.......अभिलाषा.......
चांदनी रात,
सन्नाटे की शुरुआत;
नदी के तीर पर,सामाजिक
कोलाहल से दूर,एकांत वातावरण में
घूम रहा था।पानी का तेज
बहाव शांत माहौल
में गुंजरित,
हो रहा था।अचानक
कुछ फासले पर दो लहरें
उठीं - मचलती,इठलाती,बलखाती,
एक दूसरे से मिलने को
बेकरार।मचा हुआ
था आपस
में अजीब तरह का
हाहाकार।मन ने कहा,
हो न हो,यह मेरी सुनी आवाज़ है।
दिल ने कहा,नहीं,यह
मेरे मित्र व उसकी
प्रेमिका के,
प्रणय भरे गीत की
साज़ है।परंतु,लहरों के
मध्य,फासलों को देखकर,हृदय
आशंका से भर उठता
है।सामाजिक और
पारिवारिक
परंपराएं,बाधाएं,
देखकर मन डर उठता
है।क्या रूढ़िवादिता की दीवारें
इन्हें मिलने नहीं देंगी?
मन नहीं लगता,
इस वीरान
निर्झर में। कब
होगा प्रत्यक्ष - मिलन,
इन दो प्रेमियों का,अभिलाषा
बसी है,मेरे जिगर में?
----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
सत्यप्रकाश पाण्डेय
मेरे प्राणों के आधार नाथ प्राण तुम सब जग के
जगतनियन्ता स्वामी मान हो तुम ही भव के
हे मेरे आराध्य मैं तो आराधना करूँ तुम्हारी
तुम बिन मुश्किल नाथ जीवन की फुलवारी
हराभरा रहे जीवन उपवन कृष्ण कृपा कीजे
घेरे नहीं दुःख के बादल आशीष मुझे दीजे
करूणामयी बृषभानु दुलारी साथ तेरों चाहूं
वृजबानिक के संग तव चरणन शीश झुकाऊं।
युगलछवि को कोटिशः नमन🌸🌸🌸🌸🙏🙏🙏🙏
सत्यप्रकाश पाण्डे
संजय जैन (मुम्बई)
जीना सिखा दिया*
विधा : कविता
अपने लफ्जो में,
मुझे लिखने वाले।
तुझे दिल जान से,
चाहते है हम।
दिल की धड़कनों में,
बसते हो तुम।
जब भी दिल मेरा,
तन्हा होता है।
तभी उतार जाते हो,
दिलकी गैहराईयों में तुम।।
अपने होने का एहसास,
कराते हो तुम।
हमें अपने पास,
बुलाते हो तुम।
मत हुआ करो उदास,
मेरे होते हुए तुम।
क्योंकि रबने बनाया है,
साथ जीने के लिए हमें।।
डूबते हुये इंसान को,
सहारा दिया तुमने।
अपने प्यार से,
उसे संभाला तुमने।
जब भी आये गम,
मेरी जिंदगी में।
ढाल बनकर खड़े हो गए,
गमो के बीच में तुम।।
कैसे शुक्रिया अदा करू
में तेरा,
तुमने जीना सीख दिया मुझे।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
13/02/2020
सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
*"जीवन"*
"निष्कंटक होता जीवन सारा,
मिलता जो प्रभु का सहारा।
सत्य-पथ चल कर साथी-साथी,
कभी न कोई मन से हारा।।
सुख की चाहत में पल पल साथी,
क्यों- भटका ये मन बेचारा?
