एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।।।।बरेली।

*तब नाम तेरा कुछ खास*
*होगा।।।।।।।।।।।मुक्तक*


जान लो   कि  जब  दिल 
तुम्हारा साफ होगा।


मान लो   फिर  ये  सबके
आस   पास  होगा।।


तेरे   किरदार  की  अलग
सी  तारीफ    होगी।


सबकी जुबां पर नाम तेरा
कुछ    खास  होगा।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।।।।बरेली।।।*
मोबाइल 9897071046
             8218685464


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*आज अहम में मरा जा रहा है*
*आदमी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।*


अहम   के  भाव से  आज  भरा
जा रहा  है आदमी।


प्रेम के अभाव   से   आज   डरा
जा  रहा  है आदमी।।


मेरा किरदार तो तेरे  क़िरदार से
ज्यादा     बेहतर  है ।


ईर्ष्या   के दुर्भाव  से  आज  मरा
जा रहा  है   आदमी।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*


मोब  9897071046।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।।।।बरेली

*विविध हाइकु।।।।।।।।।*


प्यार की बात
प्रगाढ़    बनें   रिश्ते
और जज्बात


प्यासा सावन
प्रेम   बिन   अधूरा
ये   तन   मन


लम्बी जुबान
जैसे तीर कमान
काम तमाम


हवा का रुख
बदलता      रहता
दुःख ओ सुख



थकता   मन
तो समझ लो तुम 
कि थका तन


यह सफर
मन से मन तक
लम्बी डगर



तरफ दारी
नहीं ईमानदारी
हो वफादारी



*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।।बरेली*
मो।   9897071046
         8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।।।।बरेली

*तब नाम तेरा कुछ खास*
*होगा।।।।।।।।।।।मुक्तक*


जान लो   कि  जब  दिल 
तुम्हारा साफ होगा।


मान लो   फिर  ये  सबके
आस   पास  होगा।।


तेरे   किरदार  की  अलग
सी  तारीफ    होगी।


सबकी जुबां पर नाम तेरा
कुछ    खास  होगा।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।।।।बरेली।।।*
मोबाइल 9897071046
             8218685464


सुनीता असीम

बेसबब ज़िन्दगी.. गुजारी है।
बस तुम्हारी तलाश जारी है।
***
है नशे में सभी जमाना .अब।
किस तरह की रही ख़ुमारी है।
***
क्यूँ उदासी भरे हुए .तुम हो।
जान मेरी रही .....तुम्हारी है।
***
होश कुछ हैं उड़े हुए ......मेरे।
मस्त आँखों की प्यास तारी है।
***
चढ़ गई जब दिमाग पर जमकर।
फिर हुआ इक गिलास भारी है।
***
सुनीता असीम
११/२/२०२०


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*किस्मत नहीं, कर्म की बात करो।*
*मुक्तक*


हसरतें  जरूर   पालिये  पर
वो बेहिसाब  न हों।


काम  करो  हकीकत  में पर
खाली ख्वाब न हों।।


भाग्य   नहीं  बस    कर्म ही
होता     है  महान ।


हो बात ऊपर उठने की  पर
इरादे खराब न हों ।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मोबाइल       9897071046
                   8218685464


मध्य प्रदेश महिलाओं हेतु नारी रत्न सम्मान 2020

*नारी रत्न सम्मान 2020 केवल संघर्षरत एवम प्रगति शील महिलाएं पूरे विश्व भर में कही की भी हो* अपनी प्रोफ़ाइल कार्य उपलब्धियां भेजे सम्मान हेतु तथा आप *मध्यप्रदेश💐से हो तो अपना जीवन परिचय भेजिये प्रथम अंक "काव्य रँगोली भारत की संघर्षरत एवम प्रयत्नशील महिलाएं मध्यप्रदेश भाग 1" सशुल्क)*
महिला दिवस पर खण्डवा  मप्र में आयोजित कार्यक्रम में 
इस ग्रन्थ का वीमोचन प्रस्तावित है अपना परिचय प्रकाशित करवाना हो तो 15 फरवरी तक भेज सकती है।सम्मान हेतु भी 15 फरवरी तक बायोडाटा भेजेईये प्रूफ सहित।
आशुकवि नीरज अवस्थी काव्यरंगोली हिंदी पत्रिका सम्पादक एवम प्रमुख  श्याम सौभाग्य फाउंडेशन रजि0
9919256950


