कविता:-
*"नव-युग का निर्माण करो"*
"इस धरा को स्वर्ग बनाने,
नवयुग का निर्माण करो।भक्ति में डूबा रहे तन-मन,
इस धरती पर राम बनो।।
मानव मन में विश्वास भरे,
मानव का कल्याण करो।
सुख दु:ख में सहभागी बनकर,
नवयुग का निर्माण करो।।
त्याग काम,क्रोध,मद् ,लोभ,
सत्य का आवाह्न करो।
सत्य-पथ चल कर साथी,
नवयुग का निर्माण करो।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 12-02-2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनील कुमार गुप्ता
राजेंद्र रायपुरी
😄😄 दिल्ली चुनाव विश्लेषण 😄😄
सड़सठ से बासठ हुए, और तीन से सात।
एक घटा दूजा बढ़ा, और न कोई बात।
झाड़ू कुछ छोटी हुयी, बढ़ी कमल की नाल।
फ़र्क़ न कोई खास पर, बजा रहे थे गाल।
पानी-बिजली मुफ़्त की,और किराया माफ़।
चली चाल तो खूब थी, बढ़ा न लेकिन ग्राफ़।
बाँट रहे सब मुफ़्त में, ले जनता से टेक्स।
ऐसा दानी मत बनो, कर दो उनको फेक्स।
मुफ़्तखोर दिल्ली नहीं, बना रहे हो आप।
पेट काटकर टेक्स भरें, बंद करो ये पाप।
।।राजेंद्र रायपुरी।।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
सपने में भी तुम मुझे रिझाने लगे हो
मोहिनी मुद्रा से मन बहलाने लगे हो
भवसागर में गोते खा रही जीवन नैया
डूबते पलों में तुम्ही याद आने लगे हो
पता नहीं मुझको क्यों भेजा हूँ जग में
फिर क्यों नहीं स्मरण दिलाने लगे हो
हो जीवन आधार अहसास होता मुझे
हे भक्त वत्सल क्यों दूर जाने लगे हो
सत्य का अर्पण समर्पण तुम्हारे लिए
फिर क्यों दर्शन को तरसाने लगे हो।
श्रीराधे गोविन्द🙏🙏🙏🙏🙏🌸🌸🌸🌸🌸
सत्यप्रकाश पाण्डेय
निधि मद्धेशिया कानपुर
*काश...*🌹
काश इसी भरम में उम्र गुजर जाए
तुम मुझे चाहते हो, काश.......
पसंद मेरी तुम हो तुम मुझे माँगते हो, काश...
इकरार न करना
इजहार न करना
ऐसा व्यवहार न होगा दिल दुख जाए, काश...
ताके रहना जिंदगी को
दूरी बनाए रखना,
जरा-सा जो पास आएँगे हम दोनों
बीच में मिलन बन के मौत न आए, काश....
महसूस करते हैं
इसलिए दूरियाँ पसंद हैं
इन दूरियों का कोई अंजाम न हो
काश ऐसा हो पाए, काश.....
हम तुम्हें प्यार करते हैं बस इतना-सा
सदा होंठ तुम्हारे मुस्कुराए
तुम खुश रहो हमेशा,
इस नगर में हैं मेरे दोस्त काफी
उनके मेले में हमें तू अकेला भाए, काश....
तुमने जन्म लिया है किसी के लिए
हमने जन्म लिया है किसी के लिए
फिर भी दोनों सोंचते हैं अच्छा हो
गर हम एक हो जाए, काश.....
तुम मुझे चाहते हो
पसंद मेरी तुम हो, तुम मुझे माँगते हो,
काश इसी.......
