गोपाल बघेल ‘मधु’ , ओन्टारियो, कनाडा 

काल चक्र घूमता है !
(मधुगीति २००२१२ अग्ररा ) ०१:३८


काल चक्र घूमता है, केन्द्र शिव को देखलो; 
भाव लहरी व्याप्त अगणित, परम धाम परख लो! 


कितने आए कितने गए, राज कितने कर गए;
इस धरा की धूल में हैं, बह के धधके दह गए !


सत्यनिष्ठ जो नहीं हैं, स्वार्थ लिप्त जो मही;
ताण्डवों की चाप सहके, ध्वस्त होते शीघ्र ही !


पार्थ सूक्ष्म पथ हैं चलते, रहते कृष्ण सारथी;
दग्ध होते क्षुद्र क्षणों, प्रबंधन विधि पातकी !


पाण्डवो तुम मोह त्यागो, साधना गहरी करो;
‘मधु’ के प्रभु की झलक को, जीते जगते झाँक लो ! 


✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’


रचना दि. १२ फ़रवरी २०२० रात्रि 
टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा 
www.GopalBaghelMadhu.com


प्रवीण शर्मा ताल*

*घूँघट में चाँद*


घूँघट में चाँद छिपाए बैठी हो,
छत पर बेताब टहलाएं बैठी हो


क्या खता की  क्या भूल हुई जो,,,,,
इश्क हमसे गैर की पायल पहनाएं बैठी
 हो।


अमावस्या की रात कहां है ,,
पूनम सा चहेरा मुरझाए बैठी हो


घूँघट थोड़ा उठाओ जरा,,,,
तीखी नजरों से तीर चलाएं बैठी हो।


पलको से चाँदनी का दीदार होगा ,,,
बादलो के पीछे ठहराए बैठी हो।


क्यो रूठी हो  चाँदनी हमसे ,,,,,
ताल  का दामन तोड़ाए बैठी हो।


मैं जमीं से निहारता रहा चाँदनी तुझे
तू  घूँघट में चाँद को छिपाए  बैठी हो।



✒प्रवीण शर्मा ताल


प्रवीण शर्मा ताल*

*कान्हा*


कान्हा तेरी लीला की है पुकार,
 तुम ले लो फिर धरा पर अवतार।


 सब करते अब पीछे धना धन ,
फूल रहे है यहां- वहाँ   दुर्योधन।


कान्हा तू लेकर आया था एक सन्देशा,
 करते यहाँ धरा पर लोग पैसा- पैसा।


कान्हा तुमने केवल पांच गाँव मांगे,
सन्तोष नही , रिश्वत के पीछे भागे।


नारी की दुर्दशा ऐसी कैसी यहां ,
कोई द्रोपदी तो सूर्पणखा यहां।।


कान्हा  सभा में विकराल रूप बताया,
अब  देखो यहाँ डोंगी बाबा की माया।


कान्हा तुमने द्रोपदी का चीर बढ़ाया
अब बेशर्म  अध वस्त्र पैशन छाया।


कान्हा तुम वन में जाकर चराई गैया,
लुप्त बैलगाड़ी भटकी बछिया, गैया ।


न्याय पर बंधी है नयनों में यहाँ पट्टी,
गांधारी सी सत्ता लोकलुभावन सस्ती।


डसते आंतकी यहाँ जहरीला क्रंदन
आजाओ कान्हा फिर  करो मन्धन।


सत्य ,असत्य पाप पुण्य का है तोल,
मंदिरों में चढ़ता इसका यहां है मोल।


तुमने गरीबी से प्रेम से निभाई दोस्ती
जिसके पास पैसा उससे यहां दोस्ती।


भले यह युग नही  वंशी ले चले आओ
फिर से गीता का ज्ञान उपदेश सुनाओ


अब तो आओ देवकी नंदन द्वारकाधीश
मूर्ख ताल पड़ा चरणों मे दे दो आशीष।


 


*✒प्रवीण शर्मा ताल*


अतिवीर जैन पराग, मेरठ

 


हाथों से हाथ मिले :-


हाथों से हाथ मिले,
तुम हमें साथ मिले,
हम मिले तुम मिले,
मुन्ना की सौगात मिली.