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी

सुप्रभात:-


लोग किसी की प्रयासों को  नही गिनते।
सिर्फ उनकी सफलताओं को ही गिनते।


-----देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
          *"सहारा"*
"सोच बन गई फिर जग में,
जीवन का एक सहारा।
सोचे न सोचे फिर यहाँ,
इससे ही तो वो हारा।।
हार ही में उसकी यहाँ,
मिले जीत का ईशारा।
समझे ना समझे उसको,
साथी किस्मत का मारा।।
अनचाही चाह संग फिर,
जो फिरता मारा-मारा।
भटकनो में संग भटके,
कौन-बनता फिर सहारा?"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः            सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          11-02-2020


राजेंद्र रायपुरी

🤣🤣 दिल्ली चुनाव,एक झलक 🤣🤣


दिल की धड़कन बढ़ गयी,
                     सबकी देखो आज।
जाने किसका सिर झुके,
                  किसके सिर हो ताज।


कुर्सी  ख़ातिर  देखिए, 
                       टपक रही है लार।
सबकी चाहत है यही, 
                      बने  मेरी  सरकार।


ढोल-ढमाके सब लिए, 
                        बैठे    हैं   तैयार।
अंदर-अंदर डर रहे, 
                     हार  न  जाएँ  यार।


हम  ही  तीरंदाज  हैं, 
                     खूब  बजाया  गाल।
लुटिया डूब गयी अगर,
                   होगा फिर क्या हाल।


दिल्ली में बैठे मगर,
                     दिल्ली  लगती  दूर।
जाने किसे वरण करे, 
                      जन्नत  की  ये  हूर।


भले किसी की जीत हो,
                  और  किसी  की हार।
लोकतंत्र   हारे   नहीं, 
                       चाह  हमारी  यार।


              ।।राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

कैसे भूलें तोय सांवरे
रोम रोम में तुमही समाये
छोड़ के सारे जग को
एक तुमही हमारे मन भाये


हुआ कृष्णमय जीवन
तुम्ही बने हृदय की धड़कन
शाम सवेरे मेरे कान्हा
तेरे नाम की रहती पुलकन


अपने रंग में रंगों कृष्ण
लगे श्यामल सारा ही जहान
तुच्छ जीव के आश्रयदाता
अपना ये जीवन बने महान।


श्री माधवाय नमो नमः🌸🌸🌸🌸🌸🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


ममता कानुनगो इंदौर

हायकू
५+७+५
सुनो कान्हा,
मेरे अंतर्मन में,
रहते तुम।
**********
मनमोहन,
सांवली सूरतिया,
मन बसिया।
************
मैं जाऊं वारी,
चितवन पे तोरी,
बंसी माधुरी।
****"*********
डाली कदंब,
किये चोरी वसन,
गोपीहरन।
***************
राधारमण,
रास रचाए कृष्णा,
मनभावन।
***************
श्यामाचरण,
कालिया मरदन,
मधुसूदन।
*****************
कंस दमन,
गीता उपदेशक,
धर्मावतार।
*****"************
ममता कानुनगो इंदौर


राधा चौधरी

टिमटिमाते -तारे
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
न जाने कौन है ,
जो आसमा पे बिखेर दिया
न जाने कौन है,
जो सबसे से पहले समेट लिया,
एक भी दिन न भूलें,
प्रति दिन ये प्रक्रिया जारी है,
एक भी तारे ,
न हुए इधर-उधर,
एक भी तारे गिरे नहीं,
देखूं जरा उलट -पलट
न जाने कौन.............पे बिखेर दिया।


सावन भूलें न भादों,
हर दिन ये प्रक्रिया जारी है,
शाम होते ही बिखेर देना,
सुबह से पहले समेट लेना,
एक भी तारे कम न
एक भी ज्यादा,
उल्टा प्लेट बिखेर दिया,
धिमी गति में घुमा दिया,
शाम था इधर तो ,
सुबह चला गया उधर,
न जाने कौन................पे बिखेर दिया।।