निधि मद्धेशिया
कानपुर
सुनीला गुरुग्राम हरियाणा
मेरी बीटिया
**********
तितली जैसी चंचल है
जुगनू जैसी उजियारी
मेरे घर में है नन्ही सी एक बेटी प्यारी प्यारी।
सारे घर पे नजर है उसकी
धयान में रखती हरकत सारी
मेरे घर में है नन्ही सी
एक बेटी प्यार प्यारी।
ऑफिस से जब घर में आँऊ
करती शिकायत सबकी भारी
मेरे घर में है नन्ही सी
एक बेटी प्यारी प्यारी।
उसका खिलता चेहरा देखकर
छू हो जाती थकान सारी
मेरे घर में है नन्ही सी
एक बेटी प्यारी प्यारी।
खिलखिला कर हँसती मुझे बुलाती
उसकी हंसी के आगे फीकी खुशियां सारी।
मेरे घर में है नन्ही सी एक बेटी प्यारी प्यारी।
मेरे घर की है वो रौनक
उससे खुशहाल गृहस्थी हमारी
मेरे घर में है नन्ही सी
एक बेटी प्यारी प्यारी।
जब वो रूठे ऐसा लगता
रुठ गई है दुनिया सारी
मेरे घर में है नन्ही सी
एक बेटी प्यारी प्यारी।
मेरे लिए वो खुदा की नेमत
वो ही कायनात हमारी
मेरे घर में है नन्ही सी
एक बेटी प्यारी प्यारी।।
***********
🌷सुनीला🌷
डॉ सुलक्षणा
आज गुलाब को गुलाब बेचते देखा मैंने,
खुली सड़कों पर ख्वाब बेचते देखा मैंने।
नन्हीं आँखों में लिए हुए छोटी सी हसरत,
उसे जिंदगी की किताब बेचते देखा मैंने।
पंखुड़ियों से नाजुक हाथों में थामे गुलाब,
दो रोटी के लिए बेहिसाब बेचते देखा मैंने।
गरीबी की मार ने मुरझाया दिया था चेहरा,
कांपती जुबान से जवाब बेचते देखा मैंने।
कर रहे थे मोलभाव लोग उसके साथ भी,
गरीब दिल का खिताब बेचते देखा मैंने।
"सुलक्षणा" इंसानियत को मारकर सरेआम,
रईसों को आब-ओ-ताब बेचते देखा मैंने।
©® डॉ सुलक्षणा
श्याम कुँवर भारती
गजल - खता करनेवाले
दे गए दिल मे दाग दिलवार दगा देनेवाले |
ले गए मेरी जान प्रियवर वफा करनेवाले |
दिल ही तो मांगा मैंने कोई खजाना तो नहीं |
दे गए मुझको घाटा अक्सर नफा करने वाले |
फिर भी पुकारता है दिल तड़पकर नाम उनका |
कह गए मुझको पागल परवर खता करनेवाले|
सहता हु हर जुल्मो सितम सनम तेरे इश्क मे |
मुंह फेर गए मुझसे, मुझको खुदा कहनेवाले |
तड़पाओगे कबतक जानम अबतो रहम करो |
बहा गए आँसू छुपकर , मुझे जुदा करनेवाले |
श्याम कुँवर भारती
जय संत रविदास
कुमार🙏🏼कारनिक
(छाल, रायगढ़, छग)
''''"'''"""
मनहरण घनाक्षरी
"जय बाबा रविदास"
"''""""""’""""""""""""""
जय बाबा रविदास,
सत्य पुंज के प्रकाश,
सब मन को दे आस,
अलख जगाई है।
💐🙏🏼
माघ पुन्नी जन्में रवि,
जन मानस में छवि,
बन गए संत कवि,
जयंती बधाई है।
🌞🙏🏼
रवि कह रहे मात,
मानते जात न पात,
करलो प्रभु के जाप,
शुभ घड़ी आई है।
🙏🏼💐
जब मन रहे चंगा,
दिखे कठौती मे गंगा,
तैराते सालिक राम,
गंगा प्रगटाई है।
💐💐🙏🏼💐💐
संत शिरोमणि रविदास
की ६४३वीं जयंती की
शुभकामनाएँ
💐💐🙏🏼💐💐
०९/०२/२०२०
*******
सुनीता असीम
मुक्तक
मंगलवार
११/२/२०२०
जिन्दगी का सही हिसाब करो।
पर बुराई से तुम हिजाब करो।
साथ दे ज्ञान आपका तब ही-
सार उसका अगर किताब करो।
***
सुनीता असीम
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल संपर्क - 9466865227 झज्जर ( हरियाणा
तो क्यों.......
मैंने जब भी
तुमसे कोई सवाल किया
तुमने सवाल ही जवाब दिया
बातों में उलझा लिया
जाने क्यों
अपने एहसासों को
अपने तक सीमित किया
कि तेरा मन किले जैसा है
जिसमें सिर्फ तुम ही
दाखिल हो सकते हो.
किसी और के लिए
वहाँ इजाज़त नहीं.
जब तक तुम ना चाहो
तो कोई आदमी
क्या उम्मीद रखे
तेरे बारे में क्या सोचे.