मिटती भटकन तन-मन की साथी,
साथी-साथी बने सहारा।।
मंझधार में डूबी जीवन नैया,
मिलता नहीं उसको किनारा।
त्यागमय होता जीवन साथी,
मिलता अपनो का सहारा।।
मैं-ही-मैं संग जीवन पग पग,
बनता अहंकार का निवाला।
त्यागे मैं जीवन का साथी,
बनता अपनो का सहारा।।
अपनो के लिए जीते जो साथी,
उनका सुख होता तुम्हारा।
निष्कंटक होता जीवन सारा,
मिलता जो प्रभु का सहारा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 13-02-2020
कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
ये जिन्दगी
***********
क्या बताऊँ कैसी है ये जिन्दगी
क्या कहूँ कैसी है ये जिन्दगी
कभी तो फूल सी लगती है
ये जिन्दगी।
कभी तो काँटों में गुलाब सी
मुस्कुराती है ये जिन्दगी
कभी दूर डूबते सूरज सी
लगती है यह जिन्दगी।
कभी सूरज की पहली किरण
सी लगती है यह जिन्दगी
कभी कल्पनाओं के सागर में
गोते लगाती है यह जिन्दगी।
कभी दूसरे का दर्द को देख कर
रो पड़ती है ये जिन्दगी
कभी मौत के भय से
बदहवास सी दौड़ती है ये जिन्दगी।
कभी मंजिल के बहुत करीब
लगती है ये जिन्दगी
कभी एक -एक पर को
पीछे धकेलती है ये जिन्दगी।
क्या कहूँ कैसी है ये जिन्दगी
जैसे भी है
बहुत सुहावनी है ये जिन्दगी
ईश्वर का कृपा प्रसाद है ये जिन्दगी।।
*******************************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड 246171
कालिका प्रसाद सेमवाल
हे मां जगदम्बा
***************
हे मां जगदम्बा
जिसका मन शिशु जैसा
तुम करती हो रखवाली
तेरे चरणों शीश झुकाओ
मिट जायेगा जन्मों का फेरा।
हे मां जगदम्बा
भक्तों की तुम करती रक्षा
सबके कष्टों को तुम हरती
द्वार तुम्हारे आया हूं
मेरे नैया पार लगा दो।
हे मां जगदम्बा
तुम हो घट-घट वासी
ममता की मूरत तुम हो
तुम ही हो पर्वत वासी
शरण तुम्हारे आया हूं
हे मां जगदम्बा।।
*****************
कालिका प्रसाद सेमवाल
********************
विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-705
देखा सुना चकित हूं
-----------------------;;-----
शब्दों ने क्या रूप गढ़ लिए
देखा सुना चकित हूं ।
परिवर्तन से पूर्ण प्रभावित
रूप स्वरुप बिगड़ते दिखते
मर्यादाएं व्यथित संकुचित
कर्कश कुंठित कायर लिखते
बढ़ती गढ़ती गहन गंध मे
मन से बहुत बहुत व्यथित हूं
शब्दों ने क्या रुप गढ़ लिए
देखा सुना चकित हूं ।
आशंका बलवती हो रही
संबंधों मे सड़न बढ़ रहा
प्रश्न चिन्ह लग रहे चरित्र पर
षड्यंत्रों के शीर्ष चढ़ रहा
कैसे मुक्ति राह पर जाउं
पुष्प सदृश अर्पित हूं
शब्दों ने क्या रूप गढ़ लिए
देखा सुना चकित हूं ।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-705
काव्यरंगोली ऑनलाइन नेह काव्योत्सव 14 फरवरी 2020
गणतंत्र दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता परिणाम 2020 इस प्रकार है।
आप सभी को बहुत बहुत बधाई यद्द्पि सभी रचनाये एक से बढ़कर एक थी किन्तु निर्णायक मंडल द्वारा यमन नाम टॉप टेन चयनित किये गए।
1 प्रखर दीक्षित
2 रश्मिलता मिश्र
3 अविनीश त्रिवेदी अभय
4 लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, बस्ती उ प्र