प्रभु का आशीर्वाद मिला,
प्यार का वरदान मिला.
हम दोनों के सपनो को,
एक नया आयाम मिला.


हमारे दो हाथों को,
तीसरा एक हाथ मिला.
पीढ़ीयों की रस्म निभाने को,
मुन्ना का साथ मिला.


स्वरचित,
अतिवीर जैन पराग,
मेरठ


अतुल मिश्र अमेठी

लाखों दिवाने हमने देखे,
जो कहते है मरते है।
गर न मिला वो चेहरा,
फिर क्यूँ उसे जला देते है।
क्या ऐसा ही प्यार होता है......................


उसकी भी कुछ ख्वाहिश होगी,
जो तेरी ख्वाहिश है। 
वो मोहब्बत ही क्या, 
जिसमें सिर्फ अपनी खुशी सम्मिलित हो। 
क्या ऐसा ही प्यार होता है...................... 


मोहब्बत वो इबादत है, 
जो महबूब को खुदा बना देता है। 
वो समझेगें क्या लोग, 
जिनका शौखियत पेशा है।। 
क्या ऐसा ही प्यार होता है ...................... 


जिसके तूने सपने देखे, 
आंखों ने जिसे संजोया। 
हाल यूं उसका करते, 
क्या तेरा दिल न रोया।। 
क्या ऐसा ही प्यार होता है......................... 


"मेरी किस्मत ये खुदा तूने किस कलम से लिख दी। 
तूने मेरी मासूमियत को मायूसियत लिख दी।। "


............ ATUL MISHRA..................


ऑनलाइन कवि सम्मेलन       अररिया, बिहार

ऑनलाइन कवि सम्मेलन
      अररिया, बिहार


हिंदी साहित्य अंचल मंच अररिया, बिहार के तत्वाधान में आयोजित साप्ताहिक कवि सम्मेलन में लगभग 200 कवियों ने भाग लिये इसमें 15 कवियों ने सर्वश्रेष्ठ रचना सृजन किये, हिंदी साहित्य अंचल मंच के अध्यक्ष अशोक कुमार जाखड़ के द्वारा प्रतिदिन विषय दिया जाता था रचना लिखने के लिए बेवसाइट पर , संस्थापक अनुरंजन कुमार अंचल जी के द्वारा सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों को चुने गए चुने गए रचनाकारों को सचिव शशिकांत " शशि", संरक्षक देव दीप " प्रज्वलित" और संचालिका अभिलाषा मिश्रा "आक्षांक्ष के द्वारा सम्मानित किये गये। चुने गये रचनाकारों का नाम इस प्रकार से है -:


1. अख्तर अली शाह "अनन्त"जी
2. अनन्तराम चौबे "अनन्त "जी
3. शकुन्तला जी
4. सौदामिनी खरे
5. सुनील कुमार "गुप्ता" जी
6. अपर्णा शर्मा शिव संगिनी जी
7. परमानंद निषाद जी
8. डॉ ० प्रभा जैन श्री जी
9. एच ० एस चाहील जी
10. निर्मल नीर जी
11. रमेश कुमार द्विवेदी चंचल जी
12. मनीषा दुबे जी
13. डॉ ० चमन सिंह जी
14. बाबा विद्यनाथ झा जी
15. महेंद्र सिंह बिलोटिया जी


नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर

आज चूम लूं में इस धरा को  जिसपे में पली बढ़ी।
तिरंगे को भी चूम लूं, की ये है मेरा वतन मेरी जमीं।
जिस पर हम हर पल, हर घड़ी शिद्दत से करते है मान
वक़्त पड़े तो हम दुनियां को दिखा दें के सबसे पहले हिंदुस्तान।


तो आजके दिन पर दिखा दीजिये की मोहब्बत से बड़ा है देश।
प्रेम,प्यार,परिवार से के साथ है मेरा भारत देश।


आपका आज का दिन मोहब्बतों में बीते।
कुछ कह के बीते कुछ अनकहा ही बीते।
इसी शुभकामनाओं के साथ🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹🍫🍫🍫🍫
नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर🙏🍫