कैसे समझे
तेरी खामोश भाषा.
कैसे देख पाए
तेरी आँखों के भित्तिचित्र
तेरे भीतर का सूनापन
और ये हो सकता है "उड़ता "
कि तुझे तेरे हाल पर
ख़ुश छोड़ दें
अगर तुम रहो?
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
संपर्क - 9466865227
झज्जर ( हरियाणा )
udtasonu2003@gmail.com
प्रतिभा प्रसाद कुमकुम।
(011) 🙏🏻 *प्रतिभा प्रभाती* 🙏🏻
----------------------------------------------------------------------
नेह नयन है, नेह नमन है ,
यह नेह जगत का वंदन है।
यह नेह अधर की वाणी है ।
मात पिता को निज वंदन है।
यह सबके माथे चंदन है ।
करूँ मैं कर जोड़, स्पर्श चरण ।
धरूँ शीश,चरण की धूलि है ।
जब मात पिता,सिर हाथ धरें ।
यह अरमानों की झोली है ।
हो घर , बच्चों की किलकारी ।
हर नारी का सम्मान रहे ।
गृहवास स्वयं करती लक्ष्मी ।
घर लक्ष्मीपति भगवान रहे ।
ऐसे घर की करूँ कल्पना ।
निज कर्म धर्म से पूर्ण रहे ।
मात पिता का हो नितवंदन ।
हर घर फिर स्वर्ग समान रहे ।।
🌹प्रतिभा प्रसाद कुमकुम।
दिनांक 11.2.2020...
_____________________________________
भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.) ----------------------
*"मैं तुम्हारे पास हूँ।"*(हरिगीतिका छंद)
------------------------------------------
मापनी - 2212 2212 2212 2212
विधान - 16 और 12 मात्राओं पर यति के साथ 28 मात्रा प्रति चरण।
5वीं, 12वीं, 19वीं और 26वीं मात्रा लघु होना अनिवार्य है।
चार चरण, युगल चरण तुकांतता।(संभव हो तो चारों चरण तुकांतता।)
----------------------------------------
¶आये कभी जो कष्ट साथी, मैं तुम्हारे पास हूँ।
खोना नहीं आशा कभी भी, मैं तुम्हारी आस हूँ।।
बाधा न आये पास कोई, आन का विश्वास हूँ।
आनंद का आगाज हूँ मैं, भान मैं उल्लास हूँ।।
¶सुर-सार साजों सा सुहाना, हास मैं परिहास हूँ।
निज प्यार में जो प्राण वारे, प्रण वही मैं खास हूँ।।
मोती जड़े आशा-गगन में, चाँदनी का वास हूँ।
मैं घोर तम का अंत कर दूँ, ज्योति का आभास हूँ।।
¶गाता रहूँ मैं गीत न्यारे, रंग-रंगा रास हूँ।
साथी रहो तुम साथ मेरे, प्रेम का आवास हूँ।।
झंकार दो वीणा हिया की, तान का अहसास हूँ।
हो तुम सदा से शान मेरी, मान मैं मधुमास हूँ।।
-----------------------------------------
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
-----------------------------------------
मधु शंखधर 'स्वतंत्र'* *प्रयागराज*
*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*विश्वास*
◆मन में उठती भावना इक आस है।
इक सुखद अनुभूति का एहसास है।
राह एक सबको मिलाती है यहाँ,
उसको अपनाता महज विश्वास है।।
◆माँ ने जन्मा लाल को ये प्यार है।
ये सृजन की भावना का सार है।
एक बस विश्वास की डोरी बंधी,
ये ही अनुपम जीव का व्यवहार है।।
◆राह हो मुश्किल तो जीवन आस है।
आस में ही शक्ति का एक वास है।
जो बना दे जिन्दगी को चाह एक
*मधु* ये मानव का अटल विश्वास है।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
*11.02.2020*
🌹🌹 *सुप्रभातम्*🌹🌹
लता प्रासर
*फागुन मास का स्वागत*
गुनगुनाती कनकनाती हवा लड़खड़ाती हुई
दिन रात बहकाती सबको
अठखेलियां करती हुई
जब से फागुन मास आया सबका हुलास बढ़ाती
मौसम का मिजाज बदलती इठलाती हुई!
