देखने को चांद सा मुखड़ा।
दिल धड़क
रहा है,फिर भी,
रहता उखड़ा उखड़ा।
कैसे समझाऊं,तुमको मन,
कटते नहीं इंतजार के क्षण।


-- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


अवनीश त्रिवेदी"अभय"

छंद


ममतामयी  मूर्ति  हो, सारे जग की कीर्ति हो, 
सुधा  सरसाती   सदा, बड़ी   सुखकारी  हो।
अपने पाल्यो   पे कष्ट , आने नही देती कभी,
करती  दुआओं  से   ही, सदा  रखवारी  हो।
सूखे  में  सुलाती हमे, गीले में ही  सोती सदा, 
आँचल  की  छाँव  देती,  बड़ी  हितकारी हो।
माँ  कैसे  करे  बखान, हम  तो   बड़े  अज्ञान,
बौने  पड़   जाते  शब्द, ऐसी  वीर  नारी  हो।


अवनीश त्रिवेदी"अभय"


सुनीता असीम

मुहब्बत में शराफत आ रही है।
किसी के नाम चाहत आ रही है।
***
खिले हैं फूल से चेहरे सभी अब।
पिता की जो वसीयत आ रही है।
***
बरसती है दुआ सीआसमाँ से।
हमें उससे ही ताकत आ रही है।
***
हुआ मोदी का शासन जबसे देखो।
बेईमानों की शामत आ रही है।
***
सच्चे दिल से किए हों काम सब।
तभी फिर साथ कुदरत आ रही है।
***
कोरोना चीन में फैला भले ही।
यहाँ भी उसकी दहशत आ रही है।
***
लड़कपन से रहे जो कल तलक थे।
लो उनमें आज अज़मत आ रही है।
***
सुनीता असीम
६/२/२०२०
अजमत-बड़प्पन


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।बरेली

*विविध हाइकु।।।।।।।।।।*


कभी नरम
जीवन सामंजस्य
कभी गरम


पक्का इरादा
हार नहीं मानना
करो वायदा


आज की नारी
मातृ शक्ति सलाम
नहीं बेचारी


लिखते आह
ये दर्द निकलता
पढ़ते  वाह


हमारी चाह
मिल कर  ही   रहें
एक हो राह



अपने में  न
जिंदगी जियो तुम
अपनो में हाँ



ए मेरे   खुदा
सरपरस्ती     रहे
होना न जुदा


*रचयिता।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।।।।बरेली।*
मो  9897071046।।।।
8218685464।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।बरेली

*दिल की हमेशा सफाई होनी*
*चाहिये।।।।।।मुक्तक।।।।।।।*


तुम्हारी हर  बात  में  कुछ
गहराई होनी चाहिये।


तेरे हर काम में  किसी की
भलाई होनी चाहिये।।


भरपाई करते  रहो हमेशा
हर इक भूल की तुम।


छूटे रिश्तों  की भी हमेशा
तुरपाई होनी चाहिये।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।बरेली।।।।।।।*
मोब।      9897071046।।।
8218685464     ।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।बरेली

*विविध हाइकु।।।।।।।।*


करो वो काम
कैसे रहे ये ऊँचा
देश का नाम


यह चुनाव
बचानी है हमको
डूबती नाव


कभी अर्श पे
किस्मत क्या चीज़
कभी फर्श पे


शहर  गाँव
अंतर   है     इतना
धूप ओ छाँव


लाज व शील
सिखायें प्रारंभ से
पुत्री सुशील


वक़्त का खेल
कभी   ऊपर   नीचे
जीवन     रेल


बढ़ते रहो
रिश्तों की तुरपाई
करते रहो


*रचयिता।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।बरेली।।।।।।*
मो  9897071046।।।
8218685464 ।।।।।।


सत्यदेव सिंह समथर

वो तुम्हारे कागज पर मेरी तकदीर नहीं जाती।
मेरी इन आँखों से तुम्हारी तस्वीर नहीं जाती।।


ढूंढूं तुमको या फिर इन आँखों से आँसू पोंछू
ये दिल दुखता है कि कलेजे की पीर नहीं जाती


नींदों के पंछी पलकों पर आना छोड़ चुके हैं
ये प्यार है कि तसव्वुर से तस्वीर नहीं जाती


परिवार को देखूँ तो पत्थर रखता हूँ इस दिल पर
वर्षों साथ में गुजरे वक़्त कि तकरीर नहीं जाती


मुझको यूँ छोड़ के दुनिया से रुखसत हो गये हो तुम
पर हर वक्त नजर आने की तदबीर नहीं जाती


आपका सत्यदेव


प्रतिभा प्रसाद कुमकुम

(06)       🙏🏻 *प्रतिभा प्रभाती* 🙏🏻
-------------------------------------------------------------
नित करूं मैं वंदन प्रभु!जी ,
चरण पखारूँ, आठों याम ।
कर्म धर्म पूजा न जानूँ , 
मुझे सिखा दो मेरे राम ।
 रहे शीश पर तेरा हाथ , 
जीवन भर का दे दो साथ ।
नित्य मैं  अभिनंदन गाऊँ , 
तेरे चरण पड़ूँ रघुनाथ ।
माँ- तात को नमन करूँ मै, 
उनको झुकाऊँ  रोज माथ ।
अग्रजों को नमन सदा ही , 
अनुजों को नित्य राम राम ।।



🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम* 🌹
       (सर्वाधिकार सुरक्षित)
        दिनांक  6.2.2020...



_________________________________________


लता प्रासर पटना बिहार

*हवा की कनकनी मुबारक*


सहज सुभग सुंदर चितचोर नाचे वन मोर
अलसाई हवा डोले इत उत ढूंढे जीवन छोर
मौसम मगरुर रंग बदले उमंग बदले तरंग बदले
जब जब जोगन अंखियां निरखे चंहुओर
किलकत ढुलकत बादल घिरे आसमां घनघोर!
*लता प्रासर*


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