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"अलि"* (दोहे)
****************************
¶नेह लुटाता पुष्प पर, प्रेमिल-पहल-पुकार।
पीकर मधु-मकरंद को, करता अलि गुंजार।।


¶मँडराता है-हर कली, अलि-मन-मत्त-मतंग।
गीत मिलन-गाता चला, मधुकर मस्त मलंग।।


¶भिक्षु अकिंचन अलि बना, मन-मधुराग-पराग।
तृप्ति कहाँ पर प्रीति की? लहके लोलुप-लाग।।


¶सीख-मिटे हर भेद-मन, वाहित-वासित-वात।
संस्मृति अलि मधु-मुरलिका, परसन-पुण्य-प्रभात।।


¶सरसाया अलि-मन मगन, प्रेम-पुष्परस-पान।
आह्लादित है स्पर्श से, पाकर अलि अवदान।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


डा. महताब अहमद आज़ाद  पत्रकार, कवि, (उत्तर प्रदेश) 

वेलेंनटाइन -डे
--------------------
हर सू है खुशियाँ छायें!
सब प्यार के नगमें गायें !!
मस्ती में सारे खोकर! 
वेलेनटाइन डे मनायें!! 


तंहाई भी दूर हो जाये! 
तू मेरे करीब आ जाये!! 
जब नज़र चुराकर जाये! 
बेचैनी मेरी बढ जाये!! 


न आँख तुम्हारी हो नम! 
न दिल में कोई भी हो ग़म!! 
मेरे हाथ में हाथ तुम्हारा! 
हो प्यार का पल पल मौसम!! 


न खौफ न कोई डर हो! 
खुशियों से भरा हर घर हो!! 
जब संग चलो तुम मेरे! 
फिर अपना सुहाना सफर हो!! 


यह प्यार की एक निशानी! 
एक इसमें छुपी है कहानी!! 
वेलेनटाइन डे दिन आया! 
मिलने आजा दिल जानी!!


अनन्तराम चौबे      अनन्त    जबलपुर म प्र

          सुबह सुबह सूरज की लाली


सुबह सुबह 
सूरज की लाली
तन मन को भाती है ।
ठंड के इस मौसम में
सबका मन लुभाती है ।
सुबह से दिखती है 
सूरज की लाली ।
छट जाती है 
रात वो काली ।
सूरज की किरणो से
सबको उर्जा मिलती है ।
वन उपवन के पेड़ 
पौधों की ओस 
बूंदें हटती है  ।
सुबह सुबह सूरज 
की लालिमा सबके
मन को भातीं है ।
सुबह सुबह सूरज
की किरणें ठंडी
को दूर भगाती है ।
गरीबो की गरीबी को
धूप ही लाज बचाती है ।
ठंड के इस मौसम में
ठंड से मुक्ति मिलती है ।
सुबह सुबह सूरज की
किरणें सबके तन मन
को बहुत ही भाती है।
सुबह सुबह सूरज की
लाली सबके तन मन
को बहुत लुभाती है ।


  अनन्तराम चौबे
     अनन्त 
  जबलपुर म प्र
  1856 /634
 9770499027


नीरज कुमार द्विवेदी बस्ती - उत्तर प्रदेश

14 फरवरी - एक सन्देश शहीदों का


चूम चूम चूम ले तू  देश  की  ये  मिट्टी
गंगाजल जमजम से भी पवित्र ये मिट्टी
मन में वन्दे मातरम के गीत ही तू गाता चल
मन में बसे द्वेष भाव सारे तू मिटाता चल
जय हिन्द जय हिन्द नारा तू लगाए जा
गर दीन दुखी कोई मिले गले तू लगाये जा
तू चरणों की भारती के करे सदा वन्दना
कर देश के हवाले खुद को रख कोई रंज न
रक्षा इस देश की है अब तेरे हाथों में
विश्वास नहीं मुझे नेता जी की बातों में
हिन्द जैसा विश्व में कोई देश दूजा नहीं
जननी मातृभूमि से बड़ी कोई पूजा नहीं
देश पर बलिदान हो कोई इससे बड़ा काम नहीं
इससे अधिक जीवन का जग में है दाम नहीं।।
नीरज कुमार द्विवेदी
बस्ती - उत्तर प्रदेश