*लता प्रासर*
मासूम मोडासवी
उसूलो पण हवे देखावने खातर धरी जाणे,
जगावी मोहमायाना बधां नाटक करी जाणे
अधर पर वात मीठी भाव हसता राखतो मानव
वचनमां वातमां बंधाइने पाछो फरी जाणे
तमे जो साथ आपो तो तमारो हाथ झालीने
धकेलीने बधुं पाछण बहुं आगण वधीजाणे
थयेला कामनो पडघो वधु पाडी जमानामां
चडावी नाम पोतानां दबाणो आदरी जाणे
वधारी भेदभावोने परस्पर फूट नाखीने
जगावीने नवा फित्ना जगतने छेतरी जाणे
करीने वात साची हक परस्तीनी मगर मासूम
मफत मणतुं अमर भाणे धरी दामन भरी जाणे।
मासूम मोडासवी
नूतन लाल साहू
पुन्नी मेला
तोरण पताका,सजे हे मंदिर म
भीड़ लगे हे, बाहिर भीतरी म
जगमग जगमग जोत जलत हे
हुम धूप अगरबत्ती, बरत हे
सजे हे भगवान राजीव लोचन के दरबार
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
आवत हे अवइया ह
जावत हे जवइया ह
माथ मुकुट,गला बनमाला
सजे हे भगवान के दरबार ह
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
छत्तीसगढ़ के भुइया चंदन हे
ये धूर्रा नोहय, बंदन हे
मंदिर मस्जिद,गिरजा गुरुद्वारा
सबो धरम,भाषा के हे मेला
सजे हे भगवान राजीव लोचन के दरबार
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
तोर शरण म,बिगड़ी बन थे
तोर कृपा लेे, भाग बदलथे
सबला भक्ति, सुम्मत देबे
तोरेच सबो, संतान हरन
सजे हे भगवान राजीव लोचन के दरबार
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
नूतन लाल साहू
अनन्तराम चौबे ग्वारीघाट जबलपुर
मिलना बिछड़ना
रखा था अभी तक
छुपाये कहां पर
ये मासूम चेहरा जो
दिखाया यहां पर
गुलाबी ये गालो की
नागिन से बालो की
ये माथे की बिदिंया
ये कानो की बाली
मासूम से चेहरे पर
निखरी ये लाली
उठती हैं जब भी
ये पलके तुम्हारी
मिलती हैं नजरे
हमारी तुम्हारी
उठाकर झुकाना
नजरे मिलाने का
अच्छा बहाना
उठाने छुपाने में
क्या क्या कह देना
जुवा जो न कह पाये
निगाहो से कहना
ऐसे ही प्यार का
इजहार करना
दिल जो न कह पाये
निगाहों में कहना
आपस में दोनो के
परिचय हुये तो
प्यार से उन्होने
लड्डू भी खिलाये
प्यार की दो मीठी
बाते भी सुनाये ।
दिल में यो दोनो ने
ऐसा डाका डाला
चेहरा वो दोनो का
था भोला भाला ।
सोचा था सो जाऊ
बर्थ पाकर खाली
कैसा वो पल था
जो नजरे मिला ली ।
उड़ी निदिंया मेरी
जो उठी पलके तेरी
पलके उठाना
पलकें झुकाना
तिरछी निगाहो से
क्या क्या कह देना
मायूस था यो में
सफर के ही पहले
मुरझाया चेहरा था
मिलने से पहले
खिल उठा मन
मचल उठा तन
एक हुआ जैसे
दोनो का मन ।
मचलते ये मन को
कब तक और कैसे
नजर को उठाऊँ
या पलके झुकाऊँ
मन ही मन में
कैसे सरमाऊँ ।
बाते जब करती हो
किसी और से भी
मगर दिल धडकता है
करीब मेरे आकर
किसी के करीब होकर
दिल मुझसे मिलाया
जो कि मुझसे बातें
फिर भी तड़फाया ।
पैरो से सिर तक
लगता है लिख दूँ
तारीफो के हर पल
रंगो से भर दूँ
निगाहो ने मिलने से
बहुत कुछ कहा है
शरमो हया का भी
परदा हटा है ।
बातें अभी कुछ
थोडी सी हो जाये
जन्मो जनम की
मुलाकातें हो जाये
जानी पहचानी सी
ये लगती है सूरत
लिखूं और लिखता
ही जाऊँ बहुत कुछ ।
हमारे इस मिलन को
न भूलेगे कभी हम
कुछ ही समय में
जब बिछड़ जायेगे हम ।
हम दोनो को सफर
में जाना अलग है