वारिश में भीगता रहता,
फिर भी खंडा वहीं पर,
कभी आंख पोछता,
‌कभी आंख मिचलाता,
कभी टिमटिमाता कभी चमकता,
फिर भी खड़ा वही पर,
बादलों के टकराव से ,
डर के सहम जाता,
बिजली की चमक से,
कस के आंखे बन्द कर लेता,
न जाने कौन................पे बिखेर देता।


आसमान पर पानी के,
धब्बे होते जगह-जगह पर,
मानो मुंह धो लेता वहीं पर,
थोड़ी बैठ लेता वहीं पर,
पानी के धब्बों के कारण,
कम दिखते जमी पर,
 पर होते उतने ही है,
जितना बिखेरा वहीं पर,
लूक छिप करने का मजा ,
सावन भादो में आता है,
टिमटिमाते तारों को गिनना ,
कितना मज़ा आता है,
न जाने कौन.....................पे बिखेर देता।


पूस माघ के महीनों में,
कितने सुंदर दिखते हैं तारें,
स्वच्छ आकाश पर,
कहीं धब्बों का न निशान,
सारी रौशनी ठंड में ,
उड़ेल देते हैं तारे,
प्रचंड़ राक्षस के आक्रमण,
 से भी शांत डिगे रहते हैं तारे,
न कुछ ओढ़े न कुछ पहने 
खाली बदन शैर करते हैं तारे,
न जाने कौन ‌‌........................पे बिखेर दिया।
बड़े बुजुर्ग कह गए
                           बच्चों को ठंड नहीं लगती,
सही भी है, कितना पहनाव कपड़े
                          उतार देते हैं बच्चें
मां भी दौड़ती रहती 
                        अपने बच्चों के पिछे -पिछे,
चंदा मां भी दौड़ती है ,
                            तारों के पिछे -पिछे,
रात भर चलते हैं तारे
                         दिन में थक के सो जाते हैं,
न जाने  कौन..................…....बिखेर दिया।
��


लता प्रासर पटना बिहार

*माघी पूर्णिमा का स्वागत*


सुनो जरा सब ध्यान से यह किसकी परवाज़ है
आवाज मिट्टी की है या
मिट्टी की आवाज़ है
कंगूरे पर बैठ परिंदा टांय टांय क्यों करता है
उसको भी अपने उपर देखो कितना नाज है
आवाज मिट्टी की है या
मिट्टी की आवाज़ है
मौसम को पहचाने परिंदा रंगों पर इतराता है
खुशबू उसके कण कण में हवा का रुत ही साज है
आवाज मिट्टी की है या
मिट्टी की आवाज़ है!
*लता प्रासर*


भूप सिंह भारती

पूरनमासी माघ की, जन्मे श्री रैदास।
कलसा माँ की गोद में, काशी जी के पास।।


मानवता सन्देश दे, तोड़ा सभ पाखण्ड।
ऊंच नीच के भेद को, कर दिया खण्ड मण्ड।।


अंधविश्वास छोड़ दो, कर्म करो हमेश।
आलस को सभ त्याग दो, रैदासी सन्देश।।


चंगा मन जै होवता, रहै कठौती गंग।
रैदास कर्मशील कै, रहै सफलता संग।।


रोटी कपड़ा के बिना, रहै न कोई एक।
बेगमपुरा विचार ही, राखै सभकी टेक।।


बाणी गायी गुरुजी, देणे शुभ सन्देश।
बढ़ै जगत में प्रेम रै, मिटै सभ कष्ट क्लेश।।


जातपात के भेद पै, खूब करा प्रहार।
आपस म्ह समभाव ही, बेगमपुरा विचार।।


                - भूपसिंह 'भारती'


