एस के कपूर श्री हंस* *बरेली।*

*हम खुद ही बिछाते हैं काँटे*
*अपनी राह में।।।।मुक्तक।।*


क्यों दिल में  इतनी  नफरत
और गुबार पाले  है।


आँखों  में  लिये   घूमता  तू 
ये  कैसे   जाले  है।।


जीवन का  सफर  तय होता
अमन ओ  सकूं से।


तू खुद ही क्यों बना रहा पांव
अपने  में  छाले है।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
*मोबाइल*        9897071046
                   8218685464


निशा"अतुल्य"

*घरौंदा*
9/2/ 2020


मैं स्त्री 
बहुत कुछ संजोती हूँ खुद में
न जाने कितनी यादों के घरौंदे 
मेरे सीने में बने हैं ।
न जाने कितनों को पनहां देते हैं।
अक्सर सुना है मैंने 
की बाबुल के लिए पराई बेटी
पर अनुभव नही हुआ कभी
फिर बालम के घर 
दूसरे घर से आई नही सुना कभी।
हां अक़्सर लोगों से सुना कि 
स्त्री तेरा कोई घरौंदा ना बना
पर मैं करती हूं विरोध 
ऐसी भावनाओं का 
क्यों 
क्योंकि स्त्री वो सकारात्मक ऊर्जा है
जहां भी बैठी
पूरा घर उसके चारों ओर घूमता है।
और मेरा घरौंदा वहीं बन जाता है 
जहां मेरा कदम पड़ता है 
मैं स्त्री 
जंगल में भी मंगल कर 
प्राण फूँक देती हूं
उजड़े हुए दयारों में भी
स्पंदन भरती हूँ।
क्या है कोई घरौंदा मेरे बिना
जो लगे जीवंत 
महकता गुनगुनाता 
अपने मनोभाव जताता ।
हर घरौंदा जीवंत होता है 
माँ की उपस्थिति से 
हर नारी एक मातृत्व ही है 
हर रिश्ता निभाती माँ ही लगती 
चाहे बहन,भाभी, बेटी किसी भी रिश्ते में बंधी ।
बहार भी नही आती उस बिन 
जिस घर में स्त्री नही मुस्काती 
वो घर ईंट पत्थर के दीवारों का नक्शा भर है 
बिन स्त्री घरौंदा नही बन पाता ।
स्त्री की उपस्थिति जहां हो जाती
बहार गुंजों में खिल जाती
हर दीवार स्नेह से महक जाती 
हर वो जगह घरौंदा बन जाती ।
तो कभी न कहना नारी कि
मेरा कोई घर नही 
तेरा वजूद ही तेरे अपने परायों का घरौंदा हैं
जिसमें तूने ना जाने क्या क्या सजा रखा है 
स्त्री तू ख़ुद में प्रभु की बनाई वो कृति है
जो सृष्टि चलाने को बनी है
खुद में ही तू सम्पूर्ण घरौंदा है।


निशा"अतुल्य"


कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे करूणानिधान दया करो
**********************
हे करूणानिधान दया करो
अपनी कृपा बनाए रखें
हम अज्ञानी  तेरी शरण में
हमें सही राह बताना प्रभु।


ये जीवन तुम्ही ने दिया है
राह भी तुम्हें बताओ प्रभु
हो  गई है भूल कोई तो
राह सही बताओ प्रभु ।


कभी किसी बुरा न करुं
दया भाव हो हृदय में
मस्तक तुम्हारे चरणों में हो
ऐसी बुद्धि दे दो प्रभु।


हे करूणानिधान दया करो
जग में न कोई किसी जीव को
पीड़ा कभी न पहुंचाएं प्रभु
ऐसी सब की बुद्धि कर दो।
**************************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


प्रतिभा प्रसाद कुमकुम

,            *प्रतिभा प्रभाती भाग //२//* 
-------------------------------------------------------------------------
दीपों सी जगमग आलोकित , आज प्रभाती आई  ।
खुशियाँ लाई संग संपदा , घर की तमस हटाई  ।
पटल के सारे मित्रों को भी , वंदन नमन कहाई ।
नेह नमन के साथ मैं कहती  , गंध बाग की लाई ।
पावन परम सुगम्य रोशनी ,  दीपों  ने  फैलाई ।
नेह नमन  स्वीकार करें अब ,  पावन परम प्रभाती  ।
पुण्य नेह सौगातें लाई  , धरम सनातन थाती   ।।