बातों ही बातों में
निश्चय हुआ है ।
आखिर यो हमने
दिल क्यो लगाया ।
नजरे मिलाकर
दिल को तड़फाया
तड़फते रहेगें अब
ये दो दिल हमारे ।
बिछड़ना ही था तो
क्यो मिले दिल हमारे ।
मिलन की ये यादें
न भूलेगे कभी हम
मिलन और जुदाई से
तड़फेगे अब हम
मिलना विछड़ना
यही जिन्दगी है
मुद्दत से अच्छी
ये दो पल की खुशी है ।
अनन्तराम चौबे
ग्वारीघाट जबलपुर
2376/
मो.9770499027
KAVITA 11TH FEB KE INDORESAMACHAR ME CHAPEGI
Show quoted text
सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
*"ढ़ाई आखर प्रेम के"*
"बिन प्रेम के साथी ,
जीवन नहीं-
बंज़र भूमि सा लगता ।
पलने लगता अहंकार इसमें,
नीरस हो कर-
बेकार लगने लगता।
पनपने लगती नफ़रत,
जीवन संबंधों को-
साथी खोने लगता।
धन-वैभव सम्पन्नता भी,
दे न पाती सुख-
अकेलापन खलने लगता।
पढ़ लेते जो जीवन में साथी,
ढ़ाई आखर प्रेम का-
जीवन सच लगने लगता।
महक उठती जीवन बगिया,
जीवन सपना -
सच लगने लगता।
अपनत्व होता अपनों में,
जीवन में -
प्रेम दीप जलने लगता।
ढ़ाई आखर प्रेम का साथी,
हर मन में पलने लगता-
जीवन का हर सपना सच लगता।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 11-02-2020
कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
न आओ अकेली,न जाओ अकेली
********************
********************
प्रणय की पुजारिन, निवेदन है तुमसे,
न आओ अकेली, न जाओ अकेली।
यहां तो गगन के सितारे न आते,
यहां सच अभागे दुलारे न आते,
यहां गीत के हर सपन है प्रिये,
जिन्दगी के सपन भी संवारे न जाते,
यहां विश्व छलना छलेगा, प्रिये,
हर कदम पर न रूठों , न जाओ प्रिये।
तुम्हारे मिलन के सुहाने क्षण
मुझे सदा याद आते रहोगे प्रिये।
अगम पथ मेरा, सुगम पथ तेरा
न छोड़ो सुहागिन ये जीवन अंधेरा,
सपन जा रहे हैं कि तुम जा रही हो,
बहुत दूर मंजिल कि जीवन सबेरा,
यहां जिन्दगी भी प्रिये, मौत होगी,
न छोड़ो विरह सिन्धु, तक पर सहेली।
किसे मैं रूलाऊं , किसे मैं हंसाऊं,
रहा दूर तुमसे, किसे मैं बताऊं।
अरी, जिन्दगी मैं तुम्हें आज छोड़ूं,
तुम्हीं अब बताओ कहां राह मोडू,
मुझे हर कदम पर अंधेरा है दिखता,
सुहागिन बताओ कहां नेह जोडू,
मुझे शून्य लगते दिशा के किनारे,
अभी शून्य मेरी हृदय की हबेली।
तुम्हे कह रहा हूं , जरा पास आओ,
मिलन की लगन में प्रिये, मुस्कराओ।।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
हे मां शारदे
******************
******************
निर्मल करके तन- मन सारा,
सकल विकार मिटा दो माँ,
बुरा न कहूं माँ किसी को ,
विनय यह स्वीकारो माँ।
करूणा, विनय से मुझे ,
परिपूरित कर दे हे मां।
अन्दर ऐसी ज्योति जगाओ,
हर जन का उपकार करें,
मुझसे यदि त्रुटि कुछ हो जाय,
उनसे मुक्ति दिलाओ माँ।
तुम तो दयामयी हो मां,
हम दीनो पर दया करो।
प्रज्ञा रूपी किरण पुँज तुम,
मैं तो निपट अज्ञानी हूं।
हर दो अन्धकार तन- मन का,
ऐसी मुझ पर कृपा कर दो।।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
एक मुक्तक
तुम्हारा रूप आँखों से कभी भी दूर न होता।
बिना तिरे अब इस दिल को कुछ भी मंजूर न होता।
मिरी हर इक साँस में अब तुम्हारा नाम बसता है।