नीरज कुमार द्विवेदी बस्ती - उत्तरप्रदेश

14 फरवरी : पुलवामा हमला(शहादतदिवस)
14 फरवरी ऑनलाइन सम्मेलन हेतु
दहल गईथी घाटी उस दिन आतंकी अंगारों से
थे दहशतगर्द जो लेकर आये लाहौरी दरबारों से
रक्त बहा था माँ की गोद में माँ के रक्षक बेटों का
हिन्दुस्तान ये चीख उठा था दर्द भरी चीत्कारों से।


इतने दुख में भी नेताजन भाषा अपनी अपनी बोल रहे थे
ले बैठ तराजू वोट बैंक की रोटी राजनीति की तौल रहे थे
आवाज उठी थी मन्दिर मस्जिद, हर गिरिजाघर गुरुद्वारों से
अब दहला दो पिण्डी और कराची देश भक्त ये बोल रहे थे।।


सबक इन्हें सिखलाने का फिर मोदी जी ने जरा विचार किया
सेना को आदेश दिया और उसने प्लान नया तैयार किया
जो छिपकर आते थे चोरों से उनकी औकात उन्हें दिखलाने को
वीर जवानों ने उनके घर में घुसकर फिर बम्बों से बौछार किया।।


लगे रडार बहुत थे पाक में जिसका कुछ अपना काम ही है
लेकिन हिन्द के फौजी थे ये मारकर आना जिसका काम ही है
ये उसी हिन्द के फौजी थे जिसके सम्मुख हथियार था डाला उसने
पाक का हिन्द फौज की ताकत से सबसे कायर फौज का नाम ही है।।
नीरज कुमार द्विवेदी
बस्ती - उत्तरप्रदेश


नीरज कुमार द्विवेदी बस्ती - उत्तरप्रदेश

14 फरवरी : पुलवामा हमला(शहादतदिवस)
14 फरवरी ऑनलाइन सम्मेलन हेतु
दहल गईथी घाटी उस दिन आतंकी अंगारों से
थे दहशतगर्द जो लेकर आये लाहौरी दरबारों से
रक्त बहा था माँ की गोद में माँ के रक्षक बेटों का
हिन्दुस्तान ये चीख उठा था दर्द भरी चीत्कारों से।


इतने दुख में भी नेताजन भाषा अपनी अपनी बोल रहे थे
ले बैठ तराजू वोट बैंक की रोटी राजनीति की तौल रहे थे
आवाज उठी थी मन्दिर मस्जिद, हर गिरिजाघर गुरुद्वारों से
अब दहला दो पिण्डी और कराची देश भक्त ये बोल रहे थे।।


सबक इन्हें सिखलाने का फिर मोदी जी ने जरा विचार किया
सेना को आदेश दिया और उसने प्लान नया तैयार किया
जो छिपकर आते थे चोरों से उनकी औकात उन्हें दिखलाने को
वीर जवानों ने उनके घर में घुसकर फिर बम्बों से बौछार किया।।


लगे रडार बहुत थे पाक में जिसका कुछ अपना काम ही है
लेकिन हिन्द के फौजी थे ये मारकर आना जिसका काम ही है
ये उसी हिन्द के फौजी थे जिसके सम्मुख हथियार था डाला उसने
पाक का हिन्द फौज की ताकत से सबसे कायर फौज का नाम ही है।।
नीरज कुमार द्विवेदी
बस्ती - उत्तरप्रदेश


अर्चना द्विवेदी अयोध्या उत्तरप्रदेश

 


प्रेम नशा होता एक ऐसा,
पाँव बहक ही जाते हैं।
छूतीं जब साँसों को साँसें,
तन मन महक ही जाते हैं।


बियाबान भी मधुवन लगता,
इक उसके आ जाने से।
बिन मौसम बारिश हो जाती,
केश घने  बिखराने  से।।


