मासूम मोडासवी

सुरखी  भरी नजरों का नशा ओर ही कुछ है
दाअवते सुखन देने की अदा ओर ही कुछ है


हमने  तो बहुत  चाहा तेरा हुकम हो सादर
खामोश  रहे  लबकी  सजा ओर ही कूछ है


हम सहमे  से बैठे रहे उमिदै  करम  करके
ओर उनके इरादों  की दफा ओर ही कुछ है


बजती  हुइ  पायल  की ये झंकार का जादु
कदमों के थीरकने की अदा ओर ही कुछ है
मोसम ने  बहारों  से सजी ओढी नइ चादर
नजरों को लुभाती ये जीया ओर ही कुछ है


तनहाइ में जीनेका सबब हम कैसे  बतायें
क्या जुरम हुवा? पाइ सजा ओर ही कुछ है


वाअदा  तो  था  मासूम सफर साथ चलेगा
बे रब्त मुसाफत का सीला ओर ही कूछ है


                            मासूम मोडासवी


गंगा प्रसाद पाण्डेय "भावुक"

उनके चेहरे पे,
कई मुखौटे हैं।


वो लाशों पे,
जमे बैठे हैं।


सांसें बोले हैं,
खुलेआम लौटे हैं।


आत्मा मृतप्राय है,
पराधीन ऐंठे हैं।


दर्पण तोड़ते हैं,
मूलतः खोटे हैं।


हुये लाचार हैं,
अकर्मण्य रोते हैं।।


भावुक


संजय जैन (मुम्बई)

*प्यार या छलावा*
विधा : गीत


जबसे मिली है नजरें,
बेहाल हो रहा हूँ।
तुमसे मोहब्बत करने,
कब से तड़प रहा हूँ॥


कोई तो हमें बताये,
कहाँ वो चले गए हैं।
रातों की नींद चुराकर,
खुद चैन से सो रहे हैं॥


ये कमबख्त मोहब्बत,
क्या-क्या हमें दिखाए।
खुद चैन से रहे वो,
हमें क्यों रोज रुलाये॥


करना है अगर मोहब्बत,
तो आजा आज मिलने।
वरना मेरे दिल से,
क्यों खेल रहे थे अब तक॥


जो गैर से करोगे,
अब आगे तुम मोहब्बत।
खुद चैन से तुम भी,
कभी रह नहीं पाओगे॥


मुझसे किया क्यों तुमने,
इतना बड़ा छलावा।
कही का भी न छोड़ा,
प्यार में अपने फ़साके।
अब तो रहम कर दो।
सपनो में न आके॥


जबसे मिली है नजरें,
बेहाल हो रहा हूँ…॥


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
08/02/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तुम ही मेरे मीत और न जग में कोई
जब से मिले सांवरे सुधबुध मैंने खोई


देखो सब स्वारथ से बंधे यहां जग में
बिन स्वारथ के कोई पूछे नहीं भव में


भक्तों के रखवाले और न तुमसा कोई
जब से मिले सांवरे सुधबुध मैंने खोई


दीन हीन के सहारे दरिद्रनारायण कहाये
जिसने भी तुम्हें पुकारा दौड़े दौड़े आये


जापै कृपा तुम्हारी तापै करे सब कोई
जब से मिले सांवरे सुदबुध मैंने खोई


मुरलीधर हे राधाबल्लभ आश्रय में लीजे
मेरे अधम कृत्य पर स्वामी ध्यान न दीजे


सत्य शरण आपकी लीजिए शरण सोई
जब से मिले सांवरे सुदबुध मैंने खोई।


जय श्री राधेबल्लभ🙏🙏🙏🙏🌸🌸🌸🌸


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

💥💥आया नव प्रभात 💥💥


नव प्रभात लेकर आया रवि,
                लाली पूरब छाई।
चहक   रहे  हैं  डाल  परिंदे,
                हवा चले पुरवाई।


स्वर्णिम किरणें आने को हैं, 
             चलो करें अगवानी।
कोयल स्वागत गीत गा रही,
              मधुर सुनाए वानी।


तम  का  नाश  करेगा सूरज,
                धीरे-धीरे आकर।
आओ उसका स्वागत कर लें, 
         हम भी शीश झुकाकर।


भूलो कल की बातें यारों, 
            गीत खुशी के गाओ।
छोड़ के सारे शिकवे गिले,
            सबको गले लगाओ।