निहायत खूबसूरत हो पर कभी गरूर न होता।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
कैलाश , दुबे ,
मेरे घाव पर इस तरहा मरहम मत लगाया करो ,
जरा हौले से गिनकर बताया भी करो ,
कहीं ये बन न जाये नासूर तुम्हारी कसम ,
यूँ आहिस्ता आहिस्ता सहलाया न करो ,
कैलाश , दुबे ,
सत्यप्रकाश पाण्डेय
माँ पूर्व जन्मों का सुकृत और मन्नत है
माँ के आंचल में तो बच्चों को जन्नत है
माँ ममता प्यार का अदभुत उदगम है
माँ का ममत्व पाकर रहता कहाँ गम है
सौभाग्यशाली जिन्हें माँ का प्यार मिला
ममता ही नहीं खुशियों का संसार मिला
माँ की मूरत में धरा पर दीखें भगवान है
माँ जैसा और न कोई धरती पै महान है
ममता की जड़ें करें सन्तति का पोषण
स्नेह का पाठ पढ़ाती संस्कारों का रोपण
बच्चे की पीड़ा से जिसका सीना चिरता
थोड़ी सी चुभन देख माँ का लहू गिरता
शब्द नहीं पास मेरे माँ का गुणगान करूँ
कर्ज मुक्त होकर खुद का उत्थान करूँ।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
निशा"अतुल्य"
निशा"अतुल्य"
देहरादून
हाइकु
11/ 2 /2020
प्रेम चिंतन
तू संसार से मुक्त
ये विचरण।
आनन्द है क्या
समझ,सबको बता
मन का पता।
कर्म का पथ
विलक्षण है सोच
रहे समर्थ।
अच्छा है क्या
सिर्फ सोचना तेरा
सब है मेरा।
रहता भ्रम
नश्वर मिथ्या जग
चलों तो सँग।
पथ कठिन
नही कोई मुश्किल
करो आसान
दृढ़ निश्चय
मोह माया का त्याग
सबके सँग
उसका ध्यान
वैतरणी हो पार
करो उद्धार
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
संजय जैन (मुम्बई)
गुलाब हो या दिल*
विधा : कविता
मेरे दिल में अंकुरित हो तुम।
इसलिए दिल की डालियों,
पर खिलाते हो तुम।
और गुलाब की पंखड़ियों,
की तरह खुलते हो तुम।
कोई दूसरा छू न ले इसलिए,
कांटो के बीच रहते हो तुम।
पर प्यार का भंवरा कांटों,
के बीच आकर छू जाता है।
जिसके कारण तेरा रूप,
और भी निखार आता है।।
माना कि शुरू में कांटो से,
तकलीफ होती है।
जब भी छूने की कौशिश,
करो तो तुम चुभ जाते हो।
और दर्द हमें दे जाते हो।
पर साथ ही पाने की,
जिद को बड़ा देते हो।
और दिल के करीब,
तुम हमें ले आते हो।।
देखकर गुलाब और,
उसका खिला रूप।
दिल में बेचैनियां,
बड़ा देता है।
और अपने नजदीक,
ले आता है।
तभी तो रात के,
सपनो से निकालकर।
सुबह सबसे पहले,
अपने पास बुलाता है।
और अपना हंसता,
खिलखिलाता रूप दिखता है।।
मोहब्बत का एहसास,
कराता है गुलाब।
महफिलों की शान,
बढ़ाता है गुलाब।
शुभ अशुभ में भी,
भूमिका निभाता है गुलाब।
तभी तो रोशदिन भी,
मानवता है गुलाब।
इसलिए दिलों जान से,
चाहते है हम गुलाब।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
11/02/2020
Featured Post
दयानन्द त्रिपाठी निराला
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...
-
सुन आत्मा को ******************* आत्मा की आवाज । कोई सुनता नहीं । इसलिए ही तो , हम मानवता से बहुत दूर ...
-
मुक्तक- देश प्रेम! मात्रा- 30. देश- प्रेम रहता है जिसको, लालच कभी न करता है! सर्व-समाजहित स्वजनोंका, वही बिकास तो करता है! किन्त...
-
नाम - हर्षिता किनिया पिता - श्री पदम सिंह माता - श्रीमती किशोर कंवर गांव - मंडोला जिला - बारां ( राजस्थान ) मो. न.- 9461105351 मेरी कवित...