🌷 प्रतिभा प्रसाद कुमकुम 🙏🏻🙏🏻🙏🏻


गंगा प्रसाद पाण्डेय भावुक

जिन्होंने जानें लुटायीं 
यहाँ गरियाये गये।


बटवारे के जिम्मेदार
नोटों पे छपाये गये।


आजादी के दीवाने
फांसी पे चढ़ गये।


जयचन्दों की चांदी
मालामाल हो गये।


शहीदों के परिवार
देखो तंगहाल हो गये।


भाई चारे की आड़
हम चारा बन गये।


देश भक्त सारे
छुहारा बन गये।


देश द्रोह उगल के
यदि दिल्ली जीत गये।


समझो कब्र के सारे
हत्यारे जग गये।।।


भावुक


नमस्ते जयपुर से-- डॉ निशा माथुर🙏🍫 हैप्पी चॉकलेट डे

आज कुछ मीठा हो जाये तो चॉकलेट के संग हो जाये।
इस वैलेंटाइन पर मस्त फागुन की भी भांग मिलाएं ।
कुछ आप खाएं, कुछ खिलाएं और कुछ हम खायें।
मौसम का दस्तूर हुआ है, अपनों संग मस्त मलंग हो जाएं।
..................................
तो आज इस चोकलेट डे पर कुछ न कुछ तो बनता है
अपने अपनों को गिफ्ट में एक चॉकलेट तो बनता  है।


आप आज अपने अपनों को जरूर से चॉकलेट तो गिफ्ट करेंगे ही इसी शुभकामनाओं के साथ🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🍫🍫🍫🍫💐💐💐💐🍫🍫🍫🍫
नमस्ते जयपुर से-- डॉ निशा माथुर🙏🍫 हैप्पी चॉकलेट डे🍫


अतुल मिश्र गायत्रीनगर अमेठी

    [विस्मृत हुआ कर्तव्य]


लाचार है मात-पिता,
पुत्र नही श्रवण।
हर घर की है ये दशा,
विस्मृत हुआ कर्तव्य ।।


 मन संकुचित हो रहा,
स्वयं पुत्र रत्न।
निष्ठुर हो गया या,
विस्मृत हुआ कर्तव्य ।।


मिला हुआ वो जख्म,
फूटा हुआ है अंश।
कर्म प्रताप का व्यय यह, 
विस्मृत हुआ कर्तव्य ।।


  मातृ-पितृ की ममता का,
  हो रहा विध्वंस।
  दुनिया की यह बनीं प्रथा, 
  विस्मृत हुआ कर्तव्य ।। 


उम्मीद टूटी, भ्रम झूठा, 
हार गया हर जत्न। 
मानवता पर अभिशाप यह, 
विस्मृत हुआ कर्तव्य ।। 


............ ATUL MISHRA................


चंचल पाण्डेय 'चरित्र' बिहार

*•••••••••••सुप्रभातम्•••••••••••*
                *छंद-दोहा*
सतत सत्य चित साधना, अंतस  रख प्रभु राम|
नियत लक्ष्य कर बढ़ चलो, हिय कर के निष्काम||
सकल शुभग शुभ सुयश रहे, शुभकृत् शुभद सुकर्म|
शुभा शुभान्वित शुभ करें, छाँड़े सकल बिकर्म||
नवल नयन नव चेतना, नव ऊर्जा नव सार|
दिव्य दिवाकर रश्मियाँ, करें शक्ति संचार||
                    चंचल पाण्डेय 'चरित्र'


धीरेन्द्र द्विवेदी बभनियांव लार रोड देवरिया

प्रणाम आदरणीय
काव्य रंगोली पत्रिका के अप्रैल 2020 अंक हेतु एक रचना प्रेषित है। 



मन में कोई बात नहीं है फिर भी रोता गाता है ।
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है ।।