             (राजेंद्र रायपुरी)


डा.नीलम अजमेर

आज का विषय- *प्रभुता*
विधा- *मुक्त*
दिनांक-06-02-2020


  
धारण किये *प्रभुता* प्रभु की
मानव दानव बन रहा
चंद्रगुप्त की बही -लेखन का
हिसाब कर रहा


वाणी-हीनता इस कदर बढ़ने लगी
घोलकर ज़हर शब्दों से ही वार करने लगा


कलयुगी राम कभी,कभी कृष्ण बन रहा
भोले-भाले भक्त बेचारों को
ठग रहा


स्वतंत्रता और संविधान को  रख जेब में
भोली जनता को भड़का देश अपमानित कर रहा


अपने कुकर्म किसी मासूम के मत्थे मड़कर
अपने को सच्चाई का फरिश्ता बता रहा


बनकर कभी राम ,हाथ में अपने कानून लेकर
नाम की आड़ में हवस का अड्डा चला रहा


ओढ़ चुनरिया रामनामी,
नाम रामरहीम का
भक्तजन की भक्ति का मज़ाक उड़ा रहा


        डा.नीलम


इन्दु झुनझुनवाला जैन

एक प्रयास पिरामिड के लिए👏


ये
आँखें 
वे आँखे 
रोती आँखे
कहती आँखे
आँखों ही आँखो मे
कुछ समझती -सी
कुछ समझाती आँखे
बिन कुछ कहे ,ना बोले 
 बुन लेती कहानियाँ आँखे।
ये जो तेरी हमारी आँखें है ना,
मन चाहे तो भी, छुपे ना छुपाए,
कह देती है सब,नीली काली आँखे ।


इन्दु झुनझुनवाला जैन


कैलाश , दुबे , होशंगाबाद

मेरे गुनाहों की सजा मुझे रब न देना ,


वक्त आ जाये गर तो बक्श देना ,


गुनाह कर चुका हूँ मैं भी कई मर्तबा ,


पर गिनना मत सारे के सारे छोड़ देना ,


कैलाश , दुबे ,


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली

 


पनप   रहे   बहु  कंस  अब ,भारत   माँ  है  त्रस्त।
राम   कृष्ण अवतार   फिर , दुश्मन  होगा   पस्त।।१।।


सत्यवीर    मानव   सदा , शान्तिदूत   बस  ध्येय।
मानवता   संकट   जभी , सर्वनाश   खल     हेय।।२।।


परिवर्तन   होगा    बहुत ,सन्  दो  हजार     बीस। 
मानक   होगा   राष्ट्रहित , मिटे   खली  अरि टीस।।३।। 


कर्मपथी    मिहनतकशी , होगा   जन    समुदाय।
राष्ट्र   संग उत्थान   निज , होगा   सबसे    न्याय।।४।।


धन   वैभव   मुस्कान   मुख , फैलेगा जन  आम।
सर्वसुखी   परहित   बने , भारत   हो   अभिराम।।५।।


शिक्षा   होगी   जन सुलभ , निर्भय  नारी  शक्ति।
विज्ञान शोध  जग  श्रेष्ठतर , राष्ट्रभक्ति  अनुरक्ति।।६।।


मान   सनातन   धर्म का , राम लला   अभिषेक।
बने   राममन्दिर  भव्य , बिना  किसी  व्यतिरेक।।७।।


सफल   न  होगा  दहशती , सर्वनाश अरि पाक।
राष्ट्र  द्रोह  गद्दार  सब , अब  होंगे  जल   ख़ाक।।८।।


समरसता   होगी   वतन , बढ़े  आपसी     प्रीत।
सहयोगी   करुणा      दया , सदाचार   नवनीत।।९।।


गूँजेगा   जन   मन   वतन , भारत  माँ जयगान।
झंडा     लहराए      गगन , रहे    तिरंगा   शान।।१०।।


जय    हिन्द    नवरंग  से , रंजित   होगा   देश।
गूँजे   वन्दे    मातरम् , नमो      राष्ट्र      संदेश।।११।।


भेद   मिटेगा   जाति  का , भाषा कौम  विवाद।
शान्ति  प्रगति  सम्मान    यश , फैलेंगे  निर्बाध।।१२।।


भारत  होगा  विश्वगुरु , किसान  ज्ञान  विज्ञान। 
महाशक्ति  उन्नत शिखर , अधिनायक सम्मान।।१३।।