आशुकवि नीरज अवस्थी बसंत में

मुक्तक ... 
मुझे पग पग मिला धोखा, सहारा किस को समझूँ मै.
डुबाया हाथ से किश्ती, किनारा किस को समझूँ मै.
जो मेरे अपने थे, वो काम जब, आये नहीं मेरे.. 
तो तुम तो गैर हो, तुमको दुलारा कैसे समझूँ मै.
                                                                                                                               बसंत में---------                                                                                                नीबू के फूल महके,है ,देखो बसंत में.
अमराई बौर की, है जी देखो बसंत में. 
नव कोपले पेड़ो  में, है निकली  बसंत में .
पतझड़ सा मेरा जीवन, देखो  बसंत में.
मधुमक्खियों के छत्ते शहद से भरे हुए,
उनके बेचारे बच्चे भूख से मरे हुए.
कंजड़ के हाथ अमृत देखो बसंत में. 
पतझड़ सा मेरा जीवन, देखो  बसंत में.  
सरसों की पीली पीली चुनरिया उतर गई.
गेहू की बाली खेत में झूमी ठहर गई. 
गन्ना लगाये देखो ठहाके बसंत में..
पतझड़ सा मेरा जीवन ,देखो  बसंत में.  
लव मुस्कुरा रहे है दर्दे दिल बसंत में,
मिलाता नहीं है कोई रहम दिल बसंत में,
बस अंत लग रहा हमें नीरज बसंत में,.
पतझड़ सा मेरा जीवन देखो  बसंत में.  
.....................................आप सभी का सादर आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


सुरेन्द्र सैनी बुवानीवाल झज्जर (हरियाणा

साथ अगर हो...... 



काश मेरी दुआ में असर हो. 
तेरे संग में मेरा बसर हो. 


हिचक नहीं दिल की आरज़ू में, 
ना ही किसी ज़माने का डर हो. 


रात और दिन बस तुमको देखूं, 
तुझपर ही बस मेरी नज़र हो. 



हम दोनों समझें एक दूजे को, 
हमारी गुफ़्तगू में ना समर हो. 


अच्छे से बीते अपनी ज़िन्दगी, 
राब्ता अपना नहीं बजर हो. 


जीत लूंगा हौसलों से "उड़ता"
कोई साथ जंग मेरे अगर हो. 



द्वारा - सुरेन्द्र सैनी बुवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर (हरियाणा )


udtasonu2003@gmail.com


डॉ . प्रभा जैन "श्री " देहरादून

आँगन 
-----------
मौसम की ढंडक 
गर्मी में बदलने लगी 
आ गया वैलन्टाइनडे 
हर ओर सज संवर 
बाहरें निकलने लगी। 


आँगन में 
फूल पत्तों ने भी 
खुशबू, फैलाई। 


कर रहे हैं,  
इस दिन का स्वागत, 
टेड़ीबियर हाथ में। 


पल -पल पसीना पोंछती, 
कभी नज़रें  झुकाती,  
कभी खुल के मुस्कराती 
चॉकलेट का आनन्द लेती वो। 


बात -बात पर मुस्करा कर 
मारूंगी, कहती, नज़र भर  देखती मुझे। 


कर रही हैं जैसे 
मेरा भी स्वागत, 
पर क्यों चुप हैं दिल 
क्यों सन्नाटा छाया। 


 आँगन में बैठों, 
कुछ पौधें लगा लो 
ना ढूंढो कुछ भी इधर-उधर 
भर अँजुरी,   छिपा लो उसे। 


जैसे हैं फूल में रहती खुशबू
अपने आँगन को महका लो
सभी। 
अपने आँगन को महका लो सभी। 
स्वरचित 
डॉ. प्रभा जैन "श्री " 
देहरादून


डॉ. प्रभा जैन "श्री " देहरादून

रफ़्तार /चाल 
--------------------
था बचपन प्यारा 
चार दीवारें खड़ी, 
पड़ी मजबूत छत। 


बड़े हुए, हुए  कुछ दूर 
असलियत नज़र आने लगी, 
पहचान  ना पाई उनको मैं। 


तासिरे  दिल  की बदलने लगी 
रफ़्तार जिंदगी की, 
यूँ गति पकड़ने लगी।


नाव में होता एक छोटा छेद 
नाव डूबा  देता, 
वह छेद ही महत्व पा गया। 


कर रहा हैं वह सब ठीक 
दर  -बदर सुनाई देता रहा, 
क्यों राहें बदल गयीं 
रफ़्तार जिंदगी की, 
थम गई। 