5 जनार्दन शर्मा
6 एस के कपूर श्री हंस
7 देवानंद साहा, कोलकाता
8 अर्चना कटारे शहडोल म प्र
9 शिल्पी मौर्य बाराबंकी
10 रिपुदमन झा पिनाकी, झारखंड
आप के प्रमाण पत्र जल्दी ही ऑनलाइन भेज दिए जायँगे
विशेष ध्यान दे कल 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे है आप जिसको भी प्यार करते हो उस पर एक रचना भेजियेगा
काव्य रंगोली नेह काव्योत्सव ऑनलाइन 2020 दिनाँक 14 फरवरी 2020 सुबह 8 बजे से शाम 10 बजे तक मेरे व्यक्तिगत नम्बर पर भेजियेगा।
काव्यरंगोली ऑनलाइन नेह काव्योत्सव 14 फरवरी 2020 प्यार करना है तो माँ बाप से करना सीखो
मरना है गर तो अपने देश पे मरना सीखो
वासना से भरी गलियो में खोजते क्या हो,
प्यार पूजा है इबादत सी है करना सीखो।।
आशुकवि नीरज अवस्थी
9919256950
प्यार करना है तो माँ बाप से करना सीखो
मरना है गर तो अपने देश पे मरना सीखो
वासना से भरी गलियो में खोजते क्या हो,
प्यार पूजा है इबादत सी है करना सीखो।।
आशुकवि नीरज अवस्थी
9919256950
अनुराग मिश्र ग़ैर , चिनहट- लखनऊ
अनुराग मिश्र" ग़ैर "
लखनऊ
मठ के संत
आओ प्रिय आ गया बसंत
महक रहे दिग् और दिगंत ।
नव पल्लव फिर मुस्काये हैं
पक्षी फिर कलरव गाये हैं,
झाड़ रहे हैं तरुवर पत्ते
हुआ शीत का अब तो अंत ।
सबके आंगन धूप खिली है
मध्यम पछुवां पवन चली है,
हँसी ठिठोली करती सखियाँ
लौटे हैं घर सबके कंत ।
खिले पुष्प हैं चारों ओर
मधुप मचाते रह-रह शोर,
आकुल है मेरा विरही मन
उर में पीड़ा पले अनंत ।
तुमको ऋतु का भान नहीं क्या?
इन रंगों का ज्ञान नहीं क्या?
तुम हो गये पाषाण हृदय या
बन बैठे हो मठ के संत ।।
अनुराग मिश्र ग़ैर
10-स्वपनलोक कालोनी
कमता, चिनहट
लखनऊ -226028
मो0-941242788
ईमेल-anuraggair@gmail.com
कुमार कारनिक
*मनहरण घनाक्षरी*
(मतगणना)
इंतजार हाँ हो रहा,
मन यूं मचल रहा,
हर पल पल पल,
जिया बेकरार है।
0
तुम्हे कैसे मैं बताऊँ,
किस तरह सताऊँ,
मेरा कल तुम ही हो,
तेरा इंतजार है।
0
इरादा है पक्का मेरा,
जीत का है वादा मेरा,
दिल को मनाऊँ कैसे,
नित इकरार है।
0
विकास का वादा किया,
आस सबको ही दिया,
जब खुला मतपेटी,
जीना दुसवार है।
🙏🏼
******
प्रिया सिंह लखनऊ
जाने क्या था जो मुझमें बदलता चला गया
कागजों पर मेरा एहसास ढलता चला गया
मैंने कई अरमान को दफना रखा था दिल में
एक ख्वाब जो जहन में मचलता चला गया
उरूज जो हैं उनसे सीख ले लो सफर से यूँ
जो चला इद्राक होकर वो चलता चला गया
बदगुमानी की दुहाई बहुत दे देते हो यकीनन
जो गया है सफर से वो हाँथ मलता चला गया
कहीं इनाद बढ़ ना जाये नज़ाकत का सबा में
बस कस़ीदे दस्तूर का फिर संभलता चला गया
उरूज-महानता
इद्राक- समझ,बुझ
इनाद- विरोधता
नज़ाकत- सच्चाई
क़सीदे-तारीफ
दस्तूर- नियम
Priya singh
कुमार🙏🏼कारनिक (छाल, रायगढ़, छग)
मनहरण घनाक्षरी
*सोच*
""""""
बदलें अपनी सोच,
मन में न रखों खोट,
राहों में बहुत मोड़,
चलते ही जाईये।
😌💐
सोच विचार करना,
धैर्य धीरज रखना,
प्रभु के नाम जपना,
प्रीत ही जगाईये।
🌸😌
बदल गए तस्वीर,
बनों भारत के वीर,
बन जाओ तुम मीत,
रीत भी निभाईये।