कवि निकुंज आश्वस्त मन , नीति प्रीति समवेत।
संविधान  समरस   अमन , हो  भारत   उपवेत।।१४।।


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नयी दिल्ली


इंदु,अमरोहा

🔥एक आग सी लगी है मन मे अब भी तेरी उन बातों से
नाता है आज भी मेरा कुछ उन साथ मे बीती रातों से



🔥मैं ठहरा हूँ चलता है समय जैसे दो दिन की बात कोई
एक डोर कोई है बंधी हुई तेरी गर्म उन सासों से



🔥आँखे हैं भरी पर रोता नही मैं टूट के जुड़ा दिखाता हूँ
दिल भारी पर है आज भी तो तेरे ही उन अहसासों से



🔥मैं रहा समर्पित तेरे लिए दिल को मेरे कुछ चैन मिला
पर तू बैरी दुनिया जुल्मी खेले सब मिल जज्बातों से



🔥माही न समझ कोई बात नही एक यारी तो पर रहने दे
दामन थोड़ा बचता तो रहे इन चुभने वाले काँटों से


 



इंदु,अमरोहा✒


डा0विद्यासागर मिश्र"सागर" सीतापुर/लखनऊ उ0प्र0

नारी सशक्तीकरण पर मेरा एक और छन्द।
कौन कहता है नारी अबला रही सदैव,
नारियों की शक्ति को है जग पहचानता।
चाहें लक्ष्मीबाई हो चाहें झलकारी बाई,
रानी दुर्गावाती को कौन नहीं जानता।
रानी पद्मा समान यहाँ पर नारियां है,
सारा विश्व नारियों के शौर्य को बखानता।
हाड़ा रानी के समान कोई हुआ ही नही है,
भारतीय नारियों का जग लोहा मानता ।।
रचनाकार 
डा0विद्यासागर मिश्र"सागर"
सीतापुर/लखनऊ
उ0प्र0


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक (स्वरचित) नयी दिल्ली


शीर्षकः 🇮🇳चलें करें मतदान हम🇮🇳
मनचाही  खुशियों  भरा , खिले कुसुम मुस्कान।
महापर्व   जनतंत्र   यह , सभी   करें    मतदान।। 
मत  केवल  अधिकार  नहीं , देना  भी  कर्तव्य। 
करें    सबल  जनतंत्र  को , संविधान  ध्यातव्य।। 
देशभक्ति   पर्याय   यह , समझें  निज  मतदान।
निर्माता   सरकार   का , दें    अपना    अवदान।।
सोच समझ मतदान निज,प्रतिनिधि करें चुनाव।
अवसर निज अधिकार का ,बिना किसी दुर्भाव।।
धीर   वीर    प्रेमी   वतन ,  हो   उदार   इन्सान।
ध्येय प्रगति सह शीलता , प्रतिनिधि  हो  ईमान।।
जन मन गण  का  पर्व  यह , लोकतंत्र का धर्म।
पाँच   वर्ष  में   एक बार ,  अधिकारी  सत्कर्म।। 
क्षेत्र  जाति  भाषा  धरम , नहीं   बँटे   मतदान।
करे   समुन्नत  राष्ट्र  जो ,  अमन  चैन  दे मान।।
फँसें   नहीं   झाँसागिरी  , नेताओं   की  चाल।
दान विवेकी तुला मत , हो  जनता   खुशहाल।।
करें    हर्ष   उत्साह   से , नया   देश   निर्माण।
दें  मत  राष्ट्र  सुपात्र को , करें  प्रजा कल्याण ।। 
चलें   करें  मतदान  हम , है  निकुंज  आह्वान।
राष्ट्रधर्म   सम्मान   निज , प्रजा वतन भगवान।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नयी दिल्ली


रतन राठौड़ मालवीय नगर, जयपुर।

:: अहसास ::
क्यों लगता है,
कभी-कभी...
कोई मुझे चाहता है,
कोई मुझ से,
प्यार करता है...
कोई मुझे अपना-सा
समझता है...
क्यों कोयल कूकी
दिल की...
क्यों बढ़ी धड़कन
दिल की...
न जाने क्यों
अहसास हुआ...
न जाने क्यों
आभास हुआ...
तुम हो
अगर कहीं...
तो आओ न
पल दो पल के लिए
पास पास
तेरे वज़ूद के लिये।