भ्रम सा बना रहे इस मन में,
सपनों में वो आएगा।
मुझे जगाकर मीठी धुन में,
राग प्रणय वो गाएगा।।


तन मन दोनों उसके वश में,
साँसों पर उसका पहरा।
दर्पण  रूठा  रहता,जिसको,
भाये न  कोई  चेहरा।।


जाने-अनजाने,होठों पर ,
बात उसी की होती है।
इक इक यादें मोती जैसी,
चुन चुन जिसे पिरोती है।।


उसकी यादों में बह जाना,
तीरथ पावन लगता है।
मिलने की चाहत में  तारे,
गिनकर दिल ये जगता है।।


मात्र तनिक आलिंगन से ही,
सुध बुध खोती जाती है।
तप्त हृदय के जलते तल पर,
शीतल जल बिखराती है।।


शून्य  लगे  ये  जीवन  सारा
उसके बिन अस्तित्व इकाई
जग,वन,पथ लगते हैं प्यारे
चलता बन जब परछाई।।


अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश


 


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
     देहरादून
      हमसफ़र
दिनाँक      13/ 2/ 2020



मेरी पहले बात सुनोगे
मन में सब बात गुनोगे
मन सँग जब विचार मिलेंगे
सफल सतपदी तब ही होगी
*सँग मैं तब ही चलूँगी*


सुनलो मेरी बात जानम
हर जन्म मैं साथ चलूँगी
करना होगा तुमको वादा
प्रताड़ना मैं नहीं सहूंगी।


कर्तव्य अपने पूर्ण करूँगी
बिन बात की बात नहीं सहूंगी
रखना होगा तुम को ध्यान
दहेज की नहीं बात सुनूँगी।


साथ चलना बन के साथी
सुख दुःख सब सँग सहूंगी
रहेंगे जैसे दीया और बाती 
नही कोई दुर्व्यवहार करूँगी।


जान लो तुम बात अब ये
हूँ नहीं अबला सनम मैं
उलटी गर कोई बात हुई--- तो
सनम मैं अलग होऊंगी ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सुषमा मलिक "अदब" रोहतक (हरियाणा)

"मेरी महबूबा, खाकी वर्दी"


हर पल रहती ये साथ मेरे, और कहती मैं तेरी महबूबा हूं!
ये डूबी है मेरी मोहब्बत में, मैं इसकी मोहब्बत में डूबा हूं!!
समझकर इसे महबूबा अपनी, मैं इस पर जान लुटाता हूँ!
हर साल मैं इसी के साथ, अपना वैलेंटाइन डे मनाता हूं!!


देखकर इसकी शान निराली, ये मेरे दिल को भा जाती है!
फौलादी सीना तन उठा, जब ये मेरे तन पर छा जाती है!
ये सजाती मेरे तन को, मैं खून से इसकी मांग सजाता हूं!
हर साल मैं इसी के साथ, अपना वैलेंटाइन डे मनाता हूं!!


होली, दीवाली, दशहरा जो हो, या हो त्यौहार राखी का!
मेरे तन पर तो पहरा रहता, बस मेरी इस वर्दी खाकी का!!
इसका साथ पाकर मैं, अपना अब घर गाँव भूल जाता हूँ!
हर साल मैं इसी के साथ, अपना वैलेंटाइन डे मनाता हूं!!


इस खाकी वर्दी पर ही तो, हर फौजी की जान कुर्बान है!
जय हिंद बोल उठे "मलिक", देख  देश का हर जवान है!
इसे पहन हर चोटी पर,  देश का तिरंगा झंडा लहराता हूं!
हर साल मैं इसी के साथ, अपना वैलेंटाइन डे मनाता हूं!!


सुषमा मलिक "अदब"
रोहतक (हरियाणा)


Sushma Malik D/0 Sh. Karan Singh Malik
House no. 3103/1
Shastri nagar, hissar by pass, Rohtak (haryana)
Cont. No. 9813434791, 8199900463


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

ग़ज़ल


तिरी   याद  को   हम   सँजोते  रहेंगें।
अश्कों   से    आँखे    भिगोते  रहेंगें।


मिलो अब मुझे कुछ सुनो भी हमारी।
युं कब तक  तिरे  ख़्वाब  होते  रहेंगें।


सहर हो गई आप घर  से  निकलिए।
फ़क़त शाम  तक  आप  सोते  रहेंगें?