भटका भटका राहें खोजे
मंजिल जाने मिले कभी। 
प्रीत निभाने के चक्कर में
मन हारा है सदी सदी। 


खोना पाना रीत बनी है
मन खुद को भरमाता है।। 
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है।। 1


कहते हैं चंचल होता है
रुकता थमता भला कहाँ? 
तितली सा उड़ता रहता है
वन उपवन में यहाँ वहाँ। 


सूखी धरती में सरिता हो
बाण वही चलवाता है।। 
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है।।2


मन हारा है मन जीता है
मन में सारे रोग भरे।
मन में जादू टोने बसते
मन में जोग कुजोग भरे।।


और कभी आंखों से जी भर देख स्वयं बहलाता है।
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है।। 3


एक सहारा मन है मेरा
एक सहारा हैं बातें। 
दिन में तुझको जपता रहता
करवट में कटती रातें।


पर मन के मनके गिन गिन के मन में आश जगाता है।
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है।। 4


धीरेन्द्र द्विवेदी
ग्राम बभनियांव
पोस्ट लार रोड
जनपद देवरिया
पिन 274505
ई मेल dwivedidheerendra@gmail.com


अमित गुप्ता "साहिल"

"वो कहती है कि अब मेरी मोहब्बत में वो शिद्दत नहीं है.. 


फिर उसके हाथों की मेहंदी का रंग इतना गहरा क्यों है..?? 


वो सोच रही है कि खुश रह लेगी मुझसे दूर जा कर.. 


वो बस इतना बता दे कि फिर मायूस उसका चेहरा क्यों है..??"


🙏 *'सुप्रभात्'* 🙏


अमित *'साहिल'* गुप्ता


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


बलराम सिंह यादव अध्यात्म शिक्षक पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कालेज खमरिया पण्डित राम नाम की महिमा

भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ।
राम नाम बिनु सोह न सोऊ।।
बिधुबदनी सब भाँति सँवारी।
सोह न बसन बिना बर नारी।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जो श्रेष्ठ कवि द्वारा रचित बड़ी अनूठी कविता है वह भी राम नाम के बिना शोभा नही पाती।जैसे चन्द्रमा के समान मुख वाली सुन्दर स्त्री सब प्रकार से सुसज्जित होने पर भी वस्त्र के बिना शोभनीय नहीं हो सकती।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  सुन्दरकाण्ड के एक प्रसङ्ग में श्रीहनुमानजी लंकेश्वर रावण को यही बात समझाते हुए कहते हैं कि राम नाम के बिना वाणी शोभा नहीं पाती।अतः मद मोह को छोड़ कर विचारकर देखो।हे देवगणों के शत्रु!सभी आभूषणों से सुसज्जित सुन्दर नारी भी बिना वस्त्रों के अर्थात नग्न होकर शोभा नहीं पा सकती है।यथा,,,
राम नाम बिनु गिरा न सोहा।
देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।।
बसन हीन नहिं सोह सुरारी।
सब भूषन भूषित बर नारी।।
  इन चौपाइयों के माध्यम से गो0जी यह स्पष्ट करते हैं कि जैसे शास्त्र में नग्न स्त्री को देखना वर्जित और पाप कहा गया है भले ही सोलह श्रंगार किये हो वैसे ही रामनाम से हीन कविता को देखना,कहना और सुनना भी पाप है।किसी कवि ने कहा है--
जिस भजन में राम का नाम न हो उस भजन को गाना न चहिये।
 हिन्दी के मूर्धन्य कवि केशवदास जी ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रँथ रामचन्द्रिका में श्रीहनुमानजी व रावण के सम्वाद में लगभग यही बात कही है।
  अतः निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि काव्य के समस्त गुणों से परिपूर्ण कविता प्रभु के नाम के गुणगान के बिना सुशोभित नहीं हो सकती है और प्रभु के नाम से युक्त कविता सदैव प्रशंसनीय ही होती है, भले ही उसमें काव्यगत विशेषताएं कम हों क्योंकि साधुजन प्रभु के नाम से युक्त काव्य का ही श्रवण, गान और कीर्तन करते रहते हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी

शुभ प्रातः -


हँसने से ग़म दूर हो  जाते हैं।
अपनेऔर करीब हो जाते हैं।


--देवानंद साहा"आनंदअमरपुरी"


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
        *"मानव"*
"कर अपमान अपनों का यहाँ,
वो पाषणो को पूजते।
ऐसे मानव जग में तो फिर, 
पाषण हृदय कहलाते।।
मानवता का मोल जगत में,
कहाँ- पहचान वो पाते?
मानव हो कर भी वो तो फिर,
मानवता को लज्ज़ाते।।
कर्मगति जग में उन्हे पल पल,
क्या-क्या-रंग दिखाती?
अपनों को बेगाना वो तो ,
यहाँ पल में बना जाती।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         09-02-2020


राजेंद्र रायपुरी

😄  - फिर वही गंदी सी झाड़ू -  😄


झाड़ू फिर से आ रही, सुना यही है यार।


चुनकर  सारे  आ रहे, जितने थे बटमार।


जितने थे बटमार, न उनकी हुई  सफाई।


तभी रहे  हैं  बाँट, चौक में  खड़े मिठाई।


हुआ वही फिर यार, हुए नहिं दूर लफाड़ू।


फिर से लगे न हाथ,  वही गंदी सी झाड़ू।


               ।।राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

युगलछवि के दर्शन से करो दिन की शुरुआत
मंगलमय हो जिन्दगी होय सुख की बरसात


दरस परस सब पावन मनभावन कृष्ण नाम
श्रीराधे जी की कृपा ये जीवन बने अभिराम


जग के सब अघ मिटें मिले जीवन का लाभ
राधा कृष्ण सुमरन से यहां जग में बढ़ें प्रभाव


सत्य हृदय की धड़कन श्री युगलछवि कौ रूप
मोय चाहत नहीं धन की हिय बसे युगलरूप।


श्रीकृष्णाय गोपालाय नमो नमः🌸🌸🌸🌸🌸🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कालिका प्रसाद सेमवाल

जीवन ही अब भार मुझे
*******************
मेरा अपना इस जग में ,
आज़ अगर प्रिय होता कोई।


मैंने प्यार किया जीवन में,
जीवन ही अब भार मुझे।
रख दूं पैर कहां अब संगिनी,
मिल जाए आधार मुझे।
दुनिया की इस दुनियादारी,
करती है लाचार मुझे।
भाव भरे उर से चल पड़ता,
मिलता क्या उपहार मुझे।
स्वप्न किसी के आज उजाडूं,
इसका क्या अधिकार मुझे।
मरना -जीना जीवन है,
फिर छलता क्यों संसार मुझे।


विरह विकल जब होता मन,
सेज सजाकर होता कोई।


विकल, बेबसी, लाचारी है,
बाँध रहा दुख भार मुझे।
किस ओर चलूं ले नैया,
अब सारा जग मंजधार मुझे।
अपना कोई आज हितैषी,
देता अब पुचकार मुझे।
सहला देता मस्तक फिर यह,
सजा चिता अंगार मुझे।
सारा जीवन बीत रहा यों,
करते ही मनुहार मुझे।
पागल नहीं अबोध अरे,
फिर सहना क्या दुत्कार मुझे।


व्यथा विकल भर जाता मन,
पास खड़ा तब रोता कोई।


फूलों से नफ़रत सी लगती,
कांटों से है प्यार मुझे।
देख चुका हूं शीतलता को,
प्रिय लगता है अंगार मुझे।
दुख के शैल उमड़ते आयें,
सुख की क्या परवाह मुझे।
भीषण हाहाकार मचे जो,
आ न सकेगी आह मुझे।
नहीं हितैषी कोई जग में,
यही मिली है हार मुझे।
ढूँढ चुका हूँ जी का कोना,
किन्तु मिला क्या प्यार मुझे।


पग के छाले दर्द उभरते,
आँसू से भर धोता कोई।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


संजय शुक्ल कोलकाता

हिन्दुस्तान हमारा है।।


अब बीर जवानों गौर करो दुश्मन ने फिर ललकारा है।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक ये हिन्दुस्तान हमारा है ।।