प्रतिभा प्रसाद कुमकुम

(007)          🙏🏻 *प्रतिभा प्रभाती* 🙏🏻
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क्षिति जल पावक गगन समीरा , ऐसे में क्या कहें कबीरा ।
अभिनंदन के अभिनंदन से गूंजा , पावन पुण्य धरा अधीरा।


आज प्रभाती अभिनंदन की , और हमारे सैनिक गण की ।
पावन पुण्य धरा अगम की  , और सनातन सत्य जन गण की।


आज धरा पर धर्म खिला है , नैतिकता ने कर्म किया है ।
सबको कोटि-कोटि वंदन है , भारत भाल अभिनंदन है ।


आज महि ने ओढ़ी चुनरिया , माँ गौरा आशीष मिला ।
गिरि तरुवर और ताल तलैया , सत्य सनातन प्यार खिला ।


वंदन है अभिनंदन है , भारत भाल पे चंदन है ।
आज प्रातः में सबको मेरा , कोटी कोटी अभिनंदन है ।।


 


🌹(सर्वाधिकार सुरक्षित स्वरचित)
      *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
       दिनांक  7.2.2020......


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नूतन लाल साहू

बेटी की बिदाई
मत रो माता,क्यों रोती है
बेटी तो पराया धन होती है
चाहे धनी हो,चाहे हो निर्धन
वो तो अंगना का,तुलसी होती है
दुनिया के विधि को,विधि ने बनाई है
सच्चाई के राहो में,कांटे तो स्वाभाविक है
कहीं पर सुलह है,तो कहीं पर लड़ाई
हर धर,हर महल की यही है कहानी
मत रो माता,क्यों रोती है
बेटी तो पराया,धन होती है
किसी को शुली मिली है तो
किसी को मिली है रजाई
तो किसी को तो सिर्फ
सूखी रोटी ही मिली है
जीवन के हर मोड़ पर
संघर्ष में ही है भलाई
किसी को मिली है,मक्खन मलाई
मत रो माता,क्यों रोती है
बेटी तो पराया धन होती है
याद कर माता, तू भी तो बेटी है
दुल्हन बनकर,पराया घर आई है
कभी अपनी मुस्कुराहट से तो
कभी अपनी आंसुओ की धारा से
परिवार की बगिया को महकाई है
अपने बेटी की,सपनों को भुल मत जाना
साक्षात नहीं तो क्या हुआ
उनके सपनों में कभी कभी आना
अपने कलेजे के टुकड़े को
हर मुश्किल में राह दिखाना
झूठी शान की इस दुनिया में
सच्चाई से चलना सिखाना
मत रो माता, क्यों रोती है
बेटी तो पराया धन होती है
चाहे धनी हो,चाहे हो निर्धन
वो तो अंगना का तुलसी होती है
नूतन लाल साहू


कौशल महंत"कौशल"

,       *जीवन दर्शन भाग !!२३!!*


★★★
आता जब घर में कभी,
            कोई भी त्योहार।
खाता लड्डू माँग कर,
            दो के बदले चार।
दो के बदले चार,
           नहीं फिर भी मन भरता।
छुपकर करता खोज,
           किंतु माता से डरता।
कह कौशल करजोरि,
          सभी का मन सुख पाता।
दबे पाँव रह शांत,
         रसोई में जब आता।
★★★
मिलता बचपन का हमें,
            एक बार दिन चार।
मनुज जनम सुखधाम का,
           यह ही होता सार।
यह ही होता सार,
           नहीं कोई दुख पीड़ा।
रहकर हरपल मस्त,
           करे मनभावन क्रीड़ा।
कह कौशल करजोरि,
            सदा पुष्पों सम खिलता।
बचपन है अनमोल,
            दुबारा कब है मिलता?
★★★
पावन अमोल है अतुल,
           बचपन के कुछ वर्ष।
सोच समझकर देख लो,
           सिर्फ मिला था हर्ष।
सिर्फ मिला था हर्ष,
           वही बचपन था प्यारा।
मिले नहीं क्षण एक,
            लगा दो जो धन सारा।
कह कौशल करजोरि,
            समय था बहुत सुहावन।
बचपन का मनभाव,
           सदा होता है पावन।।
★★★


कौशल महंत"कौशल"
,


कवि शमशेर सिंह जलंधरा टेंपो हांसी ,  हिसार , हरियाणा ।

 