मलाल कुछ भी हो उसे आप जानो।
सदा   हम  दिली  मैल  धोते   रहेंगें।


रहो ख़ुश सदा  आरजू अब मिरी हैं।
तिरे   प्यार   में  जान  खोते   रहेंगें।


कभी इक ख़ुशी भी मुनासिब मुझे हो।
सदा   क्या  फ़क़त  साथ  रोते  रहेंगें।


यकीं हैं कभी तो फसल  भी  उगेगी।
इसी   ख़्याल  से  बीज   बोते  रहेंगें।


कभी मिल न पाए हमें आप तो फिर।
तिरी   याद  का   बोझ   ढोते   रहेंगें।


भरोसा "अभय" हैं कभी पार होंगे।
नहीं    आप   ऐसे   डुबोते   रहेंगें।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


श्याम कुँवर भारती  बोकारो झारखंड

भोजपुरी होली -सिमवा पर गोली दागे 
साइया भईले पहरेदार 
सिमवा पर गोली दागे |
हमरो जवनिया दरदिया ना बुझे ,
देशवा के आगे उनके कुछउ न सूझे |
गावे लोगवा फगुआ लहरेदार 
सिमवा पर गोली दागे |
गवना कराई सइया,पलटनिया बनी गइले ,
आई गइले फागुन साजन नथुनीया भूली गईले|
बहे फगुनी बयार,छ्छ्ने जियरा हमार ,
सिमवा पर गोली दागे |
सखिया सहेली लरकोर हो गईली |
जोहत सजनवा अंगनवा भोर हो गईली | 
मारी दुशमनवा भगावा सीमापार ,
सिमवा पर गोली दागे |
श्याम कुँवर भारती 
बोकारो झारखंड


यशवंत"यश"सूर्यवंशी  भिलाई दुर्ग छग

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग



विषय🥀 रोटी🥀


विधा कुण्डलिया छंद



रोटी रोजी के बिना,नहीं रहे इंसान।
रहकर भूखे उदर में,जीवन नहि आसान।।
जीवन नहि आसान,नये पथ बढ़ने आगे।
भरे नहीं जब पेट,करे क्या उठकर जागे।।
कहे सूर्य यशवंत,तोड़ दो ऊंची चोटी।
मिल जाए परिवार,खुशी दो पाकर रोटी।।


 



🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग


सुनीता असीम

मुक्तक
बुधवार
१२/२/२०२०



हो गई हमको अदावत इक्तिजा की बात से।
और बढ़ती नफरतें हैं आदमी की जात से।
बढ़ रहीं इसकी जरूरत और पैसों की कमी-
ये नहीं चिन्ता में सोया आज कितनी रात से।
***
सुनीता असीम


सुनीता असीम

ये सताता रहा खयाल हमें।
साथ तेरे है क्या मलाल हमें।
***
क्यूं निकाल दिया हमें दिल से‌।
प्रेम के पद पे कर बहाल हमें।
***
कर दिया तंग क्यूँ हमें तूने।
आज चुभता यही सवाल हमें।
***
घूरती सी निगाह से देखते।
कर रही हैं लगा हलाल हमें।
***
डूब जाएँ शबाब में .......तेरे।
उससे पहले जरा संभाल हमें।
***
सुनीता असीम
१२/२/२०२०


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

..................... हमें तो ..........................