😌🏵
मात पिता को वंदन,
बड़ो का अभिनंदन,
तब बनोगे चंदन,
धरम निभाईये।
🙏🏼
*******
संजय जैन (मुंबई )
*आचार्यश्री से प्रार्थना*
विद्या : गीत भजन
गुरुदेव प्रार्थना है ,
अज्ञानता मिटा दो।
सच की डगर दिखा,
गुरुदेव प्रार्थना है।
ॐ विद्यागुरु शरणम,
ॐ जैन धर्म शरणम।
ॐ अपने अपने गुरु शरणम।।
हम है तुम्हारे बालक,
कोई नहीं हमारा।
मुश्किल पड़ी है जब भी,
तुमने दिया सहारा।
चरणों में अपने रख लो,
चन्दन हमें बना दो।
गुरुदेव प्रार्थना है ,
अज्ञानता मिटा दो।१।
ॐ विद्यागुरु शरणम ,
ॐ जैन धर्म शरणम।
ॐ अपने अपने गुरु शरणम।।
पूजन तेरा गुरवर,
अधिकार मांगते है।
थोड़ा सा हम भी तेरा,
बस प्यार मंगाते है।
मन में हमारे अपनी,
सच्ची लगन जगा दो।
गुरुदेव प्रार्थना है ,
अज्ञानता मिटा दो।2।
ॐ विद्यागुरु शरणम ,
ॐ जैन धर्म शरणम।
ॐ अपने अपने गुरु शरणम।।
अच्छे है या बुरे है,
जैसे भी है तुम्हारे।
मुंकिन नहीं है अब हम,
किसी और को पुकारे।
अपना बन लो हमको,
अपना वचन निभा दो।
गुरुदेव प्रार्थना है ,
अज्ञानता मिटा दो।३।
ॐ विद्यागुरु शरणम,
ॐ जैन धर्म शरणम।
ॐ अपने अपने गुरु शरणम।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई )
12/02/2020
कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
आओ अपने अंक लगाऊं
******************
मन करता है गीत लिखूं मैं,
मन करता है प्रीति जताऊँ।
सन्ध्या की हर किरण दिवानी,
पंखुरियों की मांग सजाती।
खिलती वन वन सन्ध्या-रानी,
जीवन के मधु गीत सुनाती।
ऐसी मधुमय बेला रंगिनि,
आओ अपने अंक लगाऊँ।
उड़े विहंगम के स्वर मादक,
गगनाड्ग के छोर बिलाते।
सुमन दलों पर कर अठखेली,
मधुपरियों के शिशु अकुलाते।
मुझको दर्द बहुत है संगिनी,
कैसे तुझसे दर्द बताऊँ।
वह चन्दन की मंजुल डलिया,
रह रह कर याद बहुत है आती।
जिसकी छाया के नीचे बैठा,
रहता था मैं तुम शरमाती।
तुमसे प्यार लगन है मेरी,
कैसे तुमको आज भुलाऊँ।।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171
कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
हे मां शारदे
**********
हे मां वीणा धारणी
विद्या विनय दायिनी
हे मनीषिणी,
हमें विचार का अभियान दे।
योग्य पुत्र बन सकें,
स्वभिमान का दान दे ,
चित्त में शुचिता भरो,
कर्म में सत्कर्म दो।
हे मां शारदे,
वाणी में मधुरता दे
हृदय में पवित्रता दे,
हे देवी तू प्रज्ञामयी,
मैं प्रणाम कर रहा तुम्हें।
*******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171
मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज
*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*जीत*
जीत सकोगे हार कर,तब जाओगे जान।
जीत हार का खेल ही,इस जीवन का मान।
दुर्योधन की हार को, समझो पहले आप,
अहंकार जब मन बसा, भूल गया संज्ञान।।
सैनिक सीमा पर कहे, जीत लिए हम काल।
सदा तिरंगा शान हो, माँ के सुंदर भाल।
हार नहीं स्वीकार है,चाहे जाए प्राण,
हम शहीद हो कर रहें,भारत माँ के लाल।
मनुज धरे जो कर्म को, चले सदा अविराम।
कर्म करो फल त्यागकर,ध्यान धरो निज नाम।
जीत सदा निश्चित बने, मानो *मधु* मत हार,