जहाँ मस्तक इसका हिमालय और पावों को धोता सागर है।।
जहाँ किसानो की बस्ती और पनघट जल की गागर है।
लहरों मे डूबे ये सागर हमको भी खुद से प्यारा है।।


जहाँ प्यार मे डूबी ईद यहाँ और दीपों की दिवाली हो।
जहाँ प्रकाश पर्व हो सिक्खों का और रंग भरी ये होली हो।
जहाँ मिल करके सब रहते है वो जन्नत का इक द्वारा है।।


जिसकी मिट्टी मे कृष्ण पले और घुटने चलते राम यहाँ ।
ये गंगा जमुना की धरती मेरे मन का अभिराम यहाँ।
आजाद भगत लक्ष्मी बाई और सुभाष का गूजे नारा है।।


✍🏻रचनाकार:  संजय शुक्ल ✍🏻कोलकाता । मोबाइल नं: 9432120670


संजय शुक्ल कोलकाता

गांव की मिट्टी 
-------------------
सबा बन बन के महकेगी हमारे गाँव की मिट्टी।
हर इक आंगन से महकेगी हमारे गाँव की मिट्टी।।


जहाँ अलगू की चौपलें और काका की फटकारें ।
रहट के चाल पे थिरकेगी मेरे गाँव की मिट्टी।।


चली आयेगी धानी ओढ़ चुनरिया यहाँ सरसों।
छटा बन बन के बिखरेगी हमारे गाँव की मिट्टी ।।


जहाँ पनघट की गागर पे लिखा है नाम राधा का।
बड़ी बन ठन के निकलेगी हमारे गाँव की मिट्टी।।


इसी मिट्टी मे घुटनों पे चले श्री राम और कान्हा।
नहा गंगा में संवरेगी हमारे गाँव की मिट्टी ।।



सर्वाधिकार सुरक्षित-रचनाकार:
✍🏻 संजय शुक्ल ✍🏻 कोलकाता
 मोबाइल नं:9432120670


तनुज गोयल टोहाना                                                            नेहरू मेमोरियल विधि महाविद्यालय हनुमानगढ़,राजस्थान    

दिल में बहुत सवाल है
ROSE DAY SPECIAL
लाल-लाल गुलाब ने                                  कर दिया हलाल है,
फिर भी मनाते शौक से इसे
दिल में बहुत सवाल है....
- लाल रंग है प्रतीक प्रेम का
ऐसा सुनने को अक्सर मिलता है,
तन्हा रहता है मन जिनका
दिल उनका कहाँ लगता है।       
- रूठे लोग मनाने का
यही तो एक बहाना है,
वर्ना मिलने मिलाने का
यहां न कोई ठिकाना है।                             रोज़ डे मनाना है                                       तो देश को दिल से हटाना है,                      प्यार मोहब्बत का पैगाम फैलाकर              विश्व शांत बनाना है - विश्व शांति बनाना है।। लाल-लाल गुलाब ने                                  कर दिया हलाल है,
फिर भी मनाते शौक से इसे
दिल में बहुत सवाल है..


..# *तनुज की कलम से* Happy Rose Day😊


कवि सिद्धार्थ अर्जुन           छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय

,,,,,,,  "टिकता नहीं घमण्ड" ,,,,,,


इंसान बोल तेरा ये कैसा फ़ितूर है,
टिकता नहीं घमण्ड, तू क्यों इसमें चूर है..


कागज़ पे हासियां बनाके क्या मिला बता?
नफ़रत की वादियाँ बसा के क्या मिला बता?
दलदल में धँसता जा रहा ये कोहिनूर है,
टिकता नही घमण्ड ,तू क्यों इसमें चूर है........


चन्दा बनाया जैसे काली रैन के लिये,
रब ने बनाया तुझको,अम्न-चैन के लिये,
क्यों अम्न-चैन से तू आज कोसों दूर है?
टिकता नहीं घमण्ड,तू क्यों इसमें चूर है....


ये ऊँच-नीच छोड़ दो, ये ओछा ऐब है,
ये जात-पात तो ख़ुदा के संग फ़रेब हैं,
तू झाँक आज,तुझमें,नेकियों का नूर है,
टिकता नहीं घमण्ड, तू क्यों इसमें चूर है......