कोई साथ न दे , हमें  तो  चलने  की  आदत है।
परेशानी जो हो , हमें तो  जलने  की आदत है।।


मुश्किलेंआती रहती हैं यूं तो जिंदगी की राहों में;
मुश्किलों  में  ही , हमें तो  पलने  की आदत है।।


कांटे  हजार  बिखेरे  हैं राह में  हमारे रकीबों ने ;
कांटों से बचकर,हमें तो निकलने की आदत है।।


अपने  ही  जब  बेगाने  जैसे हो  जाया  करते   ;
ऐसों को छोड़कर,हमें तो बहलने की आदत है।।


जितनी  भी  गर्मी  हो   या  जितनी  भी   सर्दी ;
हर मौसम में ही , हमें तो टहलने की आदत है।।


चाहे  जितनी  ठोकरें  मिल  जाए  इन  राहों में ;
हर  ठोकरों से , हमें तो संभलने  की आदत है।।


उम्र  के आखरी  दहलीज पर  खड़े हैं "आनंद" ;
खुशी मिल जाए, हमें तो मचलने की आदत है।।


------------------- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


एस के कपूर श्री*  *हंस।बरेली*

*तेरे विचारों से ही तेरे विचारों का*
*निर्माण होगा।।।।।।।।मुक्तक।।।*


तेरे विचार ही चल कर फिर
तेरे शब्द  वर्ण बनेंगें।


तेरे शब्द फिर  आगे   सिद्ध 
तेरा     कर्म    करेंगें।।


तेरे कर्म  ही  निर्माण करेंगें
व्यक्तित्व  ओ  चरित्र।


निश्चित होगा जिससे  कैसे 
तेरे भाग्य धर्म चलेंगें।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री* 
*हंस।बरेली*
मोबाइल9897071046
            8218685464


एस के कपूर श्री हंस।।।।।।बरेली।

*नारी का   सम्मान।*
*कार्य महान।हाइकु*



कन्या का दान
विवाह का संस्कार
कार्य महान


बहु बेटी है
वह किसी की बेटी
तेरी शान है


बहू सम्मान
नहीं  है धन लक्ष्मी
तेरा है मान


नारी पूज्य है
ये सिखाते संस्कार
यही धर्म है


माँ की ये दुआ
जिसे भी मिलती है
सफल हुआ



नारी से सृष्टि
सम्मान की दो दृष्टि
होती है वृष्टि


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।*
मोबाइल 9897071046
             8218685464


एस के कपूर श्री हंस।।।।।।बरेली।

वेब पोर्टल पर प्रकाशित करने के लिए
नाम एस के कपूर श्री हंस
स्टेडियम रोड
बरेली(ऊ प)
कविता
विविध मुक्तक माला।।।।।।।
1,,,,,,,
।।।आंतरिक शक्ति।।।।।।।। 
।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।
मत  आंकों     किसी  को    कम ,
कि सबमें कुछ बात होती है।


भीतर छिपी प्रतिभा कीअनमोल,
  सी    सौगात     होती   है।।


जरुरत है तो  बस उसे पहचानने,
और फिर निखारने  की।


तराशने  के बाद  ही  तो  हीरे से,
मुलाकात    होती     है।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस
बरेली।।।।।।।।।।। ।।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।8218685464।।।।।।।।
2,,,,,,
।। सफलता का सम्मान।।।।।।।।।।।।।।।।
।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।


नसीबों  का   पिटारा   यूँ    ही
कभी खुलता नहीं है।


सफलता का सम्मान जीवन में
 यूँ ही घुलता नहीं है।।


बस कर्म  ही लिखता है  हाथ
की   लकीरें  हमारी ।


ऊँचा  हुऐ बिना  आसमाँ  भी
कभी झुकता नहीं है।।


रचयिता।।।।।एस के कपूर
श्री हंस।।।।।।बरेली।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।
3,,,,,
सत्य कभी मरता नहीं है।।।।
।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।


सच  कभी    मरता    नहीं
हमेशा  महफूज़   होता है।


ढेर में दब कर  भी जैसे ये 
चिंगारी और फूस होता है।।


लाख छुपा ले कोई उसको
काल  कोठरी   के  भीतर।


सात  परदों के पीछे से भी
जिंदा   महसूस   होता  है।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री
हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।
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सत्य कभी मरता नहीं है।।।।
।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।


सच  कभी    मरता    नहीं
हमेशा  महफूज़   होता है।


ढेर में दब कर  भी जैसे ये 
चिंगारी और फूस होता है।।


लाख छुपा ले कोई उसको
काल  कोठरी   के  भीतर।


सात  परदों के पीछे से भी
जिंदा   महसूस   होता  है।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री
हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


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