प्रतिद्वंद्वी से लड़ सदा, जीत लिया संग्राम।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
🌹🌹 *सुप्रभातम्*🌹🌹
एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली
*(तन मन का स्वास्थ्य)हाइकु*
रोजाना सेब
दूर ये रखे इन्हें
डॉक्टर देव
ये हरी मिर्च
सेहत का खजाना
दूर हों मर्ज
पेट हो साफ
शहद नींबू पियें
रोग हों हाफ
दूध व मठ्ठा
स्वास्थ्य के यह घर
रोज़ हो ठठ्ठा
सुबह राजा
दिन में कम खायें
रात को आधा
मत लो स्वाद
जंक फूड नहीं लो
खाओ सलाद
खीरा ककड़ी
नित प्रतिदिन लें
बॉडी तगड़ी
मत ये सोच
योग भगाये रोग
जान लें लोग
ये अखरोट
यह ठीक करता
ह्रदय खोट
यह रसोई
मसालों की दुकान
रोग न होई
*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली*
मो 9897071046
8218685464
एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली
*(यातायात व्यवस्था)हाइकु*
तेज रफ्तार
मुश्किल में जान
हो जानकर
यूँ बचाना है
हेलमेट लगाना
समझाना है
ये तीव्र गति
मौत को दावत ये
है भ्रष्ट मति
वजन ज्यादा
गिरना तय होगा
नहीं फायदा
लेन में चलें
बचाये और बचें
गंभीर लगें
चालान न हो
ज्यादा सवारी नहीं
जिम्मेदारी हो
टायर सही
हवा न ज्यादा कम
यात्रा हो रही
*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली*
मोब 9897071046
8218685464
एस के कपूर "श्री हंस बरेली
*विषय,,,,,,,,,,,नारी शक्ति,,,,,,,,,*
*शीर्षक,,,,,माँ, शक्ति भक्ति ममता का प्रतीक*
*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*
*नाम ,,,, एस के कपूर "श्री हंस"*
*पता,,,,,, 06 , पुष्कर एनक्लेव*,
*टेलीफोन टावर के सामने*,
*स्टेडियम रोड, बरेली 243005*
*मोब ,,,,,,9897071046*
*,,,,,,,,8218685464*
*कविता,,,,,,,,,,मुक्तक माला*
*1,,,,,,,,,*
माँ का आशीर्वाद जैसे कोई
खजाना होता है।
मंजिल की जीत का जैसे
पैमाना होता है।।
माँ की गोद मानो कोई
वरदान है जैसे।
चरणों में उसके प्रभु का
ठिकाना होता है।।
*2,,,,,,,,,,*
अहसासों का अहसास मानो
बहुत खास है माँ।
दूर होकर भी लगता कि बस
आस पास है माँ।।
बहुत खुश नसीब होते हैं जो
पाते माँ का आशीर्वाद।
हारते को भी जीता दे वह
अटूट विश्वास है माँ।।
*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*
कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
हे मां शारदे
**********
हे मां वीणा धारणी
विद्या विनय दायिनी
हे मनीषिणी,
हमें विचार का अभियान दे।
योग्य पुत्र बन सकें,
स्वभिमान का दान दे ,
चित्त में शुचिता भरो,
कर्म में सत्कर्म दो।
हे मां शारदे,
वाणी में मधुरता दे
हृदय में पवित्रता दे,
हे देवी तू प्रज्ञामयी,
मैं प्रणाम कर रहा तुम्हें।
*******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171
नमस्ते जयपुर से-- डॉ निशा माथुर
हो जाये जादू की झप्पी मम्मा को उसकी ममता के नाम पर
पिता को भी दीजिये जादू की झप्पी उनके त्याग के नाम पर
हमारे घर के बुजुर्ग,घर के छोटे बच्चे, भाई और बहन सभी को
गले लगाके हैप्पी कीजिये सबको आज जादू की झप्पी के नाम पर!!
......................