संघर्ष की गुत्थी ,
और उलझ जाती है ,
जब ,
सरलता से सफल हुआ व्यक्ति ,
देता है नसीहत ,
कड़े परिश्रमी , मेहनती इंसान को ,
कड़े परिश्रम की ।
और उसके शब्द , 
दर्शाते हैं ,
खुद को परिपक्व ,
जबकि ,
उसकी सफलता के पीछे ,
होता है ,
पुरखों की मेहनत का नतीजा ,
वरना ,
कड़े परिश्रम का अर्थ ,
शब्दों में नहीं ,
हकीकत में समझता वह भी ,
और मालूम होता ,
उसको भी ,
कि संघर्ष क्या होता है ।


,@9992318583@


कुमार🙏🏼कारनिक*  (छाल, रायगढ़, छग)


  मनहरण घनाक्षरी
         *प्रेम*
         
राहों में मिली  नजर,
  दिल हो गया  अधर,
    ये प्यार का है असर,
      दिल    मे   समाइये।


💗🌹


हो रही मन बोझिल,
  दिल   उथल  पुथल,
   हृदय   तल   मचल,
     खुशी   गीत  गाइये।


🌹❤


प्रेम करो शुद्ध मन,
  नाचे है  अंतर मन,
   साक्षी है नीलगगन
      प्रेम     बरसाइये।


💗🌷


मचे दिल में हिलोर,
  जैसे हवा  करे सोर,
   सागर क्षितिज ओर,
     प्यार के हो  जाइये।


            🙏🏼
::::::::::::::::::::::::::::::::


सुनील कुमार गुप्ता- सहारनपुर

कविता:-
       *"रीति -रिवाज"*
"रीति-रिवाज की बेड़ियों में,
साथी बंध कर -
रह गये हम।
परिवर्तन की दिशा में ,
साथी अब तो-
रूकेगे न कदम।
अच्छे रीति-रिवाजो को,
साथी लेकर चलेगे-
और निभायेगे हम।
रीति रिवाजो में ही छिपी,
गरिमा संबंधों की-
उन्हे बनाये रखेगे हम।
रह रीति रिवाज के पीछे ,
साथी छिपा सत्य-
जीवन में पहचानेगे हम।
रीति रिवाज की बेड़ियों में,
साथी बंध कर -
अब न रहेगे हम।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         07-02-2020


निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी' गोमतीनगर ,लखनऊ

: गज़ल 


तमन्ना बन तुम्हारी मैं गुले गुलशन सी सजती हूँ
समझ पाओ तो प्रिय समझो मैं तुमसे प्यार करती हूँ 


अमावस से भरी राहें सजल करती नयन मेरे
मगर पूनम के चन्दा सी मैं तेरे साथ चलती हूं


कदम थक जायें पर मंज़िल न अपनी भूल जाना तुम अगर देखोगे पलकन से मैं पथ तेरा निरखती हूँ 


नहीं आसान है मुझको भुला पाना मेरे हमदम 
तुम्हारे दिल में देखो मैं ही धड़कन बन धड़कती हूँ 


मेरे पाँवों के काँटों की न करना फ़िक्र तुम ऐसे
मैं अब हर ज़ख्म अपनी ज़िंदगी का हँसकर सहती हूँ


अगर बोली लगे तीखी तो मन को मद्धम मत करना 
अगर देखोगे मुड़ कर तो सदा तेरी ही सुनती हूँ 


छलकती जा रही गागर भरी है जो ये जीवन की 
"निवी" हूँ मैं तुझे केवल तुझे ही दिल में रखती हूं      
         ....


निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
निवास : 4/ 56 ,विवेक खण्ड
            गोमतीनगर ,लखनऊ
मोबाइल नम्बर : 9415108476


मुरारि पचलंगिया

 