देख मुँह पर मुस्कराते हैं 
पीछे कौन किसके पीछे 
जान ना सकी, पता ना चला 
चली  कौन सी चाल, 
रुक गई जिंदगी, 
ज़ीवन की आस। 


स्वरचित 
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून


डॉ. प्रभा जैन "श्री " देहरादून

घरौंदा 
------------
ज़ीवन हैं एक धरौंदा 
हर पल चलती-ठहरती जिंदगी, 
इसमें साँस भरती मैं, नारी। 


कुछ रिश्तों को मन से 
कुछ को दिल से,  
कुछ को मीठी मुस्कान
किसी को सहलाकर, 
किसी को गले लगाकर 
हर साँस में,इक आस भरती 
पल-पल बनाती मैं,  घरौंदा। 


धरती की तरह सृजन करती 
हरियाली चहुँ ओर रखती, 
सीखा, जो मैंने अपने बड़ों से 
विरासत में नई पीढ़ी को देती। 


हूँ   मैं    केंद्र   में 
लौट  घरौंदे  में जो आते, 
मेरे होठों की, मुस्कराहट 
मन में शान्ति, प्रेम, उत्साह 
भर, सब  में   हैं  जाते। 


ले,  ऊर्जा वो काम करते 
पक्षी-दाना  पानी  रखते, 
बगीचें   में,  पौध लगाते 
और बनाते प्यारा सा घरौंदा 
उस चीं -चीं,चिड़ियाँ के लिए। 


हैं सर्दी  का मौसम 
पंखों में अपने को छिपाए, 
आँखें मींचे, 
करती अपने  बच्चों की चिंता। 


बैठ घरोंदें में ख़ुश रहती 
सारे दिन चीं -चीं,चूं-चूं करती, 
देख उसे ख़ुश, 
तितली, भँवरा आते, 
कली देख उन्हें 
ख़ुश हो फूल बन जाती। 
ख़ुश हो फूल बन जाती।


हैं  मेरा प्यारा सा घरौंदा 
हैं मेरा  प्यारा सा घरौंदा। 
  
स्वरचित 
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

........... कह नहीं पाऊंगा...........


क्यों हुई थी दूरी,कह नहीं पाऊंगा ?
क्या थी मज़बूरी,कह नहीं पाऊंगा?


कोशिशें की  हमने बहुत  ही मगर ;
क्यों न मिटी दूरी,कह नहीं पाऊंगा?


आग लगाना तो सभी जानते ही हैं;
बुझाई क्यों नहीं,कह नहीं पाऊंगा?


दूसरे की खुशी सबको खटकती है;
दूसरे जलते क्यों,कह नहीं पाऊंगा?


लाख बुरा चाहते हैं कोई भी मगर ;
क्या है  फायदा,कह नहीं पाऊंगा ?


कोई न कोई तो मिलता है हमदर्द ;
कितना  सुकून,कह नहीं पाऊंगा ?


हम तो यही सोचा करते"आनंद" ;
कैसे मिले कोई,कह नहीं पाऊंगा?


-- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


नूतन लाल साहू

मोर छत्तीसगढ़
शुद्ध और चमकदार है
कोमल सेमल पुष्प की तरह
मुलायम है,वह चिकनी है
प्यार देता है, दुर तक उड़ कर
मोर छत्तीसगढ़,मोर छत्तीसगढ़
चूल्हा म आगी सुलगा के
भौजी जाय पनिया
अइ सने तो होथे संगी
मोर गांव म बिहनिया
शुद्ध और चमकदार है
कोमल सेमल पुष्प की तरह
मुलायम है,वह चिकनी है
प्यार देता हैं,दुर तक उड़ कर
मोर छत्तीसगढ़,मोर छत्तीसगढ़
सुबह की ओस,की तरह
पवित्रता है,छत्तीसगढ़ की
छत्तीसगढ़ की,पंखुड़ियां भरी है
शुभ्र भावनाओ, से ओत प्रोत
शुद्ध और चमकदार है
कोमल सेमल, पुष्प की तरह
मुलायम है,वह चिकनी है
प्यार देता है,दुर तक उड़ कर
मोर छत्तीसगढ़,मोर छत्तीसगढ़
पहाटिया काहय, ढ़ीलो ढ़ीलो
खोर म चिचियावत हे
धवरी,टिकली, बलही गईया ल
दईहान बर,बलावत हे
शुद्ध और चमकदार है
कोमल सेमल,पुष्प की तरह
मुलायम है वह,चिकनी है
प्यार देता है,दुर तक उड़ कर
मोर छत्तीसगढ़,मोर छत्तीसगढ़
नूतन लाल साहू