तो आज इस झप्पी डे को मनाइए अपने अपनों के संग।
मोहब्बतों का दिन ऐसे ही रंग जाइये वैलेंटाइन के रंग।
- कुछ तो, कुछ लोगों को ,कुछ न कुछ कड़वा लगेगा।
लेकिन मेरा ये संदेश तो हमेशा सामाजिक हित में ही रहेगा।😃👌इसी शुभकामनाओं के साथ🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐🍫🍫🍫🍫🌹🌹🌹🌹
नमस्ते जयपुर से-- डॉ निशा माथुर🙏😃
प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
(012) प्रतिभा प्रभाती
आज प्रभाती है यूँ खास ।
मन के भीतर है क्यूँ आस ।
कहने आया अपनी बात ।
नर नारायण पूजा खास ।
शिव गौरा भी दोनों पास ।
कृष्ण सुदामा मिलते रात ।
दान धर्म व पुण्य ही खास ।
अक्षय पात्र ही रहना बात ।
प्रतिभा प्रभाती ही सौगात ।।
🌹(सर्वाधिकार सुरक्षित स्वरचित)
*प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
दिनांक 12.2.2020......
_________________________________________
सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
*"नव-युग का निर्माण करो"*
"इस धरा को स्वर्ग बनाने,
नवयुग का निर्माण करो।भक्ति में डूबा रहे तन-मन,
इस धरती पर राम बनो।।
मानव मन में विश्वास भरे,
मानव का कल्याण करो।
सुख दु:ख में सहभागी बनकर,
नवयुग का निर्माण करो।।
त्याग काम,क्रोध,मद् ,लोभ,
सत्य का आवाह्न करो।
सत्य-पथ चल कर साथी,
नवयुग का निर्माण करो।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 12-02-2020
राजेंद्र रायपुरी
😄😄 दिल्ली चुनाव विश्लेषण 😄😄
सड़सठ से बासठ हुए, और तीन से सात।
एक घटा दूजा बढ़ा, और न कोई बात।
झाड़ू कुछ छोटी हुयी, बढ़ी कमल की नाल।
फ़र्क़ न कोई खास पर, बजा रहे थे गाल।
पानी-बिजली मुफ़्त की,और किराया माफ़।
चली चाल तो खूब थी, बढ़ा न लेकिन ग्राफ़।
बाँट रहे सब मुफ़्त में, ले जनता से टेक्स।
ऐसा दानी मत बनो, कर दो उनको फेक्स।
मुफ़्तखोर दिल्ली नहीं, बना रहे हो आप।
पेट काटकर टेक्स भरें, बंद करो ये पाप।
।।राजेंद्र रायपुरी।।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
सपने में भी तुम मुझे रिझाने लगे हो
मोहिनी मुद्रा से मन बहलाने लगे हो
भवसागर में गोते खा रही जीवन नैया
डूबते पलों में तुम्ही याद आने लगे हो
पता नहीं मुझको क्यों भेजा हूँ जग में
फिर क्यों नहीं स्मरण दिलाने लगे हो
हो जीवन आधार अहसास होता मुझे
हे भक्त वत्सल क्यों दूर जाने लगे हो
सत्य का अर्पण समर्पण तुम्हारे लिए
फिर क्यों दर्शन को तरसाने लगे हो।
श्रीराधे गोविन्द🙏🙏🙏🙏🙏🌸🌸🌸🌸🌸
सत्यप्रकाश पाण्डेय
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दयानन्द त्रिपाठी निराला
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...
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सुन आत्मा को ******************* आत्मा की आवाज । कोई सुनता नहीं । इसलिए ही तो , हम मानवता से बहुत दूर ...
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मुक्तक- देश प्रेम! मात्रा- 30. देश- प्रेम रहता है जिसको, लालच कभी न करता है! सर्व-समाजहित स्वजनोंका, वही बिकास तो करता है! किन्त...
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नाम - हर्षिता किनिया पिता - श्री पदम सिंह माता - श्रीमती किशोर कंवर गांव - मंडोला जिला - बारां ( राजस्थान ) मो. न.- 9461105351 मेरी कवित...