गीत
-----
कह देती हैं भीगी पलकें,
दिल  की  सारी  पीर ।।
~~~~~
जब से तुम इस घर में आई,
कभी  न  पाया  चैन ।
दिन कटता है  आहें  भरते,
रोते  कटती  रैन  ।।
देख  रही  मैं  चेहरा  तेरा,
बहुत अधिक गम्भीर ।
कह देती हैं  भीगी पलकें ... ...


चमका करता था यह चेहरा,
आज  नहीं  है  ओज ।
सब कुछ बता रहा है मुखड़ा,
क्या  करनी  है  खोज ।।
देख - देख  हालात  तुम्हारे,
मैं  हूँ  बहुत  अधीर ।
कह  देती हैं भीगी पलकें ... ...


बात मान तू सखी सयानी,
तज दे  ये घर  द्वार ।
ये जीवन अनमोल बहुत है,
कर  तू  इससे प्यार ।।
बदल चुकी है चाल समय की,
बदलेगी  तकदीर ।
कह देती है  भीगी पलकें ... ...
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया


लता प्रासर

*गुलबिया शुभरात्रि*


दिन खिले गुलाब जैसा होए रात गुलाबी 
कांटे जिनकी रक्षा करते देखा उनकी नवाबी
कोमल कोमल पंखुड़ियों सा जीवन धारा
चमक चमक मुखड़ा हुआ आफताबी!
*लता प्रासर*


राकेश कुमार निवास--डालटनगंज, झारखण्ड

    ग़ज़ल
एक छोटा ही सही घर-बार होना चाहिए।
सर छुपाने के लिए अधिकार होना चाहिए।।


बात बिगड़ी बन भी सकती है मगर ये शर्त है,
गलतियों का दिल से ही इकरार होना चाहिए।


बढ़ रही बीमारियाँ हैं हर तरफ अब देश में,
जल्द ही सब रोग का उपचार होना चाहिए।


ज़ेब देती ही नहीं हरगिज़ कभी भी दुश्मनी,
आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए।


काम करना है हमें बन्धुत्व का ही चारसू,
प्यार ही का हर तरफ संचार होना चाहिए।


दिल लगाने के लिए है शर्त बस राकेश यह,
आदमी हो जो मगर दिलदार होना चाहिए।।


 


राकेश कुमार
निवास--डालटनगंज, झारखण्ड
दूरभाष--9431555151
              ~~~


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

...............सरगोशिआं भी अब तो...............


सरगोशिआं  भी  अब  तो  कमाल  कर  रही  है।
आज   के  माहौल  में  ये  धमाल  कर  रही  है।।


जमाने  चले  गए  हैं  अब  सही रास्ते  चलने के;
गलत  रास्ते से सफलता बेमिसाल मिल रही है।।


सही  रास्ते  से तो  आजकल  मिलते  हैं  थपेड़े ;
सही लोगों को अब  समाज बेहाल  कर रही है।।


उलट  गए हैं  आजकल  दुनियां  के सारे तरीके;
परिस्थितियां सज्जनों को पाहमाल कर रही है।।


किसे  दोष   दें  हम  इन  परेशानियों  के  लिए ;
परेशानियां  ही अब  हमसे सवाल  कर रही है।।


हम तो  चले थे  राह में  अच्छे  इरादे  से  मगर ;
सरगोशिआं  ही  हमारा  बुरा हाल  कर रही है।।


फिर  कुछ तो उम्मीद बचा रखी हमने"आनंद" ;
कमसेकम उम्मीद तो  इस्तकबाल कर रही है।।


----------------- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


सन्दीप सरस-9140098712

✍ *बुजुर्गों की पीड़ा से सीधा संवाद-प्रयास कैसा है, प्रतिक्रिया अपेक्षित*✍
रोज रोज का झगड़ा झंझट ठीक नहीं,
मुन्ने की अम्मा! घर वापस लौट चलो। 


भले बहू की लाख हिकारत सह लेते,
बेटे की मजबूरी सही नहीं जाती।
जब से हम उसके करीब आए, तब से-
दोनों में यह दूरी, सही नहीं जाती।


बेटे को दुविधा में डालें, ठीक नहीं,
कष्ट उसे होगा, पर वापस लौट चलो।1।


जीवन में हमने सम्बन्ध बनाये कब,
अवसरवादी सुविधा के अनुपातों में।
हम रिश्तो की गर्माहट के आदी हैं,
लोग लगे हैं घातों में प्रतिघातों में।


अनचाहे रिश्तों को ढोना ठीक नहीं,
जीने का है अवसर, वापस लौट चलो।2।


गाँव गली की भाषा के हम विज्ञानी,
महानगर के अंकगणित से हार गए।
शून्य शून्य का हाय गुणनफल शून्य रहा,
जाने क्यों हम छोंड़ गाँव घर द्वार गए।


आज हमारा समय बदलते ही उनके,
बदल गए हैं तेवर, वापस लौट चलो।3।


🔴सन्दीप सरस-9140098712
~~~~~~~~~~~~~


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