नमस्ते जयपुर से--डॉ निशा माथुर

सप्ताह की सप्तक सुनाता सोमवार सुमधुर
स्वर्णिम सविता भी सोने सी खिली सुदूर
सुमन सुवासित सज रहे सुरम्य सुहावनी सुभोर
स्वागत करो सोम का शंकरसुवन शिव चहुँ ओर।


सोमवार का शुभ शुभ वंदन, सुअभिनंदन, आप सभी का आज का दिन सफल, सुमंगल, सुमधुर ,सकून वाला हो। 🙏🙏🙏🙏💐💐💐🌹🌹🌹🌹🐻🐻🐻🐻हैप्पी टेडी डे
नमस्ते जयपुर से--डॉ निशा माथुर🙏😄


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड सरस्वती वंदना

नमन करूं मां सरस्वती
*******************
पार करो मां अंधकार से
अब तार दो मां अज्ञान से
दो नयन तेरे मतवाले है
मां सरस्वती वे तेरे दीवाने है।


बसन्त उत्सव आया है
अब रसना को संवार दे मां
आप्लावित कर  रस से मां
रस रसना पर वार दे मां।


मन हर्षित कर तन हर्षित कर
कर दे हर्षित मेरे रोम रोम मां
जो आये मां शरण तुम्हारे
शब्द  सोम  रस घोल दे।


दो नयन प्यालों में अब मां
शब्द   मद  मय  घोल  दे
मधुर  बैन बोले  हम सब
सभी जनों में रस घोल दे
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


रोहित मित्तल शिव वन्दना

🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
जब मैं जाता पूजा करने, शिवजी प्रकट हो जाते........
मंद - मंद मुस्का  कर भोले मुझको गले लगाते........ 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
सब मन से हैं वंदन करते,तन से भी अभिनंदन .....
ऐसी करते  कृपा सभी पर, तन मन होता चंदन............
कृपा दृष्टि से कष्ट भक्त के नष्ट सभी हो जाते..........


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
जब मैं जाता पूजा करने, शिवजी प्रकट हो जाते........
मंद - मंद मुस्का  कर भोले मुझको गले लगाते........ 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
अखिल ब्रह्म में विचरण,करती इनकी अद्भुत माया .....
विपत्ति काल में पड़कर जो भी इनके दर पर आया......... 
किन्नर ,यक्ष देवता नर सब ही इनके गुण गाते ......... 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
जब मैं जाता पूजा करने, शिवजी प्रकट हो जाते.........
मंद - मंद मुस्का  कर भोले मुझको गले लगाते...... 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
भोले की माया से मेरा काम हो रहा सारा.............
मेरी दुखियारी दुनिया का तू ही एक सहारा..........
अपने भोलेपन से हमको है शंकर जी भाते........ 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
जब मैं जाता पूजा करने, शिवजी प्रकट हो जाते......
मंद - मंद मुस्का  कर भोले मुझको गले लगाते..... 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
ऊंचे शिखर से गंगा मैया, हर हर करके आती........
भक्तों के पापों को हरकर, नूतन जन्म दिलाती........
पावन गंगा जल का अमृत  घर को लेकर आते....... 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
जब मैं जाता पूजा करने, शिवजी प्रकट हो जाते........
मंद - मंद मुस्का  कर भोले मुझको गले लगाते........


     🌻 🚩रोहित मित्तल ❝रोहित❞🚩 🌻 
       🌻  {R.K.OPTICAL❜S } 🌻 
          🌻 {मौलिक स्वरचित } 🌻 
            🌻     लखीमपुर-खीरी   🌻 
               🌻  9889862286🌻


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...