इंसान बोल तेरा ये कैसा फ़ितूर है?
टिकता नहीं घमण्ड, तू क्यों इसमें चूर है...?


                 कवि सिद्धार्थ अर्जुन
          छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय
                   08/02/2020


किशोर कुमार कर्ण  पटना बिहार

~~ वसंत का खुमार ~~


ऐसा मुख जो स्वप्न में देखा
गगन से उतरी धरा पर देखा
नख-शिखा से अद्भुत लगती
स्वप्न लोक की परी सी लगती


मुख आभा पर किरणें पड़ती 
स्वर्ण अनूठी चमक सी लगती 
पतली गरदन सुराही जैसी 
मृगनयनी सी नैनन उसकी


है वसंत का, खुमार है उस पर
माघ महिने का उभार है उन पर 
पोर-पोर आज ॠतुराज बना है
मंद-मुस्कान में राज छूपा है


भौहें जैसे कमान है साधे
अधर है, पुष्प, कली आधे-आधे
मन-चंचल, चितवन नभ को भागे
मुख-मंडल उर्वशी से लागे आगे


-किशोर कुमार कर्ण 
पटना बिहार


कैलाश , दुबे होशंगाबाद

हर किसी से प्यार का इजहार मत करना ,


बिन सोचे समझे बेसुमार मत करना ,


बस एक मसबरा है मेरा आपके लिए ,


गुलाब मिले न मिले ढूँढने में वक्त खराब मत करना ,


कैलाश , दुबे


डा.नीलम.अजमेर

*चित्र की महक*
---------------------------
बड़े दिनों के बाद
किसी बिसरी खुश्बू का 
अहसास आया
दरवाजे पर जब 
डाकिया बाबू आया


पाँवों में शर्म की बेड़ियों ने
दहलीज पर रोक दिया
मन प्रफुल्लित, तन शिथिल था/ थामने को मेरे दोस्त का साया मेरे साथ था


शिद्दत से वो मोगरे की
महक में डूबा खत पढ़ता रहा
हर शब्द से प्यार का
रस छलकता रहा


आगाज जिस खूबसूरती से
बयां हुआ
रुआं रुआं मेरा प्रेम- रस में
भीगता रहा


सुध न रही गात की कुछ
हृदय झंकृत होता रहा
अंजाम तक आते -आते
खत के डाकिया मुस्करा गया


बड़े ही प्यार से वो
मेरी प्रिया ,बावल़ी
कह गया ।


         डा.नीलम.अजमेर


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी

...........बेगाना भंवरा...........


गुन गुन करता रहता है भंवरा ।
बाग में उड़ता रहता है भंवरा।।


एक फूल से लेकर हर फूल पर;
सदा मंडराता रहता  है भंवरा।।


बाग में सुंदर,सुगंधित फूलों का;
पराग  चूसता  रहता है भंवरा।।


बाग की कलियां देख मुस्काती;
फूल खिलाता रहता है भंवरा।।


फूलों को जब है कोई ले जाता;
बेचैन दिखता रहता  है भंवरा।।


नादान,मेहमान,अंजान,बेजान;
खिताब पाता रहता  है भंवरा।।


इससे हम बहुत सिखते"आनंद"
कर्तव्य निभाता रहता है भंवरा।


- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

.........चाहा है तुमको........


यूं ही नहीं   चाहा है तुमको ।
यूं ही नहीं सराहा है तुमको।।


मेरे दिल  के करीब  हो तुम ;
इसलिए  मनाया है  तुमको।।


बगैर  तेरे  मैं कुछ भी  नहीं ;
यह बात  बताया है तुमको।।


यूं तो  मिले थे  कई राह में ;
रब ने  मिलाया  है  तुमको।।


दोनों जीवन भर  रहें साथ ;
एहसास कराया है तुमको।।


सरगोशी पर ध्यान मत दो ;
कभी  फुटाया  है   तुमको।।


ये तो इकरार करो"आनंद";
कभी न रूठाया है तुमको।।


- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


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